ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अप्रैल से 20 अप्रैल 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अप्रैल से 20 अप्रैल 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। हिंदी का एक फिल्मी गाना है- 

काल का पहिया घूमे भैया

लाख तरह इन्सान चले

ले के चले बारात कभी तो

कभी बिना सामान चले

राम कृष्ण हरि …राम कृष्ण हरि

यह गाना जीवन की वास्तविकता को बताता है और कहता है कि हमें सदैव ईश्वर को याद करना चाहिए क्योंकि कभी हमारे अच्छे दिन रहेंगे कभी सामान्य तो कभी बुरे। इन्हीं अच्छे सामान्य और बुरे दिनों के बारे में बताने के लिए हम आपके पास हर सप्ताह साप्ताहिक राशिफल लेकर आते हैं। इस सप्ताह में पंडित अनिल पांडे आपको 14 अप्रैल से 20 अप्रैल 2025 तक के सप्ताह के अच्छे बुरे और सामान्य दिनों के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह सूर्य मेष राशि में, मंगल कर्क राशि में बुध मीन राशि में, गुरु वृष राशि में, शुक्र शनि और राहु मीन राशि में गोचर करेंगे। आई अब हम राजकुमार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह उच्च का सूर्य आपके लग्न भाव में विराजमान है। जिसके कारण आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपका क्रोध की मात्रा में भी थोड़ी वृद्धि हो सकती है। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है 16 और 17 तारीख को आप दुर्घटना से बच सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आने का योग भी है। व्यापार उत्तम चलेगा। आपका, आपके माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। आपके जीवनसाथी को 16 और 17 तारीख को थोड़ी समस्या हो सकती है। उनका ध्यान रखें। इस सप्ताह आपको प्रतिदिन सतर्क रहकर के ही कार्य करना है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका आपके पिताजी का और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में मामूली समस्या आ सकती है। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपके धन के खर्चे में भी वृद्धि होने की संभावना है। नीच का मंगल धन भाव में बैठकर नीच भंग राजयोग बना रहा है। जिसके कारण अगर आप प्रयास करेंगे तो आपके पास इस सप्ताह अच्छा धन आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अप्रैल कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। 20 तारीख के दोपहर के बाद आपको कोई भी कार्य करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके पिताजी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत समस्या हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। सामान्य धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 20 की दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 18, 19 और 20 की दोपहर तक का समय आपके लिए थोड़ा कठिन है। इस समय में कोई भी कार्य पूर्ण सावधानी पूर्वक करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका आपके माताजी और पिताजी का तथा आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी को थोड़ी पेट की समस्या हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। दुर्घटनाओं से भी आप बच जाएंगे। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम रहने वाला है। उनके विवाह के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। व्यापार उत्तम चलेगा। आपके माता-पिता का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। आप थोड़ा सा प्रयास करेंगे तो आपके पास अच्छी मात्रा में धन आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 तथा 20 अप्रैल कार्यों को करने के लिए लाभप्रद हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। 16 और 17 तारीख को आपका अपने भाई बहनों के साथ संबंध सुधर सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

यह सप्ताह आपके जीवन साथी के लिए उत्तम रहेगा। उनके प्रयासों को सफलता प्राप्त होगी। आपके दुश्मनों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। पिताजी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। कार्यालय में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। आपको अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 और 20 तारीख परिणाम दायक हैं। 16 और 17 तारीख को आपके पास धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। जीवनसाथी के पेट में कोई समस्या हो सकती है। आप प्रयास करके अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। भाग्य से इस सप्ताह आपको कोई मदद प्राप्त नहीं हो पाएगी। आपको कोई भी काम करने के लिए परिश्रम करना पड़ेगा। इस पूरे सप्ताह आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके प्रयासों के कारण आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। जनता में आपका सम्मान बढ़ सकता है। आपके संतान को अच्छे फल की प्राप्ति हो सकती है। संतान का आपको सहयोग प्राप्त होगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप कोई बड़ी चीज खरीद सकते हैं। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 का 20 तारीख लाभप्रद हैं। 16 और 17 तारीख को आपको कचहरी के कार्यों में सही ढंग से प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। क्रोध की मात्रा में वृद्धि होगी। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। भाई बहनों के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माता जी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्यालय में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। संतान का आपको सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 अप्रैल कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। 18, 19 और 20 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका, आपके पिताजी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। व्यापार आपका ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति होगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। भाई बहनों के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। कार्यालय में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 तारीख कार्यों को करने के लिए लाभदायक हो सकती है। 16, 17 और 20 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अच्छा रहेगा। विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपके जीवन साथी को थोड़ा कष्ट हो सकता है। व्यापार में प्रगति होगी। धन लाभ होगा। आपके संतान को अच्छे फल की प्राप्ति हो सकती है। संतान का आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य इस सप्ताह आपका साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 तारीख कार्यों को करने के लिए लाभदायक हैं। 14 और 15 तारीख को कोई भी कार्य करने के पहले पूरी प्लानिंग करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान दें तथा शनिवार को सायंकाल के बाद शनि मंदिर में जाकर शनिदेव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासीनी ☆ सुखद सफर अंदमानची… भाग – ३ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

सौ. दीपा नारायण पुजारी

? मी प्रवासीनी ?

☆ सुखद सफर अंदमानची…  भाग – ३ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

चुनखडीच्या गुहा 

बारतांगच्या धक्क्यावर लहान स्पीड बोटीतून आमचा प्रवास सुरु झाला. एका बोटीत दहा जणं बसून जाऊ शकतो. निळाशार खोल समुद्रात वेगानं जाणाऱ्या या बोटीतून जाताना भारी मजा येते. वारा वहात असतो आणि त्याला छेद देत मोटरबोट सागरी लाटांवर स्वार होते. नावाडी कौशल्यपूर्ण असतात. या बोटींची नावं मजेशीर आहेत. सी टायगर, सी मेड, इ. ज्या बोटीतून तुम्ही जाल त्याच बोटीतून परत यायचं असतं. त्यामुळे बोटीचं नाव आणि नावाड्याचं नाव लक्षात ठेवावं लागतं.

समुद्राच्या लाटा एका लयीत उठत असतात. पण आपल्या बोटीमुळं त्यांना छेद जातो. त्यांचा ताल बिघडतो. लय वाढते. लाटांची उंची, हेलकावे सगळं उसळी मारून आपल्या बोटीकडं झेपावतं. आपल्या आजूबाजूनं दुसरी आणि एखादी स्पीड बोट जात असेल तर लाटांचा खेळकरपणा वाढतो. त्या आपल्या बोटीला जास्तच झोके देतात. सप् कन पाण्याचा किंचित जोरदार फटकारा देतात. हलणारं निळं पाणी आणि लाटांमुळं फेसाळलेल्या पाण्यातील शुभ्र फेसांची माळ. शुभ्र चमकणारे मोती. निळ्या लाटांना त्यांची मध्येच जुळणारी तुटणारी झालर. रमणीय दृश्य असतं ते. वरती पसरलेलं घनगंभीर अलिप्त आकाश अधिक निळं अधिक समंजस आणि शांत वाटतं. हा खाली पसरलेला निळाशार समुद्र मात्र अवखळ चंचल अनाकलनीय तरीही गूढ वाटतो.

बराच वेळ लांबवर दिसणारं खारफुटींचं जंगल आता दोन्ही बाजूंनी जवळ जवळ येऊ लागतं. आणि अचानक ते अंतर इतकं कमी होत जातं की आपली बोट खारफुटीच्या घनदाट छताखालून जाऊ लागते. हे छत इतकं दाट आहे की आता आकाशाची निळाई लुप्त होते. आकाश आणि समुद्र यातल्या निळ्या रंगाची तुलना करण्याचं कारण रहात नाही. कारण आता आपल्या डोक्यावर निसर्गराजा हिरवी छत्री धरून उभा असतो. हिरवाई इतकी सलगी करते की पाण्याची निळाई हरवून जाते. आता लाटांचा खेळ आणि लाटांचं संगीत दोन्ही शांत होतं. आपली बोट शांतपणे एका बेटाच्या लहानशा लाकडी धक्क्याला लागलेली असते.

आता सुरू होतो आपला पायी प्रवास. साधारण पणे अर्ध्या तास चालावं लागतं फारतर. पण ही वाट दाट जंगलातून जाते. या पायवाटेनं जाणं तसं फार कठीण नाही पण सोप्पंही नाही. दोन्ही बाजूला खारफुटींची घनदाट झाडी. झाडांची मुळं इतस्ततः पसरलेली. ही मुळं आपल्या डावीकडून उजवीकडे आणि उजवीकडून डावीकडे जातात. त्यांच्या या रांगत रांगत इकडून तिकडे जाण्यानंच नैसर्गिक पायऱ्या तयार झाल्या आहेत. काही ठिकाणी मात्र दगडांचा वेडावाकडा चढ उतार आहे. सगळा रस्ताच चढ उतारांनी बनला आहे. एक दोन ठिकाणी प्रचंड मोठे वृक्ष पायवाटेत मध्यभागी ठिय्या देऊन बसले आहेत. त्यांच्या दोन्ही बाजूला पायवाट आहे. या गर्द दाट हिरव्या रंगातून सूर्यकिरणांना सुद्धा आत यायला मज्जाव करण्यात आला आहे. एक हिरवी शांतता गारवा वाहून आणते जणू. मंद शीतल वारा उष्णता जाणवू देत नाही. सोबतीला असतं पानांचं सळसळतं संगीत आणि नयनमनोहर पक्ष्यांची मधुर सुरावट. त्यांचे आलाप आणि ताना ऐकत आपण गुहेजवळ कधी जातो ते कळत नाही.

गुहा सुरू झाली आहे हे आपल्याला आपला वाटाड्या सांगतो. त्याचं कदाचित आणखी एक कारण असेल. ते म्हणजे या गुहेचा पहिला साठ टक्के भाग वरुन उघडा आहे. दोन्ही बाजूस चुनखडीचे उंच डोंगर. आकाशाकडं निमुळते होत जातात आणि वरच्या बाजूला छतावर ते डोंगर एकमेकांपासून विलग झालेले दिसतात. अर्थात या भागात पुरेसा उजेड आहे. पाय जरा जपून ठेवावा लागतो. खालचा रस्ता खाचखळगेवाला आणि वरखाली करत आतल्या गुहेत नेतो. हा बाहेरचा भाग चुनखडीचा असूनही काळा दिसतो. हवा पाणी यांच्या संपर्कात आल्यानं चुनखडीचा पांढरा रंग बदललेला आहे. इथून पुढे गुहेच्या आतील चाळीस टक्के भाग कमी उजेडाचा आहे. गुहेत आत जाऊ तसतसा काळोख दाट होतो. या गुहेतील पुढचा प्रवास मोबाइल टॉर्चच्या उजेडात करावा लागतो. परंतु इथल्या डोंगराच्या भिंती पांढऱ्या आहेत. या भिंतींना हात लावायचा नाही. हाताचा स्पर्श जिथं झाला आहे तिथं त्या काळ्या झाल्या आहेत.

वाटाड्या दाखवत जातो तसं आपण फक्त बघत आत जायचं. चुनखडीच्या क्षारांचे एकावर एक अनेक थर या भिंतीवर जमले आहेत. दोन्ही बाजूच्या भिंती आकाशाकडं निमुळत्या होत जातात आणि शेवटी एकमेकींना मिळालेल्या दिसतात. काळोख वाढत जातो. चुनखडीचे थर चित्र विचित्र आकार धारण करतात. आपली जशी नजर तसे आकार किंवा आपल्या मनात जो भाव तसा दगड. इथं दगडानं कधी बाप्पाच्या सोंडेचा आकार धारण केला आहे तर कधी फक्त सोंडेचा. कुठं चुनखडीतून पद्म फुललंय तर कुठं कमळपुष्पमाला. कुठं मानवी नाकाचा, चेहऱ्याचा भास तर कुठं मानवी पाठीचा कणा. स्पायनल कॉर्ड. तो इतका हुबेहुब की आ वासून बघतच रहावं. मणक्यांची खरी माळच कुणा प्रवाशानं आणून ठेवली नसावी ना? असा विचार मनात आल्या शिवाय रहात नाही. एके ठिकाणी एक दगड छतातून खालच्या दिशेनं वाढतोय तर त्याखाली दुसरा जमिनीतून छताच्या दिशेने. दोन्हीमध्ये एखादी चपटी वस्तू जाऊ शकेल इतकं कमी अंतर. काही वर्षांनी येणाऱ्या प्रवाशांना एकसंघ खांब दिसला तर नवल नसावं. काही ठिकाणी अजूनही थर बनवण्याचं, क्षार साचण्याचं काम सुरू आहे. त्या जागा ओलसर दिसतात. टपकन एखादा पाण्याचा थेंबही आपल्या अंगावर पडतो. काही थरांमध्ये अभ्रकाचं प्रमाण जास्त आहे. ते अंधारात चांदण्यागत चमकतात.

निसर्गाची लीला अजबच याची पक्की खात्री करून देणाऱ्या या गुहा. नजरबंदी करणाऱ्या नैसर्गिक सौंदर्याचा, निसर्गाच्या अदाकारीचा थाट लेवून उभ्या आहेत. एक गूढ वातावरण घेऊन. रम्य आणि अजब आकारांचं हे निसर्ग दालन किती सजीवांचं आश्रय स्थान होतं कोण जाणे. किंवा अजूनही असेल माहिती नाही. गुहेतून फिरताना समुद्राची गाज कानावर येत राहते. ती गाजच काय तेवढी तिथल्या गूढ शांततेचा भंग करते पण गूढता अधिकच गूढ करते.

या गुहांच्या पलिकडे आणखी गुहा आहेत. ज्या स्तरसौंदर्याच्या खाणी आहेत. परंतु तो रस्ता बंद झाला आहे. शिवाय इथं अंधार लवकर पडतो. बारटांगचं गेट दुपारी तीन वाजता तसंच चार वाजता उघडतं. त्यावेळेत पोचायला हवं. पाय उचलावेच लागतात. गूढ रहस्याचा शोध न लागल्यासारखे आपण परतू लागतो.

– क्रमशः भाग तिसरा 

© सौ. दीपा नारायण पुजारी

इचलकरंजी

9665669148

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – “खोया हुआ कुछ…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – “खोया हुआ कुछ…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

-सुनो।

-कौन?

-मैं।

-मैं कौन?

– अच्छा। अब मेरी आवाज भी नहीं पहचानते?

– तुम ही तो थे जो काॅलेज तक एक सिक्युरिटी गार्ड की तरह चुपचाप मुझे छोड़ जाते थे। बहाने से मेरे काॅलेज के आसपास मंडराया करते थे। सहेलियां मुझे छेड़ती थीं। मैं कहती कि नहीं जानती।

– मैं? ऐसा करता था?

– और कौन? बहाने से मेरे छोटे भाई से दोस्ती भी गांठ ली थी और घर तक भी पहुंच गये। मेरी एक झलक पाने के लिए बड़ी देर बातचीत करते रहते थे। फिर चाय की चुस्कियों के बीच मेरी हंसी तुम्हारे कानों में गूंजती थी।

– अरे ऐसे?

– हां। बिल्कुल। याद नहीं कुछ तुम्हें?

– फिर तुम्हारे लिए लड़की की तलाश शुरू हुई और तुम गुमसुम रहने लगे पर उससे पहले मेरी ही शादी हो गयी।

-एक कहानी कहीं चुपचाप खो गयी।

– कितने वर्ष बीत गये। कहां से बोल रही हो?

– तुम्हारी आत्मा से। जब जब तुम बहुत उदास और अकेले महसूस करते हो तब तब मैं तुम्हारे पास होती हूं। बाॅय। खुश रहा करो। जो बीत गयी सो गयी।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रेयस साहित्य # ३ – पुस्तक चर्चा ☆ ~ विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर – लेखक – श्री पवन बख्शी ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ३ ☆

☆ पुस्तक चर्चा ☆ विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर – लेखक – श्री पावन बख्शी ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

क्या बात है आपने तो गागर में सागर भर दिया। एक बड़े समुद्र को ऐसे समेटा कि साहित्यिक नजरे उसे नाप लें । वरना आम नजरों की क्या औकात जो समंदर को ढाँप ले। श्री रामदेव धुरंधर, मॉरीशस के प्रख्यात साहित्यकार, जिनकी कलम, न सिर्फ यथार्थ को बयाँ करती है, बल्कि ब्रह्मांड से भी यथार्थ भरी रचनाएं उतार लाती हैं।

मेरे सामने अब बारी थी कि उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में जन्मे हिमाचल को सिरमौर मान चुके, वर्तमान में सिरमौर हि.प्र. में निवास कर रहे हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ साहित्यकार श्री पवन बख्शी जी कृति “विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर” पर अपने मानोभावों को प्रस्तुत करने की।

श्री पवन बख्शी जी ने अब तक इक्कहत्तर पुस्तक लिखी है। जिनमे ग्यारह ऐसी पुस्तक लिखी जो कि हिंदी साहित्य के विद्वान् एवं विशेष लेखकों पर आधारित हैं।

मूर्धन्य लेखकों पर लिखी जाने वाली श्रृंखला को नाम दिया है विद्वन्मुक्तामणिमालिका। आज जो पुस्तक प्राप्त हुई है वह है विद्वन्मुक्तामणिमालिका -11। श्रृंखला की इस पुस्तक का शीर्षक है “विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार रामदेव धुरंधर”। अब यह पुस्तक मेरे हाथों में थी।

मुझे इस पुस्तक की समीक्षा लिखनी थी, जो कि अब मेरा मिशन था। ब्लू जे बुक्स प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर श्री धुरंधर जी का वही पुरानी शैली का चित्र था जिसे हम उनसे जुड़ी कई पुस्तकों में देखते हैं। यह चित्र धुरंधर जी के रुचिर साहित्य को व्याख्यायत करने वाला चित्र है।

पुस्तक के लेखक श्री पवन बख्शी जी के विचार पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर ही दिख जाते हैं, जब वह इस पुस्तक को श्री रामदेव धुरंधर के पूज्य पिताजी- माताजी एवं उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय देवरानी जी को समर्पित करते हुए लिखते हैं कि-

“उस माता-पिता को नमन जिन्होंने रामदेव धुरंधर को जन्म दिया। उस पत्नी को नमन, जिन्होंने रामदेव धुरंधर को दुनिया के रंजो गम से दूर रखकर उन्हें भरपूर लेखन में सहयोग किया।”

लेखक, सम्मानित साहित्यकार श्री धुरंधर के विषय में लिखते हैं कि- “आपके भीतर बैठे परमात्मा को मेरा प्रणाम”। श्री पवन बख्शी जी, श्री धुरंधर जी के प्रति गजब का आदर भाव व्यक्त करते हैं। धुरंधर जी की शान में एक पंक्ति और भी लिखते हैं कि “आपके बारे में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है।”

आदरणीय धुरंधर जी भी श्री पवन बख्शी जी के लिए लिखने से कहां चूकते हैं। वे अपने शुभकामना संदेश “पुस्तक : विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर” में लिखते हैं – “इस शीर्षक से मेरा मानना है कि पवन बख्शी जी ने मुझे इस तरह प्रेरित किया कि इस कृति के लिए सहयोग करता जाऊं। तब तो निश्चित ही दो नाम एक दूसरे के पूरक जाएंगे, वे नाम है पवन बख्शी एवं रामदेव धुरंधर।”

अंत में श्री धुरंधर जी जी लिखते हैं – पवन बख्शी ने एक नए अंदाज में मुझ पर आधारित इस कृति का प्रणयन किया है।”

अपने इस शुभकामना आलेख में – श्री धुरंधर जी, श्री पवन बख्शी जी के अतिरिक्त डॉ राम बहादुर मिश्रा जी, श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (मेरी) की चर्चा करते हैं। इसके अलावा श्री रामदेव धुरंधर जी डॉक्टर दीपक पाण्डेय और डॉ नूतन पाण्डेय जी का जिक्र बड़े ही स्नेह और सम्मान भाव से करते हैं, साथ ही साथ उनके द्वारा सम्पादित ऐतिहासिक कृति रामदेव धुरंधर की रचनाधार्मिता का हवाला भी देते हैं।

इन नामो के अतिरिक्त श्री राम किशोर उपाध्याय जी, डॉ. हरेराम पाठक जी, डॉ जयप्रकाश कर्दम जी, की भी चर्चा करते हैं। श्री रामदेव धुरंधर जी का ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना भी इस लेख के केंद्र में है।

श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (स्वयं) की खुशी यह है कि- “मैं इस पुस्तक का सारथी बना” शीर्षक से छपा मेरा यह लेख मेरे चित्र के साथ है। यह लेखक एवं साहित्यकार जिनके विषय में पुस्तक लिखी गयी है, दोनों की ही भावना को दर्शाता है। श्री श्रेयस (मै) बक्शी जी के विषय में लिखते हैं – जिस स्वभाव या प्रकृति का व्यक्ति होता है ईश्वर उसकी मिलन वैसे ही स्वभाव के व्यक्तियों से कर देता है।

“ऐसे ही मेरी मुलाकात स्वच्छ एवं साहित्यिक हृदय के साहित्यकार श्री बख्शी जी के साथ होनी थी”।

लेखक ने अपनी इस पुस्तक के पांच पृष्ठों में धुरंधर जी के लेखकीय कृतित्व और उनके सम्मानों की खूब चर्चा करते है। यह पृष्ठ शोधार्थियों के लिए अति उपयोगी होंगी, ऐसा मेरा मानना है।

अपने स्वयं के आलेख “खुशी के वो क्षण जब सपना साकार हुआ” में श्री बक्शी जी, भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं महामहिम पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे कलाम जी के साथ अपने चित्र को साझा करते हैं, जिसमें वह उनकी किसी एक कृति का विमोचन करते हैं।

इसी आलेख में लेखक जब एक पुस्तक किसी विदेशी लेखक के कृतित्व व्यक्तित्व पर लिखना चाहता है तो फिर नाम आता है रामदेव धुरंधर जी का इसका जिक्र बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया हैं।

श्री धुरंधर जी पर लिखने की प्रेरणा के लिए वे मेरा और डॉ. राम बहादुर मिश्रा जी का नाम प्रोत्साहन कर्ता के रूप देते हैं। यह तो सिर्फ उनकी उदारता हुई वरना, ऐसे बड़े साहित्यकार  के लिए यह सामान्य सी बात है।

पुस्तक का पृष्ठ 19, 20, 21 और 22 श्री धुरंधर जी के जन्म से लेकर उनके लेखन की दुनिया की कहानी कुछ ही पन्नों में समेट देती है।

लेखक ने श्री रामदेव धुरंधर अन्य मित्रों से संपर्क भी किया और फिर धुरंधर जी के विषय में जो गूढ़तम और कुछ ऐसी बातें जो कि आम लोगों तक अभी तक नहीं पहुंची है उसको भी खोज निकाला, जो कि इस पुस्तक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं मजबूत पक्ष है।

प्रख्यात समीक्षक एवं भुवनेश्वर में रहकर रचनाकर्म कर रहे विजय कुमार तिवारी जी का आलेख रामदेव जी की दिनचर्या और उनकी रचनाशीलता पर आधारित है।

किसी साहित्यकार के संस्मरण उस साहित्यकार के मन के भाव एवं उसके लेखकीय शैली को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं।

लेखक ने कुछ पुस्तकों से, कुछ विद्वान् साहित्यकारों से बात कर के और ज्यादा से ज्यादा सीधे-सीधे श्री धुरंधर जी से संपर्क कर संस्मरण जुटाये है। यह श्री पवन बक्शी जी की इस पुस्तक को लाने के प्रति गहरी रुचि को दर्शाता है।

श्री रामदेव धुरंधर ने “मौत नामा”, “भुवन चाचा के बारे में”, “डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉक्टर शिवमंगल सिंह सुमन से संबद्ध एक भावभीना संस्मरण “एवं तुम्हें नमन मेरे पिता” जैसे संस्मरण देकर, इस पुस्तक की गरुता को बढ़ाया है।

श्री राम बहादुर मिश्रा जी ने श्री पवन बक्शी जी से कहा आप श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ जी से मिले रामदेव धुरंधर जी से जुडी बहुत सारी जानकारियां आपके पुस्तक के लिए मिल जाएगी। श्रेयस (मैने) भी इसे गुरबचन मान लिया। राजेश श्रेयस डॉ राम बहादुर मिश्र को अपना गुरु मानते हैं। अतः इस आदेश को उन्होंने माथे पर ओढ़ लिया। फिर क्या दो संस्मरण (मेरे लेखन का भगवान, एवं जब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने मोटर रुकवा कर मुझे अपने साथ गाड़ी में बैठा लिया, जो श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस के शब्दों में है, इस पुस्तक के अंश बन जाते हैं।

श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (मै) जो अक्सर उनसे संवाद करते रहते हैं उनके संवादों को सीधे सीधे शब्दों में पिरो कर साहित्य का स्वरूप दे देते हैं तो एक शीर्षक निकलकर आता है “हमारा साहित्य, भाषा, बोली और संस्कृति”।

श्री धुरंधर जी के साथ वार्ता के दौरान भोजपुरी की एक पंक्ति का जिक्र भी श्रेयस ने किया है कि – बात की बात में श्री धुरंधर जी मॉरीशस में अपने गांव की किसी घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि “फलनवा बड़ा अगरात रहल”।  

श्री धुरंधर जी के मुंह से भोजपुरी शब्द अगराना सुनकर श्रेयस आश्चर्य चकित होते है। श्री राजेश जी (स्वयं) का यह लेख बताता है कि श्री धुरंधर जी भाषायी रूप से किस प्रकार भारत से जुड़े है।

श्री रामदेव धुरंधर जी के अभिन्न मित्रों में एक नाम आता है श्री राम किशोर उपाध्याय जी का। श्री उपाध्याय जी श्री रामदेव धुरंधर जी के विषय में लिखते हुए अपने आलेख का शीर्षक देते हैं – “रामदेव धुरंधर की रचना के विषय और शिल्प दोनों के प्रति सतर्क है” अपने इस आलेख के माध्यम से श्री उपाध्याय जी ने श्री धुरंधर जी के रचना संसार के हर पक्ष को स्पर्श किया है।

भारत के श्रेष्ठ समीक्षकों में से एक श्री विजय कुमार तिवारी जी का आलेख “दुनिया में एक ही है रामदेव धुरंधर” के माध्यम से तिवारी जी श्री धुरंधर जी के ही शब्दों को उतारते हुए लिख देते हैं कि- अपने जीवन व लेखन के बारे में उन्होंने कहा कि “साधारण ग्राम्य अंचल में जन्म पाकर में यही उम्र की सीढ़ियां चढ़ता गया। “

मैंने अपने इस ग्रामीण मां की गोद में बैठकर अपने जीवन की धूप छांव को जाना है। श्री रामदेव धुरंधर के ये शब्द उनके गांव के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं।

भारत में श्री रामदेव धुरंधर के साहित्य पर लिखा ऐतिहासिक ग्रंथ “रामदेव धुरंधर की रचना धर्मिता” सहित सर्वाधिक (पांच) साहित्यिक कृतियाँ देने वाले, एवं श्री रामदेव धुरंधर जी के अतिशय प्रिय साहित्यकार दम्पति डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय जी (सहायक निदेशक केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली) ने इस पुस्तक के लिए अपना सर्वाधिक लोकप्रिय आलेख “लघु कथाएं- रामदेव धुरंधर की लघुकथाओं का वैशिष्टय को इस पुस्तक में समाहित करने की सहमति देकर इस पुस्तक की गरिमा को बढ़ा दिया है।

भोपाल मे रहकर साहित्य सृजन करने वाले विद्वान साहित्यकार श्री गोवर्धन यादव का श्री धुरंधर जी के साथ लिया गया साक्षात्कार, श्री रामदेव धुरंधर जी का व्यक्तित्व और कृतित्व धुरंधर जी के साहित्यिक एवं व्यक्ति का जीवन से जुड़े लगभग हर पक्ष को बेबाकी से रखने का सामर्थ्य रखता है।

श्री धुरंधर जी का ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना इस पुस्तक के अधिकांश हिस्सों में रमण करते हुए कहता है कि भारत से मॉरीशस पहुंचे भारतीयों की दास्तान साहित्यिक दृष्टि से दोनों देशों के साहित्यकारों के लिए कितना महत्व रखती है।

श्री रामदेव धुरंधर जी का यह सप्त खंडीय उपन्यास अतीत को वर्तमान से जोड़ने वाला, मारिशस में भारतीय संस्कृति और संस्कारों को संरक्षित रखने वाला सफलतम ऐतिहासिक और लोकप्रिय उपन्यास है।

अपनी इस पुस्तक में लेखक ने धुरंधर जी के दो लोकप्रिय कहानियों को यात्रा कराया है, जैसे -छोटी उम्र का सफर, ऐसे भी मांगे वैसे भी मांगे, किसी से मत कहना। इसके अतिरिक्त कई कहानी संग्रह के आवरण चित्र इस पुस्तक की शोभा बढ़ा रहे है, जैसे – विषमंथन, जन्म की एक भूल, अंतर मन, रामदेव धुरंधर संकलित कहानियां, अंतर्धारा, अपने-अपने भाग्य दूर भी पास भी, उजाले का अक्स।

श्री रामदेव धुरंधर की लघु कथाओं का संग्रह और उसके आवरण पृष्ठ के चित्र (प्रकाशन वर्ष के साथ) इस पुस्तक को और भी सजाते हैं, जैसे -चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आसमान, आते जाते लोग, मैं और मेरी लघु कथाएं।

इस पुस्तक में लेखक ने रामदेव धुरंधर की कुछ लघु कथाओं को भी सीधे सीधे डाला है। जैसे – कल्पित सत्य, कुछ पल के साथ ही, अपना ही भंजक, सोने का पिंजरा, चोर दरवाजा अनदेखा सत्य, आत्म मंथन, खामोश तूफान, महात्मा, जगमग अंधेरा।

श्री रामदेव धुरंधर सुधी व्यंग्यकार भी है। लेखक ने उनके लोकप्रिय व्यंग आलेख “अकेली दुकेली चिरैया को” इस साहित्यिक कृति के डाल पर बैठा कर इस कमी को पूर्ण किया है। श्री रामदेव धुरंधर के व्यंग कृतियों के कुछ आवरण चित्र भी इस पुस्तक में डाले गए हैं जिसमें – कलयुगी करम धरम, बंदे आगे भी देख, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, कपड़ा उतरता है।

श्री रामदेव धुरंधर के नाटक संग्रह प्रवर्तन और जहां भी आदमी का आवरण चित्र यह बताने के लिए काफी है कि धुरंधर जी ने नाट्यसाहित्य में भी अपनी बेजोड़ कलम चलाई है।

श्री रामदेव धुरंधर को गद्य क्षणिका का अन्वेषक माना जाता है।

आपकी गद्य क्षणिकाएं इतनी लोकप्रिय हुई, साहित्यकार मन की जुबान बन गयीं। श्री पवन बक्शी जी ने कुछ एक क्षणिकाओ को भी इस पुस्तक में उद्धरित किया है। कुछ गद्य क्षणिकाओ के संग्रह के आवरण पृष्ठ के चित्र जैसे – गद्य क्षणिका एक प्रयोग, छोटे-छोटे समंदर, तारों का जमघट को पुस्तक में डाले हैं।

श्री धुरंधर जी का गद्य क्षणिकाओ को लेकर एक और प्रयोग किया है, जिसमें 80 से कम शब्दों का प्रयोग किया गया है। लेखक ने इस पुस्तक में कुछ ऐसी क्षणिकाएं भी डाली हैं।

श्री पवन बख्शी जी ने रामदेव धुरंधर के पुरस्कार सम्मानो को नाम एवं वर्ष के अनुरूप न सिर्फ क्रमबद्ध तरीके से पुस्तक में छापा है बल्कि उन पुरस्कार और सम्मानों के चित्र भी प्रदर्शित किए हैं। ऐसा करके श्री पवन बख्शी जी ने साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले शोधार्थियों एवं साहित्यकारों के लिए श्री धुरंधर जी के साहित्य को समझने के लिए और भी आसानी प्रदान की है।

श्री धुरंधर जी की क्षणिकाएं अक्सर रामदेव धुरंधर जी के फेसबुक पेज पर आती है, तो उनके नियमित पाठक भी उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने से नहीं चूकते हैं।

“पुस्तक में सृजन के सेतु मित्रों के स्वर” शीर्षक से कुछ पाठकों की टिप्पणियों को भी स्थान दिया गया है जिसमे कुछ नियमित पाठकों में श्री राजनाथ तिवारी, श्री राम किशोर उपाध्याय, श्री महथा रामकृष्ण मुरारी, श्री राजेश सिंह, श्री वल्लभ विजय वर्गीय, श्री रामसनेही विश्वकर्मा, कुमार संजय सुमन श्री उपाध्याय, इंद्रजीत दीक्षित, दिलीप कुमार पाठक, सनत साहित्यकार, सौरभ दुबे, संजय पवार की टिप्पणीयाँ शामिल है।

श्री पवन बख्शी जी ने अपनी इस पुस्तक में श्री रामदेव धुरंधर जी को देश विदेश के बड़े बड़े साहित्यकारों के साथ चित्रों को भी दर्शाया है। इसकी अतिरिक्त श्री धुरंधर जी के पारिवारिक चित्रों को भी इस पुस्तक में खूब स्थान दिया गया है।

श्री धुरंधर जी अपनी पत्नी देवरानी जी को बहुत ही मान देते रहे हैं। उनसे जुड़े हुए संस्मरण पर आधारित लेख रामदेव की जुबानी रामदेव की देवरानी इस पुस्तक का अंश बनी हुई है।

भारत यात्रा के दौरान ताजमहल के सामने खड़े होकर श्री धुरंधर दंपति का चित्र भी इस पुस्तक को पूर्णता प्रदान कर रहा है।

साहित्यिक जीवन के सत्तर से अधिक सालों बाद का एक ऐसा शुभ संयोग जब मुझे रामदेव धुरंधर जी द्वारा साझा किया हुआ वह डाटा प्राप्त हुआ जिसमें उनके परदादा भारत के कोलकाता बंदरगाह से मॉरीशस आए थे। इस दस्तावेज के अनुसार धुरंधर जी के पूर्वजों की जन्मस्थली तात्कालिक जनपद गाजीपुर परगना बलिया जो वर्तमान जनपद बलिया, के गांव गंगोली में है का पता चलता है। राजेश श्रेयस (मेरे) द्वारा तैयार किए गए इस आलेख को “मॉरीशस साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर के पुर्वजों का गांव गंगोली बलिया उत्तर प्रदेश (भारत) राजेश सिंह की एक खोज” शीर्षक से इस पुस्तक में छापकर श्री पवन बख्शी ने इस बड़ी उपलब्धि को स्थायी मुकाम प्रदान कर दिया है।

पुस्तक के अंतिम चरण में डॉ जितेंद्र कुमार सिंह ‘संजय’ (लेखक एवं प्रकाशक ) ने श्री पवन बक्शी जी का बृहद परिचय कराया है। साथ ही साथ उनकी इक्कहत्तर कृतियों को आम पाठकों के सामने लाकर रख दिया है।

इस कृति के लेखन के बाद श्रेष्ठ साहित्यकार आदरणीय पवन बख्शी जी कहते हैं। अब जब कोई मुझसे मारीशस के  साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी के बारे में पूछना या जानना चाहेगा, तो मैं कहूंगा कि लीजिए श्रीमान! 222 पृष्ठों की यह पुस्तक आपको सब कुछ बता देगी।

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 11-04-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२१ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२१ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हम लोग जैसे-जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे थे, पसीना से तरबतर होते जा रहे थे। अंत में तीखी चढ़ाई पर पेड़ों की मौजूदगी भी कम होती जा रही थी। तक़रीबन सौ-सवा सौ सीढ़ियाँ बची होंगी। वहाँ सीधी चढ़ाई पर भारी भीड़ अटी थी। चढ़ने वाले और उतरने वाले दोनों आमने-सामने अड़े थे। उनमें ध्यानु-ज्ञानु बकरों का विवेक नहीं था कि एक दूसरे को राह देकर निकल जाएँ। सीढ़ियों के आजूबाजू बहुत बड़े पत्थरों के ढेर थे। जिन पर बंदरों का हुजूम था। एक बंदर ने बच्चे के हाथ से कोल्ड ड्रिंक की बोतल छुड़ा, ढक्कन खोल गटागट पीना शुरू किया तो लोगों ने फोटो निकालना शुरू कर दिया। मानों पुरखों की पेप्सी पसंदगी को सहेजना चाहते हों। भीड़ इंच भर भी नहीं खिसक रही थी। ऊपर आंजनेय पहाड़ी पर जय हनुमान के जयकारे के साथ घंटों की टंकार ध्वनि गूँज रही थी। एक लाउड स्पीकर पर हनुमान-चालीसा चल रहा था। भक्त भी उसकी ध्वनि में ध्वनि मिला रहे थे कि शायद इस मुश्किल से मुक्ति मिल जाए।

एक प्रश्न मन में आया कि हम लोग तो हनुमान-चालीसा पढ़-सुन कर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की राह देखते हैं। जब हनुमान जी पर मुश्किल आती थी तो वे बुद्धि-विवेक से राह तलाशते थे। जब बुद्धि-विवेक से संजीवनी बूटी सूझ नहीं पड़ी तो समूचा पर्वत उठा लाए थे। भूखी-प्यासी भीड़ निजात की राह तलाशते खड़ी थी। तभी उतरती भीड़ के कुछ युवक चट्टानों के बीच से रास्ता बना नीचे की तरफ़ उतरने लगे। हमने भी इसी तरह की कोशिश सोची। बाईं तरफ जूते-चप्पलों का एक छोटा सा ढेर दिखा। कई भक्त शनिवार को दर्शन करने आते हैं तो अपने जूतों के साथ शनि की बुरी दशा को भी उतार कर फेंक जाते हैं।

शनिदेव से जुड़ी से जुड़ी एक और परिपाटी है कि शनिदेव को तेल का दान करने से शनि के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। जो लोग ये उपाय नियमित रूप से करते हैं, उन्हें साढ़ेसाती और अढय्या से भी मुक्ति मिलती है। लेकिन शनिदेव तेल चढ़ाने से क्यों प्रसन्न होते हैं।

ऐसी मान्यता है कि रावण की क़ैद में शनिदेव काफी जख्मी हो गए थे, तब हनुमान जी ने शनिदेव के शरीर पर तेल लगाया था जिससे उन्हें पीड़ा से छुटकारा मिला था। उसी समय शनि देव ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। इसको लेकर कथा प्रचलित है कि रावण ने सभी नौ ग्रहों को बंदी बना रखा था। शनिदेव को उल्टा लिटा कर उनकी पीठ पर पैर रख सिंहासन पर बैठता था।  शनिदेव ने रावण से विनती की “हे राजन, मुझे चित लिटा कर मेरे ऊपर पैर रखकर बैठिए, मैं कम से कम आपके मुखारबिंद का दर्शन लाभ प्राप्त करता रहूँगा। विनाशकाले विपरीत बुद्धि कहावत चरितार्थ करते रावण ने शनिदेव को चित लिटा लिया। शनिदेव की वक्रदृष्टि रावण के चेहरे पर पड़ती रही। यहीं से रावण के अंत की शुरुआत होती है।

हनुमान द्वारा मुक्ति के समय शनिदेव ने कहा था कि जो भी व्‍यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उस पर मेरी वक्रदृष्टि नहीं पड़ेगी। उसे सारी समस्‍याओं से मुक्ति मिलेगी। एक साथी ने उत्कंठा वश जानना चाहा, क्या ऐसा होता है।

हमने कहा- एक चीज होती है- श्रद्धा और दूसरी चीज उसी से उपजती है- विश्वास। जब आपको हनुमान जी पर श्रद्धा है तो उनके कार्यों पर विश्वास भी होगा ही। नहीं तो विकलांग श्रृद्धा किसी काम की नहीं होती। पूरे भारत में शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। यह इसी पौराणिक आख्यान में विश्वास का द्योतक है और इन्ही विश्वासों से किसी देश की संस्कृति जन्म लेती है। आधुनिक मनोविज्ञान मानता है कि मुश्किलों से पार पाने में आत्म-विश्वास बड़े काम की चीज होता है।

हमने भी आत्म-विश्वास पूर्वक जूतों के ढेर पर से चलते हुए सीढ़ियों से हटकर रास्ता बनाया। पंद्रह मिनट में पर्वत की चोटी पर थे। दो साथी भी उसी तरीक़े से ऊपर पहुँच गए। ऊपर से नीचे सीढ़ियों की तरफ़ देखा तो हमारा दल बुरी तरह गसी भीड़ में पैवस्त था। किसी भी तरफ़ निकल नहीं सकता था। उन्हें भीड़ के साथ ही चींटी चाल से खिसक कर चढ़ना था।

हमको भूख लगी थी। एक जगह नारियल से नट्टी निकालने का उपक्रम चल रहा था। कुछ महिलाएं भक्तों का नारियल पत्थरों से कूट कर निकाल एक हिस्सा अपने पास रख बाकी भक्तों को दे देती थीं। हम उनके नज़दीक उनके नारियल निकालने की कला को देखते बैठ गए। एक भक्त हमको भी नारियल से नट्टी निकालने को देने लगे तो हमने तनिक देर सोचा, और नारियल लेकर पत्थरों की दो चोट से गूदा बाहर करके एक हिस्सा उन्हें पकड़ा दिया। दूसरा नीचे रख लिया। फिर तीन-चार भक्त और आ गए। करीब दसेक मिनट यह धंधा चला। भूख मिटाने योग्य नारियल को नल के पानी से धोया और चबाते रहे। कुछ भक्त प्रसाद में मीठी चिरौंजी दे गए। नारियल और चिरौंजी के ग्लूकोस से प्रफुल्लित हो,  दल के साथियों के आने तक पहाड़ी से नीचे तुंगभद्रा नदी के आलिंगन में बसे हनुमानहल्ली गांव के साथ सुंदर दृश्यावली का आनंद लिया।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆

☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच  सा  नायाब  कोई  और नहीं है दूसरा।

इक सच ही तो  झूठा  और  खराब नहीं है।।

=2=

सच  मौन   हो  तो  भी  सुनाई  देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता  है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

=3=

चरित्र  के  बिना  ज्ञान एक झूठी  सी ही बात है।

त्याग बिन  पूजन  तो  जैसे दिन  में  रात  है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता  बिन  विज्ञान  भी  गलत  सौगात  है।।

=4=

सत्य स्पष्ट सरल इसमें   नहीं  कोई  दाँव  होता है।

जैसे  धूप  में  लगती  शीतल  सी  छाँव  होता है।।

गहन  अंधकार  को  भी सच का सूरज है चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होताहै।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #220 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – परीक्षाओं से डर मत मन… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – परीक्षाओं से डर मत मन…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 220

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – परीक्षाओं से डर मत मन…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धरा को जब तपा दिनभर प्रखर रवि झुलस देता है

तभी चंदा की शीतल चाँदनी की रात होती है।

क्षितिज तब जब कभी नभ को सघन घन घेर लेते

हैं कड़कती बिजलियाँ, तब ही सुखद बरसात होती है।

*

डुबा चुकता है जब बस्ती उतरता बाढ़ का पानी

हमेशा धैर्य से ही सब दुखों की मात होती है।

निराशा के अँधेरों में कोई जब डूब जाता है

अचानक द्वार पै कोई खुशी बात होती है ॥

*

परीक्षाओं से डर मत मन ये तो हिम्मत बढ़ाती है

सही जीवन की इनके बाद ही शुरुआत होती है।

नहीं होता किसी के साथ जब कोई अँधेरे में तो

तब हरदम अंजाने उसके हिम्मत साथ होती है॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #271 ☆ सोSहम् शिवोSहम्… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख सोSहम् शिवोSहम्। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 271 ☆

सोSहम् शिवोSहम्… ☆

Sहम् शिवोSहम्…जिस दिन आप यह समझ जाएंगे  कि ‘मैं कौन हूं’  फिर जानने के लिए  कुछ शेष नहीं रहेगा। इस मिथ्या संसार में मृगतृष्णा से ग्रसित मानव दौड़ता चला जाता है और उन इच्छाओं को पूर्ण कर लेना चाहता है, जो उससे बहुत दूर हैं। इसलिए वे मात्र स्वप्न बन कर रह जाती हैं और उसकी दशा तृषा से आकुल-व्याकुल उस मृग के समान हो जाती है, जो रेत पर विकीर्ण सूर्य की किरणों को जल समझ भागता चला जाता है और अंत में अपने प्राण त्याग देता है। यही दशा आधुनिक मानव की है, जो अधिकाधिक सुख-संपदा पाने का हर संभव प्रयासरत रहता है; राह में आने वाली आपदाओं व दुश्वारियों की परवाह तक नहीं करता और संबंधों को नकारता हुआ आगे बढ़ता चला जाता है। इस स्थिति में उसे दिन-रात में कोई अंतर नहीं भासता। वह अहर्निश कर्मशील रहता है और एक अंतराल के पश्चात् बच्चों के मान-मनुहार, पत्नी व परिजनों के सान्निध्य  से  वंचित रह जाता है। वह उसी भ्रम में रहता है  कि पैसा व सुख-सुविधाएं स्नेह व प्रेम का विकल्प हैं। परंतु बच्चों को आवश्यकता होती है…माता के स्नेह, प्यार-दुलार व सानिध्य-साहचर्य की, पिता के सुरक्षा-दायरे की, जिसमें बच्चे स्वयं को सुरक्षित अनुभव करते हैं और माता-पिता के संरक्षण में वे ख़ुद को किसी बादशाह से कम नहीं समझते। परंतु आजकल बच्चों व बुज़ुर्गों को एकांत की त्रासदी से जूझना पड़ रहा है, जिसके परिणाम-स्वरूप  बच्चे ग़लत राहों पर अग्रसर हो जाते हैं और टी• वी•, मोबाइल व मीडिया की गिरफ़्त में रहते हुए कब अपराध-जगत् में प्रवेश कर जाते हैं;  जिसका ज्ञान उनके माता-पिता को बहुत देरी से होता है। घर के बड़े-बुज़ुर्ग भी अक्सर स्वयं को असुरक्षित अनुभव करते हैं। वे आंख, कान व मुंह बंद कर के जीने को विवश होते हैं,  क्योंकि कोई भी माता-पिता अपने व अपने बच्चों के बारे में, एक वाक्य भी सुन कर हज़म नहीं कर पाते। इतना ही नहीं, यदि वे बच्चों के हित में भी कोई सुझाव देते हैं, तो उन्हें उसी पल उनकी औक़ात का अहसास दिला दिया जाता है। अपने अंतर्मन में उठते भावोद्वेलन से जूझते हुए, वे मासूम बच्चे अवसाद के शिकार हो जाते हैं और बच्चों के माता-पिता भी आत्मावलोकन करने को  विवश हो जाते हैं; जिसका ठीकरा वे एक-दूसरे पर फेंक कर अर्थात् दोषारोपण कर निज़ात पाना चाहते हैं। परंतु यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं लेता। अक्सर ऐसी स्थिति में वे अलगाव की स्थिति तक पहुंच जाते हैं।

संसार में मानव के दु:खों का सबसे बड़ा कारण है… विश्व के बारे में पोथियों से ज्ञान प्राप्त करना, क्योंकि यह भौतिक ज्ञान हमें मशीन बना कर रख देता है और हम अपनी हर हसरत को पूरा कर लेना चाहते हैं – चाहे हमें उसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत ही क्यों न चुकानी पड़े तथा बड़े से बड़ा त्याग ही क्यों न देना पड़े। यह मानव-जीवन की त्रासदी है कि हम अंधाधुंध बेतहाशा दौड़ते चले जाते हैं, जबकि हम अपने जीवन के लक्ष्य से भी अवगत नहीं होते। सो! यह सब तो अंधेरे में तीर चलाने जैसा होता है। हमारा दुर्भाग्य है कि हम यह जानने का प्रयास ही नहीं करते कि ‘मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और मेरे जीवन का प्रयोजन क्या है?’

वास्तव में इस आपाधापी के युग में, यह सब सोचने का समय ही कहां मिलता है… जब हम अपने बारे में ही नहीं जानते, तो जीव-जगत् को समझने का प्रश्न ही कहां उठता है? आदि-गुरु शंकराचार्य पांच वर्ष की आयु में घर छोड़ कर चले गए थे… इस तलाश में कि ‘मैं कौन हूं’ और उन्होंने ही सबसे पहले अद्वैत दर्शन अर्थात् परमात्मा की सत्यता से अवगत कराया कि ‘ब्रह्म सत्यम्, जगत् मिथ्या’ है।  संसार में जो कुछ भी है…माया के कारण सत्य भासता है और ब्रह्म सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। केवल वह ही सत्य है, निराकार है, सर्वव्यापक है, अनादि है, अनश्वर है। परंतु समय अबाध गति से निरंतर चलता रहता है, कभी रुकता नहीं। प्रकृति के विभिन्न उपादान सूर्य, चंद्रमा, तारे व पृथ्वी आदि सभी निरंतर क्रियाशील रहते हैं। इसलिए सब कुछ निश्चित है; समयानुसार निरंतर घटित हो रहा है और वे सब नि:स्वार्थ व निष्काम भाव से दूसरों के हित में कार्यरत हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते; जल व वायु प्राणदायक हैं…अपने तत्वों का उपयोग व उपभोग स्वयं नहीं करते। श्री परमहंस योगानंद जी का यह सारगर्भित वाक्य ‘खुद के लिए जीने वाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता; परंतु जब आप दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं, तो वे आपके लिए जीते हैं’ बहुत सार्थक संदेश देता है। ‘आप जैसा करते हैं, वही लौट कर आपके पास आता है।’ नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म सर्वोत्तम होता है। गीता के  निष्काम कर्म का संदेश मानवतावादी भावनाओं से ओत-प्रोत व आप्लावित है।

स्वामी विवेकानंद जी का यह वाक्य हमें ऊर्जस्वित करता है कि ‘किस्मत के भरोसे न बैठें, बल्कि पुरुषार्थ यानि मेहनत के दम पर ख़ुद की किस्मत बनाइए।’  परमात्मा में श्रद्धा, आस्था व विश्वास रखना तो ठीक है, परंतु हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाने का औचित्य नहीं है। अब्दुल कलाम जी के विचार विवेकानंद जी के उक्त भाव  को पुष्ट करते हैं कि ‘जो लोग परिश्रम नहीं करते और भाग्य के सहारे प्रतीक्षारत रहते हैं, तो उन्हें जीवन में उन बचे हुए फलों की प्राप्ति होती है, क्योंकि पुरुषार्थी व्यक्ति तो अपने अथक परिश्रम से यथासमय उत्तम फल प्राप्त कर ही लेते हैं।’ सो! आलसी लोगों को मन-चाहा फल कभी भी प्राप्त नहीं होता।

‘अपने सपनों को साकार करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यही है कि आप जाग जाएं’— पाल वैलेरी का यह कथन बहुत सार्थक है और अब्दुल कलाम जी भी मानव को यह संदेश देते हैं कि ‘खुली आंखों से सपने देखो, अर्थात् यदि आप सोते रहोगे, तो परिश्रमी, पुरूषार्थी लोग आप से आगे बढ़कर वांछित फल प्राप्त कर लेंगे और आप हाथ मलते रह जायेंगे।’ समय बहुत अनमोल है, लौट कर कभी नहीं आता। सो! हर पल की कीमत समझो। ‘स्वयं को जानो और पहचानो।’ जिस दिन आप समय की महत्ता को अनुभव कर स्वयं को पहचान जाओगे…अपनी बलवती इच्छा से वैसे ही बन जाओगे। सो! आवश्यकता है–अपने अंतर्मन में निहित सुप्त- शक्तियों को जानने की, पहचानने की, क्योंकि पुरुषार्थी लोगों के सम्मुख, तो बाधाएं भी खड़ा रहने का साहस नहीं जुटा पातीं…इसलिए अच्छे लोगों की संगति करने का संदेश दिया गया है, क्योंकि उस स्थिति में बुरा वक्त आएगा ही नहीं। जब आपके विचार अच्छे होंगे, तो आपकी सोच भी  सकारात्मक होगी और आप सत्य के निकट होंगे। सत्य सदैव कल्याणकारी होता है, शुभ होता है, सुंदर होता है और सबका प्रिय होता है। दूसरी ओर सकारात्मक सोच आपको निराशा रूपी गहन अंधकार में भी भटकने नहीं देती। आप सदैव प्रसन्न रहते हैं और खुश-मिज़ाज लोगों की संगति सबको प्रिय होती है। इसलिए ही रॉय गुडमैन के शब्दों में ‘हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि खुशी जीवन की यात्रा का  एक तरीका है, न कि जीवन की मंज़िल’ अर्थात् खुशी जीने की राह है; अंदाज़ है, जिसके आधार पर आप अपनी मंज़िल पर सहजता से पहुंच सकते हैं।

मानव व प्रकृति का निर्माण पंच-तत्वों से हुआ है…  पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और अंत में मानव इनमें ही विलीन हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश, वह आजीवन काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के  द्वंद्व से मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता तथा इसी ऊहापोह में उलझा रहता है। हमारे वेद, उपनिषद्, शास्त्र, तीर्थ-स्थल व अन्य धार्मिक – ग्रंथ समय-समय पर हमारा ध्यान जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर दिलाते हैं… जिसका प्रभाव स्थायी होता है। कुछ समय के लिए तो मानव निर्वेद अथवा निरपेक्ष भाव से इनकी ओर आकर्षित होता है, परंतु फिर माया के वशीभूत होने के पश्चात् सब कुछ भुला बैठता है। जीवन के अंतिम पड़ाव में वह प्रभु से ग़ुहार लगाता है कि वह उसका नाम-सिमरन व ध्यान करना चाहता है, परंतु उस स्थिति में पांचों कर्मेंद्रियां आंख, कान, नाक, मुंह, त्वचा उसके नियंत्रण में नहीं होतीं। उसका शरीर शिथिल हो जाता है, बुद्धि कमज़ोर पड़ जाती है तथा नादान मानव सबसे अलग-थलग पड़ जाता है, क्योंकि वह अहंनिष्ठ  स्वयं को आजीवन सर्वश्रेष्ठ समझता रहा। आत्मचिंतन करने पर  ही उसे अपनी ग़लतियों का ज्ञान होता है और वह उस स्थिति में प्रायश्चित करना चाहता है। परंतु उसके परिवार-जन भी अब उससे कन्नी काटने लग जाते हैं। कुछ समय गुज़र जाने के पश्चात् उन्हें उसकी आवश्यकता अनुभव नहीं होती और वे सब उसे नकार देते हैं। सो! अब उसे अपना जीवन रूपी बोझ स्वयं अकेले ही ढोना पड़ता है।

बेंजामिन फ्रैंकलिन का यह कथन ‘बुद्धिमान लोगों को सलाह की आवश्यकता नहीं होती और मूर्ख लोग इसे स्वीकार नहीं करते’ विचारणीय है। इसके माध्यम से मानव में आत्मविश्वास की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। यदि वह बुद्धिमान है, तो शेष जीवन का एक-एक पल स्वयं को जानने-पहचानने में लगा देता है… और प्रभु का नाम-स्मरण करने में रत रहता है। ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ अर्थात् प्रभु की सत्ता व महिमा अपरंपार है। मानव चाह कर भी उसका पार नहीं पा सकता। उस स्थिति में उसे प्रभु-कथा सत्य और शेष सब जग-व्यथा प्रतीत होती है। सो! मानव सदैव मौन रहना अधिक पसंद करता है और वह निंदा-स्तुति, स्व-पर व राग-द्वेष से बहुत ऊपर उठ जाता है। उसे किसी से कोई शिक़वा व शिकायत नहीं रहती, क्योंकि उसकी भौतिक इच्छाओं का तो पहले ही शमन हो चुका होता है। इसलिए वह सदैव संतुष्ट रहता है… स्वयं में स्थित रहता है और प्रभु को प्राप्त कर लेता है। वह कबीर की भांति संसार में उस सृष्टि-नियंता की छवि के अतिरिक्त किसी अन्य को देखना नहीं चाहता…’नैना अंतर आव तू, नैन झांप तोहि लेहुं/ न हौं देखूं और को, न तुझ देखन देहुं’ अर्थात् वह प्रभु को देखने के पश्चात् नेत्र बंद कर लेता है, ताकि वह उसके सानिध्य में रह सके। यह है प्रेम की पराकाष्ठा व तादात्म्य की स्थिति…जहां आत्मा-परमात्मा में भेद समाप्त हो जाता है। सूरदास जी की गोपियों का कृष्ण को दिया गया उपालंभ भी इसी तथ्य को दर्शाता है कि ‘भले ही तुम नेत्रों से तो ओझल हो गए हो और गोकुल से मथुरा में जाकर बस गए हो, परंतु उनके हृदय से दूर जाकर दिखलाओ, तो मानें’ गोपियों के प्रगाढ़ प्रेम व अगाध विश्वास को दर्शाता है। ‘प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय’ अर्थात् प्रेम की तंग गली में उसी प्रकार दो नहीं समा सकते, जैसे एक म्यान में दो तलवार। अत: जब तक आत्मा-परमात्मा का मिलन नहीं हो जाता, तब तक वह कैवल्य की स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि जब तक मानव विषय-वासनाओं…काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार का त्याग कर, ‘मैं और तुम’ की स्थिति से ऊपर  नहीं उठ जाता…वह ‘लख चौरासी अर्थात् जन्म- जन्मांतर तक आवागमन के चक्कर में फंसा रहता है।’

अंत में मैं यह कहना चाहूंगी कि सोSहम् शिवोSहम् अर्थात् मैं ही ब्रह्म हूं और सम्पूर्ण प्राणी-जगत् सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की भावनाओं से ओत-प्रोत है। सो! उस सृष्टि-नियंता की सत्ता को जानना-पहचानना ही मानव का प्रथम उद्देश्य होना चाहिए। मानव जब स्वयं को जान जाता है…समस्त सांसारिक बंधन व भौतिक सुख- सुविधाएं उसे त्याज्य प्रतीत होती हैं। वह पल भर भी उस प्रभु से अलग रहना नहीं चाहता। उसकी यही कामना, उत्कट इच्छा व प्रबल आकांक्षा होती है कि एक भी सांस बिना प्रभु-सिमरन के व्यर्थ न जाए और स्व-पर व आत्मा-परमात्मा का भेद समाप्त हो जाए। यही है–मानव जीवन का प्रयोजन व अंतिम लक्ष्य… सोSहम् शिवोSहम्– जिसे प्राप्त करने में मानव को जन्म-जन्मांतर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #44 – गीत –  प्रेम रंग डालें कान्हा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतप्रेम रंग डालें कान्हा

? रचना संसार # 44 – गीत – प्रेम रंग डालें कान्हा…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

नटखट कान्हा बीच डगर,

करता बरजोरी।

डूब रही है श्याम रंग,

ब्रज की भी छोरी।।

 

 शोर मचाती निकली है,

 मस्तों की टोली।

 कान्हा मारे पिचकारी,

 भीग गयी चोली।

 रंग की फुहारें चलतीं,

 जैसे हो गोली।।

 तन मन भी भीगा राधे,

 कैसी ये होरी।

 

 प्रेम रंग डालें कान्हा,

 छाईं है लाली।

 राधे मदहोश रंग में,

 मीरा मतवाली।।

 चुपके से आती ललिता,

 है भोली भाली।

 हँसी ठिठोली करतीं सब

 ब्रज की तो गोरी।।

 

मनहर मूरत मोहन की,

जादू है डाला।

चंचल चितवन कान्हा के

गले मणिक माला।।

छैल छबीला रसिया है,

गोकुल का ग्वाला।

मोहित ब्रज की हैं बाला,

पकड़ गई चोरी।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #271 ☆ भावना के मुक्तक – नारी ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के मुक्तक – नारी )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 271 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

चांदनी जैसी प्यारी है उसकी हंसी । ।।

सांस महके गुलाबों की गुल में बसी।

छू गई जो हवा बन के पागल कहीं,

धड़कनें बजती है रागिनी सी फंसी।

*

चाहे चलती हैं जोरो से भी आंधियां ।

मुश्किलों में भी रुकती नहीं नारियां ।

उसके हिम्मत के चर्चे बहुत है मगर ,

ऊंचा इतिहास रचती है  ये नारियां।।

*

जो धरा की तरह सब सहती रही

जो जल की तरह सिर्फ बहती रही

जो समझता है कमजोर दुनिया में,

लौह बनकर मजबूत होती रही।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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