हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 242 ☆ आलेख – डीप फेक है यह दुनियां ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय आलेख डीप फेक है यह दुनियां ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 242 ☆

? आलेख डीप फेक है यह दुनियां ?

शाश्वत सत्य तो यह है कि यह दुनियां ही डीप फेक है, ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या। पर अब आँखों देखी, कानों सुनी पर भरोसे का जमाना लद गया। नया जमाना डीप फेक एडिटिंग से आभासी दृश्य को यथार्थ के स्तर का बना कर पाठ, चित्र, ऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने का है। साफ्टवेयर के खतरनाक अनुप्रयोगों में से एक डीप फेक है। सिंथेटिक मीडिया टेक्नीक का उपयोग किसी व्यक्ति के चेहरे या आवाज़ को दूसरे व्यक्ति से स्वैप कर बदलने का विज्ञान डीप फेक तकनीक है। असल और नकल में से अब असल का पता लगा पाना कठिन होता जा रहा है। साइबर अपराधी इस तरह के आडियो वीडीयो बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। अब वीडीयो साक्ष्य बेमानी हो चले हैं। डीप फेक भरोसे की धज्जियां उड़ा रही तकनीक है। उतावलेपन, धन के लिये किसी भी स्तर तक अमर्यादित व्यवहार और इंटरनेट पर गुमशुदा पहचान की सुविधा के चलते असम्पादित वीडियो के दुष्प्रचार से व्हाट्सअप भरा पड़ा है। हर मोबाईल में जाने अनजाने टनो में ऐसा कूड़ा ओवर लोड है। जब तक किसी पर विश्वास करो उसका खण्डन आ जाता है, अविश्वसनीयता चरम पर है।

सबसे पहले 2017 में इस तरह के एक फर्जी अनाम उपयोगकर्त्ता ने खुद को “डीप फेक” लिख कर नेट पर प्रस्तुत किया था। उस अनाम इंटरनेट उपयोगकर्त्ता ने अश्लील वीडियो बनाने और पोस्ट करने के लिये गूगल की ओपन-सोर्स, डीप-लर्निंग तकनीक में हेरफेर किया था। तब से यह हेरा फेरी डीप फेक ही कही जाने लगी। घोटाले और झाँसे, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, चुनाव में हेर-फेर, सोशल इंजीनियरिंग, स्वचालित दुष्प्रचार के हमले, पहचान की चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी आदि जैसे गलत उद्देश्यों के लिये डीप फेक का भरपूर दुरुपयोग अब बहुत आम हो चला है। डीप फेक तकनीक का उपयोग पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदि ख्यात लोगों तक के मीम वीडियो बनाने के लिये हो चुका है। डीप फेक से बनाई गई कितनी ही अभिनेत्रियों की अश्लील तस्वीरें और वीडियो से इंटरनेट भरा हुआ है।

डीप फेक के माध्यम से दुष्प्रचार के प्रसार को रोकने के लिये एक अद्यतन आचार संहिता अब जरूरी है। यदि विश्वसनीयता को जिंदा रखना है तो गूगल, मेटा, इंस्टा, ट्विटर सहित सोशल मीडीया तकनीकी प्लेटफॉर्म पर डीप फेक और फर्जी खाते का मुकाबला करने के सघन उपाय करने की आवश्यकता है। डीप फेक से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिये समाज में मीडिया साक्षरता में जागरूखता लाने और निरंतर सुधार करते रहने की आवश्यकता है, क्योंकि डीप फेक तू डाल डाल मैं पात पात वाली तकनीक है। दुनियां भर में सबको इसके सकारात्मक उपयोग खोजने होंगे और नकारात्मक पहलुओ पर विराम लगाते रहना होगा। फैक्ट चैक रिसर्च अब एक नया व्यवसाय बन गया है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 59 – देश-परदेश – COVID Returns ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “COVID Returns” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 59 ☆ देश-परदेश – COVID Returns ☆ श्री राकेश कुमार ☆

इससे पहले कि बॉलीवुड का कोई फिल्म निर्माता इस नाम से अपनी फिल्म का टाइटल रजिस्टर्ड करवाए, हम अपना लेख सुरक्षित कर लेना चाहते हैं।

हमारे देश में विगत तीन दिन से गूगल में कोविड के पुराने वायरल वीडियो सबसे अधिक डाउनलोड किए गए हैं। व्हाट्स ऐप/मुखग्रंथ और क्या ट्विटर ऐसे मैसेजों की सुनामी आ गई है।

राई का पहाड़ बनाने में हमारे देशवासियों का पूरे विश्व में कोई सानी नहीं है। शायद यूएनओ ने भी इसको मान लिया होगा।

हमने भी इस बाबत युद्ध स्तर पर तैयारी आरंभ करते हुए नाक/मुंह छिपाने वाले मास्क के पुराने स्टॉक की खोजबीन में पाया बहुत सारे मास्क तो जूते साफ करने में कार्यरत हैं, और कुछ एक दूसरे से जोड़कर कपड़े सुखाने की रस्सी का रोल निभा रहे हैं।

कमांडो कार्यवाही करते हुए रस्सी को खोलकर कुछ मास्क तो पुनः उपयोग लायक कर लिए गए हैं।

हैंड सैनिटाइजर नामक तरल पदार्थ की प्लास्टिक बॉटल में सरसों का तेल भरा हुआ मिला, जाड़े के मौसम में सीमित उपलब्ध साधनों से अधिकतम सदुपयोग करने में भी भारतीय नारी का कोई जवाब नहीं हैं।

काढ़ा बनाने में लगने वाला कच्चे मॉल के भावों में वृद्धि आसमान छू चुकी हैं। सब्जी मंडी से अदरक ऐसे गायब हो गई है, जैसे गधे के सिर से सींग चले गए थे।

बैंक से पेंशन लोन उठाकर तीन माह का अग्रिम राशन से भी घर भर दिया है,ताकि लॉक डाउन की स्थिति में भूखे  ना रहना पड़ जाए।

घर के पास में एक छोटा सा नर्सिंग होम है, कोविड की प्रथम और द्वितीय लहर के समय उसने पास के एक और मकान को किराए पर लेकर एक्सटेंशन काउंटर खोल कर मोटी रकम हज़म कर ली थी।

नर्सिंग होम के मालिक ने पुनः उस मकान मालिक से किराए पर मकान ले लिया है। इसको अंग्रेजी  में प्रोएक्टिव संज्ञा से नवाजा जाता है। कार्यालयों में भी प्रोएक्टिव कर्मचारियों की बड़ी मांग रहती है। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की योग्यता का होना आवश्यक होता है, इसी के तहत अपने समूह के लिए कोविड वापसी की तैयारी का लेख प्रेषित कर रहा हूँ।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #213 ☆ चप्पल… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 213 ?

☆ चप्पल… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

ही चप्पल पायामधली, बघ काय सांगते आहे

तू रुबाबात फिरताना, ती धूळ चाटते आहे

ती झिजते तुझ्याचसाठी, तू डोंगर चढतो तेव्हा

तू कोचावर बसता ती, दारात थांबते आहे

ती असता नवीन कोरी, तो पसंत करतो तिजला

मापातच असल्यानंतर, ती त्यास भावते आहे

पायात घालण्यापुरती, ही किंमत आहे माझी

का उसवत गेल्यावरती, मी धाप टाकते आहे

तो नवी घेऊन आला, तेव्हाच जाणले मीही

तो टाळत जातो मजला, मी त्यास टाळते आहे


या माझ्या अस्तित्वाला, किंमत कुठलीही नाही

पाहून वेग मी त्याचा, वेगात चालते आहे

मी कोल्हापुरची राणी, बहुमान वाटला होता

पायाची दासी झाले, तो धर्म पाळते आहे

 

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत –नासमझी का है अभिनय।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय…  ✍

 वैसे तो सब समझ गया हूँ, नासमझी का है अभिनय।

 

जिस बगिया में फूल खिले हैं

वहाँ भीड़ भौंरों की होगी

आँखों के अंकुश से बचकर

आमद भी औरों की होगी

मालिक मौसम रूठ न जाये, मुझको केवल इतना भय ।

 

हम तो हैं रस्ते के राही

फूल तुम्हारे बाग तुम्हारा

खुशबू खुद न्योता देती है

फूलों जैसा गात तुम्हारा

अपमानित मधुमास हुए तो पतझरों की होगी जय।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 163 – “इधर आँख में थमें नहीं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  इधर आँख में थमें नहीं...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 163 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “इधर आँख में थमें नहीं” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

पहुँची उन्हें विदेश, मृत्यु की

खबर, पिता जी की

है पहाड़ दुख का पर दोनों

कहें नहीं जी की

 

बड़ा भाई बोला छोटे से-

इधर जर्मनी में

मिलें छुट्टियाँ बहुत अल्प

छत्तीस महीने में

 

ऐसा करो अभी तुम

भारत-वर्ष स्वयम् जाओ

मैं जाऊँगा माँ के टाइम

समझो बारीकी

 

छोटा बोला ड्यू हैं मेरी

बाइफ की जाँचें

आप अगर घर से आयी

चिट्टी को जो बाँचें

 

कुछ हिदायतें, गर विदेश के

घर में कुछ अड़चन

तो मत आना, शोक सभा

करने को तुम फीकी

 

दोनों ही उधेड़ बुन में थे

जायें ना जायें

पर वे जाना नहीं चाहते

थे क्या बतलायें

 

इतना पैसा फ्लाईट का

बेकार खर्च होगा

चार पाँच महिने घर में

छायेगी तारीकी

 

इधर आँख में थमें नहीं

आँसू बुढ़िया माँ के

ऐसे क्या टूटा करते

सम्बंन्धों के टाँके

 

और अंत में माँ को

दोनों बेटों ने सूचित-

किया-  ” नहीं आसकते

करना तेरहवीं नीकी

 ©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

 11-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 214 ☆ “शहर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता “शहर…”।)

☆ कविता – “शहर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

पिता ने

एक बार

गांव बुलाया था

 

फिर झापड़

मारकर कहा था

तू इतना बिगड़ गया

कि अब कभी

गांव भी

नहीं आता

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 155 ☆ # रेवड़ियां # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# रेवड़ियां #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 155 ☆

☆ # रेवड़ियां #

कॉफ़ी हाउस में

कॉफ़ी पीते हुए

दो बुद्धिजीवी

चर्चा कर रहे थे

विषय की गंभीरता को देख

जोर से बोलने में

डर रहे थे

एक बोला – भाई!

आजकल खूब रेवड़ियां

बट रही है

कुछ लोगों की जिंदगी

भ्रम में कट रही है

घोषणाएं,

एक से बढ़कर एक हैं

क्या वाकई इनका

इरादा नेक है ?

कहीं यह गले की

फांस ना बन जाए

हितग्राहियों के लिए

झूठी आस ना बन जाए

 

दूसरा कॉफ़ी का

घूंट लेते हुए बोला – यार !

तू दिल पर मत ले

संसार ऐसे ही चलता है

किसी के दिल में ठंडक

तो कहीं पर दिल जलता है

गरीबों के साथ यह खेल

बहुत पुराना है

आज लाइम लाइट में है

क्योंकि मीडिया का जमाना है

करोड़ों, अरबों की राशि

कुछ लोग डकार गए

उनका कहीं पर

ज़िक्र नहीं है

डूब रही वित्तीय संस्थाएं

किसी को इसकी

फ़िक्र नहीं है

सब मुखौटा लगाकर घूम रहे हैं

अपनी रसूखदारी पर झूम रहे हैं

 

तू इनकी चिंता मत कर

कॉफ़ी का घूंट ले

नमकीन स्वादिष्ट है

उसका मज़ा लूट ले

बरसों से

रेवड़ियां बट रही हैं

अब ग़रीबों तक आई है

सब इसके भागीदार हैं

बस दिखावे की

चिल्लम चिल्लाई है

भाई ! –

यहां मुद्दे गौण

रेवड़ियां असरदार हैं

यह पूंजीवाद के बिसात पर

सज़ा बाजार है

यहां हर शख्स बिक रहा है

लोकतंत्र शर्मसार है, शर्मसार है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 150 ☆ कधीतरी… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 150 ? 

कधीतरी… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

बदल होतात, रस्ते वळतात

झाडे वाळतात, कधीतरी.!!

माणूस हसतो, माणूस रुसतो

माणूस संपतो, कधीतरी.!!

नात्यातला भाव, कमीकमी होतो

आहे तो ही जातो, कधीतरी.!!

विहीर बारव, नदी आणि नाले

मोकळे जाहले, कधीतरी.!!

वाडे पडतात, वांझोटे होतात

उग्र दिसतात, कधीतरी.!!

साडे तीन हात, अखेरचे घर

सासर माहेर, अखेरचे.!!

कवी राज म्हणे, शेवट कठीण

लागते निदान, कधीतरी.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 217 ☆ लघुकथा – एक रहस्यमय मौत ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है ममता की पराकाष्ठा प्रदर्शित करती एक सार्थक कहानी एक रहस्यमय मौत। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 217 ☆

☆ लघुकथा – एक रहस्यमय मौत  

नवीन भाई का स्वास्थ्य कुछ दिनों से नरम-गरम चल रहा है। ब्लड-प्रेशर ऊपर नीचे हो रहा है। सत्तर पार की उम्र हुई, इसलिए कई लोगों के हिसाब से यह स्वाभाविक है।

डॉक्टर कहता है कि दवा के अलावा भी कुछ और उपाय अपनाने चाहिए। खाने में नमक कम करें, तनाव से बचें, नींद पूरी लें, चीज़ों को ज़्यादा गंभीरता से न लें, योगा करें, ध्यान करें, प्राणायाम करें, जब टाइम मिले आँखें मूँद कर शान्त बैठें, चिन्ता के लिए दरवाज़ा न खोलें।

नवीन भाई की रुचि कभी अध्यात्म में नहीं रही। पूजा-पाठ के लिए नहीं बैठते। परिवार के ठेलने पर सबके साथ मन्दिर चले जाते हैं। तीर्थ यात्रा पर भी परिवार के पीछे-पीछे चले जाते हैं। मित्रों से सत्संग करने की सलाह मिलती है तो हँसकर ‘मोमिन’ का शेर सुना देते हैं— ‘आख़िरी वक्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे।’

नवीन भाई संवेदनशील व्यक्ति हैं। किसी की भी पीड़ा सुनकर द्रवित हो जाते हैं। किसी के भी साथ हुए अन्याय को पढ़कर अस्थिर हो जाते हैं। कई बार क्रोध का उफ़ान उठता है। बेचैन हो जाते हैं। शायर ‘अमीर मीनाई’ के शेर को चरितार्थ करते हैं— ‘खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है।’ परिवार वालों का सोचना है कि यह अनावश्यक ‘पर-दुख कातरता’ ही उनके ब्लड-प्रेशर बढ़ने की वजह है।

अब नवीन भाई डॉक्टर की हिदायतों का पालन करने की कोशिश करते हैं। जब खाली होते हैं तो आँखें मूँद कर बैठ जाते हैं। परेशान करने वाले विचारों को ठेलने की कोशिश करते हैं। यूक्रेन, इज़रायल-गाज़ा, मणिपुर, उज्जैन, उन्नाव, हाथरस, लखीमपुर खीरी, जंतर मंतर, किसानों की आत्महत्या, परीक्षाओं के पेपर की लीकेज, बेरोज़गारी, भुखमरी, असमानता, वैज्ञानिक सोच को छोड़कर बाबाओं के दरबार में जुटती नयी पीढ़ी, नेताओं के झूठ और पाखंड, जाति-धर्म के दाँव-पेंच— ये सारे प्रेत बार-बार उनके दिमाग पर दस्तक देते हैं और वे बार-बार उन्हें ढकेलते हैं। अखबार और टीवी में परेशान करने वाली खबरों और दृश्यों को देखकर अब आँखें फेर लेते हैं। मित्रों के दुखड़े एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने की कोशिश करते हैं।

धीरे-धीरे नवीन भाई को सफलता मिलने लगी। उन्हें घेरने और परेशान करने वाले प्रेतों की आमद कम होने लगी। दिमाग हल्का रहने लगा। अब वे घंटों आँखें मूँदे बैठे रहते। कहीं कोई परेशान करने वाला विचार नहीं। ‘मूँदौ आँख कतउँ कोउ नाहीं।’ ब्लड-प्रेशर ने नीचे का रुख किया। घर वाले भी निश्चिन्त हुए।

अब नवीन भाई का दिमाग बिना अधिक श्रम के चिन्तामुक्त, विचारमुक्त रहने लगा। आँख मूँदते ही समाधि लग जाती। दिमाग में सन्नाटा हो जाता। कभी-कभी नींद लग जाती। घर वाले भी उन्हें तभी हिलाते-डुलाते जब स्नान-भोजन का वक्त होता।

एक दिन नवीन भाई की समाधि अखंड हो गयी। आँखें मूँदीं तो फिर खुली ही नहीं। घर वालों ने हिलाया डुलाया तो ढह गये।

डॉक्टर परेशान है कि जब ब्लड-प्रेशर करीब करीब नॉर्मल हो गया तो नवीन भाई की मृत्यु अचानक कैसे हो गयी। यह अब भी रहस्य बना हुआ है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 216 – साक्षात्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 216 ☆ साक्षात्कार ?

मुँह अंधेरे यात्रा पर निकलना है। निकलते समय घर की दीवार पर टँगे मंदिर में विराजे ठाकुर जी को माथा टेकने गया। दर्शन के लिए बिजली लगाई। बिजली लगाने भर की देर थी कि मानो ठाकुर जी हँस पड़े। मनुष्य को भी अपनी वैचारिक संकीर्णता पर स्वयं हँसी आ गई।

दिव्य प्रकाशपुंज को देखने के लिए 5-7 वॉट का बल्ब लगाना! सूरज को दीपक दिखाने का मुहावरा संभवत: ऐसी नादानियों की ही उपज है।

नादानी का चरम है, भीतर की ठाकुरबाड़ी में बसे ठाकुर जी के दर्शन से आजीवन वंचित रहना। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मनुष्य आँखों को खुद ढककर अंधकार-अंधकार चिल्लाता है।

खुदको प्रकाश से वंचित रखनेवाले मनुष्यरूपी प्रकाश की कथा भी निराली है। अपनी लौ से अपरिचित ऐसा ही एक प्रकाश, संत के पास गया और प्रकाशप्राप्ति का मार्ग जानना चाहा। संत ने उसे पास के तालाब में रहनेवाली एक मछली के पास भेज दिया। मछली ने कहा, “अभी सोकर उठी हूँ, प्यास लगी है। कहीं से थोड़ा जल लाकर पिला दो तो शांति से तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकूँगी।”

प्रकाश हतप्रभ रह गया। बोला, “जल में रहकर भी जल की खोज?”

मछली ने कहा, “यही तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान है। खोज सके तो खोज।”

“खोजी होये तुरत मिल जाऊँ

एक पल की ही तलाश में।

कहत कबीर सुनो भाई साधो,

मैं तो हूँ विश्वास में।।

भीतर के ठाकुर जी के प्रकाश का साक्षात्कार कर लोगे तो बाहर की ठाकुरबाड़ी में स्वत: उजाला दिखने लगेगा।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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