हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 195 – जल संरक्षण ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “जल संरक्षण”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 195 ☆

🌻लघु कथा🌻 🌧️जल संरक्षण🌧️

बिजली और पानी का मेल जन्म-जन्मांतर होता है। बिजली का चमकना और पानी का गिरना मानो ईश्वर का वरदान है मानव जीवन के लिए।

एक छोटा सा ऐसा गाँव जहाँ उंगली में गिने, तो सभी के नाम गिने जा सकते हैं।

उस गाँव में पीने के पानी के लिए एक तालाब और निकासी, स्नान, पशु पक्षी, और सभी कामों के लिए एक तालाब।

गाँव वाले इसका बखूबी पालन करते। चाहे कोई देखे या ना देखें।

“बिजली” वहाँ की एक तेज तर्रार उम्र दराज समझदार महिला। जैसा नाम वैसा गुण। पानी का संग्रहण पानी बचाओ और पानी की योजनाओं को थोड़ा बहुत समझती और उस पर अमल भी करती।

बातों से भी सभी को ठिकाने लगाने वाली। उसकी एक बहुत ही अच्छी आदत पानी संग्रह करने की।

घर में उसके यहां सीमेंट की बड़ी टंकी और जितने भी बड़े बर्तन, गंजी, गगरी, कसेडी, बाल्टी और जो भी बर्तन उसे समझ में आता, बस पानी से भरकर रख लेती। और कहती पानी को उतना ही फेंकना, जिससे औरों को तकलीफ न हो।

जब कभी पानी की परेशानी आती लोग दूर दूसरे गांव में सरपंच को खबर देते और फिर शहर से पानी का टैंक आता।

पानी का मोल गाँव वाले भली-भाँति जानते थे। कहने को तो सरकारी टेप नल लगा था, परंतु पथरीले गाँव और पानी का स्तर नीचे होने के कारण वहाँ पानी नहीं के बराबर आता।

आज अचानक लगा कि गाँव में पीने का पानी दूषित हो गया है।सभी एक दूसरे का मुँह तक रहे थे। सरपंच से बात होने में पता चला कि कुछ हो जाने के कारण तालाब का पानी पीने योग्य नहीं रहा। और पानी का टैंक शाम तक ही आ पाएगा।

बच्चे बूढ़े सभी परेशान। तभी किसी ने हिम्मत कर बिजली से जाकर कहा कि… “आज वह सभी को पानी पिला दे। साँझ टैक्कर से सब तुम्हारे घर में पानी भर देंगे।” गाँव वाले हाथ जोड़ बिजली से पानी मांग रहे थे।

आज तो बिजली अपने पानी बचाने और संग्रह कर रखने के लिए अपने आप को धन्य मानने लगी। सभी को पीने का पानी, निस्तार का पानी थोड़ा-थोड़ा मिल गया। राहत की सांस लेने लगे।

खबर हवा की तरह फैल गई। मीडिया वाले शहर से आ गए। सरपंच अपने मूंछों पर ताव देते अपने गाँव की तारीफ करते बिजली के साथ शानदार तस्वीर खिंचवाई ।

‘जल ही जीवन है, जल है अनमोल, समझे इसका मोल।’

जिस गाँव को कभी कोई जानता नहीं था। कभी पेपर पर नाम नहीं छपा था। आज बिजली के पानी बचाकर, अपने गाँव का नाम रौशन कर दिया।

बिजली और पानी संरक्षण। आज एक नई दिशा। सभी बिजली के गुण गा रहे हैं। सरपंच की तरफ से गाँव के मध्य बिजली को सम्मानित किया गया।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 87 – देश-परदेश – गर्मी की छुट्टियां ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 87 ☆ देश-परदेश – गर्मी की छुट्टियां ☆ श्री राकेश कुमार ☆

गर्मी की दो माह की छुट्टियां याने बच्चों को आगामी वर्ष के लिए रिचार्ज होने का सुनहरा अवसर होता था।

गर्मी की छुट्टी मतलब ” ननिहाल चलो” मै और मेरे बड़े भाई अम्मा जी के साथ अपने अस्थाई निवास मुम्बई से रेल द्वारा दिल्ली आकर बस यात्रा से ननिहाल जोकि बुलंदशहर जिले के डिबाई नामक छोटे से कस्बे में स्थित है,पहुंच जाते थे।

पूरा कस्बा हमारे आने का इंतजार कर रहा होता था।घर पहुंचते ही बड़े भैया तो खेत में लगे हुए रहट पर जल क्रीड़ा करते रहते थे। हमारे लिए घर का  कुआं होता था।आरंभ में कुएं से पानी निकलना हमारे लिए कठिन कार्य होता था। दो तीन दिन में तो दस्सीयों बाल्टी पानी की खींच लेते थे।वो बात अलग थी,कई बार बाल्टी पानी में गिर जाती थी।

मामा लोग लोहे के कांटे से बाल्टी बाहर निकाल कर प्यार से कहते थे, हमारी नाजुक मुम्बई की गुड़िया, ये तेरे बस का नहीं है। हमें बता दिया कर।एस

आज तो घर के हर कोने में नल है,पर गर्मी में कुएं के ठंडे जल का स्नान दिन भर आज के ए सी से भी ठंडा रखता था।

कुएं में शाम के समय तरबूज़ को पानी में तैरने दिया जाता था। प्रातः काल का वो ही कलेवा होता था। नाना जी की पहेली”खेलने की गेंद,गाय का चारा,पीने को शरबत,खाने को हलवा… याने की तरबूज़।

तरबूज़ के छिलके को काटते समय सफाई से कार्य कर ही घर में रखी हुई गाय को चारा दिया जाता था ।घर में सभी गाय को “राधा” के नाम से बुलाते थे। हम सब भी उसके शरीर पर हाथ फेर कर प्रतिदिन उससे आशीर्वाद लेते थे।

प्रकृति,पशु धन का सम्मान होते हमने अपने ननिहाल में ही देखा था। उत्तर प्रदेश को”आम प्रदेश” कहना भी गलत नहीं होगा। दिन भर आमों को बर्तन में डूबो कर, उनकी गर्मी निकाल कर ही ग्रहण किया जाता था।

रात्रि खुले आंगन में बर्फ से ठंडा दूध और आम ये ही भोजन होता था। आम दशहरी से आरंभ होकर बनारसी लंगड़े तक हज़म किए जाते थे।बसआम बिना गिनती के खाने का चलन था,हमारे ननिहाल के आंगन में।

रात्रि शयन खुली छत में बिना पंखे के सोना,आज सिर्फ स्वपन में ही संभव है।दोपहर के भोजन में पड़ोसियों के विभिन्न व्यंजन,कच्चे आम के आचार के साथ कब पच जाते थे,पता ही नही चलता था।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #241 ☆ न्याय… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 241 ?

☆ न्याय ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

पैशा समोर जीवाची सांगा किंमत ती काय

रात्रीमध्ये श्रीमंताच्या पोरट्याला मिळे न्याय

अल्पवयीन मुलाला नको अटक व्हायला

त्याच्यासाठी पिझ्झा म्हणे होता आणला खायला

दोन मेले त्यात सांगा असं झालं मोठं काय ?

रोज निर्दयी माणसे फिरतात रस्त्यातुन

दुःख कुणाचेच कुणी नाही घेत हो जाणून

लोकशाही कुचलुन करतात ते अन्याय

खेळ चालतो नोटांचा गरिबाला कोण वाली

न्याय कसा मिळणार ज्याचा आहे खिसा खाली

नेते, बाबु, वर्दीचाही इथे फसलेला पाय

झोपलेलं कोर्ट सुद्धा त्यांच्यासाठी होतं जागं

डोळ्यांवर काळी पट्टी तरी त्याच्यावर डाग

रोग आहे भयंकर नाही काहीच उपाय

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ ठराव / आखाडा – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री आशिष बिवलकर ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? ठराव / आखाडा – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री आशिष बिवलकर 

सुश्री नीलांबरी शिर्के

(१) ठराव 

कधी भुंकायचं  !

किती भुंकायचं  !

आताच ठरवून

 लक्षात ठेवायचं  

 नंतर आपापला

 एरिया सांभाळायचं 

 भुंकून भागलं नाही

तर चावे घेत सुटायचं 

 किती सज्जन असो    

समोर लक्ष ठेवायचं

विरोधी आपला नसतो

आपण फक्त भुंकायचं 

 पोटाला तर मिळतंच

 काळजी का करायची

 संधी मिळाली की मात्र

 तुंबडी आपली भरायची

 आपल्या अस्तित्वाची

  भुंकणं ही खूण आहे

  पांगलो तरी जागे राहू

  चौकस नजर हवी आहे

   खाऊ त्याची चाकरी करू

    म्हण जुनी झाली आहे

   रंगानं, अंगानं वेगवेगळे

   तरी काम आपलं एकच आहे

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

श्री आशिष बिवलकर

(२) आखाडा

गल्लीबोळातले जमलेत श्वान,

म्हणे एकत्र येऊन सर्व भुंकू |

आज नाही उद्या,

सिंहाशी आपण नक्कीच जिंकू |

*

सिंह फोडेल डरकाळी,

जराही विचलित नाही व्हायचे |

भुंकण्यापलीकडे आपण,

काहीच नाही करायचे |

*

आपले भुंकणे ऐकून,

इतर प्राणीही देतील साथ |

जंगलाच्या राजाला,

मारतील जोरात लाथ |

*

आपण एकत्र भुंकतो आहोत ,

येईल सहानुभूतीची लाट |

शेपटीवाले करतील मतदान,

लावतील सिंहाची वाट |

*

संख्याबळाच्या जीवावर,

आपल्यास मिळेल राजाचे पद |

सहा सहा महिने एकेकाने,

वापरून घ्यायचा सत्तेचा कद |

*

श्वानसभेचे जाणावे तात्पर्य एक,

अंगी कर्तृत्व जरी असले गल्लीचे |

एकत्र येऊन आज सगळे,

मनी बांधत आहेत आखाडे दिल्लीचे |

© श्री आशिष बिवलकर

बदलापूर 

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

‘मेरा जन्म सफल हुआ

मैं धन्य हुआ

कृतार्थ हुआ कि आपने

मुझे

इस योग्य समझा।

किन्तु

ग्लानि में डूबा

मैं हतमागा

क्या कहूँ

कैसे कहूँ

कि अब

मेरा वैभव क्षीण हो गया है।

अब नहीं रहा मैं

वैसा सम्पत्तिवान्

जैसा पहले था।

श्यामकर्ण अश्व भी नहीं है

मेरी अश्व शाला में

और

उन्हें क्रय करने योग्य

धन भी नहीं है

राजकोष में।

किन्तु

‘याचक को निराश कर

कलंकित नहीं होने दूंगा

अपना कुल गौरव ।

निष्फल नहीं रहेगी

आपकी याचना ।

फलवती होगी इच्छा।

ऐसी वस्तु दूंगा

जिससे होगा।

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 194 – “रूपवती जैसे अखनूर की…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रूपवती जैसे अखनूर की...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 194 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रूपवती जैसे अखनूर की...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

कहने को हिलगी है

एक अदद टहनी खजूर की ।

डोरी पर क्लिप लगी सूख रही

कुर्ती ज्यों डायना कुजूर की ॥

 

तपी रेत नीचे, धूप चढ़ी –

आसमान में ।

बदल गई गढ़ी जैसे

चौड़े मकान मे ।

 

मुर्गी की कलगी है

रक्तवर्ण अग्निरेख दूर की ।

या जैसे आरक्ता आँखों से

झाँक रही भावना हुजूर की ॥

 

लम्बग्रीव तना, पीठ –

जैसे घडियाल की ।

छायातक नहीं मिली

जिसकी पड़ताल की ।

 

शापग्रस्त मुलगी है

रूपवती जैसे अखनूर की ।

नजरों से बची रही  कब से वह

भाग्यवश  बेटी मजूर की ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26 – 11 – 2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।

ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है हिंदी – उर्दू के नामचीन वरिष्ठ साहित्यकार  – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक”)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

☆ कहाँ गए वे लोग # १६ ☆

औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(09.06.2024 को 53वीं पुण्यतिथि पर विशेष)

इतना जप-तप सभी निरर्थक,

तन्मय एक प्रणाम बहुत है।

तुम तैंतीस कोटि देवों को मानो,

मुझको  मेरा  राम बहुत है।

भगवान राम के प्रति अटूट आस्था और विश्वास की परिचायक इन पंक्तियों के रचयिता  स्वर्गीय श्री भगवती प्रसाद पाठक की 09.06.2024 को 53वीं पुण्यतिथि है। संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार, पत्रकार और शिक्षाविद श्री पाठक को विधाता ने यद्यपि मात्र 51 वर्षों की अल्पायु प्रदान की थी परन्तु इतने संक्षिप्त जीवन काल में ही उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण योगदान किया वह स्तुत्य और वंदनीय है। श्री पाठक को संस्कारधानी के मूर्धन्य कवि स्व श्री केशव प्रसाद पाठक के सानिध्य में साहित्य साधना का सौभाग्य मिला था इसलिए उनकी रचनाओं में भी श्री केशव प्रसाद पाठक की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। श्री केशव प्रसाद पाठक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित अपने एक बहुचर्चित व्याख्यान में  श्री पाठक ने कवि श्रेष्ठ श्री केशव पाठक के लिए ‘मीटर का मास्टर’ विशेषण का प्रयोग करते हुए कहा था कि श्री केशव पाठक की अनेक कविताएं  पूर्ण गीत  (परफेक्ट राइम)  की श्रेणी में रखे जा सकते हैं जिसमें किसी पंक्ति में प्रयुक्त शब्दों का स्थानांतरण कर देने के पश्चात् भी उसकी गति भंग नहीं होती है। स्व. श्री भगवती प्रसाद पाठक का वह  व्याख्यान इतना चर्चित हुआ कि कालान्तर में पड़ाव प्रकाशन, भोपाल ने उसे “केशव पाठक की काव्य कला” शीर्षक से एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया था।

आज जब मैं अपने इस आलेख में स्व.श्री भगवती प्रसाद पाठक  के अनुपम और आदर्श व्यक्तित्व एवं कृतित्व की अनूठी विशेषताओं की विवेचना कर रहा हूं तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस आलेख में सन् साठ के दशक में श्री पाठक द्वारा प्रकाशित और संपादित ‘साप्ताहिक सही बात ‘ का उल्लेख किए बिना मेरा यह आलेख अधूरा ही रहेगा। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि यह समाचार पत्र थोड़े से ही समय में प्रदेश में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में मील का पत्थर के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने में सफल हुआ। अपने आप में संपूर्ण इस समाचारपत्र के हर अंक में श्री पाठक ने पत्र के शीर्षक की मर्यादा का सदैव ध्यान रखा। ‘यथा नाम तथा गुण’ की पहचान ने सही बात समाचारपत्र को अल्प काल में ही प्रदेश भर में चर्चित अखबार बना देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री पाठक ने कालांतर में संस्कारधानी के कुछ और समाचार-पत्रों में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी के रूप में सेवाएं प्रदान कीं।

स्व.श्री पाठक हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू साहित्य के उद्भट विद्वान थे। मराठी और बंगला भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी। अपने धाराप्रवाह व्याख्यानों से प्रबुद्ध श्रोतावर्ग को मंत्रमुग्ध कर लेने की अद्भुत क्षमता श्री पाठक के अंदर मौजूद थी। नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की जिन प्रसिद्ध कविताओं का श्री पाठक ने  हिंदी में अनुवाद किया उसे साहित्य जगत में अत्यधिक सराहा गया। गहन अध्येता, चिंतक और विचारक श्री पाठक  संस्कारधानी के प्रतिष्ठित शिक्षाविद थे। उन्होंने  एक अनुशासनप्रिय अध्यापक और प्राचार्य के रूप में छात्रों के चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया। उनके पढ़ाए हुए छात्र आज भी श्रद्धा पूर्वक उनका स्मरण करते हैं। श्री पाठक द्वारा लिखित संस्कृत भाषा की जिन पाठ्य पुस्तकों ने शिक्षा जगत में विशेष लोकप्रियता हासिल की जिनमें’ देववाणी दीपक’ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। विचारक श्री पाठक ने अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका का निर्वाह भी किया। नवोदित रचनाकारों को  अपने लेखन में अधिकाधिक निखार लाने के लिए  उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया और मार्गदर्शन प्रदान किया। पाठक जी का जीवन संघर्षपूर्ण रहा और हमेशा ही चुनौतियों से जूझने में बीता। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और अपने इन्हीं मूल्यों को पोषित करते रहने की दृढ़ता के कारण उन्हें बड़ी कीमतें भी चुकाना पड़ीं। वे ऐसे निर्मल-व्यक्ति के रूप में जिए, जिनमें किसी से दुश्मनी, कड़वाहट, या बदला लेने की भावना नहीं थी। वे देश-प्रदेश के बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाविदों और राजनेताओं के निरंतर संपर्क में रहे। सभी क्षेत्रों में उन्हें उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त रही।

त्याग, सेवा और समर्पण की त्रिवेणी श्री पाठक के लिए जीवन भर रामचरितमानस की पंक्तियां “परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा नहिं सम अधमाई” आदर्श बनीं रहीं और वे सहृदयता और संवेदनशीलता के पर्याय बने रहे। आधी रात को भी किसी भी जरूरत मंद व्यक्ति की सहायता के लिए रहने वाले श्री पाठक के  द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया। अहंकार और आडंबर से कोसों दूर, सहज सरल व्यक्तित्व के धनी श्री पाठक का अनुकरणीय  जीवन  ‘ नेकी कर दरिया में डाल ‘  कहावत का उत्कृष्ट उदाहरण है। जबलपुर के श्रीजानकी रमण महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी के इस कथन से मैं पूर्णतः सहमत हूं कि ” जो लोग स्वर्गीय पाठक जी के संपर्क में रहे हैं वे इसकी पुष्टि कर सकते हैं कि उनका व्यक्तित्व और जीवन दर्शन जितना बहिरंग में दिखता है उससे अधिक व्यापक कैनवास में चित्रित किए जाने योग्य था।”

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – बारिश की बूंदें…☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘बारिश की बूंदें….’।)

☆ कविता – बारिश की बूंदें…. ☆

आसमां से गिरकर,कहां जाएंगी,

जमीं पर गिरेंगी,भटक जाएंगी,

 रेत के गर्म टीले पर गिरकर,

 भाप बनकर, उड़ जाएंगी,

 फिर बादलों में मिल जाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी,

कोई आसमां पर देखता तो होगा,

आशा से उसको तकता तो होगा,

खेतों की सूखी मिट्टी को देखकर,

आशा थमेगी,वहीं पर गिरेंगी,

खेतों की फसलों में लहलहाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी,

रातों को कोई बेचैन होकर

चांद के तन्हा सफर में,साथ होकर,

आसमां पर अपनी सूनी आंखें लिए,

जब निहारता होगा टकटकी लगाकर,

आंखों में आंसू बनकर गिर जाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 181 ☆ # “स्कैम” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता स्कैम

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 181 ☆

☆ # “स्कैम ” #

आजकल नये नये खेल

नये नये गेम हैं  

नयी नयी तरकीबें हैं

नये नये स्कैम हैं

पैसे कमाने के

नये नये ऐप हैं

जुड़ी हुई है कई हस्तियां

बदल रहे हैं

रोज नये नये शेप हैं

धड्डले से चल रहा है धंदा

दे रहे है मोटा मोटा चंदा

बड़े लोगों का खेल है सारा

परेशान है गरीब बंदा

 

अब तो परिक्षा में भी

फिक्सिंग की जा रही है

मुंहमांगी कीमत लेकर

सीट दी जा रही है

सामान्य व्यक्ति का बच्चा

कैसे इनका सामना करें

कहां से लाये सिफारिश

बड़ी रकम कहां से भरे

सालभर मेहनत करके भी

वो रैंकिंग में पिछड़ गया

सीट नही मिली तो

उसका कॅरियर बिगड़ गया

पैसे और पहुंच का यह खेल

कब-तक चलता रहेगा

गरीब

गरीब व्यक्ति का बंदा

कब तक अमीरों से छलता रहेगा

यह कोचिंग, अकॅडमी  का व्यवसाय

दिन दूना रात चौगुना

फलफूल रहा है

असहाय, निर्धन उमीदवार

काबलियत के बावजूद

अंधकार में झूल रहा है

इस पर कड़ी बंदिशें जरूरी हैं

कानून की गिरफ्त अधूरी हैं

ये स्कैम कब बंद होंगे

कोई बताए ‍

जिम्मेदारों की क्या मजबूरी है ?

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 177 ☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 177 ? 

☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

स्नेहबंध भाव, अंतरी असावा

बोचरा नसावा, भाव कधी.!!

*

माणूस पणाचा, दाखला देयावा

निर्भेळ करावा, कारभार.!!

*

गर्व सोडूनिया, धर्म आचरावा

अधर्म टाळावा, कटाक्षाणे.!!

*

दुसऱ्यांचे दोष, नचं वर्णवावे

नचं दाखवावे, बोट कधी.!!

*

स्वतःला तयार, करावे तत्पर

अनेक आभार, जोडोनिया.!!

*

उगवता सूर्य, बुडतो विझतो

क्षितिज गिळतो, तप्त गोळा.!!

*

कलीचे वर्तन, समजून घ्यावे

आहे तेच द्यावे, नम्रभावे.!!

*

कवी राज म्हणे, शब्दांचे मनोरे

अभंगाच्या द्वारे, रचियतो.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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