हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें…

(सजल – मात्रा – 28, सामंत – ईत, पदांत – दिखता है, मात्रा भार – 28)

 मौसम में चल रहा छल कपट, न नवनीत दिखता है।

चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।

 

नेह का पैमाना बदला कुछ, अब इस जमाने में,

जहाँ निज स्वार्थ की आशा, वही मनमीत दिखता  है ।

 

सद्भावना का अंत है, तलवारें हैं खिचीं-खिचीं ,

साहसी मानव भी अब तो, कुछ भयभीत दिखता है।

 

दिलों की गहराईयों में,अब कौन झाँकता भला ,

बेसुरे वाद्य यंत्रों में, मधुर संगीत दिखता है ।

 

दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,

जलाओ प्रेम का दीपक, सुखद नवगीत दिखता है ।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 03 ☆ मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 2 ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का अगला भाग )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 03 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 2 ?

(2015 अक्टोबर – इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को  घूमने का कार्यक्रम बनाया। पिछले भाग में आपने पुर्तगाल यात्रा वृत्तांत पढ़ा। )

यात्रा वृत्तांत (स्पेन) – भाग दो

एक सप्ताह पुर्तगाल में रहने के बाद हम यूरोरेल द्वारा अल्बूफेरिया से मैड्रिड आए। यह दूरी 328 किमी की है, यात्रा के लिए साढ़े तीन घंटे लगते हैं। यूरोरेल की यात्रा आनंददायी रही। समुद्र तट से होते हुए जंगलों के बीच से गुज़रती रेलगाड़ी सुंदर दृश्य उपस्थित करती जाती है और समय का पता ही नहीं चलता। मैड्रिड शहर से पहले विशाल काले साँड की मूर्ति दिखाई दी, जिसे देखकर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नकली साँड है। साँड का खेल इस देश का राष्ट्रीय खेल रहा है। इसे बुल फाइट कहते हैं।

रेल द्वारा यात्रा करते समय हम तीनों को एक बात का अहसास हुआ कि रेलगाड़ी में कितने ही लोग थे पर शोर कहीं नहीं था। फोन पर बात करनेवाला हर व्यक्ति अत्यंत धीमी आवाज में बातचीत करता दिखाई दिया। यह उनकी संस्कृति का एक अहम पहलु है। इसकी तुलना में एशियाई बहुत ऊँची आवाज़ में बोलते हैं। उन्हें देखकर तो हम तीनों भी फुसफुसाहट का सहारा लेकर बातें करने लगे।

मैड्रिड योरोप का सबसे हराभरा शहर है। यह स्पेन की राजधानी होने के कारण सदा अपनी सुंदरता और सजावट के लिए प्रसिद्ध है। प्लाजा मेयर एक विशाल इमारत है जहाँ कला, चित्रकारी, इतिहास, संग्रहालय आदि सभी के दर्शन संभव हैं। इस स्थान को देखने के लिए दो दिन तो लगते ही हैं। हम सबसे पहले उस मैदान का दर्शन करने गए जहाँ से बुल फाइट का राष्ट्रीय खेल प्रारंभ होता था। आज उस पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर सारी व्यवस्थाएँ अब भी वैसी ही हैं।

इतिहास में झाँकें तो यह शहर पाषाण युग से अपने अस्तित्व में रहा है। यहाँ मनुष्य की विभिन्न जातियाँ झुंड में रहा करती थीं। आधुनिक युग में यह एक खूबसूरत शहर है। फुटबॉल का मुख्य केंद्र मैड्रिड ही था, आगे चलकर अब बार्सेलोना बन गया। आमेर मोहम्मद के आने पर 9वीं शताब्दी में यहाँ अरब निवासियों की अधिकता थी और लंबे समय तक शासक भी रहा। ईसाई राज्य स्थापना के बाद यहाँ योरोपियन स्टाइल का विकास हुआ।

यहाँ ही संसार का सबसे पुराना रेस्तराँ आपको देखने के लिए मिलेगा। कई दर्शनीय संग्रहालय भी हैं यहाँ। प्रैडो संग्रहालय है जहाँ कई नामवंत चित्रकारों की कलाकृतियाँ देखने को मिलती हैं। शहर स्वच्छ तथा नई-पुरानी इमारतों से पटा हुआ है।

शहर भर घूमने के लिए हॉप ऑन हॉप ऑफ बस की सुविधा उपलब्ध है। लाल, हरी, पीली बसें सुबह 8 से शाम 8 तक शहर भर घूमती हैं। लाल बस सभी संग्रहालयों का दर्शन कराती हैं, हरी बस ऐतिहासिक स्थलों की और पीली बस इंडस्ट्रियल बेल्ट की। सैलानी अपनी इच्छानुसार दो दिन या तीन दिन के लिए बस की टिकट खरीदकर सुबह से शाम तक घूमने का आनंद ले सकते हैं। जिस स्थान को देखना चाहते हैं वहाँ उतर जाएँ फिर किसी भी बस में बैठ जाएँ। यह अत्यंत सुविधाजनक व्यवस्था है। दो या तीन दिन के लिए टिकट खरीदने पर वह सस्ता भी पड़ता है। बसें चढ़ते ही साथ बस चालक इयरफोन देता है, बस में इयरफोन कनेक्ट करने की सुविधा होती है जिस कारण हर स्थान की जानकारी कई भाषाओं में निरंतर मिलती रहती है। हमने तीन दिन के लिए टिकट ले लिए और अपनी उत्सुकता, रुचि और जिज्ञासा के अनुसार दर्शनीय स्थानों को देखते रहे।

अब यहाँ ठंडी हवा चलने लगी थी और हमें होटल में वार्मर लगाने की आवश्यकता पड़ी।

तापमान 9° पर उतर आया था और हमारे लिए शाम के समय घूमना कठिन हो रहा था।

हमारा अगला पड़ाव था ग्रैनाडा।

यह यात्रा हमने यूरोरेल द्वारा पूरी की। मैड्रिड से ग्रैनाडा 360 कि.मी. की दूरी है। हमें ग्रैनाडा पहुँचने में साढ़े तीन घंटे लगे।

यहाँ एक बात बताना चाहूँगी कि आप भारत से निकलने से पूर्व योरोरेल की टिकट खरीद सकते हैं, इससे आपको यात्रा करने में आसानी होती है।

हम ग्रानाडा पहुँचे यह नवाडा पहाड़ी की तराई में बसा शहर है। यह शहर स्पेन के अंडालूसिया रिजन में छोटा शहर है। खूबसूरत शहर। बाग -बगीचे और फव्वारों से सजे पुराने किले, महल देखने को मिलते हैं। यह शहर सुंदर विशाल चर्च और अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लोकल की संख्या से अधिक सैलानियों की भीड़ साल भर देखने को मिलती है। अलहम्ब्रा और नासिर्द पैलेस, कैथेड्रिल, रॉयल चैपल ऑफ ग्रानाडा आदि दर्शनीय स्थल हैं। सभी जगहों पर दो से तीन हज़ार भारतीय मुद्राओं के टिकट खरीदने पड़ते हैं जिसकी भुगतान यूरो में करने की बाध्यता होती है। यहाँ सभी महल, बाग-बगीचे, चर्च आदि के लिए प्रवेश शुल्क देने की आवश्यकता होती है। इसलिए पहले से ही तय कर लेना चाहिए कि क्या -क्या देखना है। हम यहाँ तीन दिन रहे। और चौथे दिन हम मलागा के लिए रवाना हुए।

हमने ग्रानाडा से मलागा तक का सफर बस द्वारा तय किया क्योंकि हमें रोड ट्रिप का भी आनंद लेना था।। अत्यंत आरामदायक बस की यात्रा रही। रास्ते भी बहुत अच्छे। बस एक -दो बार रुकी। चाय -कॉफी और शौचालयों की सुविधा मिली। शौचालय के लिए दो यूरो देना अनिवार्य है। जो यात्रा करते हैं वे इस बात से सहमत भी होंगे कि अगर साफ सफाई रखनी हो, टॉयलेट पेपर, हैंड वॉश, हैंड ड्रायर की सुविधा हो तो उसकी कीमत भी ली जानी चाहिए।

इस यात्रा के दौरान हमारा परिचय दो रिटायर्ड शिक्षिकाओं से हुआ जो केनाडा से स्पेन घूमने आए थे। बातों ही बातों में पता चला कि वे भी उसी मलागा गॉल्फ रिसोर्ट में रहने जा रहे थे जहाँ हमने अपने रहने की व्यवस्था की थी। हमने साथ में दो टैक्सी की रिसोर्ट पहुँचे।

रिसोर्ट एक विशाल फैली हुई जगह पर स्थित था। सभी सुविधाएँ उपलब्ध थीं। मौसम अब धीरे -धीरे बदल रहा था। अब यहाँ गर्म कपड़ों की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई क्योंकि यह शहर समुद्री तट पर बसा है।

हम दूसरे ही दिन नेरहा केव्स देखने के लिए रवाना हुए। इस गुफा की खोज 1959 में पाँच बच्चों ने की थी, ये बच्चे चिड़ीमार थे और इस गुफा के पास पहुँचे तो कुआँ जैसी जगह दिखाई दी, जिसमें नरकंकाल, बर्तन, दीवारों पर चित्रकारी और चमगादड़ों की भरमार मिली। बच्चे डरकर भाग खड़े हुए। बच्चों ने माता-पिता, शिक्षक, मित्र आदि से इस विषय की चर्चा की और बात ऊपर तक पहुँची। छान बीन प्रारंभ हुई तो पता चला कि यह बयालीस हज़ार पुरानी आदिमानवों की रहने की जगह थी। भीतर विशाल स्टैलेकटाइट के दर्शन हुए। ये कैल्शियम डिपोजिशन हैं। इन्हें बनने के लिए हज़ारों वर्ष लगते हैं। ऊपर से टपकती जल की बूँदें ज़मीन पर गिरकर खनिज पदार्थों की परतें निर्माण करती हैं और हजारों वर्ष में एक खम्भे का रूप ले लेती हैं। पूरी गुफा में ऐसे हज़ारों प्राकृतिक खंभे दिखाई दिए।

यह गुफा बहुत विशाल है। अपने समय में इसने एक पूरे शहर के निवासियों को आश्रय दिया होगा। भीतर कई स्तर (लेवल)बने हुए हैं और आज उन्हें नाम भी दिया गया है। भीतर ठंडक है। आज यहाँ बिजली के हल्के प्रकाश में गुफा के कई स्तरों का दर्शन संभव है जिनकी सुंदरता देख सच में आँखें चमक उठती हैं। आज भी इस केव के कुछ हिस्से बंद हैं जहाँ रिसर्च चल रहा है। उनकी तस्वीरें खींचने की भी मनाही है।

दूसरे दिन हम शहर की सुंदरता और मेडिटेरेनियन समुद्र पर सैर करने निकले। साथ में दोनों शिक्षिकाएँ भी हो लीं। यात्रा के दौरान कहते हैं कंपनी मैटर्स और इस बात का हमें अच्छा अनुभव भी मिला। समुद्री सैर के दौरान हमने अपने अपने देश की विशेषताओं और संस्कृतियों पर चर्चा की। कनाडा में नेटिव अमेरिकन्स के साथ जो दुर्व्यवहार और ज्यादती हो रही है उसकी भी जानकारी उन दोनों शिक्षिकाओं से मिली। अब हम तीन शिक्षिकाएँ थीं तो ज़ाहिर है इस विषय पर गहन चर्चा भी प्रारंभ हुई। समुद्र के किनारे कई रेस्तराँ थे हमने साथ में भोजन का आनंद लिया और देर रात साथ ही रिसोर्ट लौट आए।

तीसरे दिन हमने दिन के समय आराम किया और शाम को फ्लैमिन्को नृत्य प्रदर्शन का आनंद लेने गए। यह स्पेन का पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन होता है। आधुनिक युग में यह परंपरा समाप्त होती जा रही है। स्त्री-पुरुष दोनों एक साथ इस नृत्य को प्रस्तुत करते हैं। लकड़ी की फर्श पर पैर चलाकर संगीत के साथ ताल देकर अपने जूते से ध्वनि उत्पन्न कर यह नृत्य किया जाता हैं। एक प्रकार से टैप डान्स जैसा होता है। हमारे देश के कत्थक नृत्य की तरह यहाँ पैर निरंतर चलाना पड़ता है। साथ ही चेहरे पर कई हाव-भाव अभिव्यक्त करते हैं। यह नृत्य थाकानेवाला नृत्य है।

यह विभिन्न उत्सवों और परंपराओं की शृंखलाबद्ध प्रस्तुति होती है। उनके देश में भी विवाह उत्सव पर, फसल काटे जाने के अवसर पर गीत और नृत्य होते रहे हैं अब आधुनिक युग में यह उत्सव मृतप्राय है। कुछ मध्यम वयस्क कलाकार इस नृत्य के प्रदर्शन द्वारा अपनी कला और परंपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

दो घंटे का कार्यक्रम होता है, बीच में पंद्रह मिनिट के लिए विराम भी होता है। उस दौरान दर्शकों को शराब, ड्राय फ्रूट का पैकेट दिया जाता है। इसकी कीमत टिकट के साथ वसूली जाती है। इसलिए ऐसे प्रदर्शनों की कीमत बहुत ऊँची होती है। शराब न पीनेवालों को नींबू पानी दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को देखकर ही किसी देश की परंपराओं का परिचय मिलता है।

हमारा परिवार एक मात्र भारतीय परिवार था जो वहाँ कार्यक्रम देखने के लिए उपस्थित था। कार्यक्रम की समाप्ति पर कलाकारों के साथ तस्वीरें खींचने की इजाजत होती है।

उत्साहवश हम भी उनके साथ तस्वीरें खींचने के लिए मंच के पास उपस्थित हुए। मुझे साड़ी और बड़ी बिंदी में देखकर उन्होंने तुरंत पूछा कि क्या हम भारतीय हैं ?और यह जानने के बाद कलाकारों की एक बड़ी भीड़ हमारे इर्द-गिर्द उपस्थित हो गई। पहले तो कलाकारों ने हम से हाथ मिलाया फिर उन्होंने हमें एक ऐतिहासिक तथ्य बताया। उन्होंने हमसे कहा कि यह जो फ्लैमिंको नृत्य है यह मूल रूप से हमारे देश के राजस्थान के जिप्सी जिसे हम बंजारा कहते हैं उनका नृत्य है। यह जाति भारत से स्पेन में नौवीं शताब्दी के आस -पास पहुँची थी। अपनी यात्रा के द्वारा इस नृत्य को वहाँ पर वे ले गए और उसे प्रस्थापित किया था। धीरे -धीरे उसमें कई विभिन्न देशों के खास करके बंजारों की परंपरागत नृत्य उत्सव आदि सम्मिलित होते गए। वहाँ के बंजारों को रोमा कहा जाता था। यह जाति अंडालूसिया हिस्से में बस गई थी। आज भी हर कलाकार अपने इस नृत्य का मूल भारत को ही मानता है और गर्व महसूस करता है। इस नृत्य में लहराते हुए वस्त्र पहने जाते हैं और गिटार के साथ कभी अकेले या समूह में नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। हमारे प्रति कलाकारों का यह सम्मान देखकर हमें बहुत खुशी हुई। एक कलाकार तो मेरा हाथ पकड़ कर मंच पर ही अपने घुटने पर बैठ गया और उसने मेरे हाथ को चूमकर कहा “मैं भाग्यशाली हूँ कि भारत देश के व्यक्ति के साथ हमारी मुलाकात हुई” हमें भी बहुत आनंद आया और गर्व महसूस हुआ कि हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं के लिए आज विदेशों में भारत कितना प्रसिद्ध है।

क्रमशः…

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 205 ☆ व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 205 ☆  

? व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ?

पुस्तक मेला चल रहा था । तीन बड़े व्यंग्यकारों की नई किताबों का विमोचन होने को था, प्रकाशक एक ही था इसलिए विमोचन समारोह अलग अलग दिनों में रखे गए । पहले वरिष्ठ व्यंग्यकार की पुस्तक लोकार्पित हुई, मंच पर लगे बैनर पर उनकी फोटो के नीचे लिखा हुआ था “देश के सर्व श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। दूसरे दिन जब दूसरे व्यंग्य लेखक की किताब का विमोचन हुआ तो बैनर पर लिखा था “विश्वस्तरीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। जब तीसरे व्यंग्यकार की पुस्तक विमोचन होना थी तो प्रकाशक ने समारोह के पोस्टर पर लिखवाया, मेले में विमोचित “सर्वश्रेष्ठ किताब“।

एक पाठक तीनो ही कार्यक्रमों में उपस्थित रहा और तीनों किताबे खरीद कर पढ़ चुका था, जब अगली बार वह प्रकाशक से मिला तो उसने कहा तीनों ही किताबों में नया कुछ नहीं मिला वही पुरानी रचनाएं अलट पलट कर नई किताबें छाप दी है आपने। प्रकाशक मुस्करा कर बोला मार्केटिंग स्ट्रेटीज

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 29 – रेल की सवारी ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 29 – रेल की सवारी ☆ श्री राकेश कुमार ☆

हमारे जीवन की सबसे अधिक यात्राएं रेल द्वारा ही संभव हो पाई हैं। ऐसा नहीं है, कि परिवार से रेल सेवा में कोई कार्यरत था, जिसकी वज़ह से पास सुविधा या मुफ्त यात्रा का लालच रहा हो। क्योंकि यात्राएं लंबी दूरी की होती थी और सस्ती भी होती थी, इसलिए रेल यात्रा का आनंद हमेशा प्राथमिकता रही हैं। पिकनिक / पर्यटन आदि के लिए भी हमें रेल से ही जाना पसंद हैं।

यहां विदेश में जब रेल यात्रा की जानकारी प्राप्त हुई, हमारे तो तोते उड़ गए। सार्वजनिक सड़क साधन से भी महंगी रेल यात्रा है। हवाई और जल यात्रा का स्वाद चखने के पश्चात रेल यात्रा की कसक दिल में वैसी ही थी, जैसा भरपूर भोजन तृप्ति के बाद में कुछ मीठे की इच्छा “शक्कर रोगी” को होती हैं।

न्यु हैम्पशायर के पास “माउंट वाशिंगटन” नामक पर्वत है, जिसकी ऊंचाई करीब छै हज़ार तीन सौ फीट हैं। यहां कार द्वारा, हाइकिंग (पर्वतारोहण) और रेल मार्ग से जाने की सुविधा भी है। धरातल से तीन मील की यात्रा “कॉग” रेल द्वारा एक घंटे से कम समय में हो जाती हैं। पर्वत जो कि अमेरिका के उत्तर पूर्वी भाग में मिसिसिपी नदी के पास में है। यहां का परिवर्तनशील मौसम ही इसकी पहचान बन चुका है। रेल यात्रा 1869 से भाप इंजन द्वारा आज भी जारी है। कुछ इंजन बायो डीजल से भी चलते हैं। शिखर पर मौसम अत्यंत ठंडा हो जाता है। इसलिए साथ में ठंडी हवा से सुरक्षित रहने के लिए उचित कपड़े होना आवश्यक है। भाप के इंजन से यात्रा करने से कपड़े गंदे होने की संभावना की चेतावनी यहां के स्टेशन पर अंकित है। जिसको पढ़ कर बचपन में कोयले के कण आंख में जाने पर मां की साड़ी के आंचल में फूँक मार कर आंख की सिकाई करने की याद जहन में आ गई।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #183 ☆ ठोकरून गेला… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 183 ?

☆ ठोकरून गेला…  ☆

देहास फक्त माझ्या वापरून गेला

काळीज मी दिलेले ठोकरून गेला

 

माती सुपीक होती फाळ टोचणारा

देहास तापलेल्या नांगरून गेला

 

प्रेमात गुंतल्याची चाल बेगडी ती

जाळे शिताफिने तो कातरून गेला

 

एकाच तो फळाला चाखण्यास आला

कित्येक का फळांना टोकरून गेला ?

 

दाटी करून स्वप्ने सोबतीस होती

गर्दीत आठवांच्या चेंगरून गेला

 

मी बाहुलीच झाले फक्त नाचणारी

तोडून सर्व दोऱ्या डाफरून गेला

 

आकाश चांदण्याचे सोबतीस त्याच्या

पाहून का मला तो गांगरून गेला

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ ॥ जटायू शौर्यम् स्तोत्र ॥ ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

॥ जटायू शौर्यम् स्तोत्र ॥ ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

 ☆मराठी भावानुवाद – रामायणम् अरण्यकांड : आदिकवी वाल्मिकी

सा गृहीता विचुक्रोश रावणेन यशस्स्विनी।

रामेति सीता दुःखार्ता रामं दूरगतंवने ।।१।। 

हरण करता दशाननाने प्रख्यात जानकी सीतेचे

दुःख आर्त ती साद घातते दूर वनीच्या रामाते |। १ |]

सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदु:खिता ।

वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना ॥२॥

रडताना कारुण्याने विशालाक्षी दुःखी सीतेने

वृक्षस्थ पहिले गृधराजाला अश्रू भरल्या नजरेने ||२||

जटायो ! पश्य मामार्य !ह्रियमाणामनाथवत् ।

अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ।।३॥

आर्य गृधेन्द्रा जटायू, पाही कारुण्याच्या दृष्टीने 

कष्टी अनाथ सीतेला पळवून आणिले दशानने ||३||

तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे ।

निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श स: ॥४॥

निद्रिस्त जटायू कानी पडता आर्त बोल ते दुःखाचे

नेत्र उघडता दर्शन झाले दशाननाचे वैदेहीचे ||४||

तत: पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्ड: खगोत्तम: ।

वनस्पतिगत: श्रीमान् व्याजहार शुभां गिरम् ॥५॥

नग शिखरासम तीक्ष्ण चोच ती देई शोभा ज्याला

श्रेष्ठ खगेंद्र जटायू गृध सुंदर वाणी वदिता झाला  ||५||

निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।

न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥६॥

परनिंदेचे कारण ऐसे धैर्यवीरा तू न आचरी 

परदारेच्या अभिलाषेची नीच बुद्धी ना मनी धरी ||६ |।

वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथ: कवची शरी |

न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥७॥

कवचसिद्ध  चापबाण घेउनी रथारूढ तू जरी 

सीताहरणापासुनी तुजला रोखीन वृद्ध जरी ||७||

तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबल: ।

चकार बहुधा गात्रे व्रणान् पतगसत्तम: ॥८॥

द्विजश्रेष्ठ त्या गृधराजाने महाबली पक्षाने

रावण देहा जर्जर केले तीक्ष्ण नखांनी पायाने ||८||

ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।

चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनु |।९|।

तेजोमय मग  जटायुने मौक्तिकरत्नांच्या  शस्त्रांना  

चापबाण भंगून  लीलया केले जर्जर दशानना ॥९॥

ततः क्रोधाद्दशग्रीवो गृध्रराजमपोथयत् |

पक्षौ पार्श्वौ च पादौ च खड्गमुद्धृत्य सोच्छिनत् ||१०||

क्रोधित होऊनी चढाई केली जटायूवरी दशग्रीवाने 

उभय पंख अन् चरण छाटले तीक्ष्ण अशा तलवारीने ||१०|| 

स छिन्नपक्षः सहसा रक्षसा रौद्रकर्मणा । 

निपपात हतो गृध्रो धरण्यामल्पजीवितः ॥११॥ 

दुष्ट राक्षसे पंख कापता पक्षीराज झाला छिन्न  

कोसळला झणी धरणीवरती होऊनिया मरणासन्न ||११||

स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथि: ।

अङ्केनादाय वैदेहीं पपात भुवि रावण: ॥१२॥

भग्न चाप रथ विहीन रावण अश्व सारथी मृत ज्याचे

सीतेसह भूमीवर पडला त्राण जाउनी देहाचे  ||१२||

संपरिष्वज्य वैदेहीं वामेनाङ्केन रावण: ।

तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूर्च्छित: ॥१३॥

संतापाने धरून जानकी मुठीनेच तलवारीच्या

अखेरचा तो घाव घातला मुर्च्छित देही जटायुच्या  ||१३||

जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिप: ।

वामबाहून् दश तदा व्यपाहरदरिन्दम: ॥१४॥

वाम भुजांवर हल्ला करुनी अरिभंजक निज चोचीने

जर्जर केले दशबाहूंना दशाननाच्या त्वेषाने ||१४||

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– दरपन दरपन रूप तुम्हारा…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा…  ✍

दरपन दरपन रूप तुम्हारा

मुखड़ा देखूँ किस दरपन में

एक बूँद धरती पर आई

दो दिन करने पहुनाई

कटा एक दिन शूलवनों में

और एक दिन अमराई

होंठ आचमन कैसे करलें

टँकी बदरिया नीलगगन में।

 

सागर से गागर शरमाई

माँग रहा है भरपाई

जीवन था रामायन लेकिन

बँची न बाँचे चौपाई।

राम रूप में रत्ना ही तो

बैठी थी तुलसी के मन मे।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 133 – “कितनी कठिन तपस्या…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  कितनी कठिन तपस्या)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 133 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ कितनी कठिन तपस्या… ☆

जब चाची उस आरक्षक

को गाली दे  हारी

तभी बीच में बोल पड़ी

थी उस की महतारी

 

मेरा बेटा भृष्ट नहीं है

सभी जानते हैं

सत्य भाषियो की श्रेणी

का उसे मानते हैं

 

कठिनाई से भरी हुई

सेवा घंटो घंटो

करता आया बिना थके

जो ना थी लाचारी

 

ब्रत, त्योहार, दिवाली, होली

ना जाना कब  से

खडा बिताता रात और दिन

बरदी कसे कसे

 

कभी बहू के मुख पर

छाया इंतजार देखा

दोनों आंखों में रहती

पति की मूरत प्यारी

 

कितनी कठिन तपस्या,

तुम इसको गाली दे लो

लेकिन इस के समर्पणों

भावों से मत खेलो

 

भले राज्य के आरक्षक

की सेवा के ढंग से

लोग न हों खुश पर

इन की सेवा है सरकारी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 182 ☆ “पेपर लीक मामले में डील…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “पेपर लीक मामले में डील…”।)

☆ व्यंग्य # 182 ☆ “पेपर लीक मामले में डील…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पेपर लीक होने के बढ़ते मामले चिंता का विषय बने हुए हैं। इसके कारण कई मुख्यमंत्री और कुछ बड़े लोग बैकफुट पर आ जाते हैं। गांव के टपकती पाठशाला में उनकी पढ़ाई हुई थी, उन्होंने बचपन में पाठशाला के रिसते खपरों से लीकेज की कला सीख ली थी। पढ़ाई पूरी करके ‘लीकेज की राजनीति’ विषय में उनकी पीएचडी भी पूरी हो गई थी, इसलिए वे लीकेज की राजनीति से घबराते नहीं थे और प्रजातंत्र में लीकेज की राजनीति को प्राकृतिक विपदा जैसा मानते थे। हर पार्टी में लीकेज पकड़ने वालों का बड़ा महत्व होता है, तो चूंकि ये लीकेज की राजनीति के डाक्टरेट थे इसलिए इनकी पार्टी में इनके अच्छे जलवे थे। ‘लीक’ से हटकर अपनी अलग तरह की राजनीतिक चाल चलने में वे माहिर भी थे।

उनके दिन तब फिरे जब पूरे माहौल में लीकेज बबंडर बनके छा गया। परीक्षाओं के समय पर्चा लीक होने का मौसम गरमाया, डाटा लीक होने के किस्सों ने लोगों का मन भरमाया, शहरों में पाईप लाईन लीकेज की घटनाओं से हाहाकार मचा, चुनाव की तारीख लीक होने से मीडिया गरमाया। जब लीकेज की समस्या विकराल रूप लेने लगी तो उनकी पूछ परख ज्यादा बढ़ गई। प्रजातंत्र में लीकेज विषय पर की गई पीएचडी के जलवे और बढ़ गए और उन्हें गोपनीय विभाग (लीकेज अनुभाग) का मंत्री का पद मिल गया। केन्द्र में महत्वपूर्ण पद जिसमें पिछली सरकार के लूपहोल, रिसाव, लीकेज को ढूंढने का काम था और ताजे लीकेज घटनाक्रम में तीखी नजर रखनी थी।

दिनों दिन लीकेज विभाग का महत्व बढ़ने लगा। मंत्री जी लीकेज की राजनीति के खिलाड़ी बन गए थे। परीक्षाओं के पेपर धड़ाधड़ लीक करा दिए गए। जब पत्रकारों ने मंत्री जी से पर्चा लीक होने संबंधी सवाल किये तो मंत्री जी ने पत्रकारों को टालने के लिए तरह-तरह के न समझ आने वाले जवाबों की बरसात कर दी।  कहने लगे – लीकेज का प्रॉब्लम सब जगह संक्रामक बीमारी की तरह फैल गया है, आपको याद नहीं है क्या अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डाटा लीकेज का मामला। आनलाईन लीकेज से डरकर चीन ने आनलाईन हंसी पर रोक लगा दी है। जहां तक परीक्षा के पेपर लीक होने का मामला है तो आप लोग कहेंगे तो अब वाटरप्रूफ पेपर छपवाने के आदेश कर देते हैं। मंत्री जी ने सोशल मीडिया पर लीक हो रहे मामलों पर चिंता व्यक्त की और मीडिया वालों से सहयोग की अपील की। प्रजातंत्र में टपका की समस्या पर गहन विचार विमर्श करते हुए पत्रकारों को बताया कि पिछली सरकार के लीकेज इतने अधिक पकड़ में आये हैं कि रिसाव रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। पिछली सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग की गड़बड़ी और भ्रष्टाचार से सरकारी क्वार्टरों में टपका, सीपेज, लीकेज के केस ज्यादा दर्ज हुए हैं।

नगर निगमों की पाइप लाइन में रोज बढ़ते लीकेज की समस्या पर विपक्ष जिम्मेदार है विपक्षी लोग नहीं चाहते कि जनता को रोज पानी मिले।

मीडिया वालों से हाथ जोड़कर मंत्री जी ने निवेदन किया कि हमारी पार्टी और हमारे मंत्री टपके और लीकेज की राजनीति नहीं करते, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त जांच एजेंसियां और कोर्ट के खास लोग हैं, इसलिए जो हुआ तो हुआ आप लोग लीकेज वाली बात से संबंधित सवाल अब हमसे न पूछें नहीं तो आप सबकी आंखों में लीकेज की समस्या बढ़ सकती है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 124 ☆ # डरना छोड़ो… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# डरना छोड़ो#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 124 ☆

☆ # डरना छोड़ो… # ☆ 

तुम सूरज की तपिश से डरकर

कब तक छुपोगे छांवों में

यह पत्थर भी तप जायेंगे

तब आग भर देंगे तुम्हारे पावों में

तुम छालों से भरे पांवों को

जब धरती पर रखने जाओगे

इन रिसते हुए घावों पर

मरहम कहां से लाओगे

यह घाव भर जाये तो भी

टीस सदा बनी रहेगी पांवों में

चाहे धूप रहे यां छांव रहे

चलते-चलते उभर आयेगी राहों में

तुम जख्म, दर्द को लक्ष्य की तरफ मोड़ो

पथरीली चट्टानों पर दम-खम से दौड़ो

फूल ही फूल होंगे तुम्हारी राहों में

यूं डर डर कर जीने की आदत छोड़ो

जो जालिमों से डर जाये

वो बुजदिल है

जो ज़ुल्म करे असहायों पर

वो संगदिल है

सबको साथ लेके चले

वो हरदिल है

जो लूटे निर्धनों को

वो तंगदिल है

डर को छोड़ो तूफानों से लड़ जाओ

हिम्मत से सैलाबों में आगे बढ़ जाओ

लहरें तुम्हे किनारे पर पहुंचा देगी

एक बार नया इतिहास

तुम मिलकर गढ़ जाओ /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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