(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बदलाव की बयार।)
दुकान में एक गरीब औरत अपने बच्चे को गोदी में लेकर एक मैली सी साड़ी पहनी हुई सेठ जी के सामने खड़ी हो गई।
उसे देखकर दुकान के मालिक ने कहा – बहन जी आगे जाओ मैं दान देकर थक गया हूं सुबह से अभी तक दुकान में किसी ग्राहक ने कोई सामान की खरीदी नहीं की है?
– कोई बात नहीं सेठ जी आप अपने नौकर से कहिए, मुझे एक अच्छी सी साड़ी दिखाये। मेरे भाई की शादी है मुन्ना के लिए भी कपड़ा लेना है?
तभी सामने से दो नौकर (दुकान के कर्मचारी) आए और उन्होंने कहा – आप यहां पर आ जाइए और इनमें से जो भी आपको अच्छा लगे वह पसंद कर लीजिए। पहले आप यह बताइए कि आपको साड़ी कितने दाम की चाहिए?
– जो सामने गुलाबी वाली रखी है वह कितने की है?
– ये 800 की है क्या इतनी महंगी साड़ी ले पाओगी?
– हां ठीक है पैक कर दो।
– अपने बेटे का कपड़ा लेकर तुरंत काउंटर के पास गई और बोली कपड़े का कितना पैसा हुआ?
सेठ जी ने कहा – बहन जी आपके कपड़े देखकर मुझे लगा कि आप क्या खरीदोगी, जिनके कपड़े देखकर हम लोग दुकान का सारा सामान अच्छा दिखा रहे हैं उनके मुंह देखिए? इन्हें समय की कीमत भी नहीं पता है? इन सब मैडम लोगों को तो दोपहर का टाइम पास करना है।
– अभी मुझे काम पर भी जाना है।
– ठीक बात है बहन आप जब भी कपड़े लेने आओगी मैं आपको डिस्काउंट दूंगा और आप बच्चे का कपड़ा मेरी ओर से उपहार समझ के ले जाइए। आपसे सिर्फ ₹800 ही लेंगे।
– एक काम करने वाला ही दूसरे काम करने वाले की कीमत और समय की कीमत को समझ सकता है।
तभी दुकान में कुछ महिला जो बैठी थी वह एक दूसरे से कहती हैं- चलो! बहना हम चलते अपनी बेइज्जती करने के लिए थोड़ा ना बैठे हैं?
और वे अपनी कार में बैठकर चली जाती है ।
सेठ जी ने बड़ी कृतज्ञता से उस गरीब औरत से कहते हैं – बहन चाय पी लो ।
वह कहती है – नहीं भाई अगले बार आकर पियेंगे अब तो हमारा रिश्ता बन गया है । पेट के लिए भाई बहुत कुछ करना पड़ता है घायल की गति घायल ही जाने…. ।
हमारा शहर अब स्मार्ट सिटी बन गया है इसलिए यह सब मैडम जी लोग के लिए नदी के किनारे नगर पालिका द्वारा एक कैमरा लगा दिया गया है।
माननीय विधायक जी ने ऐलान किया है की जो बहन सबसे सुंदर दिखेगी उसे इनाम दिया जाएगा ।
उसी दौड़ में सब शामिल हैं। सौंदर्यीकरण शहर का हो रहा है लोग भी बदलाव की बयार में बह रहे हैं।
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-११ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(षोडशी शिलॉन्ग)
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो!(मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो!(कैसे हैं आप?)
प्रिय मित्रों, पिछली बार हमने शिलॉन्गका सफर शुरू किया| अब हम शिलॉन्ग में स्थित कुछ और नयनाभिराम स्थल देखेंगे| तो फिर चलिए, बहुत देर तक चलने की तैयारी करें!
एलिफेंट जलप्रपात (Elephant falls)
शिलॉन्ग के उत्तर भाग में एक अन्य सर्वांगसुंदर ऐसा स्थान है, जो कि पर्यटकों ने देखना ही चाहिए, ऐसा एलिफेंट फॉल! इस जलप्रपात के निकट हाथी के आकार की एक विशाल चट्टान थी, इसलिए ब्रिटिशों ने इसका नाम रखा एलिफेंट फॉल| परन्तु अब इस निर्झर के पास वह कुंजर सम महाकाय चट्टान नहीं रहा क्योंकि, १८९७ के भूकंप में वह नष्ट हो गया| लेकिन उसका नामकरण जिस नाम से हुआ, वहीं नाम आज भी प्रचलित है! शहर के मध्य से ११ किलोमीटर अंतर पर स्थित यह त्रिस्तरीय जलप्रपात (यह जलप्रपात तीन चरणों में गिरता है) देखने हेतु वर्षा ऋतू में जाना बेहतर है, श्वेत दुग्ध जैसी सैकड़ों फेनिल धाराओं की लयबद्ध सप्तसुरों से पूरे क्षेत्र को निनादित कर देने वाले इस जलप्रपात का प्राकृतिक रमणीय दर्शन मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। एक बार देखने पर दृष्टि हटती ही नहीं| अगर वर्षा ऋतू में जा रहे हैं, तो सीढ़ियों की उतरन ध्यानपूर्वक सम्हालते हुए एक स्तर देखिये, आँखों में समा जाये तो, नीचे उतरिये, दूसरा स्तर देखिये, फिर एक बार नीचे सीढ़ियों की उतरन, और सबसे गहरा तीसरा स्तर, जल का प्रवाह नीचे की ढलान में प्रवाहित होते हुए देखिए। सबसे नीचे इस मनोहरी तथा रमणीय नीलजलप्रपात का एकत्रित जल एक छोटेसे तालाब में समाहित होता है| तालाब के चारों ओर सदाहरित वनसम्पदा सदैव साथ में ही होती है! मित्रों, अब अगला कार्य कठिन ही समझिये, क्योंकि अब सीढ़ियां जो चढ़नी हैं! केवल निर्झर का ही नहीं बल्कि, उसे अनायास बाहुपाश में लेनेवाली नित्यहरित हरियाली का भी मनभावन दर्शन करते चलिए! खिलखिलाता हुआ यह झरना और उससे सटी, साथ देती हुई गहन हरीभरी पर्वतश्रृंखला! यह नेत्रदीपक और ‘पिक्चर परफेक्ट’ दृश्य नेत्रों और कैमरा में कैद कर लीजिये! ऐसा अभूतपूर्व दृश्य देखने के लिए शिलॉन्ग में पर्यटकों की भीड़ बड़ी संख्या में इकठ्ठी हो जाती है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है!
डॉन बॉस्को संग्रहालय (Don Bosco Museum)
यह संग्रहालय शिलॉन्ग शहर के मध्यबिंदू से ५ किलोमीटर अंतर पर सेक्रेड हार्ट चर्च के विस्तृत परिसर में स्थित है| कलासक्त, इतिहास प्रेमी, नावीन्य की नयी मार्गिका खोजने वाले, मेघालय की संस्कृति के बारे में जानने के लिए उत्सुक, इन सभी प्रकार के युवा और वृद्ध पर्यटकों का इस भवन में प्रेम से स्वागत किया जाता है। प्रारम्भ में ही एक पथदर्शक हमें इस संग्रहालय में ७ मंजिलों में स्थित विविध बड़े कमरों (दर्शक दीर्घाओं) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देता हैं| परन्तु बाहर खड़े होकर इस भव्य-दिव्य संग्रहालय की रत्ती भर भी कल्पना नहीं की जा सकती| इस विशाल ७ मंजली इमारत में सत्रह अलग-अलग सुरम्य दर्शक दीर्घाएँ हैं! इसमें क्या नहीं है यह पूछिए! कला भवन (आर्ट गॅलरी), हस्तकला, कलावस्तू, पोशाक, गहने और ईशान्य भारत के विविध जनजातियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों का एक विस्तृत संग्रह यहां भर भर कर रखा गया है। संपूर्ण ईशान्य भारत के विहंगम दृश्यों की एकत्रित रम्य दर्शिका एक ही स्थान पर साध कर रखी है इस दर्शनीय संग्रहालय में!
यहाँ इतना कुछ देखने लायक है, कि पर्यटकों का संपूर्ण संतुष्ट होना काफी मुश्किल है! यह सब देखने के लिए एक पूरा दिन भी कम ही होगा! कितना कुछ नजरों में समाहित करें और फोटो भी कितने खींचें! “कुछ तो बाकी रह गया”, हमारी ऐसी अवस्था प्रत्येक मंजिल पर हो जाती है| इसीलिये अगर समय की कमी है तो, आप ब्रोशर को ध्यान से देखकर अपनी पसंद की मंजिलों का चयन कीजिये और जब तक संतुष्ट न हों तब तक उन्हें शांति से देखें। मैंने अपनी पसन्दानुरूप ‘आर्ट गॅलरी’ में मनमाफिक आनंदपूर्वक समय बिताया! इस इमारत का सबसे रोमांचक बिंदु निश्चित रूप से ७ वीं (शीर्ष/ऊपर वाली) मंजिल है “स्काय वॉक”| हम जब वहां पहुँचे तब थोड़े समय पहले बारिश आ चुकी थी, इसलिए मार्ग थोडासा फिसलन भरा था, यहाँ गोल गुम्बद के चारों ओर घूमकर शिलॉन्ग का मनमोहक नज़ारा देखना एक चरम मनोज्ञ अनुभव है। क्या देखना है, उस खास बिंदु पर लिखा है ही, अलावा इसके फोटो खींचना तो अनिवार्य है ही, परन्तु प्रिय मित्रों, सेल्फी लेते वक्त सावधानी बरतें! चौथी मंज़िल पर एक बढ़िया कॅफे है! उसीके बगल में ईशान्य भारत का ख़ूबसूरत दर्शन कराने वाली फिल्म एक छोटेसे सिनेमाघर में अवश्य ही देखना चाहिए। संक्षेप में बताऊँ तो यह भव्य दिव्य संग्रहालय ईशान्य भारत की सांस्कृतिक सम्पन्नता को दर्शाने वाली एक रेखात्मक चित्र-गैलरी ही समझ लीजिये!
कॅथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ ख्रिश्चनस
शिलॉन्ग में स्थित यह चर्च कॅथोलिक आर्कडिओसीस का कॅथेड्रल और शिलाँग के मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप के आसन के रूप में प्रसिद्ध है| शहर के मध्य बिंदु से केवल २ किलोमीटर दूर यह चर्च पर्यटकों की बहुत ही पसंदीदा जगह है| लगभग ५० वर्ष पूर्व निर्मित यह कॅथेड्रल शिलॉन्ग आर्कडिओसेस के साढे तीन लाख से भी अधिक कॅथलिक लोगों का मुख्य प्रार्थनास्थल है| उसमें पूर्व खासी हिल्स और री-भोई जिलों का भी समावेश है (कुल ३५ चर्च)| यह चर्च Laitumkhrah इस भाग में है| इस चर्च का नाम येशू के Mary the mother के नाम के पर दिया गया है| मदर मेरी के पुतले सहित यह शुभ्र धवल संगमरमर की इमारत अति भव्य और शोभायमान दिखती है| इस चर्च की खासियत है ऊँची कमानें (मेहराब) और बेहतरीन रंगों से सुशोभित कांच की खिड़कियां! कॅथेड्रल के अंदर क्रॉस की कुछ सुंदर टेराकोटा स्टेशन्स हैं, जो येशू के जीवन की घटनाएं दर्शाती हैं| इस भाग में प्रमुख रूप से येशू ख्रिस्त की यातनाएं और मृत्यूविषयक चित्रों के दर्शन होते हैं| ये चित्र जर्मनी की एक कला संस्था ने तैयार किये हैं| साथ ही यहाँ पवित्र शास्त्र और संतों के जीवन के दृश्य चित्रित किये गए हैं| फ्रान्स में १९४७ साल में तैयार किये गए शीशे के अप्रतिम रंगीन दरवाजे इस चर्च की एक और विशेषता है! मुख्य वेदी के सामने बाँयी ओर शिलॉन्ग के पहले मुख्य बिशप ह्युबर्ट डी’रोसारियो की कब्र है| कब्र के आगे और मेरी तथा बाल येशू के पुतले के सामने एक और वेदी है| यहाँ के पवित्र वातावरण में कुछ समय शांति से बैठने का मन जरूर करता है! यहाँ हर महीने में नौ दिन विशेष भक्ति की जाती है| ऊँची पहाड़ी पर स्थित और वहीं उकेरा गया है ग्रोटो चर्च, जो कॅथेड्रल के ठीक नीचे स्थित है, हम इस ग्रोटो चर्च को भी भेंट दे सकते हैं|
वॉर्ड्’स लेक (Ward’s Lake)
यह सुंदर मानवनिर्मित तालाब शहर के मध्यभाग में राजभवन के निकट स्थित है| आसपास रम्य उपवन होने के कारण इस तालाब का परिसर सदैव छोटे बड़े लोगों से भरपूर भरा होता है| यहाँ का एक आकर्षण है, स्वचलित विभिन्न आकारों की नौकायन नौकाएँ। पैरों की मदद लेकर आराम से नियंत्रित की जाने वाली इन नौकाओं में सुख चैन से विहार कीजिये, साथ ही हरीभरी वृक्षलताओं का दर्शन करते करते नौकायन करते रहिये| तालाब के ऊपर इस पार्क तथा बोटॅनिकल गार्डन को जोड़ने वाला पुल है, इसके नीचे से नौका आगे ले जाएँ| इस तालाब में बगुलों की श्वेत पंक्तियाँ तैरती रहती हैं| नौका के निकट आते ही वें बिखर जाती हैं| सूरज के ढ़लते ही नौकायन बंद होता है, उसके बाद ही उनका संपूर्ण तालाब में स्वच्छंद विहार आरम्भ होता है! कुल मिलाकर यहीं सच है कि, कोई भी जानवर या पक्षी इंसानों पर भरोसा नहीं करता! नौकायन का आनंद उपभोगने के बाद इस तालाब के चारों ओर फैले उपवन की पगडंडियों पर बढ़िया चहलकदमी या सिर्फ रिलैक्स करने का भी मज़ा उठाइये। प्राकृतिक परिवेश और अत्यधिक साफ-सफाई इस पार्क को अवश्य ही देखने लायक बनाती है!
थंगराज गार्डन
यह विशाल उपवन भी बहुत सुरम्य है| विविध प्रकार के पेड़पौधों और फूलों की क्यारियों से फूला, प्राकृतिक सौंदर्य से अभीभूत या स्थान सचमुच ही देखने लायक है| अंदर प्रवेश करते ही क्या देखना चाहिए, इसका मार्गदर्शक बोर्ड नजर आता है| गार्डन में टहलते हुए आप देखेंगे कि, विशिष्ट स्थान पर स्थित वृक्षलताओं की जानकारी देने वाले बोर्ड हर जगह दिखाई देते हैं। उपवन को घेरा डालने वाली पगडंडियां और उनका बाड़(compound), नीचे नजर डालेंगे तो शिलॉन्ग का विहंगम नजारा देखते ही बनता है| सीढ़ियां चढ़नेपर विविध रंगों की वृक्षराजी दृष्टिगत होती है| यहाँ फोटो खींचने लायक बहुतसी सिनेमास्कोप जगहें हैं, साथ ही अंदर शीशे के घर में एक सुंदर नर्सरी (ग्रीनहाऊस) है!
प्रिय मित्रों, हमने आराम से चहलकदमी करते हुए शिलाँग का अद्भुत सफर किया| अभी भी ‘मुझे कुछ कहना है’| वह हम अगले अर्थात अन्तिम भाग में जानेंगे| फ़िलहाल कलम को विराम देती हूँ!
खुबलेई! (khublei)(यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
टिप्पणी –
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ| (लिंक अगर न खुले तो, गाना/ विडिओ के शब्द यू ट्यूब पर डालने पर वे देखे जा सकते हैं|)
Shillong city |Capital of Meghalaya | Informative Video
PYNNEH LA RITI || by kheinkor composed by apkyrmenskhem
आपल्याला दर वेळी प्रमाणे आजही लवून कुमनो! (मेघालयच्या खास खासी भाषेत नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)
मंडळी, मागील वेळेस आपण शिलॉन्गची सफर करायला सुरुवात केली. आता शिलॉन्गमधील अजून कांही नयनरम्य स्थळांना भेट देऊ या. चला तर मग भरपूर चालायची तयारी करून!
एलिफेंट धबधबा (Elephant falls)
शिलॉन्गच्या उत्तर भागातील एक अन्य सर्वांगसुंदर असे ठिकाण म्हणजे पर्यटकांनी बघितलेच पाहिजे असे एलिफेंट धबधबा (एलिफेंट फॉल्स)! या जलप्रपाताला खेटून हत्तीच्या आकारासारखा एक विस्तीर्ण खडक होता, म्हणून ब्रिटिशांनी याचे नांव एलिफेंट फॉल्स असे ठेवले. मात्र आता या निर्झराजवळील तो कुंजरासम भलामोठा खडक नाही, कारण तो १८९७ मधील भूकंपात नष्ट झाला. मात्र या निर्झराचे बारसे ज्या नांवाने झालय तेच नांव आजही प्रचलित आहे! शहराच्या मध्यापासून ११ किलोमीटर अंतरावर असलेला हा त्रिस्तरीय धबधबा (हा धबधबा तीन टप्प्यांमध्ये पडतो) बघायला वर्षाऋतूत जावे, फेसाळणाऱ्या शत शत दुग्ध धारांच्या लयबद्ध सप्तसुरांनी अवघा परिसर निनादून टाकणाऱ्या या निर्झराचे प्राकृतिक रमणीय दर्शन अतिशय मोहून टाकणारे. एकदा बघितल्यावर दृष्टी खिळवून टाकणारे. पावसाळ्यात जात असाल तर पायऱ्यांची उतरण काळजीपूर्वक सांभाळून एक स्तर बघा, डोळ्यात साठवा, खाली उतरा, दुसरा स्तर बघा, परत खाली पायऱ्यांची उतरंड अन सर्वात खोल असा तिसरा स्तर पाण्याच्या प्रवाहात प्रवाहित होतांना बघा. सर्वात खाली या मनोहरी अन रमणीय नीलजलप्रपाताचे एकत्रित जल एका छोट्याशा तलावात साठते. तलावाभोवती हिरवी वनराई सतत सोबत असतेच! मित्रांनो, पुढचे कार्य त्रासदायक, कारण आता पायऱ्या चढायच्या आहेत! केवळ निर्झराचं दर्शन नव्हे तर त्याला अनायास कवेत घेणाऱ्या सदाहरित हिरवाईचे बाहुपाश आहेतच! खळाळणारा हा जलप्रपात अन त्याला लगटून सोबतीला हिरवेगार डोंगर! हे नेत्रदीपक अन ‘पिक्चर परफेक्ट’ दृश्य नेत्रात अन कॅमेऱ्यात कैद करून ठेवा! असे हे अभूतपूर्व दृश्य बघण्यासाठी शिलॉन्गमध्ये पर्यटक मोठ्या संख्येने गर्दी करतात यात नवल ते काय!
डॉन बॉस्को संग्रहालय (Don Bosco Museum)
हे संग्रहालय शिलॉन्ग शहराच्या मध्यबिंदू पासून ५ किलोमीटर अंतरावर सेक्रेड हार्ट चर्चच्या आवारात आहे. कलासक्त, इतिहास प्रेमी, नाविन्याची वाट चोखाळणाऱ्या, मेघालयच्या संस्कृतीविषयी जाणून घेण्यास उत्सुक असणाऱ्या अशा सर्व प्रकारच्या आबालवृद्ध पर्यटकांचे या वास्तूत प्रेमाने स्वागत होते. आरंभीच एक पथदर्शक आपल्याला या संग्रहालयाच्या ७ मजल्यात स्थित विविध दालनांची थोडक्यात माहिती देतो. मात्र बाहेर उभे राहून या भव्य-दिव्य संग्रहालयाची पुसटशी कल्पना देखील येत नाही. या विशाल ७ मजली इमारतीत सतरा वेगवेगळ्या नयनरम्य गॅलरी आहेत! त्यांत काय नाही ते विचारा! कलाभवन (आर्ट गॅलरी), हस्तकला, कलावस्तू, पोशाख, दागिने आणि ईशान्य भारतातील विविध जमातींनी वापरलेली शस्त्रे यांचा विस्तृत संग्रह इथे खच्चून भरलेला आहे. संपूर्ण ईशान्य भारताच्या विहंगम दृश्यांची पर्वणी एकाच ठिकाणी साधून देणारे दर्शनीय असे हे संग्रहालय!
इथे इतके काही बघण्यासारखे असल्याने पर्यटकांचे संपूर्ण समाधान होणे जरा कठीणच! हे सर्व बघण्याकरता एक दिवस देखील कमी पडणार! किती म्हणून नजरेत साठवावे अन फोटो तरी किती काढावेत! “काही बघायचे राहून गेले”, अशी प्रत्येक मजल्यावर आपली अवस्था होते. म्हणूनच आपल्याकडे वेळ कमी असल्यास, पत्रकात बघून आपल्याला आवडतील ते मजले चोखंदळपणे निवडावेत अन ते समाधान होईपर्यंत शांतपणे बघावेत. मी माझ्या आवडीनुसार आर्ट गॅलरीत मनसोक्त रमले! या इमारतीचा सर्वात उत्कंठावर्धक बिंदू अर्थात सर्वात वरचा मजला, “स्काय वॉक”. आम्ही गेलो तेव्हा नुकताच पाऊस पडल्याने मार्ग जरा निसरडा होता, गोल घुमटाभोवती फिरत शिलॉन्गचे मनमोहक दर्शन घ्यायचे, इथे हा चरम मनोज्ञ अनुभव घ्यायलाच हवा, काय बघायचे ते त्या त्या पॉईंट वर लिहिले आहेच, शिवाय फोटो काढणे आलेच, पण सेल्फी काढतांना जपून बरं का मंडळी! चौथ्या मजल्यावर एक छानसे कॅफे आहे! याच्याच बाजूला ईशान्य भारताचं बहारदार दर्शन घडवणारी चित्रफीत एका छोट्या चित्रपट थिएटर मध्ये दाखवल्या जाते, ती आवर्जून बघावी अशीच आहे. थोडक्यात सांगायचे झाले तर, हे भव्य दिव्य संग्रहालय ईशान्य भारताची सांस्कृतिक संपन्नता सांगणारे रेखीव चित्र-दालनच समजा ना!
कॅथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ ख्रिश्चनस
शिलॉन्ग येथील हे चर्च कॅथोलिक आर्कडिओसीसचे कॅथेड्रल चर्च आणि शिलॉन्गच्या मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशपचे आसन म्हणून प्रसिद्ध आहे. शहराच्या मध्यबिंदू पासून केवळ २ किलोमीटर दूर असलेलं हे चर्च पर्यटकांचे अत्यंत आवडते ठिकाण आहे. सुमारे ५० वर्षांपूर्वी हे बांधलेले कॅथेड्रल शिलॉन्ग आर्कडिओसेसच्या साडेतीन लाखांहून अधिक कॅथलिक लोकांचे मुख्य प्रार्थनास्थळ आहे. त्यात पूर्व खासी हिल्स आणि री-भोई जिल्ह्यांचा समावेश आहे (एकंदर ३५ चर्च). हे चर्च Laitumkhrah या भागात आहे. या चर्चचे नांव येशूच्या Mary the mother यांच्यावरून दिलेले आहे, मदर मेरीच्या पुतळ्यासह ही पांढरी शुभ्र संगमरवरी इमारत अति भव्य आणि शोभिवंत दिसते. या चर्चची खासियत म्हणजे उंच कमानी आणि सुंदर रंगांनी सुशोभित काचेच्या खिडक्या! कॅथेड्रलच्या आत, क्रॉसची काही सुंदर टेराकोटा स्टेशन्स आहेत, जी येशूच्या जीवनातील घटना दर्शवतात. या भागात प्रामुख्याने येशू ख्रिस्ताच्या यातना व मृत्यूविषयक चित्रांचे दर्शन होते, ही चित्रे जर्मनी येथील एका कला संस्थेने तयार केली आहेत. या सोबतच येथे पवित्र शास्त्र आणि संतांच्या जीवनातील दृश्ये चित्रित केली आहेत. फ्रान्स येथे १९४७ ला तयार केलेली अप्रतिम रंगीत तावदाने हे या चर्चचे आणखी एक वैशिष्ट्य! मुख्य वेदीसमोर डावीकडे शिलॉन्गचे पहिले मुख्य बिशप ह्युबर्ट डी’रोसारियो, यांची कबर आहे. कबरीच्या पुढे अन मेरी आणि बाल येशूच्या पुतळ्यासमोर आणखी एक वेदी आहे. येथील पवित्र वातावरणात कांही वेळ शांतपणे बसावेसे वाटते! इथे दर महिन्याला नऊ दिवस विशेष भक्ती केली जाते. एका टेकडीवर उंचावर असलेल्या, त्याच टेकडीवर कोरलेल्या आणि कॅथेड्रलच्या अगदी खाली स्थित असलेल्या ग्रोटो चर्चला देखील आपण भेट देऊ शकतो.
वॉर्ड्’स लेक (Ward’s Lake)
हा सुंदर मानवनिर्मित तलाव शहराच्या मध्यभागी राजभवनजवळच स्थित आहे. “अवती भवती रम्य उपवने” असल्याने या तलावाचा परिसर सदैव लहान मोठ्या माणसांनी फुललेला असतो. इथले एक आकर्षण म्हणजे स्वचलित वल्हवणाऱ्या विविध आकाराच्या नौका. पायांनी आरामात नियंत्रित करणाऱ्या या बोटीतून तलावात विहार करावा, सोबतच हिरव्यागार वृक्षवेली अन पुष्पवाटिकांचे दर्शन घेत घेत नौकानयन करावे. तलावाच्यावर पार्क आणि बोटॅनिकल गार्डन यांना जोडणारा पूल आहे, त्याखालून नौका पुढे घ्यावी. या तलावात बगळ्यांची माळफुले तरंगत असतात, नौका जवळ आली की ती विखुरतात. सांजवेळी नौकानयन बंद झाल्यावरच संपूर्ण तलावात त्यांचा स्वच्छंद विहार सुरु होतो! एकंदरीत, माणसांवर कुणीही प्राणी अथवा पक्षी विश्वास ठेवत नाहीत हेच खरे! नौकानयनाचा आनंद लुटल्यावर येथील तलावाभोवती असलेल्या उपवनातील पायवाटांवर मस्त फेरफटका मारा किंवा नुसतेच रिलॅक्स करायला देखील मजा येईल. निसर्गरम्य वातावरण आणि कमालीची स्वच्छता, याकरता हा पार्क आवर्जून बघावा असाच आहे!
थंगराज गार्डन
हे विशाल उपवन पण फार नयनरम्य आहे. विविध वृक्षराजींनी अन फुलांच्या ताटव्यांनी बहरलेले हे निसर्ग शोभेने सजलेले ठिकाण खरोखरी बघण्यासारखे आहे. आत शिरताच काय बघावे याचे मार्गदर्शन करणारा फलक दिसतो. गार्डनमध्ये फिरतांना त्या त्या ठिकाणच्या वृक्षवेलींची माहिती देणारे फलक जागोजागी दिसतात. उपवनाला वेढा घालणाऱ्या पायवाटा अन त्यांचे कुंपण, खाली नजर टाकली की शिलॉन्गचे विहंगम रूप दिसते. पायऱ्या चढल्या की विविध रंगांची वृक्षराजी दृष्टीस पडते. इथे फोटो काढण्याकरता बरीच सिनेमास्कोप ठिकाणे आहेत, आत काचेच्या घरात एक सुंदर नर्सरी (ग्रीनहाऊस) आहे!
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PYNNEH LA RITI || by kheinkor composed by apkyrmenskhem
प्रिय मैत्रांनो, आपण शिलॉन्गची अद्भुत सफर अगदी रमतगमत केली. अजून कांही सांगायचे शिल्लक राहिले आहेच. ते आपण पुढील अर्थात अंतिम भागात जाणून घेऊ! आत्तापुरता विराम देते!
खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)
टीप-
*लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो (कांही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 40 – मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे… ☆ आचार्य भगवत दुबे
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – गोपालदास और श्री कृष्ण।)
मेरी डायरी के पन्ने से… – गोपालदास और श्री कृष्ण
एक राहगीर सड़क पर चल रहा था। अभी दोपहर का समय था। धूप सिर पर थी। पर ठंडी के दिन थे तो चलने वाले राहगीर को कष्ट नहीं हो रहा था। सड़क भी अच्छी और नई बनी हुई थी। खास लोगों का आना -जाना न हो रहा था। एकाध गाड़ी कभी पास से गुज़र जाती अन्यथा सड़क सूनी ही थी। राहगीर को अपने गाँव पहुँचना था। वह भी गति बनाकर चल रहा था।
इतने में उसके पास आकर एक गाड़ी रुकी। गाड़ी चालक ने मधुर स्वर में राहगीर से गाड़ी में बैठने को कहा। वह बोला – आओ मित्र गाड़ी में बैठो । कहाँ जाना है? मैं उतार दूँगा वहाँ। उसके मुख पर मुस्कान थी।
राहगीर थोड़ा हक्का-बक्का रह गया। फिर संभलकर बोला – नहीं साहब, पूछने के लिए शुक्रिया। मैं थोड़ी देर में पहुँच जाऊँगा। पास ही है मेरा गाँव।
पर चालक अपनी ज़िद पर अड़ा रहा बोला
– अरे आ जाओ दोस्त, मैं द्वारिका तक जा रहा हूँ। बीच में तुम्हें जहाँ जाना हो उतार दूँगा। घबराओ नहीं यहाँ से पोरबंदर अभी पंद्रह किलोमीटर है। आओ बैठो।
उसने अब दरवाज़ा खोल दिया। राहगीर सिमटकर सीट पर बैठ गया। अब दोनों साथ बैठे तो गाड़ी चल पड़ी। राहगीर ने गाड़ी में बैठते ही साथ कहा “कृष्णा कृष्णा। “
चालक ने पूछा – तुम्हारा नाम क्या है मित्र?
– गोपालदास।
– कहाँ जा रहे हो ?
– पोरबंदर
– सुदामा के गाँव?
– जी हमारा पूरा कुनबा आज कई वर्षों से यहीं रहता आ रहा है।
– आप द्वारिका में रहते हैं?
– नहीं, कभी रहा करता था। सुना है अब पनडुब्बियों में बिठाकर हज़ारों वर्ष पुराना कृष्ण नगरी की समुंदर में सैर करने की व्यवस्था की जा रही है। बस वही सब देखने का उत्साह है।
– हाँ साहब सुना है कि समुंदर के नीचे स्वर्ण नगरी द्वारका मिली है।
– पोरबंदर अभी बीस – पच्चीस मिनिट में पहुँच जाएँगे। तुमने बैठते ही साथ कृष्णा का नाम क्यों लिया?
– वे हमारे आराध्य हैं साहब । हम सब उसी को पूजते हैं।
– पर वह तो चोर था, मक्खन चुराता था, गोपियों के मटके फोड़ता था। कालिया को उसने मारा था फिर अपने मामा कंस को भी मारा। साथ में महाभारत के भीषण युद्ध में भी रथ पर सवार सारी लड़ाई का खेल देखता रहा। उसके तो कई अवगुण थे।
– साहब गाड़ी रोको।
– क्यों ? क्या हुआ?
– हम अपने आराध्य के विरुद्ध एक शब्द नहीं सुन सकते। मुझे उतार दीजिए साहब। मैं उसी का मनन करते हुए घर पहुँच जाऊँगा।
– अरे क्षमा करो मित्र ! तुम्हें आहत करना मेरा उद्देश्य न था। मैं तो उसके अवगुणों के बारे में ही अधिक जानता हूँ।
– तो गलत जानते हो। राहगीर क्रोधित होकर बोला। – कृष्ण पालनहार हैं। संसार से बुराइयों को दूर करने के लिए ही उनका जन्म हुआ था। एक बार गीता पढ़ लो साहब सकारात्मक सोच पैदा हो जाएगी। फिर कृष्ण के अवगुण भूल जाओगे। आप गाड़ी वाले अधूरा ज्ञान रखते हैं। सच क्या है यह भी तो जानिए।
– वाह! हज़ारों साल बाद भी कृष्ण के प्रति तुम्हारी आस्था देखकर आनंद आया। क्षमा करो मित्र मैंने अनजाने में तुम्हें आहत किया।
अब उसने गाड़ी रास्ते के किनारे लगाई और बोला – लो बातों – बातों में तुम्हारा गाँव आ गया।
– धन्यवाद साहब। आपने अपना नाम नहीं बताया?
– मेरा नाम कृष्ण है।
राहगीर गाड़ी से उतरने लगा बोला – कृष्ण नाम है और तब भी कृष्ण के गुणों के बारे में नहीं जानते? आधुनिक दुनिया के पढ़े -लिखे लोग कृष्ण से कितने दूर हैं! गीता अवश्य पढ़िएगा।
गाड़ी से उतरकर दरवाज़ा बंद करने के लिए जब वह मुड़ा तो वहाँ कोई गाड़ी न थी। दूर दूर तक कोई दिखाई न दिया। न गाड़ी के पहियों के निशान थे। हाँ उस स्थान पर मोर का एक पंख अवश्य पड़ा था।
राहगीर गोपाल दास अपने घुटनों पर बैठ गया। मोर पंख को माथे से लगाकर फफक- -फफककर वह रोने लगा।
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – घर की सरकार का बजट।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 259 ☆
व्यंग्य – घर की सरकार का बजट
बतंगड़ जी मेरे पड़ोसी हैं। उनके घर में वे हैं, उनकी एकमेव सुंदर सुशील पत्नी है, बच्चे हैं। मैं उनके घर के रहन सहन परिवार जनो के परस्पर प्यार, व्यवहार का प्रशंसक हूं। जितनी चादर उतने पैर पसारने की नीति के कारण इस मंहगाई के जमाने में भी बतंगड़ जी के घर में बचत का ही बजट रहता है। परिवार में सदा सादा जीवन उच्च विचार वाली आदर्श आचार संहिता का सा वातावरण होता है। देश, प्रदेश में हर साल प्रस्तुत होते बजट, बजट के पूर्व एवं पश्चात टी वी डिबेट डिस्कशन का असर बतंगड़ जी के घर पर भी हुआ। बतंगड़ जी की पत्नी, और बच्चो के अवचेतन मस्तिष्क में लोकतांत्रिक भावनाये संपूर्ण परिपक्वता के साथ घर कर गई। उन्हे लगने लगा कि घर में जो बतंगड़ जी का राष्ट्रपति शासन चल रहा है जो नितांत अलोकतांत्रिक है। बच्चो को लगा उनके खर्चों में कटौती होती है। पत्नी को अपनी किटी पार्टी में बजट बढ़ोतरी की आवश्यकता याद आई।
बतंगड़ जी को अमेरिका से कंम्पेयर किया जाने लगा, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतो की सबसे ज्यादा बात तो करता है पर करता वही है जो उसे करना होता है। बच्चो के सिनेमा जाने की मांग को उनकी ही पढ़ाई के भले के लिये रोकने की विटो पावर को चैलेंज किया जाने लगा, पत्नी की मायके जाने की मंहगी डिमांड बलवती हो गई। मुझे लगने लगा कि एंटी इनकंम्बेंसी फैक्टर बतंगड़ जी को कही का नही छोड़ेगा। अस्तु, एक दिन चाय पर घर की सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर खुली बहस हई। महिला आरक्षण का मुद्दा गरमाया। संयोग वश मै भी तब बतंगड़ जी के घर पर ही था, मैने अपना तर्क रखते हुये भारतीय संस्कृति की दुहाई दी और बच्चो को बताया कि हमारे संस्कारो में विवाह के बाद पत्नी स्वतः ही घर की स्वामिनी होती है, बतंगड़ जी जो कुछ करते, कहते है उसमे उनकी मम्मी की भी सहमति होती है। पर मेरी बातें संसद में विपक्ष के व्यक्तव्य की तरह अनसुनी कर दी गई।
तय हुआ कि घर के सुचारु संचालन के लिये बजट बनाया जाए जिसे सभी सदस्यों की सहमति से पारित किया जाए। बजट प्रस्तुती हेतु बतंगड़ जी मुझसे सलाह कर रहे थे, तो आय से ज्यादा व्यय अनुमान देख मैने उन्हें बताया कि जब खर्च के लिये देश चिंता नही करता तो फिर आप क्यों कर रहे हैं ? देश विश्व बैंक से लोन लेता है, डेफिशिट का बजट बनाता है, आप भी लोन लेने के लिये बैंक से फार्म ले आयें। बतंगड़ जी के घर के बजट में बच्चो के मामा और बुआ जी के परिवार अपना प्रभाव स्थापित करने के पूरे प्रयास करते दिख रहे है, जैसे हमारे देश के बजट में विदेशी सरकारे प्रगट या अप्रगट हस्तक्षेप करती है। स्वतंत्र व निष्पक्ष आब्जरवर की हैसियत से बतंगड़ जी के दूसरे पड़ोसियो को भी बजट के डिस्कशन के दौरान उपस्थिति का बुलावा भेजा गया है।
बजट पर बहस के नाम पर ही बतंगड़ जी के घर में रंगीनियो का सुमधुर वातावरण है, और हम सब उसका लुत्फ ले रहे हैं।
यूं भी बजट आश्वासनों का पुलिंदा ही तो होता है। घर की सरकार चलानी है तो बजट बनेगा। तय है कि विपक्ष अच्छे से अच्छे बजट को भी पटल पर रखे जाते ही बिना पढ़े ही उसे आम आदमी के लिये बोझ बढ़ाने वाला निरूपित करेगा। वोटर भी जानता है कि चुनावो वाले साल में बजट ऐसा होगा जिससे भले ही देश को लाभ न हो पर बजट बनाने वाली पार्टी को वोट जरूर मिलें।
शब्दो, परिभाषाओ में उलझा वोटर प्रतिक्रिया में कुछ न कुछ अच्छा बुरा कहेगा, ध्वनिमत से बजट पास भी हो जायेगा। पता नही कितना आबंटन उसी मद में खर्च होगा जिस के लिये निर्धारित किया जायेगा। पता नही कब कैसी विपदा आयेगी और सारा बजट धरा रह जायेगा, खर्च की कुछ नई ही प्राथमिकतायें बन जायेंगी, पर हर हाल में बजट की चर्चा और उम्मीद के सपने संजोये बजट हमेशा प्रतिक्षित रहेगा। बजट में योजना का प्रावधान ही जनता को आनंदित करने में सक्षम है। बजट प्रस्तुत होने के बाद भी जब जीवन में कोई क्रांतिकारी बदलाव नही ला पायेगा तो हम सब पागल अगले साल के बजट से उम्मींदें करने की गलतफहमियां पाल लेंगे। फिलहाल बतंगड़ जी के घर की सरकार के बजट की आहट से उन के दिल में शेयर बाजार के केंचुए की चाल की तरह धड़कने ऊपर नीचे होती दिख रही हैं, और उनकी पत्नी, बच्चो सहित कुछ आबंटन की आशा में प्रसन्न दिखती हैं।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 70 ☆ देश-परदेश – हवाई यात्रा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
यूरोप के देश फिनलैंड में अब हवाई यात्रा से पूर्व, यात्री का भी वजन लिया जाएगा, ताकि हवाई जहाज की कुल भार वाहक क्षमता से कुल वजन अधिक ना हो जाए।
वर्तमान में तो सिर्फ यात्री के सामान का ही वजन किया जाता हैं। उसमें भी इतनी परेशानी होती है। यात्रा से पूर्व सूटकेस के वजन को अनेकों बार चेक किया जाता है, कि कहीं तय वजन से अधिक तो नहीं हो गया हैं।
हमारे देश के लोग तो कपड़ों की कई लेयर पहनकर यात्रा करते है, ताकि सामान का वजन निर्धारित सीमा में रहें। यदि ठंडे स्थान पर जा रहे हैं, तो ओवरकोट/ शाल इत्यादि हाथ में पकड़े रहते हैं।
विदेश अध्ययन करने के लिए चयनित बच्चे तो कोर्स की सबसे मोटी पुस्तक भी हाथ में रखते है, ये कहते हुए यात्रा के समय अध्यन करना हैं।
हमे तो लग रहा है, आने वाले समय में व्यक्ति और सामान के वजन अनुसार किराया शुल्क तय होगा। इस प्रावधान से यात्री, यात्रा से कुछ समय पूर्व भोजन और जल भी नही ग्रहण करेंगे, ताकि किराया कम लगें।
हमारे जैसे यात्री जिनको एयरपोर्ट लाउंज में प्रायः निशुल्क भर पेट खाने की सुविधा प्राप्त है। जम कर मुफ्त की रोटियां तोड़ेंगे। ये भी हो सकता है, वजन हवाई जहाज में ही लिया जाय, ताकि हेरा फेरी की संभावना नगण्य रहे।
जिम वाले भी हवाई यात्रा के लिए बहुत कम समय में वजन को कम करने के विशेष पैकेज परोसने लगेंगे। कार्यालय में कम वजन वालों को ही कार्यालय से संबंधित यात्रा में भेजा जाने लगेगा।
अब समय आ गया है, हम सब अपना वजन कम करें। खाने पीने पर नियंत्रण तो रखें साथ ही साथ मोबाईल के इस्तेमाल पर भी अंकुश रखें, क्योंकि मोबाईल के अधिक उपयोग से भी वजन बढ़ना तय होता हैं।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “अखंड सुहागन”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 181 ☆
☆ लघुकथा 🚩अखंड सुहागन🚩
सुहागन कहने से नारी का दमकता हुआ मुखड़ा माँथे पर तेज चमकती लाल बिंदी, माँग भरी सिंदूर की रेखा।
भवानी जगदंबा का मंदिर गुप्त नवरात्रि पर्व को जानने, समझने पूजन अर्चन करने सभी भक्त कतारों पर लगे भगवती की आराधना में लीन थे।
सखियों के साथ रश्मि जी, क्या कहें जैसा नाम वैसा रूप गुण और एक आकर्षक व्यक्तित्व की धनी। चेहरे पर तेज नैनों में ममता से भरी दो पुतलियां चारों तरफ निगाह… 🙏 सर्वे भवंतु सुखिनः की मनोकामना लिए सुहागले पूजन करने माँ भवानी के दरबार में पूरे विधि- विधान से पहुंच गई सखियों के साथ।
मंदिर प्रांगण में कई और भी मातृ- शक्तियों की टोलियाँ अपने-अपने समूह में सुहागले पूजा कर रही थी।
नारी की चंचलता और धरा की सुंदरता की कोई सीमा नहीं होती। पूजन का कार्यक्रम सभी सखियों के साथ विधि- विधान से हो रहा था।
आरती कर भोजन प्रसाद ग्रहण करने के समय!एक आकर्षक नयन नक्श वाली महिला, रंग गहरा काला, एक झोली पर कुछ लाल चुनरियाँ और गोद में एक अबोध मासूम बच्ची लिए धीरे-धीरे पास आते दिखी।
चुनरियाँ ले लो, चुनरियाँ ले लो,माई सुहागन चुनरियाँ ले लो।मै भी एक सुहागन हूँ।
छोटे बड़े भिन्न-भिन्न साइज की लाल – लाल चुनरी सब सखियों का मन मोह रही थी।
अचानक रश्मि ने अपनी भोजन की थाली से मुँह में जाती कौर को रोक कर देखने लगी।
यह कैसी सुहागन न मांग में सिंदूर न माँथे पर बिन्दीं। गोद में बच्ची और दुआएँ सदा सुहागन दे रही। अपने को सुहागन बता रही है।
वह उसे बिना पलक झपकाए देखती रही। डिब्बों से पूरा भोजन प्रसाद देते… उसके मन में विचार उठ रहा था कि?? क्या इनके साथ सुहागले पूजा नहीं होती होगी।
चुनरी वाली महिला अपने आप में बोले जा रही थी…. मैं कब सुहागन बनी पता नहीं चला, परंतु गोद में बच्ची आने पर माँ जरूर बन गई।
आंँखें चार होते देर ना लगी। जयकारा लगाते सभी बस में बैठ गंतव्य घर की ओर चल पड़े। रश्मि ने माता भगवती से दोनों कर जोड़ चुपके से प्रार्थना करती दिखीं… गालों पर अश्रुं मोती लुढ़क आये।
हे जगदंबिके सब की झोली भरना🙏 सभी को खुश सुहागन रखना।
उनकी प्रार्थना और बस से दूर जाती आवाज… चुनरी ले लो माता की की चुनरी ले लो!!!!! आप भी इस बात पर विचार करें।