हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 269 ☆ व्यंग्य – फूलचन्द का बचत-प्रचार अभियान ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘फूलचन्द का बचत-प्रचार अभियान‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 269 ☆

☆ व्यंग्य ☆ फूलचन्द का बचत-प्रचार अभियान

फूलचन्द भला आदमी है। उसे समाज- सेवा का ख़ब्त है। कुछ न कुछ करने में लगा रहता है। लेकिन उसकी समाज-सेवा माल-कमाऊ समाज-सेवा नहीं होती, जैसा आजकल बहुत से होशियार लोग कर रहे हैं। यानी सरकार से अनुदान लेना और समाज से ज़्यादा खुद अपना और अपने प्रिय परिवार का उत्थान करना। फूलचन्द अपना घर बिगाड़ कर समाज सेवा करता है, यानी बुद्धू और नासमझ है।

वह कभी झुग्गी-झोपड़ी वालों को परिवार-नियोजन का महत्व समझाने निकल जाता है, कभी अस्पताल जाकर मरीज़ों की सहायता में लग जाता है, कभी शहर की सफाई के लिए कोशिश में लग जाता है। सब अच्छे कामों की अगुवाई के लिए फूलचन्द हमेशा उपलब्ध है। कोई दुर्घटना होते ही फूलचन्द सबसे पहले पहुंचता है। सब पुलिस वाले, डॉक्टर, नर्सें उसे जानते हैं। संक्षेप में फूलचन्द उन लोगों में से है जिनकी नस्ल निरन्तर कम होती जा रही है।

आजकल फूलचन्द पर ख़ब्त सवार है कि लोगों को बचत के लिए समझाना चाहिए।
उसने कहीं पढ़ा है कि हमारे देश के लोग बहुत फिज़ूलखर्ची करते हैं—गहने ज़ेवर खरीदने में, फालतू संपत्ति खरीदने में, दिखावे में,अंधविश्वास में, शादी-ब्याह में, जन्म-मृत्यु में। उसका कहना है कि वह लोगों को प्रेरित करेगा कि फ़िज़ूलखर्ची रोककर अपना पैसा ऐसे कामों में लगायें जिनसे खुद उनका भी भला हो और देश का भी। उसने यह जानकारी इकट्ठी कर ली है कि किन-किन कामों में पैसा लगाना ठीक होगा।

एक दिन वह अपने अभियान पर मुझे भी पकड़ ले गया। हम जिस घर में घुसे वह दुमंजिला था। सामने ‘टी. प्रसाद’ की तख्ती लगी थी। मकान से समृद्धि की बू आती थी। वह कर्ज़- वर्ज़ लेकर मर मर कर बनाया गया मकान नहीं दिखता था। दो-तीन स्कूटर थे, झूला था, फूल थे, दीवारों पर अच्छा रंग-रोगन था।

घंटी बजाने पर सबसे पहले एक कुत्ता भौंका, जैसा कि हर समृद्ध घर में होता है। उसके बाद 50-55 की उम्र के एक सज्जन प्रकट हुए। वे हमें ससम्मान भीतर ले गये।

भीतर भी सब चाक-चौबन्द था। रंगीन टीवी, फोन, दीवारों पर पेंटिंग। पेंटिंग शान के लिए लगयी जाती है। कई बार खरीदने वाला खुद नहीं जानता है कि उसमें बना क्या है, या वह उल्टी टंगी है या सीधी। जो जानते हैं वे उन्हें खरीद नहीं पाते।

उन सज्जन ने प्रेम से हमें बैठाया। फूलचन्द ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो वे प्रसन्न हुए, बोले, ‘मैं आपकी बात से पूरा इत्तफाक रखता हूं। हमें बचत करना चाहिए, फिज़ूलखर्ची रोकना चाहिए और अपने पैसे को उपयोगी कामों में लगाना चाहिए।’ फूलचन्द प्रसन्न हुए।

वृद्ध सज्जन, जो  खुद टी.प्रसाद थे, बोले, ‘मुझे आपको यह बताने में खुशी है कि मैंने इस सिद्धान्त पर जिन्दगी भर अमल किया है। आपको जानकर ताज्जुब होगा मैंने अपनी चौबीस साल की नौकरी में से बीस साल लगातार अपनी पूरी तनख्वाह बचायी है।’

सुनकर हम चौंके। फूलचन्द ने आश्चर्य से पूछा, ‘बीस साल तक पूरी तनख्वाह बचायी है?’ टी.प्रसाद गर्व से बोले, ‘हां, पूरी तनख्वाह बचायी है।’ फूलचन्द ने कहा, ‘तो आपकी आमदनी के और ज़रिये रहे होंगे।’ प्रसाद जी ने जवाब दिया, ‘नहीं जी, और ज़रिये कहां से होंगे? सवेरे दस से पांच तक दफ्तर की नौकरी के बाद ज़रिये कहां से पैदा करेंगे? फिर मैं तो संतोषी रहा हूं। ज्यादा हाथ पांव फेंकना मुझे पसन्द नहीं।’

फूलचंद ने पूछा, ‘फिर आपका खर्च कैसे चलता रहा होगा?’

प्रसाद जी बोले, ‘मेरी भी समझ में नहीं आता कि मेरा खर्च कैसे चलता रहा। सब ऊपर वाले का करिश्मा है। इसीलिए मेरी भगवान में बड़ी आस्था है।’ वे चुप होकर मुग्ध भाव से ज़मीन की तरफ देखते रहे जैसे मनन कर रहे हों। फिर बोले, ‘आपने कहानियां पढ़ी होंगी कि कैसे कोई आदमी रात को जब सोया तो गरीब था और सवेरे उठा तो अमीर हो गया। पहले मुझे ऐसी कहानियों पर यकीन नहीं होता था, बाद में जब मेरे साथ होने लगा तो यकीन हो गया। मैं सवेरे दफ्तर जाता था तो मेरी जेब में फूटी कौड़ी नहीं होती थी। शाम को कुर्सी से उठता तो हर जेब में नोट होते थे। मेज़ की दराज़ में भी नोट। मेरी खुद समझ में नहीं आता था कि ये नोट कहां से आ जाते थे। अब भी यही होता है। नतीजा यह हुआ कि अपने आप पूरी तनख्वाह बचती रही।’

फूलचन्द बोला, ‘फिर तो आपके पास बहुत पैसा इकट्ठा हो गया होगा?’

टी. प्रसाद बोले, ‘हां जी, होना ही था। मैं क्या करता? मेरा कोई बस नहीं था।’

फूलचन्द ने फिर पूछा, ‘तो फिर आपने उस बचत का क्या किया?’

टी. प्रसाद बोले, ‘उसे अलग-अलग कामों में लगाया ताकि अपना भी फायदा हो और देश की भी तरक्की हो। देश की फिक्र करना हमारा फ़र्ज़ है, इसीलिए उसका कोई गलत इस्तेमाल नहीं किया।’

फूलचंद चक्कर में था। उसका बचत- प्रचार अभियान गड़बड़ा रहा था। बोला, ‘आपकी संतानें क्या कर रही हैं?’

टी. प्रसाद ने उत्तर दिया, ‘तीन बेटे हैं जी। दो नौकरी में हैं और दोनों होनहार हैं। दोनों मेरी तरह अपनी तनख्वाह बचा रहे हैं। मुझे उन पर फख्र है। तीसरा अभी पढ़ रहा है, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वह भी इसी तरह बचत करेगा और अपने पैसे का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा।’

फूलचन्द परेशानी के भाव से बोला, ‘आपके दफ्तर में सभी ऐसी ही बचत करते हैं?’

प्रसाद जी बोले, ‘हां जी, ज्यादातर ऐसा ही करते हैं। नये लोग ज़रूर नासमझ होते हैं। उन्हें बचत के तरीके समझने में टाइम लगता है। एक दो ऐसे नासमझ भी होते हैं जो अपने कपड़ों में जेब ही नहीं रखते, मेज़ का दराज़ बन्द रखते हैं। अब उन पर प्रभु की कृपा कहां से होगी? जब लक्ष्मी के लिए दरवाजा नहीं रखोगे तो लक्ष्मी कहां से आएगी? ऐसे लोग बचत नहीं कर पाते। ऐसे लोगों से देश का कोई भला नहीं होता। सीनियर होने के नाते मैं सबको समझा ही सकता हूं, ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। मैं तो चाहता हूं कि सब बचत करें।’

हम बदहवास से वहां से उठे। टी. प्रसाद बोले, ‘आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं जी। लोगों को बचत के लिए समझा रहे हैं। आप कहें तो दफ्तर के बाद मैं भी आपके साथ चलकर लोगों को समझा सकता हूं। मुझे बड़ी खुशी होगी। समाज- सेवा करना चाहिए।’

फूलचन्द घबरा कर बोला, ‘नहीं नहीं। आपको कष्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप दफ्तर में ही काफी बचत करवा रहे हैं, बाहर का काम हम कर लेंगे।’

प्रसाद जी हाथ जोड़कर बोले, ‘जैसी आपकी मर्जी। वैसे मेरी कभी ज़रूरत पड़े तो बताइएगा। देश के काम के लिए मैं हमेशा तैयार हूं।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 270 – गुरुत्वाकर्षण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 270 ☆ गुरुत्वाकर्षण… ?

आदमी मिट्टी के घर में रहता था, खेती करता था। अनाज खुद उगाता, शाक-भाजी उगाता, पेड़-पौधे लगाता। कुआँ खोदता, कुएँ की गाद खुद निकालता। गाय-बैल पालता, हल जोता करता, बैल को अपने बच्चों-सा प्यार देता। घास काटकर लाता, गाय को खिलाता, गाय का दूध खुद निकालता, गाय को माँ-सा मान देता। माटी की खूबियाँ समझता, माटी से अपना घर खुद बनाता-बाँधता। सूरज उगने से लेकर सूरज डूबने तक प्रकृति के अनुरूप आदमी की चर्या चलती।

आदमी प्रकृति से जुड़ा था। सृष्टि के हर जीव की तरह अपना हर क्रिया-कलाप खुद करता। उसके रोम-रोम में प्रकृति अंतर्निहित थी। वह फूल, खुशबू, काँटे, पत्ते, चूहे, बिच्छू, साँप, गर्मी, सर्दी, बारिश सबसे परिचित था, सबसे सीधे रू-ब-रू होता । प्राणियों के सह अस्तित्व का उसे भान था। साथ ही वह साहसी था, ज़रूरत पड़ने पर हिंसक प्राणियों से दो-दो हाथ भी करता।

उसने उस जमाने में अंकुर का उगना, धरती से बाहर आना देखा था और स्त्रियों का जापा, गर्भस्थ शिशु का जन्म उसी प्राकृतिक सहजता से होता था।

आदमी ने चरण उटाए। वह फ्लैटों में रहने लगा। फ्लैट यानी न ज़मीन पर रहा न आसमान का हो सका।

अब आदमियों की बड़ी आबादी एक बीज भी उगाना नहीं जानती। प्रसव अस्पतालों के हवाले है। ज्यादातर आबादी ने सूरज उगने के विहंगम दृश्य से खुद को वंचित कर लिया है। बूढ़ी गाय और जवान बैल बूचड़खाने के रॉ मटेरियल हो चले, माटी एलर्जी का सबसे बड़ा कारण घोषित हो चुकी।

अपना घर खुद बनाना-थापना तो अकल्पनीय, एक कील टांगने के लिए भी कथित विशेषज्ञ  बुलाये जाने लगे हैं। अपने इनर सोर्स को भूलकर आदमी आउटसोर्स का ज़रिया बन गया है। शरीर का पसीना बहाना पिछड़ेपन की निशानी बन चुका। एअर कंडिशंड आदमी नेचर की कंडिशनिंग करने लगा है।

श्रम को शर्म ने विस्थापित कर दिया है। कुछ घंटे यंत्रवत चाकरी से शुरू करनेवाला आदमी शनैः-शनैः यंत्र की ही चाकरी करने लगा है।

आदमी डरपोक हो चला है। अब वह तिलचट्टे से भी डरता है। मेंढ़क देखकर उसकी चीख निकल आती है। आदमी से आतंकित चूहा यहाँ-वहाँ जितना बेतहाशा भागता है, उससे अधिक चूहे से घबराया भयभीत आदमी उछलकूद करता है। साँप का दिख जाना अब आदमी के जीवन की सबसे खतरनाक दुर्घटना है।

लम्बा होना, ऊँचा होना नहीं होता। यात्रा आकाश की ओर है, केवल इस आधार पर उर्ध्वगामी नहीं कही जा सकती। त्रिशंकु आदमी आसमान को उम्मीद से ताक रहा है। आदमी ऊपर उठेगा या औंधे मुँह गिरेगा, अपने इस प्रश्न पर खुद हँसी आ रही है। आकाश का आकर्षण मिथक हो सकता है पर गुरुत्वाकर्षण तो इत्थमभूत है। सेब हो, पत्ता, नारियल या तारा, टूटकर गिरना तो ज़मीन पर ही पड़ता है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 216 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 216 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 216) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 213 ?

☆☆☆☆☆

तमन्ना ने जिंदगी के आँचल में सर

रख कर पूछा “मै कब पूरी होउंगी?”

जिंदगी ने हँसकर जवाब दिया-

जो पूरी हो जाये वो तमन्ना ही क्या…

☆☆

Keeping  the  head  in the  life’s  lap

Wish asked, “When will I get fulfilled?”

Life responded  bursting into laughters

How can it be a wish if it gets fulfilled…

☆☆☆☆☆

यूँ तो रोज़ खत लिखता रहा उनके नाम 

क्या पता कभी पहुँचे भी उन तलक…

बहार क्या आई मानो जैसे फ़िज़ाओं में

मेरे तमाम ख़तों के जवाब बिखर गए…!

☆☆

Though kept writing letters everyday

Knoweth not if they ever reached her

Onset of spring filled the environs

With the answers to all my letters…!

☆☆☆☆☆

तेरी यादों की नौकरी में

दीदार की पगार मिलती है,

ख़र्च हो जाते हैं आँसू आँखों के 

रहमत कहाँ उधार मिलती है..

☆☆

In the job of your memories

Glimpses get paid as salary

Tears of eyes get spent, but

D’you ever get charity on credit

☆☆☆☆☆

छू जाते हो तुम मुझे हर रोज़

एक  नया  ख्वाब  बनकर…

ये दुनिया तो ख़ामख़ाह कहती है

कि  तुम  मेरे  करीब नहीं हो…!

☆☆

You embrace me everyday

By becoming a new dream…

World needlessly says just like 

that you are not close to me…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 215 कविता – एक-दूजे का ध्यान रखें ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय कविता एक-दूजे का ध्यान रखें)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 215 ☆

☆ कविता – एक-दूजे का ध्यान रखें ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हर इंसां हो एक समान.

अलग नहीं हों नियम-विधान..

कहीं बसें हो रोक नहीं-

खुश हों तब अल्लाह-भगवान..

*

जिया वही जो बढ़ता है.

सच की सीढ़ी चढ़ता है..

जान अतीत समझता है-

राहें-मंजिल गढ़ता है..

*

मिले हाथ से हाथ रहें.

उठे सभी के माथ रहें..

कोई न स्वामी-सेवक हो-

नाथ न कोई अनाथ रहे..

*

सबका मालिक एक वही.

यह सच भूलें कभी नहीं..

बँटवारे हैं सभी गलत-

जिए योग्यता बढ़े यहीं..

*

हम कंकर हैं शंकर हों.

कभी न हम प्रलयंकर हों.

नाकाबिल-निबलों को हम

नाहक ना अभ्यंकर हों..

*

जनता अब इन्साफ करे.

नेता को ना माफ़ करे..

पकड़ सिखाये सबक सही-

राजनीति को राख करे..

*

सबको मिलकर रहना है.

सुख-दुख संग-संग सहना है..

मजहब यही बताता है-

यही धर्म का कहना है..

*

एक-दूजे का ध्यान रखें.

स्वाद प्रेम का ‘सलिल’ चखें.

दूध और पानी जैसे-

दुनिया को हम एक दिखें..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 दिसंबर से 29 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 दिसंबर से 29 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

एक दिन हमने वर्ष 2024 में प्रवेश किया था और और अब यह साप्ताहिक राशिफल वर्ष 2024 का अंतिम राशिफल है। काल निरंतर गतिमान है और हमें उसकी गति से ही चलना पड़ता है। अगर हम उसकी गति और सही दिशा में चलते रहते हैं तो सफल होते हैं। सही समय की सही दिशा बताने के लिए मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपके पास हर सप्ताह साप्ताहिक राशिफल लेकर प्रस्तुत होता हूं। आज मैं आपको 23 दिसंबर से 29 दिसंबर 2024 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा। मगर सबसे पहले इस सप्ताह जन्म लिए बच्चों के भविष्य के बारे में चर्चा की जाएगी।

सप्ताह के प्रारंभ से लेकर 25 तारीख को 1:55 am रात तक जन्म लिए बच्चों की राशि कन्या रहेगी। यह बच्चे शत्रुहन्ता भाग्यशाली और प्रतिष्ठावांन होंगे। 25 तारीख के 1:55 a.m रात से लेकर 27 तारीख के 1:30 पीएम दिन तक जन्म लिए बच्चों की राशि तुला होगी। यह बच्चे भाई बहनों के प्रिय और समाज में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा रहेगी। 27 तारीख के 1:30 पीएम दिन से लेकर 29 तारीख को 11:30 पीएम रात तक जन्म लेने वाले बालकों की राशि वृश्चिक रहेगी। यह बच्चे उत्तम व्यापारी धनी और समाज में बड़ी प्रतिष्ठा वाले होंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने की उम्मीद है। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। आपको इस सप्ताह अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 की दोपहर तक का समय उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

 इस सप्ताह आप कार्यालय के कार्यों में सफल रहेंगे। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। गलत रास्ते से धन आने का योग है। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों के पढ़ाई ठीक-ठाक चलेगी। व्यापार ठीक चलेगा। माता जी को कष्ट हो सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपको 25, 26 और 27 को सतर्क रहकर काम करना चाहिए। 27, 28 और 29 दिसंबर को आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। जीवनसाथी का और आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। माता-पिता जी को तकलीफ हो सकती है। धन आने का सामान्य योग है। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। आपको अपने संतान से कोई खास मदद नहीं मिल पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। 27 के दोपहर के बाद से लेकर 28 और 29 तारीख को अगर आप बीमार हैं तो आप स्वस्थ होने लगेंगे। शत्रुओं पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। भाग्य से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 27 के दोपहर के बाद से 28 और 29 तारीख को आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको थोड़ा कष्ट हो सकता है। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिल सकती है। अगर आपके ऊपर ऋण है तो वह कम हो सकता है। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए सप्ताह के सभी दिन सामान्य हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल के साथ अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23, और 24 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभ वर्धक हैं। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गरीबों के बीच में कंबल का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों से भी आपके सहयोग प्राप्त हो सकता है। आपका आपके जीवनसाथी का और माता-पिता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 की दोपहर तक का समय ठीक है। इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति हो सकती है। 23 और 24 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन उड़द की दाल का गरीबों के बीच में दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में प्रगति हो सकती है। अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। धन प्राप्त होने की आशा है। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 की दोपहर तक का समय सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपके स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट आ सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि गरीबों के बीच में शक्कर का दान दें तथा मंदिर के पुजारी जी को सफेद वस्तुओं का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता-पिता जी को परेशानी हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। धन आने की उम्मीद है। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 27, 28 और 29 दिसंबर को आपको कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। परंतु यह सफलता तभी प्राप्त होगी तब आप पूरी सावधानी से कार्य करेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काली उड़द का दान दें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आ सकता है। भाई बहनों के साथ तनाव होगा। लंबी यात्रा का योग है। भाग्य साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 27 तारीख के दोपहर के बाद से 28 और 29 तारीख को धन संबंधी कोई भी कार्य करने में सावधानी बरतें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी। भाग्य थोड़ा कम साथ देगा। पिताजी माता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप 23 और 24 तारीख को सावधानी पूर्वक कार्य करें। 27, 28 और 29 तारीख को राज्य या कार्यालय संबंधी कोई कार्य करने में बहुत सावधानी बरतें। पिताजी का ख्याल रखें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। भाग्य आपका सामान्य रूप से साथ देगा। छात्रों की पढ़ाई में कुछ बाधा पड़ सकती है। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतें। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा सप्ताह के बाकी सभी दिन आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “लोग भूल जाते हैं…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – लोग भूल जाते हैं ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

लोग भूल जाते हैं

खराब मौसम और

गर्दिश के दिनों में

की गयी मदद ।

लोग भूल जाते हैं

संघर्ष के दौर में

अंधेरी काली रातों में

अपनी दहलीजों पर

दीया जला कर

राह दिखाने वालों को ।

लोग इस्तेमाल करते हैं

दूसरों के कंधों को

सीढ़ियों की तरह

और तमन्ना रखते हैं

आकाश छू लेने की ।

कोई नहीं जानता

वे लोग अपने अंधे सफर में

कहां गिर जाते हैं

कहां छूट जाते हैं

और कब लोग

उन्हें भूल जाते हैं ,,,,

कोई नहीं जानता

लोग कब भूल जाते हैं ,,,

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-६ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-६ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

सुग्रीव गुफा के सामने खूब खुला मैदान है। यहाँ कभी इंद्र पुत्र वानर राज बाली का दरबार लगता होगा। गुफा के ऊपर-नीचे वानरों का हुजूम जमा रहता होगा। इसी मैदान में श्रीराम ने पेड़ों की ओट से बालि को मारा होगा। हम सभी लोग उसी मैदान पर कदमताल करके तुंगभद्रा नदी के तीर पहुँचे। वहाँ किनारे पर कुछ नाव ढिली हैं। जो बाली को श्राप देने वाले मतंग ऋषि की गुफा तक ले जाने का एक सवारी का 500/- रुपये लेती है। नौका विहार हेतु किसी की इच्छा नहीं जागी। सभी लोग फोटोग्राफी का शौक पूरा करने में व्यस्त हो गए। हमने उत्सुक लोगों को तुंगभद्रा नदी का भूगोल समझाया।

‘तुंग’ और ‘भद्रा’ नामक दो नदियों के संगम से जन्म लेने वाली तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। नदी का उद्गम पश्चिम घाट पर कर्नाटक के ‘गंगामूल’ नामक स्थान से होता है। प्रमुख रूप से तुंगभद्रा नदी की पांच सहायक नदियां हैं, औकबरदा, कुमुदावती,  वरदा, वेदवती व हांद्री तुंगभद्रा में आकर मिलती हैं। पश्चिमी घाट के अलग-अलग पर्वत श्रृंखलाओं से निकलने वाली तुंग और भद्रा नदियां कर्नाटक के शिमोगा नामक स्थान से ‘तुंगभद्रा’ के रूप में अपनी यात्रा की शुरूआत करती है। कर्नाटक के विभिन्न क्षेत्रों से बहते हुए तेलगांना व आंध्र प्रदेश राज्य के अलग-अलग जिलों में प्रवाहित होकर अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में कृष्णा नदी में मिलने के साथ ही अपना सफ़र समाप्त करती है। कृष्णा नदी आगे जाकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।

श्रीराम ने हम्पी में तुंगभद्रा के जल का आचमन किया था। यहीं श्री हनुमान पैदा हुए। महाभारत में इसे तुंगवेणा कहा गया है। पद्म पुराण में हरिहरपुर को तुंगभद्रा के तट पर स्थित बताया गया है। बाल्मीकि रामायण में तुंगभद्रा को पंपा के नाम से जाना जाता है।  श्रीमदभागवत् में भी तुंगभद्रा का उल्लेख मिलता है,

चंद्रवसा ताम्रपर्णी  अवटोदा  कृतमाला  वैहायसी,

कावेरी वेणी पयस्विनी शर्करावर्ता तुंगभद्रा कृष्णा।

आदि गुरू शंकराचार्य ने आठवीं सदी में इसी नदी के तट पर ‘श्रृंगेरी मठ’ की स्थापना की थी। 14वीं शताब्दी में प्रसिद्ध राजा कृष्णदेवराय का विजयनगर साम्राज्य इसी नदी के किनारे बसा हुआ था। उसका बुद्धिमान मंत्री तेनालीराम इसी राज्य में था।

यह समूचा क्षेत्र गोलाकार और अंडाकार चट्टानों से पटा है। लगता है इन्ही चट्टानों से बाली और सुग्रीव में लड़ाइयाँ होती होंगी। वानर सेना के सैनिक इन्ही पत्थरों से कसरत करते होंगे। इसी तरह का एक पत्थर सुग्रीव ने गुफा के मुहाने पर रखकर उसका मुँह बंद कर दिया होगा। गुफा के सामने से एक रास्ता तुंगभद्रा के किनारे तक जाता है। उससे नदी किनारे पहुँचे। वहाँ बाँस की गोल नौकाओं में छै-आठ लोगों को बिठाकर आधा घंटे का नौकायन भी कराया जाता है। एक व्यक्ति का किराया पाँच सौ रुपये बताया। किसी ने भी नौकायन करने की हिम्मत नहीं जुटाई। रामायण केंद्र के बैनर के साथ एक घंटा फोटोग्राफी और सेल्फी का खेल चलता रहा। साथियों ने सैकड़ों फोटो लिए। उनका मोबाईल का स्टोरेज भर गया। मेमोरी के लिए मोबाईल ख़ाली किए जाने लगे। अगला पड़ाव विजयनगर साम्राज्य का गौरव विरूपाक्ष गोपुरम था। जिसे देखने के पहले थोड़ा सा विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति, विकास और विनाश की कहानी जानना उपयुक्त रहेगा। विजयनगर साम्राज्य के इतिहास को जाने बगैर हम्पी की महत्ता नहीं समझ सकते हैं।

गाइड हमें पाँच-दस मिनट में हज़ार सालों का ग़लत सलत इतिहास बताते हैं और हम आँखें फाड़ उन्हें देखते रहते हैं क्योंकि हमें इतिहास पता नहीं होता है। हम्पी के इतिहास को समझने हेतु हमें विजयनगर साम्राज्य और बहमनी साम्राज्य के उद्भव तदुपरांत विखंडन को जानना होगा।

दक्षिण में इस्लाम का प्रवेश अलाउद्दीन ख़िलजी के देवगिर आक्रमण से होता है। उसका चाचा और ससुर जलालुद्दीन ख़िलजी 1290 से 1296 तक दिल्ली का सुल्तान था, उसने 1295 में अलाउद्दीन को भेलसा अर्थात् विदिशा को लूटने की अनुमति दी थी। उस समय विदिशा पाटलिपुत्र से सूरत बंदरगाह के बीच एक महत्वपूर्ण कारोबारी ठिकाना था। वहाँ कई अरबपति कारोबारियों का निवास था। अलाउद्दीन भेलसा नगर को लूटने के बाद संतुष्ट न हुआ। उसने कारोबारियों के बच्चों को गुदड़ी से लपेट कर आग से भूनने का आदेश दिया तो कारोबारियों ने हंडों में भरकर बेतवा नदी के तल में गाड़े धन का पता बता  दिया।  करोड़ों का सोना चाँदी हीरा जवाहरात लूटकर संतुष्ट न हुआ। अलाउद्दीन की निगाह दक्षिण के देवगिर हिंदू राज्य पर थी। वहाँ से लूटे धन का उपयोग दिल्ली का सुल्तान बनने में करना चाहता था।

उसने सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी से भेलसा को पुनः लूटने की अनुमति ली, और सीधा देवगिर पर धावा बोला। देवगिर से अकूत संपत्ति लूटकर मानिकपुर-कारा में गंगा नदी के इस पर डेरा डाल सुल्तान जलालुद्दीन को पैग़ाम भिजवाया कि लूट का माल इतना अधिक है कि वह एकसाथ दिल्ली नहीं पहुँचा पा रहा है। सुल्तान यहीं आकर माल ले जायें। जलालुद्दीन गंगा पार करके इस पार उतरा, तब अलाउद्दीन ने उसे क़त्ल करके दिल्ली की सल्तनत हथिया ली। 

सुल्तान बनने के बाद अलाउद्दीन द्वारा 1296 ई. में देवगिरि (वर्तमान औरंगाबाद) के विरुद्ध किये गये अभियान की सफलता पर, वहाँ के शासक रामचन्द्र देव ने प्रतिवर्ष एलिचपुर की आय भेजने का वादा किया। परंतु रामचन्द्र देव के पुत्र शंकर देव के हस्तक्षेप से वार्षिक कर का भुगतान रोक दिया गया। अतः उसने मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में एक सेना देवगिरि पर धावा बोलने के लिए भेजी। रास्ते में राजा कर्ण को युद्ध में परास्त कर काफ़ूर ने उसकी पुत्री देवल देवी को दिल्ली भेज दिया, जहाँ उसका विवाह ख़िज़्र ख़ाँ से कर दिया गया। रास्ते भर लूट पाट करता हुआ काफ़ूर देवगिरि पहुँचा और पहुँचते ही उसने देवगिरि पर आक्रमण कर दिया। भयानक लूट-पाट के बाद रामचन्द्र देव ने आत्मसमर्पण कर दिया। काफ़ूर अपार धन-सम्पत्ति, ढेर सारे हाथी एवं राजा रामचन्द्र देव के साथ वापस दिल्ली आया। रामचन्द्र ने सुल्तान के समक्ष प्रस्तुत होने पर सुल्तान ने उसके साथ उदारता का व्यवहार करते हुए ‘राय रायान’ की उपाधि प्रदान की। उसे सुल्तान ने गुजरात की नवसारी जागीर एवं एक लाख स्वर्ण टके देकर वापस भेज दिया। कालान्तर में राजा रामचन्द्र देव अलाउद्दीन का मित्र बन गया। जब मलिक काफ़ूर द्वारसमुद्र विजय के लिए जा रहा था, तो रामचन्द्र देव ने उसकी भरपूर सहायता की थी।

अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत के राज्यों को जीतने के उद्देश्य के पीछे धन की चाह एवं विजय की लालसा थी। वह इन राज्यों को अपने अधीन कर वार्षिक कर वसूल करना चाहता था। अलाउद्दीन ख़िलजी के समकालीन दक्षिण भारत के इस क्षेत्र में सिर्फ़ तीन महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं-

* देवगिरि के यादव,

* दक्षिण-पूर्व तेलंगाना के काकतीय और

* द्वारसमुद्र के होयसल।

देवगिरी के बाद, अलाउद्दीन ख़िलजी के शासन काल में उसने दक्षिण में सर्वप्रथम 1303 ई. में तेलंगाना पर आक्रमण किया गया। तत्कालीन तेलंगाना का शासक प्रताप रुद्रदेव था, जिसकी राजधानी वारंगल थी। नवम्बर, 1309 में मलिक काफ़ूर तेलंगाना के लिए रवाना हुआ। रास्ते में रामचन्द्र देव ने काफ़ूर की सहायता की। काफ़ूर ने हीरों की खानों के इलाक़े असीरगढ़ (मेरागढ़) के मार्ग से तेलंगाना में प्रवेश किया। 1310 ई. में काफ़ूर अपनी सेना के साथ वारंगल पहुँचा। प्रताप रुद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर गले में एक सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण स्वरूप काफ़ूर के पास भेजी, साथ ही 100 हाथी, 700 घोड़े, अपार धन राशि एवं वार्षिक कर देने के वायदे के साथ अलाउद्दीन ख़िलजी की अधीनता स्वीकार कर ली। इसी अवसर पर उसने मलिक काफ़ूर को संसार प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया था। वह कोहिनूर हीरा इंग्लैंड के राजमुकुट की शान बढ़ाता है।

होयसल का शासक वीर बल्लाल तृतीय था। इसकी राजधानी द्वारसमुद्र थी। 1310 ई. में मलिक काफ़ूर ने होयसल के लिए प्रस्थान किया। इस प्रकार 1311 ई. में साधारण युद्ध के पश्चात् बल्लाल देव ने आत्मसमर्पण कर अलाउद्दीन की अधीनता ग्रहण कर ली। उसने माबर के अभियान में काफ़ूर की सहायता भी की। सुल्तान अलाउद्दीन ने बल्लाल देव को ‘ख़िलअत’, ‘एक मुकट’, ‘छत्र’ एवं दस लाख टके की थैली भेंट की। अलाउद्दीन उन राज्यों का हराकर उनसे वार्षिक कर लेने तक ही सीमित रहा। हिंदुओं को मुसलमान बनाने का काम अभी आरम्भ होना था। इस प्रकार दक्षिण भारत के तीनों समृद्ध राज्यों में इस्लाम का प्रवेश हुआ। इसका श्रेय मलिक काफ़ूर को जाता है।

हमारी बस जिस मार्ग से हम्पी की ओर जा रही है।  इसी जगह से लंकेश सीता जी को आकाश मार्ग से ले जा रहा था। तब सीता जी ने उत्तरीय वस्त्र यहाँ गिराया था। चारों तरफ़ बड़े-बड़े गोल शिलाखंड किसी अनोखे लोक का भान करा रहे हैं। शिलाखंडों के बीच में कहीं-कहीं पोखर दिख जाते हैं। इधर-उधर पेड़ों पर वानर किलोल करते हैं। यह इलाका किष्किंधा नाम से जाना जाता था। दक्षिण भारत के इतिहास में कभी अनेगुंडी सुना था। अभी जिस जगह से गुजर रहे हैं। यह वही अनेगुंडी है, जिसे पहले किष्किंधा कहा जाता था, कर्नाटक के कोप्पल जिले के गंगावती में एक गाँव है। यह हम्पी से भी पुराना है, जो तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। पास के एक गाँव निमवापुरम में राख का एक पहाड़ है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह राजा बाली के दाह संस्कार के अवशेष हैं। अलाउद्दीन खिलजी तक उस इलाक़े में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना नहीं हुई थी। यह इलाका हरिहर-बुक्का भाइयों का इंतज़ार कर रहा था। चौदहवीं सदी दिल्ली में ख़िलज़ी वंश  का अंत हुआ और तुर्को-अफ़ग़ान तुगलकों का समय शुरू हुआ।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 140 ☆ गीत – ।।एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 140 ☆

☆ गीत ।।एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

।। विधा।। गीत ।।

***

एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।

हर किसी के दिल में  निशानी  बन कर जाओ।।

***

भुला न पाए कोई  वो  किस्सा  बन कर जाना।

करना कुछ भीड़ का मत हिस्सा बन कर जाना।।

जीवन अनमोल कि सूरत पहचानी बन कर जाओ।

एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।।

***

ये जीवन तभी सफल कि कुछ खास बनाकर जाना।

फिर न मिलेगी जिंदगी कि इतिहास बनाकर जाना।।

मत रुकें कभी कदम कि वो  रवानी बनकर जाओ।

एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।।

***

यह जिंदगी जैसी  भी बस  एक बार मिलती है।

कोशिश वालों को  सफलता बार-बार मिलती है।।

हर किसीके दिल की तुम दीवानगी बनकर जाओ।

एक ही मिला जीवन कि कहानी बन कर जाओ।।

***

जिंदगी पल – पल हर  क्षण बस ढलती जा रही है।

जैसे कि बस रेत  मुठ्ठी  से फिसलती जा रही है।।

सहयोग साथ रखना कि मत अभिमानी बनकर जाओ।

एक ही मिला जीवन कि कहानी बनकर जाओ।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 206 ☆ कविता – निभानी सब को अपनी जिम्मेदारी चाहिये… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – निभानी सब को अपनी जिम्मेदारी चाहिये। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 206 ☆ कविता – निभानी सब को अपनी जिम्मेदारी चाहिये ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

स्वार्थ की अब राजनीति है,  स्वार्थ मय व्यवहार है

सत्ता हथि‌याने को बढ़ा है हर जगह तकरार है।

समस्यायें हल न होती आये दिन नित बढ रहीं

राजनीति में लेन-देन का अब गरम बाजार है।।

 *

समझ हुई कम,  दिख रहा है, बुद्धि भी बीमार है

हौसले लेकिन बड़े हैं, पाने को अधिकार है।

 *

दल के प्रति निष्ठा घटी है दल में भी गुट बन गये-

लड़खड़ाती रहती इससे आये दिन सरकार है।

 *

भूल गये उनको जिन्होंने देश के हित जान दी

कल की पीढी के हित लगाई बाजी अपने प्राण की।

 *

हँसते फाँसी पे फूले त्याग सब कुछ देशहित

गजब की निष्ठा थी जिनको देश के सम्मान की

 *

दूरदर्शी अव रहे,  कम दृष्टि ओछी हो गई

स्वार्थ में डूबी समझ ज्यों अचानक खो गई

 *

बढ़ती जाती द्वेष-दुर्भावना  की मन में भावना

जाने क्यों सद्‌भावना की ऐसी दुर्गति हो गई

 *

राजनीति को सूझ-बूझ  समझदारी चाहिये

और सब जन सेवकों को खबरदारी चाहिये ।

 *

देश ने तो सब को, सब कुछ चाहिये जो सब दिया

निभाना अब सब को अपनी जिम्मेदारी चाहिये

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #260 ☆ शब्दों की सार्थकता… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख शब्दों की सार्थकता। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 260 ☆

☆ शब्दों की सार्थकता… ☆

‘सोच कर बोलना व बोलकर सोचना/ मात्र दो शब्दों के आगे-पीछे इस्तेमाल से ही उसके अर्थ व परिणाम बदल जाते हैं’ बहुत सार्थक है। मानव को ‘पहले तोलो, फिर बोलो’ अर्थात् बोलने से पूर्व सोचने-विचारने व चिंतन-मनन करने का संदेश प्रेषित किया गया है। जो लोग आवेश में आकर बिना सोचे-समझे बोलते हैं तथा तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं; वे अपने लिए मुसीबतों का आह्वान करते हैं। मानव को सदैव मधुर वचन बोलने चाहिए जो दूसरों के मन को अच्छे लगें, प्रफुल्लित करें तथा उनका प्रभाव दीर्घकालिक हो। कटु वचन बोलने वाले से कोई भी बात करना पसंद नहीं करता। रहीम के शब्दों में ‘वाणी ऐसी बोलिए, मनवा शीतल होय/ औरों को शीतल करे, ख़ुद भी शीतल होय’ सबको अपनी ओर आकर्षित करता है तथा हृदय को शीतलता प्रदान करता है। कटु वचन बोलने वाला दूसरे को कम तथा स्वयं को अधिक हानि पहुंचाता है–जिसका उदाहरण आप सबके समक्ष है। द्रौपदी के एक वाक्य ‘अंधे की औलाद अंधी’ से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ जो अठारह दिन तक चला और उसके भयंकर परिणाम हम सबके समक्ष हैं। इन विषम परिस्थितियों में भगवान कृष्ण ने युद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र से गीता का संदेश दिया जो अनुकरणीय है। इतना ही नहीं, विदेशों में गीता को मैनेजमेंट गुरु के रूप में पढ़ाया जाता है। निष्काम कर्म के संदेश को अपनाने मात्र से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है, क्योंकि यह मानव को अपेक्षा-उपेक्षा के व्यूह से बाहर निकाल देता है। वास्तव में यह दोनों स्थितियाँ ही घातक हैं। इनसे हृदय को आघात पहुंचता है और मानव इनके व्यूह से आजीवन मुक्त नहीं हो पाता। यदि आप किसी से उम्मीद रखते हैं तो उसके पूरा न होने पर आपको दु:ख होता है और दूसरों द्वारा उपेक्षा के दंश के व्यूह से भी आप आजीवन मुक्त नहीं हो सकते।

‘एक चुप, सौ सुख’ मुहावरे से तो आप सब परिचित होंगे। बुद्धिमानों की सभा में यदि कोई मूर्ख व्यक्ति मौन रहता है तो उसकी गणना बुद्धिमानों में की जाती है। इतना ही नहीं, मौन वह संजीवनी है, जिससे बड़ी-बड़ी समस्याओं का अंत सहज रूप में हो जाता है। प्रत्युत्तर अथवा तुरंत प्रतिक्रिया न देना भी उस स्थिति से निज़ात पाने का अत्यंत कारग़र उपाय है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि ‘बुरी संगति से अकेला भला’ अर्थात् मौन अथवा एकांत मानव की भीतरी दिव्य शक्तियों को जागृत करता है तथा समाधिवस्था में पहुंचा देता है। वहाँ हमें अलौकिक शक्तियों के दर्शन होते हैं तथा बहुत से प्रक्षिप्त रहस्य उजागर होने लगते हैं। यह मन:स्थिति मानव की इहलोक से परलोक की यात्रा कहलाती है।

सोचकर व सार्थक बोलना मानव के लिए अत्यंत उपयोगी है और वह मात्र पद-प्रतिष्ठा प्रदाता ही नहीं, उसे सिंहासन पर भी बैठा सकता है। विश्व के सभी प्रबुद्ध व्यक्ति चिंतन-मनन करने के पश्चात् ही मुख खोलते हैं। सो! उनके मुख से नि:सृत वाणी प्रभावमयी होती है और लोग उसे वेद वाक्य समझ हृदय में धारण कर लेते हैं। यह उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देता है। बड़े- बड़े ऋषि मुनि व संतजन इसका प्रमाण हैं और उनकी सीख अनुकरणीय है–’यह जीवन बड़ा अनमोल बंदे/ राम-राम तू बोल’ लख चौरासी से मुक्ति की राह दर्शाता है।

इसके विपरीत बोलकर सोचने के उपरांत मानव  किंकर्तव्यविमूढ़ की भयावह स्थिति में पहुंच जाता है, जिसके  प्रत्याशित परिणाम मानव को चक्रव्यूह में धकेल देते हैं और वहाँ से लौटना असंभव हो जाता है। हमारी स्थिति रहट से बंधे उस बैल की भांति हो जाती है जो दिनरात चारों ओर चक्कर लगाने के पश्चात् लौटकर वहीं आ जाता है। उसी प्रकार हम लाख चाहने पर भी हम अतीत की स्मृतियों से बाहर नहीं निकल पाते और हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाता है। हम सिवाय आँसू बहाने के कुछ नहीं कर पाते, क्योंकि गुज़रा समय कभी लौटकर नहीं आता। उसे भुला देना ही उपयोगी है, लाभकारी है, श्रेयस्कर है। यदि हमारा वर्तमान सुखद होगा तो भविष्य अवश्य स्वर्णिम होगा। हमें जीवन में पद-प्रतिष्ठा, मान- सम्मान आदि की प्राप्ति होगी। हम मनचाहा मुक़ाम प्राप्त कर सकेंगे और लोग हमारी सराहना करेंगे।

समय निरंतर चलता रहता है और वाणी के घाव नासूर बन आजीवन रिसते रहते हैं। इसलिए मानव को सदा सोच-समझ कर बोलना चाहिए ताकि वह निंदा व प्रशंसा के दायरे से मुक्त रह सके। अकारण प्रशंसा उसे पथ-विचलित करती है और निंदा हमारे मानसिक संतुलन में व्यवधान डालती है। प्रशंसा में हमें फिसलना नहीं चाहिए और निंदा से पथ-विचलित नहीं होना चाहिए। जीवन में सामंजस्य बनाए रखना अत्यंत आवश्यक व कारग़र है। समन्वय जीवन में सामंजस्यता की राह दर्शाता है। इसलिए हर विषम परिस्थिति में सम रहने की सीख दी गई है कि वे सदैव सम रहने वाली नहीं हैं, क्योंकि वे तो समयानुसार परिवर्तित होती रहती हैं। ‘दिन रात बदलते हैं/ हालात बदलते हैं/ मौसम के सा-साथ/ फूल और पात बदलते हैं’ उक्त भाव को पोषित करते हैं।

इसलिए मानव को सुख-दु:ख, हानि-लाभ, प्रशंसा-निंदा अपेक्षा-उपेक्षा को तज कर सम रहना चाहिए। अंत में ‘ज्ञान दूर, कुछ क्रिया भिन्न है/ इच्छा क्यों पूरी हो मन की/ एक-दूसरे से मिल न सके/ यह विडंबना है जीवन की।’ सो! मानव को ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् ही किसी कार्य को प्रारंभ करना चाहिए। तभी वह अपने मनचाहे लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और सपनों को साकार कर सकता है। इसलिए मानव को बीच राह आने वाली बाधाओं-आपदाओं व उस के अंजाम के बारे में सोचकर ही उस कार्य को करना चाहिए। सोच-समझ कर यथासमय कम बोलना चाहिए, क्योंकि निर्रथक व अवसरानुकूल न बोलना प्रलाप कहलाता है जो मानव को पलभर में अर्श से फर्श पर लाने का सामर्थ्य रखता है।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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