ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 फरवरी से 9 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 फरवरी से 9 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। आप सभी को बसंत पंचमी और की हार्दिक बधाई। मैं पंडित अनिल पांडे आज आपको 3 फरवरी 2025 से 9 फरवरी 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा इसी सप्ताह में 6 फरवरी को गुप्त नवरात्रि समाप्त हो रही है।

इस सप्ताह सूर्य और बुध मकर राशि में, बक्री मंगल मिथुन राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र मीन राशि में, शनि कुंभ राशि में और बक्री राहु मीन राशि गोचर करेंगे।

मेरा दावा है कि यह साप्ताहिक राशिफल 80% से ऊपर आपको सही भविष्य बताएगा। अगर 80% से ऊपर सही भविष्य आपको इस राशिफल से प्राप्त नहीं होता है तो आप मुझे अपने जन्म का विवरण मेरे मोबाइल क्रमांक 8959594400 पर भेज दें। मैं आपको आपकी लग्न राशि बता दूंगा जिससे आपको सही राशिफल प्राप्त होने लगेगा।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

उच्च के शुक्र के कारण इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आने का योग बनेगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। शत्रुओं से सावधान रहें। कार्यालय में कार्य करते समय सावधान रहें। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 6 और 7 फरवरी को धन आने का योग बन सकता है। 3 फरवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह उच्च का शुक्र लाभ भाव में बैठकर आपको व्यापार और आर्थिक जगत में आगे बढ़ाएगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। भाग्य आपका विशेष साथ नहीं देगा। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास कर कार्य करने होंगे। आपको अपने संतान से विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। चार और पांच फरवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

लग्न के वक्री मंगल के कारण आपके स्वास्थ्य में इंप्रूवमेंट होगा। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी। खर्चों में वृद्धि होगी परंतु ये खर्चे अच्छे काम के लिए होंगे। भाग्य आपका साथ देगा। दुर्घटनाओं से आपको बचाने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 3, 8 और 9 फरवरी मंगल दायक हैं। 6 और 7 फरवरी को आपको सावधानी पूर्वक कार्यों को निपटाना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य के मन्त्रों के साथ भगवान सूर्य को अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके मानसिक तनाव में कमी आएगी। जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। द्वादश भाव में बक्री मंगल के कारण आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आने का सामान्य योग है। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच फरवरी लाभदायक हैं। 8 और 9 फरवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। 8 और 9 फरवरी को आपको कचहरी के कार्यों से बचना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन सामान्य मात्रा में आएगा। शत्रुओं से आपको बचने का प्रयास करना चाहिए। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए। इस सप्ताह आपको जो कुछ भी प्राप्त होगा अपने परिश्रम से ही प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 फरवरी फल दायक है। 3 फरवरी को आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर गरीब लोगों के बीच में चावल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम है। उनके विवाह के बड़े अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। उच्च का शुक्र सप्तम भाव में बैठकर प्रेम संबंधों में वृद्धि करेगा। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। 6 और 7 तारीख को भाग्य आपका विशेष रूप से साथ दे सकता है। इस सप्ताह 3, 8 और 9 फरवरी आपके लिए मंगल दायक हैं। चार और पांच फरवरी को आपको सतर्क होकर कार्यों को निपटाना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले उड़द की दाल का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर आराधना करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी को कुछ मानसिक परेशानी हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य से आपको थोड़ा बहुत लाभ हो सकता है। इस सप्ताह शत्रु आपको परेशान नहीं कर पाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच फरवरी कार्यों को संपन्न करने के लिए लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर में जाकर लाल मूंग की दाल का दान करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाई बहनों के साथ तनाव हो सकता है। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 फरवरी कार्यों को संपन्न करने के लिए अनुकूल हैं। सप्ताह के बाकी दिन आपके पूरे योजना के साथ सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। अगर आप जमीन या अन्य कोई प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं तो उसको भी खरीद पाएंगे। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। आपके पेट में विकार हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। आपको अपने परिश्रम से ही लाभ प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए फरवरी लाभप्रद हैं। 6 और 7 फरवरी को आपको कार्यों को करने में सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके अपने भाई बहनों से संबंध ठीक होंगे। धन आने की उम्मीद है। भाग्य आपका साथ देगा। छठे भाव में बैठे बक्री मंगल के कारण अगर आप प्रयास करेंगे तो आप शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। आपको थोड़ा बहुत मानसिक कष्ट हो सकता है। व्यापार में स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच फरवरी विभिन्न कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 8 और 9 फरवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। धन भाव में राहु के बैठे होने के कारण यह धन गलत रास्ते से भी आ सकता है। तीसरे भाव पर शनि की नीचदृष्टि की कारण भाई बहनों के साथ तनाव हो सकता है। माता-पिता का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी को गरदन या कमर में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 फरवरी लाभवर्धक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अच्छा रहेगा। विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि भी हो सकती है। आपके जीवन साथी को थोड़ा कष्ट हो सकता है। एकादश भाव में सूर्य की उपस्थिति के कारण धन आने की उम्मीद है। यहां पर सूर्य चूंकी शत्रु राशि में है अतः धन कम मात्रा में आएगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध थोड़े तनावपूर्ण हो सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए तीन तथा आठ और 9 फरवरी कार्यों को करने के लिए फल दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ छूटी सिगरेट भी कम्बख़्त” – लेखक : श्री रवींद्र कालिया ☆ साभार – श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “छूटी सिगरेट भी कम्बख़्त” – लेखक : श्री रवींद्र कालिया ☆ साभार – श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : छूटी सिगरेट भी कम्बख़्त

लेखक : रवीन्द्र कालिया

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन, नोएडा

मूल्य : 275 रुपये

☆ “पीढ़ियों के आरपार साफगोई से लिखे संस्मरण” – कमलेश भारतीय ☆

जब एक माह पहले नोएडा सम्मान लेने गया तब समय तय कर प्रसिद्ध लेखिका ममता कालिया से मिलने गाजियाबाद भी गया । बहुत कम समय में बहुत प्यारी रही यह मुलाकात ! जालंधर मेरा पुराना जिला है पंजाब में और इस नाते वे हमारी भाभी ! उन्होंने सबसे अमूल्य उपहार दिया रवींद्र कालिया की तीन किताबें देकर ! इनमें सबसे ताज़ा किताब है -छूटी सिगरेट भी कम्बख्त ! गालिब छुटी शराब तो बहुचर्चित है लेकिन यह संस्मरणात्मक पुस्तक भी धीमे धीमे चर्चित होती जा रही है, इसमें पंद्रह संस्मरण शामिल हैं जिनमें इलाहाबाद, मुम्बई, दिल्ली में बिताये समय व जिन लोगों से मुलाकातें होती रहीं, उन पर बहुत ही दिल से और दिल खोलकर लिखा गया है बल्कि कहू़ं कि संसमरण लिखने का रवीन्द्र कालिया का खिलंदड़ा सा अंदाज सीखने का मन है !

इस पुस्तक में कृष्णा सोबती, राजेंद्र यादव, उपेंद्रनाथ अश्क, कमलेश्वर, खुशवंत सिंह, जगजीत सिंह, टी हाउस, ओबी, अमरकांत, आलोक जैन पर इतने गहरे पैठ कर लिखा है कि ईर्ष्या होने लगती है कि काश ! मैं ऐसा इस जन्म में लिख पाता ! सच में ममता कालिया ने मुझे बेशकीमती उपहार दे दिया जो नोएडा में मिले सम्मान से पहले ही सम्मान से कम नहीं ! कोई इतनी कड़वी सच्चाई नहीं लिख सकता कि कुमार विकल ने टी हाउस के बाहर रवीन्द्र कालिया को थप्पड़ मार दिया क्योंकि उन्हें यह शक था कि नौ साल छोटी पत्नी उनकी शादी को लेकर लिखी गयी है और वे लुधियाना से गुस्सा निकालने दिल्ली के टी हाउस तक पहुंच गये ! इसी तरह मोहन राकेश पर चाकू से हमले का जिक्र भी है । रवीन्द्र कालिया मोहन राकेश के जालंधर के डी ए वी काॅलेज में छात्र भी रहे थे और हिसार के दयानंद काॅलेज में हिंदी प्राध्यापक भी रहे थे । कमलेश्वर जिस रिक्शेवाले को इलाहाबाद में रवीन्द्र कालिया के घर के बाहर खड़ा रहने को बोलकर आये थे, वह राशन‌ और दवाइयों समेत भाग निकला ! कैसे कमलेश्वर ने नयी कहानियां पत्रिका में नयी पीढ़ी को खड़ा किया और कैसे इलाहाबाद ने धर्मवीर भारती, कमलेश्वर और रवीन्द्र कालिया को कितनी ऊंचाइयों तक स्पूतनिक की तरह उड़ान दी, ऊंचाइयां दीं ! कैसे खुशवंत सिंह जितने ऊपर से अव्यवस्थित दिखते हैं, वैसे वे हैं नहीं !

कितना खुलकर कहते हैं कि अपनी प्रेमिकाओं को याद कर रहा हूं। ऐसे अनेक प्यारे संस्करणों के लिए यह पुस्तक बार बार पढ़ी जा सकती है! ममता कालिया जी ! इस अनमोल उपहार के लिए मेरे पास कहने को शब्द नहीं !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-११ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-११ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हम्पी को कभी ‘मंदिरों का नगर’ (City of Temple) कहा जाता था, आज इसे ‘खंडहरों का शहर’ (City of Ruins) कहा जाता है। इसे 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Sites) घोषित किया गया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची  में शामिल इस स्थान को देखकर इसके अतीत के वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है।

भूगोल और इतिहास के गली-कूचों से होते हुए हम अब हम्पी की उस जगह पहुँच रहे हैं, जहाँ कभी रोमन साम्राज्य को टक्कर देते विजयनगर साम्राज्य की राजधानी के खंडहर एक लाख से अधिक मनुष्यों की चीत्कार के गवाह बने उस दुर्दांत कहानी को कहते खड़े हैं, जो क़हर इन पर 1565 में जनवरी से मई  तक आततायियों ने यहाँ बरपाया था। एडवर्ड गिब्बन ने  “राइज़ एंड फ़ाल ऑफ़ रोमन एम्पायर” लिखकर उसे इतिहास में अमर कर दिया। पता नहीं भारतीय इतिहासकार “राइज़ एंड फ़ाल ऑफ़ विजयनगरम” क्यों नहीं लिखते। जो राष्ट्र अपना इतिहास भुला देते हैं या झुठलाते हैं, वो उसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं।

एक इतालवी व्यापारी और यात्री निकोलो डी कोंटी ने हम्पी का दौरा किया था। उन्होंने अपने संस्मरणों में शहर की अनुमानित परिधि 97 किमी बताई थी, और लिखा था कि नगर ने कृषि और बस्तियों को अपने किलेबंदी में घेरे में लिया था। 1442 में, फारस से आए अब्दुल रज्जाक ने इसे किलों की सात परतों वाला एक शहर बताया, जिसमें बाहरी चार परतें कृषि, शिल्प और निवास के लिए थीं, भीतरी तीसरी से सातवीं परतें दुकानों और बाज़ारों से बहुत भरी हुई थीं।

1520 में, एक पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने व्यापार दल के साथ विजयनगर का दौरा किया। उन्होंने अपना संस्मरण ‘क्रोनिका डॉस रीस डी बिसनागा’ के रूप में लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि विजयनगर “रोम जितना बड़ा, और देखने में बहुत सुंदर … दुनिया में सबसे अच्छा दिखने वाला शहर है। पेस के अनुसार, “इसके भीतर कई उपवन हैं, घरों के बगीचों में, पानी की कई नदियाँ हैं जो इसके बीच में बहती हैं, और कुछ स्थानों पर झीलें हैं…”।

1565 में विजयनगर साम्राज्य की हार और पतन के कुछ दशकों बाद, एक इतालवी व्यापारी और यात्री, सेसारे फेडेरिसी ने दौरा किया। सिनोपोली, जोहान्सन और मॉरिसन के अनुसार, फेडेरिसी ने इसे एक बहुत ही अलग शहर के रूप में वर्णित किया। उन्होंने लिखा, “बेज़ेनेगर (हम्पी-विजयनगर) शहर पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है, घर अभी भी खड़े हैं, लेकिन खाली हैं, और जैसा कि बताया गया है, उनमें टाइग्रेस और अन्य जंगली जानवरों के अलावा कुछ भी नहीं है”।

इतिहासकार विल ड्यूरैंट ने अपनी ‘आवर ओरिएंटल हेरिटेज: द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन’ में विजयनगर की कहानी का वर्णन किया है और इसकी विजय और विनाश को एक हतोत्साहित करने वाली कहानी कहा है। वह लिखते हैं, “इसकी स्पष्ट नैतिकता यह है कि सभ्यता एक अनिश्चित चीज़ है, जिसकी स्वतंत्रता, संस्कृति और शांति का नाजुक परिसर” किसी भी समय युद्ध और क्रूर हिंसा द्वारा उखाड़ फेंका जा सकता है।

हम्पी खंडहर ग्रेनाइट के पत्थरों से पटे पहाड़ी इलाके में स्थित है। यह पत्थरों के पहाड़ों की गोद में सांस लेता खंडहर है। दिन में तो यहाँ पर्यटकों की भीड़ से खुशनुमा वातावरण दिखता है। लेकिन रात होते ही एक भयावह सन्नाटा पसर जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल हम्पी विजयनगर खंडहरों का एक उपसमूह भर है। लगभग सभी स्मारक विजयनगर शासन के दौरान 1336 और 1565 ई. की कालावधि में बनाए गए थे। इस साइट पर लगभग 1,600 स्मारक हैं। यह 41.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। एक ऑटो आपको बीस रुपयों में बिठाकर तीन-चार किलोमीटर की सैर कराता है। आप बोलते खंडहरों के अवशेष देख सकते हैं।

हम्पी का अर्थ है, कूबड़ जैसा। तुंगभद्रा नदी के घेरे में यह उठा हुआ भाग नंदी के कूबड़ जैसा दिखता है। जिस पर विरूपाक्ष और पम्पा देवी आसीन हैं। हम्पी नाम तुंगभद्रा नदी के प्राचीन नाम पम्पा से विकसित हुआ है। सृष्टि के देवता ब्रह्मा के ‘मन से जन्मी’ बेटी पम्पा विनाश के देवता शिव की एक समर्पित उपासक थी। उसके द्वारा की गई तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया। उसने शिव से विवाह करने का विकल्प चुन उन्हें ही माँग लिया।

दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण की अनेक शैलियाँ इस साम्राज्य ने समेकित  कर विजयनगरीय स्थापत्य कला को एक नया स्वरूप प्रदान किया था।  दक्षिण भारत के विभिन्न सम्प्रदाय तथा भाषाओं के घुलने-मिलने के कारण इस नई प्रकार की मंदिर निर्माण की वास्तुकला को प्रेरणा मिली। स्थानीय कणाश्म पत्थर का प्रयोग करके पहले दक्कन तथा उसके पश्चात् द्रविड़ स्थापत्य शैली में मंदिरों का निर्माण हुआ।

हम्पी पूरी तरह से पकी हुई ईंटों से बना है, और उसमें स्थानीय ग्रेनाइट के साथ चूना मोर्टार भी लगाया गया है। यह माना जाता है कि हम्पी की वास्तुकला इंडो इस्लामिक वास्तुकला से प्रेरित है।  हम्पी की वास्तुकला की कई विशेषताएँ थीं, जो इसे अन्य प्राचीन शहरों से अलग करती थीं। हम्पी हजारों साल पुराना एक प्राचीन और अच्छी तरह से किलाबंद शहर था। भारत में हम्पी के खंडहर दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। हम्पी में कहीं-कहीं वास्तुकला या दीवारों में न तो मोर्टार और न ही सीमेंटिंग एजेंट पाए गए। उनका उद्देश्य उन्हें इंटरलॉकिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ना था।

हम्पी में, कमल और अन्य  वनस्पतियों सहित मूर्तियों और रूपांकनों के साथ विस्तृत बाग और विभिन्न आनंद उद्यान बनाए। शाही परिसर की इमारतों में बहुत भव्य मेहराब, विशाल स्तंभों वाले हॉल और मूर्तियों को रखने के लिए गुंबद थे। यह एक सुंदर और समृद्ध शहर था जिसमें कई मंदिर, खेत और बाजार थे जो पुर्तगाल और फारस के व्यापारियों को आकर्षित करते थे। जो लोग यह कहते नहीं थकते कि भारत में नगरीय सभ्यता का विकास मुगलों/अंग्रेजों के आने के बाद हुआ था, वे  बादशाह अकबर के जन्म के दो सौ पहले आबाद इस करिश्मा को क्या नाम देंगे, जिसका नाम ही विजयनगर था।

अपने खंडहरों में भी हम्पी आकर्षक और सुंदर है। हम्पी का भूभाग उसके खंडहरों की तरह ही रहस्यमय है – यह अलग-अलग आकार के पत्थरों से घिरा हुआ है, जिन पर चढ़कर आप पूरे शहर और उसके आस-पास के इलाकों को देख सकते हैं। मंदिरों और बाज़ारों के साथ शहर का निर्माण जिस तरह पत्थरों से किया गया था, वह आश्चर्यजनक है।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 145 ☆ मुक्तक – ।। थोड़ा-थोड़ा बदलो रोज नाम रोशन हो जाएगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 145 ☆

☆ मुक्तक – ।। थोड़ा-थोड़ा बदलो रोज नाम रोशन हो जाएगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

थोड़ा-थोड़ा रोज बदलो  काम हो जाएगा।

देखना एक दिन रोशन   नाम हो जाएगा।।

कर्म से गुजर कर लिखो  दिल की कलम से।

एक दिन देखते-देखते वह पैगाम हो जाएगा।।

=2=

जो दोगे सम्मान वह  अधिक होकर आएगा।

सबको साथ लेकर चलो इंतजाम हो जाएगा।।

सहयोग सद्भावना होते हैं मूल मंत्र जीवन के।

साथ मिलके करो अभियान सफल हो पाएगा।।

=3=

अनुभव से सीखो आगे आराम हो जाएगा।

मांगों सबके लिए दुआ नेक नाम तू पाएगा।।

हटा के घृणा तुम भरो   भाव प्रेम का केवल।

नफरत की डोर कटते ही प्यार एतराम लाएगा।।

=4=

पहले दूसरे को नहीं खुद को बदलना जरूरी है।

जब सब मिलके बदलेंगे तब बात होगी पूरी है।।

परिवार समाज बदले तो राष्ट्र भी बदल जाएगा।

प्रेम निर्मल धारा में बह जाएगी सारी मगरूरी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 211 ☆ कविता – वीण वादिनी शारदे… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – वीण वादिनी शारदे…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 211 ☆ कविता – वीण वादिनी शारदे ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे,

डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !

*

हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,

स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना

*

आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,

चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !

*

सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना

बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना

*

रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ” ध्वंस है

बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे

*

ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई

बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई 

उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में

*

भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे

चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में

*

जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में

थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में

*

हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ गीता जशी समजली तशी… – गीता शास्त्र – भाग – ६ ☆ सौ शालिनी जोशी ☆

सौ शालिनी जोशी

☆ गीता जशी समजली तशी… गीता शास्त्र  – भाग – ६ ☆ सौ शालिनी जोशी

गीताशास्त्र

गीतेचा प्रत्येक शब्द जेवढा त्या काही आचरणी होता, तेवढा आजही आहे. कारण काळ बदलला तरी माणसाचा स्वभाव बदलत नाही. अर्जुनाला निमित्त्य करून भगवंतांना चिंता आहे सर्व मानव जातीच्या कल्याणाची. त्या दृष्टीने आवश्यक सर्व शास्त्रांचा समावेश गीतेत आहे. म्हणून गीतेला ‘सर्व शास्त्रांचे माहेर’ म्हणतात. जीवनाला प्रेरणा व योग्य मार्ग देणारा प्रत्येक विचार म्हणजे शास्त्र.

गीता हे नीती प्रधान भक्तीशास्त्र, आचरण शिकवणारे कर्मशास्त्र, ज्ञानाचा अनुभव देणारे अध्यात्मशास्त्र, संयम शिकवणारे योगशास्त्र आहे. अशा प्रकारे कर्म, ज्ञान, योग आणि भक्ती यांचा समन्वय येथे आहे. सर्व शास्त्रे येथे एकोप्याने नांदतात. कोणाची निंदा नाही. कोणाला कमी लेखले नाही. अधिकाराप्रमाणे आचरण्याचा उपदेश आहे.

गीता हे खचलेल्या मनाला उभारी देणारे आणि मन बुद्धीचा समतोल साधणारं मानसशास्त्र आहे. योग्य व सात्विक आहार यांचे महत्त्व आणि फायदे सांगणारे आहार शास्त्र आहे. त्याचबरोबर राजस व तामस आहाराचे तोटेही सांगितले आहेत. युक्त आहार, विहार, झोप आणि जागृती यांचे फायदे सांगणार आचरणशास्त्र आहे. त्याचबरोबर अति खाणाऱ्याला किंवा अजिबात न खाणाऱ्याला, अती झोपणाऱ्याला किंवा अजिबात न झोपणाऱ्याला योग साध्य होत नाही असेही गीता सांगते म्हणजे कसे असावे आणि कसे असू नये हे दोन्ही सांगणारे तारतम्य शास्त्र आहे.

ज्येष्ठांना त्यांच्या जबाबदारीची आणि समाजातील सर्व घटकांना (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र )त्यांची कर्तव्य सांगणारे, सर्व जातींना व स्त्रियांना समान लेखणारं समाजशास्त्र आहे. समाजातील उच्चपदस्थ जे जे आचरण करतात त्याला प्रमाण मानून इतरलोका आचरण करतात हा समाजशास्त्राचा महान सिद्धांत येथे सांगितला आहे.

गीता हे पंचभुतात्मक सृष्टीचे ज्ञान करून देणारे विज्ञान शास्त्र आहे. यालाच गीता अपरा प्रकृती म्हणते. भूमि, आप, अनिल, वायु, आकाश, मन, बुद्धी, अहंकार ही तिची आठ अंगे. यातच सगळी भौतिकशास्त्रे सामावली आहेत. ‘उतिष्ठ, युद्धस्व’ असे सांगून प्रसंगाला धैर्याने तोंड देण्यास सांगणार हे विवेक शास्त्र आहे. स्वधर्माची व स्व कर्तव्याची जाणीव करून देऊन त्याप्रमाणे वागण्याची प्रेरणा गीता देते. कामक्रोधादि पतनापर्यंत नेणाऱ्या अंत: शत्रूंचा निषेध गीता करते. याशिवाय अक्षय सुखाची प्राप्ती करून देणारे हे आत्मशास्त्र आहे.

‘उद्धरेदात्मनात्मानं ‘ हा स्वावलंबनाचा मंत्र गीता देते. यज्ञ, ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धी, सुख प्रत्येकाचे गुणाप्रमाणे भेद सांगून सात्विकतेला महत्त्व देते. फलासक्तीचा त्याग, संयम, विवेक यांनी शुद्ध क्रिया गीतेला अपेक्षित आहेत. म्हणून ग्राह्य आणि अग्राह्य ( दैवी आणि आसुरी गुण) गीता समोर ठेवते. अग्राह्य गोष्टींचा त्याग का करावा हे पटवून देते. गीतेला सक्ती मान्य नाही. अंधश्रद्धेला वाव नाही. ‘ यथेच्छसि तथा कुरु ‘असे स्वातंत्र्य गीता देते. गीतेत कोणतेही कर्मकांड नाही. स्वधर्म हाच यज्ञ आणि स्वकर्म हाच धर्म म्हणून स्वकर्मानेच ईश्वराची पूजा. अशा प्रकारे गीता आहे जीवनाचे एक रहस्य पूर्ण शास्त्र आहे.

गीतेचा अभ्यास तरुणांनी अवश्य करावा. त्यांच्यासाठी ज्ञान मिळवण्याचे ते तीन मार्ग गीता सांगते. ‘तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवयाl’ ( ४/३४). ज्ञानी गुरूला साष्टांग नमस्कार (नम्रता) प्रश्न विचारणे (शंका निरसन) आणि सेवा (अहंकार गलीत) केल्याने त्यांचे कडून ज्ञान प्राप्ती होते. अशा प्रकारे तरुणांपासून सर्वांना मार्ग दाखवणारे शास्त्र. म्हणून गीता महात्म्यातील पहिला श्लोक सांगतो

गीताशास्त्रमिदं पुण्यं य: पठेत् प्रयत: पुमान्l

विष्णो: पदमवाप्नोति भयशोकादिवर्जित:ll

गीता हे पुण्यमय शास्त्र आहे. त्याच्या चिंतनाने भयशोकादि उर्मीतून मुक्त होऊन माणसाला विष्णूपदाची प्राप्ती होते. त्यानुसार आचरण करणारा पूर्ण सुखाला प्राप्त होतो. अशाप्रकारे संसार मोक्षदृष्ट्या कसा केला पाहिजे व मनुष्याचे संसारातील खरे कर्तव्य काय हे तात्विक दृष्ट्या उपदेश करणारे गीता शास्त्र आहे. केवळ म्हातारपणी वाचण्यासाठी किंवा संसार त्याग करण्यासाठी नाही. तरुण वयात अभ्यासाला केलेली सुरुवात आयुष्यभर दीपस्तंभ होते.

©  सौ. शालिनी जोशी

संपर्क – फ्लेट न .3 .राधाप्रिया  टेरेसेस, समर्थपथ, प्रतिज्ञा मंगल कार्यालयाजवळ, कर्वेनगर, पुणे, 411052.

मोबाईल नं.—9850909383

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ “देव आणि स्टीफन हॉकिंग…” ☆ श्री जगदीश काबरे ☆

श्री जगदीश काबरे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ “देव आणि स्टीफन हॉकिंग…☆ श्री जगदीश काबरे ☆

स्टीफन हॉकिंग हा जगातला सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक म्हणून मान्यता पावलेला, आइन्स्टाइनच्या पंक्तीला बसू शकेल असा माणूस. त्यात अगदी विशीतच मोटर न्यूरॉन डिसीज झाल्यामुळे व्हीलचेअरला खिळण्याची पाळी त्याच्यावर आली. या रोगात एकेका अवयवावरचा मेंदूचा ताबा नष्ट होत जातो. शेवटची चाळीसेक वर्ष त्याच्या मानेखालच्या सर्व अवयवांवरचा ताबा गेलेल्या आणि बोलताही येत नसलेल्या अवस्थेत तो जगला. म्हणजे, चालत्याबोलत्या सामान्य मनुष्यापासून ते जवळपास निव्वळ विचार करणारा मेंदू अशा शारीर ते बौद्धिक अवस्थेपर्यंत त्याचा प्रवास झाला.

अशा स्थित्यंतरातही त्याने देवाची करुणा न भाकता आपल्या वैचारिक वैभवाने विश्वरचनाशास्त्रातली, कृष्णविवरांची, काल-अवकाशाची कोडी सोडवली. त्याच्या अनेक नव्या उत्तरांनी नवीनच प्रश्नांची दालनं उघडली.

हॉकिंग हा स्वत: एक विश्वरचनाशास्त्रज्ञ (कॉस्मोलॉजिस्ट) होता. म्हणजे विश्वाची उत्पत्ती कशी झाली, त्याची रचना काय आहे, या प्रश्नांचा अभ्यास करणारा. या अभ्यासासाठी प्रथम जुन्या ताऱ्यांचा आणि तारकासमूहांचा अभ्यास करावा लागतो. अवकाशात जितकं खोलवर, दूरवर पाहावं तितके जुने तारे दिसतात. असं का होतं? याचं कारण म्हणजे प्रकाशाला प्रवास करायला वेळ लागतो. आपल्या पृथ्वीत आणि सूर्यात जे अंतर आहे, ते कापायला सुमारे आठ मिनिटांचा वेळ लागतो. त्यामुळे आपल्याला सूर्य दिसतो तो आठ मिनिटांपूर्वीचा. सगळ्यात जवळचा तारा सुमारे साडेचार प्रकाशवर्ष दूर आहे. म्हणजे त्याचा आपल्यापर्यंत पोहोचलेला प्रकाशकिरण हा तिथून साडेचार वर्षांपूर्वी निघालेला असतो. अवकाशाची व्याप्ती प्रचंड असल्यामुळे अब्जावधी प्रकाशवर्ष दूरचे तारे दिसतात. त्यामुळे जेवढे दूरचे तेवढे जुने! 

१९२९ मध्ये या अभ्यासातून हबल नावाच्या शास्त्रज्ञाला हे लक्षात आलं, की सर्वच तारकासमूह एकमेकांपासून दूर जात आहेत. एखाद्या फुग्यावर ठिपके काढले आणि तो फुगवला तर सगळेच ठिपके आपल्या शेजारच्या ठिपक्यापासून दूर जाताना दिसतात, अगदी तसेच. जर तारकासमूह सतत दूर जात असतील, तर याचा अर्थ काही काळापूर्वी ते जवळजवळ होते आणि अजून पुरेसं मागे गेले, तर ते सगळेच एका बिंदूत एकवटलेले होते, असा निष्कर्ष निघतो. याचा अर्थ आपलं विश्व अनादी अनंत नसून एका क्षणी सुरू झालं! एका बिंदूपासून उगम होऊन गेल्या १३. ८ अब्ज वर्षांत इतकं महाकाय, प्रचंड झालं. याला ‘महास्फोटाचा सिद्धांत’ (बिग बँग थिअरी) म्हणतात. हे चित्र सामान्य माणसाचं डोकं चक्रावून टाकतं. कारण आपल्या डोळ्यांसमोर विश्वाची अनादी आणि अनंत अशी प्रतिमा ठसलेली असते.

विश्व निर्माण होण्याचा एक क्षण, एक बिंदू असेल तर साहजिकच प्रश्न पडतात- हे कोणी केलं? याआधी तिथे काय होतं? आपण इथे कसे आलो? यापुढे काय? हे विश्व असंच फुगत जाणार, की काही काळाने आकुंचन पावायला सुरुवात होत पुन्हा एका बिंदूत कोलमडणार? या प्रश्नांची हॉकिंगने उत्तरं देण्याचा प्रयत्न केलेला आहे.

सगळ्यात पहिला प्रश्न म्हणजे या विश्वाचा निर्माता देव आहे का? या प्रश्नाला इतरही उपप्रश्न चिकटलेले असतात. म्हणजे देवाची व्याख्या काय? देवाने हे विश्व निर्माण का केलं? देव मनुष्याच्या दैनंदिन जीवनात दखल घेतो का?… वगैरे वगैरे. या प्रश्नाचं उत्तर देताना हॉकिंग म्हणतो, ‘देव आहे की नाही, यावर मला काही भाष्य करायचं नाही. देव असलाच तर त्याने नक्की काय घडवलं, याबद्दल एक संदर्भचौकट मांडायची आहे. ’ यापुढे देवाबाबत हॉकिंगचं म्हणणं आहे की, ‘हे विश्व विशिष्ट नियमांनुसार चालतं. हे नियम अचल आहेत. ते कुठच्याही यंत्रणेमुळे बदलत नाहीत. कारण जे बदलू शकतात ते विज्ञानाचे मूलभूत नियम नसतात. त्यामुळे या अचल आणि सर्वासाठी सारख्या असलेल्या भौतिकीच्या नियमांनाच देव म्हणायचे असेल तर म्हणता येईल. ’ वर दिलेला ‘बिग बँग’चा संदर्भ देऊन हॉकिंग म्हणतो, ‘जेव्हा आपलं विश्व सुरू झालं तेव्हा अवकाश आणि काळही सुरू झाला. त्याआधी काही नव्हतंच. त्यामुळे शून्य काळाच्या आधी कोणीतरी निर्माता असणंही शक्य नाही. ’ हे स्पष्ट करण्यासाठी हॉकिंग उदाहरण देतो ते दक्षिण ध्रुवाचं. ‘तुम्ही दक्षिण ध्रुवावर पोहोचलात तर तिथून अजून दक्षिणेला काय असतं? ध्रुवाच्या व्याख्येपोटीच तिथून दिशा सुरू होतात. तिथून दक्षिणेला काही नसतं. तसंच ‘बिग बँगच्या क्षणाआधीचा क्षण’ असं काही नसतंच. ’ 

यापुढचा प्रश्न येतो तो म्हणजे शून्यातून विश्व कसं निर्माण झालं? हॉकिंग म्हणतो की, विश्व बनवण्यासाठी आपल्याला तीन गोष्टी लागतात. एक म्हणजे वस्तुमान- तारे आणि ग्रह बनवण्यासाठी; दुसरं म्हणजे ऊर्जा- सूर्यामध्ये ही भरपूर भरलेली हवी आणि तिसरं म्हणजे अवकाश- हे सगळे नांदण्यासाठी. आइन्स्टाइनने आपल्या सुप्रसिद्ध E = mc² समीकरणानुसार ऊर्जा आणि वस्तुमान एकच आहेत हे दाखवून दिलेलं आहे. याचा अर्थ, भरपूर ऊर्जा आणि अवकाश असेल तर आपल्याला नवीन सृष्टी बनवता येते. हे शून्यातून कसं निर्माण होतं? उत्तर सोपं आहे- नवीन अवकाश निर्माण करताना ऊर्जा मुक्त होते! अवकाशात धन आणि ऋण प्रकारच्या ऊर्जा असतात. (लक्षात ठेवा, सकारात्मक आणि नकारात्मक ऊर्जा नसतात. ) त्यामुळे अवकाश आणि ऊर्जा दोन्ही मोठय़ा प्रमाणावर तयार झाले तरी त्यांची गोळाबेरीज शून्यच होते. एखादा मातीचा ढीग तयार करायचा असेल, तर नुसता ढीग तयार करण्यासाठी माती कुठून आणायची, हा प्रश्न उद्भवतो. मात्र, एक ढीग आणि एक तेवढाच खड्डा यासाठी मातीची गरज पडत नाही.

हे समजण्यासाठी ब्लॅकहोलच्या बाबतीतील माहिती आपण पाहूयात. समजा एक घड्याळ हे ब्लॅकहोलच्या जवळ जवळ नेत गेलो तर काय होईल? जसे जसे हे घड्याळ ब्लॅकहोलच्या जवळ जाईल तसे तसे त्याचा वेग हा कमी कमी होत जाईल आणि एक वेळ अशी येईल कि ज्या वेळी ते घड्याळ ब्लॅकहोल मध्ये पूर्ण आत गेलेले असेल आणि ते पूर्ण पणे थांबलेले असेल. ब्लॅकहोलमध्ये असं का घडतं, याचा ज्या वेळी अभ्यास करण्यात आला त्यावेळी शास्त्रज्ञाच्या लक्षांत आले की, ब्लॅकहोलमध्ये गुरुत्वाकर्षण शक्ती ही अनंत (Infinite) असते आणि त्यामुळे ती त्या घड्याळाला थांबवते, म्हणजेच वेळेला पण नष्ट करते. त्या ब्लॅकहोल मधून प्रकाशकिरणेही बाहेर जाऊ शकत नाहीत. कारण आत गेलेले प्रकाशकिरण हे ब्लॅकहोलच्या प्रचंड गुरुत्वाकर्षणामुळे बाहेर निघू शकत नाहीत. म्हणजेच प्रकाशकिरणे ब्लॅकहोलमध्ये गेल्यावर नष्ट होतात. कारण ब्लॅकहोलमध्ये गुरुत्वाकर्षण शक्ती अनंत असते. अगदी असेच Big Bang च्या वेळेस घडले. त्यामुळे जे लोक मला अश्या प्रकारच्या प्रश्न विचारतात की, ‘खरंच का हे विश्व देवाने बनविले आहे?’ तेव्हा या प्रश्नाचे उत्तर देताना मी त्यांना सांगतो की, ‘ह्या प्रश्नामध्येच काहीही अर्थ नाही. हे विश्व देवाने बनविलेले नाही. कारण वेळ, काळ, वस्तुमान ह्या सगळ्या गोष्टी ज्यावेळी निर्माण झाल्या त्याच क्षणी विश्वाची उप्पती झाली. म्हणूनच आपण म्हणतो की “We Got Everything from nothing” 

‘बिग बँग’च्या वेळी विश्व जितकं लहान होतं तितक्या लहान पातळीवर अभ्यास करायचा झाला, तर आइन्स्टाइनच्या सामान्य सापेक्षतावादाची सांगड पुंजभौतिकीशी घालावी लागते. शून्यमय अवकाशात एकवटणाऱ्या वस्तुमानाचा आणि तिथे घडणाऱ्या घटनांचा अभ्यास करताना ‘सिंग्युलॅरिटी’ नावाची संकल्पना विचारात घ्यावी लागते. याचं कारण तिथली घनता अमर्याद वाढत जाते. अशा अनंताशी खेळत तिथली गणितं सोडवावी लागतात. हॉकिंगने कृष्णविवरांचा सखोल अभ्यास केला होता. कृष्णविवरांच्या केंद्रातही महाप्रचंड वस्तुमान एकवटलेलं असल्यामुळे तिथेही सिंग्युलॅरिटी तयार होते. म्हणूनच तो म्हणतो, विश्वाची उत्पत्ती- काळ, वस्तुमान, ऊर्जा आणि अवकाश या सगळ्यांचीच सुरुवात ‘बिग बँग’ने झाली. त्याचा निर्माता देव नक्कीच नाही… आहेत ते भौतिकशास्त्राचे अचल नियम. विश्वाच्या निर्मितीचे रहस्य समजून घेण्यासाठी ईश्वराची आवश्यकता नाही. महास्फोट हा केवळ भौतिक विज्ञानाच्या नियमांचा परिणाम आहे. सापेक्षतावाद आणि पुंजवाद यांच्या आधारे विश्वाची निर्मिती कशी शून्यातून होऊ शकते हे समजून घेता येते.

डार्विनच्या सिद्धांतामुळे ईश्वराला जीवशास्त्राच्या परिघाबाहेर करण्यात आले. ईश्वर नाही असे जरी कोणी सिद्ध करू शकले नाही तरी विज्ञानामुळे ईश्वर नामक संकल्पना आनावश्यक बनते हेही तितकेच खरे. म्हणूनच विज्ञान हाच ज्ञान मिळवण्याचा एकमेव मार्ग आहे आणि शेवटी त्या मार्गावरूनच आपल्याला विश्वाच्या नियमांचे परिपूर्ण ज्ञान मिळू शकेल, असे स्टीफन हॉकिंग यांना ठामपणे वाटत होते.

©  जगदीश काबरे

मो ९९२०१९७६८०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #265 ☆ मनन, अनुसरण और अनुभव…… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख मनन, अनुसरण और अनुभव…। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 265 ☆

☆ मनन, अनुसरण और अनुभव… ☆

ज्ञान तीन प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है– प्रथम मनन, जो सबसे श्रेष्ठ है, द्वितीय अनुसरण सबसे आसान है और तृतीय अनुभव जो कटु व कठिन है– सफलता प्राप्ति के मापदंड हैं। इंसान संसार में जो कुछ देखता-सुनता है, अक्सर उस पर चिंतन-मनन करता है। उसकी उपयोगिता- अनुपयोगिता, औचित्य-अनौचित्य, ठीक-ग़लत लाभ-हानि आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में सोच-विचार करके ही निर्णय लेता है– ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान कहलाता है। यह सर्वश्रेष्ठ माध्यम है तथा किसी ग़लती की संभावना नहीं रहती। दूसरा माध्यम है अनुसरण–यह अत्यंत सुविधाजनक है। इंसान महान् विद्वत्तजनों का अनुसरण कर सकता है। इसमें किसी प्रकार की ग़लती की संभावना नहीं रहती तथा इसे अभ्यास की संज्ञा भी दी जाती है। तृतीय अनुभव जो एक कटु मार्ग है, जिसका प्रयोग वे लोग करते हैं, जो दूसरों पर विश्वास नहीं करते तथा अपने अनुभव से ही सीख लेते हैं। वे उससे होने वाले परिणामों से अवगत नहीं होते। वे यह जानते हैं कि इससे उनका लाभ होने वाला नहीं, परंतु वे उसका अनुभव करके ही साँस लेते हैं। ऐसे लोगों को हानि उठानी पड़ती है तथा आपदाओं का सामना करना पड़ता है।

विद्या रूपी धन बाँटने से बढ़ता है। परंतु इसके लिए ग्रहणशीलता का मादा होना चाहिए तथा उसमें इच्छा भाव होना अपेक्षित है। मानव की इच्छा-शक्ति यदि प्रबल होती है, तभी वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है तथा जो वह सीखना चाहता है, उसमें और अधिक जानने की प्रबल इच्छा जाग्रत होती है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति महान् आविष्कारक होते हैं। वे निरंतर प्रयासरत रहते हैं तथा पीछे मुड़कर कभी नहीं देखते। ऐसे लोगों का अनुसरण करने वाले ही ठीक राह पर चलते हैं; कभी पथ-विचलित नहीं होते। सो! अनुसरण सुगम मार्ग है। तीसरी श्रेणी के लोग कहलाते मूर्ख कहलाते हैं, जो दूसरों की सुनते नहीं और उनमें सोचने-विचारने की शक्ति होती नहीं होती। वे अहंवादी केवल स्वयं पर विश्वास करते हैं तथा सब कुछ जानते हुए भी वे अनुभव करते हैं। जैसे आग में कूदने पर जलना अवश्यम्भावी है, परंतु फिर भी वे ऐसा कर गुज़रते हैं।

मानव में इन चार गुणों का होना आवश्यक है– मुस्कुराना, प्रशंसा करना, सहयोग करना व क्षमा करना। यह एक तरह के धागे होते हैं, जो उलझ कर भी क़रीब आ जाते हैं। दूसरी तरफ रिश्ते हैं जो ज़रा सा उलझते ही टूट जाते हैं। जो व्यक्ति जीवन में सदा प्रसन्न रहता है तथा दूसरों की प्रशंसा कर उन्हें  प्रसन्न करने का प्रयास करता है, सबके हृदय के क़रीब होता है। इतना ही नहीं, जो दूसरों का सहयोग करके प्रसन्न होता है, क्षमाशील कहलाता है। उसकी हर जगह सराहना होती है. वास्तव में यह उन धागों के समान है, जो उलझ कर भी क़रीब आ जाते हैं और रिश्ते ज़रा से उलझते ही टूट जाते हैं। वैसे रिश्तों की अहमियत आजकल कहीं भी रही नहीं। वे तो दरक़ कर टूट जाते हैं काँच की मानिंद।

अविश्वास आजकल सब रिश्तों पर हावी है, जिसके कारण उसमें स्थायित्व होता ही नहीं। मानव आजकल अपने दु:ख से दु:खी नहीं रहता, दूसरों को सुखी देखकर अधिक दु:खी व परेशान रहता है, क्योंकि उसमें ईर्ष्या भाव होता है। वह निरंतर यह सोचता रहता है कि जो दूसरों के पास है, उसे क्यों नहीं मिला। सो! वह अकारण हरपल दुविधा में रहता है तथा अपने भाग्य को कोसता रहता है, जबकि वह इस तथ्य से अवगत होता है कि इंसान को समय से पहले व भाग्य से अधिक कुछ भी नहीं मिल सकता। इसलिए  उसे सदैव समीक्षा करनी चाहिए तथा निरंतर कर्मशील रहना कारग़र है, क्योंकि जो उसके भाग्य में है, अवश्य मिलकर रहेगा। सो!

मानव को प्रभु  पर विश्वास करना चाहिए। ‘प्रभु सिमरन कर ले बंदे! यही तेरे साथ जाएगा।’ ‘कलयुग केवल नाम आधारा’ अर्थात् कलयुग में केवल नाम स्मरण ही प्रभु-प्राप्ति का एकमात्र सुगम उपाय है। अंतकाल यही उसके साथ जाता है तथा शेष यहीं धरा रह जाता है।

मौन वाणी की सर्वश्रेष्ठ विशेषता है और सर्वाधिक शक्तिशाली है। इसमें नौ गुण निहित रहते हैं। इसलिए मानव को यह शिक्षा दी जाती  है कि उसे तभी मुँह खोलना चाहिए, जब उसके शब्द मौन से बेहतर हों अन्यथा उसे मौन को सर्वश्रेष्ठ आभूषण समझ धारण करना चाहिए। सत्य व प्रिय वचन वचन बोलना ही वाणी का सर्वोत्तम  गुण हैं और धर्मगत अथवा कटु व व्यंग्य वचनों का प्रयोग भी हानि पहुंचा सकता है। इसलिए हमें विवाद में नहीं, संवाद में विश्वास करना चाहिए, क्योंकि ‘अजीब चलन है ज़माने का/ दीवारों में आएं दरारें तो/ दीवारें गिर जाती हैं। पर रिश्तों आए दरार तो/ दीवारें खड़ी हो जाती हैं।’ इसलिए हमें दरारों को दीवारों का रूप धारण करने से रोकना चाहिए। संवाद के माधुर्य के लिए संबोधन की मधुरता अनिवार्य है। शब्दों का महत्व संबंधों को जीवित रखने की संजीवनी है। सो! संबंध तभी बने रहेंगे, यदि संबोधन में माधुर्य होगा, क्योंकि प्रेम वह चाबी है, जिससे हर ताला खुल सकता है।

‘बहुत से रिश्ते तो इसलिए खत्म हो जाते हैं, क्योंकि एक सही बोल नहीं पाता और दूसरा सही समझ नहीं पाता।’ इसके लिए जहाँ वाणी माधुर्य की आवश्यकता होती है, वहीं उसे सही समझने का गुण भी आवश्यक है। यदि हमारी सोच नकारात्मक है तो हमें ठीक बात भी ग़लत लगना स्वाभाविक है। इसलिए रिश्तों में गर्माहट का होना आवश्यक है और हमें उसे दर्शाना भी चाहिए। जो भी हमें मिला है, उसे खुशी से स्वीकारना चाहिए। मुझे स्मरण हो रहे हैं भगवान कृष्ण के यह शब्द ‘मैं विधाता होकर भी विधि के विधान को नहीं टाल सका। मेरी चाह राधा थी और चाहती मुझे मीरा थी, परंतु मैं रुक्मणी का होकर रह गया। यह विधि का विधान है।’ सो!  होइहि वही जो राम रचि राखा।

रिश्ते ऐसे बनाओ, जिनमें शब्द कम, समझ ज़्यादा हो। जो इंसान आपकी भावनाओं को बिना बोले  ही समझ जाए, वही सर्वश्रेष्ठ होता है। सो! कठिन समय में जब मन से धीरे से आवाज़ आती है कि सब अच्छा ही होगा। वह आवाज़ परमात्मा की होती है। इसलिए मानव को मनन करना चाहिए तथा संतजनों के श्रेष्ठ वचनों का अनुसरण करना चाहिए। सत्य में विश्वास कर आगे बढ़ना चाहिए तथा उनके अनुभव से सीखना अर्थात् अनुसरण करना सर्वोत्तम है। व्यर्थ व अकारण अनुभव करने से सदैव मानव को हानि होती है।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #38 – गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतटूट गए अनुबंध सभी हैं

? रचना संसार # 38 – गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

तन खंडित मन खंडित अब तो,

चले आँधियाँ दीप बुझाएँ,

पीड़ा अंतस् की है भारी,

कैसे अब मन को समझाएँ।।

छलक रहे नैनों से सागर,

नही मिला अपनों का संबल।

गहन तिमिर,उजियार नही है,

घोर उदासी के हैं बादल।।

अपने सभी पराए लगते,

व्यथा कथा हम किसे सुनाएँ।

 *

टूट गए अनुबंध सभी हैं,

नियति चक्र से जीवन हारे।

अभिशापित है मदिर-प्रीति भी,

भटक रहे बन के बंजारे।।

तूफानों में फँसी नाव है,

अनुगामी बस हैं विपदाएँ।

संत्रासों में जीवन बीते,

नही हाथ में सुख की रेखा।

चलते हम हैं अंगारों पर,

कैसा विधि का है प्रभु लेखा।।

मरुथल-सा जीवन है सारा,

धूमिल होती सब आशाएँ।

 *

घोर निराशा है जीवन में,

प्यासा पनघट सूखी डाली।

जाल बिछा है आघातों का,

पड़ी ग्रहण की छाया काली।।

बोझिल होते स्वर सरगम के,

मिली धूल में अभिलाषाएँ।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #265 ☆ वतन के गीत ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना वतन के गीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 265 – साहित्य निकुंज ☆

☆ वतन के गीत ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

(मुक्तक गीत)

जो तिरंगे की छांव को पाता गया

देश सेवा के रंग में रंगता गया।

वह लहू बनके बहता रहा प्यार में

मातृभूमि की मिट्टी में रमता  गया।

*

जिसकी सांसों में वीरता बसती रही  

हौसले की मशालें  जलाता गया

उसकी गाथा के गीत समय सुन रहा

वो वतन के लिए  मुस्कुराता गया।

*

जो तिरंगे के चरणों में लिपटा रहा

उसका जीवन सुधरता चला ही गया

मातृभूमि की मिटटी से रिश्ता अमर

देश सेवा का दीपक जलाता गया .

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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