हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 144 ☆ चेतना की शक्ति… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “चेतना की शक्ति…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 144 ☆

☆ चेतना की शक्ति ☆

हमको अपनी अप लाइन को मजबूत रखना चाहिए। डाउन लाइन बदलती रहेगी क्योंकि उसके अंदर स्थायित्व का अभाव होता है। थोड़े से मानसिक दबाब को वो आत्मसम्मान का मुद्दा बनाकर कार्य छोड़ देते हैं, जबकि ऊपरी स्तर पर बैठे पदाधिकारी समस्याओं को चैलेंज मानकर उनका हल ढूढ़ते हैं।

चेतना के स्तर को बढ़ाने के लिए अच्छी संगत होनी चाहिए। संगत की रंगत तो जग जाहिर है। सत्संग से अच्छा वातावरण निर्मित होता है। वैचारिक रूप से समृद्ध व्यक्ति निरन्तर अपने कार्यों में जुटे रहते हैं। हमारे आसपास आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो सुखीराम का मंत्र अपनाते हुए जीवन व्यतीत करते जा रहे हैं। सुखीराम जी का मूलमंत्र यही था कि आराम से कार्य करो। अब समस्या ये थी कि काम कैसे हो…? जहाँ आराम मिला वहाँ आलस आ धमकता बस कार्य में बाधा आती जाती है।  एक व्यक्ति जो नियमित रूप से कुछ न कुछ करता रहेगा वो अवश्य ही मंजिल को पा लेगा लेकिन जो शुरुआत जोर – शोर से करेगा फिर राह बदल कर दूसरी दिशा में चल देगा वो कैसे विजेता बन सकता है।

Late और latest में केवल st का ही अंतर होता है किंतु एक देरी को दर्शाता है तो दूसरा नवीनता को दोनों परस्पर विरोधी अर्थ रखते हुए भी words में समानता रखते हैं अर्थात केवल सच्चे मन से कार्य करते रहें अवश्य ही सब कुछ मुट्ठी में होगा। प्राकृतिक परिवेश से जुड़े हुए लोग  आसानी से समस्याओं को हल करते जाते हैं, उनके साथ ब्रह्मांड की शक्ति जो जुड़ जाती है। यही कारण है कि हम प्रकृतिमयी वातावरण से जुड़कर प्रसन्न होते हैं।

अभी भी समय है चेत जाइये और कुछ न कुछ सार्थक करें, ठग बंधन से अच्छा ऐसा गठबंधन होना चाहिए जो शिखर पर स्थापित होने का दम खम रखता हो।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 206 ☆ आलेख – हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 206 ☆  

? आलेख – हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी ?

पिन कोड ४६२०१६ मतलब, शिवाजी नगर भोपाल ! इसलिये विशेष रूप से भोपाल वासियों को तो छत्रपति शिवाजी के बारे में संज्ञान होना ही चाहिये. देश के अनेक नगरों में शिवाजी नगर हैं, कई चौराहों, पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर छत्रपति शिवाजी की मूर्तियां स्थापित हैं. वर्तमान में गुजरात में बनी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार वल्लभ भाई पटेल की ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ है, जो 182 मीटर ऊंची है. मुम्बई में अरब सागर में शिवाजी स्मारक प्रस्तावित है, जहां इससे भी उंची १९० मीटर की सिवाजी महाराज की प्रतिमा प्रस्तावित है. अनेक योजनायें उनके नाम पर हैं, जबकि शिवाजी महाराज को गुजरे हुये लगभग ३४० वर्ष से अधिक हो चुके हैं. उनका देहान्त ३ अप्रैल १६८० को रायगढ़ में हुआ था. उनका जन्म १९ फरवरी १६३० में हुआ था. उनका शासनकाल ६ जून १६७४ से उनके देहान्त तक की स्वल्प अवधि ही रही, पर इतने छोटे समय में भी उन्होंने जो नीतियां अपनाईं उनने उन्हें छत्रपति बना कर भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय कर दिया. वे एक कुशल शासक, सैन्य रणनीतिकार, वीर योद्धा, मुगलों का सामना करने वाले, सभी धर्मों का सम्मान करने वाले और देश में हिन्दू राज्य के पुनर्संस्थापक थे. यही कारण है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी का नाम प्रभावी है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा शिव सेना शिवाजी को प्रमुखता से आईकान के रूप में प्रस्तुत करती हैं.

जब मुगल शासको का हिन्दू दमन पराकाष्ठा पर था तब हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए ही उन्होंने 1674 ई. हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी. उनकी माता जीजाबाई के दिये संस्कार ने बचपन से ही उनके मन में हिन्दुत्व की प्रबल भावना भर दी थी. ऐसे में उनका उद्देश्य हिन्दुओं में आत्म सुरक्षा का भाव जागृत करना, सभी को भारत के सदाशयी मिलनसार हिन्दू चरित्र से परिचित कराना था. मुगल आक्रमणकारियों के शोषण, अन्याय, माताओं, बहनों पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार, प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और हिंदू धार्मिक व सांस्कृतिक स्थलों को नष्ट करने के परिणामस्वरूप पूरा देश पीड़ित था. जनमानस मानसिक रूप से बेहद टूटा हुआ था. ऐसे समय में भक्तिकालीन साहित्य ने जहां भारत की सांस्कृतिक तथा धार्मिक चेतना में प्राण फूंका वहीं राजनैतिक प्रभुत्व की इच्छा शक्ति जगाने, बिखरते हुये हिन्दू राजाओ को एक जुट कर उनमें नई ताकत का संचार करने का कार्य श्रीमंत छत्रपति शिवाजी ने किया. उन्होंने ‘हिंदवी स्वराज्य अभियान’ नामक आंदोलन शुरू किया. शिवाजी की चतुराई पूर्ण रणनीतियों के अनेक किस्से लोक प्रिय और प्रेरक हैं, ऐसे हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी को कोटिशः नमन.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #135 – “बाल कहानी – कुछ मीठा हो जाए” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक कहानी बाल कहानी – कुछ मीठा हो जाए)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 135 ☆

 ☆ “बाल कहानी – कुछ मीठा हो जाए” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’   

गोलू गधे को आज फिर मीठा खाने की इच्छा हुई। उसने गबरू गधे को ढूँढा। वह अपने घर पर नहीं था। कुछ दिन पहले उसी ने गोलू को मीठी चीज ला कर दी थी। वह उसे बहुत अच्छी लगी थी। मगर वह क्या चीज थी? उसका नाम क्या था? उसे मालूम नहीं था।

आज ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से उसका मुँह जल रहा था। उसे अपने मुँह की जलन मिटानी थी। इसलिए वह पास के खेत पर गया। यहीं से गबरू गधा वह खाने की चीज लाया था। वहाँ जाकर उसने इधर-उधर देखा। खेत पर कोई नहीं था। तभी उसे मंकी बन्दर ने आवाज दी, “अरे गोलू भाई किसे ढूंढ रहे हो? इस पेड़ के ऊपर देखो।”
“ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से मेरा मुँह जल रहा है। मुझे कुछ मीठा खाना है।” गोलू ने कहा तो मंकी बन्दर कुछ फेंकते हुए बोला, “लो पकड़ो। इसे चूस कर खाओ। यह मीठा है।”

“मगर, इसका नाम क्या है?” गोलू ने पूछा तो मंकी बोला, “इसे आम कहते हैं।” 

“जी अच्छा, ” कह कर गोलू ने आम चूसा। मगर, वह खट्टा-मीठा था। उसे आम अच्छा नहीं लगा।

“मुझे तो मीठी चीज़ खानी थी,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया।

कुछ दूर जाने पर उसे हीरू हिरण मिला।

“मुझे कुछ मीठी चीज खाने को मिलेगी ? मेरा मुंह जल रहा है,” गोलू ने उसका अभिवादन करने के बाद कहा तो हीरू ने उसे एक हरी चीज पकड़ा दी, “इसे खाओ। यह मीठा लगेगा।”

गोलू ने वह चीज खाई, “यह तो तुरतुरीऔर मीठी है। मगर मुझे तो केवल मीठा खाना था,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया। उसके दिमाग में गबरू की लाई हुई मीठी चीज़ खाने की इच्छा थी। मगर उसे उस चीज़ का नाम याद नहीं आ रहा था।

वह आगे बढ़ा। उसे चीकू खरगोश मिला। वह लाल-लाल चीज़ छील-छील कर उसके दाने निकाल कर खा रहा था। गोलू ने उससे अपनी मीठा खाने की इच्छा जाहिर की। चीकू ने वह लाल-लाल चीज उसे पकड़ा दी, “इसे खाओ। यह फल मीठा है। इसे अनार कहते हैं।”

गोलू ने अनार खाया, “यह उस जैसा मीठा नहीं है,” कहते हुए वह आगे बढ़ गया। 

रास्ते में उसे बौबौ बकरी मिली। उसने बौबौ को भी अपनी इच्छा बताई, “आज मेरा मुँह जल रहा है। मुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है।”

बौबौ ने एक पेड़ से पीली- पोली दो लम्बी चीजें दीं, “इस फल को खा लो। यह मीठा है।”

गोलू ने वह फल खाया, “अरे वाह! इसका स्वाद बहुत बढ़िया है। मगर उस चीज जैसा नहीं है। मुझे वही मीठी चीज खानी है,” कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया।

अप्पू हाथी अपने खेत की रखवाली कर रहा था। उसके पास जाकर गोलू ने अपनी इच्छा जाहिर की, “अप्पू भाई!  आज मुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है।”

यह सुनकर अप्पू बोला, “तब तो तुम बहुत सही जगह आए हो।”

यह सुनकर गोलू खुश हो गया, “यानी मीठा खाने की मेरी इच्छा पूरी हो सकती है।”

“हाँ हाँ क्यों नहीं,” अप्पू ने कहा, “मीठी शक्कर जिस चीज से बनती है, वह चीज मेरे खेत में उगी है।” कहते हुए अप्पू ने एक गन्ना तोड़ कर गोलू को दे दिया, “इसे खाओ।”
गोलू ने कभी गन्ना नहीं चूसा था। उसने झट से गन्ने पर दांत गड़ा दिए। गन्ना मजबूत था। उसके दांत हिल गए।

“अरे भाई अप्पू। तुमने मुझे यह क्या दे दिया। मैंने तुम से मीठा खाने के लिए माँगा था। तुमने मुझे बाँस पकड़ा दिया। कभी बाँस भी मीठा होता है।” यह कहते हुए गोलू ने बुरा-सा मुँह बनाया।

यह देखकर अप्पू हँसा, “अरे भाई गोलू! नाराज क्यों होते हो। इसे ऐसे खाते (चूसते) हैं, ” कहते हुए अप्पू ने पहले गन्ना छीला, फिर उसका थोड़ा-सा टुकड़ा तोड़ कर मुँह में डाला। उसे अच्छे से चबाकर चूसा। कचरे को मुँह से निकाल कर फेंक दिया।

“इसे इस तरह चूसा जाता है। तभी इसके अन्दर का रस मुँह में जाता है।” 

यह सुनकर गोलू बोला, “मगर, मुझे तो लम्बी-लम्बी, लाल-लाल और पीछे से मोटी और आगे से पतली यानी मूली जैसी लाल व मीठी चीज़ खानी है। वह मुझे बहुत अच्छी लगती है।”

यह सुन कर अप्पू हँसा, “अरे भाई गोलू। यूँ क्यों नहीं कहते हो कि तुम्हें गाजर खाना है,” यह कहते हुए अप्पू ने अपने खेत में लगे दो चार पौधे जमीन से उखाड़कर उनको पानी से धो कर गोलू को दे दिए।

“यह लो। यह मीठी गाजर खाओ।”

बस! फिर क्या था? गोलू खुश हो गया। उसे उसकी पसन्द की मीठी चीज खाने को मिल गई थी। उसने जी भर कर मीठी गाजर खाई। उसका नाम याद किया और वापस लौट गया।

वह रास्ते भर गाजर, गाजर, गाजर, गाजर रटता जा रहा था। ताकि वह गाजर का नाम याद रख सके। इस तरह उसकी गाजर खाने की इच्छा पूरी हो गई।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 155 ☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 155 ☆

☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

रंग- बिरंगी मीन घूमतीं

     बड़े जार के अंदर।

ढूँढ़ रही हैं नदियाँ कल- कल

     गहरा नील समंदर।।

 

बार – बार टकरातीं तट से

     दूर कहीं मंजिल है।

चारों ओर लगे है ऐसा

     खड़ी हर तरफ हिल है।।

 

सूरज की किरणों सी चमचम

       मीन हैं प्यारी- प्यारी।

अपनी माँ से बिछुड़ घूमतीं

      नन्ही राजकुमारी।।

 

कैद नहीं मीनों को भाए

     आजादी सबको प्यारी।

शौक पालते अपने सुख को

       गजब है दुनियादारी।।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #156 ☆ संत कबीर… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 156 ☆ संत कबीर… ☆ श्री सुजित कदम 

सत्य कर्म सिद्धांताचे

संत कबीर द्योतक

पुरोगामी संत कवी

दोहा अभंग जनक…! १

 

ज्येष्ठ पौर्णिमेचा दिन

कबिरांचा जन्म दिन

देव आहे बंधु सखा

जपू नाते रात्रंदिन….! २

 

कर्म सिद्धांताचे बीज

संत कबीरांची वाणी

धर्म भाषा प्रांतापार

निर्मियली बोलगाणी….! ३

 

सांगे कबिराचे दोहे

सोडा साथ अज्ञानाची

भाषा संस्कृती अभ्यास

शिकवण विज्ञानाची…! ४

 

बोली भाषा शिकोनीया

साधलासे सुसंवाद

अनुभवी विचारांना

व्यक्त केले निर्विवाद…! ५

 

एकमत एकजूट

दूर केला भेदभाव

सामाजिक भेदभाव

शोषणाचे नाही नाव…! ६

 

समाजाचे अवगुण

परखड सांगितले

जसा प्रांत तशी भाषा

तत्त्वज्ञान वर्णियले…! ७

 

राजस्थानी नी पंजाबी

खडी बोली ब्रजभाषा

कधी अवधी परबी

प्रेममयी ज्ञान दिशा…! ८

 

ग्रंथ बीजक प्रसिद्ध

कबीरांची शब्दावली

जीवनाचे तत्त्वज्ञान

प्रेममय ग्रंथावली…! ९

 

नाथ संप्रदाय आणि

सुफी गीत परंपरा

सत्य अहिंसा पुजा

प्रेम देई नयवरा…! १०

 

संत कबीर प्रवास

चारीधाम भारतात

काशीमधे कार्यरत

दोहा समाज मनात…! ११

 

आहे प्रयत्नात मश

मनोमनी रूजविले

कर्ममेळ रामभक्ती

जगा निर्भय ठेविले…! १२

 

हिंदू मुस्लिम ऐक्याचा

केला नित्य पुरस्कार

साखी सबद रमैनी

सधुक्कडी आविष्कार…! १३

 

बाबा साहेबांनी केले

संत कबीरांना गुरू

कबीरांचे उपदेश

वाट कल्याणाची सुरू…! १४

 

काशीतले विणकर

वस्त्र विणले रेशमी

संत कबीर महात्मा

ज्ञान संचय बेगमी…! १५

 

सुख दुःख केला शेला

हाती चरखा घेऊन

जरतारी रामनाम

दिलें काळीज विणून…! १६

 

संत्यमार्ग चालण्याची

दिली जनास प्रेरणा

प्रेम वाटा जनलोकी

दिली नवी संकल्पना…! १७

 

मगहर तीर्थक्षेत्री

झाला जीवनाचा अंत

साधा भोळा विणकर

अलौकिक कवी संत…! १८

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – कविता स्मरण… – शांता शेल्के ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– कविता स्मरण… – शांता शेल्के  ? ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला केळकर 

मावळतीला गर्द शेंदरी रंग पसरले

जसे कुणाचे जन्मभराचे भान विसरले

जखम जिवाची हलके हलके भरून यावी

तसे फिकटले, फिकट रंग ते मग ओसरले

घेरित आल्या काळोखाच्या वत्सल छाया

दुःखाचीही अशी लागते अनवट माया

आक्रसताना जग भवतीचे इवले झाले

इवले झाले आणिक मजला घेरित आले

मी दुःखाच्या कुपीत आता मिटते आहे

एक विखारी सुगंध त्याचा लुटते आहे

सुखदुःखाच्या मधली विरता सीमारेषा

गाठ काळजातली अचानक सुटते आहे

जाणिव विरते तरीही उरते अतीत काही

तेच मला मम अस्तित्वाची देते ग्वाही

आतुरवाणी धडधड दाबून ह्रुदयामधली

श्वास आवरून मन कसलीशी चाहुल घेई

हलके हलके उतरत जाते श्वासांची लय

आता नसते भय कसले वा कसला संशय

सरसर येतो उतरत काळा अभेद्य पडदा

मी माझ्यातून सुटते, होते पूर्ण निराशय……

रचना : शांता शेळके

प्रस्तुती : सौ. उज्ज्वला केळकर 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #177 – तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष)

☆  तन्मय साहित्य  #177 ☆

☆ तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बुद्धि विलास बहुत हुआ,  तजें कागजी ज्ञान।

कुछ पल साधे मौन को, हो यथार्थ पर ध्यान।।

खुद ही खुद को छल रहे, बन कर के अनजान।

भटक रहे  हैं  भूल कर,  खुद की  ही  पहचान।।

अहंकार मीठा जहर, नई-नई नित खोज।

व्यर्थ लादते गर्व को, अपने सिर पर रोज।।

                      

अनुत्तरित हम ही रहे, जब भी किया सवाल।

हमें  मिली  अवमानना,  उनको  रंग  गुलाल।।

चमकदार    संवेदना,    बदल    गया   प्रारब्ध।

अधुनातन गायन रुदन, नव तकनिक उपलब्ध।।

हुआ अजीरण  बुद्धि का,  बढ़े घमंडी बोल।

आना है फिर शून्य पर, यह दुनिया है गोल।।

तृष्णाओं के जाल में, उलझे हैं दिन-रैन।

सुख पाने की चाह में,  और-और बेचैन।।

जीवन  से  गायब  हुआ,  शब्द  एक  संतोष।

यश,पद,धन के लोभ में, खाली मन का कोष।।

दर्पण में दिखने लगे, भीतर के अभिलेख।

शांतचित्त एकाग्र हो,  पढकर उनको देख।।

नव-संस्कृति के दौर में, शिष्टाचार उदास।

रंग- ढंग बदले सभी, बदले सभी लिबास।।

व्यर्थ प्रदर्शन चल रहे, भीड़ भरे बाजार।

बदन उघाड़े विचरते, अधुनातन परिवार।।

है प्रवेश बाजार का, घर में अब  निर्बाध।

विज्ञापन भ्रम जाल में, बढ़े ठगी-अपराध।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 63 ☆ बुन्देली गीत – प्यारी माई… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक बुंदेली गीत  – “प्यारी माई”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 63 ✒️

?  बुन्देली गीत – प्यारी माई… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

मोरी माई , प्यारी माई ,

कित्ती करौं बढ़ाई ।

हरई जनम रऔं तोरो लरका,

और तैं मोरी माई ।।

 

भोर भए बा चकिया पीसत ,

कुआं से पानी भरवै ,

ढोरन कों चारा डारत है ,

बऊ की सेवा करवै ,

बब्बा ने गईंयां दोह लईं ,

और माई कलेवा लाई ।

मोरी माई ——————- ।।

 

तुरंतईं से बा टिफन लगावै ,

मोय साला भिजवावे ,

मोरी सबरी कई बा मानत ,

टूसन भी पढ़वाबे ,

ऊसें बड़ों ना कोऊ जग में,

जा सबने समझाई ।

मोरी माई ——————–।।

 

रात बियारी हमें करावै ,

रोटी चुपर खवाबै ,

देह स्वस्थ जा रखबी कैंसें,

दूध लाभ समझावे ,

किस्सा  आल्हा उदल बारी ,

” सलमा ” हमें सुनाई ।

मोरी माई ——————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “चलना है बाकी।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कहाँ तय हुआ

फ़ासला दुख भरा

अभी कंटकों में चलना है बाकी।

 

वही रोज़ की

चिकचिकों से घिरा

दिन उजाले को ले

सूर्य द्वारे खड़ा

शाम अख़बार सी

एक बासी ख़बर

तम से हर रात

दीपक अकेला लड़ा

 

कहाँ क्या हुआ

रोती अब भी धरा

अभी पीर का तो गलना है बाकी।

 

नियम कायदे

जैसे मजबूरियाँ

घुल रही ख़ून में

एक ज़िंदा हवस

ओढ़कर बेबसी

पाँव यायावरी

लौट आये वहीं

जिस जगह थे तमस

 

लादकर बेड़ियाँ

श्रम हुआ अधमरा

अभी मंज़िलों पर पहुँचना है बाकी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 177 ☆ बाई… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 177 ?

💥 बाई… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

काहीतरी या मनात

सदा  आहेच सलते

दु:ख कोणते सदैव

 बाई  आहेच दळते

 

बाईपण सोसू कसे

चिंता अखंड करते

शैशवात फुलताना

काट्यावर ती  वसते

 

आई म्हणाली हळूच

कानी तेराव्याच वर्षी

“मोठी झालीस तू आता”

नको जाऊस दाराशी

 

 आत कोंडले स्वतःस

  नाही दारापाशी गेली

  रूप ऐन्यात पाहून

  स्वतः वरती भाळली

 

बाई आहे म्हणताना

जीणे अन्यायाचे आले

अशा त-हेने जगता

ओझे आयुष्याचे झाले

© प्रभा सोनवणे

१६ मार्च २०२३

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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