हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #15 ☆ कविता – “जंग…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 15 ☆

☆ कविता ☆ “जंग…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

बादलों के ये रंग देखें

सितारे जंग में जलते देखें

जहां सुलगते चांद चमके

वहीं बुझते सूरज देखें

 

प्यार में कोई पागल देखें

बिगड़े इश्क़ में बनते देखें

कहीं मोहब्बत फूल महके

कहीं मजनुओं के जनाजे देखें

 

घर में सैकड़ों गिरफ्तार देखें

कोई बन में बसते देखें

फूल छांव में बेबस खिले

कहीं धूप सेकते कांटे देखें

 

भेस में ख़ुदा के शैतान देखें

कभी शैतानों के इरादे नेक देखें

बैठें कहीं अस्ल शरमाते

कहीं झूठ पर खिलते जोबन देखें

 

जिंदगी के जहर मीठे देखें

मौत में कड़वे अमृत देखें

यहां मसीहों पर कांटे सजते

कहीं फूलों पर भी कहर देखें

 

दुनिया के ये मेले देख ले

मेले की ये जंग समझ ले

हक़ की तू समशीर उठा ले

खुद से लड़ लड़ के फ़तह पा ले….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 175 ☆ बाल कविता – मकड़ी रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 175 ☆

☆ बाल कविता – मकड़ी रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मकड़ी रानी चली सैर को

दीवारों के ऊपर

जिस कोने में मिली गंदगी

खुद बुना जाल से घर

 

भूख लगी थी उसे जोर की

ढूँढे मक्खी , मच्छर

सुबह से निकली शाम हो गई

नहीं मिला था अवसर

 

सोच रही वह लेटी- लेटी

कैसे भूख मिटाऊँ।

पेट किलोलें करता मेरा

प्रभु से आस लगाऊँ।।

 

चुपके से निकली शिकार को

दिखीं चींटियाँ उसको।

पकड़ीं उसने कई चींटियाँ

लिए चली वह घर को।।

 

भूख मिटाई, तृप्त हुई वह

श्रम से मिलता खाना।

समझ गई जीने का ढंग वह

जीवन कटे सुहाना।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #172 ☆ राखी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 172 ☆ राखी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

आताशा का कोणास ठाऊक..?

राखी पौर्णिमा म्हटलं की

डोळे भरून येतात कारण ..

मला अजूनही आठवतात

ते लहान पणी चे दिवस..

राखी पौर्णिमा असली की

मी सकाळी लवकर उठून ताईने

माझ्या हातावरती राखी बांधण्याची

वाट पहात बसायचो…

आणि माझ्यासारखीच ताई सुध्दा

ताईने हातावर राखी बांधली ना

की मला खूप

श्रीमंत झाल्यासारखं वाटायचं आणि

आई नंतर कुणीतरी आहे

आपली काळजी घेणारं…

असं सहज मनात यायचं…!

लग्न करून जेव्हा ताई

सासरी गेली ना..

त्या नंतर सुध्दा

रात्रीचा प्रवास करून मी

राखी पौर्णिमेला सकाळीच

ताईला भेटायला जायचो …

तेव्हा ताई मला म्हणायची

एवढी दगदग कशाला करायचीस?

त्यावर मी तिला म्हणायचो

तू एकच बहीण आहेस माझी

तुझ्यासाठी मी कूठूनही येऊ शकतो

त्या वेळी राखी पौर्णिमेला ताईने

प्रेमाने मनगटावर बांधलेली राखी

पुढचं वर्ष भर मी मनगटावर

तशीच ठेवून द्यायचो

ताईची आठवण म्हणून…!

पण आता मात्र

राखी पौर्णिमा म्हटलं की

डोळे भरून येतात

आणि मोकळ्या मनगटावर

फक्त आसवांचे थेंब ओघळतात..!

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #198 – कविता – ☆ आओ फिर से गोविंद…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “आओ फिर से गोविंद……” । )

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर

☆ तन्मय साहित्य  #198 ☆

आओ फिर से गोविंद… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आनन्दकन्द गोपाल कृष्ण गिरधारी

आओ फिर से गोविंद सूदर्शन धारी।

वृन्दावन में बचपन बीता अति प्यारा

आये जो दैत्य कंस के, उन्हें सँहारा

असुरों की फौज बढ़ी धरती पर भारी

आओ फिर से गोविंद सुदर्शन धारी।…

कोमल कलियों को कुचल रहे अन्यायी

बेटी-बहनों के साथ, करे पशुताई

पहले जैसे नहीं रहे लोग संस्कारी

आओ फिर से गोविद सुदर्शनधारी।…

कालीया नाग को जैसे सीख सिखाई

जहरीले नाग फुँफकार रहे हरजाई

फन कुचलो माधव नटनागर बनवारी

आओ फिर से गोविद सुदर्शनधारी।…

आतंकवाद ने अपने पैर पसारे

जयचंद कई हैं छिपे देश में सारे

खोजें उनको, दें दंड देश हितकारी

आओ फिर से गोविद सुदर्शनधारी।…

मथुरा में जाकर दुष्ट कंस को मारा

महाभारत में फिर गीताज्ञान उचारा

भारत की है पुकार वल्लभ त्रिपुरारी

आओ फिर से गोविद सुदर्शनधारी।…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 23 ☆ सूखे मौसम का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूखे मौसम का गीत…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 23 ☆ सूखे मौसम का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हवाओं की चाल टेढ़ी

नहीं है मौसम सुहाना

बेसुरा गाने लगे बादल।

 

धरा सूखे वसन लेकर

नदी के तट पर खड़ी है

छन रही है छानियों से

धूप आँगन में पड़ी है

 

छाँव तक खोजे ठिकाना

बहुत तरसाने लगे बादल।

 

मेंड़ पर बैठे उपासे

खेत करते हैं जुगाली

धान के पौधे उनींदे

सो गए रखकर कुदाली

 

दुख उभर आया पुराना

उमर उलझाने लगे बादल।

 

तरस खाकर आ गया है

भीगी यादें लिए सावन

आँसुओं की पकड़ उँगली

झर रही है प्रीत पावन

 

मोल राखी का चुकाना

भूल,भरमाने लगे बादल।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आजकल टूटते ज़रा में घर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “आजकल टूटते ज़रा में घर“)

✍ आजकल टूटते ज़रा में घर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

वोट क्या सिर्फ रहनुमा लोगे

हम गरीबों की कब दुआ लोगे

 

 टेक्स में भरने कुछ नहीं साहिब

तन की चमड़ी भी क्या नुचा लोगे

 

आजकल टूटते ज़रा में घर

राम ही चाहें तो बचा लोगे

 

देखलो करके कोशिशें सारी

ये बहम है मुझे भुला लोगे

 

चूकना मत कभी मिला अवसर

ये न मुमकिन है फिर से पा लोगे

 

पूछ बढ़ती तभी जमाने में

अपना रुतवा अगर बना लोगे

 

आइना मैं अरुण दिखा देता

डर था नजरों से तुम गिरा लोगे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 82 – पानीपत…पटाक्षेप भाग–12 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख  “पानीपत…“ श्रृंखला की अंतिम कड़ी।

☆ आलेख # 82 – पानीपत… पटाक्षेप भाग – 12 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

ये कहानी राजा विक्रमादित्य को सुनाने के बाद उनकी पीठ पर लदे बैताल ने हमेशा की तरह इस बार भी एक सवाल पूछा. जानते हुए इस सवाल का जवाब देना अनिवार्य था वरना राजा विक्रमादित्य का सर टुकड़े टुकड़े हो जाता.

सवाल : राजन, त्यागपत्र देनें के बाद भी ये मुख्य प्रबंधक सेवानिवृत्त नहीं हुये बल्कि कुछ समय बाद ही उनकी पोस्टिंग नियंत्रक कार्यालयों में होती रही. एक और बड़ी शाखा में फिर से मुखियागिरी की और बाद में सहायक महाप्रबंधक की पदोन्नति भी पायी. फिर प्रशिक्षण केंद्र में कुशल शाखा संचालन के फ़ार्मुले सिखाते सिखाते सामान्य सेवानिवृत्ति पाई. इसका क्या कारण हो सकता है?

राजा विक्रमादित्य का सर वैसे ही बैताल के बोझ से भारी था, उनके पास इस सवाल का जवाब देने की शक्ति नहीं थी तो उन्होंने चुपचाप सवाल को “रैफर टू ड्राअर” किया और चलते गये.

शायद इस सवाल का जवाब पाठकों के पास हो???

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 19 – उत्तरों का सन्नाटा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – उत्तरों का सन्नाटा है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 19 – उत्तरों का सन्नाटा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

है प्रश्नों का शोर

उत्तरों का सन्नाटा है 

दुर्घटना दस्तक देती है 

रोज किबाड़ों पर 

मँहगाई की मार

अपाहिज सूखे हाड़ों पर 

हाल गरीबों का मत पूछो

गीला आटा है 

सारे प्रत्याशी 

चौखट पर शीश झुकाते हैं 

विजयी होने पर वे ही 

फिर नजर न आते हैं 

उनका भू-पर नहीं

गगन में सैर सपाटा है 

जो थी अपने पास 

लुटा दी ममता की दमड़ी 

वाट जोहती अब 

आशा की मुरझाई चमड़ी 

वृद्धाश्रम में छोड़

पुत्र भरता फर्राटा है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 96 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 96 – मनोज के दोहे… ☆

झकोर

उमस पूर्ण वातावरण,आई पवन झकोर।

सुख शीतलता दे गई, मन आनंद विभोर।।

विभोर

मानस की चौपाइयाँ, तन-मन करे विभोर।

तुलसी जी का ग्रंथ चहुँ, लुभा रहा चितचोर।।

चकोर

प्रेमी के मन में बसा, प्रियतम चाँद चकोर।

चंद्रयान ने कर दिया, अंत-भ्रमित का शोर।।

चितचोर

आंतरिक्ष में रच दिया, भारत ने इतिहास।

बना विश्व चितचोर यह, अनुसंधानी खास।।

हिलोर

चंद्रयान थ्री ने दिया, विश्व जगत में मान।

उठती हृदय हिलोर है, भारत हुआ महान।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 228 ☆ शिक्षक दिवस विशेष – प्रणाम गुरू जी ! ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है शिक्षक दिवस पर एक विशेष कविता  – प्रणाम गुरू जी !)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 228 ☆

? शिक्षक दिवस विशेष – प्रणाम गुरू जी ! ?

साक्षरता सरगम जीवन की

अ आ इ ई ज्ञान कराया, तुमने,  तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

धन ऋण गुणा भाग जीवन के

भले बुरे का भान कराया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

शिक्षा बिन पशुवत् है जीवन,

दे शिक्षा इंसान बनाया, तुमने,  तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

भाषा, दृष्टि नई, सृष्टि की

गणित और विज्ञान सिखाया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

क्षण भंगुर नश्वर है जीवन

जीवन का इतिहास बताया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

जीवन में भटकाव बहुत है,

अंधकार में मार्ग दिखाया, तुमने, तुम्हें प्रणाम गुरू जी

 

अंतिम सत्य मुक्ति जीवन की,

धर्म और अध्यात्म पढ़ाया, तुमने,तुम्हें प्रणाम गुरू जी 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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