हिन्दी साहित्य – सस्वर लघुकथा ☆ पूर्वाभ्यास – डॉ कुंवर प्रेमिल ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

डॉ कुंवर प्रेमिल

( संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में लगातार लेखन का अनुभव हैं। अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। वरिष्ठतम  साहित्यकारों ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  अग्रज श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने आपकी एक  कालजयी लघुकथा  ” पूर्वाभ्यास” का स्वरांकन प्रेषित किया है, जिसे हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं। )

☆ लघुकथा – पूर्वाभ्यास ☆  

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी का  लघुकथाकार के रूप में हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान है। आपने 350 से अधिक लघुकथाओं की रचना की है। यह अत्यंत गर्व का विषय है कि आपकी लघुकथा “पूर्वाभ्यास” को उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव विश्विद्यालय के पाठ्यक्रम वर्ष 2019-2020 में स्थान मिला है।
आप परम आदरणीय डॉ कुंवर प्रेमिल जी की कालजयी लघुकथा “पूर्वाभ्यास” उनके चित्र अथवा यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं।

 

आपसे अनुरोध है कि आप यह कालजयी रचना सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें। ई- अभिव्यक्ति इस प्रकार के नवीन प्रयोगों को क्रियान्वित करने हेतु कटिबद्ध है।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ कोरोना क्या बिगाड़ लेगा? ☆ – सुश्री चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

सुश्री चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

(आदरणीया  सुश्री चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश” जी  कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकरणों  से  पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपकी रचनाएँ कई  राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं  में सतत प्रकाशित होती रहती हैं। समय समय पर आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण। आप “भाषा सहोदरी हिन्दी” – की महासचिव हैं एवं गत वर्षो से “भाषा सहोदरी हिन्दी” द्वारा हिन्दी के प्रचार व प्रसार में निरंतर प्रयासरत  हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा “कोरोना क्या बिगाड़ लेगा?“। ) 

☆कोरोना क्या बिगाड़ लेगा ?☆ 

चाहे बड़का “विहान” कॉलिज से घर लौटता हो,चाहे छुटकू “ईशान” स्कूल से पसीने से सराबोर आता हो, या फिर कोचिंग क्लास से “इशिता” बाहर से जब भी जो आये सीधा फ्रिज की ओर ही भागना और अपनी-अपनी चिल्ड बॉटल, निकालना और गट गट कर एक ही साँस में पी जाना…

माँ का अक्सर बोलते ही रह जाना “सर्द गरम हो जाएगा खांसी जुखाम पीड़ा देगा.. पर सुनता कौन है… माँ” कब बोलती चली गई, पानी की घूंट के साथ माँ की परवाह भी घटक घटक… संगीता को अक्सर यूँ ही बच्चों के साथ जूझना पड़ता था।

मगर आजकल कोरोना काल में परिस्थिति कुछ बदली सी है, ठंडे पानी से ऐसा परहेज तो पहले देखने को नहीं मिला पीना तो दूर की बात अब कोई अपनी बॉटल भी नहीं संभालता…

गरम पानी से बच्चों का अथाह प्रेम संगीता को सकून तो देता था पर गरमी का कोप भी उसके मन मस्तिष्क पर हावी था।  पर संगीता मन ही मन आश्वस्त थी कि चलो अच्छा है, बच्चे स्वयं को सयंम बरतते हुए “दादी माँ” की कही बात का कड़ाई से पालन तो कर रहें हैं कि “कोरोना काल” में खांसी जुखाम को होने ही मत देना बस फिर देखना।

कोरोना क्या बिगाड़ लेगा।

 

© चंद्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

5 ए / 11040 गली नम्बर -9 सत नगर डब्ल्यू ई ए करौल  बाग़ न्यू दिल्ली – 110005

8383096776, 9560660941

ई मेल आई डी– [email protected]

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हिन्दी/मराठी साहित्य – लघुकथा ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #3 ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा की हिन्दी लघुकथा ‘दंतमंजन’ एवं मराठी भावानुवाद ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  

आज प्रस्तुत है  सर्वप्रथम सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा जी की मूल हिंदी लघुकथा  ‘दंतमंजन ’ एवं  तत्पश्चात श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  द्वारा मराठी भावानुवाद  ‘दंतमंजन

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #3 ☆ 

सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । आपकी अब तक देश की सभी पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पिछले 40 वर्षों से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018 )

☆ दंतमंजन

महिला समिति की सदस्यों ने इस माह के प्रोजेक्ट के अंतर्गत झुग्गी वासियों की एक बस्ती के स्वास्थ्य जाँच शिविर के आयोजन का निर्णय लिया. तय हुआ कि बस्ती के लोगों का डेंटल चेकअप किया जाय तथा सभी को दंतमंजन निःशुल्क वितरित किए जाएँगे.

निश्चित दिन सभी झुग्गीवासियों को बुलाकर कतार में खड़ा किया गया. दो डॉक्टर उनके दांतों के परीक्षण में जुट गये. अधिकांश लोगों के दांत सड़े हुए, गंदे तथा रोगग्रस्त थे. सभी को दंतमंजन के डिब्बे दिए गये और रोज दांतों की सफाई की हिदायत दी गई. जिनके दांत रोगग्रस्त थे उन्हें दवाइयां भी दी गईं. लगभग पूरा दिन ही इस प्रोजेक्ट में गुजर गया. समिति की सदस्य बड़ी प्रसन्न थीं फोटोग्राफर, पत्रकार भी इस प्रोजेक्ट में उपस्थित थे. काफी सारे फोटोज लिए गये और लम्बी, प्रभावशाली खबर बनाई गई जो अगले दिन स्थानीय अख़बारों में छपनी थी. प्रोजेक्ट की समाप्ति पर सभी महिलाऐं होटल गईं और दिन भर की थकान उतारते हुए ठन्डे पेय,चाय कॉफ़ी और बढ़िया खाना खाया.

अगले दिन समिति की एक सदस्य रविवार के हाट में खरीदारी के लिए गई. सब्जी खरीदकर वह जैसे ही मुड़ी उसने देखा तीन चार लडके दंतमंजन के डिब्बों के ढेर को सजाए गुहार लगा रहे थे –‘दंतमंजन का पांच रूपये वाला डिब्बा चार रूपये में.’ यह उसी बस्ती के लडके थे जहाँ वे कल दन्त परीक्षण के लिए गयी थीं.और उनके मुफ्त बांटे गये दंतमंजन के डिब्बों के आसपास अब अच्छी खासी भीड़ जुटने लगी थी.

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

❃❃❃❃❃❃

☆ दंत मंजन  

(मूळ हिन्दी कथा –दंत मंजन   मूळ लेखिका – नरेंद्र कौर छाबडा  अनुवाद – उज्ज्वला केळकर)

महिला समीतीच्या सदस्यांनी  या महिन्यात एक प्रकल्प हाती घेतला. एका झोपडपट्टीतील लोकांची दंत तपासणी करायची. सगळ्यांची तपासणी झाल्यानंतर दंत मांजनाच्या डब्या तिथे मोफत वाटायच्या.

ठरलेल्या दिवशी तिथे लोकांना एकत्र बोलावले. त्यांना रांगेत उभे केले. डेन्टल सर्जन त्यांचे दात तपासू लागले. अनेकांचे दात किडले होते. हिरड्या रोगग्रस्त होत्या.  दांत तपासणीनंतर सगळ्यांना दंत मांजनाच्या डब्या दिल्या गेल्या. रोज दात स्वच्छ घासण्याची सूचनाही दिली गेली. हा कार्यक्रम संपण्यास पूर्ण दिवस लागला.

समीतीच्या सदस्या प्रसन्न होत्या. फोटोग्राफर, पत्रकारदेखील या कार्यक्रमासाठी उपस्थित होते. खूप फोटो काढले. लांबलचक बातमी तयार केली गेली. दुसर्‍या दिवशीच्या वृत्तपत्रात ती छापून येणार होती. कार्यक्रम संपल्यावर सगळ्या जणी हॉटेलात गेल्या. दिवसभराची थकावट दूर करण्यासाठी काही चविष्ट डिश मागवल्या गेल्या. चहा -कॉफी, थंड पेय पण झाले.

दुसर्‍या दिवशी समीतीच्या एक सदस्या बाजारात काही खरेदीसाठी गेली. खरेदी करून ती वळली आणि तिला दिसलं, तीन चार मुले दंत मांजनाच्या डब्यांचा ढीग लावून ओरडत होती. ‘दंत मांजनाची पाच रुपयाची डबी चार रुपयात…’ ही मुले त्या वस्तीतलीच होती, जिथे त्यांनी दंतमंजनाच्या डब्या मोफत वाटल्या होत्या. त्या डब्यांच्या आसपास चांगली गर्दी जमली होती.

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 53 – लघुकथा दिवस विशेष – ग्रहण ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं सार्थक लघुकथा  ग्रहण । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 53 ☆

☆ लघुकथा दिवस विशेष – ग्रहण ☆  

इस वर्ष की पदोन्नति सूची आने में अभी एक दिन शेष था, इसके पूर्व ही रामदीन को मित्रों से बधाईयां मिलने लगी थी। यहाँ तक कि, उसके निकटस्थ अधिकारी तिवारी जी से भी प्रमोशन की पुष्टि के साथ उसे अग्रिम बधाई मिल गई थी।

परन्तु यह क्या —–? आज घोषित पदोन्नति  सूची में शुरू से अंत तक रामदीन का कहीं भी नाम नहीं था।

खिन्न मन से अधिकारी तिवारी जी के केबिन में जा कर उनसे पूछा—–

“सर, आपने तो कल ही मुझे बधाई दे दी थी, फिर ये कैसे हो गया! क्या आपने भी दूसरों की देखा-देखी अनुमान के आधार पर बधाई दी थी?”

“नहीं रामदीन! ये कैसे हो गया, मैं भी यही सोच रहा हूँ। कल सूची में मैंने स्वयं तुम्हारा नाम देखा था। रात्रि साढ़े नौ बजे तक मैं महाप्रबंधक जी के कक्ष में था, –  तब भी वही प्रमोशन लिस्ट हमे दिखाई गई थी। पता नहीं इसके बाद किस कारण से तुम्हारा नाम हटाया गया। अचम्भित हूँ मैं भी।”

हताश, रामदीन कारण जानने हेतु हिम्मत कर महाप्रबंधक के पास पहुंचा,——-

“मान्यवर जी—-! मैं जानना चाहता हूँ कि, पात्रता के बावजूद मुझे अयोग्य क्यों समझा गया,यदि आप मेरी कमियाँ बता सकें तो आगे मैं उन्हें सुधारने की कोशिश करूंगा।”

“नहीं रामदीन! — तुममें कोई कमी नहीं है। तुम हर प्रकार से योग्य हो, किन्तु हुआ यह कि, हमारी पदोन्नति सूचि में शासन के नियमानुसार आरक्षित वर्ग की एक संख्या कम रह जाने की भूल के चलते ऊपर से आदेश हुआ था, सूची में एक आरक्षित वर्ग के व्यक्ति को अनिवार्य रूप से शामिल करने का।”

“पर तुम चिंता नहीं करो रामदीन! अगले वर्ष के लिए अभी से तुम्हारा प्रमोशन पक्का है।”

“किन्तु श्रीमान जी—- मेरा ही नाम क्यों काटा गया? सूची में मुझसे कमतर और नाम भी तो थे। और फिर मेरे बदले में जिसे आपने पदोन्नति दी है उसके विषय में भी आप भलीभांति परीचित हैं।”

“हाँ रामदीन, —सब कुछ जानते हुए भी विवश हैं हम। और तुम्हारा ही नाम क्यों!   तो सुनो एक उदाहरण से—— यह एक सर्वविदित तथ्य है जिसे सब जानते हैं, और तुम भी, कि, कुल्हाड़ी लिए लकड़हारा जब जंगल मे घुसता है तो आड़े-टेढ़े व असामान्य बांसोंसे अपने को बचाते हुए जो सब से सीधा और सही बांस दिखता है, वह उसी पर कुल्हाड़ी से वार करता है। समझ रहे हो न रामदीन तुम, मेरे कहने का आशय?”

“जी मान्यवर,— समझ रहा हूँ और शायद नहीं भी।”

“नहीं भी से क्या तात्पर्य है तुम्हारा?” महाप्रबंधक ने उत्सुकता से पूछा।

“मान्यवर—! कटने के बाद भी ‘सीधे बांस’ की उपयोगिता कहाँ-कहाँ और क्या-क्या होती है इससे तो आप कदापि अनभिज्ञ नहीं होंगे।”

“वही आड़े-टेढ़े बांस “मौसम परिवर्तन”के साथ ही आपस मे टकराते हुए जल कर राख हो जाते हैं, या सूख कर वहीं ठूंठ बने इधर-उधर से थपेड़े खाते रहते हैं।”

महाप्रबंधक जी निरुत्तर हो,अपने दाएं-बाएं झांकने लगे।

झूठ की इस जंग में हार कर भी रामदीन विजयी मुस्कान के साथ अपने कार्यस्थल की और लौट रहा था।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

12/06/2020

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ जन्मदिन ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

आज प्रस्तुत है बेटियों पर आधारित लघुकथाओं में से एक सर्वश्रेठ लघुकथा –  जन्मदिन।  हम आपके साथ भविष्य में भी श्री कमलेश भारतीय जी की सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ आपसे साझा करते रहेंगे। कृपया आत्मसात करें।

☆ लघुकथा : जन्मदिन   

छोटे भाई की छोटी बेटी मन्नू हमारे पास आई हुई थी । एक सुबह नाश्ते पर कहने ली – बड़ी मां , मेरी एक बात सुनेगी ?

-कहो बेटे । कहो । पत्नी ने पुचकारते हुए कहा ।

-आज मेरा जन्मदिन है । मनाओगी ?

बड़ी बड़ी आंखों से मन्नू ने बड़ा सवाल किया ।

-मनायेंगे । मनायेंगे क्यों नहीं ?

पत्नी ने चहकते हुए कहा ।

-केक बनवायेंगे ?

-हां । हां । बेटी क्यों नहीं ?

-मोमबत्तियां जलायेंगे ? कुछ मेहमान भी बुलायेंगै ?

-हां । बेटी । हां ।

-गिफ्ट भी मिलेंगे ?

– हां । बेटी । पर तुझे शक क्यों हो रहा है ?

-बड़ी मां । मेरा जन्मदिन कभी नहीं मनाया जाता ।इसलिए । डैडी मेरे भाई का जन्मदिन तो धूमधाम से मनाते हैं पर मेरा जन्मदिन भूल जाते हैं । आप कितनी अच्छी हैं । मेरी प्यारी अम्मा ।

मेरी पत्नी की आंखों में आंसू थे और वह कह रही थी कि बेटी तू हर साल आया कर । हम तेरा जन्मदिन मनाया करेंगे ।

मन्नू की आंखों में आंसू इन्द्रधनुष के रंगों में बदल गये थे ।

©  कमलेश भारतीय

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ इंतजार ☆ श्री अशोक कुमार धमेंनियाँ ‘अशोक’

श्री अशोक कुमार धमेंनियाँ  ‘अशोक’

ई- अभिव्यक्ति में  श्री अशोक कुमार धमेंनियाँ  ‘अशोक’जी का हार्दिक स्वागत है।साहित्य की सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर। प्रकाशन – 4 पुस्तकें प्रकाशित 2 पुस्तकें प्रकाशनाधीन 3 सांझा प्रकाशन। विभिन्न मासिक साहित्यिक पत्रिकाओं में लघु कथाएं, कविता, कहानी, व्यंग्य, यात्रा वृतांत आदि प्रकाशित होते रहते हैं । कवि सम्मेलनों, चैनलों, नियमित गोष्ठियों में कविता आदि  का पाठन तथा काव्य  कृतियों पर समीक्षा लेखन। कई सामाजिक कार्यक्रमों में सहभागिता। भोपाल की प्राचीनतम साहित्यिक संस्था ‘कला मंदिर’ के उपाध्यक्ष। प्रादेशिक / राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों / अलंकरणों  से  पुरस्कृत /अलंकृत। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक विषय पर आधारित लघुकथा ‘इंतजार ‘। वर्णित घटना एवं पात्र काल्पनिक हैं किन्तु ,भावनाएं वास्तविक। कृपया आत्मसात करें और भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाएं।  )

☆ लघुकथा  – इंतजार ☆

बलवान घाटी में युद्ध छिड़ गया। चीन और भारत की सेनाएं आमने-सामने आ गई ।

“आज एक भी चीनी मुझसे बचकर न जा सकेगा। माँ कसम , यदि मेरी माँ ने मुझे दूध पिलाया है तो आज ये चीनी देखेंगे कि भारत माँ की छाती पर पैर रखने का क्या अंजाम होता है ।” –पहाडसिंह ने रायफल के साथ घसिटते  और आगे बढ़ते हुए अपने साथी दलेल सिंह से कहा ।

“अरे यार , कल ही तुम कह रहे थे  कि तेरी शादी पक्की हो गई है । अवकाश लेकर शादी करने के लिए घर जाना है । तू पीछे हट , इन चीनी चमगादड़ों को मैं देखता हूं। तेरा घर में सब इंतजार कर रहे होंगे। इसलिए भारत मां की कसम आज मैं वो जौहर दिखाना चाहता हूं कि चीनी कभी भी इस मोर्चे पर आने से घबरायेंगे । यदि आज मैं अपने रक्त से भारत मां का टीका कर सका तो अपना जीवन और देह धन्य समझूंगा ।– दलेल सिंह ने कहा।

“ऐसा नहीं हो सकता । मेरी शादी होगी तो बारात में तुझे भी चलना होगा।  यदि यहां भारत मां की सेवा करते मृत्यु का वरण करना पड़ा तो मैं भी साथ रहूंगा । लेकिन- यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे ……..।”

फायर होने में कुछ तेजी  आ  गयी।

” धायँ….  धायँ…..। दलेल , वह गए दो”

और यह ले , दलेल ने गोलियों की बौछार कर दी।

” पहाड़ , सभी मारे गए साले । एक भी चीनी नहीं दिख रहा है”।

इसी बीच पीछे से एक गोली पहाड़ सिंह की पीठ पर लगी ।

“अरे दलेल , चीनियों ने पीठ पर गोली मार दी । यह साले पीछे से आ गए हैं ।”

पहाड़सिंह गोली खाकर मूर्छित अवस्था में लुड़ककर पहाड़ के किनारे सैकड़ों फिट गहरी नदी में गिरने लगा । तभी दलेल ने एक हाथ से पहाड़ सिंह का हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से पीछे से गोली चला रहे चीनियों को भूँजना  शुरू कर दिया।

” पहाड़ , यह देख ……एक ……दो …..  और ….पांच। पूरे पाँच मारे गये।”

“अरे मार दिया सालों ने । पहाड़ , मैं भी तुम्हारे  साथ आ रहा हूं । हम दोनों मृत्यु का वरण एक साथ करेंगे। अफसोस मैं वादा पूरा न कर सका । तेरी मां और वह लड़की जिससे तेरी शादी होने वाली थी , उनके इंतजार का क्या होगा?

 

© अशोक कुमार धमेंनियाँ  ‘अशोक’

भोपाल म प्र

मो0-9893494226

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 51 ☆ लघुकथा – इज्जत ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  और सार्थक लघुकथा  “इज्जत । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 51 – साहित्य निकुंज ☆

☆ लघुकथा – इज्जत ☆

आज मामी का फोन आया और बिटिया की शादी का शुभ समाचार मिला। बहुत खुशी हुई सोचा आज मामा होते तो बहुत खुश होते। शादी में अभी समय है पता चला दिती घर से चली गई है।  वह शादी नहीं करना चाहती। लेकिन मालूम हुआ उसके मौसाजी समझा बुझाकर उसे घर वापस ले आए और शादी के लिए मजबूर किया। सिर्फ घर की इज्जत बची रहे।

लेकिन आज शादी के कई  वर्ष बाद पता चला दोनों में बन नहीं रही अक्सर झगड़ा होता रहता है। दोनों की इतने वर्षों में भी नहीं बन पाई।

मौसी ने बताया कि ..” क्योंकि दिती अपने प्यार को भूल नहीं पा रही और अक्सर मिलती रहती है।”

ओह ऐसी बात है  “अब मामी की इज्जत कहां गई जिसे बचाने के लिए अपनी बेटी की खुशियां कुर्बान कर दी।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी/मराठी साहित्य – लघुकथा ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #2 ☆ सुश्री वसुधा गाडगिल की हिन्दी लघुकथा ‘लाइलाज’ एवं मराठी भावानुवाद ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  

आज प्रस्तुत है  सर्वप्रथम सुश्री वसुधा गाडगिल जी की  मूल हिंदी लघुकथा  ‘लाइलाज ’ एवं  तत्पश्चात श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  द्वारा मराठी भावानुवाद  नाइलाज

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #2 ☆ 

सुश्री वसुधा गाडगिल

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री वसुधा गाडगिल जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । पूर्व प्राध्यापक (हिन्दी साहित्य), महर्षि वेद विज्ञान कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश. कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख, यात्रा – वृत्तांत, संस्मरण, जीवनी, हिन्दी- मराठी भाषानुवाद । सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक, भाषा तथा पर्यावरण पर रचना कर्म। विदेशों में हिन्दी भाषा के प्रचार – प्रसार के लिये एकल स्तर पर प्रयत्नशील। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलनों में सहभागिता, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ,आकाशवाणी , दैनिक समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित। हिन्दी एकल लघुकथा संग्रह ” साझामन ” प्रकाशित। पंचतत्वों में जलतत्व पर “धारा”, साझा संग्रह प्रकाशित। प्रमुख साझा संकलन “कृति-आकृति” तथा “शिखर पर बैठकर” में लघुकथाएं प्रकाशित , “भाषा सखी”.उपक्रम में हिन्दी से मराठी अनुवाद में सहभागिता। मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट, नारनौल (हरियाणा ) द्वारा “डॉ. मनुमुक्त मानव लघुकथा गौरव सम्मान”, लघुकथा शोध केन्द्र , भोपाल द्वारा  दिल्ली अधिवेशन में “लघुकथा श्री” सम्मान । वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। )

☆ लाइलाज

अस्पताल की लेखा शाखा में दोनों लिपिकों की आपस में चर्चा चल रही थी।

” सरकार ने हर मरीज पर राशि भेजी है ! ”

” अच्छा! कितनी ! ”

” पचास हज़ार प्रति मरीज ।”

” बहुत है! ”

” कुर्सी तन्नक इधर लो …हाँ ऐसे! मरीज तक दस हज़ार का इलाज पहुँच रहे हैं । ”

” बाकी चालीस हज़ार! ”

” मंत्रियों, अफसरों, स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारियों की तंदुरुस्ती बनाने में… हेंहेंहें..! ”

” महामारी का पैसा भी ड़कार लेंगे! हद है ! ”

” लालच… लाचारी, महामारी को नहीं देखती! ”

” हाँ मित्र, ये महामारी तो एक समय बाद खत्म हो जायेगी लेकिन भ्रष्टाचार की महामारी…ये लाईलाज है!

© वसुधा गाडगिल

संपर्क –  डॉ. वसुधा गाडगिल  , वैभव अपार्टमेंट जी – १ , उत्कर्ष बगीचे के पास , ६९ , लोकमान्य नगर , इंदौर – ४५२००९. मध्य प्रदेश.

❃❃❃❃❃❃

☆ नाईलाज 

(मूल कथा – लाईलाज   मूल लेखिका – डॉ. वसुधा गाडगीळ     अनुवाद – उज्ज्वला केळकर)

 

इस्पितळाच्या लेखा विभागात दोन लिपिक आपापसात बोलता होते.

‘सरकारने प्रत्येक रुग्णासाठी पैसे पाठवले आहेत.’

‘अच्छा! किती? ‘

‘प्रत्येक रुग्णागणिक पन्नास हजार.’

‘खूप झाले ना?’

‘जरा खुर्ची इकडे जवळ सरकवून घे…. हां… अशी …प्रत्येक रुग्णापर्यंत इलाजासाठी दहा हजार पोचतात.’

‘मग बाकीचे चाळीस हजार?’

‘मंत्री, ऑफिसर, स्वास्थ्य विभागातील अधिकार्‍यांना तंदुरुस्त बनवण्यात खर्ची पडतात… हाहाहा…!’

‘महामारीचा पैसासुद्धा गिळून टाकतात हे लोक…  हद्द झाली.’

‘लालसा… लाचारी, महामारी बघत नाही.’

‘होय मित्रा, ही महामारी काही काळाने का होईना संपून जाईल पण भ्रष्टाचाराची महामारी … हिच्यावर काहीsss इलाज नाही.’

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 53 – सजा ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा  “सजा  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 53 ☆

☆ लघुकथा –  सजा  ☆

 

“तुम ने जहर क्यों खाया था ? जानते हो आत्महत्या करने वाले को सजा होती है?”

“नहीं साहब ! मैं बीवी को अच्छी जिंदगी नहीं दे पा रहा था. बच्चे अच्छे खाने को तरस रहे थे. ऊपर से साहूकार का कर्ज , प्रकृति की मार. सब फसल चौपट हो गई थी . मैं घबरा गया था साहब. क्या करता?”

“तो मरने चले?”

“हाँ साहब ! मैं उन्हें तड़फता हुआ नही देख सकता था.”

“अच्छा. अब दोनों तड़फ़ना. एक बाहर और एक अन्दर.”

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

१५/०५/२०१५

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ सफेद भेड़ें काली भेड़ें ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(डॉ कुंवर प्रेमिल जी  जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में लगातार लेखन का अनुभव हैं। अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। वरिष्ठतम नागरिकों ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं /महामारियों से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। आज प्रस्तुत है  उनकी एक सार्थक लघुकथा  “सफेद भेड़ें काली भेड़ें ”। )

☆ लघुकथा – सफेद भेड़ें काली भेड़ें ☆  

रातों रात सबकी सब भेड़ें काली हो गई . जहां भी जातीं वही प्रतीत होता कि काली अंधारी रात कंबल ओढ़ कर आगे खड़ी है.

एक बूढ़ी भेड़ से रहा नहीं गया. उसने एक काली भेड़ को बुलाकर पूछा- “क्यूंरी छोरियों यह क्या गजब हुआ? सफेद झक चांदनी सी तुम सब सफेद भेड़ें रातों रात काली कलूटी बनकर क्यों घूम रही हो भला?”

काली भेड़ बोली- “दादा अम्मां, जब सभी काले धंधो मैं निर्लिप्त हो बाकी बची हुईं को भी समय रहते चेत जाना चाहिए. जितनी वजन दारी होगी, भविष्य मैं उतनी ही चलेगी. सफेद बूढ़ी भेड़  बोली- “तू ठीक कहती है छोरी. मै भी आज सफ़ेद से काली भेड़ बन जाऊँगी. मैं  तो जैसे बिल्कुल अकेले ही पड़ गई थी. हाँ नहीं तो….. ”

आज की तारीख में वह सफेद भेड़ भी अपना रंग -रूप बदलने मेकअप रूम चली गई थी.

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

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