English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 225 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 225 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 225) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 225 ?

☆☆☆☆☆

लब तो खामोश रहेंगे…

ये वादा है मेरा  तुमसे…

अगर कह बैठी कुछ निगाहें…

तो  बस खफा मत होना…

☆☆

Lips shall always remain silent…

This is my promise to you …

Please don’t  get upset

If eyes just utter something…

☆☆☆☆☆

माना कि इश्क़

ज़बरदस्ती नहीं होता

मगर कमबख़्त

होता जबरदस्त है…

☆☆

Agreed  that  the  love

Never happens  by coercing

But then, this wretched thing

Happens to be awesome…

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए,

वो दर्द कैसा, और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए,

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that,

That  gets  expressed, and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो,

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can 

Give me comforting solace,

It is just your memories that 

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 224 – गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 224 ☆

☆ गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

अब भी खड़े हुए एकाकी

रहे सोच क्यों साथ न बाकी?

तुमको भाते घर, माँ, बहिनें

हम चाहें मधुशाला-साकी।

तुम तुलसी को पूज रहे हो

सदा सुहागन निष्ठा पाले।

हम महुआ की मादकता के

हुए दीवाने ठर्रा ढाले।

चढ़े गिरीश

पर नहीं बिगड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

राजनीति तुमको बेगानी

लोकनीति ही लगी सयानी।

देश हितों के तुम रखवाले

दुश्मन पर निज भ्रकुटी तानी।  

हम अवसर को नहीं चूकते 

लोभ नीति के हम हैं गाहक।

चाट सकें इसलिए थूकते 

भोग नीति के चाहक-पालक।

जोड़ रहे

जो सपने बिछुड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम जंगल में धूनि रमाते

हम नगरों में मौज मनाते।

तुम खेतों में मेहनत करते 

हम रिश्वत परदेश-छिपाते।

ताप-शीत-बारिश हँस झेली

जड़-जमीन तुम नहीं छोड़ते।

निज हित खातिर झोपड़ तो क्या

हम मन-मंदिर बेच-तोड़ते।

स्वार्थ पखेरू के

पर कतरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम धनिया-गोबर के संगी

रीति-नीति हम हैं दोरंगी।

तुम मँहगाई से पीड़ित हो

हमें न प्याज-दाल की तंगी।  

अंकुर पल्लव पात फूल फल

औरों पर निर्मूल्य लुटाते।

काट रहे जो उठा कुल्हाड़ी

हाय! तरस उन पर तुम खाते। 

तुम सिकुड़े

हम फैले-पसरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

 साप्ताहिक राशिफल आपको एक सप्ताह में बरतने योग्य सावधानियों एवं लाभ के बारे में बताता है। जिससे आप सप्ताह को लाभदायक ढंग से व्यतीत कर सकें। इसी श्रृंखला में आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको 3 मार्च से 9 मार्च 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह सूर्य और शनि कुंभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, बुध, वक्री शुक्र और बक्री राहु मीन राशि में और गुरु वृष राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता-पिता का और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 11 में भाव में बैठे सूर्य के कारण थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। 11 में भाव का सूर्य और तीसरे भाव का मंगल आपके भाई बहनों के बीच में तनाव पैदा कर सकता है। आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त हो सकता है कचहरी के कार्यों में बिल्कुल रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच की दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। वक्री शुक्र तथा वक्री राहु के कारण गलत रास्ते से धन आने का योग है। नीच भंग राजयोग बना रहा बुध आपके आपके व्यापार में लाभ दिलाएगा। कार्यालय में आपको थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है। आपको भी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु उनके गर्दन और कमर में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से 6 और 7 के दोपहर तक का समय विभिन्न कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच के दोपहर तक आपको सतर्क होकर के कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर बाहर बैठे हुए भिखारियों के बीच में चावल का दान करें और शुक्रवार को सफेद वस्त्र का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। वक्री शुक्र और नीच के बुध के कारण कार्यालय के कार्यों में आपको थोड़ी परेशानी आ सकती है। आपको अपने कार्यालय में सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। आपका स्वास्थ्य भी थोड़ा खराब हो सकता है। कृपया उसका ध्यान रखें। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक हैं। 5, 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता जी और पिताजी का तथा आपके सन्तान का सभी का स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके पास अल्प मात्रा में धन आएगा। कचहरी के कार्यों में सावधान रहें अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रु को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए तीन-चार और 5 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए फल दायक है। 7 मार्च को दोपहर के बाद से तथा 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। गरदन या कमर में दर्द हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। आपको चाहिए कि आप अपने सभी पेंडिंग कार्यों को इस अवधि में करने का प्रयास करें। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से मदद प्राप्त हो सकता है। अविवाहित जातकों के लिए विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। कार्यालय में भी आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 7 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु आपकी संतान को थोड़ा कष्ट हो सकता है। भाग्य से इस सप्ताह आपको मदद नहीं मिलेगी। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। व्यापारिक कार्यों में आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच मार्च के दोपहर तक का समय लाभदायक है। 5 के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी और माता जी के स्वास्थ्य में कुछ समस्या आ सकती है। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। संतान के सहयोग में कमी आएगी। बुध द्वारा बनाए जा रहे नीच भंग राजयोग के कारण संतान के व्यवसाय के उन्नति की संभावना है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। बाकी समय आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य से अच्छी रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। पांच के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का, आपके माता-पिता जी का तथा संतान का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अल्प मात्रा में धन आने का योग है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपका अपने भाई बहनों के साथ तनाव संभव है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए तीन, चार और 5 मार्च के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए शुभ है। 7 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके चतुर्थ भाव में गजकेसरी योग बन रहा है। यह अत्यंत शुभ योग होता है। इसके कारण आपको प्रतिष्ठा आदि प्राप्त हो सकती है। आपको इस सप्ताह मानसिक कष्ट संभव है। व्यापार में थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 5 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च कार्यों को करने के लिए फलदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह अविवाहित जातकों के लिए ठीक-ठाक है। उनके विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। व्यापार ठीक चलेगा। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। कर्ज लेने से बचें। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 7 , 8 और 9 मार्च शुभ फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – अनकहा सा कुछ ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – अनकहा सा कुछ ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

-सुनो!

-कहो !

-मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ ।

-कहो न फिर !

-समझ नहीं आता कैसे कहूं, किन शब्दों में कहूं?

-अरे! तुम्हें भी सोचना पड़ेगा?

-हां ! कभी कभी हो जाता है ऐसा !

-कैसा ?

-दिल की बात कहना चाहता हूँ पर शब्द साथ नहीं देते !

-समझ गयी मैं !

-क्या.. क्या… समझ गयी तुम ?

-अरे रहने भी दो ! कब कहा जाता है सब कुछ !

-बताओ तो क्या समझी ?

-कुछ अनकहा ही रहने दो ।

-क्यों ?

-ऐसी बातें बिना कहे, दिल तक पहुंच जाती हैं !

-फिर तो क्या कहूं‌ ?

-अनकहा ही रहने दो !

-क्यों?

-तुमने कह दिया और दिल ने सुन लिया! अब जाओ !

-क्यों ?

-शर्म आ रही है बाबा! अब जाओ !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१५ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विट्ठल मंदिर

हम्पी का विशाल फैलाव तुंगभद्रा के घेरदार आग़ोश और गोलाकार चट्टानों की पहाड़ियों की गोद में आकृष्ट करता है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष… आदि असंख्य स्मारक हैं। एक लाख की आबादी को समेटे बहुत खूबसूरत नगर नदी किनारे बसा था। एक दिन में सभी को देखना कहाँ संभव है। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं, जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे निर्धनों में बाँट दिया जाता था। रानियों के लिए बने स्नानागार, मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित थे।

हम्पी परिसर में विट्ठल मंदिर एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। विट्ठल मंदिर और बाजार परिसर तुंगभद्रा नदी के तट के पास विरुपाक्ष मंदिर के उत्तर-पूर्व में 3 किलोमीटर से थोड़ा अधिक  दूर है। यह हम्पी में सबसे कलात्मक रूप से परिष्कृत हिंदू मंदिर अवशेष विजयनगर के केंद्र का हिस्सा रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर परिसर कब बनाया गया था, और इसे किसने बनवाया था। अधिकांश विद्वान इसका निर्माण काल 16वीं शताब्दी के आरंभ से मध्य तक बताते हैं। कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि इसका निर्माण देवराय द्वितीय के समय शुरू हुआ, जो कृष्णदेवराय, अच्युतराय और संभवतः सदाशिवराय के शासनकाल के दौरान जारी रहा। संभवतः 1565 में शहर के विनाश के कारण निर्माण  बंद हो गया। शिलालेखों में पुरुष और महिला के नाम शामिल हैं, जिससे पता चलता है कि परिसर का निर्माण कई प्रायोजकों द्वारा किया गया था।

यह मंदिर कृष्ण के एक रूप विट्ठल को समर्पित है, जिन्हें  विठोबा भी कहा जाता था। मंदिर पूर्व की ओर खुलता है, इसकी योजना चौकोर है और इसमें दो तरफ के गोपुरम के साथ एक प्रवेश गोपुरम है। मुख्य मंदिर एक पक्के प्रांगण और कई सहायक मंदिरों के बीच में स्थित है, जो सभी पूर्व की ओर संरेखित हैं। मंदिर 500 गुणा 300 फीट के प्रांगण में एक एकीकृत संरचना है जो स्तंभों की तिहरी पंक्ति से घिरा हुआ है। यह एक मंजिल की नीची संरचना है जिसकी औसत ऊंचाई 25 मीटर है। मंदिर में तीन अलग-अलग हिस्से हैं: एक गर्भगृह, एक अर्धमंडप और एक महामंडप या सभा मंडप है।

विट्ठल मंदिर के प्रांगण में पत्थर के रथ के रूप में एक गरुड़ मंदिर है; यह हम्पी का अक्सर चित्रित प्रतीक है। पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। इतिहासकार डॉ.एस.शेट्टर के अनुसार रथ के ऊपर एक टावर था। जिसे 1940 के दशक में हटा दिया गया था। पत्थर रथ भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित है। जिसकी फोटो 50 के नोट के पृष्ठ भाग पर अंकित है। पर्यटक 50 का नोट हाथ में रख दिखाते हुए फोटो ले रहे थे। हमारे साथियों ने भी सेल्फ़ी फोटो खींच मोबाइल में क़ैद कर लिए।

पत्थर के रथ के सामने एक बड़ा, चौकोर, खुले स्तंभ वाला, अक्षीय सभा मंडप या सामुदायिक हॉल है। मंडप में चार खंड हैं, जिनमें से दो मंदिर के गर्भगृह के साथ संरेखित हैं। मंडप में अलग-अलग व्यास, आकार, लंबाई और सतह की फिनिश के 56 नक्काशीदार पत्थर के बीम से जुड़े स्तंभ हैं जो टकराने पर संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करते हैं। स्थानीय पारंपरिक मान्यता के अनुसार, इस हॉल का उपयोग संगीत और नृत्य के सार्वजनिक समारोहों के लिए किया जाता था। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है।

मंदिर परिसर के बाहर, इसके दक्षिण-पूर्व में, लगभग एक किलोमीटर (0.62 मील) लंबी एक स्तंभयुक्त बाज़ार सड़क है। सभी कतारबद्ध दुकान परिसर अब खंडहर हो चुके हैं। अब बिना छत वाले पत्थरों के खंभे खड़े हैं। उत्तर में एक बाज़ार और एक दक्षिणमुखी मंदिर है जिसमें रामायण-महाभारत के दृश्यों और वैष्णव संतों की नक्काशी है। उत्तरी सड़क हिंदू दार्शनिक रामानुज के सम्मान में एक मंदिर में समाप्त होती है।  विट्ठल मंदिर के आसपास के क्षेत्र को विट्ठलपुरा कहा जाता था। इसने एक वैष्णव मठ की मेजबानी की, जिसे अलवर परंपरा पर केंद्रित एक तीर्थस्थल के रूप में डिजाइन किया गया था। शिलालेखों के अनुसार यह शिल्प उत्पादन का भी केंद्र था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #215 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – एक ही भगवान की संतान… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – एक ही भगवान की संतान। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 215 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – एक ही भगवान की संतान…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सिक्ख पारसी ईसाई ज्यूँ हिन्दू या मुसलमान

हम सब हैं उसी एक ही भगवान की संतान

*

कहते जो धर्म अलग हैं वे सचमुच हैं ना समझ

कुदरत ने तो पैदा किये सब एक से इन्सान ।

*

सब चाहते हैं जिंदगी में सुख से रह सकें

सुख-दुख की बातें अपनों से हिलमिल के कह सकें

*

खुशियों को उनकी लग न पाये कोई बुरी नजर

इसके लिये ही करते हैं सब धर्म के विधान ।

*

सब धर्मों के आधार हैं आराधना विश्वास

स्थल भी कई एक ही हैं या हैं पास-पास

*

करते जहाँ चढ़ौतियाँ मनोतियाँ सब साथ

ऐसे भी हैं इस देश में ही सैकड़ों स्थान ।

*

मंदिर हो या दरगाह हो मढ़िया या हो या मजार

हर रोज दुआ माँगने जाते वहाँ हजार

*

संतो औ’ सूफियों की दर पै भेद नहीं कुछ

इन्सान कोई भी हो वे सब पे है मेहरबान ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 149 ☆ मुक्तक – ।। खुशियों का कोई बाजार नहीं होता ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 149 ☆खुशियों का कोई बाजार नहीं होता

☆ मुक्तक – ।। खुशियों का कोई बाजार नहीं होता ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

अमृत जहर एक ही जुबां पर, निवास करते हैं।

इसीसे लोग व्यक्तित्व का, आभास करते हैं।।

कभी नीम कभी शहद, होती जिव्हा हमारी।

इसीसे जीवन का हम सही, अहसास करते हैं।।

=2=

बहुत नाजुक दौर किसी से, मत रखो बैर।

हो सके मांगों प्रभु से, सब की ही खैर।।

तेरी जुबान से ही तेरे दोस्त, और दुश्मन बनेंगें।

हर बात बोलने से पहले, जाओ कुछ देर ठहर।।

=3=

तीर कमान से निकला, वापिस नहीं आ पाता है।

शब्द भेदी वाण सा फिर, घाव करके आता है।।

दिल से उतरो नहीं पर, बल्कि दिल में उतर जाओ।

गुड़ दे नहीं सकते मीठा, बोलने में क्या जाता है।।

=4=

जानलो खुशी देना खुशी पाने, का आधार होता है।

वो ही खुशी दे पाता जिसमें, सरोकार होता है।।

खुशी कभी आसमान से, कहीं भी टपकती नहीं।

कहीं पर खुशी का लगता, बाजार नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ तो आणि मी…! – भाग ४५ ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

श्री अरविंद लिमये

? विविधा ?

☆ तो आणि मी…! – भाग ४५ ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

(पूर्वसूत्र- आरती खऱ्या खोट्याच्या सीमारेषेवर घुटमळत होती… “समीरच्या सगळ्या आठवणी मनात रुतून बसल्यात हो माझ्याs. रात्री अंथरुणाला पाठ टेकली तरी मिटल्या डोळ्यांसमोर हात पुढे पसरुन माझ्याकडे येण्यासाठी झेपावत असतो तोss! आपल्याला मुलगा झाला तर तो समीरच आहे कां हे फक्त मीच सांगू शकेन.. तुम्ही कुणीही नाहीss.. ” भावनावेगाने स्वतःलाच बजावावं तसं ती बोलली आणि ऊठून आत निघून गेली.. !!

आता या सगळ्यातून बाहेर पडायला ‘लिलाताई’ हे एकच उत्तर होतं! जावं कां तिच्याकडे?भेटावं तिला? बोलावं तिच्याशी?.. हो.. जायला हवंच…!…

मी पौर्णिमेची आतुरतेने वाट पाहू लागलो…!)

तिच्याकडे जायचं. तिला भेटायचं. तिच्याशी मोकळेपणाने बोलायचं. समीरबाळाच्या जाण्यानंतरचं पुत्रवियोगाच्या दु:खानं झाकोळून गेलेलं माझं मन:स्वास्थ्य आणि नंतर तिच्या पत्रातील माझं सांत्वन करणाऱ्या आशेच्या किरणस्पर्शाने स्थिरावलेलं माझं मन.. हे सगळं कोणताही आडपडदा न ठेवता सांगून टाकायचं… असं सगळं मनाशी ठरवूनच मी त्या पौर्णिमेच्या दिवशी घराबाहेर पडलो. नृसिंहवाडीला जाऊन आधी दत्तदर्शन घेऊन थेट कुरुंदवाडची वाट धरली. तिच्या घराबाहेर उभा राहिलो आणि मनात चलबिचल सुरु झाली. तिचेही वडील नुकतेच तर गेलेत. तीसुध्दा त्या दु:खातच तर असणाराय. तिला आपलं दुःख सांगून त्रास कां द्यायचा असंच वाटू लागलं. मग तिला कांही सांगणं, विचारणं मनातच दडपून टाकलं. तेवढ्यांत दार उघडून दारात तीच उभी. आनंदाश्चर्याने पहातच राहिली क्षणभर….

“तू.. ! असा अचानक?.. ये.. बैस.. ”

ती मोकळेपणाने म्हणाली. आतून पाण्याचं तांब्याभांडं आणून माझ्यापुढे ठेवलंन्.

“लिलाताई, मी आज आधी न कळवता तुला भेटायला आलो ते दोन कारणांसाठी.. ” मी मुद्द्यालाच हात घातला.

“होय? म्हणजे रे.. ?”

“समीरचं आजारपण, त्याचं जाणं.. हे सगळं घडलं नसतं तरी मी तुमचे नाना गेल्याचं समजल्यावर तुला भेटायला आलो असतोच हे एक आणि समीर गेल्याचं तुला माझ्या आईकडून समजल्यानंतर तू सांत्वनाचं जे पत्र पाठवलं होतंस ते वाचताच क्षणी मला जो दिलासा मिळालाय त्याबद्दल तुझ्याशी समक्ष भेटून बोलल्याशिवाय मला चैनच पडत नव्हतं म्हणूनही आलोय. “

“नाना गेल्याचं समजलं तेव्हा तू न् आरती दोघेही माझ्या आईला भेटायलाही गेला होतात ना? आईनं सांगितलंय मला. “

“हो. त्यावेळी खूप कांही सांगत होत्या त्या मला. विशेषत: तुझ्याबद्दलच बरंचसं… “

“आईपण ना… ! माझ्याबद्दल काय सांगत होती?”

“माझ्या बाबांसारखी

तुलाही वाचासिद्धी प्राप्त झालीय असं त्या म्हणत होत्या. “

ती स्वत:शीच हसली. मग क्षणभर गंभीर झाली.

“माझी आई भोळीभाबडी आहे रे. तिला आपलं वाटतं तसं. बोलाफुलाला गाठ पडावी असेच योगायोग रे हे. बाकी कांही नाही… “

“माझे बाबाही असंच म्हणायचे. पण ते तेव्हढंच नव्हतं हे तू स्वत:ही अनुभवलंयस”

तिने चमकून माझ्याकडं पाहिलं. काय बोलावं तिला समजेना. मग विचारपूर्वक स्वतःशी कांही एक ठरवल्यासारखं ती शांतपणे म्हणाली,

“आईनं तुला जे सांगितलं ते योगायोगाने घडावं तसंच तर होतं सगळं. ते ज्यांच्या बाबतीत घडलं ते आमचे नाना आणि माझा मोठा भाऊ आण्णा यांच्यासंबंधातलं. जायच्या आधी नाना आठ दिवस खूप आजारी होते. तब्येतीच्या बाबतीत चढउतार सुरूच असायचे. मुद्दाम सवड काढून असंच एकदा आम्ही दोघेही त्यांना भेटायला गेलो होतो. पण तेव्हा ते पूर्णतः ग्लानीतच होते. आम्ही येऊन भेटून गेलोय हे त्यांना समजलंही नाहीये ही रुखरुख तिथून परत येताना माझ्या मनात रुतूनच बसली होती जशीकांही. मला स्वस्थता कशी ती नव्हतीच. अंथरुणाला पाठ टेकली की मनात विचार यायचे ते नानांचेच. ते कसे असतील? ते बरे होतील ना? हे असेच सगळे. त्यादिवशी रात्री डोळा लागला होता तोही याच मानसिक अस्वस्थतेत. आणि खूप वेळाने जाग आली ती डोअरबेल वाजल्याच्या आवाजाने. हे घरी नव्हते. कांही कामासाठी परगावी गेले होते. ते परत यायला अद्याप एक दोन दिवस अवकाश होता. तरीही तेच आले असतील कां असं मला वाटलं न् बेल दुसऱ्यांदा वाजली तशी मी पटकन् उठलेच. दार उघडून पाहिलं तर दारात नाना उभे. माझा माझ्या डोळ्यांवर विश्वासच बसेना…

“नानाs, तुम्ही.. ? असे एकटेच.. ? बरे आहात ना?.. “

“हो अगं. काल वाडीला दर्शनाला आलो होतो. आज परत जायचंय. जाण्यापूर्वी तुला भेटून जावं असं वाटलं म्हणून आलोय. “

“बरं झालं आलात. बसा हं. मी पाणी देते न् चहा करते लगेच. “

“एs.. तू बस इथं. मी तुला भेटायला आलोय. चहा प्यायला नाही. मला जायचंय लगेच.. “

मी थोडावेळ बसले. बोलले त्यांच्याशी. मग चहा करायला म्हणून उठले. आत जाऊन पाण्याचं तांब्याभांडं घेऊन बाहेर आले तर नाना तिथं नव्हतेच. दार सताड उघडंच. मला भास झाला कीं स्वप्नच हे?.. असा विचार मनात आला तेवढ्यांत फोनची रिंग वाजली. फोन आण्णाचा.. मोठ्या भावाचा होता. नाना नुकतेच गेलेत हे सांगणारा.. !!

पहाटेचे पाच वाजले होते. ऐकलं आणि सरसरुन काटाच आला अंगावर.. ! सोफ्याचा आधार घेत कशीबशी खुर्चीवर टेकले.

ते स्वप्न नव्हतं. तो भासही नव्हता. नाना खरंच आले होते. त्यांची भेट न झाल्याची त्या दिवशीची माझ्या मनातली रूखरुख कमी करण्यासाठी ते जाण्यापूर्वी खरंच इथे येऊन मला भेटून गेले होते. हे एरवी कितीही अशक्य, असंभव, अविश्वसनीय वाटेल असं असलं तरी माझ्यापुरतं हेच सत्य होतं! नाना जाताना मला भेटून लाख मोलाचं समाधान देऊन गेले होते हेच माझ्यासाठी ते गेल्याच्या दु:खावर फु़ंकर घालणारं होतं.. !!”

मी भारावल्या सारखा ऐकत होतो.

“आणि.. तू आण्णाच्या दीर्घ आजारपणात त्याला दिलेल्या औषधाने तो झटक्यात बरा झाला असं तुझ्या आई सांगत होत्या त्याचं काय?तो चमत्कार नव्हता?”

“नाना गेले त्याआधीच्या चार-पाच महिन्यांपूर्वीची ती गोष्ट. मी अशीच नानांनाच भेटायला माहेरी गेले होते. तेव्हाच्या गप्पांत आईनेच आण्णाच्या आजारपणाबद्दल सांगितलं होतं. ते आजारपण वरवर साधं वाटलं तरी आण्णासाठी मात्र असह्य वेदनादायी होतं. दुखणं म्हणजे एक दिवस त्याच्या हातापायांची आग व्हायला सुरुवात झाली आणि हळूहळू ती अंगभर पसरली. डॉक्टरांची औषधं, इतर वेगवेगळे उपाय सगळं होऊनही गुण येत नव्हता. तो रात्रंदिवस असह्य वेदनांनी तळमळत रहायचा. आईकडून हे ऐकलं त्याक्षणी मी थक्कच झाले. कारण कालच मला एक स्वप्न पडलं होतं. ते असंबध्दच वाटलं होतं तेव्हा पण ते तसं नव्हतं जाणवताच मला आश्चर्याचा धक्काच बसला.

“आई, तुला खरं नाही वाटणार पण कालच मला एक स्वप्न पडलं होतं. स्वप्नांत आण्णा माझ्या घरी आला होता. त्याला काय त्रास होतोय ते सगळं अगदी काकुळतीने मला सांगत होता. ‘कांहीही कर पण मला यातून बरं कर’ असं विनवीत होता. मी त्याला दिलासा दिला. ‘माझ्याकडे औषध आहे ते लावते. तुला लगेच बरं वाटेल’ असंही मी म्हटलं. परसदारी जाऊन कसला तरी झाडपाला घेऊन आले. तो पाट्यावर बारीक वाटून त्याचा लेप त्याच्या सगळ्या अंगाला लावून घ्यायला सांगितलं आणि तो लेप लावताच आण्णा लगेच बराही झाला… ” मी हे सगळं आईला सांगितलं खरं पण तो झाडपाला कसला हे मात्र मला आठवेना. त्यांना काटेही होते. ती पानं चिंचेच्या पानासारखी होती पण चिंचेची पानं नव्हती कारण चिंचेच्या झाडाला काटे नसतात. तिथून परत आल्यावर दुसऱ्या दिवशी सकाळी मी आणि हे दोघेही नेहमीप्रमाणे सकाळी नित्यदर्शनासाठी नृ. वाडीला जाऊन परतीच्या वाटेवर आम्ही नेहमी पाच मिनिटं एका पारावर बसायचो तसे बसलो. बोलता बोलता हाताला चाळा म्हणून त्या पारावर पडलेल्या वाळक्या काड्या उचलून मी मोडत रहायचे. त्यादिवशीही तसं करत असताना बोटाला एक काटा टोचला. पाहिलं तर त्या काडीवरचा वाळलेला पाला चिंचेच्या पानांसारखाच दिसला. मी नजर वर करून त्या झाडाकडे पाहिलं. ते शमीचं झाड होतं. शमी औषधी असते हे ऐकून माहित होतं म्हणून मी आण्णाच्या घरी फोन करून वहिनीशी बोलले. रोज शमीचा पाला वाटून त्याचा लेप लावायला सांगितलं. ती रोज तो लेप आण्णाला लावू लागली आणि तीन दिवसांत त्याचा दाह पूर्ण नाहीसा झाला. ” लिलाताई म्हणाली.

सगळं ऐकून मी पूर्णत: निश्चिंत झालो.

“लिलाताई, मला दिलासा देणारा असाच एक चमत्कार माझ्याही बाबतीत घडलाय. “

“कसला चमत्कार?” तिने आश्चर्याने विचारलं.

“तू मला पाठवलेलं ते सांत्वनपर पत्र हा चमत्कारच आहे माझ्यासाठी. ” मी म्हंटलं. तो कसा ते तिला सविस्तर समजावून सांगितलं.

” समीरचा आजार असा बरा होण्याच्या पलिकडे गेला होता‌. ते आमच्या घरीही माझ्या खेरीज कुणालाच माहित नसताना तुला नेमकं कसं समजलं? याचं आश्चर्य वाटतंय मला. कारण ‘समीरचा आजार पृथ्वीवरच्या औषधाने बरा होण्याच्या पलिकडे गेलेला असल्याने तो बरा होऊन परत येण्यासाठी देवाघरी गेलाय यावर विश्वास ठेव’ असं तू लिहिलं होतंस. आठवतंय? हे अशाच शब्दात लिहिण्याची बुद्धी तुला कशी झाली ही उत्सुकता आहे माझ्या मनात. “

हे सगळं ती भान हरपून ऐकत होती. मी बोलायचं थांबलो तशी ती भानावर आली. शांतपणे उठली आणि आत गेली. ती येईल म्हणून मी वाट पहात राहिलो. मग उठून उत्सुकतेने आत डोकावून पाहिलं तर ती देवापुढे हात जोडून बसलेली आणि तिच्या मिटल्या डोळ्यांतून अश्रू ओघळत होते. काय करावं ते न समजून मी खाल मानेनं बाहेर आलो. तिची वाट पहात बसून राहिलो. कांही क्षणात ती बाहेर आली. अंगाऱ्याचं बोट माझ्या कपाळावर टेकवलंन.

“तुझ्या डोळ्यांत पाणी का गं? माझं कांही चुकलं कां?”.

“नाही रे. तुझं कांहीही चुकलेलं नाहीय. मी रडत नाहीय अरे, हे समाधानाचे, कृतार्थतेचे अश्रू आहेत. “

“म्हणजे?”

“तुझ्या आईकडून समीर गेल्याचं मला समजलं त्या क्षणापासून खूप अस्वस्थ होते रे मी. तू हे सगळं कसं सहन करत असशील याच विचाराने व्याकुळ होते. घरी येताच सुचतील तसे चार शब्द लिहून पत्र पोस्टात टाकलं तेव्हा कुठे थोडी शांत झाले होते. खरं सांगू? मी काय लिहिलं होतं ते विसरूनही गेले होते. आज तू आलास, मनातलं सगळं बोललास तेव्हा ते मला नव्यानं समजलं. समीरचा आजार पृथ्वीवरच्या औषधाने बरे होण्याच्या पलीकडे गेलेला असल्याचं शप्पथ सांगते मला नव्हतं माहित. ते सगळं ‘मी’ लिहिलेलं नव्हतंच तर. ते दत्तगुरुंनी माझ्याकडून लिहून घेतलं होतं हे आज मला समजतंय. त्यांना दिलासा द्यायचा होता तुला आणि त्यासाठी मध्यस्थ म्हणून मी त्यांना योग्य वाटले हे लक्षात आलं आणि मी भरून पावले. सगळं कसं झालं मला खरंच माहित नाही. पण हा दत्तगुरुंचाच सांगावा आहे असं समज आणि निश्चिंत रहा.. !”

सगळं ऐकलं आणि मी पूर्णत: निश्चिंत झालो.

तिचा निरोप घेऊन मी बाहेर पडलो. मन शांत होतं पण… या सगळ्या अघटीतामागचं गूढ मात्र उकललं नव्हतंच. ते माझ्या मनातल्या दत्तमूर्तीच्या चेहऱ्यावरील स्मितहास्यात लपून अधिकच गहिरं होत चाललं होतं!!

क्रमश:…  (प्रत्येक गुरूवारी)

©️ अरविंद लिमये

सांगली (९८२३७३८२८८)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #269 – कविता – ☆ जिंदगी भर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “जिंदगी भर…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #269 ☆

☆ जिंदगी भर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जिंदगी भर, हम रहे लड़ते स्वयम से

पर हुए ना मुक्त,अब तक भी अहम से।

*

यज्ञ जप तप दान धर्म सुकृत्य कितने

कभी मन से तो कभी अनमने मन से

जुड़ी इनके साथ तृष्णाएँ  कईं थी

श्रेष्ठ होने के सतत चलते जतन थे,

पठन पाठन भी चले आगम निगम के

पर हुए ना मुक्त,अब तक भी अहम से।

*

जटिल होती ही गई,  श्रम साधनाएँ

खो गई कमनीय, मन की सरलताएँ

हो तिराहे पर खड़े, अब दिग्भ्रमित से

सूझती राहें नहीं,  किस ओर जाएँ,

समझ आया आज, बचना था चरम से

पर हुए ना मुक्त, अब तक भी अहम से।

*

सहज रहते,संग खुशियाँ खिलखिलाती

दर्प, संशय, भय, पराजय से बचाती

 खोजते यदि, समन्वय कर श्वांस से तो

सुगमता से,  जिंदगी  फिर मुस्कुराती

वहम से हो मुक्त, मिल जाते परम् से

पर हुए ना मुक्त,अब तक भी अहम से।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 93 ☆ कौन है अपना? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कौन है अपना?” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 93 ☆ कौन है अपना? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

चेहरे अब नहीं

पहचान में आते

किसको कह दें

कौन है अपना।

 

आँख मलते हाथ आई

वेदना केवल

सहमी-सहमी साँस पर

काटते हर पल

 

डालते नाकामियों पर

शर्म के परदे

किसके भरोसे

छोड़ दें डरना।

 

हर जगह कुरुक्षेत्र है

महाभारत का

बर्फ सी ठंडी है करुणा

आतंक आफत का

 

अब नहीं आकाश में

हैं मेघ छाते

फूटता संवेदना का

कोई भी झरना।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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