मराठी साहित्य – विविधा ☆ व्रतोपासना – २. अन्नाचा सन्मान ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

सुश्री विभावरी कुलकर्णी

🔅 विविधा 🔅

व्रतोपासना – २. अन्नाचा सन्मान ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

आपण बऱ्याच गोष्टी नकळत करत असतो. त्यात काही चुकीच्या गोष्टी पण आपल्या हातून नकळत घडतात. त्याच जर हेतुपुरस्सर बदलल्या तर ती सवय होऊन जाते. आणि भावी पिढी साठी ते संस्कार बनून जातात. यातील काही आवश्यक गोष्टी विविध कारणांनी मागे पडत चालल्या आहेत. यातील एक गोष्ट म्हणजे अन्नाचा सन्मान

आपल्याही नकळत आपण बरेचदा अन्नाचा अपमान करत असतो. कदाचित ते लक्षात पण येत नाही. इथे मला एक गोष्ट आठवते. एक खूप मोठे कुटुंब असते. घरातील सगळे काम करणारे असतात. रात्री ते एकत्र जेवत असतात. एक दिवस घरात फक्त तांदूळ असतात. त्या घरातील मोठी सून त्या तांदुळाची खिचडी करायला ठेवते. तितक्यात तिची सासू येते. तिला वाटते सून मीठ घालायचे विसरली म्हणून ती त्यात मीठ घालते. असेच घरातील तिन्ही सुनांना वाटून प्रत्येक जण स्वतंत्र पणे मीठ घालून जाते. त्याच वेळी लक्ष्मी व अवदसा या घरात असतात. आणि या घरात कोणी राहायचे या वरून त्यांच्यात वाद होतो. आणि असे ठरते, या कुटुंबातील एकाही व्यक्तीने अन्नाला नावे ठेवली नाही तर त्या घरात लक्ष्मी निवास करेल. आणि कोणी नावे ठेवली तर अवदसा त्या घरात राहील. त्या दोघी घरात एका बाजूला बसून निरीक्षण करत असतात. घरातील सर्व पुरुष मंडळी प्रथम जेवायला बसतात. सासरे पहिला घास घेतात त्याच वेळी भात खारट झाल्याचे लक्षात येते. पण घरातील स्त्रियांचे कष्ट लक्षात घेऊन ते काहीही न बोलता गुपचूप जेवतात. ते बघून त्यांची मुलेही गुपचूप जेवतात. त्यामुळे छोटी मुले, स्त्रिया कोणीही काहीही न बोलता जेवतात. थोडक्यात अन्नाला कोणीही नावे ठेवत नाहीत. म्हणजेच अन्नाचा सन्मान ठेवतात. आणि लक्ष्मी कायमची त्या घरात निवास करते.

अन्नाचा सन्मान हे खूप मोठे व महत्वाचे व्रत आहे. त्या सन्मान करण्यात शेतकरी त्यांचे कष्ट, घरातील स्त्रिया त्यांची कामे या सगळ्यांचा सन्मान असतो. परंतू हल्ली वाया जाणारे अन्न पाहिले की मनाला त्रास होतो. एकीकडे आपण अन्न हे पूर्णब्रह्म म्हणतो. त्यावर आपला देह पोसला जातो. जेवणाला उदर कर्म न मानता यज्ञ कर्म मानतो. मग अन्न टाकून देताना ही भावना का विसरतो? असा प्रश्न पडतो. एखाद्या कार्यात बघितले तर अन्नाची नासाडी दिसते. आणि त्याच रस्त्याच्या दुसऱ्या बाजूला अन्नासाठी व्याकूळ झालेले लोक दिसतात. आणि अन्न वाया जाणार नाही, या साठी पण कायदे करण्याची आवश्यकता आहे का? असा प्रश्न पडतो.

पुण्यातील एका कार्यालयात मी असा अनुभव घेतला आहे. ताटात कोणी अन्न ठेवून ताट ठेवायला गेले की तेथे उभी आलेली व्यक्ती ते ताट ठेवू देत नाही. ताट रिकामे करून आणा म्हणून ती व्यक्ती सांगते. सावकाश संपवा अशी विनंती केली जाते. सुरुवातीला लोकांना हे आवडले नाही. पण त्या कार्यालयाचा तो नियमच आहे. एकदा समजल्यावर लोक मर्यादेत वाढून घेऊ लागले. एका डायनिंग हॉल मध्ये पण अशी पाटी लावली आहे. ताटातील अन्न संपवल्यास २० रुपये सवलत मिळेल. असे सगळीकडे व्हावे असे वाटते. त्याही पेक्षा आपण ठरवले तर अन्नाचा योग्य सन्मान करु शकतो. आणि आपले बघून पुढची पिढी हेच संस्कार स्वीकारणार आहे.

अन्नाचा सन्मान तर पूर्वी पासूनच आहे. पण पुन्हा त्याला नव्याने उजाळा देण्याची वेळ आली आहे. तर अन्नाचा सन्मान हे व्रत आचरणात आणण्यास कोणाची हरकत नसावी.

© सुश्री विभावरी कुलकर्णी

मेडिटेशन,हिलिंग मास्टर व समुपदेशक.

सांगवी, पुणे

📱 – ८०८७८१०१९७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 267 ☆ कथा – एक नेक काम ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय कथा – ‘एक नेक काम‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 267 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ एक नेक काम

बाहर चले गये या बाहर रह रहे बच्चों का घर आना बहुत सुख देने वाला होता है, और उनका जाना बहुत दुखदायक। मीनू इस बार जब ससुराल से आयी तो मां बाप को हमेशा की तरह बहुत खुशी हुई। दोनों छोटी बहनों को भी। खासतौर से इसलिए कि उसके साथ बुलबुल भी था। बुलबुल अब दो साल का हो गया था। पिछली बार जब मीनू आयी थी तब  वह इधर-उधर घिसट ही पाता था। अब  वह सयाना हो गया था,खूब बातूनी। उसकी तोतली ज़बान दिन भर चलती थी। ढेर सारी जिज्ञासा और ढेर सारे सवाल। नाना नानी और दोनों मौसियो के लिए जीता-जागता खिलौना। मीनू के पास न अब वह रहता था, न सोता था।

नानी उसे अपने पास लिटा कर खूब सारी कहानियां सुनातीं— राजाओं, राजकुमारियों की, परियों और राक्षसों की। बच्चे वैसे भी अद्भुत श्रोता होते हैं। हर बात उनके लिए सच होती है, हर किस्सा विश्वसनीय। परी, राक्षस, सब उनकी कल्पना में जिन्दा हो जाते हैं। उनके साथ उठते, बैठते, बतयाते हैं। बुलबुल भी नानी की कहानियां सुनते-सुनते कभी किलक कर ताली बजाने लगता,  कभी भयभीत होकर कबूतर की तरह उनकी गोद में दुबक जाता। सारे वक्त उसकी आंखें उत्सुकता से फैली रहतीं और पुतलियां नानी के चेहरे के चारों तरफ घूमती रहतीं। फिर एकाएक नानी पातीं कि वह किसी क्षण नींद में डूब गया है। उसके गुलाबी ओंठ नींद में खुल जाते और उसकी सांसों की मीठी महक नानी के चेहरे को छूने लगती।

मां के घर आकर मीनू आलसी हो जाती है। मां कोई काम नहीं करने देती। कहती हैं, अपने घर में बहुत काम करती होगी। यहां थोड़ा आराम कर ले। मां और बहनें सारा काम करती हैं और मीनू आराम फरमाती है। लेटी लेटी कोई किताब पलटती है या सोती है। यहां आकर जैसे वह एक बार फिर बच्ची हो जाती है। मां उसके लिए सोच सोच कर नये पकवान बनाती है और मना मना कर उसे खिलाती है।

मीनू ऊबती है तो परिचितों के घर बैठने के लिए चली जाती है। उसकी हमउम्र सहेलियों में से ज़्यादातर शादी के बाद ससुराल चली गयीं। जिनकी अभी तक शादी नहीं हुई वे समय काटने के लिए किसी डिग्री या ट्रेनिंग के चक्कर में फंसी हैं। ऐसी सहेलियों को मीनू से ईर्ष्या होती है क्योंकि मध्यम वर्ग की लड़की की सही वक्त पर शादी हो जाना सौभाग्य की बात है।

बुलबुल के आने से मीनू के पिता भी खूब खुश हैं। वे कहीं भी जाने के लिए तैयार होते हैं कि बुलबुल कहता है, ‘नानाजी, कहां जा रहे हो? हम भी चलेंगे।’ वह सब जगह नाना की उंगली पकड़े घूमता है, चाहे वह बाज़ार हो या उनके मित्रों का घर।

गरज़ यह कि मीनू की उपस्थिति से घर में बड़ा सुकून है। उसकी बात कोई नहीं टालता, न मां-बाप, न बहनें।जब मर्जी आती है, वह मां को, पिता को, बहनों को झिड़क देती है और सब उसकी बात को शान्ति से सुन लेते हैं और मान लेते हैं। मां को आराम है क्योंकि पिता और बहनों पर वह खूब अनुशासन रखती है।

मीनू के आने से घर की महरी भी खुश है। वजह यह है कि जाते वक्त कुछ मिल जाने की आशा है— रुपये और शायद पुरानी साड़ी और ब्लाउज़। इसीलिए वह मीनू की अतिरिक्त सेवा करती है। काम खत्म होने पर अक्सर उसके हाथ- पांव दबाने बैठ जाती है।

महरी के साथ उसकी तेरह चौदह साल की बेटी आती है। नाम आश्चर्यजनक है— सुकर्ती। यह ‘सुकृति’ शब्द बिगड़कर कैसे निम्न वर्ग तक पहुंच गया, यह अनुसंधान का विषय है। वैसे हर सन्तान माता-पिता की नज़र में ‘सुकृति’ ही होती है। सुकर्ती किसी घर से कृपा-स्वरूप मिली गन्दी फ्राक पहने, रबर की चप्पलें फटफटाती, सूखा झोंटा खुजाती, मां के साथ घूमती रहती है। मां बर्तन मांजती है तो वह धो देती है। लेकिन उसे झाड़ू पोंछा लगाने की अनुमति नहीं मिलती क्योंकि उसकी सफाई के बाद भी घर में बहुत सी गन्दगी छूट जाती है।

बुलबुल सुकर्ती से भी बहुत हिल गया है। उसकी गोद में चढ़ा घूमता है। कई बार उसके साथ उसके घर भी हो आया है।

सुकर्ती को देखकर कई बार मीनू के मन में आया है कि उसे अपने साथ ले जाए। बुलबुल को खिलाने के लिए कोई चाहिए। एक  ननद है जो अपनी पढ़ाई में लगी रहती है। सास ससुर ज़्यादा बूढ़े हैं। उनसे  वह ठीक से संभलता नहीं। मीनू ने इसके बारे में मां से बात की और फिर दोनों ने ही महरी से। महरी बात को टाल देती है। बेटी के सूखे बालों पर प्यार से हाथ फेरकर कहती है, ‘बाई, अब इसी की वजह से घर में कुछ अच्छा लगता है। दोनों लड़के ‘न्यारे’ हो गये। यह भी चली जाएगी तो घर में मन कैसे लगेगा? जो रूखा सूखा मिलता है सो ठीक है। आंखों के सामने तो है। बड़ी हो जाएगी तो हाथ पीले कर देंगे।’

लेकिन मीनू और उसकी मां इतनी आसानी से हारने वाले नहीं। मां, मीनू और दोनों बहनें हमेशा महरी को एक ही धुन सुनाती रहती हैं, ‘सुकर्ती को भेज दो। आराम से रहेगी। अच्छा खाएगी, अच्छा पहनेगी। भले घर में रहकर शऊर सीख जाएगी। यहां देखो कैसे घूमती है। वहां जाएगी तो शकल बदल जाएगी। तुम देखोगी तो पहचान भी नहीं पाओगी। और फिर मीनू तो साल- डेढ़- साल में आती ही रहती है। उसके साथ सुकर्ती  भी आएगी।’

महरी एक कान से सुनती है, दूसरे से निकाल देती है। अकेले में सुकर्ती के सामने भी प्रलोभन लटकाये जाते हैं, ‘वहां अच्छा खाना, अच्छे कपड़े मिलेंगे। वहां कार भी है। खूब घूमने को मिलेगा। काम क्या है? बस, बुलबुल को खिलाना और थोड़ी ऊपरी उठा-धराई।’

सुनते सुनते सुकर्ती अपनी वर्तमान ज़िन्दगी और उस काल्पनिक ज़िन्दगी के बीच तुलना करने लगती है। उसे अपनी वर्तमान ज़िन्दगी में खोट नज़र आने लगते हैं। सामने कल्पना की इंद्रधनुषी दुनिया विस्तार लेती है जिसमें सब कुछ सुन्दर, चमकदार है, वर्तमान अभाव और अपमान नहीं है।

रात को जब थककर महरी सोने के लिए लेटती है तो उसके सिर पर हाथ फेरकर कहती है, ‘तू कहीं मत जाना बेटा। हम जैसे भी हैं अच्छे हैं। चली जाएगी तो देखने को तरस जाएंगे। जो मिलता है, उसी में हमें संतोष है।’

लेकिन सुकर्ती की आंखों में वह चमकदार दुनिया कौंधती है। वह कोई जवाब नहीं देती।

मीनू महीने भर रहने की सोच कर आयी थी, लेकिन एक दिन उसके पतिदेव आ धमके। बहुत से पति पत्नी-विछोह नहीं सह पाते। दो दिन बाद ही तबीयत बिगड़ने लगती है। यह नहीं कि हर स्थिति में पत्नी के प्रति बहुत प्रेम ही हो, बस पत्नी एक आदत बन जाती है, ज़िन्दगी के ढर्रे का एक ज़रूरी हिस्सा, जिसकी अनुपस्थिति में ढर्रा गड़बड़ाने लगता है। अक्सर पत्नी की अनुपस्थिति कुछ ऐसी लगती है जैसे घर की कोई बहुत उपयोगी ऑटोमेटिक मशीन बिगड़ गयी हो। घर में उसकी उपस्थिति ज़रूरी होती है, लेकिन उसके प्रति कोई स्नेह या समझदारी का भाव नहीं होता।

तो दामाद साहब मीनू को ले जाने के लिए पधार गये। भारतीय समाज में दामादों का पधारना एक घटना होती है। घर में एक ज़लज़ला उठता है। प्रेम और ख़िदमत के भाव गड्डमड्ड हो जाते हैं।

यहां भी यही हुआ। सास और दोनों सालियां दामाद साहब की सेवा में लग गये। क्या खिलायें? कहां घुमायें? दामाद से संबंध में केवल स्नेह का ही भाव नहीं होता, अन्यथा साले को अपनी बहन के घर में भी वैसा ही सम्मान मिलता। इसकी पृष्ठभूमि में वरपक्ष की श्रेष्ठता और कन्यापक्ष की घटिया स्थिति होती है। दामाद की खातिर के लिए और उसे अच्छी विदाई देने के लिए सास-ससुर कोनों में फुसफुसाते हैं, कर्ज लेते हैं और दामाद साहब सब जानते हुए भी टांग पर टांग  धरे शेषशायी मुद्रा में पड़े विदाई के सुखद  क्षण की प्रतीक्षा करते रहते हैं।

दामाद के आने से मीनू की मां खुश भी हुई और दुखी भी। बेटी के चले जाने की सोच कर दिल भारी हो गया। विवाह के बाद बेटी पर कैसे अधिकार खत्म हो जाता है। उधर से हुक्म आता है और उसका तुरन्त पालन करना पड़ता है। मां अब अक्सर चिन्तित रहती थीं। काम करते-करते रुक कर सोच में डूब जाती थीं। मीनू के साथ-साथ बुलबुल के चले जाने की बात उन्हें और ज़्यादा व्याकुल करती थी।

मां वैसे भी बहुत संवेदनशील थीं। बेटियों की जुदाई उन्हें बर्दाश्त नहीं होती थी। मीनू की शादी में विदा के वक्त ऐसी हड़बड़ायीं कि सीढ़ी से उतरने में लुढक गयीं। घुटने और हाथ में खासी चोट आयी । उसी स्थिति में मीनू को उनसे विदा लेनी पड़ी थी। अब मीनू के जाने में तीन-चार दिन थे, लेकिन वे अकेली होने पर अपने आंसू पोंछती रहती थीं। पति और दोनों छोटी बेटियों पर चिड़चिड़ाती रहतीं। 

दामाद साहब के आने के बाद से महरी पर सुकर्ती को भेजने के लिए दबाव बढ़ने लगा था। अब महरी के लिए बात को टालना मुश्किल हो रहा था। अन्ततः बात सुकर्ती के बाप तक पहुंच गयी। एक दिन सवेरे वह मीनू  के घर आया। सांवला, तगड़ा, सलीके से बात करने वाला आदमी था।

हाथ जोड़कर मीनू से बोला, ‘आप ले जाओ बाई सुकर्ती को।  हमने सुना तो हमें बड़ी खुशी हुई। लड़की की जिन्दगी सुधर जाएगी। बल्कि वहीं कोई लड़का देख कर उसकी शादी करवा देना। उसकी मां की बात पर ध्यान मत देना। वह मूरख है। सुकर्ती आपके साथ जरूर जाएगी।’

घर में सब खुश हो गये। किला फतह हो गया। लेकिन उस दिन से महरी बहुत उदास रहने लगी। आती तो बहुत धीरे-धीरे बात करती। सुकर्ती से पहले से ज़्यादा प्यार से बात करती। पहले से ज़्यादा उसका खयाल करती।

अन्ततः वह दिन आ गया जब मीनू को प्रस्थान करना था। मां का कलेजा फटने लगा। सब सामान तैयार हो गया। घर के सब सदस्य बुलबुल को बारी-बारी से गोद में लेकर प्यार करने लगे। सुकर्ती अपनी पोटली लेकर आ गयी थी। साथ मां-बाप थे। महरी का जी दुख से भरा था। आंखों में आंसू भरे, आंचल को मुंह में ठूंसे वह चुपचाप खड़ी थी। लेकिन सुकर्ती एक लुभावनी दुनिया की आशा में खुश थी।

मीनू विदा हो गयी। पिता और सुकर्ती का बाप उन्हें छोड़ने स्टेशन गये। मेहमान अपने पीछे सन्नाटा, शून्य और दुख छोड़ गये। घर के पुराने सन्तुलन को मीनू और बुलबुल के आगमन ने तोड़ा था और अब घर उसी पुराने सन्तुलन पर लौटने की पीड़ादायक प्रक्रिया से गुज़र रहा था।

मीनू के जाते ही मां आंखों को साड़ी से ढक कर पलंग पर ढह गयीं और दोनों बेटियां कुर्सियों पर चुप-चुप बैठ गयीं।

महरी एक कोने में बांहों पर सिर रखे बैठी थी। थोड़ी देर में उसके मुंह से रुलाई का हल्का सवार निकलने लगा, जैसे कि पीड़ा को दबाये रखना कठिन हो गया हो।

उसकी आवाज़ सुनकर मीनू की मां चौंक कर पलंग पर बैठ गयीं। दोनों बहने भी चौंकीं।

मां उठकर उसके पास आयीं और उसके नज़दीक उकड़ूं बैठ गयीं। उनके चेहरे पर आश्चर्य का भाव था। बैठकर बोलीं, ‘अरे, तुम रो रही हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि सुकर्ती आराम से रहेगी। रोने की क्या बात है?’

जवाब में महरी का स्वर और ऊंचा हो गया। मीनू की मां की समझ में नहीं आ रहा था कि महरी खुश होने के बजाय रो क्यों रही थी। दोनों बहनें भी यह समझ नहीं पा रही थीं कि  सुकर्ती के इतनी अच्छी जगह जाने पर महरी को खुशी क्यों नहीं हो रही थी।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 267 – सहजता… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 267 सहजता… ?

सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हैं कोय।

जिन सहजै विषया तजै, सहज कहावै सोय।।

कबीरदास जी लिखते हैं कि सहज-सहज सब कहते हैं, परन्तु सहजता को समझते या पहचानते नहीं। जिन्होंने सहजरूप से विषय-वासनाओं का परित्याग कर दिया है, कामनाओं से मुक्त हो गये हैं, वे ही सहज हैं।

व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो जीवन सरल है पर सिक्के का दूसरा पहलू है कि सरल होना, सबसे कठिन है। सरलता पर कुटिलता के अतिक्रमण ने मनुष्य की कुलीनता को ही ढक दिया है। मनुष्य कुल का होना बुद्धि के वरदान से सम्पन्न होना है पर मनुष्य अपने बनाये कृत्रिम मानकों की रक्षा में जीवन भर मुखौटे लगाकर जीता है, चेहरे पर चेहरे चढ़ाकर जीता है।

केंचुली उतारते साँप को देखा,

कौन अधिक विषधर,

चेहरे चढ़ाते इंसान को देखा…!

मंच या परदे पर कलाकार मुखौटा लगाने को विवश है। वह भूमिका समाप्त होते ही मुखौटा निकाल देता है पर निजी जीवन में प्रतिदिन, निरंतर, अविराम मुखौटा लगाता है आदमी। अधिकांश मामलों में मुखौटा लगाये-लगाये ही उसकी मृत्यु भी हो जाती है, अर्थात  जीवन के विराम लेने तक लगा रहता है मुखौटा अविराम।

सहज होना, सरल होना, सत्य के साथ होना। यूँ भी ‘सहज’ का शाब्दिक अर्थ देखें तो ‘सह’ याने साथ में और ‘ज’ याने जन्मा। सृष्टि का होना, उसमें उसके एक घटक मनुष्य का होना, परम सत्य है। सत्य के जगत में लुकाव-छिपाव हो ही नहीं सकता। पक्षी और प्राणी जगत इस सत्य के साथ जीवन व्यतीत करता है। अपवाद केवल मनुष्य है। मनुष्य जो दिखता है, अधिकांश मामलों में वह होता नहीं। बेहतर होने के बजाय बेहतर दिखने, बेहतर प्रदर्शित होने की लिप्सा, उसे सत्य से असत्य, सरल से कठिन, सहज से जटिल की ओर ले जाती है। ओढ़ी हुई यह जटिलता मनुष्य के जीवन-आनंद को नष्ट करती है। धारा को रोक दिया तो प्रवाह का नाश अवश्यंभावी है।

‘पाखंड’ शीर्षक की अपनी कविता स्मरण आ रही है,

मुखौटों की/ भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक/ पहुँचूँगा या नहीं

….प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में/ शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में/ विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में/ गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में/ ईर्ष्या से बौखलाए,

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है,

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है?

मुखौटे रचने-जड़ने में/ जितना समय बिताता है

जीने के उतने ही पल / आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में कलुष ने

अस्तित्व को कसैला कर रखा है,

गंगाजल-सा जीवन जियो मित्रो,

पाखंड में क्या रखा है..?

जीवन को गंगाजल-सा रखो ताकि धारा बनी रहे, प्रवाह बना रहे, जीने का आनंद धाराप्रवाह रहे।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 214 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 214 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 214) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 213 ?

☆☆☆☆☆

बिना रिश्ते के जो अजनबी

अपने हो जाते हैं…. 

कभी-कभी खून के रिश्तों से

भी बड़े हो जाते हैं …

☆☆

Relationships with strangers

Become such treasured ones

That sometimes they become

Precious than the blood relations

☆☆☆☆☆

मुसाफिर कल भी था

मुसाफिर आज भी हूँ;

कल अपनों की तलाश में था

आज अपनी तलाश में हूँ…

☆☆ 

Upheavals and storms inside

Endless rounds of tourists outside

How coast manages co-ordination

Of  so many diverse contradictions

☆☆☆☆☆

हम तो नरम पत्तों की…

शाख़ हुआ करते थे…!

छीले इतने गए कि…

खंज़र  हो गए…!!

☆☆

Used to be lush tender branch 

Laden with soft green leaves…

Got chiseled off so much

That  turned into a dagger…!

☆☆☆☆☆

कौन बहीखाता रखे…

किसको कितना दिया

और किसने कितना बचाया

ख़ुदा ने आसान हिसाब बनाया

सबको खाली हाथ भेजा

और खाली हाथ ही बुलाया…

☆☆ 

Who to keep a book of account

How much did someone give

And how much did one save

God simplified the calculations

Sent everyone empty handed

And called back empty handed …

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 213 ☆

☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

खिलखिलायीं पल भर तुम

हरसिंगार मुस्काए

.

अँखियों के पारिजात

उठें-गिरें पलक-पात

हरिचंदन देह धवल

मंदारी मन प्रभात

शुक्लांगी नयनों में

शेफाली शरमाए

.

परिजाता मन भाता

अनकहनी कह जाता

महुआ मन महक रहा

टेसू तन झुलसाता

फागुन में सावन की

हो प्रतीति भरमाए

.

कर-कुदाल-कदम माथ

पनघट खलिहान साथ,

सजनी-सिन्दूर सजा-

चढ़ सिउली सजन-माथ?

हिलमिल चाँदनी-धूप

धूप-छाँव बन गाए

हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, पारिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

एक बार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था जब तक जीना है तब तक सीखना है। मैं पंडित अनिल पांडे अपने आप को आज भी ज्योतिष का एक विद्यार्थी ही मानता हूं और यही मान करके मैं निरंतर विभिन्न प्रकार की फलादेश करता हूं। ईश्वर की कृपा से वे सत्य सिद्ध होते हैं जैसा कि अभी महाराष्ट्र के इलेक्शन में केवल मेरी ही भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई है।

इसी प्रकार साप्ताहिक राशिफल की श्रृंखला में भी मेरा यही प्रयास रहता है की आपको सही मार्गदर्शन प्राप्त हो जिससे आप सफलताएं प्राप्त कर सकें।

आज मैं आपको 9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा। राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म हुए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह के प्रारंभ से 9 तारीख की प्रातः 7:19 a.m तक जन्म लिए बच्चों की राशि कुंभ होगी। । यह बच्चे अपने कार्य में अत्यंत सफल रहेंगे और शत्रुओं को पराजित कर सकेंगे। 9 तारीख के प्रातः 7:19 am से 11 तारीख को 9:45 a.m तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मीन होगी। यह बच्चे अत्यंत भाग्यशाली होंगे। 11 तारीख को 9:45 am से 13 तारीख को 12:09 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मेष होगी। यह बच्चे सफलता के नए पायदान प्राप्त करेंगे अर्थात अत्यंत सफल रहेंगे। इसके उपरांत 13 तारीख के 12:09 दिन से 15 तारीख के 3:36 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि वृषभ होगी। यह बच्चे अपने माता-पिता की अत्यंत सेवा करेंगे और इनको बहुत सारी सफलताएं मिल सकेंगी। 15 तारीख के 3:36 दिन से लेकर सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन रहेगी। यह बच्चे भाग्यशाली होंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का तथा आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको सफलताएं मिलेंगी। धन प्राप्त होने की उम्मीद है। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 9 और 10 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। व्यापार में वृद्धि होगी। आपको स्वास्थ्य की कुछ तकलीफ हो सकती है। आपके पराक्रम में कमी आएगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 तारीख के दोपहर से 14 और 15 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अत्यंत शुभ है। 11, 12 और 13 तारीख की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और बृहस्पतिवार के दिन विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन प्राप्ति का योग है भाग्य भी इस सप्ताह आपका साथ दे सकता है शत्रुओं को आप प्रयास करने पर पराजित कर सकते हैं कार्यालय में आपका विवाद हो सकता है इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 13 की दोपहर से लेखक 14 और 15 तारीख तक आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपके जीवनसाथी माता और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से आपको कम मदद मिलेगी। आपको अपने पुत्र से सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उचित है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार ठीक चलेगा। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। जनता में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शत्रुओं को आप पराजित कर सकेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 तारीख की दोपहर से 14 और 15 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। आपके जो भी पेंडिंग कार्य हों कृपया इन तारीखों में कर लें। सफलता मिलेगी। 9 और 10 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शिव चालीसा का प्रतिदिन कम से कम तीन बार पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों के साथ ठीक-ठाक संबंध रहेगा। आपको अपने संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। सामान्य धन आने का योग है। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 11, 12 और 13 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य सावधान रहकर करना चाहिए। 14 और 15 दिसंबर को भाग्य की आपको विशेष रूप से मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 दिसंबर की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का कम से कम तीन बार पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। भाई बहनों के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 के दोपहर के बाद से 14 और 15 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभ वर्धक हैं। 11, 12 और 13 की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपके पराक्रम में वृद्धि हो सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी और पिताजी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर मंगल दायक हैं। 13, 14 और 15 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। इस सप्ताह आपके पास धन आने का भी अच्छा योग है। भाग्य आपका साथ देगा। लंबी दूरी की यात्रा हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कुछ समस्या हो सकती है। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। कार्यालय में आपकी प्रतिभा को सम्मान प्राप्त होगा। शत्रुओं को आप पराजित कर सकेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 की दोपहर से 14 और 15 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। भाग्य के कारण आपके कई कार्य हो सकते हैं। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। कचहरी के कार्य अगर आप सावधानी पूर्वक करेंगे तो सफलता प्राप्त होने का पूर्ण अवसर है। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान दें। शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

 ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : बीते जो पल, पिता के संग।

लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली।

मूल्य : 400 रुपये। पृष्ठ : 142

☆ “सुदर्शन रत्नाकर का संस्मरण संकलन- जीवन के बीते पलों और पिता की खूबसूरत यादें” – कमलेश भारतीय ☆

अभी दस नवम्बर को हरियाणा लेखक मंच के वार्षिक सम्मेलन में अनेक पुस्तकें मिलीं‌, कुछ पढ़ पाऊं, कुछ लिख पाऊं उन पर, यही इच्छा लिए हुए! हर लेखक दूसरे लेखक को इसी उम्मीद से अपनी कृति उपहार में देता है कि वह संवेदनशील लेखक इसे पढ़ने का समय निकाल कर दो शब्द लिखेगा, कई बार मैं सुपात्र होता हूं, कई बार नहीं! यानी साफ बात सबकी किताबें पढ़ना किसी एक के बस की बात नहीं! सुदर्शन रत्नाकर के लिए मैं सुपात्र हूं क्योंकि धीरे धीरे इसे आज पढ़कर लिखने जा रहा हूं।

यह एक बेटी की यादें हैं अपने प्रिय नायक पिता के साथ! यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य भी है कि बेटियां पिता से तो बेटे मां से ज्यादा लगाव रखते हैं! कहां तक सच है, पता नहीं लेकिन सुदर्शन‌‌ ने पिता चौ राजकृष्ण बजाज के साथ और पिता ने पुत्री सुदर्शन के साथ अथाह प्यार किया, संस्कार दिये, संस्कारित किया, बेटों से  ज्यादा चाहा, दुलार दिया और बेटी की गलती पर भी दूसरों को समझाया, डांटा! हमेशा बेटी का पक्ष लिया! बेटी ने भी पिता को निराश नहीं किया, योग्य बनी और पिता का सिर ऊंचा किये रखा! कहां गुजरात मूल के लोग हरियाणा तक पहुच गये!

यही पल पल, बरसों की यादें हैं! मनाली, नैनीताल, बडखल झील के प्यारे प्यारे से संस्मरण हैं! चाहने वाला, सिर झुका कर प्यार करने वाला पति, प्यारे से बच्चे लेकिन जो शोख सी लड़की सुदर्शंन थी, वह साध्वी जैसे सफेद कपड़े पहनने लगी! जो शरारतें करती थी, भाइयों के साथ वह गंभीर‌ लेखिका बन गयी! अनेक गुण पिता से लिए और आज भी उनके आदर्शों पर चल रही है सुदर्शन‌‌!

एक पिता के पत्र पुत्री के नाम में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बहुत कुछ दिया, जिस पर भारत एक खोज सीरियल बन गया! एक पुत्री की यादें पिता के साथ भी पढ़ी जा सकती है, निश्चित रूप से!

इस पुस्तक में विभाजन से जूझते पिता हैं और विभाजन के बाद कैसे अपने सघर्ष और‌ जीवट से पिता ने परिवार का पालन पोषण किया, कैसे पैरों पर खड़ा किया सबको और संयुक्त परिवार आज भी आदर्श‌ हैं‌, यह सीख मिलती है पर अब सिर्फ यादें ही यादें हैं और यादों में जीती एक  बेटी!

कवर खूबसूरत है और पेपरबैक में होती तो बेहतर होता। सजिल्द‌ का मूल्य चार सौ है, जो आम पाठक की जेब से अधिक है।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-५ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

सुबह का नाश्ता और रात्रिभोज होटल के पैकेज में शामिल है। सभी एक साथ नाश्ता और रात्रिभोज करते हैं। वहीं अगली कार्ययोजना तय हो जाती है। राजेश जी का संदेश रात को ही प्राप्त हो गया था कि सुबह आठ बजे होटल के डाइनिंग एरिया में नाश्ता लेकर साढ़े आठ बजे बस में सवार होना है। नाश्ते में स्पंजी डोसा, इडली, बड़ा, पूड़ी, सब्ज़ी के अलावा ब्रेड बटर ऑमलेट भी थे। मीठे में सूजी का हलवा स्वादिष्ट लगा। नाश्ते के समय यह ध्यान रखना ज़रूरी होता है कि यदि सभी आइटम चखते जाएँ तो अति भोजन होना ही है। मुफ्त से लगने वाले यानी पैकेज में शामिल नाश्ता करते समय पर्यटक एक गलती अक्सर करते हैं। तुरंत पैसे तो देने नहीं हैं या पैसे तो दे ही चुके हैं। इसलिए खींच कर खा लेते हैं। जिसका परिणाम एक तो हाज़मा ख़राब और दूसरा जब बस में बैठकर नज़ारे देखना है तब सीट पर खर्राटे भरते हैं। हम तो खाने और सोने आए हैं। भूगोल-इतिहास किताबी बातें हैं। पर्यटन के दौरान इस प्रवृत्ति से बचेंगे तो घूमने का आनंद उठा पाएंगे। 

समूह में परस्पर स्नेहिल संबंध कायम हो गए हैं। समूह के सभी सदस्य सकारात्मक सोचधारी हैं। क्षुद्र स्वार्थ का द्वेषपूर्ण भाव या शिकायती लहजा किसी में भी नहीं दिखता। इस कारण पूरी यात्रा में अनबन जैसी बातें जो कि समूह प्रबंधन में अक्सर दिखती हैं, अब तक की यात्रा के दौरान नदारत हैं। सब हनुमान भक्ति में डूबे हैं। बस में सुबह की यात्रा अभिष के सस्वर हनुमान चालीसा गायन से शुरू होती है। बाक़ी सभी यात्री उनसे स्वर मिलाकर भक्तिपूर्वक गायन में हिस्सा लेते हैं। उसके बाद बीच-बीच में मज़ाक़ ठिठोलियों की फुहारें छूटती रहती हैं। कोई व्यक्तिगत निजी टिप्पणी नहीं होती है।

ड्राइवर के बराबर सीट पर बैठ ख़ुद डॉ.राजेश श्रीवास्तव समूह को नेतृत्व प्रदान करते हैं। उन्होंने गाइड चंदू को भी साथ बिठा लिया है। जिससे उन्हें पर्यटन स्थलों पर पहुँचने, रुकने और आगे बढ़ने में सुभीता है। उनके पीछे सिंगल सीट पर कंडक्टर की भूमिका में सुरेश पटवा सीटी बजाकर समूह को नियंत्रित करते हैं। उनके समानांतर कवियत्री रूपाली अपनी शिक्षिका मम्मी श्रीमती मंजु श्रीवास्तव के साथ हैं। उनके पीछे डॉ. जवाहर कर्णावत और अनुभूति शर्मा विराजमान हैं। उसके बाद घनश्याम मैथिल और अभिष श्रीवास्तव बैठे हैं। सिंगल सीट पर अरुण गुप्ता और उनके पीछे डॉक्टर दिनेश श्रीवास्तव जमे हैं। पिछली सीट पर श्री विजय शंकर चतुर्वेदी, श्री सनोज तिवारी, डॉ जयशंकर यादव और गोपेश बाजपेयी बैठे हैं।

आज हम्पी भ्रमण है। भूगोल इतिहास किसी भी पर्यटन की जान होते हैं। यदि इनका ज्ञान और भान न हो तो पर्यटन “ये खाया-वो खाया” और ‘ये खरीदा-वो खरीदा’ का मुरब्बा बनकर रह जाता है। हमने दक्षिण भारत का राजनीतिक भूगोल याद किया। दक्षिण भारत में पाँच राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के साथ तीन केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार, पुडुचेरी और लक्षद्वीप शामिल हैं। जहाँ की आबादी की भाषाएँ द्रविड़ परिवार की हैं। हिंदी सभी जगह समझी जाती है। हालाँकि राजनीति ने बहुत नीबू निचोया पर हिन्दुस्तानी कढ़ाई में हिंदी का खालिस दूध मद्धिम आँच में मलाईदार होता जा रहा है। राज्य की सीमाएँ आम तौर पर भाषाई आधार पर हैं।

श्रीराम ने भ्राता लक्ष्मण और सीता जी के साथ नासिक के पास पंचवटी में आरण्यक समय बिताया था। वहीं से रावण ने सीता जी का अपहरण किया था। जिनकी खोज में वे भटकते हुए श्रीराम-लक्ष्मण किष्किन्धा खंड के पम्पा क्षेत्र पहुँचे थे, जहाँ उनकी भेंट हनुमान जी से हुई थी। हम उसी स्थान पर हैं। श्री राम सेना सहित यहाँ से मदुरा होते हुए रामेश्वरम पहुँचे थे। रामायण काल में यह क्षेत्र बियाबान जंगल था। वानर मति और गति से ही इस क्षेत्र में पार पाया जा सकता था। गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों पूर्व से पश्चिम बहती हैं।

श्रीमती मंजू श्रीवास्तव और उनकी पुत्री रूपाली सबसे आगे की दोहरी सीट पर हैं। उनके बाजू वाली सिंगल सीट पर हम जमे हैं।  मंजू जी हमको पटवा भाई साहब बुलाने लगी हैं तो इस हिसाब से रूपाली ने हमसे मामाजी का रिश्ता बना लिया है। रूपाली ने पूछा – मामा जी, दक्षिण भारत का भूगोल-इतिहास  बताइए न। छेड़ने भर की देर थी। अपना रिकॉर्ड चालू हो गया।

सुनो रूपाली, दक्षिण भारत में छह  पारंपरिक भौगोलिक क्षेत्र हैं।

पीछे से आवाज आई, यह नहीं चलेगा। थोड़ा जोर से बोलिए, हम भी सुनेंगे। हमने तिरछा होकर वॉल्यूम तेज कर बोलना शुरू किया।

महाराष्ट्र से नीचे दक्षिण में उतरते ही कर्नाटक में- दक्कन के पठार का मैदानी क्षेत्र बयालुसीमे, केनरा या करावली तट, समुद्री तट और पठार के बीच सह्याद्रि पहाड़ियाँ मालेनाडु, गोदावरी नदी के उत्तर में स्थित क्षेत्र, मैसूर के आसपास दक्षिण कर्नाटक मुलकानाडु। धारवाड के आसपास उत्तरी कर्नाटक, जिस क्षेत्र में हम्पी स्थित है। कोंकण तटीय क्षेत्र, जिसमें तटीय महाराष्ट्र, गोवा और तटीय कर्नाटक का हिस्सा शामिल है। रायचूर दोआब, जिसमें ज्यादातर उत्तरी कर्नाटक, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच का क्षेत्र तुलु नाडु, उडुपी और दक्षिण केनरा के तटीय जिले आते हैं।

जब हमने थोड़ी सांस ली तो अनुभूति बोलीं – आपको इतना याद कैसे रहता है। हमने कहा- हम भूलते नहीं है इसलिए याद रहता है। सब ठहाकर हँस दिए।

हमारे प्रवचन फिर शुरू हुए, आंध्र प्रदेश में- कम्मनडु – कृष्णा नदी के दक्षिण में नेल्लोर तक का क्षेत्र, कोनसीमा – गोदावरी जिले में गोदावरी नदी की सहायक नदियों के बीच का तटीय क्षेत्र, कोस्टा – आंध्र प्रदेश के तटीय जिले, रायलसीमा – जिसमें कुरनूल, कडप्पा, अनंतपुरम और चित्तूर जिले शामिल हैं। उत्तरांध्र – आंध्र प्रदेश का उत्तरी भाग, जिसमें तीन जिले श्रीकाकुलम, विजयनगरम और विशाखापत्तनम  शामिल हैं। वेलानाडु – अर्थात् गुंटूर से श्रीशैलम तक कृष्णा नदी के तट पर स्थित स्थान।

चलिए अब तमिलनाडु चलते हैं वहाँ- चेरा नाडु – पश्चिमी तमिलनाडु और अधिकांश आधुनिक केरल, कोंगु नाडु – कोयंबटूर के आसपास पश्चिमी तमिलनाडु, चेट्टिनाडु – शिवगंगा के आसपास दक्षिणी तमिलनाडु, चोल नाडु – तंजावुर के आसपास मध्य तमिलनाडु,  पलनाडु – उत्तरी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के दक्षिणी जिले, पंड्या नाडु – मदुरै के आसपास दक्षिणी तमिलनाडु, उत्तरी सरकार – ब्रिटिश भारत में मद्रास राज्य में मुस्लिम प्रशासनिक इकाइयाँ, अर्थात् चिकाकोले, राजमुंदरी, एलोर, कोंडापल्ली और गुंटूर, टोंडाई नाडु – कांचीपुरम के आसपास उत्तरी तमिलनाडु, तिरुविथमकूर या त्रावणकोर- दक्षिणी केरल और तमिलनाडु का कन्याकुमारी जिला, दक्षिण मालाबार – केरल का उत्तर-मध्य क्षेत्र, जो कोरापुझा और भरतप्पुझा नदियों के बीच स्थित है।

इतने कठिन क्षेत्रों का नाम सुनते-सुनते कुछ साथी बाहर झांकने लगे थे। तब तक हमारा वर्णन केरल तटीय नाडू पर पहुँच चुके थे।

केरल- कोचीन – केरल का क्षेत्र जो भरतप्पुझा और पेरियार नदियों के बीच स्थित है, कभी-कभी पम्बा तक फैला हुआ है। उत्तरी मालाबार – जो मैंगलोर और कोझिकोड के बीच स्थित है, यह एझिमाला साम्राज्य, मुशिका राजवंश और कोलाथुनाडु की पूर्व त्रावणकोर रियासत थी।

अब सुनिए उस क्षेत्र को जिसे अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने सबसे पहले दबोचा था। अर्थात कोरोमंडल तट – दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश, उत्तरी तटीय तमिलनाडु और पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश दक्कन पठार – आंतरिक महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक को कवर करने वाला पठारी क्षेत्र। इसमें मराठवाड़ा, विदर्भ, तेलंगाना, रायलसीमा, उत्तरी कर्नाटक और मैसूर क्षेत्र शामिल हैं।

अब चलते हैं द्वीप समूह- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के पूर्वी तट से बहुत दूर, बर्मा के तेनासेरिम तट के पास स्थित है। भारत की मुख्य भूमि का सबसे दक्षिणी छोर हिंद महासागर पर कन्याकुमारी (केप कोमोरिन) है। लक्षद्वीप के निचले मूंगा द्वीप भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट से दूर हैं। श्रीलंका दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है, जो पाक जलडमरूमध्य और श्रीराम के पुल के नाम से जाने जाने वाले निचले रेतीले मैदानों और द्वीपों की श्रृंखला द्वारा भारत से अलग किया गया है।

आज की योजना कुछ इस तरह है कि पहले तुंगभद्रा नदी किनारे गुफा दर्शन फिर हम्पी भ्रमण। अतः सबसे पहले कमलापुर पहुँचे, जहाँ तुंगभद्रा नदी के किनारे एक गुफा है। किंवदंती है कि लंका अभियान के बाद इसी गुफा में विजयी सेना की सभा में श्रीराम ने सुग्रीव का किष्किन्धा की गद्दी पर राज्यारोहण किया था। बाली का पुत्र अंगद भी दल बदल करके सुग्रीव की पार्टी से रक्षामंत्री बना था। गुफा में अंदर जाकर देखा कि शायद सुग्रीव वंश का कोई सांसद या विधायक अनुयायियों को जातिगत और वंशगत राजनीतिक समीकरण समझा रहा हो। परंतु वहाँ बोर्ड लगा था। सावधान, भारत की राजनीतिक गुत्थियों से भरी इस गुफा में आगे जाना मना है। कारोबार में लेनदेन बराबर होना चाहिए। धर्म के शोकेस मे धन का घुन लग चुका है।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।

मासूमियत में ईश्वर का आभास होता है।।

**

मन के सच्चे और मिट्टी  से कच्चे होते हैं।

जिस राह चलाओ उधर ही बच्चे होते हैं।।

बच्चों के ह्रदय चंचलता का निवास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

बचपन से ही सिखाना है बातें  अच्छी- अच्छी।

नींव बनाना है उनकी शुरू से ही सच्ची-सच्ची।।

बच्चे नौनिहाल कर्णधार निश्चल लिबास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

आज की जरूरत कि  मोबाइल से बचाना है।

बच्चों को संस्कार     संस्कृति सिखाना है।।

बड़ों से सीखते अच्छे बुरे का अहसास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “गजल – जियो और जीने दो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

जियो और जीने दो सबको यह सिद्धांत सुहाना है

निश्चित हो जन हितकारी है औं जाना पहचाना है

इसके द्वारा ही जग मे सुख शांति हमेशा आती है

किंतु आज आतंकवाद का उभरा नया जमाना है

*

निर्दोषो का खून हो रहा गाँव गली शैतानी है

कब किसके संग कैसे क्या हो कोई नही ठिकाना है

जब होता सदभाव प्रेम है मिलता है आनंद तभी

हर बुराई को तज के मन से सहज भाव अपनाना है

*

तरस रहे है तडप रहे है दीन दुखी अंधियारों मे

स्नेह दीप ले सबको मन से सही राह दिखलाना है

बिन समझे जो भटक रहे है स्वार्थो के गलियारो मे

जीवन औ ममता का मतलब उन्हें साफ समझाना है

*

द्वेष हमेशा दुखदायी है प्रेमभाव सुखदाता है

आपस का संबंध मधुर कर जग को स्वर्ग बनाना है

सबको साथ लिये बढने से ही हो समृद्धि सहज

बैर भव रखने वालों को यह ही मंत्र पढाना है

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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