(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मुक्ति दाता… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 125 ☆
☆ # मुक्ति दाता… # ☆
(बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की जयंती के अवसर पर समर्पित रचना)
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय व्यंग्य ‘कथा पुल के उद्घाटन की ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 188 ☆
☆ व्यंग्य ☆ कथा पुल के उद्घाटन की ☆
पुल उद्घाटन के लिए तैयार है। सबेरे से ही गहमागहमी है। पूरे पुल को फूलों की झालरों से सजाया गया है। सरकारी अमला पुलिस की बड़ी संख्या के साथ हाज़िर है। उद्घाटन मंत्री जी के कर-कमलों से होना है।
पुल का भूमि-पूजन चार पाँच साल पहले तब की सत्ताधारी और अब की विरोधी पार्टी ने किया था। तब पुल की लागत सात सौ करोड़ आँकी गयी थी, अब बढ़कर तेरह सौ करोड़ हो गयी। अब विरोधी पार्टी वाले वहाँ इकट्ठे होकर हल्ला मचा रहे हैं। उनका कहना है कि पुल की शुरुआत उन्होंने की थी, इसलिए उसका उद्घाटन उन्हीं के कर-कमलों से होना चाहिए। सत्ताधारी पार्टी का जवाब है कि उद्घाटन का अधिकार योजना को पूरा करने वालों का होता है, भूमि- पूजन करके भाग जाने वालों का नहीं। पुलिस हल्ला मचाने वालों से निपटने में लगी है।
मंत्री जी आ गये हैं और गहमागहमी बढ़ गयी है। बहुत से तमाशबीन इकट्ठा हो गये हैं। मीडिया वाले फोटोग्राफरों के साथ आ गये हैं। उनके बिना कोई कार्यक्रम संभव नहीं। लेकिन उद्घाटन से ऐन पहले कुछ पेंच फँस गया है। बड़े इंजीनियर साहब ने पुल के बीच में, ऊपर, फीता काटने का इन्तज़ाम किया है, लेकिन मंत्री जी ने ऊपर चढ़ने से इनकार कर दिया है। आदेश हुआ है कि फीता नीचे ही बाँधा जाए और उद्घाटन नीचे ही हो। वजह यह कि मंत्री जी के साथ सौ दो-सौ समर्थक पुल के ऊपर जाएँगे। कई पुल उद्घाटन से पहले या उद्घाटन के कुछ ही दिन के बाद बैठ गये, इसलिए मंत्री जी ‘रिस्क’ नहीं लेना चाहते। उनका कहना है कि उन्हें अभी बहुत दिन तक जनता की सेवा करना है, उनका जीवन कीमती है, इसलिए वे पुल पर चढ़ने का जोखिम नहीं उठाएंगे। परिणामतः तालियों और जयजयकार के बीच नीचे ही उद्घाटन का कार्यक्रम संपन्न हो गया।
मंत्री जी के पास भीड़ में एक मसखरा घुस आया है। हँस कर मंत्री जी से कहता है, ‘मंत्री जी, कुतुब मीनार और लाल किला पाँच सौ साल से कैसे खड़े हैं? उन पर तो रोज हजारों लोग चढ़ते उतरते हैं। ‘ मंत्री जी कोई जवाब नहीं देते। एक पुलिस वाला मसखरे को पीछे ढकेल देता है।
मंत्री जी की खुशामद करने के इच्छुक एक अधिकारी कहते हैं, ‘सर,आपका डेसीज़न बिलकुल सही है। एब्सोल्यूटली राइट। वी शुड नॉट टेक अननेसेसरी रिस्क। ‘
वे मंत्री जी के चेहरे की तरफ देख कर फिर कहते हैं, ‘सर,ये पाँच सौ साल से खड़ी इमारतें हमारे लिए प्राब्लम बनी हुई हैं। इनकी वजह से हमें बार बार शर्मिन्दा होना पड़ता है। सर, अगर हमारे पुल और सड़कें सौ साल तक चलेंगीं तो एम्प्लायमेंट जेनरेशन कैसे होगा और नयी पीढ़ी को काम कैसे मिलेगा? इसलिए मेरा तो सुझाव है, सर, कि इन पुरानी इमारतों को फौरन डिमॉलिश कर दिया जाए, उन पर फौरन बुलडोज़र चला दिया जाए। सर, इस मामले में आप कुछ कोशिश करें तो नेक्स्ट जेनरेशन आपकी बहुत थैंकफुल होगी।’
मंत्री जी ने सहमति में सिर हिलाया।
उद्घाटन के बाद पुल जनता के हितार्थ खुल गया है। अधिकारी ध्वनि-विस्तारक पर बार- बार घोषणा कर रहे हैं कि अब जनता आवे और पुल के इस्तेमाल का सुख पावे। लेकिन पुल पर सन्नाटा है। लोग दूर से टुकुर-टुकुर देख रहे हैं। कोई पुल पर पाँव नहीं धरता।
अधिकारियों में सुगबुगाहट फैल गयी—‘भरोसा नहीं है। दे डोन्ट बिलीव अस। ‘
एक अधिकारी ने पुलिस के अफसर से पूछा, ‘क्या हम पुल पर पुलिस फोर्स का मार्च करा सकते हैं? इट विल हैव अ गुड एफेक्ट। ‘
जवाब मिला, ‘नो सर,इट इज़ नॉट एडवाइज़ेबिल। फोर्स कदम मिला कर चलेगी तो पूरी फोर्स का वज़न एक साथ पुल पर पड़ेगा। इट इज़ रिस्की। ‘
अधिकारियों में फिर फुसफुसाहट है। फिर एक सीनियर अधिकारी एक युवा अधिकारी के कान में कोई मंत्र देता है और युवा अधिकारी अपना स्कूटर उठाकर निकल जाता है। बाद में पता चलता है कि उसका लक्ष्य वह चौराहा था जहाँ रोज़ मज़दूर मज़दूरी की तलाश में घंटों बैठे रहते थे। थोड़ी ही देर में वहाँ एक ट्रक में तीस चालीस मज़दूर आ गये, जिन्हें अधिकारियों ने पुल पर दौड़ा दिया। वे खुशी खुशी, बेफिक्र, पुल पर दौड़ गये। उनकी देखा-देखी कुछ और लोग अपनी हिचक को छोड़कर पुल पर चढ़ गये। फिर जनता की आवाजाही शुरू हो गयी।
इस तरह पुल पर लगा ग्रहण हटा और उसे जनता-जनार्दन के द्वारा अंगीकार किया गया।
Anonymous Litterateur of Social Media# 135 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 135)
Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.
Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.
हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 185☆ अनिर्णय
एक परिचित अपना संस्मरण सुना रहे थे। चौराहे पर लाल सिग्नल होने के कारण उनकी कार रुकी हुई थी। भीख की आस में एक बच्चे ने कार के शीशे को खटखटाया। पहले उन्होंने बच्चे को निर्विकार भाव से देखा। फिर भीतर कुछ हलचल हुई। हाथ जेब में गया। दस का नोट निकाला पर दूँ या न दूँ की ऊहापोह बनी रही। बच्चा खटखटाता रहा, नोट हथेली में दबा रहा। तभी सिग्नल हरा हो गया और ऊहापोह से छुटकारा मिल गया।
इस प्रसंग में भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने को लेकर अलग-अलग मत हो सकते हैं तथापि यह हमारे विवेचन का विषय नहीं है। हमारे चिंतन के केंद्र में है अनिर्णय।
जीवन में अनेक बार मनुष्य स्पष्ट निर्णय लेने में स्वयं को असमर्थ पाता है। कुछ लोग अनिर्णय को अस्त्र की तरह उपयोग करते हैं तो कुछ लोगों के लिए अनिर्णय ही समाधान है।
सत्य तो यह है कि अनिर्णय किसी समस्या का हल नहीं अपितु स्वयं जटिल समस्या है। अनिर्णय के शिकार व्यक्ति के जीवन में सदा एक ठहराव दृष्टिगोचर होता है। अपनी लघुकथा ‘अनिर्णय’ स्मरण हो आई है।
‘…यहाँ से रास्ता दायें, बायें और सामने, तीन दिशाओं में बँटता था। राह से अनभिज्ञ दोनों पथिकों के लिए कठिन था कि कौनसी डगर चुनें। कुछ समय किंकर्तव्यविमूढ़ -से ठिठके रहे दोनों।
फिर एक मुड़ गया बायें और चल पड़ा। बहुत दूर तक चलने के बाद उसे समझ में आया कि यह भूलभुलैया है। रास्ता कहीं नहीं जाता। घूम फिरकर एक ही बिंदु पर लौट आता है। बायें आने का, गलत दिशा चुनने का दुख हुआ उसे। वह फिर चल पड़ा तिराहे की ओर, जहाँ से यात्रा आरंभ की थी।
इस बार तिराहे से उसने दाहिने हाथ जानेवाला रास्ता चुना। आगे उसका क्या हुआ, यह तो पता नहीं पर दूसरा पथिक अब तक तिराहे पर खड़ा है, वैसा ही किंकर्तव्यविमूढ़, राह कौनसी जाऊँ का संभ्रम लिए।
लेखक ने लिखा, ‘गलत निर्णय, मनुष्य की ऊर्जा और समय का बड़े पैमाने पर नाश करता है। तब भी गलत निर्णय को सुधारा जा सकता है पर अनिर्णय मनुष्य के जीवन का ही नाश कर डालता है। मन का संभ्रम, तन को जकड़ लेता है। तन-मन का साझा पक्षाघात असाध्य होता है…..।’
समस्या के असाध्य होने की जड़ में बहुधा अनिर्णय ही होता है। संत कबीर ने लिखा है,
काल करे सो आज करे, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब?
निर्णय विचारपूर्वक लें। आवश्यकता पड़ने पर निर्णय बदलें पर अनिर्णय में न रहें।.. इति।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “अवधी हाइकु सलिला”।)
(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)
☆ राजगढ़ में लघुकथा सम्मेलन ☆
राजस्थान के कस्बे राजगढ़ में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के सहयोग से साहित्य समिति ने दो दिवसीय लघुकथा सम्मेलन आयोजित किया । इसका उद्घाटन सादुलपुर की विधायक व प्रसिद्ध खिलाड़ी कृष्णा पूनिया व अकादमी के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने किया । इसमें देश भर से कम से कम चालीस लघुकथाकार शामिल हुए और दोनों दिन लघुकथा पाठ के सत्र बहुत ही प्रभावशाली रहे । उद्घाटन सत्र में कुछ पत्रिकाओं व लघुकथा संग्रहों का विमोचन भी किया गया । इस सफल आयोजन के लिये डाॅ रामकुमार घोटड़ बधाई के पात्र हैं जो हर समय अतिथियों की सेवा सत्कार में जुटे रहे । इनकी धर्मपत्नी लाजवंती व बेटी डाॅ प्रेरणा भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ रहीं । ऐसा आयोजन मुश्किल से हो पाता है पर यह बहुत स्मरणीय रहा । इससे पहले पंजाब की मिन्नी संस्था ने पिछले वर्ष अक्तूबर माह में लघुकथा सम्मेलन किया था ।
कथा संवाद के सम्मान : प्रसिद्ध कथाकार से रा यात्री के बेटे आलोक यात्री, संभाष चंदर व शिवराज मिलकर गाजियाबाद में चला रहे हैं -कथा संवाद ! इसमें प्रतिमाह कथा गोष्ठी का आयोजन करते हैं । अगले माह मई मे वे देने जा रहे हैं कथा सम्मान ! इसमें अनेक नामों के बीच कथाकर सिनीवाली का नाम उल्लेखनीय है । वे गाजियाबाद में ही रहती हैं । उनके नये कथा संग्रह का नाम है -गुलाबी नदी की मछलियां ! इसमें नौ कहानियां संकलित हैं और बहुत ही प्रभावशाली हैं । आने वाले समय की महत्त्वपूर्ण कथाकार को सम्मानित किये जाने की घोषणा पर बधाई ।
मुम्बई में बैठकी :जहां जहां लेखक जाते हैं, वहीं वहीं रचनाकार उनके स्वागत् करें, गोष्ठियां करें तो कितना अच्छा हो । ऐसे ही खुशकिस्मत लेखक हैं व्यंग्य यात्रा के संपादक व प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ प्रेम जनमेजय जिनको मुम्बई पहुंचने पर भी पूरा प्यार, सम्मान व स्नेह मिलता है। इसी स्नेह के चलते वे जब पुष्पा भारती से मिले तब एक नयी पुस्तक ने जन्म लिया जो प्रसिद्ध रचनाकार व धर्मयुग के यशस्वी संपादक धर्मवीर भारती पर आधारित रही बल्कि एक सम्मान भी तय हुआ धर्मवीर भारती की स्मृति में । मुम्बई में उनका बेटा रहता है, जब वे वहां जाते हैं तो मुम्बईकर हो जाते हैं। आजकल मुम्बईकर हैं डाॅ प्रेम जनमेजय! वे कहते हैं कि मुम्बई में मेरा आत्मीय साहित्यिक परिवार है। इस परिवार के एक महत्वपूर्ण हिस्से–हरीश पाठक, संजीव निगम और सुभाष काबरा संग बैठकी का मुक्तानन्द प्राप्त किया। इनके ताज़ा व्यंग्य संकलन ‘सींग वाले गधे’ और व्यंग्य यात्रा के ताजा अंक ने, सही हाथों में पहुंचकर इस आनंद को दो दूनी चार कर दिया ।
भिवानी में नाट्य कार्यशाला :मीरा कल्चरल सोसायटी के संचालक व रंगकर्मी सोनू रोझिया ने आजकल भिवानी में नाट्य कार्यशाला चला रखी है । इसे अनोखी कार्यशाला भी कह सकते हैं क्योंकि इसमें साठ वर्ष से ऊपर की महिलायें भी आ रही हैं और सारी महिलायें ही हैं । बधाई ।
हिसार में ईना , मीना, डीका : इसी बीच हिसार की नृत्यम् संस्था की ओर से ईना , मीना , डीका बाल नाटक का मंचन किया गया जिसमें छब्बीस कलाकारों ने अपना कमाल दिखाया । यह बाल नाटक गीत, संगीत व सीख का मिश्रण है । तीन लड़कियाँ अनाथाश्रम से भागती हैं और इसी भागमभाग में वे दहेज के लोभी दूल्हे , बच्ची की खरीद फरोख्त कर रहे लोभी व्यक्ति और वृद्धा मां को रेलवे स्टेशन पर छोड़कर गये बेटे से टकराती हैं और उन्हें सबक सिखाती हैं । इसी बीच अनाथाश्रम का मैनेजर दो गुंडों के साथ इन्हें पकड़ना चाहता है जबकि वे इन्हें भी धराशायी कर देती हैं । इस तरह बहुत ही प्रभावशाली मंचन संजय सेठी और ज्योति चुघ के निर्देशन में ! बहुत बहुत बधाई ।
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “दिल में छुपा रखा दर्द …”।)
ग़ज़ल # 71 – “दिल में छुपा रखा दर्द…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’