(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 82 ☆ देश-परदेश – आज से चालीस पार ☆ श्री राकेश कुमार ☆
मौसम के थर्मामीटर ने बता दिया है, कि अब देश के अधिकतर हिस्सों में पारा चालीस डिग्री पार कर जाएगा। विश्व में प्रगति हुई, तो मौसम विज्ञान में भी कुछ नए आयाम जुड़ गए हैं। मोबाइल हर घंटे का तापक्रम, वायु की गति आदि की जानकारी उपलब्ध करवा रहा हैं। कल एक युवा से बात हुई तो उसने कहा तापमान मायने नहीं रखता है, “फील लाइक” कितना है, ये अधिक महत्वपूर्ण है।
हमने भी अपने मोबाइल पर फील लाइक की जानकारी प्राप्त कर अपने आप को युवा फील करने लगे हैं। पुराने समय के लोग कहते थे, चित्त शांत रहे तो गर्मी/ सर्दी का प्रभाव नहीं होता हैं।
आज जब व्हाट्स ऐप पर ऊंगली चला रहे हैं, तो बहुत अधिक गर्म लग रहा है, इसलिए हाथ में दस्ताने (ग्लोव्स) पहन कर लिख पा रहे हैं। विगत कुछ समय से चुनाव की आग हमारे अधिकतर समूहों को भी प्रभावित कर रही हैं। मोहल्ले के समूह में तो एडमिन ने राजनीति और धर्म से संबंधित मैसेज भेजने पर प्रतिबंध की मुनादी तक करवा दी थी। अंत में तीन सदस्यों को जो विपक्ष, सत्ता और एक स्थानीय दल से संबंधित मैसेज शेयर करते रहते थे, को निष्कासित तक कर दिया हैं। अब उन सदस्यों की पत्नियां जोकि समूह की सदस्य भी है, ने राजनीति के तीर छोड़ने आरंभ कर दिए है।
किसी भी समूह का एडमिन एक नीति निर्धारित कर समूह का संचालन करता है, फिर उसकी बात को मानना सभी सदस्यों के लिए आवश्यक हैं। वर्ना समूह छोड़ देना चाइए।
हमें तो भय लग रहा है, यादि व्हाट्स ऐप पर राजनीति के अंगारे परोसे जायेंगे तो, हमारा मोबाइल कहीं गर्मी से फट ही ना जाय।
आपसी संबंधों को राजनीति के तीर तार तार भी कर रहे हैं। हर व्यक्ति ये मानने लगा है, कि उसके द्वारा प्रेषित मैसेज ही अंतिम सत्य हैं।
राजनीतिक कारणों से मन में पड़ी हुई गांठ हो या दरार कभी ठीक नहीं होती हैं। जीवन के इस अंतिम पड़ाव में नए संबंध बनाए और पुराने संबंधों को भी टूटने से बचाएं।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – मन का केनवास…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 188 – मन का केनवास…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “और शाम घिर आई अब...”)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक
श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है हिंदी – उर्दू के नामचीन वरिष्ठ साहित्यकार – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी”।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
☆ “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
जब हम छोटे थे और राइट टाउन में नरसिंह बिल्डिग में रहते थे तब पैदल-पैदल महाराष्ट्र स्कूल वाले रोड से माडल स्कूल पढ़ने जाते थे रास्ते में सत्कार होटल के बाजू में बने हवेलीनुमा मकान में अक्सर नजर जाती थी,बाद में पता चला था कि ये बिलहरी वाले ऊंट जी की हवेली है। उसी समय की बात है लोरमी बिलासपुर से हमारे चचेरे भाई नारायण पाण्डेय फोटोग्राफी सीखने जबलपुर आए थे और मालवीय चौक पर उपाध्याय जी के फोटो स्टूडियो में वे फोटोग्राफी सीख रहे थे और उनको ये कला सिखा रहे थे ऊंट जी के दामाद उपाध्याय जी। (उपाध्याय जी श्रीमती साधना उपाध्याय जी के पति)। अपन स्कूल से लौटते हुए उपाध्याय जी के स्टूडियो में रुकते थे, वहां साहित्यकार, फोटोग्राफर, आर्टिस्ट का पुख्ता ठीहा था। शायद वहीं से’जज्बाते ऊंट’ व्यंग्य पुस्तक अपन चुरा लाए थे।
थोड़े से बड़े हुए तो परसाई जी की संगत पकड़ी तो ऊंट जी की दोनों बेटियां श्रीमती साधना उपाध्याय और श्रीमती अनामिका तिवारी जी से विभिन्न आयोजनों में भेंट होने लगी, अनामिका जी तो एक दो बार हम लोगों की व्यंग्यम गोष्ठी में भी व्यंग्य पाठ करने आयीं। फिर बाद में मुझे प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था कादम्बरी ने व्यंग्य विधा का “रामानुज लाल श्रीवास्तव ‘ऊंट’ सम्मान” से सम्मानित किया था, तब से उन्हें और करीब से जानने की लगातार इच्छा बनी रहती थी, जब मैं कटनी में स्टेट बैंक में डिस्ट्रिक्ट लीड बैंक मेनेजर था तो कई बार बिलहरी गांव भी जाना हुआ, कटनी से 15 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बिलहरी के मूल निवासी रामानुज लाल श्रीवास्तव (ऊँट बिल्हरीवी) हिंदी – उर्दू के नामचीन वरिष्ठ साहित्यकार माने जाते हैं । उन्होंने हास्य व्यंग्य में अपना ऊँचा स्थान बनाया था । आपके चार काव्य संकलन , चार गद्य संकलन प्रकाशित हुए। इसके अलावा महाकवि ग़ालिब, अनीस एवम जफर के दीवान पर आपकी टीकाएँ भी प्रकाशित हुई हैं । वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर परसाई के संपादन में आपकी ‘प्रतिनिधि रचनाएं ‘ शीर्षक से एक संचयन मध्यप्रदेश साहित्य परिषद भोपाल द्वारा 1972 में प्रकाशित किया गया था। उल्लेखनीय है कि ऊंट जी ने जबलपुर से ‘प्रेमा’ पत्रिका का प्रकाशन 1929 में ही आरंभ कर दिया था।
अपने गांव बिलहरी से उनका इतना लगाव था कि आरंभिक दिनों आप ‘ऊँट बिल्हरीवी ‘ के नाम से ही जबलपुर में स्तंभ लिखते रहे । तथा अपनी व्यंग्य कृति ‘ जज्बाते ऊँट ‘ ऊँट बिल्हरीवी के नाम से ही प्रकाशित कराई थी, साथ ही वे उर्दू में ऊंट नाम से व्यंग्य लिखा करते थे। उन्होंने प्रेमा प्रकाशन के माध्यम से जबलपुर में साहित्यिक वातावरण के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया। ‘प्रेमा’ की अपने समय में साहित्यिक पत्रिकाओं में बडी प्रतिष्ठा रही है। ‘प्रेमा’ के माध्यम से अनेक प्रतिभाएं उभरीं। सौम्य किन्तु अत्यंत गरिमामय व्यक्तित्व के धनी, प्रखर व्यंग कवि लेखक व संपादक ऊंट जी से हमें मिलने का अवसर तो नहीं मिला,पर पता चला था कि प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविता को भी अपनी साहित्यिक पत्रिका “प्रेमा” में छपने के प्रथम अवसर इन्होंने ही दिया था। ऊंट जी मस्तमौला तबियत के मालिक थे। उनका नाम तो था रामानुज लाल श्रीवास्तव पर खुद का नामाकरण कर लिया था, ‘ऊँट बिलहरीवी’ , क्योंकि वे अपने गांव बिलहरी की मिट्टी से हमेशा जुड़े रहना चाहते थे।
एक जगह वे लिखते हैं….
न समझो के फ्कत ठूँठ हूँ मैं, मये-मंसूर के दो घूंट हूँ मैं।
जिस पर ‘लैला’ हुई सौ बार सवार,हलिफया कहता हूँ वो ‘ऊँट’ हूँ मैं।
यहां यह बताना जरूरी लगता है कि हरिवंशराय बच्चन जी की पहली कविता प्रेमा पत्रिका में ही प्रकाशित हुई थी और उमर खैयाम की रूबाइत का अनुवाद कर अमर हो जाने वाले जबलपुर के कवि केशव पाठक की इस अनुदित रचना को प्रेमा ने ही प्रकाशित किया था। लोग बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के समय जब सुभद्रा कुमारी चौहान जेल जाने लगीं थीं तो ऊंट जी ने उनके बच्चों का पालन-पोषण किया था।
ऐसे विराट हृदय वाले सहज सरल व्यक्तित्व के धनी रामानुज लाल जी 1976 में धरती छोड़कर पता नहीं कहां चले गए। जाते जाते कह गए…
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “गर्मी ”)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘राम जाने…’।)