(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – सारी करुण कहानी है…।)
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार,साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी इटली यात्रा – भाग 2)
मेरी डायरी के पन्ने से… – हमारी इटली यात्रा – भाग 2
(अक्टोबर 2017)
रोम में घूमते हुए हम अपने पसंदीदा और चयनित स्थानों को प्रतिदिन देखने निकलते। यहाँ आप सबसे एक बात साझा करती हूँ आप अगर किसी ट्रैवेलिंग कंपनी के साथ जाते हैं तो वे आपको दिखाएँगे तो सभी महत्त्वपूर्ण स्थान पर विस्तार से देखने का समय नहीं दिया जाता। जिस कारण आप अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान पर पर्याप्त समय रुककर उसका आनंद नहीं ले पाते। यही कारण है कि हम अपनी यात्रा की व्यवस्था स्वयं करते हैं। दौड़-भागकर आप किसी भी स्थान को देखने का आनंद पूर्ण रूप से नहीं ले सकते।
अब हमारा दूसरा पड़ाव था वैटीकन सिटी।
हमारे रिसोर्ट के शटल गाड़ी ने हमें सुबह – सुबह ही स्टेशन ले जाकर उतार दिया। हमें पता था वह दिन हमारे लिए लंबा और थकाने वाला था तो हम भरपेट नाश्ता करके ही निकले। समय पर ट्रेन आने पर हम वैटीकन शहर पहुँचे।
यह शहर थोड़ी ऊँचाई पर स्थित है। अर्थात पहाड़ी इलाका है। यह सारा शहर ऊँची दीवार से घिरा हुआ है। संसार का यह सबसे छोटा शहर और सबसे छोटा देश भी है। परंतु यहाँ जाने के लिए वीज़ा की आवश्यकता नहीं होती।
कैथोलिक ईसाई धर्म के लोगों के लिए यह स्थान धार्मिक स्थल है। इस छोटे शहर में काफी हलचल रहती है। यह न केवल ईसाई धर्म गुरु पोप का निवास स्थान है बल्कि यह सुंदर और ऐतिहासिक संरचनाओं के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। ईसाई धर्म के लोगों के बकेट लिस्ट में यहाँ आने की उत्कट इच्छा अवश्य होती है।
यह हमारा सौभाग्य ही है कि हमें इस ऐतिहासिक स्थान पर पर्यटन करने का अवसर मिला।
वैटीकन के मुख्य तीन हिस्से हैं। सेंट पीटर्स बैसिलिका, सिस्टीन चैपेल और वैटिकन पेलेस
इसमें विशाल संग्रहालय है। इस संग्रहालय में तीन हज़ार वर्ष पूर्व की वस्तुएँ भी देखने को मिलती हैं।
बैसिलिका का हर कोना आकर्षक चित्रकारी से परिपूर्ण है। दीवारें, छत पर सभी जगहों पर सुंदर चित्रकारी है। कहीं – कहीं पर विशाल कालीन भी दीवारों पर दिखाई देते हैं। यहाँ अत्यंत रंगीन और आकर्षक चित्रकारी के सुंदर नमूने दिखाई देते हैं। ये चित्रकारी रोम साम्राज्य के विस्तार, उसकी संस्कृति और समाज का दर्शन कराते हैं।
अगर आप पोप के निवास स्थान का भ्रमण करना चाहते हैं तो लोकल उनकी अपनी बसें चलती हैं जो सब तरफ काँच से बनी पारदर्शी होती है। जो यात्रियों को वहाँ की सैर कराती है। इन सबके लिए टिकट है। भीतर उनका अपना प्रेस है, बिशप और पोप का आवास स्थान है, सुंदर उद्यान है। कई आकर्षक फव्वारे हैं। बस से उतरने की इजाजत नहीं होती। भीतर कई प्कार के फूल दिखाई दिए। बस में साथ चलनेवाले गाइड ने बताया कि वहाँ के बगीचों में जो फूल दिखाई देते हैं वे संसार के विभिन्न राज्यों से लाए गए हैं। भीतर भरपूर स्वच्छता दिखाई दी। इमारतें चमक रही थीं क्योंकि निरंतर सफाई की जाती है। वैटीकन सिटी घूमने में भी कई घंटे लगते हैं।
यहाँ हज़ारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। विभिन्न दालानों में भयंकर भीड़ दिखाई देती है। विभिन्न चित्रकारी और अन्य सुंदर वस्तुओं को देखते हुए जब हम आगे बढ़ रहे थे तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि चल नहीं रहे थे बल्कि भीड़ के धक्के से बस आगे बढ़ते जा रहे थे। विभिन्न प्रकार की गंध से पूरा वातावरण विचित्र सा हो रहा था। हम और अधिक वहाँ न रुक सके और खुले विशाल परिसर की ओर निकल पड़े।
वैटिकन सिटी सन 1929 में टाइबर नदी के किनारे आज के इस रूप में स्वतंत्र पहचान के साथ स्थापित किया गया। यह मूल रूप से कैथोलिक चर्च के रूप में चौथी शताब्दी में निर्माण किया गया था। यहाँ पादरी पीटर चौक है जो विशाल, भव्य तथा बैसीलस का एक हिस्सा है। इस शहर में एक पुस्तकालय भी है जहाँ पुराने ऐतिहासिक पुस्तकें जो पैपरस पर लिखे गए थे उपलब्ध हैं।
इस सुंदर आकर्षक छोटे से शहर को देखने के लिए एक दिन का कार्यक्रम बनाकर ही जाना चाहिए। शाम को सात बजे हमारे रिसोर्ट की शटल बस रेल्वे स्टेशन पर आती थी। हम पाँच बजे के करीब ही वैटिकन सिटी से निकल गए। हम चलकर स्टेशन पहुँचे। मौसम में ठंडक थी इसलिए चलते हुए परेशानी नहीं हुई। समय पर ट्रेन से शटल बस में बैठकर रिसोर्ट पहुँचे। हम इतने थक गए थे कि उस रात हम जल्दी ही सो गए। हमारे रिसोर्ट में भोजन पकाने की पूरी सुविधा थी। यह एक फ्लैट जैसी व्यवस्था है। हम अपना भोजन पकाकर ही खाते थे जिससे देश का स्वाद परदेस में भी मिलता रहा।
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख –जी २० – वन अर्थ, वन फैमली, वन फ्यूचर…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 219 ☆
आलेख – जी २० – वन अर्थ, वन फैमली, वन फ्यूचर…
आज विश्व को ग्लोबल विलेज कहा जाता है, क्योंकि सभी देश एक दूसरे पर किसी न किसी तरह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर हैं. दुनियां में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त १९३ देश हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ सबसे बड़ा संगठन है. वैश्विक राजनीती में राष्ट्रों के बीच परस्पर प्रभाव बढ़ाने के लिये आज केवल युद्ध ही साधन नहीं होते. विभिन्न देश अपना व्यापार और प्रभुत्व बढ़ाने के लिये, तथा क्षेत्रीय स्तर पर स्वयं को मजबूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियां करते हैं. कूटनीति, विदेश नीति, शह और मात के परदे के पीछे के खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर चलते रहते हैं. विभिन्न देश अलग अलग उद्देश्यों से परस्पर गठबंधन करते हैं. इस तरह राष्ट्रों के अंतर्राष्ट्रीय समूह बनते हैं. ये सामूहिक प्लेटफार्म सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हैं. दुनियां में संयुक्त राष्ट्र संघ के सिवाय कामन वेल्थ उन ५४ देशो का संगठन है जहां ब्रिटिश साम्राज्य रह चुका है, नाटो, यूरोपीय संघ, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ओपेक, इंटरपोल, विश्व बैंक, गुट निरपेक्ष आंदोलन, आसियान , जी८, जी १५, ब्रिक्स, सार्क, आदि आदि ढ़ेरों इसी तरह के संगठन हैं. बदलते परिप्रेक्ष्य में अनेक संगठनो में नये सदस्य जुड़ते रहते हैं. वैश्विक राजनीति के चलते अनेक संगठन समय के साथ गौण भी हो जाते हैं. वर्तमान में लगभग सौ अंतर्राष्ट्रीय संगठन विभिन्न मुद्दों को लेकर कई देशों के बीच सक्रिय हैं. जी20 विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशो का सबसे सक्रिय संगठन है. इन देशों के वित्त मंत्रियों और भागीदार राष्ट्रों के सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स का यह समूह जी20 के रूप में जाना जाता है. जी २० में 19 देश क्रमशः अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैँ. इस तरह अमेरिका और रूस दोनो महाशक्तियां, चीन, फ्रांस, इंगलैंड सहित यह अत्यंत प्रभावी संगठन है. स्पेन जी २० का स्थाई अतिथि देश है. जी20 के मेहमानों में आसियान देशों के अध्यक्ष, दो अफ्रीकी देश और एक या अधिक पड़ोसी राष्ट्र को आयोजक देश द्वारा आमंत्रित किया जाता है.
१९९९ में एशियाई वित्तीय संकट और मंदी के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में जी २० की स्थापना गई थी. वसुधैव कुटुम्बकम्, की मूल भावना से वन अर्थ, वन फेमली, वन फ्यूचर के ध्येय को उद्देश्य बनाकर यह संगठन प्रभावी कार्य कर रहा है. वर्तमान परमाणु युग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्पेस टेक्नालाजी, के परिवेश में सारी दुनिया एक परिवार ही है तथा सबका भविष्य परस्पर व्यवहार पर निर्भर है. वर्ष १९९९ से वर्ष २००७ तक यह समूह वित्त मंत्रियों के मंच के रूप में ही रहा पर २००७ के वैश्विक आर्थिक संकट के कारण जी २० को राष्ट्राध्यक्षों के परस्पर चर्चा के मंच के रूप में प्रोन्नत किया गया.
२००९ में लंदन शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हुआ जब विश्व द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे विकट आर्थिक संकट का सामना कर रहा था. लंदन शिखर सम्मेलन का उद्देश्य विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के नेताओं को एक साथ लाना था ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने तथा आर्थिक बहाली सुनिश्चित करने और नौकरियों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक सामूहिक कार्रवाई की जा सके. नेताओं को अनेक अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ा. गंभीर मंदी को रोकना और अल्पावधि में विकास को बहाल करना, साथ ही वित्तीय प्रणाली को पुनर्स्थापित करना, विश्व व्यापार प्रणाली को संरक्षित करना तथा स्थायी आर्थिक बहाली के लिए बुनियाद रखना. शिखर सम्मेलन में वास्तविक कार्रवाई पर सहमति हुई जिसके तहत नेताओं ने विश्वास, विकास और नौकरियों को बहाल करने, वित्तीय पर्यवेक्षण को सुदृढ़ करने,इस संकट को दूर करने और भावी संकटों को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का वित्तपोषण करने और उनमें सुधार करने, पर निर्णायक कदम उठाये. तब से लगातार हर बार समावेशित वैश्विक विकास में जी २० शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है.
चूंकि यह समूह प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशो का संगठन है इसलिये इसकी चर्चाओ में वित्त मंत्रियों, विदेश मंत्रियों, राष्ट्र प्रमुखों की बड़ी भूमिका होती है एवं उनके शिखर सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं. शिखर सम्मेलन प्रतिवर्ष समूह के देशो की क्रमिक अध्यक्षता में आयोजित किया जाता है. इस तरह से बारी बारी सभी देश अध्यक्षता और मेजबानी करते हैं. शुरुआत में जी २० व्यापक आर्थिक मुद्दों तक केंद्रित था, परंतु बाद में इसके एजेंडे में विस्तार करते हुए इसमें अन्य बातों के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार एवं आतंक के विरोध को भी शामिल किया गया है. वर्तमान जी २० सदस्य देशों की आबादी विश्व की लगभग दो-तिहाई आबादी है. इसलिये जी २० को दुनियां बहुत महत्व देती है. वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 85%, और वैश्विक व्यापार में 75% से अधिक जी २० देशों की हिस्सेदारी है. जी २० समूह का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है. इसका संचालन त्रयी सिद्धांत पर आधारित है – पिछला, वर्तमान और आने वाला अध्यक्ष देश समूह का संचालन करता है. वर्ष २०२३ भारत की अध्यक्षता का साल है. पिछला निवर्तमान अध्यक्ष इंडोनेशिया था और आगामी अध्यक्ष ब्राजील होंगा अतः ये तीन राष्ट्र वर्तमान में बड़ी भूमिका में हैं. १७ वें जी-२० शिखर सम्मेलन का आयोजन 9-10 सितंबर 2023 को दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न होगा.
अगुवाई के अवसर तो सभी राष्ट्रो को मिलते हैं किन्तु कौन कितनी जबाबदेही से अध्यक्षता के कर्तव्य को निभाता है, तथा उससे वैश्विक कल्याण के क्या रास्ते खोजता है यह उस देश के नेतृत्व पर निर्भर होता है. हम जी २० की अध्यक्षता का निर्वाह भारत के व्यापक हित में और समूह के हित में बड़ी कुशलता से कर रहे हैं. काश्मीर सहित सारे भारत के अनेक नगरों में जी २० के अलग अलग समूहों की बैठके आयोजित की जा रही हैं. इससे भारत की बहुआयामी संस्कृति से विश्व परिचित हो रहा है. पुणे में जी २० समूह के शिक्षा मंत्रियों की बैठक, गोवा , काश्मीर, महाबालिपुरम,वाराणसी, नई दिल्ली, बेंगलोर, लखनऊ, जोधपुर, गुवहाटी, कच्छ, कोलकाता, चंडीगढ़, तिरुअनंतपुरम, मुम्बई, उदयपुर, ॠषिकेश आदि स्थानो में विभिन्न समूहों की बैठकें हुई हैं. मध्यप्रदेश में भी खजुराहो में संस्कृति ग्रुप तथा इंदौर में जी २० के कृषि विषयक समूह की बैठक संपन्न हुई है. जी २० में गम्भीर चिंतन, सहयोग, सामूहिक वैश्विक हित के निर्णय दुनिया की बेहतरी के लिये दूरगामी परिणाम अवश्य लायेंगे. विश्व राजनीति में यह समय बहुत महत्वपूर्ण है. भारत को विटो पावर की मांग, विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत को तीसरे स्थान पर लाना, हमारे लक्ष्य हैं. यूक्रेन युद्ध, कोरोना के बाद से अनेक देशो की ठप्प होती इकानामी, बढ़ती आबादी, पर्यावरण जैसे अनेक मुद्दों पर दुनियां भारत को तथा जी २० को बड़ी आशा से देख रही है. ऐसे समय में जी २० भारतीय नेतृत्व में दुनियां के लिये विकास के नये मार्ग तैयार रहा है तथा जी २० की वैश्विक प्रासंगिकता बढ़ रही है.
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “विनम्रता”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 161 ☆
☆ लघुकथा – 🙏 विनम्रता 🙏 ☆
सरला के जीवन भर की कमाई उसकी अपनी विनम्रता है। इसी कारण कभी-कभी वह परेशानी में पड़ जाती थी। आज मानव सेवा आश्रम में पेड़ के नीचे लगी बेंच पर वह कुछ धार्मिक ग्रंथ पढ़ रही थी। रिमझिम बारिश की फुहार में अचानक उस घटना ने उसे सोचने को मजबूर कर दिया। जिसमें बिना कारण के वह अपने पति के गुस्से का शिकार हो गयी।
मामला यहां तक बढ़ा के पतिदेव कुणाल ने उसे घर से सदा सदा के लिए निकाल दिया। पांच वर्ष का बेटा रोता रहा परंतु पतिदेव की आत्मा न पिघली और न ही उसने माफ किया।
चलते चलते अचानक सरला गिर पड़ी। उसे कुछ याद न रहा। होश आने पर पता चला वह सुरक्षित किसी भली महिला के पास पहुंच चुकी है। जो असहाय और निराश्रित मानव की सेवा करती थी। अपने को संभालते सारा जीवन उसने मानव सेवा संस्थान में सेवा देने का मन बना लिया।
दुनिया की तरह तरह की बातों से दूर अब वह वहां आराम से रहने लगी।
सभी की सेवा करना सब का ध्यान रखना अपने हिस्से का सारा काम करके वह दूसरे का भी हाथ बटाती थी। सरला का नामों निशान मिट चुका था, अब वह विनम्रता के कारण विनू दीदी के नाम से जानी जाने लगी थी।
रिमझिम बारिश और मिट्टी की सोंधी महक तथा गरम गरम भजिए की खुशबू से वह बौखला गई।
जब भी ऐसा मौसम बनता विनू दीदी अपने आप को संभाल नहीं पाती थी। उसे देखकर लगता था कि असहनीय पीड़ा हो रही है।
यही वो समय था कुणाल के आने का इंतजार कर रही थी। हेमू बाहर खेल रहा था। सोचीं गरम-गरम भजिए तलकर कुणाल का इंतजार करती हूं। परंतु खेलते खेलते हेमू किचन में आ गया।
मम्मी की साड़ी पकड़ कर वह झूल गया। अचानक आने से सरला के हाथ से झरिया छूट गया और हेमू के गाल पर लगा। ठीक उसी समय पर कुणाल अंदर आया और अपने बच्चे को रोता देख इससे पहले सरला कुछ कहती। उसने तेल की गरम भरी कढ़ाई उठा सरला के सिर से पांव तक फेंक दिया।
चीख उठी सरला। देखा आसपास सभी खड़े थे क्या हुआ विनू दीदी फिर वही घटना याद आ गई। सफेद साड़ी के पल्ले से पोछते हुए सरला रोते रोते बोल पड़ी… मैंने कोई लापरवाही से चोट नहीं पहुंचाया था बस बता ना सकी। अपनी विनम्रता के कारण सब सहती रही।
तभी दौड़ते सभी कर्मचारी बाहर भागने लगे। पता चला किसी बुढ़े पिताजी को बेटे ने घर से निकाला है। और उसके शरीर पर जलने के निशान है।
पास आते ही सरला ने देखा वो और कोई नहीं कुणाल ही था।
सदा विनम्र रहने वाली सरला आज कठोर बन चुकी थी बोली.. इन्हें ले जाकर इलाज शुरू करवा दो। मुझे और भी काम निपटाना है।
कर्मचारियों ने देखा आंखों में आंसू चेहरे पर मुस्कान शायद वह वह आज भी विनम्र थीं।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 40 ☆ देश-परदेश – व्हाट्स ऐप को कोविड ☆ श्री राकेश कुमार ☆
25 अक्टूबर मंगलवार की दोपहरी जब व्हाट्स ऐप ने अपनी प्रणाली को लगाम लगा दी थी। पूरा विश्व सन्नाटे में आ गया था।
आरंभ में जैसे ही व्हाट्स ऐप बंद हुआ तो एक क्षण लगा हृदय की धड़कन भी बंद हो गई थी। घर के सभी विद्युत उपकरण कार्य कर रहे थे, फिर भी लाइन चेक कर ली, प्यूज भी देखा सब ठीक था।
पड़ोसी के यहां की कॉल बेल बजाई, ऐसा करने का मौका लंबे अंतराल के बाद मिला, क्योंकि हमेशा व्हाट्स ऐप से कॉल कर के ही उनका दरवाज़ा खुलता है। उनके हाथ में ग्लूकोस वाला पानी का गिलास था, कहने लगे कुछ तबीयत ठीक नहीं है बेचैनी से परेशान हैं। उनको लेकर नजदीक के एक परिचित डॉक्टर के हॉस्पिटल जाना पड़ा। वहां काफी भीड़ हो गई थी। मन में विचार आया कोई बड़ी दुर्घटना हो गई होगी। आगंतुक कक्ष में पता चला व्हाट्स ऐप बंद होने से लोगों को मितली और घबराहट हो रही हैं। लाइन में लगने के बाद काउंटर पर पता चला कि व्हाट्स ऐप से संबंधित बीमारी बीमा में कवर नहीं होती हैं। जैसा आरंभ में कॉविड भी कवर नहीं था।
पड़ोसी का इलाज़ करवा कर वापिस अपने घर आए तो पता चला श्रीमतीजी का जब व्हाट्स ऐप नही चला तो बाज़ार जाकर एक नया मोबाइल खरीद लिया की कही उनको छः माह पुराना मोबाइल खराब तो नही हो गया। बाद में वो बोली व्हाट्स ऐप को भी कोविड हो गया था, लेकिन हमको तो फट्का लगा गया।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुमसे मिलकर लगा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 144 – तुमसे मिलकर लगा…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “पृथ्वी की पलकों पर…”)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है हरिशंकर परसाई जन्मशती के अवसर पर श्री जयशंकर प्रसाद जी से किए गए सवाल जवाब का अंतिम भाग “आमने-सामने…”।)
☆ परिचर्चा — हरिशंकर परसाई जन्मशती विशेष – आमने-सामने – भाग-2 ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
देश के जाने-माने व्यंग्यकारों ने विगत दिनों व्यंंग्यकार जय प्रकाश पाण्डेय से सवाल जबाव किए। विगत अंक में व्यंंग्यकार श्री मुकेश राठौर (खरगौन) एवं श्री प्रभाशंकर उपाध्याय (गंगानगर) जी के सवालों के जवाब आपसे साझा किये थे। आज आमने-सामने में प्रस्तुत है व्यंंग्यकार डॉ ललित लालित्य (दिल्ली), श्री आत्माराम भाटी (बीकानेर), श्री शशांक दुबे (मुंबई), श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल), श्री रमेश सैनी (जबलपुर), श्री अशोक व्यास (भोपाल) एवं डॉ अलका अग्रवाल सिगतिया (मुंबई) जी के सवालों के जवाब के अंश —
व्यंंग्यकार डॉ ललित लालित्य (दिल्ली)
प्रश्न – १ – पांडेय जी आप चुपचाप काम करने वाले व्यंग्यकार हैं जबकि आपके जूनियर कहाँ से कहाँ पहुँच गए ।
प्रश्न – २ – क्या आप मानते है कि व्यंग्यकार को ईमानदार होना चाहिए,चुगलखोर या ईर्ष्यालु नहीं ?
प्रश्न – ३ – क्या जीते जी व्यंग्यकार मंदिर बनवा कर पूजे जाएं यह कहाँ की भलमान्सियत है ?
जय प्रकाश पाण्डेय –
उत्तर (१) – सर जी,लेखन में कोई जूनियर, सीनियर या वरिष्ठ, कनिष्ठ या गरिष्ठ नहीं होता, ऐसा हमारा मानना है। ईमानदारी और दिल से जितना कुछ संभव हो, वही संतुष्टि देता है। यदि कोई कहां से कहां पहुंच भी गया तो खुशी की बात है, उसकी प्रतिभा उसका अध्ययन उसे और ऊपर ले जाएगा।
उत्तर (२) – ईमानदार और दीन-दुखी जन जन के साथ खड़ा लेखक ही असली व्यंंग्यकार कहलाने का हकदार है, जैसे आप हर दिन आम आदमी की दैनिक जीवन में आने वाली विसंगतियों और पाखंड पर रोज लिखकर आम आदमी के साथ खड़े दिखते हो। समाज की बेहतरी के लिए व्यंंग्यकार की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए, ईमानदार प्रयास ही इतिहास में दर्ज होते हैं, फोटो और बोल्ड लेटर के नाम पानी के बुलबुले हैं। भाई,व्यंंग्यकार ही तो है जो जुगलखोरी और ईर्षालुओं के विरोध में लिखकर उनके चरित्र में बदलाव की कोशिश करता है।
उत्तर (३) – ऐसे लोगों को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जो आत्म प्रचार और आत्ममुग्धता के नशे में जीते जी मंदिर बनवाने की कल्पना करते हैं। ऐसे लेखक के अंदर खोट होती है, वे अंदर से अपने प्रति भी ईमानदार नहीं होते,जो लोग ऐसे लोगों के मंदिर बनवाने में सहयोग देते हैं वे भी साहित्य के पापी कहलाने के हकदार हो सकते हैं।
व्यंंग्यकार श्री आत्माराम भाटी(बीकानेर)
जयप्रकाश जी ! बतौर साहित्यकार स्वयं लिखी रचना को सम्पादित करना आसान है या किसी दूसरे की रचना को सम्पादक की नजर से देखना ?
जय प्रकाश पाण्डेय –
आदरणीय जी,स्वयं लिखी रचना को सबसे पहले सम्पादित करने और कांट-छांट करने का अधिकार, कायदे से घर की होम मिनिस्ट्री के पास होना चाहिए, फिर उसके बाद आवश्यक सुधार, संशोधन आदि स्वयं लेखक को करना चाहिए, दूसरे की रचना को सम्पादक की नजर से नहीं बल्कि सुझाव की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। पहले किसी लेखक की रचना जब संपादक के पास प्रकाशनार्थ जाती थी तो संपादक लेखक की अनुमति लेकर छुट-पुट सुधार कर लेता था, आजकल तो कुछ संपादक ऐसे हैं जो विचारधारा के गुलाम हैं,सत्ता के दलाल बनकर बैठे हैं, रचना मिलते ही सबसे पहले कांट-छांट कर रचना की हत्या करते हैं बिना लेखक की अनुमति लिए। फिर छापकर अच्छी रचना बनाने का श्रेय भी खुद ले लेते हैं।
व्यंंग्यकार श्री शशांक दुबे (मुंबई)
पाण्डेय जी आपको व्यंग्य के बहुत बड़े हस्ताक्षर *हरिशंकर परसाई जी* का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। परसाई जी के दौर के व्यंग्यकारों के बौद्धिक व रचनात्मक स्तर में और आज के दौर के व्यंग्यकारों के स्तर में आप कोई अंतर देखते हैं?
जय प्रकाश पाण्डेय –
आदरणीय भाई दुबे जी, वास्तविकता तो ये है कि जब परसाई जी बहुत सारा लिख चुके थे, उन्होंने 1956 में वसुधा पत्रिका निकाली, उसके दो साल बाद हमारा धरती पर आना हुआ। बड़ी देर बाद परसाई जी के सम्पर्क में आए 1979 से।पर हां 1979से 1995 तक उनका आत्मीय स्नेह और आशीर्वाद मिला।
परसाई और जोशी जी के दौर के व्यंंग्यकार त्याग, तपस्या,, संघर्ष की भट्टी में तपकर व्यंग्य लिखते थे,उनका जीवन यापन व्यंग्य लेखन से होता था, उनमें सूक्ष्म दृष्टि, गहरी संवेदना, विषय पर तगड़ी पकड़ के साथ निर्भीकता थी ।आज के समय के व्यंग्यकारों में इन बातों का अभाव है। परसाई जी, जोशी जी के दिमाग राडार के गुणों से युक्त थे,वे अपने समय के आगे का ब्लु प्रिंट तैयार कर लेते थे, उन्हें पुरस्कार और सम्मान की भूख नहीं थी। बड़े बड़े पुरस्कार उनके दरवाजे चल कर आते थे।आज के अधिकांश व्यंग्यकार अवसरवादी,सम्मान के भूखे, पकौड़े छाप जैसी छवि लेकर पाठक के सामने उपस्थित हैं और इनके अंदर बर्र के छत्ते को छेड़ने का दुस्साहस कहीं से नहीं दिखता।
व्यंंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल)
आप लंबे समय तक बैंकिंग सेवाओं मे थे,बैंक हिंदी पत्रिका छापते हैं,आयोजन भी करते हैं।
आप क्या सोचते हैं की व्यंग्य, साहित्य के विकास व संवर्धन में संस्थानों की बड़ी भूमिका हो सकती है ? होनी चाहिये ?
जय प्रकाश पाण्डेय –
विवेक भाई, हम लगातार लगभग 36साल बैंकिंग सेवा में रहे और शहर देहात, आदिवासी इलाकों के आलावा सभी स्थानों पर लोगों के सम्पर्क में रहे और अपने ओर से बेहतर सेवा देने के प्रयास किए।पर हर जगह पाया कि बेचारे दीन हीन गरीब,दलित,किसान, मजदूर,दुखी है पीड़ित हैं,उनकी बेहतरी के लिए लगातार सामाजिक सेवा बैंकिंग के मार्फत उनके सम्पर्क में रहे, गरीबी रेखा से नीचे के युवक युवतियों को रोजगार की तरफ मोड़ा, दूरदराज की ग़रीब महिलाओं को स्वसहायता समूहों के मार्फत मदद की मार्गदर्शन दिया। प्रशासनिक कार्यालय में रहते हुए गृह पत्रिकाओं के मार्फत गरीबों के उन्नयन के लिए स्टाफ को उत्साहित किया, बिलासपुर से प्रतिबिंब पत्रिका, जबलपुर से नर्मदा पत्रिका, प्रशिक्षण संस्थान से प्रयास पत्रिका आदि के संपादन किए, और जो थोड़ा बहुत किया वह आदरणीय प्रभाशंकर उपाध्याय जी के उत्तर में देख सकते हैं। बैंक में रहते हुए साहित्य सेवा और सामाजिक सेवा से समाज को बेहतर बनाने की सोच में उन्नयन हुआ, दोगले चरित्र वाले पात्रों पर लिखकर उनकी सोच सुधारने का अवसर मिला। कोरोना काल में विपरीत परिस्थितियों के चलते बैंकों में अब समय खराब चल रहा है इसलिए आप जैसा सोच रहे हैं उसके अनुसार अभी परिस्थितियां विपरीत है।
व्यंंग्यकार श्री रमेश सैनी (जबलपुर)
वर्तमान समय में सभी तरफ व्यंग्य पर बहुत गंभीरता से विमर्श हो रहा है,विशेषकर परसाई जी और आज लिखे जा रहे व्यंग्य के संदर्भ में। क्योंकि आज के पाठक और आलोचक इससे संतुष्ट नज़र नहीं हो रहे। एक व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में आपके सवाल के उत्तर में यह बात उभर कर आई थी कि व्यंग्य में खतपरवार ऊग आई है,जो फसल को नष्ट कर रही है।
उक्त टिप्पणी को केंद्र में रखकर व्यंग्य में खतपरवार और अराजक परिदृश्य पर आप क्या सोचते हैं ?
इसकी सफाई कैसे संभव हैं?
जय प्रकाश पाण्डेय –
आदरणीय सैनी जी व्यंग्य विधा के उन्नयन और संवर्धन के यज्ञ में आपका योगदान महत्वपूर्ण है,अब व्यंग्य विमर्श के आयोजन के बिना आपका खाना नहीं पचता,हम सब आप से और सबसे ही बहुत कुछ सीख रहे हैं। खरपतवार हमारे अपने ही कुछ लोग पैदा कर रहे हैं इसलिए व्यंग्य की लान में ऊग आयी जंगली घास को आप जैसे पुराने व्यंग्यकारों को निंदाई का कार्य करना पड़ेगा और जो लोग खरपतवार में खाद पानी दे रहे हैं उन्हें चौगड्डे में लाकर खड़ा करना पड़ेगा।
व्यंंग्यकार श्री अशोक व्यास (भोपाल)
मेरा प्रश्न है कि आजकल जो व्यंग्य पढ़ने में आ रहे हैं उसमें साहियकारों पर जिसमें अधिकतर व्यंग्यकारों पर व्यंग्य किया जा रहा है । क्या विसंगतियों को अनदेखा करके दूसरे के नाम पर अपने आप को व्यंग्य का पात्र बनाने में खुजाने जैसा मजा ले रहे हैं हम ?
जय प्रकाश पाण्डेय –
भाई साहब,सही पकड़े हैं।हम आसपास बिखरी विसंगतियों, विद्रूपताओं, अंधविश्वास को अनदेखा कर अपने आसपास के तथाकथित नकली व्यंंग्यकारों को गांव की भौजाई बनाकर खुजाने का मजा ले रहे हैं, जबकि हम सबको पता है कि इनकी मोटी खाल खुजाने से कुछ होगा नहीं,वे नाम और फोटो के लिए व्यंग्य का सहारा ले रहे हैं।
व्यंंग्यकार डॉ अलका अग्रवाल सिगतिया (मुंबई)
आपने परसाईं जी का साक्षात्कार भी किया है।
उस साक्षात्कार के अनुभव क्या रहे?
आज यह कहा जा रहा है,व्यंग्य कार खुल कर नहीं लिख रहे,अक्सर व्यंग्य चर्चाओं में बहस छोड़ रही है ।
कितने सहमत हैं, आप?
क्या अभिव्यक्ति के खतरे पहले नहीं थे?
आपके लेखन में आप इसे कितना उठाते हैं, या स्टेट बैंक के महाप्रबंधक पद रहकर उठाए?
परसाई जी से आप अपने लेखन को लेकर चर्चा करते थे?
जय प्रकाश पाण्डेय –
डॉ अलका जी की कहानियां हम 1980 से पढ़ रहे हैं, कहानियां मासिक चयन (भोपाल) पत्रिका में हम दोनों अक्सर एक साथ छपा करते थे। उन्हें परसाई जी का आत्मीय आशीर्वाद मिलता रहा है।
वे परसाई जी के बारे में सब जानतीं हैं। पर चूंकि प्रश्र किया है इसलिए थोड़ा सा लिखने की हिम्मत बनी है।
1- सुंदर नाक नक्श, चौड़े ललाट,साफ रंग के विराट व्यक्तित्व परसाई जी से हमने इलाहाबाद की पत्रिका कथ्य रूप के लिए इंटरव्यू लिया था। हमने उनकी रचनाओं को पढ़कर महसूस किया कि उनकी लेखनी स्याही से नहीं खून से लेख लिखती थी, व्यंग्य करती थी और हृदय भेदकर रख देती थी। परसाई जी से हमारे घरेलू तालुकात थे, ऐसे विराट व्यक्तित्व से इंटरव्यू लेना बड़े साहस का काम था। इंटरव्यू के पहले परसाई जी कुछ इस तरह प्रगट हुए जैसे अर्जुन के सामने कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया था। उनके विराट रूप और आभामंडल को देखकर हमारी चड्डी गीली हो गई, पसीना पसीना हो गये क्योंकि उनके सामने बैठकर उनसे आंख मिलाकर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं हुई,तो टेपरिकॉर्डर छोटा था हमने बहाना बनाया कि टेपरिकॉर्डर पुराना है आवाज ठीक से रिकार्ड नहीं हो रही और हम उनके सिर के तरफ बैठकर सवाल पूछे। परसाई जी पलंग पर अधलेटे जिस ऊर्जा से बोल रहे थे,हम दंग रह गए थे।
2- हमारा सौभाग्य था कि हमारी पहली व्यंग्य रचना परसाई ने पढ़ी और पढ़कर शाबाशी दी, और लगातार लिखते रहने की प्रेरणा दी।
3- आजकल बहुत से व्यंंग्यकार खुल कर नहीं लिख रहे हैं, इस बारे में आदरणीय शशांक दुबे के उत्तर में स्पष्ट कर दिया गया है।