मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 254 ☆ त्या  वाटेवर… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 254 ?

☆ त्या  वाटेवर… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

गतकाळाचा  जन्म जिव्हाळा

आठवणींचा फक्त पाचोळा

त्या वाटेवर ……

 

हुंदडणारे मुग्ध बालपण

नात्यांची गहिरी गुंफण

त्या वाटेवर …….

 

खळखळणारा  अवखळ ओढा

सोनपिवळ्या तरवडाची  गर्दी

पाण्या मधली  दाट लव्हाळी

इथेच होती एकेकाळी …….

पाहते आता ठक्क कोरडी

फुफाटलेली ओढ्याची जागा

त्या वाटेवर ……

 

बुजलेल्या  ढव-याची  खूण,

पाषाणाची  जुनी शुष्क डोण

त्या वाटेवर …….

 

दगडी वाड्याच्या  जागी आता

बोरी ,बाभळी आणि  सराटा ,

परी वास्तुचे  रक्षण करतो ,

भुजंग काळाचा निरंतर …..

त्या वाटेवर ………..

© प्रभा सोनवणे

१४ नोव्हेंबर २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार

पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “कवितेचे झाड….” ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ ☆

सौ विजया कैलास हिरेमठ

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “कवितेचे झाड…. ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ 

मनास अंकुर फुटता

भावनांचा जन्म होई

शब्दातून मग कवितेस

फुटे नवी पालवी….

*

अनुभवांचे खतपाणी

संवेदनांचे सिंचन

विचारांची निगराणी

कल्पना वास्तवाचे मिलन…

*

कधी मोहर कधी पानगळ

कवितेचे झाड अवखळ

तिच्यासोबत मी कणखर

आणि जगणे सहज, सुंदर….

*

प्रेम आनंदाने बहरते

कवितेचे झाड माझे

मायेच्या सावलीत त्याच्या

ही शब्दकळी सुखावते….

💞शब्दकळी विजया 💞 

©  सौ विजया कैलास हिरेमठ

पत्ता – संवादिनी ,सांगली

मोबा. – 95117 62351

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 85 – दाग दामन में ऐसा लगाकर गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – चातक व्रत का वरण किया है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 85 – दाग दामन में ऐसा लगाकर गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मेरा दिल, इस तरह वो दुखाकर गये 

मेरे दुश्मन के सँग, मुस्कुराकर गये

*

आशियाना मेरा, फूंक जिनने दिया 

वो, नये घर का नक्शा, दिखाकर गये

*

याद मुझको नहीं, अपने घर का पता 

वो, खुदा का ठिकाना, बताकर गये

*

साफ करना जिसे, चाहता मैं नहीं 

दाग दामन में ऐसा लगाकर गये

*

जीते जी, जो अछूतों के जैसे रहे 

राख, गंगा में उनकी, बहाकर गये

*

उनके बलिदान पर, गर्व करता वतन 

राष्ट्र चरणों पर, जो सिर चढ़ाकर गये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 157 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 157 – मनोज के दोहे ☆

अविश्वास के दौर ने, बड़ी खींच दी रेख।

संबंधों की बानगी, समय बिगड़ता देख।।

 *

रामायण के पात्र सब,बहुविध दें संदेश।

यश अपयश की राह चुन, हम बदलें परिवेश।।

 *

विद्या पा जाग्रत करें, अपना ज्ञान विवेक।

जीवन सफल बनाइए, राह बनेगी नेक।।

 *

नेकी की दीवार से, गढ़िए नए मुकाम।

मानवता समृद्धि से, खुश होते श्री राम।।

कालचक्र अविरल चला, गढ़ी गई यह सृष्टि।

फिर उदास किस बात पर, बदलें अपनी दृष्टि।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मेरी डायरी के पन्ने से # 39 – लघुकथा – संस्कार ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  लघुकथा – संस्कार)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 39 – लघुकथा – संस्कार ?

“भाभी आपके कॉलेज की सहेलियाँ आपसे मिलने आईं हैं।” शुभ्रा ने अपनी भाभी तृषा से कहा।

तृषा अपनी सास के साथ बैठी थी।आजकल दिन भर कोई न कोई मिलने आया करता था।अभी कुछ दिन ही तो हुए थे उसके ससुर जी का देहांत हुआ था। वह आजकल सप्ताह भर छुट्टी पर थी।वह तुरंत  ड्राइंग रूम की तरफ़ चलने को उद्यत हुई।

सास ने कहा ” बेटा पानी तो पूछ लेना।अब समय बदल गया है।” “जी माँ।”  कहकर तृषा सहेलियों के बीच आ गई।

पहले सभी एक एक कर उसके गले लगीं और शोक व्यक्त किया। नेहा तृषा की करीबी सखी थी।उसने अचानक यह सब कैसे हो गया पूछा तो तृषा रोने लगी और आँसू पोंछती हुई ससुर जी के अचानक गुज़र जाने का वृतांत सुनाने लगी।

नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर ढाढ़स बँधाया और कहा,” अब कुछ समय वर्क फ्रॉम होम कर ले।सासू माँ को सहारा हो जाएगा।”

“हाँ , ऐसा ही कुछ सोच रहे हैं। हम तीनों मिलकर ही वर्क फ्रॉम होम करेंगे तो माँ के पास हमेशा ही कोई न कोई होगा।”

“दो-तीन महीने में संभल जाएँगी वे। खाना बना रही हो तुम लोग?” सुमन ने पूछा।

“नहीं रे, मम्मी के घर से तीनों टाइम का भोजन आता है। मम्मी पापा शाम का खाना लेकर स्वयं माँ से मिलने आते हैं। कभी बुआ जी आती हैं तो वे भोजन लेकर आती हैं।कभी छोटे चाचू और चाची आते हैं। दिन भर लोगों का आना जाना लगा रहता है।” तृषा बोली।

“तेरा सारा परिवार इसी शहर में है तो सब मिलकर संभाल लेते हैं। यही तो फायदा होता है साथ रहने से ।” एक सहेली बोली

तृषा ने चाय के लिए पूछा तो सबने मना किया। अब वे आपस में बातें करने लगीं। इतने में नेहा ने कहा- तृषा इस महीने में तेरी किट्टी है। अब तो गेट टूगेदर न हो पाएगा घर पर। क्या करना है बता।”

एक सखी बोली- अपने पापा के घर जा रही है कहकर कुछ घंटों के लिए निकल जाना, फिर किसी होटल में पार्टी कर लेंगे।”

तृषा अवाक सी उसकी ओर देखकर बोली- मैं ऐसा नहीं कर सकती। मेरे ससुर जी मेरे भी पिता थे। उनके निधन पर मुझे भी उतना ही दुख है जितना शेखर और शुभ्रा को है। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी। इस बार की किट्टी कोई और उठा ले यह ग्रुप में बता दो।

नेहा ने कहा -“ठीक है यही सही है। अपना ध्यान रख। याद रख तेरे भीतर भी एक प्राण पल रहा है।ह र समय उदास रहना उसके लिए भी ठीक नहीं।”

सखियाँ चली गईं। शुभ्रा कमरे के भीतर से सभी सहेलियों की बात सुन रही थी। उसने माँ से जाकर सहेलियों की आपसी चर्चा का ज़िक्र किया।

माँ बोली, ” सुसंस्कृत घर की बेटियाँ दोनों घरों को जोड़े रखतीहैं। केवल पढ़ लिख लेना पर्याप्त नहीं होता। यही तो संस्कार है।

© सुश्री ऋता सिंह

23/11/24

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 322 ☆ लघुकथा – “काउंटर गर्ल…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 322 ☆

?  लघुकथा – काउंटर गर्ल…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

उसने बचपन से ही पढ़ा था रंग, रूप, धर्म, भाषा, क्षेत्र के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों के सभी अधिकार समान होते हैं । सिद्धांत के अनुसार नौकरी में चयन का आधार योग्यता मात्र होती है।

किन्तु आज जब इस बड़े से चमकदार शो रूम में उसका चयन काउंटर गर्ल के रूप में हुआ तो ज्वाइनिंग के लिए जाते हुए उसे अहसास था कि उसकी योग्यता में उसका रंग रूप, सुंदरता, यौवन ही पहला क्राइटेरिया था । यह ठीक है कि उसका मृदु भाषी होना, और प्रभावी व्यक्तित्व भी उसकी बड़ी योग्यता थी, पर वह समझ रही थी कि अलिखित योग्यता उसकी सुंदरता ही है। वह सोच रही थी, एयर होस्टेस, एस्कार्ट, निजी सहायक कितने ही पद ऐसे होते हैं जिनमें यह अलिखित योग्यता ही चयन की सर्वाधिक प्रभावी, मानक क्षमता है।

काले टाइडी लिबास में धवल काउंटर पर बैठी वह सोच रही थी नारी को प्रकृति प्रदत्त कोमलता तथा पुरुष को प्रदत्त ही मैन कैरेक्टर को स्वीकार करने में आखिर गलत क्या है ?

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 113 – देश-परदेश – न्यौता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 113 ☆ देश-परदेश – न्यौता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

न्यौता, आमंत्रण, बुलावा… 

इन्विटेशन ये एक ऐसी क्रिया है, जो किसी भी पारिवारिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, निज़ी आयोजनों का पहला कदम होता है।

बचपन में भी पिताजी को इस प्रकार के आमंत्रण आते थे। कभी वो कहते मैं अकेला ही जाऊंगा क्योंकि आमंत्रण सिर्फ मेरे नाम से है। परिवार सहित आमंत्रण आने पर हम सब भाई बहन भी कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

शनै शनै न्यौता की परिभाषा समझ में आने लगी थी। जब कभी हमारे परिवार में कोई आयोजन होता तो भी “जैसे को तैसा” वाला फॉर्मूला लगा कर ही आमंत्रित किया जाता था। जिसने हमे परिवार सहित बुलाया उसको हम भी परिवार सहित बुलाते थे।

दूर दराज के शहर में रहने वाले रिश्तेदारों को पोस्ट कार्ड द्वारा अग्रिम सूचना प्रेषित की जाती थी। आयोजन से कुछ दिन पूर्व आमंत्रण पत्र भी भेजा जाता था। राजा महाराजा अपने दूत और कभी कभी तो कबूतर पक्षी से भी आमंत्रण भिजवाते थे। बहन और बेटी को तो निजी रूप में उसके शहर में जाकर पूरी इज्जत और आदर से आग्रह किया जाता था। लेकिन फिर भी फूफा कई बार नाराज़ हो जाते थे।

सदी के महानायक बिग बी ने जब अपने पुत्र के विवाह में कुछ मित्रों को आमंत्रित नहीं किया था, तो फिल्म उद्योग के नामी नाम दिलीप साहब, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोगों ने विवाह की मिठाई भी लेने से सार्वजनिक रूप से इन्कार कर दिया था।

“न्यौता में घोचा” ये किसी भी आयोजन में होना स्वाभाविक है। आज कल तो फोन, व्हाट्स ऐप, कार्ड आदि का प्रयोग होता हैं। आयोजन कर्ता के लिए ये सब से कठिन कार्य होता है।

नाराज़ तो लोग इस बात से भी हो जाते है, की फलां ने व्हाट्स ऐप का नया ग्रुप बनाया है, लेकिन हमें उसमें नहीं जोड़ा। हमने तो उसे अपने ग्रुप में सबसे पहले सदस्य बनाया था।

सेवानिवृत साथी भी कार्यरत साथियों के न्योते की बाट जोहते रहते हैं। फिर जब निमंत्रण नहीं आता तो कहते है, हमने तो उनको परिवार सहित बुलाया था, लेकिन वो अब भूल गए। सेवानिवृत साथी ये भूल जाते है, कि जब उन्होंने बुलाया था, तो दोनों सहकर्मी थे। अब दोनों की परिस्थितियां भिन्न हैं।

बिन बुलाए मेहमान बनने भी कोई बुराई नहीं हैं। समाज में ऐसे लोगों को ठसयीएल की संज्ञा दी गई हैं। सभ्य लोग तो इसको “मान ना मान मैं तेरा मेहमान” कह देते हैं। बचपन में कुछ मित्रों के साथ हमने भी बिना बुलाए बहुत सारे कार्यक्रमों में खूब मॉल उड़ाया था। अब आने वाले नए वर्ष की दावतों में ऐसे प्रयास करने पड़ेंगे। क्योंकि उम्र दराज लोगों को कम ही इस प्रकार के न्योते मिलते हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #266 ☆ वैभवशाली नक्षी… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 266 ?

☆ वैभवशाली नक्षी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

मोर पिसावर कुठून सुंदर आली नक्षी

मोर नाचतो दिसते नखरेवाली नक्षी

*

डोंगर माथी विशाल मंदिर कसे बांधले

छान वारसा येथे वैभवशाली नक्षी

*

ती ओठांना लावुन आली होती लाली

तिने काढली होती माझ्या गाली नक्षी

*

असेल अबला म्हणून त्याने छेड काढली

तिने काढली त्याच्या कानाखाली नक्षी

*

हातावरती हिरवी मेंदी तिने काढली

रातभरातच लाल कशीही झाली नक्षी

*

वेणी गजरा तिला आवडे सुगंध त्याचा

फुला फुलांची डोक्यावरती ल्याली नक्षी

*

अडव्या-तिडव्या फांद्यांचे तो रूप बदलतो

त्या झाडावर करतो तो वनमाली नक्षी

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ काव्यतथ्य… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ काव्यतथ्य… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

तुझ्या नियतीच्या बंधनात

माझ्या शब्दअटकेचा गुन्हा

वारंवार अपराध घडो

जणू गोकूळी राधेचा कान्हा.

*

भाव मनातील घळचोरी

हृदयाचे दार खोले वेळ

उगीच हसून ती सुटका

बंदिशाळेत प्रेमाच्या गळ.

*

म्हणून का वचने घ्यावीत

प्रिया ओठात शब्दांचे सत्य

कवणात गातात भाकिते

भेट घडेल, रचिते तथ्य.

 

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भावना… ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

सौ. वृंदा गंभीर

? कवितेचा उत्सव ?

भावनासौ. वृंदा गंभीर

कंठात दाटून आल्या भावना

सखे जरा समजून घे ना

प्रिये झालो मी तुझा दास

तू तुझ्यात सामावून घे ना

*

होतो पळत रात्रं दिवस

वाट काही सापडेना

तुझी सावली दिसें परी

तुझा सहवास मज मिळेना

*

हरवलो मी स्वतःतून

तुझी आठवण सखे जाईना

का पळतेस अशी दूर तू

विरह हा मज सहवेना

*

शोधले मनाने तुला मी

प्राण हा तुलाच दिला

तुझा जीव ही मलाच दे ना

पुरे झाले आता, तुझाच

होऊ दे ना

© सौ. वृंदा पंकज गंभीर (दत्तकन्या)

न-हे, पुणे. – मो न. 8799843148

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares