मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य #195 ☆ आरती – जय जय जय अंबे माता ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 195 – विजय साहित्य ?

☆ आरती – जय जय जय अंबे माता ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते  ☆

(आरती – स्वरचित)

आरती सप्रेम जय जय जय अंबे माता

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||धृ||

सदा पाठिशी रहा उभी मुकांबिका होऊनी

शिवशक्तीचे प्रतिक तू सिंहारूढ स्वामींनी

कोल्लर गावी महिमा गाई भक्त वर्ग मोठा .

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||1||

ब्राम्ही रूप हे तुझेच माते चतुर्मुखी ज्ञानी

सप्तमातृका प्रातः गायत्री हंसारूढ मानी

सृजनदेवता ब्रम्हारूपी रक्तवर्णी कांता

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||2||

माहेश्वरी रूप शिवाचे , व्याघ्रचर्म धारीणी

जटामुकूट शिरी शोभतो तू सायं गायत्री

त्रिशूल डमरू त्रिनेत्र धारी तू वृषारूढा.

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||3||

स्कंदशक्ती तू कौमारी तू नागराज धारीणी

मोर कोंबडा हाती भाला तू जगदोद्धारीणी.

अंधकासूरा शासन करण्या आली मातृका

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||4||

विष्णू स्वरूपी वैष्णवी तू ,शंख, चक्र, धारीणी

माध्यान्ह गायत्री माता तू शोभे गरूडासनी.

मनमोहिनी पद्मधारीणी तू समृद्धी दाता.

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||5||

नारसिंही भद्रकाली तू,पानपात्र धारीणी

गंडभेरूडा , शरभेश्वर शिवशक्ती राज्ञी

लिंबमाळेचा साज लेवूनी शोभे अग्नीशिखा.

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||6||

आदिमाया,आदिशक्ती,विराट रूप धारीणी

रण चंडिका शैलजा महिषासूर मर्दिनी

महारात्री त्या दिव्य मोहिनी ,शोभे जगदंबा .

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||7||

सप्तमातृका रूपात नटली देवी कल्याणी

भगवती तू, माय रेणुका शोभे नारायणी

स्तुती सुमनांनी आरती कविराजे सांगता

कृपा रहावी आम्हां वरती, दे आशिष आता .||8||

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

स्वरचित आरती. निर्मिती विजया दशमी

18/10/2018.

हकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता – अध्याय पहिला – ( श्लोक ४१ ते ४७) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय पहिला — भाग पहिला – ( श्लोक ४१ ते ४७) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

संस्कृत श्लोक… 

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।

स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ৷৷४१৷৷

संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।

पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः৷৷४२৷৷

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः ।

उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः৷৷४३৷৷

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।

नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ৷৷४४৷৷

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌ ।

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ৷৷४५৷৷

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः ।

धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्‌ ৷৷४६৷৷

संजय उवाच

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्‍ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्‌ ।

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ৷৷४७৷৷

मराठी भावानुवाद ::::  

कुलावरी वर्चस्व  अधर्म प्रदूषित कुलस्त्रिया 

वर्णसंकरा प्रसूत करती वाममार्गी त्या स्त्रिया ॥४१॥

वर्णसंकरे पिंडदान तर्पणादी खंड होत 

पितरादींची अधोगती नाश कुलाचा होत ॥४२॥

कुलघातक हा वर्णसंकर अतिघोर दोष

जातिधर्म कुलधर्मही जात पूर्ण लयास ॥४३॥

लुप्त जाहले कुलधर्म  नाही त्यासी  काही थारा

जनार्दना रे ऐकुन आहे नरकवास त्या खरा ॥४४॥

राज्यसुखाच्या मोहाने युद्धसिद्ध जाहलो

हाय घोर या पापाच्या मार्गाला  भुललो ॥४५॥

शस्त्र न धरी मी हाती काही करीन ना प्रतिकार 

मृत्यूला स्वीकारिन मी झेलुनिया कौरव वार ॥४६॥

कथित संजय 

छिन्नमने कथुनी ऐसे त्यजुनी तीरकमान

शकटावरती शोकमग्न तो  बसला अर्जुन ॥४७॥

– क्रमशः भाग पहिला 

अनुवादक : © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 129 ☆ उंगली उठी तो ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है तेज भागती जिंदगी परआधारित एक विचारणीय लघुकथा उंगली उठी तो। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 129 ☆

☆ लघुकथा – उंगली उठी तो ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

‘चेतन! उधर देखो – ये क्या कर रहे हैं सब ? एक- सी मुद्रा में खड़े हैं, एक दूसरे की ओर उंगली दिखाते हुए।‘

‘कुछ कहना चाह रहे हैं क्या ?’ -सुयश बोला

‘हाँ, कुछ तो बोल रहे हैं, चेहरे पर गुस्सा दिख रहा है। पर सब एक ही तरह से खड़े हैं ?’

‘कोई मोर्चा निकल रहा है क्या ?’ – सुयश बोला

‘पता नहीं।’

चेतन! वे सब तो हँस रहे हैं लेकिन मुद्रा वैसी ही है एक दूसरे की ओर उंगली दिखाते हुए।

चेतन ने चारों ओर नजर दौड़ाई, इधर दौड़ा – उधर भागा, पर सब तरफ वही दृश्य, वैसी ही मुद्राएं । स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तर, राजनीति का कार्यालय या —–। टेलीविजन के कार्यक्रमों में भी तो नेता, मंत्री सब एक- दूसरे की ओर उंगली दिखाते हैं। उसे बचपन का खेल याद आया स्टेच्यू वाला। ये सब स्टेच्यू हो गए हैं क्या ?

पर खेल में तो जो जिस मुद्रा में रहता था उसी में स्टेच्यू हो जाता था, हाँ अच्छे से याद है उसे। बचपन में बहुत खेला है यह खेल। लेकिन यहाँ तो सब एक – सी ही मुद्रा में दिख रहे हैं।

 किसी की उंगली अपनी तरफ उठती क्यों नहीं दिख रही ?

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 237 ☆ कविता – नारी तू नारायणी… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता नारी तू नारायणी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 237 ☆

? कविता नारी तू नारायणी ?

क्या महिला आरक्षण बदल सकता है, वह समाज

जहां

हर उस गुनाह में

आरोपी स्त्री को ही माना जाता है

जहां भी ऐसी कोई संभावना होती है।

बस स्त्री होने के चलते

प्रताड़ित होती है नारी

दोष पुरुष का हो तो भी

सारा आरोप स्त्री पर मढ दिया जाता है

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण ,

स्त्रियों की पोषाक ,

स्त्रियों के बोलचाल , व्यवहार ,

भाव भंगिमा को जिम्मेदार बनाकर

पुरुष को क्लीन चिट देने में समाज मिनट भर नहीं लगाता

बदलना नहीं है

केवल सांसदों की संख्या में स्त्री प्रतिनिधित्व

बदलना है वह सोच

वह समाज

जिसमे

स्त्री को अपना सही पक्ष समझाने के लिए भी

जोर जोर से बोलना पड़े

महज इसलिए

क्योंकि वह एक स्त्री कह रही है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #154 – लघुकथा – “सरकारी बल्ब” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  “सरकारी बल्ब)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 154 ☆

 ☆ लघुकथा – “सरकारी बल्ब” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

कमल को अपनी पुत्री का नाम कूपन से कटवाना था। वह नगर पालिका में बैठा था। तभी रोहित ने आकर कहा, “साहब! मेरा घर गांव से एक तरफ है। स्ट्रीट लाइट पर बल्ब लगवा दीजिए।” 

यह सुनकर कमल बोला, “साहब! मेरा घर भी वहां पर है। आप बल्ब मत लगाइएगा।”

यह सुनकर सीएमओ साहब ने रोहित के साथ-साथ कहा, “क्यों भाई! क्या बात हैं?”

“साहब, वह वापस फूट जाएगा,” कमल ने कहा तो रोहित बोला, “अजीब आदमी हो। अपने घर की गली में बल्ब लगवाने का मना कर रहे हो।”

सीएमओ साहब ने कमल को देखकर आंखें ऊंचका कर इशारे में पूछा-क्या बात है भाई?

“साहब! इनका पुत्र स्ट्रीट लाइट बल्ब को पत्थर से निशाना लगाकर फोड़ देता है। फिर मेरे जैसा व्यक्ति उनके पुत्र को बल्ब फोड़ने से रोकता है तो ये साहब कहते हैं- आपके बाप का क्या जाता है? सरकारी बल्ब है। फोड़ने दीजिए।”

यह सुनकर रोहित ने गर्दन नीचे कर दी और सीएमओ साहब बारी-बारी से दोनों को देखे जा रहे थे।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-09-2023

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 181 ☆ बालगीत – जल ही है जीवन आधार ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 181 ☆

☆ बालगीत – जल ही है जीवन आधार ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।

सृष्टि की अनमोल धरोहर

      नहीं करें यूँ ही बेकार।।

 

पौधे रोपें आसपास हम

     स्वच्छ वायु और आज – कल को।

पेड़ बुलाएँ बादल जी को

     जड़ भी संचित करती जल को।।

 

अधिक देर अब होगी घातक

     पेड़ लगा लें बच्चो चार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

बर्षा का जल सभी बचाएँ

      बिना काम के नहीं बहाएँ।

कपड़े धोयें सोच समझकर

    थोड़े – थोड़े जल से नहाएँ।।

 

आरओ के अपशिष्ट नीर से

        करें धुलाई हम सब यार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

पेड़ धरोहर हैं माटी के

 आज बचाएँ हम सब जंगल।

जल के सारे स्रोत सुखाकर

    नहीं कभी हो सकता मंगल।।

 

सिमटीं नदियाँ हुईं प्रदूषित

     सभी बचाएँ उनकी धार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

समरसेविल लगा घरों में

      पानी का दुरुपयोग मत करो।

जल का स्तर घटा नित्य ही

    इस प्रवृत्ति से स्वयं डरो ।।

 

बाल, युवा, वृद्ध सब जागें

      करो स्वयं पर तुम उपकार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #21 ☆ कविता – “घाव…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 21 ☆

☆ कविता ☆ “घाव…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

कैसी जंग कैसी जीत?

जब नहीं पास मनमीत ।

कैसा ताज कैसा अभिमान?

बिना आग कौन धनवान।

कैसा सिर कौन  सा ताज?

दिल यह पत्थर समान ।

कैसी शान कैसा कांचनाहार?

हार यह सर्प समान ।

कैसी नींद कैसी शैय्या ?

शैय्या यह चिता समान ।

कैसा बसंत कौन सी बौछार?

बसंत यह कांटो समान ।

कैसे फ़ूल कैसा घाव?

फ़ूल यह समशेर समान ।

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #177 ☆ संत रामदास… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 177 ☆ संत रामदास…☆ श्री सुजित कदम ☆

नारायण ठोसर हे

समर्थांचे मुळ नाव

राम आणि हनुमान

अंतरीचा घेती ठाव…! १

 

बालपणी ध्यानमग्न

अष्टमित्र सहवास

ज्ञान संपादन कार्य

विश्व कल्याणाचा ध्यास..! २

 

गाव टाकळी नासिक

जपतप अंगीकार

तपश्चर्या रामनाम

दासभक्ती आविष्कार…! ३

 

केली दीर्घ तपश्चर्या

पंचवटी तीर्थ क्षेत्री

रामदास नावं नवे

प्रबोधक तीर्थ यात्री….! ४

 

एकाग्रता वाढवीत

केली मंत्र उपासना

तेरा अक्षरांचा मंत्र

राम नामाची साधना…! ५

 

रघुवीर जयघोष

रामदासी दरबार

दासबोध आत्माराम

मनोबोध ग्रंथकार…! ६

 

दैनंदिन तपश्चर्या

नाम जप तेरा कोटी

रामदासी कार्य वसा

ध्यान धारणा ती मोठी…! ७

 

श्लोक मनाचे लिहिले

आंतरीक प्रेरणेने

दिले सौख्य समाधान

गणेशाच्या आरतीने…! ८

 

श्लोक अभंग भुपाळ्या

केला संगीत अभ्यास

रागदारी ताल लय

सुरमयी शब्द श्वास….! ९

 

रामदासी रामायण

ओव्या समासांची गाथा

ग्रंथ कर्तृत्व अफाट

रामनामी लीन माथा…! १०

 

प्रासंगिक निराशा नी

उद्वेगाचे प्रतिबिंब

वेदशास्त्र वेदांताचे

रामदास रविटिंब….! ११

 

दिली करुणाष्टकाने

आर्त भक्ती आराधना

सामाजिक सलोख्याची

रामभक्ती संकल्पना…! १२

 

शिवराय समर्थांची

वैचारिक देवघेव

साधुसंत उपदेश

आशीर्वादी दिव्य ठेव…! १३

 

पुन्हा बांधली मंदिरे

यवनांनी फोडलेली

देवी देवता स्थापना

सांप्रदायी जोडलेली…! १४

 

वैराग्याचा उपासक

दासबोध नाही भक्ती

दिली अखिल विश्वाला

व्यवहार्य ग्रंथ शक्ती….! १५

 

आत्य साक्षात्कारी‌ संत

केले भारत भ्रमण

रामदास पादुकांचे

गावोगावी संक्रमण…! १६

 

दासबोध ग्रंथामध्ये

गुरू शिष्यांचा संवाद

हिमालयी एकांतात

राम रूप घाली साद…! १७

 

राम मंदिर स्थापना

गावोगावी भारतात

भक्ती शक्ती संघटन

मठ स्थापना जनात….! १८

 

दिले चैतन्य विश्वाला

हनुमान मंदिराने

सिद्ध अकरा मारुती

युवा शक्ती सामर्थ्याने…! १९

 

नाना ग्रंथ संकीर्तन

केले आरत्या लेखन

देवी देवतांचे स्तोत्र

पुजार्चना संकलन…! २०

 

स्फुट अभंग लेखन

श्लोक मनाचे प्रसिद्ध

वृत्त भुंजंग प्रयात

प्रबोधन कटिबद्ध….! २१

 

केले विपुल लेखन

ओवी छंद अभंगांत

कीर्तनाचा अधिकार

दिला महिला  वर्गात….! २२

 

धर्म संस्थापन कार्य

कृष्णातीरी चाफळात

पद्मासनी ब्रम्हालीन

समाधिस्थ रामदास…! २३

 

गड सज्जन गातसे

रामदासी जयघोष

जय जय रघुवीर

दुर पळे राग रोष…! २४

 

माघ कृष्ण नवमीला

दास नवमी  उत्सव

रामदास पुण्यतिथी

भक्ती शक्ती महोत्सव…! २५

 © श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #204 – कविता – ☆ स्वयं कभी कविता बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “स्वयं कभी कविता बन जाएँ…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #204 ☆

☆ स्वयं कभी कविता बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

होने, बनने में अन्तर है

जैसे नदिया और नहर है।।

 

कवि होने के भ्रम में हैं हम

प्रथम पंक्ति के क्रम में हैं हम

मैं प्रबुद्ध हूँ आत्ममुग्ध मैं

गहन अमावस तम में हैं हम।

तारों से उम्मीद लगाए

सूरज जैसे स्वप्न प्रखर है……

 

जब, कवि हूँ का दर्प जगे है

हम अपने से दूर भगे हैं

उलझे शब्दों के जंगल में

और स्वयं से स्वयं ठगे हैं।

भटकें बंजारों जैसे यूँ

खुद को खुद की नहीं खबर है।……

 

कविता के सँग में जो रहते

कितनी व्यथा वेदना सहते

दुःखदर्दों को आत्मसात कर

शब्दों की सरिता बन बहते,

नीर-क्षीर कर साँच-झूठ की

अभिव्यक्ति में सदा निडर है।……

 

यह भी मन में इक संशय है

कवि होना क्या सरल विषय है

फिर भी जोड़-तोड़ में उलझे

चाह, वाह-वाही, जय-जय है

मंचीय हाव-भाव, कुछ नुस्खे

याद कर लिए कुछ मन्तर है।……

 

मौलिकता हो कवि होने में

बीज नए सुखकर बोने में

खोटे सिक्के टिक न सकेंगे

ज्यों जल, छिद्रयुक्त दोने में

स्वयं कभी कविता बन जाएँ

शब्दब्रह्म ये अजर-अमर है।…..

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 29 ☆ परिंदे संवेदना के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “परिंदे संवेदना के…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 29 ☆ परिंदे संवेदना के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

अब नहीं आती ख़बर

अमराइयों से

मर चुके हैं

परिंदे संवेदना के।

 

फूल-पत्ते सिसकते हैं

पेड़-डाली हैं उदास

उग नहीं पाते ज़रा भी

बंजरों में अमलतास

 

कटे पर लेकर उजाले

जीते पल आलोचना के।

 

प्रकृति के पालने में

ध्वंस के सजते हैं मंच

झाँकते वातायनों से

अँधेरों के छल-प्रपंच

 

सुनाई देते नहीं हैं

स्वर कोई आराधना के।

(परिंदे संवेदना के से साभार)

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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