English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 226 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 226 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 226) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 226 ?

☆☆☆☆☆

ये गिले-शिकवे तो सिर्फ़..

साँस लेने तक ही चलते हैं,

बाद में सिर्फ़ कमज़र्फ़ यादें

और  पछतावे  रह जाते हैं…

☆☆

Grouses and grievances 

Last only till you breathe,

Later,  faded memories 

and regrets only remain…!

☆☆☆☆☆

आईए ख्वाबों में ही

मुलाकात कर लेते हैं

पाबंदी सड़कों पर हैं

ख्यालों पर तो नहीं…

☆☆

Come let’s meet 

in the dreams only

Restrictions are on roads 

but not on the thoughts..

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए

वो दर्द कैसा और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that

That  gets  expressed and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can

Give me comforting solace

It is just your memories that

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 225 – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – महिला दिवस!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 225 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

एक दिवस क्या

माँ ने हर पल, हर दिन

महिला दिवस मनाया।

*

अलस सवेरे उठी पिता सँग

स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।

खुश लड्डू गोपाल हुए तो

चाय बनाकर, हमें उठाया।

चूड़ी खनकी, पायल बाजी

गरमागरम रोटियाँ फूली

खिला, आप खा, कंडे थापे

पड़ोसिनों में रंग जमाया।

विद्यालय से हम,

कार्यालय से

जब वापिस हुए पिताजी

माँ ने भोजन गरम कराया।

*

ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का

चाहे जो रोटी बनवा लो।

पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा

माँ से जो चाहे डलवा लो।

कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,

बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू

माँ के हाथों में अमृत था

पचता सब, जितना जी खा लो।

माथे पर

नित सूर्य सजाकर

अधरों पर

मृदु हास रचाया।

*

क्रोध पिता का, जिद बच्चों की

गटक हलाहल, देती अमृत।

विपदाओं में राहत होती

बीमारी में माँ थी राहत।

अन्नपूर्णा कम साधन में

ज्यादा काम साध लेती थी

चाहे जितने अतिथि पधारें

सबका स्वागत करती झटपट।

नर क्या,

ईश्वर को भी

माँ ने

सोंठ-हरीरा भोग लगाया।

*

आँचल-पल्लू कभी न ढलका

मेंहदी और महावर के सँग।

माँ के अधरों पर फबता था

बंगला पानों का कत्था रँग।

गली-मोहल्ले के हर घर में

बहुओं को मिलती थी शिक्षा

मैंनपुरी वाली से सीखो

तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।

कर्तव्यों की

चिता जलाकर

अधिकारों को

नहीं भुनाया।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 मार्च से 16 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 मार्च से 16 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। आप सभी को होली के उत्सव की हार्दिक बधाई।

समय के बारे में एक कवि ने कहा है,

कल कल नदियाँ बहती है,

हर-पल सबसे कहती है,

जीवन बहता पानी है,

रुकना मौत की निशानी है!

समय नदी के प्रवाह की तरह से आगे चलता रहता है। जहां नदी का प्रवाह बंद हो जाता है वहां पर पानी रुक जाता है और उसमें से दुर्गंध आना प्रारंभ हो जाता है। इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी निरंतर योजनाबद्ध ढ़ंग से चलने पर ही मानव का जीवन सुगंधित रहता है। आज मैं पंडित अनिल पांडे आप सभी को इस सप्ताह के समय को नियोजित ढंग से चलाने के लिए साप्ताहिक राशिफल के बारे में आपको बताऊंगा।

इस सप्ताह सूर्य 14 मार्च के 9:25 रात से मीन राशि में प्रवेश करेंगे। बुध 15 तारीख के 10:06 रात से मीन राशि में बक्री होकर गमन करेंगे। बाकी ग्रह पूरे सप्ताह एक ही राशि में रहेंगे।

आई अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके परिवार के सभी लोगों का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। शत्रु भाव के मंगल और सूर्य के कारण भाई बहनों के साथ तनाव की स्थिति बन सकती है। 12 में भाव में वक्री शुक्र के होने के कारण आपको कचहरी के कार्यों में बहुत सावधानी रखना चाहिए। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 मार्च कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। 14, 15 और 16 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपका व्यापार ठीक-ठाक चलेगा। व्यापार में धन के आने की मात्रा में थोड़ी कमी होगी। आपके लग्न में गुरु बैठा हुआ है। जिसकी दृष्टि पंचम तथा नवम भाव पर है। इसके कारण आपको अपने संतान से कम सहयोग प्राप्त होगा तथा भाग्य भी आपकी कम मदद करेगा। इस सप्ताह आपके लिए 12, 13 और 14 मार्च लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर के बाहर बैठे गरीब लोगों के बीच में चावल का दान करें तथा शुक्रवार को मंदिर के पुजारी जी को सफेद वस्त्रो का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको ब्लड प्रेशर या डायबिटीज आदि खून के रोग परेशान कर सकते हैं। इस सप्ताह आपको भाग्य से विशेष लाभ प्राप्त नहीं होगा। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। वक्री शुक्र तथा नीच के बुध दशम भाव में बैठे हुए हैं। जिसके कारण आपको कार्यालय के कार्यों में परेशानी हो सकती है। लग्न में बैठा मंगल आपको दुर्घटनाओं से बचाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16 मार्च फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी सामान्यतया ठीक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 14 मार्च तक आपको अपने भाग्य से कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं हो पाएगी। 15 और 16 मार्च को आपको अपने भाग्य से थोड़ी मदद प्राप्त हो सकती है। दुर्घटनाओं से सावधान रहें। इस सप्ताह आप प्रयास करने पर अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 मार्च परिणाम दायक है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में थोड़ा आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। अगर आप प्रयास करेंगे तो अपने शत्रुओं को आप पराजित कर सकते हैं। अष्टम भाव में वक्री शुक्र तथा नीच के बुध के कारण दुर्घटनाओं से आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। नीच का बुध और राहु आपको दुर्घटनाओं से बचाने का प्रयास करेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 12, 13 और 14 मार्च अनुकूल है। 10 और 11 मार्च को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का जल और दूध से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

नीच का बुध सप्तम भाव में नीच भंग राजयोग बना रहा है। जिसके कारण आपको व्यापार में लाभ होगा। भाग्य भाव में गुरु के बैठे होने के कारण आपको भाग्य से मामूली सहायता मिल सकती है। कार्यालय के कार्यों में आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको अपने शत्रुओं से भी इस सप्ताह सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए। 15 और 16 मार्च कार्यों को करने के लिए अनुकूल हैं। 12, 13 और 14 मार्च को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का और आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। शत्रु राशि में बैठे मंगल के कारण भाग्य से आपको ज्यादा मदद नहीं मिल पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 मार्च विभिन्न कार्यों को संपन्न करने के लिए लाभदायक हैं। 14, 15 और 16 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है। आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। अष्टम भाव में इस सप्ताह मंगल का गोचर हो रहा है, अतः आपको दुर्घटनाओं से सतर्क रहना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 12, 13 और 14 मार्च प्रतिष्ठा दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। परिवार के बाकी सदस्यों के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध में तनाव आ सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके पास थोड़ा बहुत धन आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 तारीख कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 10 और 11 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको अपने संतान से थोड़ी बहुत ही मदद मिल सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकता है। धन आने के मार्ग में थोड़ी दिक्कत है। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 मार्च कार्यों को करने के लिए शुभ है। 12, 13 और 14 मार्च को आपको सावधान होकर ही कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पिताजी और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको थोड़ा बहुत मानसिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आप धन आने की उम्मीद कर सकते हैं। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कम सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 तारीख कार्यों को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह थोड़ा ठीक है। विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह आपके माता जी को कष्ट हो सकता है। भाई भाइयों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। कचहरी के कार्यों में सावधान रहें। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 तारीख कार्यों को करने के लिए अनुकूल हैं। 12, 13 और 14 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – कसक ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – कसक ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

वह घर आया और रूठ कर दादी के पास पहुच गया। उसकी बाजू पकड कर बोला- दादी , फोन पर मेरी पापा से बात करवा दे।

– क्यों ?

– दादी , कहां रहता है , मेरा पापा ?

– वो तो काम के लिए दूर रहता है ।

– बुला उसे अभी ।

– क्यों ?

– मैं अभी जाॅय के साथ खेल रहा था । उसका पापा आया और हम दोनों को कार में घुमाने ले गया ।

– फिर क्या हुआ ?

– जब मेरे पापा के पास गाड़ी है, तो मैं जाॅय के पापा की गाडी में सैर क्यों करूं ?

– बेटे , तेरे पापा नहीं आ सकते ।

– कह दे फिर मैं उनसे बात नहीं करूंगा ।

-नहीं बेटे, ऐसे नहीं कहते ।

– बस फिर, करवा दे मेरी बात। वह अपनी जिद्द पूरी करके ही माना । उसके बाद सपनों में खो गया और पापा की गाड़ी में सैर करने निकल गया ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१६ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१६ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

लोटस महल परिसर

कृष्णदेव राय की दोनों रानियाँ जनाना महल में धिकांश समय सुख और शांति के साथ बिताती थी। लोटस महल जनाना  बाड़े का एक हिस्सा था। जहां विजयनगर साम्राज्य के शाही परिवार रहते थे। लोटस महल को उस समय की शाही महिलाओं के लिए घूमने और मनोरंजक गतिविधियों का आनंद लेने के लिए डिजाइन किया गया था। दरबारियों के रहवास महल परिसर के बाहर थे। महल राजा और उसके मंत्रियों के लिए बैठक स्थल के रूप में भी काम करता था। प्राप्त मानचित्रों में इस स्थान को परिषद कक्ष के रूप में भी जाना जाता है। 18 वीं सदी मे मिले नक्शों में कमल महल को काउंसिल चैंबर भी कहा गया है। कमल महल और चित्रांगिनी महल ऐसे अन्य नाम हैं जिनसे इसे पहले जाना जाता था। इस स्थान पर संगीत समारोह और अन्य मनोरंजन गतिविधियाँ आयोजित की गईं।

कमल महल को यह नाम इसके आकार के कारण दिया गया है। बालकनी और रास्ते एक गुंबद से ढके हुए हैं जो खिली हुई कमल की कली की तरह दिखता है। केंद्रीय गुंबद पर भी कमल की कली की नक्काशी की गई है। महल के घुमावों को इस्लामिक स्पर्श दिया गया है जबकि बहुस्तरीय छत का डिज़ाइन इमारतों की इंडो शैली से संबंधित है। शैली और डिज़ाइन इस्लामी और भारतीय वास्तुकला शैली का एक जिज्ञासु मिश्रण है।

महल दो मंजिला इमारत है, जो अच्छी तरह से संरचित है। यह एक आयताकार दीवार और चार मीनारों से घिरा हुआ है। ये मीनारें भी पिरामिड आकार में हैं जिससे कमल जैसी संरचना का दृश्य दिखाई देता है। महल की मेहराबदार खिड़कियों और बालकनी को सहारा देने के लिए लगभग 24 खंभे मौजूद हैं। दीवारों और खंभों पर समुद्री जीवों और पक्षियों जैसे पैटर्न की खूबसूरती से नक्काशी की गई है।

महल के आसपास का क्षेत्र कई छायादार पेड़ों से ढका हुआ है जो महल को एक शांत वातावरण प्रदान करता है। शाम के समय जब लोटस महल जगमगाता है, तो पर्यटकों को एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। तस्वीरें लेने के लिए यह पूरे हम्पी में एक असाधारण स्थान है। हम्पी की यात्रा के दौरान लोटस महल सूची में एक निश्चित गंतव्य होना चाहिए। यह जानकर आप दंग रह जाएंगे कि सदियों पहले भारतीय वास्तुकला और कारीगर अपनी श्रेणी में कितने सर्वश्रेष्ठ थे।

दिन भर पैदल उठक बैठक से सभी लोग थकने लगे थे। शाम भी होने को आई। बस का रूख होटल की तरफ़ मोड़ने का आदेश हुआ। वापसी यात्रा में अधिकांश साथी झपकियों की थपकियों के अहसास से गर्दन झुका कर ऊँघने लगे। हमने कुछ जागृत मुसाफ़िरों को तेनाली राम का एक किस्सा सुनाया।

एक साथी ने पूछा – लगता है तेनाली और बीरबल एक ही व्यक्ति था।

हमने उन्हें बताया – नहीं, राजा कृष्ण देवराय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी था, तेनालीराम। असल में उसका नाम रामलिंगम था। तेनाली गांव का होने के कारण उसे तेनालीराम कहा जाता था। तेनालीराम की बुद्धिमत्‍ता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे। यह राजा कृष्ण देवराय का प्रमुख सलाहकार भी था। इतिहास से अनभिज्ञ सज्जन तेनाली राम को अकबर के दरबारी बीरबल से प्रभावित बता देते हैं। यह सही नहीं है।

तेनाली राम-कृष्णदेव राय 1526-1530 के आसपास बाबर के समकालीन थे। कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में हुई जबकि बीरबल अकबर (1556-1605) के समकालीन थे। बीरबल तेनाली को जानते होंगे लेकिन तेनाली ने कभी बीरबल के बारे में नहीं सुना क्योंकि दोनों की उम्र में 50 साल का अंतर था। तेनाली उस समय के थे, जब इब्राहिम लोदी दिल्ली के सुल्तान थे। इसलिए बीरबल के तेनाली को जानने की संभावना भी कम है। हाँ, बाद में इनके किस्से आपस में घुलमिल गए। कल्पनाशील लेखकों को यहाँ का वहाँ चिपकाने में महारत हासिल होती है। अवसर भी था और ज़रूरत भी। हमने साथियों को तेनाली राम का ‘स्वर्ण मूषक पुरस्कार’ क़िस्सा सुनाया।

महाराज कृष्णदेव राय अपने दरबार के सभी सभासदों को विशेष महत्व देते थे, किंतु फिर भी सभासदों को प्राय: ऐसा लगा करता था कि महाराज तेनाली राम पर अधिक कृपालु हैं और उसे ऐसा मौक़ा दे दिया करते हैं कि वह शेष सभी सभासदों पर भारी पड़ता है। इसलिए आम सभासद ऐसे अवसरों की तलाश में रहते थे, जब तेनाली राम का मज़ाक उड़ाया जा सके।

एक दिन दरबार लगा हुआ था। आम दिनों की तरह ही कार्रवाई चल रही थी। तभी महाराज ने एक अजीब-सी गंध महसूस की। उन्होंने सभासदों से पूछा, ‘क्या उन्हें कोई दुर्गंध महसूस हो रही है?’

सभी सभासदों ने बिना सतर्कता से दुर्गंध अनुभव करने की कोशिश किए ही कहा, ‘नहीं महाराज!’

लेकिन तेनाली राम आस-पास की हवा महसूस करता हुआ बोला, ‘हां, महाराज! ऐसी गंध मरे चूहे के शरीर में सड़न उत्पन्न होने के कारण पैदा होती है। लगता है, कहीं आस-पास ही कोई चूहा मरा पड़ा है।’

महाराज ने सेवकों से अविलम्ब चूहे की खोज करने के लिए कहा। थोड़ी ही देर में एक सेवक ने मरा चूहा ढूंढ़ निकाला और उसे लेकर महाराज के पास चला आया।

महाराज सेवक पर नाराज़ हो गए। उन्होंने कहा, ‘ठीक है! तुमने इसे खोज निकाला मगर इसे यहां लाने की आवश्यकता क्या थी? कहीं फेंक आते, फिर मुझे आकर सूचना दे देते। मैं इस चूहे का क्या करूंगा?’ सेवक डर से थरथर कांपने लगा।

तभी एक दरबारी ने कहा, ‘महाराज, आप चाहें तो चूहा इस दरबार के सबसे विद्वान सभासद तेनाली राम को भेंट कर सकते हैं। आपने उसे तरह-तरह के उपहार दिए हैं, आज मरा चूहा ही सही।’

दरबारी की बात पर सभासद ही-ही-ही-ही करने लगे। बोलने वाला सभासद भी दरबार में मसखरा माना जाता था, इसलिए महाराज ने उसकी बातें अनसुनी कर दीं। मगर तेनाली राम इस सभासद की बातों में छुपे कटाक्ष को समझ गया। तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘माननीय सभासद, यदि महाराज ने मुझे यह चूहा उपहार में दिया तो मैं इसे आदर के साथ ग्रहण करूंगा। चूहा भगवान गणपति का वाहन ऐसे ही नहीं बन गया है।’

महाराज, तेनाली राम का प्रतिवाद सुन मुस्करा दिए और बोले, ‘मरे चूहे का तुम क्या करोगे?’

‘यदि आपने मुझे यह चूहा भेंट किया तब मैं यह समझूंगा कि आप मेरी बुद्धि की परीक्षा लेना चाहते हैं और यह परीक्षा देने के लिए मैं इस चूहे से व्यापार करूंगा महाराज, तेनाली राम ने कहा।

‘मरे चूहे से व्यापार, यह तुम कैसे कर सकते हो तेनाली राम?’ महाराज ने पूछा।

‘महाराज, संसार की प्रत्येक वस्तु का कोई-न-कोई उपयोग है। कुछ भी व्यर्थ नहीं है। मैं इस मरे चूहे को किसी सपेरे को बेच आऊंगा और उससे गुड़ ख़रीद लूंगा। गर्मी का मौसम है। मैं गुड़ को पानी में मिलाकर मीठा पानी बेचूंगा। इससे जो पैसे मिलेंगे, उससे चना ख़रीदूंगा और चना बेचकर चने से बने पकवान बेचकर पैसा कमाऊंगा और उन पैसों से बड़ा रोज़गार आरम्भ करूंगा।’ तेनाली राम ने कहा।

तेनाली राम की बातें सुनकर महाराज प्रसन्न हुए और सभासदों से कहा, ‘तेनाली राम की यही तर्कबुद्धि उसे तेनाली राम बनाती है। हमें इस बात का गर्व है कि हमारे दरबार में तेनाली जैसा बुद्धिमान सभासद है। मैं आज इसके उत्तर से इतना संतुष्ट हूं कि इसके लिए ‘स्वर्ण मूषक’ पुरस्कार की घोषणा करता हूं तथा राज्य के कोषाध्यक्ष को आदेश देता हूं कि तेनाली राम को पुरस्कृत करने के लिए पांच तोला सोने का चूहा बनवाकर दरबार को यथाशीघ्र सौंपे।’

महाराज के इस आदेश का पालन हुआ। उस दिन दरबार में महाराज ने तेनाली राम को सोने का चूहा पुरस्कार में देकर उसे अपने गले से लगा लिया। तेनाली राम के आलोचकों को महाराज की ओर से दिया गया यह एक करारा जवाब था। तो ऐसा था विजयनगर साम्राज्य का दरबार।

इस किस्से से यह पता चलता है कि उस समय विजयनगर साम्राज्य धनधान्य से भरा रहता था। तभी महल तक में चूहे पहुँच जाते थे, और व्यावसायिक उद्यमशीलता के विचारों को पोषित किया जाता था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆

☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

=1=

तुम केंद्र तुम धुरी तुम सृष्टि की रचनाकार हो।

तुम   धरती  पर  मूरत प्रभु  की  साकार हो।।

तुम   जगत  जननी  हो   तुम संसार  रचयिता।

माँ   बहन   पत्नी   जीवन  में  हर  प्रकार हो।।

=2=

तुम से ही ममता स्नेह प्रेम जीवित  रहता   है।

मन सच्चा कभी कपट कुछ नहीं कहता  है।।

त्याग  समर्पण  का  जीवंत  स्वरूप  हो  तुम।

तन मन में नारी तेरे प्यार का दरिया बहता है।।

=3=

तुम   से  ही घर आँगन और  चारदीवारी  है।

हरी    भरी   जीवन   की   हर फुलवारी है।।

तुमसे  ही आरोहित संस्कार संस्कृति सृष्टि में।

तुमसे ही उत्पन्न होती बच्चों की किलकारी है।।

=4=

तुमसे  ही  बनती  हर  मुस्कान  खूबसूरत  है।

दया   श्रद्धा   की  बसती  साक्षात  मूरत   है।।

तुझसे से ही  है  मानवता का आदि और अंत।

चलाने को संसार प्रभु को भी तेरी जरूरत है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #216 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें – … ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – आओ सोचें…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 216

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आओ सोचें कि हम सब बिखर क्यों रहे

स्वार्थ में भूलकर अपना प्यारा वतन

क्यों ये जनतंत्र दिखता है बीमार सा

सभी मिलकर करें उसके हित का जतन ।

*

सबको अधिकार है अपनी उन्नति का

पर करें जो भी उसमें सदाचार हो

नीति हो, प्रीति हो, सत्य हो, लाभ हो

ध्यान हो स्वार्थ हित न दुराचार हो ।

*

राह में समस्याएँ तो आती ही हैं

उनके हल के लिये कोई न तकरार हो

सब विचारों का समुदार सन्मान हो

आपसी मेल सद्भावना प्यार हों ।

*

गाँधी ने राह जो थी दिखाई उसे

बीच में छोड़ शायद गये हम भटक

था अहिंसा का वह रास्ता ही सही

उसपे चलते तो होती उठा न पटक ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #268 ☆ कलम से अदब तक… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख कलम से अदब तक। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 268 ☆

☆ कलम से अदब तक… ☆

अदब सीखना है तो कलम से सीखो; जब भी चलती है, सिर झुका कर चलती है।’ परंतु आजकल साहित्य और साहित्यकारों की परिभाषा व मापदंड बदल गए हैं। पूर्वोत्तर परिभाषाओं के अनुसार…साहित्य में निहित था…साथ रहने, सर्वहिताय व सबको साथ लेकर चलने का भाव, जो आजकल नदारद हो गया है। परंतु मेरे विचार से तो ‘साहित्य एहसासों व जज़्बातों का लेखा-जोखा है; भावों और संवेदनाओं का झरोखा है और समाज के कटु यथार्थ को उजागर करना साहित्यकार का दायित्व है।’

साहित्य और समाज का चोली-दामन का साथ है। साहित्य केवल समाज का दर्पण ही नहीं, दीपक भी है और समाज की विसंगतियों- विश्रृंखलताओं का वर्णन करना, जहां साहित्यकार का नैतिक दायित्व है; उसके लिए समाधान सुझाना व उपयोगिता दर्शाना भी उसका प्राथमिक दायित्व है। परंतु आजकल साहित्यकार अपने दायित्व का निर्वाह कहां कर रहे है…अत्यंत चिंतनीय है, शोचनीय है। महान् लेखक मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि ‘कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली होती है.. ताक़तवर होती है’ अर्थात् जो कार्य तलवार नहीं कर सकती, वह लेखक की कलम की पैनी धार कर गुज़रती है। इसीलिए वीरगाथा काल में राजा युद्ध-क्षेत्र में आश्रयदाता कवियों को अपने साथ लेकर जाते थे और उनकी ओजस्विनी कविताएं सैनिकों का साहस व उत्साहवर्द्धन कर उन्हें विजय के पथ पर अग्रसर करती थीं। रीतिकाल में भी कवियों व शास्त्रज्ञों को दरबार में रखने की परंपरा थी तथा उनके बीच अपने राजाओं को प्रसन्न करने हेतु अच्छी कविताएं सुनाने की होड़ लगी रहती थी। श्रेष्ठ रचनाओं के लिए उन्हें स्वर्ण मुद्राएं भेंट की जाती थी। बिहारी का दोहा ‘नहीं पराग, नहीं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल/ अलि कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल’ द्वारा राजा जयसिंह को बिहारी ने सचेत किया गया था कि वे पत्नी के प्रति आसक्त होने के कारण, राज-काज में ध्यान नहीं दे रहे, जो राज्य के अहित में है और विनाश का कारण बन सकता है। इसी प्रकार भक्ति काल में कबीर व रहीम के दोहे, सूर के पद, तुलसी की रामचरितमानस के दोहे- चौपाइयां गेय हैं, समसामयिक हैं, प्रासंगिक हैं और प्रात:-स्मरणीय हैं। आधुनिक काल को भी भक्तिकालीन साहित्य की भांति विलक्षण और समृद्ध स्वीकारा गया है।

सो! सत्-साहित्य वह कहलाता है, जिसका प्रभाव दूरगामी हो; लम्बे समय तक बना रहे तथा वह  परोपकारी व मंगलकारी हो; सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् के विलक्षण भाव से आप्लावित हो। प्रेमचंद, शिवानी, मनु भंडारी, मालती जोशी, निर्मल वर्मा आदि लेखकों के साहित्य से कौन परिचित नहीं है? आधुनिक युग में भारतेंदु, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, निराला, बच्चन, नीरज, भारती आदि का सहित्य अद्वितीय है, शाश्वत है, समसामयिक है, उपादेय है। आज भी उसे भक्तिकालीन साहित्य की भांति उतनी तल्लीनता से पढ़ा जाता है; जिसका मुख्य कारण है…साधारणीकरण अर्थात् जब पाठक ब्रह्मानंद की स्थिति तक पहुंचने के पश्चात् उसी मन:स्थिति में रहना पसंद करता है तथा उस स्थिति में उसके भावों का विरेचन हो जाता है…यही भाव-तादात्म्य ही साहित्यकार की सफलता है।

साहित्यकार अपने समाज का यथार्थ चित्रण करता है; तत्कालीन  समाज के रीति-रिवाज़, वेशभूषा, सोच, धर्म आदि को दर्शाता है…उस समय की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक परिस्थितियों का दिग्दर्शन कराता है… वहीं समाज में व्याप्त बुराइयों को प्रकाश में लाना तथा उनके उन्मूलन के मार्ग दर्शाना…उसका प्रमुख दायित्व होता है। उत्तम साहित्यकार संवेदनशील होता है और वह अपनी रचनाओं के माध्यम से, पाठकों की भावनाओं को उद्वेलित व आलोड़ित करता है। समाज में व्याप्त बुराइयों की ओर उनका ध्यान आकर्षित कर जनमानस  के मनोभावों को झकझोरता, झिंझोड़ता व सोचने पर विवश कर देता है कि वे ग़लत दिशा की ओर अग्रसर हैं, दिग्भ्रमित हैं। सो! उन्हें अपना रास्ता बदल लेना चाहिए। सच्चा साहित्यकार मिथ्या लोकप्रियता के पीछे नहीं भागता; न ही अपनी कलम को बेचता है; क्योंकि वह जानता है कि कलम का रुतबा संसार में सबसे ऊपर होता है। कलम सिर झुका कर चलती है, तभी वह इतने सुंदर साहित्य का सृजन करने में समर्थ है। इसलिए मानव को उससे अदब व सलीका सीखना चाहिए तथा अपने अंतर्मन में विनम्रता का भाव जाग्रत कर, सुंदर व सफल जीवन जीना चाहिए…ठीक वैसे ही जैसे फलदार वृक्ष सदैव झुक कर रहता है तथा मीठे फल प्रदान करता है। इन कहावतों के मर्म से तो आप सब अवगत होंगे… ‘अधजल गगरी, छलकत जाए’ तथा ‘थोथा चना, बाजे घना’ मिथ्या अहं भाव को प्रेषित करते हैं। इसलिए नमन व मनन द्वारा जीवन जीने के सही ढंग व महत्व को प्रदर्शित दिया गया है। मन से पहले व मन के पीछे न लगा देने से विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न नहीं होती, बल्कि नमन व मनन एक- दूसरे के पूरक हो जाते हैं। वैसे भी इनका चोली-दामन का साथ है। एक के बिना दूसरा अस्तित्वहीन है। यह सामंजस्यता के सोपान हैं और सफल जीवन के प्रेरक व आधार- स्तंभ हैं।

प्रार्थना हृदय का वह सात्विक भाव है; जो ओंठों तक पहुंचने से पहले ही परमात्मा तक पहुंच जाती है… परंतु शर्त यह है कि वह सच्चे मन से की जाए। यदि मानव में अहंभाव नहीं है, तभी वह उसे प्राप्त कर सकता है। अहंनिष्ठ व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है, केवल अपनी-अपनी हांकता है तथा दूसरे के अस्तित्व को नकार उसकी अहमियत नहीं स्वीकारता। सो! वह आत्मजों, परिजनों व परिवारजनों से बहुत दूर चला जाता है। परंतु एक लंबे अंतराल के पश्चात् समय के बदलते ही वह अर्श से फ़र्श पर पर आन पड़ता है और लौट जाना चाहता है…अपनों के बीच, जो सर्वथा संभव नहीं होता। अब उसे प्रायश्चित होता है… परंतु गुज़रा समय कब लौट पाया है? इसलिए मानव को अहं को त्याग, किसी भी हुनर पर अभिमान न करने की सीख दी गई है, क्योंकि पत्थर की भांति अहंनिष्ठ व्यक्ति भी अपने ही बोझ से डूब जाता है, परंतु निराभिमानी मनुष्य संसार में श्रद्धेय व पूजनीय हो जाता है।

‘विद्या ददाति विनयम्’ अर्थात् विनम्रता मानव का आभूषण है और विद्या हमें विनम्रता सिखलाती है… जिसका संबंध संवेदनाओं से होता है। संवेदना से तात्पर्य है… सम+वेदना… जिसका अनुभव वही व्यक्ति कर सकता है, जिसके हृदय में स्नेह, प्रेम, करुणा, सहानुभूति, सहनशीलता, करुणा, त्याग आदि भाव व्याप्त हों…जो दूसरे के दु:ख की अनुभूति कर सके। परंतु यह बहुत टेढ़ी खीर है…दुर्लभ व दुर्गम मार्ग है तथा उस स्थिति तक पहुंचने के लिए वर्षों की साधना अपेक्षित है। जब तक व्यक्ति स्वयं को उसी भाव-दशा में अनुभव नहीं करता; उनके सुख-दु:ख में अपनत्व भाव व आत्मीयता नहीं दर्शाता …अच्छा इंसान भी नहीं बन सकता; साहित्यकार होना, तो बहुत दूर की बात है; कल्पनातीत है।

आजकल समाजिक व्यवस्था पर दृष्टिपात करने पर लगता है कि संवेदनाएं मर चुकी हैं, सामाजिक सरोकार अंतिम सांसें ले रहे हैं और इंसान आत्म-केंद्रित होता जा रहा है। त्रासदी यह है कि वह निपट स्वार्थी इंसान अपने अतिरिक्त किसी अन्य के बारे में सोचता ही कहां है? सड़क पर पड़ा घायल व्यक्ति जीवन-मृत्यु से संघर्ष करते हुए सहायता की ग़ुहार लगाता है, परंतु संवेदनशून्य व्यक्ति उसके पास से नेत्र मूंदे निकल जाता हैं। हर दिन चौराहों पर मासूमों की अस्मत लूटी जाती है और दुष्कर्म के पश्चात् उन्हें तेज़ाब डालकर जला देने के किस्से भी आम हो गए हैं। लूटपाट, अपहरण, फ़िरौती, देह-व्यापार व मानव शरीर के अंग बेचने का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। यहां तक कि चंद सिरफिरे अपने देश की सुरक्षा बेचने में भी कहां संकोच करते हैं?

परंतु कहां हो रहा है… ऐसे साहित्य का सृजन, जो समाज की हक़ीकत बयान कर सके तथा लोगों की आंखों पर पड़ा पर्दा हटा सके। आजकल तो सबको पद-प्रतिष्ठा, नाम-सम्मान व रूतबा चाहिए, वाहवाही सबकी ज़रूरत है; जिसके लिए वे सब कुछ करने को तत्पर हैं, आतुर हैं अर्थात् किसी भी सीमा तक झुकने को तैयार हैं। यदि मैं कहूं कि वे साष्टांग दण्डवत् प्रणाम तक करने को प्रतीक्षारत हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

सो! ऐसे आक़ाओं का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है, जो नये लेखकों को सुरक्षा प्रदान कर, मेहनताने के रूप में खूब सुख-सुविधाएं वसूलते हैं। सो! ऐसे लेखक पलक झपकते अपनी पहली पुस्तक के प्रकाशित होते ही बुलंदियों को छूने लगते हैं, क्योंकि उन आक़ाओं का वरद्-हस्त नये लेखकों पर होता है। सो! उन्हें फर्श से अर्श पर आने में समय लगता ही नहीं। आजकल तो पैसा देकर आप राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय अथवा अपना मनपसंद सम्मान खरीदने को स्वतंत्र हैं। सो! पुस्तक के लोकार्पण करवाने की भी बोली लगने लगी है। आप पुस्तक मेले में अपने मनपसंद सुविख्यात लेखकों द्वारा अपनी पुस्तक का लोकार्पण करा कर प्रसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। अनेक विश्व-विद्यालयों द्वारा पीएच•डी• व डी•लिट्• की मानद उपाधि प्राप्त कर, अपने नाम से पहले डॉक्टर लगाकर, वर्षों तक मेहनत करने वालों के समकक्ष या उनसे बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर उन्हें धूल चटा सकते हैं; नीचा दिखा सकते हैं। परंतु ऐसे लोग अहंनिष्ठ होते हैं। वे कभी अपनी ग़लती कभी स्वीकार नहीं करते, बल्कि दूसरों पर आरोप-प्रत्यारोप लगा कर अहंतुष्टि कर सुक़ून पाते हैं। यह सत्य है कि जो लोग अपनी ग़लती नहीं स्वीकारते, किसी को अपना कहां मानेंगे? सो! ऐसे लोगों से सावधान रहने में ही सब का हित है।

जैसे कुएं में उतरने के पश्चात् बाल्टी झुकती है और भरकर बाहर निकलती है…उसी प्रकार जो इंसान झुकता है; कुछ लेकर अथवा प्राप्त करने के पश्चात् ही जीवन में पदार्पण करता है। यह अकाट्य सत्य है कि संतुष्ट मन सबसे बड़ा धन है। परंतु ऐसे स्वार्थी लोग और…और…और की चाह में अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। वैसे बिना परिश्रम के प्राप्त फल से आपको क्षणिक प्रसन्नता तो प्राप्त हो सकती है, परंतु उससे संतुष्टि व स्थायी संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इससे भले ही आपको पद-प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाए; परंतु सम्मान नहीं मिलता। अंतत: सत्य व हक़ीक़त के उजागर हो जाने के पश्चात् आप दूसरों की नज़रों में गिर जाते हैं।

‘सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं और झूठ सदा शेखी बघारता हुआ कहता है कि ‘मैं ही सत्य हूं। परंतु एक अंतराल के पश्चात् सत्य लाख परदों के पीछे से भी सहसा प्रकट हो जाता है।’ इसलिए सदैव मौन रह कर आत्मावलोकन कीजिए और तभी बोलिए; जब आपके शब्द मौन से बेहतर हों। सो! मनन कीजिए, नमन स्वत: प्रकट हो जाएगा। जीवन में झुकने का अदब सीखिए; मानव-मात्र के हित के निमित्त समाजोपयोगी लेखन कीजिए…सब के दु:ख-दर्द की अनुभूति कीजिए। वैसे संकट में कोई नज़दीक नहीं आता, जबकि दौलत के आने पर दूसरों को आमंत्रण देना नहीं पड़ता…लोग आप के इर्दगिर्द मंडराने लगते हैं। इनसे बच के रहिए…प्राणी-मात्र के हित में सार्थक सृजन कीजिए…यही ज़िंदगी का सार है; जीने का मक़सद है। सस्ती लोकप्रियता के पीछे मत भागिए …इससे आप की हानि होगी। इसलिए सब्र व संतोष रखिए, क्योंकि वह आपको कभी भी गिरने नहीं देता… सदैव आपकी रक्षा करता है। ‘चल ज़िंदगी नयी शुरुआत करते हैं/ जो उम्मीद औरों से थी/ ख़ुद से करते हैं’… इन्हीं शब्दों के साथ अपनी लेखनी को विराम देती हूं।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री

? रचना संसार # 41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

चंचल मन आह्लादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।

बहे पवन शीतल पावन भी,

कुसुमित फूल पलास सखी री।।

 *

ऋतु बसंत मदमाती आयी,

नव पल्लव पेड़ो पर छाए।

झूम रहे भौरे मतवाले,

अल्हड़ अमराई मुस्काए।।

पीली चूनर ओढ़े धरती,

हिय में रख उल्लास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

उन्मादित नभ धरती आकुल,

यौवन का मौसम रसवंती।

महुआ पुष्पित गदराया है,

सरसों का रँग हुआ बसंती।।

नाच रही है कंचन काया,

हिय अनंग का वास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

हुआ सुवासित तन गोरी का

अंग अंग लेता अँगड़ाई।

हृदय कुंज में मधुऋतु आयी,

भली लगे प्रिय की परछाई।।

मधुर यामिनी देख मिलन की ,

सभी सुखद आभास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #268 ☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – नारी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 268 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

ममता का भंडार है, स्नेह बहाए नीर।

रखती सबका ख्याल है, रहती वही  अधीर ।।

*

त्याग, तपस्या, प्रेम का, नारी है वरदान।

जग जननी संसार की, यह नारी की शान ।।

*

शील, सती, ममता भरी, अनुपम हैं हर रूप।

सहनशीलता, त्याग की, मूरत बड़ी अनूप ।।

*

नारी में दिखता सदा, देवी का अवतार।

रणचंडी का रूप है, उसमें शक्ति अपार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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