हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हम चंदन के पेड़ हुये न

तुमने सारी गंध चुराई।

 

आदम युग से

अब तक जाने

कितने जन्म लिये

हम में जीवित

रही सभ्यता

ले उपहास जिये

 

हम तो चतुर सुजान हुये न

तुमसे हारी हर चतुराई।

 

भूख जगाते

रहे रात दिन

पेट लिये खाली

बने बिजूका

खड़े खेत में

करते रखवाली

 

हम गुदड़ी के लाल हुये न

तुमने ओढ़ी भरी रज़ाई।

 

मौसम वाले

ख़त पढ़-पढ़ कर

उम्र गई है ऊब

तिनका-तिनका

कटे ज़िंदगी

सदी रही है डूब

 

हम अक्षर से शब्द हुये न

तुमने रच डाली कविताई।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 178 ☆ मन झाले ओलेचिंब… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? कवितेच्या प्रदेशात # 178 ?

💥 मन झाले ओलेचिंब… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

तुझ्या आठवाने आज

झाले पुरती घायाळ

मनी दाटले काहूर

कोण हृदयी वाचळ?

किती काळ हा लोटला

रंग प्रीतीचा गहिरा

रिती रिवाजाची चाड

रात्रंदिन तो पहारा

आले दाटून मनात

तुझे राजबिंडे रूप

क्षण एक तो प्रेमाचा

किती अप्रुप अप्रुप

आता सांजावल्या दिशा

साक्षीदार जुना लिंब

एक एक सय येता

मन झाले ओलेचिंब

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकावर बोलू काही  ☆ अग्निशिखा, कादंबरी ☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆

सौ. नीला देवल

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ अग्निशिखा, कादंबरी  ☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆ 

पुस्तक – अग्निशिखा, कादंबरी.

लेखिका – नीला देवल.

प्रकाशक – मिलिंद राजाज्ञा, नवदुर्गा प्रकाशन, कोल्हापूर.

पृष्ठे – २८०

किंमत – ५१० रु .

☆ मनोगत – सौ. नीला देवल ☆

माझी अग्निशिखा ही ऐतिहासिक कादंबरी प्रकाशित झाली आहे त्यात तिचे हे मनोगत.

गुजरात मधील राजकुमारी आणि देवगिरीच्या शंकर देवांची राणी देवल देवी हिचे काळजाला भिडणारे चरित्र यामध्ये आहे.

इतिहासातील अज्ञात अनेक वीरांगणा पैकी ही एक देवल देवी जी अनंत आपदा संकटे अंगावर झेलते. प्रचंड स्व धर्माभिमानी, राष्ट्राभिमानी, मुच्छद्दी, धोरणी अशी स्त्री अल्पकाळ का होईना भारताची सम्राज्ञी म्हणून दिल्ली सिंहासनाधिष्ठित होते. अखंड भारताचे स्वप्न साकारते. अल्लाउद्दीन खिलजीच्या स्वप्नांचा चक्काचूर करून.

अशा शूरवीर, धुरंदर स्त्रिया ज्या अज्ञात इतिहासातील पानापानात दडलेल्या. आहेत. पुढील अनेक पिढ्यांना प्रेरणा देणारी नारी शक्तींची ही चरित्रे जी भारतीय ना अज्ञात आहेत त्यांना न्याय मिळवून देण्यासाठी देवल देवीची ही कथा नक्कीच प्रेरणादायी होऊन अनेक लेखिका अशा ऐतिहासिक स्त्रियांना न्याय मिळवून देण्यासाठी उद्युक्त होतील. तेच या कादंबरीचे यश होईल.

स्वातंत्र्यवीर सावरकरांच्या सहा सोनेरी पाने या पुस्तकातील देवल देवी व खुशरूकान या वरच्या स्वतंत्र प्रकरणावरून प्रेरणा मिळवून केवळ त्या प्रकरणाचा विस्तारित भाग म्हणजे ही कादंबरी आहे. स्वदेशासाठी जोहार करणाऱ्या रजपूत स्त्रिया इतकी प्राणपणाने स्वधर्म व स्वदेश राष्ट्र रक्षणारी राजकारणी, मुच्छद्दी आदर्श आशा स्त्रीचे चरित्र म्हणजे ही कादंबरी आहे.1857

सारखेच खुशरूकान व देवलदेवीने केलेले हे स्वातंत्र्य समरच आहे.

© सौ. नीला देवल

९६७३०१२०९०

Email:- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे…

1 धूप

तेज धूप में झुलसता, मानव का हर अंग।

छाँव-छाँव में ही चलें, पानी-बाटल संग।।

 

2 कपोल

कपोल सुर्ख से लग रहे, ज्यों पड़ती है धूप।

मुखड़े की यह लालिमा, लगती बड़ी अनूप।।

3 आखेट

आँखों के आखेट से, लगे दिलों पर तीर ।

मृगनयनी घायल करे, कितना भी हो वीर।।

4 प्रतिदान

मानवता कहती यही, करें सुखद प्रतिदान

बैर बुराई छोड़ कर, प्रस्थापित प्रतिमान ।।

5 निकुंज

आम्र-निकुंज में डालियाँ, झुककर करें प्रणाम।

आगत का स्वागत करें, चखें स्वाद चहुँ याम।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 04 ☆ स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 3 ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का अगला भाग )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 04 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 3 ?

(2015 अक्टोबर – इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को  घूमने का कार्यक्रम बनाया। पिछले भाग में आपने पुर्तगाल यात्रा वृत्तांत पढ़ा। )

यात्रा वृत्तांत (स्पेन से जिबरॉल्टर) – भाग तीन 

मलागा में चार दिन बिताने के बाद हम तीन दिन के लिए मोरक्को जानेवाले थे परंतु वहाँ उन दिनों राजनैतिक उथल-पुथल प्रारंभ हो गई थी। कुछ बम विस्फोट की भी खबरें मिली, इसलिए हमने वहाँ जाने का कार्यक्रम स्थगित किया। हमारी सारी बुकिंग कैंसल की गई,आर्थिक नुकसान हुआ पर कहते हैं न जान बची लाखों पाए -हमारे लिए उस समय यह निर्णय आवश्यक था। यह मुस्लिम बाहुल्य देश है। यहाँ ईसाई भी हैं पर माइनॉरिटी में और दो धर्मों के बीच कुछ विवाद छिड़े हुए थे।अतः इस उथल -पुथल में हमने मोरक्को न जाने का फैसला लिया। हमने रिसोर्ट में तीन दिन अधिक रहने के लिए व्यवस्था की। सौभाग्य से हमें जगह मिल गई ।अब हमारे पास तीन दिन हाथ में अधिक आ गए थे। हमने मलागा में रहकर कुछ और जगहें देखने का मन बना लिया।

कनाडा की शिक्षिकाओं ने दूसरे दिन जिबरॉल्टर जाने का कार्यक्रम बनाया था। इस स्थान की जानकारी मुझे उन दिनों हुई थी जब मैं अपने नाती को  इतिहास पढ़ाते समय  द्वितीय विश्वयुद्ध की जानकारी दे  रही थी। इससे पूर्व मुझे इस स्थान की कोई जानकारी न थी। हमारा नाती तो जिबरॉल्टर जाने की बात सुनकर उछल पड़ा। हमने अपने रिसोर्ट के ग्रंथालय से जिबरॉल्टर की और अधिक ऐतिहासिक जानकारी हासिल की और ट्रैवेल डेस्क पर बैठे एजेंट से जाने की व्यवस्था भी की।

हमारे पास शैंगेन वीज़ा थी। जिबरॉल्टर यू.के. के अधीन आता है। वहाँ शैंगेन वीज़ा नहीं चलता। पर हमारी तकदीर अच्छी थी कि ट्रैवेल एजेंट ने बताया कि हमारी यात्रा के छह दिन पूर्व ही यह घोषणा की गई थी कि भारतीय जिबरॉल्टर पहुँचकर वीज़ा प्राप्त कर सकते हैं।

अठारह लोगों की बस में तीन सीटें मिल ही गईं और दूसरे दिन सुबह हम सात बजे जिबरॉल्टर के लिए रवाना हुए।

गाड़ी में हम तीन ही एशियाई और वह भी भारतीय थे। इससे पूर्व सभी एशियाई देशों को पहले से वीज़ा लेने की आवश्यकता होती रही है। अब यह बाध्यता का समाप्त होना अर्थात भारत के साथ स्पेन के सुदृढ़ आपसी संबंधों पर प्रकाश डालता है।

मलागा से जिबरॉल्टर की दूरी 135 किलोमीटर है। जिबरॉल्टर समुद्री तट पर बसा छोटा सा शहर है। जिबरॉल्टर छोटा सा शहर तो  है पर साथ ही, यह ब्रिटेन के सशस्त्र सैनिकों और नौसेना का एक सशक्त आधार भी है। यह चट्टानी प्रायद्वीप से घिरा इलाका है साथ ही यहाँ कई गुफाएँ भी हैं।

यह पृथ्वी का एक ऐसा एयरप्लेन रनवे है जहाँ गाड़ियाँ और विमान दोनों  ही चलते हुए दिखाई देते हैं। यात्रा के दौरान अचानक हमारी बस रुक गई और सामने ही विमान चलता दिखाई दिया। कुछ समय बाद विमान हमारे सिर के ऊपर से उड़ता दिखाई दिया। हमारे लिए यह एक अद्भुत अनुभव था!

हम अपनी छोटी-सी बस से जिबरॉल्टर पहुँचे। फिर वहाँ से आगे गुफाओं में जाने के लिए वहाँ की निर्धारित बसों में बैठकर हम ऊपरी गुफाओं में पहुँचे। ये संकरी और घुमावदार पहाड़ी रास्तों से गुजरती सड़कों पर की गई  अद्भुत यात्रा थी। बस में लगी काँच की खिड़कियाँ बहुत बड़े आकार थीं जिस कारण मार्ग के आगे, पीछे, ऊपर ,नीचे की सड़कें स्पष्ट नज़र आ रही थी।

जैसे बस ऊपर चढ़ती सड़क संकरी महसूस होने लगती। एक भय भी मन में घर करता रहा। हम सबकी हालत देख गाइड ने तुरंत कहा कि सड़क घुमावदार,संकरी और चढ़ाईवाली  होने के कारण ही विशेष प्रशिक्षित चालकों के साथ यात्रियों को वहाँ ले जाया जाता है। वहाँ गाड़ी या बस चलाना सबके बस की बात नहीं। एकबार में एक ही बस ऊपर जाती है। दो घंटे गाइड के साथ गुफाएँ देखकर बस नीचे उतरती है और तब दूसरी बस रवाना होती है।बस चालक ही गाइड के रूप में काम करता है। इस कारण प्रत्येक ट्रिप में अलग चालक होते हैं। चालक का गाइड होना अर्थात  उस स्थान के प्रति लगाव, समर्पण की भावना भी जुड़ी रहती है।

बसें ऑटोमोटिक होती हैं और समय का पूरा ध्यान रखा जाता है। दूसरी बस प्रस्थान के लिए नीचे यात्रियों के साथ तैयार रहती है। इतना परफेक्ट समय की पाबंदी और अनुशासन देखकर यात्री होने के नाते हमारा मन अत्यंत प्रसन्न हो उठा।

ऊपर गुफाओं में हमें घुमाया गया।यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के समय तकरीबन बीस हज़ार लोग रहते थे।बच्चों के लिए छोटा सा स्कूल बनाया गया था ताकि उन्हें युद्ध के भय से दूर रखा जाए तथा वे व्यस्त रहें। बेकरी थी। सैनिकों के सोने के लिए लोहे के बेड रखे गए थे। दिन में कुछ युद्ध करते तो कुछ सोते और रात को कुछ तैनात रहते तो दिन में ड्यूटी करनेवाली सेना आराम करती। गुफाएँ काफी गहरी थीं। कुछ  गुफाओं में आज भी सैनिक रहते हैं।

गाइड ने हमें यह भी बताया कि जिबरॉल्टर में बड़ी संख्या में सिंधी भाषी रहते हैं।ये लोग आज के पाकिस्तान के सिंध इलाका से व्यापार करने के लिए गए थे तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था। और आज भी वे वहीं बसे हैं।वहाँ हिंदू मंदिर भी है।

कई अच्छी जानकारी और ऐतिहासिक स्थान देखकर हम मलागा लौट आए।

आज स्पेन के विभिन्न शहरों  में भी बड़ी संख्या में सिंधी व्यापारी वर्ग रहता है।

सभी स्थानों पर भारतीयों का बोलबाला और सम्मान देखकर मन गदगद हो उठा।

हमारी यह यात्रा सुखद, जानकारी पूर्ण और आनंददायी रही। ढेर सारे अनुभवों के साथ हम अपने नाती के साथ स्वदेश लौट आए।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 30 – देश-परदेश – ट्विन टावर (नोएडा) ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 30 ☆ देश-परदेश – ट्विन टावर (नोएडा) ☆ श्री राकेश कुमार ☆

पूरी दुनिया में रविवार को फुरसतवार भी कहा जाता हैं। अट्ठाईस तारीख, हम बैंक पेंशनर के लिए भी भी बड़ा महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि हर सत्ताईस तारीख़ को पेंशन की राशि खातों में जमा होती है, इसलिए अगला दिन बाजार से आने वाले माह के लिए सामान खरीदने से लेकर सुविधाओं के बिलों का भुगतान और ना जाने कितने काम रहते है, पेंशन मिलने के बाद।

जेब (खाते) में आई हुई राशि को सुनियोजित ढंग से खर्चे को बिना चर्चा किए हुए अपनी महीने भर का गुज़ारा “आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया” से पूरा करना ही हमारे जैसे सेवानिवृत्त लोगों का जीवन रह गया हैं।   

यहां पूरे देश में कुछ अलग ही माहौल है, चर्चा तो सिर्फ ट्विन टॉवर की हो रही हैं। हमारा मीडिया कुछ दिन पूर्व से ही घटना स्थल पर डेरा डाल कर बैठा हुआ था।

प्रशासन, पुलिस, अग्निशमन, पॉल्यूशन विभाग, सड़क यातायात से लेकर वायु मार्ग पता नहीं कितने और विशेषज्ञ प्रकार के प्राणी इस कार्य को अंजाम करने में लगे होंगे।

दस किलोमीटर दायरे तक में रहने वाले निवासी दहशत में हैं। सी सी टी वी लोगों ने अपने घरों में लगाकर दूर से इस घटना को कैद किया। नजदीक के सुरक्षित एरिया में दृश्य का नज़ारा बड़ी बड़ी दूरबीन से देखा गया। खान पान में स्थानीय लोगों ने “गुड” का सेवन कर लिया था, ताकि वातावरण की धूल का उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर ना पड़े। आसपास की दवा की दुकानों ने एलर्जी से बचाव की दवाइयां मंगवा कर स्टॉक कर ली थी, ताकि वहां रहने वालों को अपातकाल में कोई कठिनाई ना हो।

दिल्ली और लखनऊ के कुछ बड़े टुअर ऑपरेटर ने इसको प्रोत्साहित करने के लिए पूरी बस जिसमें चारों तरफ कांच लगा हुआ है के द्वारा ट्रिप के माध्यम से इस नज़ारे को नजदीक से दिखाने के झूठे प्रचार भी कर रहे हैं।

टावर गिराने की कार्यवाही होते ही, “मीडिया दूत” और कैमरा चालक धूल और गुब्बार की परवाह किए बिना मलबे के बिलकुल पास तक घुस गए। वैसे इनको “मीडिया घुसक” की संज्ञा भी दी जाती है। ब्लास्ट का बटन किसने दबाया, उनके मन में उस समय क्या चल रहा था, पता नहीं कितनी बातें उगलवाने में इनका तजुर्बा रहता है।

ऐसा बताया जा रहा है, वहां आस पास मेले जैसा माहौल था, तो खाने पीने के स्टाल भी अवश्य लगे होंगें, बच्चों ने झूले झूल कर गिरते हुए टावर का मज़ा लिया होगा।

क्रिकेट खेल प्रेमियों का कहना है, एशिया कप में, भारत की जीत होनी निश्चित थी, इसलिए  ये तो अग्रिम जश्न के टशन थे। वैसे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज पुराने टीवी सेट की बड़ी मांग थी, इसी के मद्देनज़र दिल्ली के बड़े कबाड़ियों ने यहां से पुराने टीवी सेट वहां भेज कर चांदी काट ली थी।

नोएडा निवासी मित्र को फोन कर वहां का  हाल चाल पूछा था। बातचीत में उसने बताया की उसके बेटे की दिसंबर में शादी है, शादी का स्थान पूछने पर उसने बताया था कि जहां ट्विन टॉवर है, उसके धराशायी होने के बाद उसी खाली प्लॉट में ही शामियाना लगा कर वहीं करेगा। इतनी दूरदृष्टि हम भारतीयों में ही होती है। पुरानी कहावत है “शहर बसा नहीं और चोर पहले आ गए”।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #184 ☆ भूमिका … ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 184 ?

☆ भूमिका…  ☆

सर्व निजानिज झाल्यानंतर निजते बाई

सूर्य उगवण्या आधी रोजच उठते बाई

 

चारित्र्याला स्वच्छ ठेवण्या झटते कायम

कपड्यांसोबत आयुष्याला पिळते बाई

 

चूल तव्यासह भातुकलीचा खेळ मांडते

भाकर नंतर त्याच्याआधी जळते बाई

 

ज्या कामाला किंमत नाही का ते करते ?

जो तो म्हणतो रिकामीच तर असते बाई

 

सासू झाली टोक सुईचे नवरा सरपण

रक्त, जाळ अन् छळवादाने पिचते बाई

 

तिलाच कळते कसे करावे गोड कारले

कारल्यातला कडूपणाही गिळते बाई

 

पत्नी मुलगी बहीण माता सून भावजय

एकावेळी किती भूमिका करते बाई

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 135 – यह गुलाब सा गात… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– यह गुलाब सा गात।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 135 – यह गुलाब सा गात…  ✍

यह गुलाब सा गात तुम्हारा

तन मन में भरता सुगंध है।

 

दृष्टि विमोहित देखा करती

रूप तुम्हारा

एक जगह एकत्रित कैसे

इतना सारा

 

मुक्त कुंतला केश तुम्हारे

हैं सुरभीले

रक्त वर्ण से होंठ तुम्हारे

लाज लजीले।

 

नील झील से नयन तुम्हारे

बोल अबोले

मधुता की यह मूर्ति देखकर

संयम डोले।

 

चंदन चर्चित चारु चाँदनी

चाँद चकोरी

रंग प्रभा ने स्मृतियों की

बाँह मरोरी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 134 – “आँख में ठिठका प्रणय…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  आँख में ठिठका प्रणय)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 134 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ आँख में ठिठका प्रणय… ☆

नई बायल की

पहिन साड़ियाँ

हैं खिल उठी

नीली पहाडियाँ

 

शृंग पर स्मृति सदृश

उत्तुंग कुछ

आ जुटें मौसम समेटे

भृंग कुछ

 

नई पायल सी बजीं

वन्य फलियाँ

और गद्गद हो गईं

हैं झाड़ियाँ

 

कोंपलें परदे पर आयी

फिल्म सी

खुशबुयें काँटों के

नये इल्म सी

 

एक श्यामल किसी

घटा  जैसी

बालों से गुजरें

फूल गाडियाँ

 

होंठ पर ठहरा हुआ

संगीत

आँख में ठिठका प्रणय

भयभीत

 

दौड़ता अनुराग

आरक्त हो कर

ज्यों वहन रक्त

करती नाडियाँ

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-02-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 183 ☆ “मन में मायका…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  – “मन में मायका…”।)

☆ कविता  # 183 ☆ “मन में मायका…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

माँ हर बार 

ऐसा ही करती 

ऐसा ही सोचती 

मन की बात करती

मायका मन में होता 

पिता को याद करती

उनके अंगोछे की गांठ

में होरा का स्वाद होता

गेहूं की सुगंध होती

यादों में हरसिंगार के 

फूल खुशबू बिखेरते

मायका याद आता

तो बहुत याद आता

 याद आ जाती वो

किवाड़ की सांकल 

वो अमरूद का पेड़ 

वो अमऊआ की डाली 

वो प्यारी प्यारी सहेली 

वो अम्मा की लम्बी टेर 

 बाबू के किताबों के ढ़ेर

पगडंडी की वो पनिहारिन 

चुहुलबाज़ी वाली वो नाईन 

मुंडेर पर बैठी हुई  गौरैया

हर बार माँ याद करती 

पिता के वो अंगोछे को

जिसमें होरा और इमली

की खुशबू सलामत रहती

वो बार बार अपनी प्यारी 

मां को दिल से याद करती

और कहती मां तुम कहां हो

 फिर बड़बड़ाती हुई सो जाती 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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