English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 125 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 125 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 125) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 125 ?

☆☆☆☆☆

तुम कभी मेरे साथ

आसमान तक चलो,

मुझे इस चाँद का

गुरूर तोड़ना है…!

☆☆

Sometime you must come

to the sky with me

I’ve to break the inflated ego

of the arrogant moon…!

☆☆☆☆☆

 ☆☆ ~ Precious as Time… ~ ☆☆ 

हम भी वक्त जैसे ही

 कीमती  हैं,  जनाब…

कदर ना करने वालों को

 दोबारा  नहीं  मिलते..!

☆☆ 

I am also as priceless

 as time, Sire…

Those who don’t value,

 don’t get me again..!

☆☆☆☆☆

इश्क़ में कहाँ कोई

उसूल होता है, जनाब

यार चाहे जैसा भी हो

हमेशा कुबूल होता है…!

☆☆

When has ever been there

any principle in love, Sire

Whatever sweetheart may be,

he is always accepted…!

☆☆☆☆☆

पतंग तो उसी की थी

जिसने चुकाई कीमत,

कटी  तो हक़दार सारा

शहर ही हो गया…!

☆☆

The kite was his only who

paid the price, but when cut,

then the whole city started

claiming its possession…!

 ☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 173 ☆ शेष.. विशेष…अशेष! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 173 शेष.. विशेष…अशेष! ?

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

संत कबीर का यह दोहा अपने अर्थ में सरल और भावार्थ में असीम विस्तार लिए हुए है। जैसे वृक्ष से झड़ा पत्ता दोबारा डाल पर नहीं लगता, वैसे ही मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती। मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती अर्थात दुर्लभ है। जिसे पाना कठिन हो, स्वाभाविक है कि उसका जतन किया जाए। देह नश्वर है, अत: जतन का तात्पर्य सदुपयोग से है।

ऐसा भी नहीं कि मनुष्य इस सच को जानता नहीं पर जानते-बूझते भी अधिकांश का जीवन पल-पल रीत रहा है, निरर्थक-सा क्षण-क्षण  बीत रहा है।

कोई हमारे निर्रथक समय का बोध करा दे या आत्मबोध उत्पन्न हो जाए तो प्राय: हम अतीत का पश्चाताप करने लगते हैं। जीवन में जो समय व्यतीत हो चुका, उसके लिए दुख मनाने लगते हैं। पत्थर की लकीर तो यह है कि जब हम अतीत का पश्चाताप कर रहे होते हैं, उसी समय   तात्कालिक वर्तमान अतीत हो रहा होता है।

अतीतजीवी भूतकाल से बाहर नहीं आ पाता, वर्तमान तक आ नहीं पाता, भविष्य में पहुँचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अपनी एक कविता स्मरण हो आ रही है,

हमेशा वर्तमान में जिया,

इसलिए अतीत से लड़ पाया,

तुम जीते रहे अतीत में,

खोया वर्तमान,

हारा अतीत

और भविष्य तो

तुमसे नितांत अपरिचित है,

क्योंकि भविष्य के खाते में

केवल वर्तमान तक पहुँचे

लोगों की नाम दर्ज़ होते हैं..!

अपने आप से दुखी एक अतीतजीवी के मन में बार-बार आत्महत्या का विचार आने लगा था। अपनी समस्या लेकर वह महर्षि रमण के पास पहुँचा। आश्रम में आनेवाले अतिथियों के लिए पत्तल बनाने में महर्षि और उनके शिष्य व्यस्त थे। पत्तल बनाते-बनाते  महर्षि रमण ने उस व्यक्ति की समस्या सुनी और चुपचाप पत्तल बनाते रहे। उत्तर की प्रतीक्षा करते-करते व्यक्ति खीझ गया। मनुष्य की विशेषता है  जिन प्रश्नों का उत्तर स्वयं वर्षों नहीं खोज पाता, किसी अन्य से उनका उत्तर क्षण भर में पाने की अपेक्षा करता है।

वह  चिढ़कर महर्षि से बोला, ‘आप पत्तल बनाने में मग्न हैं।  एक बार इन पर भोजन परोस दिया गया, उसके बाद तो इन्हें फेंक ही दिया जाएगा न। फिर क्यों इन्हें इतनी बारीकी से बना रहे हैं, क्यों इसके लिए इतना समय दे रहे हैं?’

महर्षि मुस्कराकर शांत भाव से बोले, ‘यह सत्य है कि पत्तल उपयोग के बाद नष्ट हो जाएगी। मर्त्यलोक में नश्वरता अवश्यंभावी है तथापि मृत्यु से पहले जन्म का सदुपयोग करना ही जीवात्मा का लक्ष्य होना चाहिए। सदुपयोग क्षण-क्षण का। अतीत बीत चुका, भविष्य आया नहीं। वर्तमान को जीने से ही जीवन को जिया जा सकता है, जन्म को सार्थक किया जा सकता है, दुर्लभ मनुज जन्म को भवसागर पार करने का माध्यम बनाया जा सकता है। इसका एक ही तरीका है, हर पल जियो, हर पल वर्तमान जियो।’

स्मरण रहे, व्यतीत हो गया, सो अतीत हो गया। अब जो शेष है, वही विशेष है। विशेष पर ध्यान दिया जाए, जीवन को सार्थक जिया जाए तो देह के जाने के बाद भी मनुष्य रहता अशेष है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 124 ☆ ~  कृति चर्चा ~ मधुर निनाद : गीत संग्रह ~गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” ☆ चर्चाकार – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा  गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” के गीत संग्रह “~ मधुर निनाद ~” पर चर्चा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 124 ☆ 

 कृति चर्चा ~ मधुर निनाद : गीत संग्रह ~गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” ☆ चर्चाकार – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

पुस्तक विवरण –

मधुर निनाद, गीत संग्रह

गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर”

प्रथम संस्करण २०१७

पृष्ठ १३५

मूल्य २००/-

साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर

गीतकार संपर्क चलभाष ८१२७७८९७१०, दूरभाष ०७६१ २६५५५९९)

(आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द जैकेट सहित)

समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा “सलिल”

छंद हीन कविता और तथाकथित नवगीतों के कृत्रिम आर्तनाद से ऊबे अंतर्मन को मधुर निनाद के रस-लय-भाव भरे गीतों का रसपान कर मरुथल की तप्त बालू में वर्षा की तरह सुखद प्रतीति होती है। विसंगतियों और विडम्बनाओं को साहित्य सृजन का लक्श्य मान लेने के वर्तमान दुष्काल में सनातन सलिला नर्मदा के अंचल में स्थित संस्कारधानी जबलपुर में निवास कर रहे अभियंता कवि गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” का उपनाम ही मधुर नहीं है, उनके गीत भी कृष्ण-वेणु की तान की तरह सुमधुर हैं। कृति के आवरण चित्र में वेणु वादन के सुरों में लीन राधा-कृष्ण और मयूर की छवि ही नहीं, शीर्षक मधुर निनाद भी पाठक को गीतों में अंतर्निहित माधुर्य की प्रतीति करा देता है। प्रख्यात संस्कृत विद्वान आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी ने अपने अभिमत में ठीक ही लिखा है कि मधुर निनाद का अवतरण एक साहित्यिक और रसराज, ब्रजराज की आह्लादिनी शक्ति श्री राधा के अनुपम प्रेम से आप्लावित अत:करण के मधुरतम स्वर का उद्घोष है…..प्रत्येक गीत जहाँ मधुर निनाद शीर्षक को सार्थक करता हुआ नाद ब्रह्म की चिन्मय पीठिका पर विराजित है, वहीं शब्द-शिल्प उपमान चयन पारंपरिकता का आश्रय लेता हुआ चिन्मय श्रृंगार को प्रस्तुत करता है।

विवेच्य कृति में कवि के कैशोर्य से अब तक गत पाँच दशकों से अधिक कालावधि की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं। स्वाभाविक है कि कैशोर्य और तारुण्य काल की गीति रचनाओं में रूमानी कल्पनाओं का प्रवेश हो।

इंसान को क्या दे सकोगे?, फूलों सा जग को महकाओ, रे माँझी! अभी न लेना ठाँव, कब से दर-दर भटक रहा है, रूठो नहीं यार आज, युग परिवर्तन चाह रहा, मैं काँटों में राह बनाता जाऊँगा आदि गीतों में अतीत की प्रतीति सहज ही की जा सकती है। इन गीतों का परिपक्व शिल्प, संतुलित भावाभिव्यक्ति, सटीक बिंबादि उस समय अभियांत्रिकी पढ़ रहे कवि की सामर्थ्य और संस्कार के परिचायक हैं।

इनमें व्याप्त गीतानुशासन और शाब्दिक सटीकता का मूल कवि के पारिवारिक संस्कारों में है। कवि के पिता स्वतंत्रता सत्याग्रही स्मृतिशेष माणिकलाल मुसाफिर तथा अग्रजद्वय स्मृतिशेष प्रो. जवाहर लाल चौरसिया “तरुण” व श्री कृष्ण कुमार चौरसिया “पथिक” समर्थ कवि रहे हैं किंतु प्राप्य को स्वीकार कर उसका संवर्धन करने का पूरा श्रेय कवि को है। इन गीतों के कथ्य में कैशोर्योचित रूमानियत के साथ ईश्वर के प्रति लगन के अंकुर भी दृष्टव्य हैं। कवि के भावी जीवन में आध्यात्मिकता के प्रवेश का संकेत इन गीतों में है।

समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-१२-२०२२, ७•३२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #153 ☆ आलेख – उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 153 ☆

☆ ‌आलेख – उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

अगर सच कहा जाय तो सूर दास जी द्वारा रचित कृष्ण-चरित पर आधारित सूर सागर में जितना सुंदर कथानक प्रेम में संयोग श्रृंगार का है, उससे भी कहीं अनंत गुना अधिक आत्मस्पर्शी वर्णन उन्होंने वियोग श्रृंगार का किया है। कृष्ण जी की ब्रजमंडल में की गई बाल लीलाएं जहां मन को मुदित करती है, एक एक रचना का सौंदर्य, बाल लीला की घटनाएं जहां आनंदातिरेक में प्रवाहित कर देती है, वहीं प्रेम के वियोग श्रृंगार श्रृंखला की रचनाएं बहाती नहीं बल्कि पाठक वर्ग को करूणा रस में डुबा देती है। कृष्ण की स्मृतियों ने जहां ब्रज मंडल की गोपिकाओं तथा राधा को विक्षिप्तता की स्थिति में ला खड़ा किया है, वो कृष्ण की स्मृतियों में खोई कृष्णमयी हो गई है, जिसे पढ़ते हुए समस्त पाठक वर्ग को आत्मविभोरता की स्थिति में ला के खड़ा कर देती है।

इसका जीवंत उदाहरण कृष्ण उधव तथा उधव गोपियों के संवाद में दिखाई देता है तो वहीं दूसरी ओर कृष्ण जी मात्र गोपियों को ही नहीं याद करते बल्कि उनके स्मृतियों में तो पूरा का पूरा ब्रजमंडल ही समाया हुआ है, जो ईश्वरीय चिंतन के असीमित विस्तार को दिखाता है। जब कृष्ण जी कहते हैं कि – “उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं”।

तब- कालिंदी कुंज की यादें, यशोदा के साथ की गई बाल लीला प्रसंग ,गायों तथा गोपसमूहो के साथ बिताए गए दिन, तथा गोपियों और राधिका के साथ बिताए पलों को तथा ब्रज मंडल के महारास लीला को भूल नहीं पाते–

बिहारी जी के शब्दों में वे अनोखी घटनाएं –

बतरस लालच लाल की,

मुरली धरी लुकाय।

सौंह करै, भौंहन हँसे,

देन कहै नटि जाय॥

तथा छछिया भर छांछ पर नाचना आज भी नहीं भूला है कृष्ण को साथ ही याद है मइया यशोदा के हाथ का माखन याद है ब्रज की गलियां। तभी तो अपने हृदय की बात कहते हुए अपने सखा उधव से अपने मन की बात कह ही देते हैं- “उधव मोहि ब्रज बिसरत नाही”।

ऐसा भी नहीं है कि कृष्ण को ही मात्र ब्रज की यादें व्यथित किए हुए हो, बल्कि सारा ब्रजमंडल ही कृष्ण  वियोग की यादों में पगलाया हुआ है। जिसकी झांकी जब ऊधव ब्रज की गोपियों को निराकार ब्रह्म का उपदेश देने जाते हैं तब रास्ते के कांटे भी ऊधव जी को प्रेम का अर्थ समझाते हुए प्रतीत होते हैं जिसका यथार्थ चित्रण बिंदु जी की रचनाओं में दृष्टि गोचर होता है।

चले मथुरा से दूर कुछ जब दूर वृन्दावन नज़र आया,

वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया,

उलझकर वस्त्र में काँटें लगे उधौ को समझाने,

तुम्हारे ज्ञान का पर्दा फाड़ देंगे यहाँ दीवाने।

है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥

यह प्रेम की गहन अनुभूति ही नहीं कराता अपितु ऊधव को मजबूर कर प्रेम के सागर में डुबो देता है।   फिर तो एक हाथ यशोदा का माखन तथा दूसरे में राधा द्वारा दी गई मुरली लिए  राधे राधे गा उठते है। और लौट आते हैं अपने बाल सखा के पास। भला प्रेम के वियोग श्रृंगार का ऐसा उत्कृष्ट और अनूठा  चित्रण सूरसागर के अलावा कहां मिलेगा।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(5–10–2022, दिन में 9–00बजे)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है । देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

साहित्य सभा : साहित्य की अलख जलाये रखने में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं का बड़ा योगदान है । हरियाणा के कैथल में पिछले पचास साल से साहित्य सभा काम कर रही है जिसके इस समय अध्यक्ष प्रसिद्ध रचनाकार डाॅ अमृतलाल मदान हैं । यह साहित्य सभा हर वर्ष सम्मान और पुरस्कार देने के साथ साथ नवप्रकाशित पुस्तकों का लोकार्पण भी करती है । पचास साल कम नहीं होते और यह अलख जलती ही जा रही है ।

हिसार का सर्वोदय भवन : इसी तरह हिसार के सर्वोदय भवन में साप्ताहिक गोष्ठियों के सिलसिले को भी पचास वर्ष से ऊपर हो गये । यहां भी अनेक विचारक व्याख्यान के लिए पधार चुके हैं । विनोबा भावे के साथ जुड़े इस गांधी विचारधारा से जुड़े सर्वोदय भवन को आजकल प्रसिद्ध अधिवक्ता पी के संधीर संभाल रहे हैं और यहां अच्छा पुस्तकालय भी है । अनेक संस्थायें यहां अपने आयोजन करती हैं । यहां गांधी व बिनोवा भावे  की पुस्तकों के अंशों का पाठ भी किया जाता है ।

हिसार का रंग आंगन नाट्य महोत्सव : हिसार के रंगकर्मी मनीष जोशी की ओर से प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले रंग आंगन नाट्योत्सव की बात अब हरियाणा से निकल कर देर दराज प्रदेशों तक पहुंच चुकी है । यह आठ दिवसीय नाट्योत्सव कितने ही नये से नये और अलग मिजाज के नाटक लेकर आता है और सचमुच अब यह ऐसा उत्सव बन गया जिसका साल भर इंतजार रहता है । इसमें रंगकर्मियों को सम्मानित कर उनका उत्साहवर्धन भी किया जाता है । मनीष जोशी और राखी जोशी को सैल्यूट। अभी संस्कार भारती की भी शाखा ने इनकी संस्था रेयाज में काव्य गोष्ठी की शुरूआत की है ।

युवक सदन, सिरसा : सिरसा के युवक सदन का काफी योगदान है और यह तीन चार मित्रों ने चंदा एकत्रित कर बनवाया था । आज यह युवक सदन साहित्यिक और सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना हुआ है । आमतौर पर साहित्यिक आयोजन यहीं होते हैं ।

गुरुग्राम में साहित्य : हरियाणा के आईटी हब कहे जाने वाले गुरुग्राम में साहित्यिक गतिविधियां चलती रहती हैं । रचनाकार नरेंद्र गौड़ की संस्था शब्द शक्ति यहां कोई न कोई आयोजन करती रहती है । आजकल तो प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ प्रेम जनमेजय भी गुरुग्राम में व्यंग्य यात्रा की गोष्ठियों का आयोजन अपने घर की छत पर कर रहे हैं जो बहुत सफल हो रही हैं । मेरे कथा संग्रह यह आम रास्ता नहीं है पर गोष्ठी इसी छत पर करवाई थी जिसमें प्रसिद्ध पत्रकार राहुल देव, अनूप लाठर, रेणु हुसैन, अशोक जैन, मुकेश शर्मा, कृष्णा यादव, राकेश मलिक जैसे मित्र आये थे । डाॅ प्रेम जनमेजय के इस नये आइडिया ने साहित्य की दुनिया में नया प्रयोग किया । अशोक जैन यहीं से दृष्टि पत्रिका संपादित व प्रकाशित कर रहे हैं । गुरुग्राम में ही लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और ममता किरण भी अपने आवास पर गोष्ठियां कर महफिल जमाये रहते हैं । सविता स्याल ने दोस्ती संकलन का संपादन और विमोचन करवाया था । शील मधुर यहां से पत्रिका प्रकाशित करते रहे हैं ।

करनाल में पाश पुस्तकालय की याद : करनाल में एक समय विभूति नारायण राय ने पाश पुस्तकालय बनवाया था और यह साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा लेकिन फिर इसे अलविदा कह दिया गया और इसे बचाया न जा सका । इसके बावजूद इसकी यादें बनी हुई हैं । करनाल में ही हरियाणा लेखक मंच ने कमलेश भारतीय और डाॅ अशोक भाटिया के प्रयासों से एक साहित्यिक आयोजन किया जिसमें एक सौ लेखक शामिल हुए और इसमें ज्ञानप्रकाश विवेक ने कथा पर तो हरभगवान चावला ने कविता पर हरियाणा के योगदान पर व्याख्यान दिये ।

मित्रो ! इस बार के लिये इतना ही । अगली बार फिर मिलेंगे नयी गतिविधियों के साथ ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत 🌹

(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

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हिन्दी भवन  में पुस्तक  मेला  का आयोजन संपन्न हुआ। जिसके  अंतर्गत  बच्चों के लिए  निबन्ध  प्रतायोगिता भी रखी गई। इसमें बीस बच्चों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में उत्कृष्ट  लेखन वाले तीन बच्चों को पुरस्कृत  किया गया। मुख्य अतिथि हिन्दी भवन के प्रभारी संचालक डॉ. सुरेन्द्र  बिहारी गोस्वामी थे।

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भोपाल की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था अभिनव कला परिषद्,  द्वारा बुधवार दिनांक 25 जनवरी 2023 को मानस भवन श्यामला हिल्स पर अपनी गौरवशाली  60 वीं सालगिरह पर हीरक जयंती एव॔ कला-पर्व उत्सव गणंतत्र समारोह मनाया गया। इस परम्परा गत आयोजन मे गीत संगीत के साथ ही प्रदेश व देश की तीन पीढियों की आठ यशस्वी सर्जनात्मक चेतनाओं – सर्वश्री हरिवल्लभ शर्मा ‘हरि’, राम मोहन चौकसे, राजेन्द्र गट्टानी, शैलेन्द्र शरण, मीरा जैन, मलय जैन, डाॅ. विकास दवे एवं डाॅ. अरुण तिवारी को उनकी सुदीर्घ साहित्यिक सेवाओं के लिये “अभिनव शब्द शिल्पी” अलंकरण से विभूषित कर सम्मानित किया गया।

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वाल्मी संस्थान में लेखक प्रलय श्रीवास्तव   की ‘मप्र में चुनाव और नवाचार’ पुस्तक की लांचिंग छत्तीसगढ की राज्यपाल महामहिम अनुसूइया जी द्वारा की गई विशिष्ट अतिथि ओ पी रावत थे। अन्य विशिष्ट अतिथि थे, विजयदत्त श्रीधर, महेश श्रीवास्तव, एन के सिंह, उमेश त्रिवेदी,तथा रमेश शर्मा

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय  में लोक रूचि व्याख्यान माला में मानव वैज्ञानिक  सुमिता चक्रवर्ती का व्याख्यान हुआ। विषय था ‘कल्चर एन्ड  ट्रेडिशन टेल्स आफ एक्सपीरियंस विथ द जरवा आफ अडंमान आइलैंड’

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा निवास कार्यालय सभागार में रतलाम के नेचरोपेथी थेरेपिस्ट डाॅ संतोष गुप्ता की पुस्तक “माय नेचरल हीलर” का विमोचन किया।

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मध्य प्रदेश उर्दु अकादमी की ओर से आयोजित जश्न-ए-उर्दु  के तीसरे सत्र में “साहित्य और मीडिया का सह संबंध” विषय  पर चर्चा के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार एवं निदेशक  साहित्य अकादमी ने कहा – “नई पीढ़ी को भाषा और साहित्य के करीब लाना एक चुनौती है”

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भोपाल। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र कवि श्रीकृष्ण ‘सरल’ को समर्पित मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक वीर रस / राष्ट्रभक्ति काव्य गोष्ठी गीत गणतंत्र का आयोजन हिन्दी भवन में वरिष्ठ ओज कवि श्री पँवार राजस्थानी के मुख्य आतिथ्य, साहित्यकार डाॅ. धर्मेन्द्र शर्मा ‘सरल’ के सारस्वत आतिथ्य तथा संघ के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम वल्लभ आचार्य की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर देश प्रदेश के चर्चित कवि सर्वश्री पँवार राजस्थानी, डाॅ. राम वल्लभ आचार्य, सुरेन्द्र जैन सरस,  डाॅ. मोहन तिवारी ‘आनन्द’, दिनेश मालवीय, डाॅ. अर्जुन दास खत्री, डाॅ. क्षमा पाण्डेय, कमल किशोर दुबे, विकास लोया, श्रीमती रूपाली सक्सेना, अभिषेक जैन ‘अबोध’ एवं डाॅ. सुशील ‘गुरु’ ने अपनी ओजस्वी  वाणी में कविताएं पढी।

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भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव का तीन दिनी महोत्सव 21 जनवरी को मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय  राज्य  मंत्री डाॅ.जितेन्द्रसिंह की उपस्थिति में हुआ। इसके मुख्य आकर्षण थे आर्टिसन्स टेक्नोलाजी  विलेज,इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल आफ इंडिया मेगा साइंस एन्ड टेक्नोलाॅजी एग्जिबिशन, न्यू एज टेकनालाॅजी शो, स्टार्ट अप कानक्लेव,स्टूडेन्ट साइंस विलेज, यंग साइंटिस्ट  विलेज, यंग साइंटिस्ट कान्फ्रेंस,साइंस थ्रू गेम्स एंड टाॅइज। एक सत्र साइंस लिटरेचर फेस्टिवल का भी था जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों, शिक्षाविद तथा विद्यार्थियो ने भाग लिया।

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मानस भवन में ‘महिला मानस मंच’  द्वारा बसंतोत्सव का आयोजन  किया गया जिसमें तात्कालिक  भाषण प्रतियोगिता, भजन, रांगोली तथा थाली सजाओ प्रतियोगिताएं की गई। आयोजन के अध्यक्ष प्रतिष्ठान के कार्याध्यक्ष श्री रघुनन्दन शर्मा थे।

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साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – आत गोडवा वर काटेरी – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?आत गोडवा वर काटेरी – ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

वरवरचे हे रूप तुझे रे

ऊगा कशाला असे दावशी ?

बाहेरून तू ओबडधोबड

पोटी तुझ्या रे अमृत  राशी

काही चांगले हवे असे तर

कष्टायाची करा तयारी

हेच सांगते रूप तुझे रे

आत गोडवा वर काटेरी

मिळवायास्तव गरे आतले

हवीच असते शक्ति युक्ति

सहज लाभे तुझा गोडवा

प्रयत्नांवर असावी भक्ति

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #174 – 60 – “तुम छुपाते रहो अपने गुनाहों को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…”)

? ग़ज़ल # 60 – “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़  इस  तरह से  जताना तुम्हारा,

सियासी  लगे  दिल  लगाना तुम्हारा।

अगर  कोई  पूछे बता दो  ये  उनको,

मेरा दिल नहीं  अब  ठिकाना तुम्हारा।

तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को,

इतिहास  कहेगा   फ़साना   तुम्हारा।

सुनेगा   भला  कौन  मेरी   यहाँ  पर,

है  अदालत  तेरी  ओ  थाना  तुम्हारा।

तुम्हारी  खुदाई  का   इतना  असर है,

‘आतिश’ हो गया  है  दिवाना  तुम्हारा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆ मुक्तक ।। हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हमें    इस बात  का    बहुत गुमान है।

कि हमारी   मातृ भूमि    हिंदुस्तान  है।।

सूर्य सा आलोकित  है  सारे  संसार में।

विश्व   गुरू भारत  वास्तव में महान है।।

[2]

शांति मसीहा है भारत सारे जहान का।

बस ध्यान रहे भारत मां मानसम्मान का।

हर दिल में इक हिंदुस्तान बसना चाहिए।

प्रश्न है करोड़ों  जन के   स्वाभिमान का।।

[3]

इस वतन ने इंकलाब से आजादी पाई है।

शहीदों ने मर मिट कर  तस्वीर बनाई है।।

आंच न आने देगें इस बलिदानी धरती पर।

हर बाजू बनेगा तलवार आंख गर उठाई है।।

[4]

ये भाग्य राम कृष्ण की धरा पर जन्म पाया है।

इस देश ने रामायण  गीता संदेश सुनाया है।।

यह धरती है  विविधता में एकता का संगम।

पूरे विश्व वसुधैव कुटुंबकम् पाठ पढ़ाया है।।

[5]

इस गुलशन का पत्ता पत्ता जार न होने देना।

अमर शहीदों कीअमानत बेकार न होने देना।।

अभी तो आगाज हुआ मंजिल दूर बाकी है।

भारतमाता कीअस्मत कभी बेजार न होने देना।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 117 ☆ ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #117 ☆  ग़ज़ल  – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बुराई बढ़कर भी आई हारती हर काल में

मकड़ियां फँसती रही नित आप अपने जाल में।।

 

समझता हर व्यक्ति खुद को सदा औरों से भला

पर भला वह है जो हो वैसा सबों के ख्याल में।।

 

वे बुरे जन जो हैं जीते आज ऊंची शान से

कल वही जाते हैं देखे भटकते बद हाल में।।

 

कर्म से किस्मत बनाई जाती है अपनी स्वतः

है नहीं सच यह कि सब कुछ लिखा सब के भाल में।।

 

प्रकृति देती पौधों को सुविधाएं प्रायः एक सी

बढ़ते हैं लेकिन वही, जीते हैं जो हर हाल में।।

 

धूप, आँधी, शीत, वर्षा, उमस सह लेते हैं जो

फूल सुन्दर सुरभिमय खिलते उन्हीं की डाल में।।

 

सत्य, श्रम, सद्कर्म मानव धर्म है हर व्यक्ति का

आदमी लेकिन फंसा है व्यर्थ के जंजाल में।।

 

मन में जिनके मैल, अधरों पै कुटिल मुस्कान है

तमाचा पड़ता सुनिश्चित कभी उनके गाल में।।

 

चाहते जो जिन्दगी में सुख यहाँ संसार में

स्वार्थ कम, चिन्ता अधिक सब की करें हर हाल में।।

 

विश्व भौतिक है मगर आध्यात्मिक है जिंदगी

ध्यान ऐसा चाहिये हम सब को हर आमाल में।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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