English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 213 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 213 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 213) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 213 ?

मेरे नाम के साथ कितना 

अच्छा लगता है तेरा नाम…

जैसे खूबसूरत सुबह के साथ

जुड़ी हो प्यारी एक शाम…

☆☆

How nicely combines your

Name with my name…

Like a beautiful morning

Merging with a lovely evening!

☆☆☆☆☆

पी लिया करते हैं 

जीने की तमन्ना में कभी…

डगमगाना भी जरुरी है

सम्भलने के लिये…!

☆☆

Sometimes I do drink

Aspiring to live the life

It’s a must to wobble 

To get stablized…

☆☆☆☆☆

दरिया की दहलीज पर बैठी

सोच रही हैं ये आँखे…

आखिर कितना वक्त लगेगा

सारे ख्बाब बहाने में…

☆☆

On the threshold of riverbank

Curious eyes wonder puzzlingly

After all how long will it take

To float away all the dreams…!

☆☆☆☆☆

वक़्त की कसौटी पर बैठा

सोच रहा है पौरुष…

और कितना दम लगा दूं

मन माफिक कर जाने में…

☆☆

Sitting at the touchstone of time

Contemplates the  masculinity,

How much more efforts do I need

To fulfill my aspirational cravings

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ पुस्तक समीक्षा – अपराजिता (काव्य संग्रह) – सुश्री अमिता मिश्रा “मीतू” ☆ समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय गीत – समा गया तुम में )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 212 ☆

☆ पुस्तक समीक्षा – अपराजिता (काव्य संग्रह) – सुश्री अमिता मिश्रा “मीतू” ☆ समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ पुरोवाक् – मन से मन के तार जोड़ती कविताएँ ☆

कविता क्या है?  एक यक्ष प्रश्न जिसके उत्तर उत्तरदाताओं की संख्या से भी अधिक होते हैं। कविता क्यों है?,  कविता कैसे हो? आदि प्रश्नों के साथ भी यही स्थिति है। किसी प्रकाशक से काव्य संग्रह छापने बात कीजिए उत्तर मिलेगा ‘कविता बिकती नहीं’। पाठक कविता पढ़ते नहीं हैं, पढ़ लें तो समझते नहीं हैं, जो समझते हैं वे सराहते नहीं हैं। विचित्र किंतु सत्य यह कि इसके बाद भी कविता ही सर्वाधिक लिखी जाती है। देश और दुनिया की किसी भी भाषा में कविता लिखने और कविता की किताबें छपानेवाले सर्वाधिक हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि तथाकथित  प्रकाशकों के घर का चूल्हा कविता ही जलाती है।

दुनिया में लोगों की  केवल दो जातियाँ हैं। पहली वह जिसका समय नहीं कटता,  दूसरी वह जिसको समय नहीं मिलता। मजेदार बात यह है की कविता का वायरस दोनों को कोरोना-वायरस की  तरह पड़कता-जकड़ता है और फिर कभी नहीं छोड़ता।

दरवाजे पर खड़े होकर ‘जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला’ की टेर लगानेवाले की तरह कहें तो ‘जो कविता लिखे उसका भी भला, जो कविता न लिखे उसका भी भला’। कविता है ऐसी बला कि जो कविता पढ़े उसका भी भला, जो कविता न पढ़े उसका भी भला’, ‘जो कविता समझे उसका भी भला, जो कविता न समझे उसका भी भला’।

कविता अबला भी है, सबला भी है और तबला भी है। अबला होकर कविता आँसू बहाती है, सबला होकर सामाजिक क्रांति को जनम देती है और तबला होकर अपनी बात डंके पर चोट की तरह कहती है।

‘कहते हैं जो गरजते हैं वे बरसते नहीं’, कविता इस बात को झुठलाती और नकारती है, वह गरजती भी, बरसती भी है और तरसती-तरसाती भी है।

कविता के सभी लक्षण और गुण कामिनी में भी होते हैं। शायद इसीलिए कि दोनों समान लिंगी हैं। कविता और कामिनी के तेवर किसी के सम्हालते नहीं सम्हलते।

मीतू मिश्रा की कविता भी ऐसी ही है। सदियों से सड़ती-गलती सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर पूरी निर्ममता के साथ शब्दाघात करते हुए मीतू चलभाष और अंतर्जाल के इस समय में शब्दों का अपव्यय किए बिना ‘कम लिखे से अधिक समझना’ की भुलाई जा चुकी प्रथा को कविताई में जिंदा रखती है। मीतू की कविताओं के मूल में स्त्री विमर्श है किंतु यह स्त्री विमर्श तथा कथित प्रगति शीलों के अश्लील और दिग्भ्रमित स्त्री विमर्श की तरह न होकर शिक्षा, तर्क और स्वावलंबन पर आधारित सार्थक स्त्री विमर्श है। कुरुक्षेत्र में कृष्ण के शंखनाद की तरह मीतू इस संग्रह के शाब्दिक शिलालेख पर लिखती है-   

‘निकल पड़ी है वो सतरंगी ख्वाबों में

भरती रंग…. स्वयं सिद्धा बनने की ओर।’

मीतू यहीं नहीं रुकती, वह समय और समाज को फिर चेताती है-

‘चल पड़ी है वो औरत अकेली

छीनने अपने हिस्से का आसमान।’

लोकोक्ति है ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ लेकिन मीतू की यह ‘अकेली औरत’ हिचकती-झिझकती नहीं। यह तेवर इन कविताओं को जिजीविषाजयी बनाता है। अकेली औरत किसी से कुछ अपेक्षा न करे इसलिए कवयित्री उसे झकझोरकर कहती है- 

‘हे स्त्री! मौन हो जाओ

नही है कोई जो महसूस कर सके

तुम्हारी अव्यक्त पीड़ा..

लगा सके मरहम, पोंछे आँसू

कभी विद्रोही, कभी चरित्रहीन

कहकर चल देंगे समाज के जागरूक लोग

धीरे धीरे तुम्हें सुलगता छोड़कर।’

समाज के जिन जागरूक लोगों (लुगाइयों समेत) की मनोवृत्ति का संकेत यहाँ है, वे हर देश-काल में रहे हैं। सीता हों या द्रौपदी, राधा हों या मीरां इन जागरूक लोगों ने पूरी एकाग्रता और पुरुषार्थ के साथ उन्हें कठघरे में खड़ा किया, बावजूद इस सच के कि वे कन्या पूजन भी करते रहे और त्रिदेवियों की उपासना भी। दोहरे चेहरे, दोहरे आचरण और दोहरे मूल्यों के पक्षधरों को मीतू बताती है- 

‘कण कण में ही नारी है

नारी है तो नर जीवन है

बिन नारी क्या सृष्टि है?’

यह भी कहती है-

‘नारी

ढूँढ ही लेती है

निराशाओं के बीच

एक आशा की डोर

थामे टिमटिमाती लौ आस की

बीता देती है जीवन के अनमोल पल

एक धुँधले सुकून की तलाश में

एक पल जीती ..फिर टूटती अगले ही पल’

इन कविताओं की ‘नारी’ अंत में इन तथाकथित ‘लोगों’ की अक्षमता और असमर्थता को आईना दिखाते हुए  ‘साम्राज्य के आधे भाग की जगह केवल पाँच गाँव’ की चाह करती है-  

‘मध्यमवर्ग की कोमल स्त्री

जिंदगी की जमापूंजी से

खर्च करना चाहती है

कुछ वक्त अपने लिए अपने ही संग’

इतिहास पाने को दुहराता है, पाँच गाँव चाहने पर ‘सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूँगा’ की गर्वोक्ति करने वाले सत्ताधीशों और उन्हें पोषित करनेवाले नेत्रहीनों को समय ने कुरुक्षेत्र में सबक सिखाया। वर्तमान समाज के ये ‘लोग’ भी यही आचरण कर रहे हैं। ये आँखवाले आँखें होते हुए भी नहीं देख पाते कि-    

‘एक चेहरा

ढोता बोझ

कई किरदारों का’

वे महसूस नहीं कर पाते कि-

‘नारी सबको उजियारा दे

खुद अँधियारे में रोती है।’

यह समाज जानकार भी नहीं जानना चाहता कि-

‘अपने ही हाथों

जला लेती हैं

अपना आशियाना

घर फूँक तमाशा देखती हैं

प्रपंच और दुनियादारी में

उलझी किस्सा फरेब

बेचारी औरतें’

इस समाज की आँखें खोलने का एक ही उपाय है कि औरत ‘बेचारी’ न होकर ‘दुधारी’ बने और बता दे- 

‘कोमल देह इरादे दृढ़ हैं

हालातों से नही डरे

तोड़ पुराने बंधन देखो

नव समाज की नींव गढ़े।’

औरत के सामने एक ही राह है। उसे समझना और समझाना होगा कि वह खिलौना नहीं खिलाड़ी है, बेचारी नहीं चिंगारी है। मीतू की काव्य नायिका समय की आँखों में आँखें डालकर कहती है-

‘जीत पाओगे नहीं

पौरुष जताकर यूँ कभी

हार जाऊंगी स्वयं ही

प्रीत करके देखलो!

दंभ सारे तोड़कर

निश्छल प्रणय स्वीकार लो,

मैं तुम्हारी परिणीता

अनुगामिनी बन जाऊंगी!’

समाज इन कविताओं के मर्म को धर्म की तरह ग्रहण कर सके तो ही शर्म से बच सकेगा। ये कविताएँ वाग्विलास नहीं हैं। इनमें कसक है, दर्द है, पीड़ा है, आँसू हैं लेकिन बेचारगी नहीं है, असहायता नहीं है, निरीहता नहीं है, यदि है तो संकल्प है, समर्पण है, प्रतिबद्धता है। ये कविताएँ तथाकथित स्त्री विमर्श से भिन्न होकर सार्थक दिशा तलाशती हैं। स्त्री पुरुष को एक दूसरे के पूरक और सहयोगी की तरह बनाना चाहती हैं। तरुण कवयित्री मीतू का प्रौढ़ चिंतन उसे कवियों की भीड़ में ‘आम’ से ‘खास’ बनाता है। उसकी कविता निर्जीव के संजीव होने की परिणति हेतु किया गया सार्थक प्रयास है। इस संग्रह को बहुतों के द्वारा पढ़, समझा और सराहा जाना चाहिए।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। सही समय पर उठाया गया एक कदम आपको जिंदगी में बहुत आगे ले जा सकता है। इसी प्रकार एक गलत कदम भी आपको जिंदगी में बहुत पीछे छोड़ सकता है। इससे यह स्पष्ट है की आपको समय के बारे में जानकारी होना चाहिए। मैं पंडित अनिल पाण्डेय आज आपको 25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024 तक के सप्ताह के अच्छे और बुरे समय के बारे में आपको बताऊंगा। परंतु यह बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य के बारे में बताना चाहता हूं।

इस सप्ताह के प्रारंभ से 25 तारीख के 6:51 ए एम तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि सिंह होगी और यह बच्चे भविष्य में उच्च अधिकारी बन सकते हैं।

25 नवंबर के 6:51 a.m से 27 नवंबर को 6:31 पीएम तक के बच्चों का राशि कन्या होगी। यह बच्चे बड़े पराक्रमी होंगे।

27 को 6:31 म से 30 नवंबर को 6:00 a.m तक जन्म लेने वाले बच्चे तुला राशि के होंगे इन बच्चों के पास धन अच्छी मात्रा में आएगा।

30 नवंबर के 6:00 a.m से लेकर 1 दिसंबर के पूरे समय तक जन्म लेने वाले बालक वृश्चिक राशि के होंगे और उनके पास भारी मात्रा में वाहन जमीन आदि वस्तुएं होगी।

आइए अब हम आपसे राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका आपके पिताजी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में मामूली परेशानी आ सकती है। इस सप्ताह आपको अपने बच्चों से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। इसके अलावा सप्ताह के सभी दिनों में आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी को गरदन या कमर में दर्द हो सकता है। आपको थोड़ा सा मानसिक क्लेश हो सकता है। भाई बहनों के साथ आपके संबंध खराब रहेंगे। आपकी संतान आपका सहयोग करेगी। इस बार आपको पूरे सप्ताह सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। भाग्य से आपको लाभ हो सकता है। धन लाभ की उम्मीद कम है। भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। इस सप्ताह शत्रुओं से आपको डरने की आवश्यकता नहीं है। व्यापार में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 30 और 1 तारीख को आपको छोटे-मोटे रोगों से मुक्ति मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से अच्छा सुख प्राप्त होगा। संतान की उन्नति हो सकती है। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। भाग्य से मदद नहीं मिल पाएगी। आपको रक्त संबंधी रोगों से सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शिव पंचाक्षरी मंत्र का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का, माताजी का और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को पेट की समस्या में लाभ होगा। आपको अपने संतान से सहयोग कम मिलेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। व्यापार में उन्नति होगी। इस सप्ताह आपके लिए सप्ताह के सभी दिन सामान्य है। 30 नवंबर तथा 1 दिसंबर को आपको अपनी प्रतिष्ठा के प्रति सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक हो सकता है। धन आने के मार्ग में कई बाधाएं आएंगी। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। 30 नवंबर तथा 1 दिसंबर को आपको अपने भाई बहनों से कुछ लाभ हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। धन अच्छी मात्रा में आ सकता है। व्यापार में वृद्धि होगी। कार्यालय में आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए हितप्रद है। 25, 26 और 27 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। 30 नवंबर तथा 1 दिसंबर को आपके पास धन आएगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य से आपको पूर्ण मदद प्राप्त होगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। संतान को कष्ट हो सकता है। इस पूरे सप्ताह आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। 25, 26 और 27 तारीख को आपको थोड़ी बहुत सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। अगर आप पेट के रोगी हैं तो आपको स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है। आपका, आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। दुर्घटनाओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 30 नवंबर और 1 दिसंबर को आपको कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में रक्त संबंधी दोष की समस्या हो सकती है। अगर आप अथक प्रयास करेंगे तो इस सप्ताह आपके पास धन अच्छी मात्रा में आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। 30 नवंबर और 1 दिसंबर को आपके पास धन लाभ की उम्मीद है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव महिमा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवन साथी का, माता और पिता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। आपके जीवन साथी को कमर या गरदन में दर्द हो सकता है। अगर आप अथक प्रयास करेंगे तो आपके पास इस सप्ताह धन आ सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी। इस पूरे सप्ताह आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। 30 नवंबर तथा 1 दिसंबर को आपको कार्यालय के कार्यों में सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पति शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका पूर्ण रूपेण साथ देगा। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। संतान से आपको अच्छा सहयोग मिल सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 और 27 नवंबर लाभदायक है। 28 और 29 नवंबर को आपको सावधान रहना चाहिए। 30 नवंबर तथा 1 दिसंबर को आपको भाग्य से विशेष मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गायत्री मंत्र का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – भगवान् का कितना अंश बचा डाॅक्टर में? ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ आलेख – भगवान् का कितना अंश बचा डाॅक्टर में? ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय  ने रोहतक पीजीआई के दीक्षांत समारोह में कहा कि डाॅक्टर को जनता भगवान् मानती है। ऐसे में डाॅक्टर को अपने पेशे को समाजसेवा का माध्यम बना लेना चाहिए। सेवाभाव से किये हर कार्य से परिवार में समृद्धि आती है। इस तरह महामना राज्यपाल ने डाॅक्टर के रूप में उन्हें भगवान् के बहुत करीब माना। पर आजकल आप जो स्थिति बड़े या छोटे अस्पतालों में देखते हैं, क्या वह डाॅक्टर को इसी रूप में, इसी छवि में प्रस्तुत करती है? मुझे याद है वह सन् 1999 का तेइस सितम्बर, जब मेरी बेटी के जीवन में भयंकर तूफान आया था और मैं उसे एम्बुलेंस में पीजीआई रोहतक में लेकर पहुंचा था। बेटी का छह घंटे लम्बा ऑपरेशन चला और वह ज़िंदगी की लड़ाई जीत गयी। डाॅक्टर एन के शर्मा ने पूछा कि क्या आपको विश्वास था कि बेटी का ऑपरेशन सफल होगा ? मैंने जवाब दिया कि डाॅक्टर शर्मा आप भी नहीं जानते, जब आप मेरी बेटी का ऑपरेशन कर रहे थे तब आपके नहीं वे हाथ भगवान् के हाथ थे, उस समय आप भगवान् के बिल्कुल करीब थे, जिससे मेरी बेटी को भगवान् ज़िंदगी लौटा गये। डाॅक्टर शर्मा की आंखों में भी खुशी के आंसू थे और मेरी आँखों में भी ! इसमें उन दिनों मंत्री और मेरे मित्र प्रो सम्पत सि़ह का भी योगदान रहा, जो पता चलते ही दूसरे दिन वे पीजीआई, रोहतक के डायरेक्टर के पास पहुंचे और मुझे भी बुला लिया ! इस तरह हम तीन माह के बाद पीजीआई से मुक्त हुए लेकिन सचमुच भगवान् के दर्शन हो गये।

आजकल क्या ऐसे भगवान् बच रहे हैं? प्राइवेट अस्पताल अब पांच सितारा होटल जैसे हो गये हैं और इनका सारा खर्च मरीज के परिजनों से ही वसूला जाता है। बड़े बड़े अस्पतालों की खबरें आती हैं कि लाखों लाखों रुपये का बिल बना दिया और परिजन परेशान हो रहे हैं घर‌ तक बिकने की नौबत आ जाती है, बैंक बेलेंस खाली हो जाते हैं। एक घटना और याद आ रही है! बेटी डेंगू से पीड़ित थी और डाॅक्टर अजय चौधरी ने उसका इलाज करना शुरू किया और बड़े विश्वास से कहा, कि मैं इसे ठीक कर दूंगा और उपचार शुरू किया। एक दिन बेटी के प्लेटलेट्स चढ़ाये जा रहे थे कि मुझे अज्ञात नम्बर से फोन आया और कहा गया कि आप फलाने अस्पताल पहु़ंच जाइये ! हम तोशाम के निकट खानक के मज़दूर हैं और हमारे एक साथी की मृत्यु इलाज के दौरान हो गयी है, डाॅक्टर हमें शव ले जाने नहीं दे रहे। मैं चलने लगा तो पत्नी ने रोकने की कोशिश की कि आपकी बेटी ज़िंदगी से लड़ रही है और आप दूसरों के लिए भाग रहे हो ? मैंने कहा कि क्या पता उनकी दुआ मेरी बेटी को लग जाये और मैंं उस अस्पताल गया, जहां वे लोग मेरी राह देख रहे थे, डाॅक्टर के चैम्बर में उनके साथ गया और विनती की कि आप इनके साथी का पार्थिव शरीर‌ दे दीजिए लेकिन डाॅक्टर का कहना था कि ये हमारे पैसे नहीं दे रहे, इस पर मजदूरों ने बताया कि हमारी यूनियन ने चंदा इकट्ठा किया है और वही हमारे पास है, इससे ज्यादा की हमारी हिम्मत नहीं। डाॅक्टर ने कहा कि मैं‌ तो अपनी फीस छोड़ दूंगा लेकिन मेरे सहयोगी डाॅक्टर नहीं मानेंगे। मैंने कहा कि  फिर ठीक है, मेरे सहयोगी पत्रकार मेरी बात मान जायेंगे और अभी आकर लाइव चला देंगे, फिर आपका क्या होगा, यह विचार कर लीजिए ! बस, वे सयाने और अनुभवी थे, उन्होंने बिना एक रुपया लिए उन्हें उनके साथी का शव सौंप दिया लेकिन ऐसी नौबत अनेक अस्पतालों में आती है और आये दिन ऐसी शर्मसार करने वाली खबरें भी पढ़ने को मिलती हैं ! कृपया भगवान् का रूप बने रहिये ! उदय भानु हंस ने कहा भी है :

मैं न मंदिर न मस्जिद गया

कोई पोथी न बांची कभी

एक दुखिया के आंसू चुने

बस, मेरी बंदगी हो गयी !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-४ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-४  ☆ श्री सुरेश पटवा ?

कोप्पल नगर के इतिहास की जानकारी शतवाहन, गंग, होयसल और चालुक्य राजवंशों के साम्राज्यों से मिलती है। “कोप्पल” का उल्लेख राजा नृपथुंगा के शासनकाल के दौरान महान कन्नड़ कविराजमार्ग (814-878 ईस्वी) की काव्य कृति “विद्या महा कोपना नगर” में मिलती है। मौर्य काल में इस क्षेत्र में जैन धर्म का विकास हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और अशोक के पिता बिंदुसार ने जैन धर्म अपना लिया और दक्षिण भारत में पहुँच इसी क्षेत्र में आकर प्राण त्यागे। इसलिए, इसे “जैनकाशी” भी कहा जाता है। बारहवीं शताब्दी में समाज सुधारक बसवेश्वर का वीरशैववाद लोकप्रिय हुआ। स्थानीय लोगों में कोप्पल के वर्तमान गवी मठ का बड़ा आकर्षण है।

कोप्पल में गंगावती तालुक का अनेगुंडी नामक स्थान महान विजयनगर राजवंश की पहली राजधानी था। पुराना महल और किला अभी भी मौजूद है जहाँ हर साल “अनेगुंडी” वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। कोप्पल जिले के अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान हुलिगी, कनकगिरी, इटागी, कुकनूर, मदीनूर, इंद्रकीला पर्वत, पुरा, चिक्काबेनाकल और हिरेबेनाकल हैं।

आज़ादी से पहले कोप्पल हैदराबाद के निज़ाम के अधीन था। यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली, चूँकि कोप्पल हैदराबाद क्षेत्र का हिस्सा था, इसलिए क्षेत्र के लोगों को हैदराबाद निज़ाम के चंगुल से आज़ादी पाने के लिए और संघर्ष करना पड़ा। वल्लभभाई पटेल और व्ही.पी. मेनन के भागीरथी प्रयासों के बाद 18 सितम्बर 1948 को हैदराबाद-कर्नाटक को निज़ाम से आज़ादी मिल गयी। तब से 01-04-1998 तक, कोप्पल जिला गुलबर्गा राजस्व प्रभाग के रायचूर जिले में था। अब खुद एक ज़िला मुख्यालय है। सभी साथी थके हैं। बस में एक दूसरे से टिक कर हल्कीफुल्की नींद निकाल रहे हैं। बस सिक्स लेन सड़क पर सरपट भाग रही है। हमारी नज़र ड्राइवर की नज़र पर है। वह पलक नहीं झपक रहा है। उससे इलाक़े की जानकारी लेते चल रहे हैं।

भौगोलिक दृष्टि से कोप्पल ज़िले के एक तरफ चट्टानी भूभाग है और दूसरी तरफ कई एकड़ सूखी भूमि है, जिसमें ज्वार बाजरा मक्का और मूंगफली की फसलें उगाई हैं। किसानी मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है, अभी भी यहाँ जुताई के तरीकों में  बैल-हल का उपयोग करते दिखते हैं। हालाँकि, बैलगाड़ी के पहियों में लोहे की जगह टायर लग गए  हैं। हाल ही में उनमें से कुछ ने उच्च तकनीक सिंचाई प्रणाली में कदम रखा है, खासकर पड़ोसी शहर मुनीराबाद से एक विशाल बांध से थुंगा-भद्रा नदी के पानी को मोड़ने के बाद शहर अपनी जल समस्या का समाधान करने लगा है, फलस्वरूप वर्तमान में अनार, अंगूर और अंजीर यहाँ से निर्यात किया जाता है। थुंगा-भद्रा नदियाँ मिलकर हिन्दी में तुंगभद्रा नदी का निर्माण करती हैं।

रास्ते में शाम गहराने लगी तो बादलों के विभिन्न रंगों से आसमान सजने लगा। दक्षिण भारत में इन दिनों बादलों की छटा बिलकुल अनोखी होती है। हिंदी फ़िल्मों में यहीं के बादलों की रील उपयोग की जाती थी। इसीलिए मद्रास की जैमिनि फ़िल्म कंपनी की फ़िल्मों में बादलों की मनभावन छटा देखने को मिलती थी। हमने बस से नीचे उतर कर और चलती बस में सफ़ेद और काले बादलों पर डूबते सूर्य की गुलाबी रोशनी में अद्भुत दृश्य देखे। गुलाबी बादलों की उड़ान को नज़रों में बसाते हुए हम्पी पहुँचने लगे।

हुबली से हॉस्पेट पहुँचते-पहुँचते रात के नौ बज गए। होटल हम्पी इंटरनेशनल में डेरा डाला। यहाँ मुंबई से छात्रों का एक बड़ा समूह रुका है। खूब चहल-पहल है। उनकी मस्ती और धमाल माहौल को जीवंत बनाए है। हमारे कुछ साथियों को शोर पसंद नहीं है, वे नाक-भों सिकोड़ रहे हैं। हमने बच्चों से बातें कीं तो उन्होंने खुश होकर हिस्सा लिया। वे मुंबई से स्टडी टूर पर यहाँ घूमने आए हैं। सभी टीनेजर्स हैं, इसलिए नाच-गाना, उधम-सुधम होना लाज़िमी है। नहीं तो, मातापिता के नियंत्रण से बाहर होने का क्या मतलब है। भोजन के बाद 15 मिनट की एक बैठक हुई जिसमें रामायण सम्मेलन के आयोजन और भ्रमण के विषय में आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए। हम्पी इस हॉस्पेट नामक तालुक़ा बस्ती से 12 किलोमीटर दूर है। कल वहाँ घूमना है। साथियों के निवेदन पर हम्पी के बारे में उनको बताया।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

वजह बेवजह जरूर ही एक   काम  हो।

कुछ हिस्सा वक्त का देश के भी नाम   हो।।

कुछ कर्तव्य हो एक नागरिक होने की भी।

बनो सजग प्रहरी न ही गरिमा बदनाम हो।।

[2]

हमारा देश एक बगिया हम सब फूल हैं।

मातृ भूमि की मिट्टी बने माथे की धूल है।।

देश देता हमेंअधिकार और कुछ जिम्मेदारी।

हटाएं खुद भी राह का हर   एक शूल है।।

[3]

हमनें बहुत बलिदानों से यह आजादी पाई है।

लेकिनआजादी साथ ही दायित्व भी लाई है।।

जिम्मेदारी स्वाधीनता को सुरक्षित रखने की।

इतिहास गवाह कि शहीदों के लहू से आई है।।

[4]

हम देशवासी हमें ही तो   देश बदलना है।

नई सदी में एक नई राह पर लेकर चलना है।।

भारत को विश्व गुरु विश्व  नायक है बनाना।

सोने की चिड़िया वाला   देश अब ढलना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “हमारा नगर जबलपुर प्यारा। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

रेवातट पर बसा जबलपुर पावन प्यारा शहर हमारा

जिसकी मनभावन माटी ने हमें संवारा हमें निखारा

*

इसके वातावरण वायु जल नभ ने नित ममता बरसाया

इसके शिष्ट समाज सरल ने सदा नया उत्साह बढाया

 *

इसके प्राकृत दृश्य और इतिहास ने नित नये स्वप्न जगाये

इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने पावन सुखद विचार बनाये

 *

भरती है आल्हाद हृदय मे इसकी सुदंर परम्पराएँ 

इसकी धार्मिक भावनाओ ने भक्तिभाव के गीत गुंजाए 

 *

इसकी हर हलचल में दिखता मुझको एक संसार सुहाना

श्वेत श्याम चट्टानो में है भरा प्रकृति का सुखद खजाना

 *

दूर दूर तक फैला दिखता विंध्याचल का हरित वनांचल

कृपा बांटता प्यास बुझाता माँ रेवा का पावन आंचल

 *

इसकी ही धडकन ने मुझको बना दिया साहित्यिक अनुरागी

संवेदी मन में ज्ञानार्जन की उत्सुकता उत्कण्ठा जागी

 *

यहीं ज्ञान वैराग्य भक्ति तप मे रत हैं साधू सन्यासी

उद्योग, व्यापारो व्यवसाय में है कर्मठ सब नगर निवासी

 *

शिक्षा रक्षा और चिकित्सा के कई है संस्थान यहाँ पर

सडक रेल औं वायुयान की यात्राओं हित साधन तत्पर

 *

सहज सुलभ सुविधायें सभी वे जो जीवन हित हैं सुखकारी

बाल युवा वृद्धो के जीवन हित संभव सुविधाये सारी

 *

लगता मेरा शहर मुझे प्रिय अनुपम सब नगरों से ज्यादा

परिवारी स्वजनों से ज्यादा यहाँ सबों का भला इरादा

इसकी सात्विक रूचि से संपोषित है मेरी जीवन धारा

यह ही पालक पोषक और परम प्रिय पावन नगर हमारा

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “बलिदान” – लेखिका : सुश्री स्वप्निल पांडे – अनुवाद – सुश्री उल्का राऊत ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “बलिदान” – लेखिका : सुश्री स्वप्निल पांडे – अनुवाद – सुश्री उल्का राऊत ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

पुस्तक : “बलिदान

लेखिका: स्वप्निल पांडे 

अनुवाद: उल्का राऊत

पृष्ठ:२३२

पॅराशूट रेजिमेंट हा भारतीय सेनेचा हवाई विभाग आहे. पॅराशूट मोहिम पार पाडण आणि वेगाने शत्रू प्रदेशाची सीमा पार करणं ही या रेजिमेंटची वैशिष्ट्ये आहेत. पॅराशूट रेजिमेंट पायदळाची शाखा आहे. दुसऱ्या महायुद्धामध्ये आरंभीव्या लढायांमध्ये जर्मन पॅराटुपरनी नेत्रदीपक यश मिळवलं. सर्व सैनिकी विचारवंतांचं लक्ष त्यांनी वेधून घेतलं. भारतीय सशस्त्र सेनेचे कमांडर-इन-चीफ जनरल सर रॉबर्ट कॅसेल्स यांनी ऑक्टोबर १९४० मध्ये हवाई पथक निर्माण करायचा आदेश दिला. १९४१ साली दिल्ली कॅन्टोन्मेंटमध्ये सुरू झालेल्या पहिल्या बटालियनमध्ये ५० वी पॅराशूट ब्रिगेड होती. तिचे पहिले कमांडर होते ब्रिगेडियर डब्ल्यू. एच. जी. गॉफ. पॅराशूट ब्रिगेडमध्ये दाखल होणारे पहिले भारतीय अधिकारी लेफ्टनंट रंगराज हे ५० व्या पॅराशूट ब्रिगेडच्या पंधराव्या बटालियनचे वैद्यकीय अधिकारी होते. भारतीय पॅराशूट रेजिमेंट १ मार्च १९४५ रोजी अस्तित्वात आली. लेफ्टनंट जनरल फ्रेड्रिक (बॉय) ब्राउनिंग हे कर्नलपदी होते. रेजिमेंटचं चिन्ह समकक्ष ब्रिटिश आर्मीसारखंच होतं. हे मरून बेरेटवर घातलं जायचं. दुसरं महायुद्ध संपल्यानंतर १९४५ साली भारतीय पॅराशूट रेजिमेंट बरखास्त करण्यात येऊन सेकंड हवाई विभागामध्ये समाविष्ट केली गेली. या विभागामध्ये तीन पॅराशूट ब्रिगेड होती: ५०, ७७ आणि १४ वी एअरलैंडिंग ब्रिगेड. हा भारतीय सेनेच्या विसर्जनाचा एक भाग होता. फाळणीनंतर ५० वी आणि ७७ वी पॅराशूट ब्रिगेड भारतामध्ये राहिल्या. १५ एप्रिल १९५२ रोजी इंडियन पॅराशूट रेजिमेंट (पॅरा) ची स्थापना झाली तेव्हा या दोन्ही ब्रिगेडना फर्स्ट, सेकंड आणि थर्ड अशी नवी ओळख मिळाली.

पॅराशूट रेजिमेंटचं घोषवाक्य आहे ‘शत्रुजीत. ‘ या विशिष्ट बेंजची निर्मिती सेकंड पॅराच्या कॅप्टन एम. एल. तुली यांनी केली आहे. हिंदू पुराणातील सम्म्राट शत्रुजीतची प्रेरणा त्यामागे आहे. पॅरा ब्रिगेडच्या निर्मिती चिन्हामध्ये कडाडती वीज आणि सद्गुणांचा दुर्गुणांवर विजय दाखवला आहे. ‘बलिदान’ हा सर्वोच्च त्यागाचा बॅज, स्पेशल फोर्सेसच्या अभूतपूर्व मोहिमांचा निदर्शक असून पॅराशूट रेजिमेंटच्या स्पेशल फोर्सचे, म्हणजेच पॅरा (SF) सैनिक परिधान करतात. स्पेशल फोर्सचा उगम मेघदूत या स्पेशल टास्क ग्रूपमधून झाला. १ सप्टेंबर १९६५ मध्ये मेजर मेघ सिंग यांनी हा ग्रूप निर्माण केला. ‘स्पेशल फोर्सेस’ हा शब्दप्रयोग तुलनेने लहान मिलिटरी युनिटसाठी वापरला जातो. या युनिटमधल्या सैनिकांना हेरगिरी, टेहळणी, अपारंपरिक युद्धं आणि खास मोहिमांसाठी कठोर प्रशिक्षण देऊन तयार केलं जातं. ही अनन्यसाधारण पथकं गुप्तता, वेग, आत्मनिर्भरता आणि उत्कृष्ट टीमवर्क, तसंच अत्याधुनिक विशेष साधनसामग्रीवर अवलंबून असतात. स्पेशल फोर्सेसच्या मोहिमा पाच क्षेत्रांमध्ये कार्यरत असतात आतंकवाद, अपारंपरिक युद्धकौशल्यं, परकीय देशांच्या अंतर्गत संरक्षणाची जबाबदारी, विशिष्ट हेरगिरी आणि विशिष्ट लक्ष्यांवर थेट हल्ला.

इंडियन पॅरा स्पेशल फोर्सेसच्या जवानांएवढे धैर्यवान आणि साहसी लोक क्वचितच पाहायला मिळतील आणि तरीही त्यांची नावं कधीही प्रकाशात येत नाहीत. ‘बलिदान’ बॅजच्या अत्यंत पात्र हक्कदारांवर अत्युच्च पर्वतराशीवरील सीमारेषाचं संरक्षण आणि भयानक दहशतवादाचं उच्चाटन या पराकोटीच्या महत्त्वपूर्ण जबाबदाऱ्या सोपवलेल्या आहेत.

या शूर योद्ध्यांभोवती एक गूढ वलय आहे. त्यांच्याविषयी असंख्य आख्यायिका आहेत. त्यांच्या मोहिमांविषयी एवढी गुप्तता पाळली जाते की डॅगर, घोस्ट, व्हायपर आणि डेझर्ट स्कॉर्पियो अशासारख्या सांकेतिक नावांव्यतिरिक्त अन्य कोणतीही माहिती उपलब्ध नाही.

अफाट आणि असीम साहस कथांच्या या लक्षणीय संग्रहामध्ये स्वप्निल पांडेंनी काही महान स्पेशल फोर्सेस अधिकाऱ्यांवर प्रकाशझोत टाकला आहे. कर्नल संतोष महाडिक, कॅप्टन तुषार महाजन, ब्रिगेडियर सौरभ सिंग शेखावत, सुभेदार मेजर महेंद्र सिंग आणि इतर काही साहसवीरांचा वाचकांशी परिचय करून दिला आहे.

एक वर्षाच्या कालावधीत या सैनिकांच्या मित्र आणि कुटुंबीयांच्या दोनशेपेक्षाही अधिक मुलाखती, LOC आणि LAC जवळच्या विविध स्पेशल फोर्सेस युनिटला दिलेल्या अनेक भेटींवर हे पुस्तक आधारित आहे.

या अनाम, अप्रसिद्ध सैनिकांना गूढ वलयातून बाहेर काढून लोकांसमोर आणायचं हे ‘बलिदान’ लिहिण्यामागील उद्दिष्ट आहे.

लेखिकेविषयी

द फोर्स बिहाइंड द फोर्सेस, लव्ह स्टोरी ऑफ अ कमांडो आणि सोल्जर्स गर्ल ही स्वप्निल पांडे यांनी विस्तृत संशोधन करून लिहिलेली पुस्तकं भारतीय सैनिक आणि त्यांच्या परिवारांचं कार्य आणि जीवनपद्धतीची जाणीव लोकांना व्हावी, या उद्देशाने लिहिलेली आहेत. त्या बिर्ला इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी, मेस्राच्या माजी विद्यार्थिनी आहेत. विप्रो आणि ‘एचडीएफसी’सारख्या संस्थांमध्ये त्यांनी काम केलं असून लव्हली प्रोफेशनल युनिव्हर्सिटी आणि आर्मी पब्लिक स्कूलमध्ये त्या शिक्षिका होत्या. नियतकालिके आणि वृत्तपत्रांमधील त्यांचे ब्लॉग्ज लोकप्रिय आहेत. राष्ट्रीय टेलिव्हिजनवर चर्चासत्रांमध्ये पॅनेलिस्ट म्हणूनही त्या झळकतात. त्या लष्कराच्या बाजूने बोलणारा महत्त्वाचा आवाज आहेत. ‘इस्रो’ सारख्या संस्थांतर्फे त्यांचा सत्कार झाला आहे.

परिचय : श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

पालघर 

मो. 9619800030

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #257 ☆ साथ और हालात… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख साथ और हालात। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 257 ☆

☆ साथ और हालात… ☆

साथ देने वाले कभी हालात नहीं देखते और हालात देखने वाले कभी साथ नहीं देते। दोनों विपरीत स्थितियाँ हैं, जो मानव को सोचने पर विवश कर देती हैं। साथ देने वाले अर्थात् सच्चे मित्र व हितैषी कभी हालात नहीं देखते बल्कि विषम परिस्थितियों में भी सदैव अंग-संग खड़े रहते हैं। वे निंदा-स्तुति की तनिक भी परवाह नहीं करते तथा आपकी अनुपस्थिति में भी आपके पक्षधर बन कर खड़े रहते हैं। वे आपकी बुराई करने वालों को मुँहतोड़ जवाब देते हैं। वे समय की धारा के साथ रुख नहीं बदलते बल्कि पर्वत की भांति अडिग व अटल रहते हैं। उनकी सोच व दृष्टिकोण कभी परिवर्तित नहीं होता। वे केवल सुखद क्षणों में ही आपका साथ नहीं निभाते बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी आपके साथ ढाल बनकर खड़े रहते हैं। वे मौसम के साथ नहीं बदलते और ना ही गिरगिट की भांति पलभर में रंग बदलते हैं। उनकी सोच आपके प्रति सदैव समान होती है।

‘दिन रात बदलते हैं/ हालात बदलते हैं/ मौसम के साथ-साथ/ फूल और पात बदलते हैं’ शाश्वत् सत्य है तथा स्वरचित पंक्तियाँ उक्त संदेश प्रेषित करती हैं कि प्रकृति के नियम अटल हैं। रात के पश्चात् दिन, अमावस के पश्चात् पूनम व मौसम के साथ फूल-पत्तियाँ बदलती रहती हैं। सुख व दु:ख में परिस्थितियाँ भी समयानुसार परिवर्तित होती रहती हैं। इसलिए मानव को कभी भी निराशा का दामन नहीं थामना चाहिए। ‘जो आया है, अवश्य जाएगा’ पंक्तियाँ मानव की नश्वरता पर प्रकाश डालती हैं। मानव इस संसार में खाली हाथ आया है और उसे खाली हाथ ही यहाँ से लौट कर जाना है। ‘मत ग़ुरूर कर बंदे!/ माटी से उपजा प्राणी,  माटी में ही मिल जाएगा।’ सो! मानव को स्व-पर, राग-द्वेष, निंदा-स्तुति व हानि-लाभ से ऊपर उठ जाना चाहिए अर्थात् हर परिस्थिति में सम रहना कारग़र है। मानव को इस कटु सत्य को स्वीकार लेना चाहिए कि हालात देखने वाले कभी साथ नहीं देते। वे आपकी पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान व धन-वैभव से आकर्षित होकर आपका साथ निभाते हैं और तत्पश्चात् रिवाल्विंग चेयर की भांति अपना रुख बदल लेते हैं। जब तक आपके पास पैसा है तथा आपसे उनका व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध होता है; वे आपका गुणगान करते हैं। जब आपका समय व दिन बदल जाते हैं; आपदाओं के बादल मँडराते हैं तो वे आपका साथ छोड़ देते हैं और आपके आसपास भी नहीं फटकते।

यह दस्तूर-ए-दुनिया है। जैसे भंवर में फँसी नौका हवाओं के रुख को पहचानती है; उसी दिशा में आगे बढ़ती है, वैसे ही दुनिया के लोग भी अपना व्यवहार परिवर्तित कर लेते हैं। सो! दुनिया के लोगों पर भरोसा करने का कोई औचित्य नहीं है। ‘मत भरोसा कर किसी पर/ सब मिथ्या जग के बंधन हैं/ सांचा नाम प्रभु का/ झूठे सब संबंध हैं/… तू अहंनिष्ठ/ ख़ुद में मग्न रहता/ भुला बैठा अपनी हस्ती को।’ यह दुनिया का चलन है और प्रचलित सत्य है। उपरोक्त पंक्तियाँ साँसारिक बंधनों व मिथ्या रिश्ते-नातों के सत्य को उजागर करती हैं तथा मानव को किसी पर भरोसा न करने का संदेश प्रेषित करते हुए आत्म-चिंतन करने को विवश करती हैं।

मुझे स्मरण हो रहा है जेम्स ऐलन का निम्न कथन कि ‘जिसकी नीयत अच्छी नहीं होती, उससे कोई महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध नहीं होता।’

वैसे नीयत व नियति का गहन संबंध है तथा वे अन्योन्याश्रित हैं। यदि नीयत अच्छी व सोच सकारात्मक होगी, तो नियति हमारा साथ अवश्य देगी। इसलिए प्रभु की सत्ता में सदैव विश्वास रखिए, सब अच्छा, शुभ व मंगलकारी होगा। वैसे भी मानव को हंस की भांति निश्चिंत व विवेकशील होना चाहिए।  जो मनभावन है, उसे संजो लीजिए और जो अच्छा ना लगे, उसकी आलोचना मत कीजिए, क्योंकि विवाह के सभी गीत सत्य नहीं होते। सो! मानव को आत्मकेंद्रित होना चाहिए और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, साहस व अपना आपा नहीं खोना चाहिए, क्योंकि हर इंसान सुखापेक्षी है। वह अपने दु:खों से अधिक दूसरों के सुखों से अधिक दु:खी रहता है। इसलिए दु:ख में वह आगामी आशंकाओं को देखते हुए अपने साथी तक को भी त्याग देता है, क्योंकि वह किसी प्रकार का खतरा मोल लेना नहीं चाहता।

‘अगर आप सही अनुभव नहीं लेते, तो निश्चित् है आप ग़लत निर्णय लेंगे।’ हेज़लिट का यह कथन अनुभव व निर्णय के अन्योन्याश्रित संबंध पर प्रकाश डालते हैं। हमारे अनुभव हमारे निर्णय को प्रभावित करते हैं, क्योंकि जैसी सोच वैसा अनुभव व निर्णय। मानव का स्वभाव है कि वह आँखिन देखी पर विश्वास करता है, क्योंकि वह सत्यान्वेषी होता है।

‘मानव मस्तिष्क पैराशूट की तरह है, जब तक खुला रहता है; तभी तक का सक्रिय व कर्मशील रहता है।’ लार्ड डेवन की उपर्युक्त उक्ति मस्तिष्क की क्रियाशीलता पर प्रकाश डालती है, जो स्वतंत्र चिंतन की द्योतक है। यदि इंसान संकीर्ण मानसिकता में उलझा  रहता है, तो उसका दृष्टिकोण उदार व उत्तम कैसे हो सकता है? ऐसा व्यक्ति दूसरों के हित के बारे में कभी चिंतित नहीं रहता बल्कि स्वार्थ साधने के निमित्त कार्यरत रहता है। उसे विश्वास पात्र समझने की भूल करना सदैव हानिकारक होता है। ऐसे लोग कभी आपके हितैषी नहीं हो सकते। जैसे साँप को जितना भी दूध पिलाया जाए, वह डंक मारने की आदत का त्याग नहीं करता। वैसे ही हालात को देखकर निर्णय लेने वाले लोग कभी सच्चे साथी नहीं हो सकते, उन पर विश्वास करना जीवन की सबसे बड़ी अक्षम्य भूल है।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – संस्मरण ☆ ☆ दस्तावेज़ # 2 – मारिशस से ~ मेरा एक संस्मरण – अविस्मरणीय नौका विहार — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी के चुनिन्दा साहित्य को हम अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करते रहते हैं। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं।

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है मारिशस से श्री रामदेव धुरंधर जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ “नौका विहार”।) 

☆ दस्तावेज़ # 2 – मारिशस से ~ मेरा एक संस्मरण — अविस्मरणीय नौका विहार — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆ 

(इस दस्तावेज़ में श्री रामदेव धुरंधर जी की मारिशस में आयोजित “विश्व हिन्दी सम्मेलन 1976” में  डा. शिवमंगल सिंह सुमन जी, हजारीप्रसाद द्विवेदी जी,  उपेन्द्रनाथ अश्क जी, अमृतलाल नागर जी, विष्णु प्रभाकर जी और डा. रमानाथ  त्रिपाठी जी से संबन्धित अविस्मरणीय ऐतिहासिक यादें जुड़ी हुई हैं) 

‘नौका विहार’ शीर्षक से मेरा यह संस्मरण मॉरिशस में आयोजित [सन् 1976] विश्व हिन्दी सम्मेलन से संबद्ध है। 

सुबह का वक्त था। ड्राइवर वैन चला रहा था। हम पूर्वी प्रांत में पड़ने वाले पंच सितारा ‘त्रू ओ बिश होटल’ के लिए जा रहे थे। मैंने उस होटल में ठहरे हुए डा. शिवमंगल सिंह सुमन जी से कहा था सुबह वाहन ले कर होटल पहुँच जाऊँगा। उन्हें घुमाने ले जाने की मेरी सरकारी ड्यूटी थी। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी भी उसी होटल में थे। इन दोनों के साथ होना मेरे मन के अनुकूल था। वहाँ और भी तीन भारतीय थे जो साथ में होते। अगला दिन भी मेरे लिए एक शानदार दिन होता। उपेन्द्रनाथ अश्क, अमृतलाल नागर, विष्णु प्रभाकर और डा. रमानाथ  त्रिपाठी जी को इन्हीं की तरह सैर के लिए ले जाना था। ये चारों किसी और होटल में ठहरे हुए थे। मैंने अमृतलाल नागर जी से बात कर ली थी। मैं उन्हें ‘परी तालाब’ की ओर ले जाने वाला था। वे लेखक थे। मैं परी तालाब की कहानी उन्हें सुनाता। उधर बहुत जंगल पड़ने से वातावरण शांत रहता है। पर आज जब उस दिन की बात लिख रहा हूँ इस जमाने में परी तालाब का नाम परिवर्तित हो गया है। लगभग तीस साल हुए परी तालाब का परिवर्तित नाम अब ‘गंगा तालाब’ है। 

हजारीप्रसाद द्विवेदी और शिवमंगलसिह सुमन जी से संबंधित संस्मरण में आगे बढ़ने से पहले मैं यहाँ एक विशेष बात लिखने के लिए अपने को बहुत ही उत्सुक पा रहा हूँ। वह बात इस तरह से है हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने एक दिन पहले सम्मेलन में एक सत्र की अध्यक्षता की थी। बोलने में वे विस्मयकारी थे। मैं अपने दिल की बात कह रहा हूँ। उन्हें सुनना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य था। भारतीय टोली की अध्यक्षता राजनेता करण सिंह जी ने की थी। उनके परिचय में लिखा हुआ पढ़ कर मैंने जाना था वे जम्मू और कश्मीर के महाराजा थे। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी जब बोलने के लिए खड़े हुए थे श्रोता के रूप में सामने बैठे हुए करण सिंह जी ने जा कर उनके चरण स्पर्श किये थे।

हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था वे समझना चाहते हैं हिन्दी में इतने कवि कहाँ से निकलते चले आ रहे हैं।

आज मुझे लगता है महान गद्यकार हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने यह व्यंग्य में कहा था और लोगों ने व्यंग्य मान कर ही तालियाँ बजायी थीं। अब जो खालिस कवि हों और हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की परिभाषा से कहीं से निकलते चले आ रहें हों तो उस वक्त सब के बीच होने से जरूर बगलें झाँक रहे हों। भारतीय कवियों की बात तो मैं न जानता। अलबत्ता अपने देश के कवियों को मैं जानता था। उन दिनों मॉरिशस में सचमुच ऐसी स्थिति बन आयी थी काव्यकारी के जोश में मानो वाकई कवि कहीं से निकलते चले आ रहे हों।

हजारीप्रसाद द्विवेदी जी का भाषण मौखिक था। वह टेप कर लिया गया था। बाद में वह गगनांचल में प्रकाशित हुआ था। पढ़ने पर मुझे लगा था उनका बोला स्वयं में एक उत्कृष्ट साहित्य था।

त्रू ओ बिश होटल पहुँचने पर ड्राइवर ने वैन पार्किग में खड़ा किया। होटल के गेट पर मेरा नाम लिखा गया। गॉर्ड को पता था मैं आने वाला हूँ। मंत्रालय की ओर से वहाँ सूचना पहुँचा दी गयी थी। इसका मतलब था मैं सरकारी नियम में बंधा हुआ था। मुझे जो करना होता मेरे ध्यान में रहता नियम का उल्लंघन न हो। पर यहाँ जो होना था वह नियम पर मानो प्रहार जैसा होता। इसका खुलासा मैं नीचे की पँक्तियों में करने वाला हूँ। रिशेप्शन में अपना नाम कहने से मुझे ठहरने के लिए कहा गया। सुमन जी को फोन से सूचना पहुँची। थोड़ी देर बाद मैंने देखा सुमन जी झपटते चले आ रहे थे। उनके आते ही मैंने उनके चरण स्पर्श किये। वे जिंदादिल इंसान थे। मुझसे मित्रवत मिले। उन्होंने कहा अच्छा हुआ मैं पहुँच गया। पर आज सुबह उन लोगों के बीच योजना बनी थी होटल की ही सरपरस्ती में उनके लिए नौका विहार का आयोजन हो। सुमन जी मेरे लिए एक कागज लिख कर रिशेप्शन में छोड़ देते वे कहीं और के लिए निकल गए हैं। उन दिनों मोबाइल जैसी सुविधा तो थी नहीं। स्थायी फोन से भी संपर्क करना कठिन ही होता। अब जब मैं पहुँच गया तो वे मौखिक मुझे समझा रहे थे आज की उनकी योजना कैसी बनी है। सुमन जी मेरी ओर से आश्वस्त थे। वे कह रहे थे मैं हालत समझ जाने पर उन्हें अन्यथा न लेता। मॉरिशस में दो चार दिनों के अपने प्रवास का अपने तरीके से लाभ उठाना इन लोगों को आवश्यक भी तो लगता।

अब जब नौका विहार के लिए उनके निकलने से पहले मैं पहुँच गया और मुलाकात हो गयी तो मेरे लिए यही शेष रहता ड्राइवर और मैं वैन में लौट जाते। मंत्रालय लौटने पर हम कह देते उन लोगों ने आज का अपना कार्यक्रम अपने तरीके से बना लिया है। पर सुमन जी ने मेरे साथ एक दूसरी बात की। उन्होंने मुझसे कहा जा कर ड्राइवर से कह दूँ यहीं कुछ घंटों के लिए तुम्हारा इंतजार करे। तुम नौका विहार में हमारे साथ जा रहे हो।

यह तो मेरे लिए काफी कठिन परिस्थिति हुई। यह मेरी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था। मैंने मंत्रालय से वाहन लिया था तो वहाँ लिखित पड़ा हुआ था मैं कहाँ – कहाँ उन लोगों को ले कर जाने वाला हूँ। अब मान लें वैन यहीं रहे और मैं ड्राइवर से बात करूँ तो वह मान जाये। पर दिशांतर तो हो रहा था। थल की अपेक्षा अब हम जल में होते। वे स्वयं जाते और मैं उनके साथ न होता तो जिम्मेदारी उनकी अपनी होती।

पर अब मैं सरकारी आदमी दिशांतरता के कारण समुद्र में होता और कुछ हो जाता तो मेरी खैर नहीं। मेरा इतना बड़ा धर्म संकट बन आने से मैं यह सब सुमन जी से नहीं कहता। मैंने उनसे दोबारा यही कहा आप लोग जायें और मैं वापस चला जाता हूँ। पर उन्होंने तो इस बार भी नहीं माना। तब तो मैं अब मानो हिल डुल पाता ही नहीं। इतने बड़े आदमी से कितनी बार इन्कार का रुख दिखाता। मैंने जैसे तैसे उन्हें मान लिया और ड्राइवर को कहने चल दिया। मुझे सुनने पर ड्राइवर नाराज हुआ। उसकी नाराजगी सही थी। उसने मेरे सामने योजना रखी लौट चलते हैं। मैं भी तो लौटने की ही सोच रहा था। पर इस समाधान में रोड़ापन था। हम लौट जाते और वहाँ नाव में छेद हो जाता तो हमारे पास कौन सा उत्तर होता। चलें हम कह देते हमारे पहुँचने से पहले वे निकल चुके थे और हमें वापस होना पड़ा। यह हमारी निष्कलंकता तो हो जाती लेकिन मेरा मन नहीं माना।

वास्तव में यह कितना बड़ा फरेब होता सुमन जी के कहने पर मैं ड्राइवर से मिलने आया और लौट कर उनके पास गया नहीं। क्या मेरे लौटने का वे इंतजार न करते? अब जो भी हो मेरे मन में यही आया कम से कम मैं सुमन जी से धोखा नहीं कर सकता। मैं किसी तरह ड्राइवर को समझा बुझा कर होटल की ओर लौट गया।  

अब तक नौका विहार के लिए जाने की तैयारी हो चुकी थी। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी तो मेरे खूब पहचाने हो गये थे। बाकी तीन मेरे लिए लगभग अनजान ही थे। सुमन जी ने हजारीप्रसाद द्विवेदी जी से कहा धुरंधर भी हमारे साथ चल रहे हैं। अजीब ही था मानो समुद्र में चलना था। मेरा गणित गड़बड़ा जाने से मैं शायद दिमाग से बहुत ही डँवाडोल होने लगा था। पर उन्हें मेरी आंतरिक दशा कहाँ मालूम होती। मैं साथ जाता तो हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने इसके लिए खुशी जतायी। बाकी तीनों ने सिर हिला कर कहा तब तो अच्छी बात है।

नौका ले जाने वाला क्रृओल था। वह समझ तो गया था मैं बाहरी आदमी हूँ। बल्कि देशी आदमी हूँ और उन लोगों से मिलने आया हूँ। उनके साथ मेरे जाने की बात हो रही थी तो मामला यहाँ कुछ उलझा। नौका चालक ने कृओल में मुझसे कहा मेरे लिए अतिरिक्त पैसा लगेगा। यही नहीं नौका चालक ने अब सीधे मेहमानों से अंग्रेजी में बात की। उसने नम्रता से ही कहा मेरे होने से पैसा अधिक लगेगा। उसने अपनी मजबूरी इस रूप में दिखायी वह तो कर्मचारी है। पैसा होटल के खाते में जायेगा। उससे इतना सुनते ही सुमन जी ने कहा उनके खाते में जोड़ दे। अब मुझे पता चला नौका विहार का पूरा खर्च सुमन जी वहन कर रहे थे। यह मेरे हौसले के लिए बहुत था। चलें अब मैं अपना गणित इस तरह से बनाता मैं सुमन जी का मेहमान था और वे मेरे नाम का खर्च चुकाना मान रहे थे। दो घंटे के लिए नौका विहार था। एक घंटे के लिए नौका जाती और एक घंटा उसके लौटने के लिए होता। 

प्रकांड विद्वान हजारीप्रसाद द्विवेदी जी उस वक्त मानो सब के समकक्ष थे। दूसरे बोलें तो वे भी बोलते। उनकी विराटता मानो एक तरह से लुप्तप्राय थी। यह मेरे लिए अच्छा ही था। अन्यथा हजारीप्रसाद द्विवेदी जी से प्रत्यक्ष बोलने से शायद मेरे मन में कंपन होता। हाँ घुमाने के लिए उन्हें ले जा रहा होता तो मेरी भाषा हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के साथ कहीं ज्यादा मुखर होती। वे मॉरिशस के बारे में मुझसे कुछ भी पूछ लेते मेरे पास जवाब तैयार रहता। मानो वहाँ मेरे मन की गंगा खूब अठखेलियों में मस्त होती जब कि यहाँ परिस्थितिवश मेरे मन की गंगा ऐसे सो रही होती कि उसकी मदमस्त मौजों के एक कतरे का आभास ही न होता हो।

नौका चली और मैंने बस अपने भगवान से कहा उबड़ खाबड़ न हो भगवन ! वास्तव में ये लोग अपने देश के नगीने हैं। मैं भी तो अपने देश में छोटा मोटा नगीना ही हूँ। पर किसी कारणवश नौकरी जाये तो कुत्ता भी हाल चाल न पूछे।  

यहाँ तक मैंने जो लिखा यह मेरे संस्मरण का एक अंश है। इस अंश से मेरे संस्मरण में इतना ही हो रहा है एक संशय में घिरा हुआ हूँ मानो मेरी बेचारगी का वह एक बहुत बड़ा पक्ष हो। इतनी सी ही बात होती तो मैं यह संस्मरण लिखता नहीं। पर बात इससे आगे और भी है। उसी से मेरा यह संस्मरण अपना वजूद पा सकता था। 

नाव में नीचे शीशा लगा हुआ था। शीशे का करिश्मा ऐसा था कि छोटी मछलियाँ बड़ी दिखाई देती थीं। इस करिश्मे को न जानें तो वहम हो पड़े नीचे विचरने वाली विशालकाय मछलियाँ तो नाव को उलाट ही देंगी। मछलियाँ नाव से टकराती भी थीं। यह समुद्री इलाका ऐसा है जहाँ समुद्र में नीचे मानो विस्मयकारी प्रवाल बिछे हुए हैं। प्रवाल के ऐसे – ऐसे आकार थे मानो मनुष्य हों या भीमकाय जानवर हों। प्रागैतिहासिक दृश्यों का भी मानो आभास हो रहा हो। वह समुद्र के निचले तल का मानो एक विचित्र संसार हो। पर इतना तय था मगरमच्छ नहीं थे। बीच – बीच में प्रवाल से जहाँ – जहाँ जगह बचती हो उन्हीं के बीच मछलियाँ तैरती दिखाई दे रही थीं। मछलियाँ रंग बिरंगी थीं।

विशेष कर सुमन जी प्रवाल और मछलियों को अपने पैरों के नीचे शीशे में देखने पर तो उछल ही पड़ते थे। वे कहते थे यह देखो वह देखो। उनकी आवाज में मानो बड़ा ही भोलापन था। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने सहसा उनसे कहा यह तो हम देखते रहेंगे। अब तुम अपनी आवाज से हमें कुछ दिखाओ। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की फरमाइश थी वे ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता का पाठ करें। यह तो सुमन जी के अनुकूल ही था। बल्कि उन्होंने मानो संकेत ठोंक दिया था वे यह काव्य सुनाएँगे। सुमन जी अब सहसा गंभीर हो गये थे। उन्होंने अपना हाथ नाव से बाहर सरसरा कर अपनी अंजुरी में पानी भर लिया था। उन्होंने अब पानी को समुद्र में बहा दिया। स्पष्ट प्रतीत हो रहा था वे कविता सुनाने की भावना से ओत प्रोत हो गये थे।

उन्होंने सहसा मुझसे कहा था मॉरिशस के लोगों ने जरूर महाकवि निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता पढ़ी होगी। बड़ी अद्भुत कृति है।

कहने की मेरी बारी होने से मैं विनम्रतापूर्वक कहता। मुझे कहीं पढ़ने को मिला था सुमन जी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ आद्यंत कंठस्थ कर रखा है। मैंने यह कहा तो सुमन जी चौंक पड़े और हजारीप्रसाद द्विवेदी जी तो तालियाँ बजाने लगे। मैंने उत्तर में कहा यह काव्य यहाँ प्रचलित है। मैंने अपने उदाहरण से कहा यह काव्य यहाँ एक पाठ्यक्रम में संलग्न है। इन दिनों मैं अपने विद्यार्थियों को यह पढ़ा रहा हूँ। पर मैं स्वीकार करता हूँ मैं आधा ही समझ पाता हूँ और वही अपने विद्यार्थियों को समझाने का प्रयास करता हूँ।

अब एक तरह से तो मैदान मेरे हवाले हो गया। सुमन जी ने कह दिया वे यह काव्य अपने कंठ से मुझे समर्पित कर रहे हैं। यह मेरे लिए अद्भुत चमत्कार था। वे सुनाने की प्रक्रिया में उसमें खो जाते थे। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी बहुत सी पँक्तियों में उनका साथ दे रहे थे।

उन दिनों मेरी उम्र तीस थी और लेखन में तो मैं बस कच्चा ही था। पर लेखन की मेरी भावना प्रबल होने से मुझे लगता है मेरा मार्ग ऐसा बन जाता था भारत के बड़े रचनाकारों से तो मुझे मिलना ही है। 

***
© श्री रामदेव धुरंधर

16 – 11 — 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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