(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वशीकरण है तेरा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 143 – वशीकरण है तेरा…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “हुआ उड़ानों में कपोत…”)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “तूफान और तूफान…”।)
☆ व्यंग्य — “तूफान और तूफान…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
मौसम विभाग ने चेतावनी दी, कि तेज हवाओं के साथ चक्रवती तूफान आने वाला है अतः सुरक्षित रहें और यथासंभव बाहर न निकलें।
हम डर गए, हमने श्रीमती जी के कंधे में हाथ रखकर कहा – प्रिये ! निर्भय हो जाओ…
श्रीमती ने हाथ में हाथ डालकर हमें समझाया – ‘प्लीज निर्भय हो जाओ ‘। डरने की कोई बात नहीं है तुम्हारी घरवाली तूफान की ऐसी – तैसी कर देगी वो अपने आप में बड़ा तूफान है। श्रीमती जी ने बताया कि इस संवत का राजा सूर्य है और मंत्री शनि… दोनों में पिता पुत्र का संबंध है लेकिन दोनों परस्पर विपरीत स्वाभाव के हैं दोनों में आपस में बनती नहीं है इसलिए बीच-बीच में मंत्री गण राजा को तूफान के बहाने तंग करते हैं दिल्ली तरफ एक प्रकार का तूफान खड़ा किया और कर्नाटक में दूसरे टाइप का तूफान खड़ा करवा दिया।
तूफान आया, खूब तेज आया, दोनों जगह आया। हम बजरंगबली का चालीसा के साथ मन में ये गाना भी गाते रहे…
‘तूफान को आना है,
आकर चले जाना है,
बादल है ये कुछ पल का,
छाकर ढल जाना है “
तेज तूफान आया, पास के कई पेड़ गिर गए, टीन टप्पर उड़ गए, धूल भरी आंधी चली। श्रीमती को छूकर देखा वो सलामत थी.. उड़ी नहीं ।पिछले बार के तूफान में उड़ गईं थीं फिर पड़ोसी के यहां मिली थी, हालांकि इस बार के तूफान में कई महिलाएं तूफान में उड़ गईं थीं और पड़ोसियों के घर में आराम करती मिलीं। श्रीमती जी तूफान की तरह डटी रहीं और हमें ‘निर्भय हो जाओ “का पाठ पढ़ातीं रहीं।
जब तूफान गुजर गया, शान्ति हो गई तो किचन और घर धूल धूसरित हो गया, सब जगह धूल ही धूल…
थोड़ी देर बाद रसोई में खटर पटर और बर्तनों की उठापटक से हम सतर्क हो गए…. श्रीमती की शुरू से काम करने की आदत रही नहीं। तूफान तो आकर चला गया पर घरवाली का भयंकर तूफान आने की चेतावनी बरतन पटकने से मिल रही है। स्थिति को भांपते हुए हम तुरंत किचन में गए…. मधुर स्वर में हमने पिक्चर और बाहर डिनर का प्रोग्राम बना लिया। थोड़ी देर में श्रीमती तैयार होने लगी, झुमके पहने, हीरे का हार पहना, दस बार साड़ी पहन पहनकर देखीं फिर दस बार बदलीं। तैयार होने में इतनी अदाएं फेंकीं कि हम और आईना शरमाने लगे फिर इधर पौरुष पिघल गया। तूफान शान्त हो गया। वह फिर रसोई की तरफ पैर पटकती चली गई। थोड़ी देर बाद आईने के सामने आकर फिर इतराने लगी, कहने लगी – तुम जैसे पिलपिले मर्दों के कारण तूफान आता है और यूं ही चला जाता है। मौसम विभाग भले डरावनी चेतावनी देता है कि भयानक तूफान आने वाला है पर आजकल का तूफान आता है तो फुस्स हो जाता है, जिंदगी साली तूफान बन गई है जिंदगी हमेशा खामोश सवालों से भरी पड़ी है जीवन जीना बड़ा नाजुक अहसास है।
हमने आंधी स्टाइल में कहा – चलो भागवान ! देर हो रही है पिक्चर की टिकट नहीं मिलेगी। वहां से आवाज आई, बस जरा जोरदार सैंडिल पहन लूं। श्रीमती जी सजने के चक्कर में खामोंखां देर कर रही थी, घर के बाहर आटो आकर रुक गया, एक तूफान और आ गया, फूफा जी मय सामान के उतर रहे थे। हमें लगा हमारी तकदीर में तूफान ही तूफान लिखे हैं। आज दो तीन प्रकार के तूफान झेल चुके हैं थोड़ी देर बाद एक – दो तूफान और आने वाले हैं हमने अपने आप को समझाया “निर्भय हो जाओ”….
श्रीमती अपने फूफा की तो खूब बढ़ाई करती है पर हमारे फूफा की बहुत बुराई करती है कहती है तुम्हारा फूफा बदमाश, अनमना, चिड़चिड़ा, तुनकमिजाज है तीखी बयानबाजी करके तूफान खड़ा कर देता है, छोटी छोटी बात में मुंह फुलाके बहादुर शाह जफर बन जाता है। बिन बुलाए मेहमान बनके हमारे पिक्चर और डिनर के प्रोग्राम को तहस नहस कर दिया।
तूफान का भय बढ़ता जा रहा है श्रीमती जी का पूरी तरह से बाहर के डिनर का मूड बन गया था और अचानक फूफा के आ जाने से प्रोग्राम की ऐसी-तैसी हो गई, ऐसे में श्रीमती जी के अंदर भीषण तूफान उठ चुका होगा, और किचन में अटेक करेगा, किचन के बर्तनों पर हमें दया आ रही है, नये कांच के डिनर सेट की चिंता ज्यादा खाये जा रही है। फूफा गुस्सेल स्वाभाव के हैं चेहरे के हावभाव से लग रहा है कि उनके अंदर भी भूख का तूफान उमड़ घुमड़ रहा है…
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ठहाके लगाओ दोस्तों… #”)
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसंवेदनशील एवं विचारणीय कहानी ”देशभक्त’ जी का संकट’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 196 ☆
☆ व्यंग्य ☆ ‘देशभक्त’ जी का संकट ☆
भाई रतनलाल ‘देशभक्त’ बहुत परेशान हैं। न दिन को चैन है, न रात को नींद। रात करवटें बदलते गुज़रती है।
‘देशभक्त’ जी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। कुछ साल पहले अपने नाम के साथ ‘देशभक्त’ जोड़ लिया, सो अब अपना परिचय उसी नाम से देते हैं।
‘देशभक्त’ जी तीन पार्टियाँ छोड़कर अंतरात्मा की आवाज़ पर चौथी पार्टी में आये हैं। तब यह पार्टी पावर में थी। वे यह सोचकर पार्टी में आये थे कि कोई मलाईदार पद मिल जाएगा, लेकिन हाल ही में पार्टी के कुछ एमैले अंतरात्मा की आवाज़ पर पार्टी छोड़ कर चले गये और सरकार गिर गयी। ‘देशभक्त’ जी के लिए सर मुँड़ाते ही ओले पड़े। अब उनका चैन हराम है।
नई पार्टी ने पावर में आते ही भड़ाभड़ काम करना शुरू कर दिया। बिजली-पानी के शुल्क में छूट दे दी और तेज़ी से स्कूल, अस्पताल, पुल, सड़कें बनने लगे। उनके एमैले दिन भर काम के ठिये पर मुस्तैद दिखायी देने लगे।
लेकिन उनका काम देख कर ‘देशभक्त’ जी के पेट में पानी मचने लगा। ऐसे ही काम होता रहा तो उनकी पार्टी का पचास साल तक पावर में आने का नंबर नहीं लगेगा। पब्लिक खुश रही तो अपना तो बंटाढार ही होना है। फिर चौथी बार दल बदलने के सिवा कोई चारा नहीं रहेगा।
चैन नहीं पड़ा तो अपनी पार्टी के पुराने घाघ गोमती भाई के पास पहुँचे। वे सोफे पर गणेश जी की मुद्रा में बैठे काजू- किशमिश टूँग रहे थे। देखकर देशभक्त जी का माथा और खराब हुआ। बोले, ‘आप यहाँ आराम से बैठे हैं और वहाँ अपना सारा काम खराब हो रहा है।’
गोमती भाई ने पूछा, ‘क्या हुआ? क्या परेशानी है?’
‘देशभक्त’ जी रुआँसे होकर बोले, ‘नयी सरकार इतनी तेजी से काम कर रही है। यही हाल रहा तो आगे हमें कौन पूछेगा? अपनी लुटिया तो डूबी समझो। पचास साल तक सर उठाने का मौका नहीं मिलेगा।’
गोमती भाई परमहंस की नाईं बोले, ‘जनता का भला हो रहा है तो होने दो। जब वे गलती करेंगे तो देखेंगे।’
‘देशभक्त’ जी भिन्ना कर बोले, ‘तो क्या हम उनके गलती करने तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें? हम कल से उनकी पार्टी के दफ्तर के सामने प्रदर्शन करेंगे, कहेंगे कि हर काम में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी हो रही है। आप अपने चेलों को कह दो कल सवेरे अपनी पार्टी के दफ्तर में झंडे-वंडे लेकर इकट्ठे हो जाएँ। बाकी हम देख लेंगे।’
दूसरे दिन सत्ताधारी पार्टी के दफ्तर के सामने हंगामा शुरू हो गया। पुलिस आ गयी। बैरिकेड लगे थे, उन्हें लाँघने की कोशिशें होने लगीं। पुलिस के साथ झूमा-झटकी होने लगी। ‘देशभक्त’ जी को बैरिकेड से थोड़ी सी खरोंच लग गयी। उन्होंने एक वालंटियर से पट्टी मँगवा कर उस मामूली सी खरोंच पर बँधवा ली और फिर कमीज़ उतारकर, अपने कंधे पर रखकर, चोट की नुमाइश करते घूमने लगे।
प्रदर्शन के बीच में ‘देशभक्त’ जी लाउड-स्पीकर पर भाषण भी दे रहे थे, जिसका लुब्बेलुबाब था कि वर्तमान सरकार महाभ्रष्ट है, हर काम में तीस परसेंट कमीशन बँधा है। जो सड़कें और पुल बन रहे हैं वे एक साल से ज़्यादा नहीं टिकने वाले। स्कूलों-अस्पतालों में काम की क्वालिटी एकदम घटिया है और नई पीढ़ी और मरीज़ों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। ‘देशभक्त’ जी बार-बार मुट्ठी उठा कर कहते थे कि वे इस भ्रष्टाचार को नहीं चलने देंगे, भले ही उनको अपने प्राणों की बलि देनी पड़े।
हर बार उनका भाषण ‘बिस्मिल’ के शेर से ख़त्म होता था— ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है।’
पहले दिन प्रदर्शन से ‘देशभक्त’ जी अपनी फौज के साथ भारी संतुष्ट होकर लौटे। लगा जीवन को दिशा मिल गयी। अब आराम हराम है। रोज़ प्रदर्शन करना है और पूरा ज़ोर लगा कर सरकारी काम को रोकना है। सरकार काम करने में सफल हो गयी तो अपने भविष्य पर ग्रहण लगना निश्चित है।
अब रोज ‘देशभक्त’ जी चालीस पचास फुरसतिये लड़कों के साथ ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का नारा लगाकर कहीं काम को रोकने निकल पड़ते हैं। फिर दिन भर हंगामा और पुलिस के साथ धक्कामुक्की चलती है। शाम को अपनी दिन भर की उपलब्धि पर गर्वित, सिर ऊँचा किये लौटते हैं। उन्हें भरोसा है कि उनकी कोशिशों से सरकारी काम रुके न रुके, नयी पार्टी में उनका रुतबा ज़रूर बढ़ जाएगा, जिससे आगे कुछ हासिल होने के रास्ते खुलेंगे।
Anonymous Litterateur of Social Media# 143 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 143)
Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.
Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.
हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 194☆ पौधे लगाएँ, पेड़ बचाएँ
लौटती यात्रा पर हूँ। वैसे यह भी भ्रम है, यात्रा लौटती कहाँ है? लौटता है आदमी..और आदमी भी लौट पाता है क्या, ज्यों का त्यों, वैसे का वैसा! ख़ैर सुबह जिस दिशा में यात्रा की थी, अब यू टर्न लेकर वहाँ से घर की ओर चल पड़ा हूँ। देख रहा हूँ रेल की पटरियों और महामार्ग के समानांतर खड़े खेत, खेतों को पाटकर बनाई गई माटी की सड़कें। इन सड़कों पर मुंबई और पुणे जैसे महानगरों और कतिपय मध्यम नगरों से इंवेस्टमेंट के लिए ‘आउटर’ में जगह तलाशते लोग निजी और किराये के वाहनों में घूम रहे हैं। ‘धरती के एजेंटों’ की चाँदी है। बुलडोजर और जे.सी.बी की घरघराहट के बीच खड़े हैं आतंकित पेड़। रोज़ाना अपने साथियों का कत्लेआम देखने को अभिशप्त पेड़। सुबह पड़ी हल्की फुहारें भी इनके चेहरे पर किसी प्रकार का कोई स्मित नहीं ला पातीं। सुनते हैं जिन स्थानों पर साँप का मांस खाया जाता है, वहाँ मनुष्य का आभास होते ही साँप भाग खड़ा होता है। पेड़ की विवशता कि भाग नहीं सकता सो खड़ा रहता है, जिन्हें छाँव, फूल-फल, लकड़ियाँ दी, उन्हीं के हाथों कटने के लिए।
मृत्यु की पूर्व सूचना आदमी को जड़ कर देती है। वह कुछ भी करना नहीं चाहता, कर ही नहीं पाता। मनुष्य के विपरीत कटनेवाला पेड़ अंतिम क्षण तक प्राणवायु, छाँव और फल दे रहा होता है। डालियाँ छाँटी या काटी जा रही होती हैं तब भी शेष डालियों पर नवसृजन करने के प्रयास में होता है पेड़।
हमारे पूर्वज पेड़ लगाते थे और धरती में श्रम इन्वेस्ट करते थे। हम पेड़ काटते हैं और धरती को माँ कहने के फरेब के साथ ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त करते हैं। खरीदार, विक्रेता, मध्यस्थ, धरती को खरीदते-बेचते एजेंट।
मन में विचार उठता है कि मनुष्य का विकास और प्रकृति का विनाश पूरक कैसे हो सकते हैं? प्राणवायु देनेवाले पेड़ों के प्राण हरती ‘शेखचिल्ली वृत्ति’ मनुष्य के बढ़ते बुद्ध्यांक (आई.क्यू) के आँकड़ों को हास्यास्पद सिद्ध कर रही है। धूप से बचाती छाँव का विनाश कर एअरकंडिशन के ज़रिए कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देकर ओज़ोन लेयर में भी छेद कर चुके आदमी को देखकर विश्व के पागलखाने एक साथ मिलकर अट्टहास कर रहे हैं। ‘विलेज’ को ‘ग्लोबल विलेज’ का सपना बेचनेवाले ‘प्रोटेक्टिव यूरोप’ की आज की तस्वीर और भारत की अस्सी के दशक तक की तस्वीरें लगभग समान हैं। इन तस्वीरों में पेड़ हैं, खेत हैं, हरियाली है, पानी के स्रोत हैं, गाँव हैं। हमारे पास अब सूखे ताल हैं, निरपनिया तलैया हैं, जल के स्रोतों को पाटकर मौत की नींव पर खड़े भवन हैं, गुमशुदा खेत-हरियाली हैं, चारे के अभाव में मरते पशु और चारे को पैसे में बदलकर चरते मनुष्य हैं।
माना जाता है कि मनुष्य, प्रकृति की प्रिय संतान है। माँ की आँख में सदा संतान का प्रतिबिम्ब दिखता है। अभागी माँ अब संतान की पुतलियों में अपनी हत्या के दृश्य पाकर हताश है।
और हाँ, जून माह है। पर्यावरण दिवस के आयोजन भी शुरू हो चुके हैं। हम सब एक सुर में सरकार, नेता, बिल्डर, अधिकारी, निष्क्रिय नागरिकों को कोसेंगे। काग़ज़ों पर लम्बे, चौड़े भाषण लिखे जाएँगे, टाइप होंगे और उसके प्रिंट लिए जाएँगे। प्रिंट कमांड देते समय स्क्रीन पर भले ही शब्द उभरें-‘ सेव इन्वायरमेंट। प्रिंट दिस ऑनली इफ नेसेसरी,’ हम प्रिंट निकालेंगे ही। संभव होगा तो कुछ लोगों, खास तौर पर मीडिया को देने के लिए इसकी अधिक प्रतियाँ निकालेंगे।
कब तक चलेगा हम सबका ये पाखंड? घड़ा लबालब हो चुका है। इससे पहले कि प्रकृति केदारनाथ जैसे ट्रेलर को लार्ज स्केल सिनेमा में बदले, हमें अपने भीतर बसे नेता, बिल्डर, भ्रष्ट अधिकारी तथा निष्क्रिय नागरिक से छुटकारा पाना होगा।
चलिए इस बार पर्यावरण दिवस के आयोजनों पर सेमिनार, चर्चा वगैरह के साथ बेलचा, फावड़ा, कुदाल भी उठाएँ, कुछ पौधे लगाएँ, कुछ पेड़ बचाएँ। जागरूक हों, जागृति करें। यों निरी लिखत-पढ़त और बौद्धिक जुगाली से भी क्या हासिल होगा?
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी।
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈