हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #160 – 46 – “चश्मे मुहब्बत सजाए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “चश्मे मुहब्बत सजाए …”)

? ग़ज़ल # 46 – “चश्मे मुहब्बत सजाए …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बहुत पापड़ बेले हैं ऐसे ही तेरे सनम नहीं हुए

हमारी खोपड़ी पर बाल बेवजह कम नहीं हुए। 

उस्तादों के ख़ूब नाज़ उठाए और गालियाँ खाईं

फ़क्त रियाज़ करके बलिश्त दमख़म नहीं हुए।

हम तक आते-आते खुट जाती उनकी बख़्शीश,

हौसले इम्तिहान के फिर भी कम नहीं हुए। 

चश्मे मुहब्बत सजाए इन रहे हसीन वादियों में,

लद्दाख़ के वीरान पहाड़ों से तेरे बलम नहीं हुए। 

मुहब्बत में हर दम बेचैनी बेसबब नहीं है ‘आतिश’

रूह भटकेगी जब तलक मशवरे बाहम नहीं हुए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 37 ☆ मुक्तक ।।मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 37 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

मानवता की  जीत दानवता की हार हो जाये।

प्रेम    से  दूर   अपनी  हर  तकरार हो जाये।।

महोब्बत    हर    जंग    पर    होती    भारी  है।

यह दुनिया बस इतनी सी समझदार हो जाये।।

[2]

संवेदना बस हर किसी का सरोकार हो जाये।

हर   कोई   प्रेम   का   खरीददार  हो    जाये।।

नफ़रतों    का    मिट    जाये   हर  गर्दो  गुबार।

धरती  पर  ही  स्वर्ग  सा  यह  संसार  हो जाये।।

[3]

काम  हर किसी का परोपकार हो जाये।

हर मदद को आदमी दिलदार हो जाये।।

जुड़ जाये हर दिल से हर दिल का ही तार।

तूफान खुद नाव  की पतवार हो  जाये।।

[4]

अहम   हर  जिंदगी  में  बस  बेजार  हो  जाये।

धार  भी  हर  गुस्से  की   बेकार   हो   जाये।।

खुशी  खुशी  बाँटे  आदमी  हर  इक सुख को।

गले से गले लगने को आदमी बेकरार हो जाये।।

[5]

हर    जीवन   से   दूर  हर    विवाद   हो   जाये।

बात घृणा की जीवन में कोई अपवाद हो जाये।।

राष्ट्र  की  स्वाधीनता  हो   प्रथम   ध्येय   हमारा।

देश  हमारा  यूँ  खुशहाल  आबाद   हो   जाये।।

[6]

वतन  की  आन  ही  हमारा  किरदार  हो   जाये।

दुश्मन के लिए जैसे हर बाजू ललकार हो जाये।।

राष्ट्र  की   गरिमा    और    सुरक्षा   हो  सर्वोपरि।

बस  इस  चेतना  का  सब में  संचार  हो  जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 103 ☆’’हासिल नहीं होता कुछ भी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक रचना “हासिल नहीं होता कुछ भी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #103 ☆’’हासिल नहीं होता कुछ भी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

औरों के हर किये की खिल्ली उड़ाने वालो

अपनी तरफ भी देखो, खुद को जरा संभालों।

 

बस सोच और बातें देती नहीं सफलता

खुद को बड़ा न समझों, अभिमान को निकालो।

 

हासिल नहीं होता कुछ भी, डींगे हाँकने से

कथनी के साथ अपनी करनी पै नजर डालो।

 

सुन-सुन के झूठे वादे पक गये हैं कान सबके

जो कर न सकते उसके सपने न व्यर्थ पालो।

 

सब कर न पाता पूरा कोई भी कभी अकेला

मिलकर के साथ चलने का रास्ता निकालो।

 

आशा लगाये कब से पथरा गई हैं ऑखें

चाही बहार लाने के दिन न और टालो।

 

जो बीतती है मन पै किससे कहो बतायें

बदरंग हुये घर को नये रंग से सजालो।

 

कोई ’विदग्ध’ अड़चन में काम नहीं आते

कल का तो ध्यान रख खुद बिगड़ी तो बना लो।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 110 – हुनर और परिश्रम की कीमत ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #110 🌻 हुनर और परिश्रम की कीमत 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

पिता ने बेटे से कहा, “तुमने बहुत अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन पूरी की है। अब क्यूंकि तुम नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहे हो, मैं तुमको यह कार उपहार स्वरुप भेंट करना चाहता हूँ, यह कार मैंने कई साल पहले हासिल की थी, यह बहुत पुरानी है। इसे कार डीलर के पास ले जाओ और उन्हें बताओ कि तुम इसे बेचना चाहते हो। देखो वे तुम्हें कितना पैसा देने का प्रस्ताव रखते हैं।”

बेटा कार को डीलर के पास ले गया, पिता के पास लौटा और बोला, “उन्होंने 60,000 रूपए की पेशकश की है क्योंकि कार बहुत पुरानी है।” पिता ने कहा, “ठीक है, अब इसे कबाड़ी की दुकान पर ले जाओ।”

बेटा कबाड़ी की दुकान पर गया, पिता के पास लौटा और बोला, “कबाड़ी की दुकान वाले ने सिर्फ 6000 रूपए की पेशकश की, क्योंकि कार बहुत पुरानी है।”

पिता ने बेटे से कहा कि कार को एक क्लब ले जाए जहां विशिष्ट कारें रखी जाती हैं।

बेटा कार को एक क्लब ले गया, वापस लौटा और उत्साह के साथ बोला, “क्लब के कुछ लोगों ने इसके लिए 60 लाख रूपए तक की पेशकश की है! क्योंकि यह निसान स्काईलाइन आर34 है, एक प्रतिष्ठित कार, और कई लोग इसकी मांग करते हैं।”

पिता ने बेटे से कहा, “कुछ समझे? मैं चाहता था कि तुम यह समझो कि सही जगह पर ही तुम्हें सही महत्व मिलेगा। अगर किसी प्रतिष्ठान में तुम्हें कद्र नहीं मिल रही, तो गुस्सा न होना, क्योंकि इसका मतलब एक है कि तुम गलत जगह पर हो।

सफलता केवल अपने हुनर और परिश्रम से नहीं मिल जाती, लोगों के साथ मिलती है, और तुम किन लोगों के बीच में हो, कुछ समय में तुमको स्वतः ही ज्ञात हो जाएगा। तुम्हें सही जगह पर जाना होगा, जहाँ लोग तुम्हारी कीमत जानें और सराहना करें।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

बहुत सारे लोग आप को कहते मिलेंगे राशिफल का कोई औचित्य नहीं है । परंतु अगर आप हमारे द्वारा लिखे जा राशिफल को अपने लग्न राशि के हिसाब से देखेंगे तो आपको यह 80% से ऊपर सही मिलेगा । अगर चंद्र राशि से देखेंगे तो यह 60% के ऊपर सही मिलेगा । आधुनिक विज्ञान पढ़ने वाले कई व्यक्ति पुरातन भारतीय संस्कृति को समझ नहीं पाते हैं । जबकि जो समझ में नहीं आए उसको समझना ही विज्ञान है । जो समझ में नहीं आए उसको गलत कहना विज्ञान नहीं है ।मैं पंडित अनिल पाण्डेय आज आप सभी को 10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रथमा से कार्तिक कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल आपको बताने जा रहा हूं ।

इस सप्ताह के आरंभ में चंद्रमा मीन राशि में रहेगा । उसके उपरांत मेष और वृष से गोचर करता हुआ दिनांक 15 अक्टूबर को दिन में 10:10 पर मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। पूरे सप्ताह सूर्य , बुध और शुक्र कन्या राशि में रहेंगे । मंगल प्रारंभ में वृष राशि में रहेगा तथा 15 तारीख को 5:30 सायं काल से मिथुन राशि में प्रवेश करेगा । गुरु मीन राशि में वक्री रहेगा । इसी प्रकार शनि मकर राशि में वक्री रहेंगे । राहु मेष राशि में रहेंगे। आइए अब हम राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । आपको संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । संतान की उन्नति होगी । भाग्य साथ देगा । किसी कारणवश जितना धन आना चाहिए था उससे थोड़ा कम आएगा । इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 अक्टूबर उत्तम और लाभकारी है । 10 अक्टूबर को आपको सफलता का योग कम है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनि देव का पूजन करें और शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पीपल के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके संतान की उन्नति हो सकती है। आपको संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । धन आएगा । स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । भाग्य साथ नहीं देगा । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर अत्यंत उत्तम है । 13 और 14 को आपको हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी । इसके विपरीत 11 और 12 अक्टूबर को आपको बहुत कम कार्य में सफलता प्राप्त होगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्य में सफलता मिल सकती है । छोटी मोटी दुर्घटना का योग है । जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । कार्यालय में भी आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाइयों से स्नेह बढ़ेगा । शत्रु परास्त हो जाएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 10 अक्टूबर तथा 15 और 16 अक्टूबर उत्तम और फलदायक हैं । 13 और 14 अक्टूबर को कम कार्यों में सफल होंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान जी की पूजा करें तथा तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाग्य आपका साथ देगा । धन थोड़ा कम आएगा । क्रोध की मात्रा बढ़ेगी । व्यापार में उन्नति होगी । संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा । इस सप्ताह 11 और 12 अक्टूबर को आप सभी कार्यों में सफल रहेंगे । 15 और 16 अक्टूबर को आपको बहुत कम कार्य में सफलता प्राप्त होगी । अतः आपको चाहिए कि आप अधिकांश कार्यों को 11 और 12 अक्टूबर को करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी का दर्शन करें और उनके सामने बैठकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का अच्छा योग है । व्यापार में आपके बहुत उन्नति होगी । भाग्य से किसी प्रकार मदद की अपेक्षा न करें । परिश्रम से ही आपको सफलताएं प्राप्त होंगी । नए शत्रु बनेंगे । पेट में पीड़ा हो सकती है । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । जनता में प्रसिद्धि प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर फलदायक हैं । 10 अक्टूबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार के दिन मंदिर में जाकर गरीबों के बीच चावल वितरित करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के अविवाहित जातकों के शादी के उत्तम प्रस्ताव आएंगे । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । प्रेम संबंध बनेंगे । भाग्य कम साथ देगा। । संतान को कष्ट हो सकता है । धन आने का कम योग है । इस सप्ताह आपके लिए 10 अक्टूबर तथा 15 और 16 अक्टूबर बहुत अच्छे हैं । इस दिन आप के अधिकांश कार्य सफल होंगे । 11 और 12 अक्टूबर को सफलता में कमी आएगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

मुकदमे में आपको सफलता प्राप्त होगी। । दुर्घटना से बचने का प्रयास करें । धन आ सकता है । भाई बहनों से संबंध अच्छे होंगे । इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर के अनुसार 11 और 12 अक्टूबर श्रेष्ठ है । 10 अक्टूबर तथा 13 और 14 अक्टूबर को आपको कम कार्यों में सफलता मिलेगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शिवजी का अभिषेक करें एवं प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । कार्यालय के कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी । धन आने का उत्तम योग है । संतान से संबंध ठीक रहेंगे । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर सफलता के लिए अच्छे दिन है । 11, 12 ,15 और 16 अक्टूबर को सफलता में कमी आएगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके सुख में थोड़ी कमी आएगी खर्चे बढ़ेंगे कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी आपको प्रतिष्ठा मिलेगी अगर प्रमोशन होने वाला है तो वह भी हो सकता है शत्रु परास्त होंगे व्यापार उत्तम चलेगा कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी भाग्य साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 1015 और 16 अक्टूबर श्रेष्ठ है । 13 और 14 अक्टूबर को आपके कई काम रुक सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपके भाग्य का सितारा इस सप्ताह बुलंद रहेगा । भाग्य से आपके कई कार्य संपन्न होंगे । यात्रा का योग है । व्यापार उत्तम चलेगा । संतान को कष्ट हो सकता है । आपका भी स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 अक्टूबर उत्तम है । 15 और 16 अक्टूबर को आपके काम रुक सकते हैं । आपको चाहिए क्या आप इस सप्ताह मंगलवार को मंदिर में जाकर भिखारियों के बीच में मसूर की दाल का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । भाग्य साथ देगा । यात्रा हो सकती है । आपके सुख में कमी आएगी । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर उत्तम है । 13 और 14 अक्टूबर को आप जो भी कार्य करेंगे उनमें से अधिकांश कार्य में आप सफल रहेंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने सुख में वृद्धि के लिए माताजी के स्वास्थ्य के लिए मंदिर में जाकर किसी योग्य ब्राह्मण को गेहूं का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । अविवाहित जातकों के अच्छे विवाह संबंध आएंगे । प्रेम संबंध बढ़ेंगे । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 10 15 और 16 अक्टूबर अद्भुत है। । इन तारीखों का आप भरपूर उपयोग करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

राजनिति अनिश्चितता ओं का खेल है । अगर आपको इस संबंध में कोई भविष्यवाणी जानना है तो आप मेरे व्हाट्सएप फोन नंबर 89595 94400 पर लिखकर व्हाट्सएप कर सकते हैं । हम परिणाम बताने का प्रयास करेंगे ।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सभी को सुख समृद्धि और वैभव प्राप्त हो। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 123 – बाळ गीत – रिमझिम पावसाच्या सरी ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 123 – बाळ गीत – रिमझिम पावसाच्या सरी ☆

रिमझिम पावसाच्या सरीवर सरी।

खेळात रंगल्या चिमुकली सारी।।धृ।।

पावसात मारती गरगर फे ऱ्या ।

म्हणती गाऱ्या गाऱ्या भिंगोऱ्या।

मोठ्यांचा चुकवून डोळा सारी।।१।।

थेंब झेलती इवले इवले।

अंगही झाले चिंब ओले।

चिखलात पडती खुशाल सारी।।२।।

छत्रीची नसे कसली चिंता।

भिजू आनंद लूटती आता।

दप्तर घेऊनिया डोक्यावरी।।२।।

पावसात भिजण्याची मजाच न्यारी।

पायाने पाणी उडवूया भारी।

आईला पाहू थबकली सारी।।३।।

पोटात एकदम ऊठले गोळे।

रडून के ले लाल लाल डोळे।

आई ही हसली किमया न्यारी ।।४।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #153 ☆ शेष या अवशेष ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख शेष या अवशेष। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 153 ☆

☆ शेष या अवशेष ☆

जो शेष बची है, उसे विशेष बनाइए, अन्यथा अवशेष तो होना ही है’,’ ओशो की यह उक्ति अत्यंत सार्थक है, जिसमें जीवन-दर्शन निहित है और वह चिंतन करने को विवश करती है कि मानव को अपने शेष जीवन को विशेष बनाना चाहिए; व सार्थक एवं परार्थ काम करने चाहिएं। सार्थक कर्म से तात्पर्य यह है कि आप जो भी कार्य करें, उससे न तो अन्य की हानि न हो; न ही उसकी भावनाएं आहत हों और उसका आत्म-सम्मान भी सुरक्षित रहे। वास्तव में दोनों स्थितियाँ उस व्यक्ति के लिए घातक हैं–जिसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। सो! मानव को सदैव लफ़्ज़ों को चखकर बोलना चाहिए, क्योंकि लफ़्ज़ों के भी ज़ायके होते हैं और मानव को उन शब्दों का प्रयोग तभी करना चाहिए; जब वे आपके लिए उचित व उपयोगी हों; वरना मौन रहना ही बेहतर है–गुलज़ार की यह सोच अत्यंत कारग़र है।

शब्द ब्रह्म है, अनश्वर है तथा उसका प्रभाव स्थायीयी है। आप द्वारा कहे गए शब्द किसी के जीवन में ज़हर घोल सकते हैं, बड़े-बड़े महायुद्धों का कारण बन सकते हैं और सहानुभूति के दो शब्द उसके जीवन की दिशा परिवर्तित कर सकते हैं। इतना ही नहीं, वे सागर के अथाह जल में डूबती-उतराती नैया को पार लगा सकते हैं;  निराश मन में आशा की किरण जगा सकते हैं और उसे ऊर्जस्वित करने की दिव्य शक्ति भी रखते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों के शब्दों के जादुई प्रभाव से कौन अवगत नहीं है। वे असंभव को संभव बनाने का सामर्थ्य रखते थे। दूसरी ओर दुर्वासा, विश्वामित्र, परशुराम, गौतम ऋषि आदि के क्रोध भरे शब्द सृष्टि में तहलक़ा मचा देते थे, जिसका उदाहरण शापग्रस्त अहिल्या का वर्षों तक शिला रूप में अवस्थित रहना; परशुराम का अपनी माता का सिर तक काट डालना और दुर्वासा व विश्वामित्र ऋषि के क्रोध से सृष्टि का कंपित हो जाना सर्वविदित है।

सो! मानव को सदैव मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए, जिसे सुनकर हृदय उल्लसित, आंदोलित व ऊर्जस्वित हो जाए और वह असंभव को संभव बनाने का साहस जुटा सके। इसी संदर्भ में मुझे स्मरण हो रहा है मेरे ‘परिदृश्य चिंतन के’ आलेख–संग्रह का प्रथम आलेख ‘तुम कर सकते हो’ के असंख्य उदाहरणऐ हमारे समक्ष हैं। मानव में असीमित शक्तियों का भंडार है, जिनसे वह अवगत नहीं है। परंतु जब उसे अंतर्मन में संचित शक्तियों का एहसास दिलाया जाता है, तो वह पर्वतों का सीना भेद कर सड़क का निर्माण कर सकता है; उनसे टकरा सकता है तथा नेपोलियन की भांति आपदाओं को अवसर बना सकता है। इतना ही नहीं, वह आइंस्टीन की भांति सोचने लगता है कि ‘यदि लोग आपकी सहायता करने से इंकार करते हैं, तो निराश मत हो, बल्कि उन लोगों के शुक्रगुज़ार रहो, जिन्होंने आपकी सहायता से इंकार किया है और उनके कारण ही आप उनआप असंभव कार्यों को अंजाम दे सकेसके हैं, जो अकल्पनीय थेहैं।’

सो! जीवन में आत्मविश्वास के सहारे जीओ, यही तुम्हारी प्रेरणा है और यही है जीवन में शेष को विशेष बनाना। सृष्टि के हर उपादान से प्रेरित होकर निरंतर कर्मशील रहना, क्योंकि समय कभी थमता नहीं; निरंतर चलता रहता है और सृष्टि में समय व नियमानुसार परिवर्तन होते रहते हैं। इसलिए मानव को कभी निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि ‘सब दिन ना होत समान अर्थात् ‘जो आया है अवश्य जाएगा।” प्रत्येक स्थिति व परिस्थिति सदा रहने वाली नहीं है। इसलिए मानव को विषम परिस्थितियों का डटकर सामना करना चाहिए और जो बदला जा सके, बदलिए; जो बदला ना जा सके, स्वीकारिए और जो स्वीकारा न जा सके, उससे दूर हो जाइए; लेकिन ख़ुख़ुद को खुश रखिए, क्योंकि वह आपकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। बुद्धिमान सबसे सीख लेता है; शक्तिशाली इच्छाओं पर नियंत्रण करता है; सम्मानित दूसरों का सम्मान करता है और धनवान जो उसके पास है, उसमें प्रसन्न रहता है। मानव को आत्म-संतोषी होना चाहिए। जो उसे नहीं मिला; उसका शोक नहीं मनाना चाहिए, बल्कि उन लोगों की ओर देखना चाहिए जो उससे भी वंचित हैं।

भाग्य कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं है, उसे तो रोज़-रोज़ लिखना पड़ता है। मानव अपना भाग्य-विधाता स्वयं है। दृढ़-निश्चय व निरंतर परिश्रम करने से वह सब प्राप्त कर सकता है, जो उसे प्राप्तव्य नहीं है। मानव को भाग्यवादी व आलसी नहीं होना चाहिए, बल्कि जीवन में हर पल प्रभु का नाम स्मरण करना चाहिए। ”सुमिरन कर ले बंदे! यही तेरे साथ जाएगा’ पंक्तियां मानव को सचेत करती हैं कि प्रभु का नाम-स्मरण ही जन्म-जन्मांतर तक साथ चलता है; शेष सब तो इस धरा का धरा पर ही धरा रह जाता है। राम नाम में असीम शक्ति होती है। इसलिए ही तो जिन पत्थरों पर राम नाम लिख कर सागर में डाला गया था, वे तैरते रहे थे और रामेश्वरम् का पुल बनकर तैयार हो गया था।

ऐसी स्थिति में मानव का परमात्मा से तादात्म्य हो जाना स्वाभाविक है और वह उसके चरणों में सर्वस्व समर्पित कर देता है। उसका अहं अर्थात् मैं का भाव, जो सर्वश्रेष्ठता का प्रतीक है, सदा के लिए विलीन हो जाता है। वह मौन को नवनिधि स्वीकार उसमें आनंद पाने लगता है। पंच-तत्वों से निर्मित मानव जीवन नश्वर है और अंत में इस शरीर को पंचतत्वों में ही विलीन हो जाना है। ‘यह किराए का मकाँ है/ जाने कौन कब तक यहाँ ठहर पाएगा/ खाली हाथ तू आया है बंदे/ खाली हाथ तू जाएगा।’  इंसान इस तथ्य से अवगत है किउसे संसार से उसे खाली हाथ लौटना है और एक तिनका भी उसके साथ नहीं जाएगा। यह दस्तूर-ए-दुनिया है और इस संसार में दिव्य खुशी पाने का सर्वोत्तम मार्ग है– प्रभु का सिमरन करना और यही है शेष को विशेष अथवा जीते-जी मुक्ति पाने का सर्वोत्तम मार्ग, जो मानव का अभीष्ठ है।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ किसलय की कलम से # 71 ☆ बच्चों के विकास में बाल कविताओं की भूमिका ☆ डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय  एवं सार्थक आलेख “बच्चों के विकास में बाल कविताओं की भूमिका।)

☆ किसलय की कलम से # 71 ☆

☆ बच्चों के विकास में बाल कविताओं की भूमिका ☆ 

बच्चों के बौद्धिक स्तर, उनकी आयु व अभिरुचि का ध्यान रखते हुए उनके सर्वांगीण विकास में देश, समाज एवं परिवार के प्रत्येक सदस्य का उत्तरदायित्व होता है। हमारे समवेत प्रयास ही बच्चों के यथोचित विकास में चार चाँद लगा सकते हैं। बाल विकास में साहित्य का जितना योगदान है उतना किसी अन्य विकल्प का नहीं है। खासतौर पर आठ सौ वर्ष से अब तक लिखी गईं बाल कविताओं एवं प्रचलित विविध पद्यात्मक अंशों के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि आज भी इनका बच्चों के जीवन में विशेष स्थान है। जब बाल कविताओं का इतना महत्त्व है तब इनके उपयोग, स्तर, विषय के अतिरिक्त इनके प्रयोग एवं सृजन में सावधानी तथा संवेदनशीलता पर ध्यान देना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वहीं इस अहम विषय की जानकारी भी आमजन को होना बहुत जरूरी है।

इसलिए यहाँ सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि बाल कविताओं का सीधा अभिप्राय बालकों से संबंधित रचनाओं से होता है। वैश्विक स्तर पर कविताओं को मानव जीवन का अभिन्न अंग माना गया है। वार्ता, मनोरंजन, हर्ष-विषाद, स्नेह-स्मृति सहित बच्चे-बूढ़ों का कविताओं से सनातन नाता रहा है। बच्चों के जन्म लेते ही माँ अपने बच्चों को सुलाने के लिए लोरियाँ सुनाती है। बहलाने हेतु लोकगीत अथवा पारंपरिक गीतों का सहारा लेती है। उम्र और समझ के अनुसार छोटी-छोटी पंक्तियों और सरल शब्दों वाले गीत सुना कर उन्हें बहलाती है और स्वयं भी आनंदित होती है। प्रायः देखा गया है कि 3 से 4 वर्ष तक की आयु के बच्चे छोटे-छोटे गीत और कविताओं पर ध्यान देने लगते हैं। 5 से 6 वर्ष के बच्चे तो कविताओं से संबंधित प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं। लेकिन आज दुर्भाग्य यह है कि कविताएँ, गीत, पद्यात्मक लोकोक्तियाँ, पहेलियाँ आदि सुनाने के लिए न तो दादा-दादी और न ही नाना-नानी मिलते, वहीं माँ-बाप को इतनी फुर्सत नहीं मिलती कि वे बच्चों को बाल कविताएँ सुना सकें और उनकी जिज्ञासाओं को शांत कर सकें। उन्हें समझाने की बात तो दूर, उन्हें पारंपरिक, आधुनिक और बौद्धिक खुराक भी नहीं दे पाते।

हम सभी को ज्ञात होना चाहिए कि बच्चों को एकांत और नीरसता कतई पसंद नहीं होती। बच्चों को खेल-खेल में जीवनोपयोगी बातों, पद्यात्मक लोकोक्तियों, मुहावरों, मुक्तकों और पहेलियों के माध्यम से कुछ न कुछ सिखाते रहना चाहिए। शिक्षा और संस्कृति  विषयक कवितायें छोटी होने के साथ-साथ बच्चों को याद होने लायक हों।शब्द व भाव उनके द्वारा भोगे गए बचपने के हों तो उन्हें रुचिकर भी लगेगा और वे उन्हें याद भी कर सकेंगे। बच्चे अक्सर उन्हें गुनगुनाते भी रहते हैं। कवितायें आनंदप्रद तो होती ही हैं वे बच्चों के विकसित हो रहे मस्तिष्क को और भी सक्रिय करती हैं, क्योंकि बच्चे बाल कविताओं  को पढ़ते समय कवि की भावनाओं से जुड़कर अपने व्यक्तिगत जीवन की बातों को भूल-से जाते हैं। आशय यह है कि इस महत्त्वपूर्ण बात को ध्यान में रखकर कवि द्वारा बच्चों की उम्र व समझ के अनुरूप ही काव्य रचना करना चाहिए। बाल कविताओं की सृजन प्रक्रिया में बच्चों के परिवेश, उनकी रुचि, भाषा की सरलता, छोटी पंक्तियाँ आदि पर विशेष ध्यान देना श्रेयस्कर होता है अन्यथा बहुविषयक बोझिलता बच्चों के लिए अप्रियता का कारण बन सकती है।

कविताओं में लल्ला लल्ला लोरी, ईचक दाना बीचक दाना या फिर अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो जैसे निरर्थक शब्दों का प्रयोग भी अधिकतर बालकों की रुचि को और बढ़ा देते हैं। उम्र के पड़ाव पर पड़ाव पार होने के बावज़ूद ऐसी अनेक काव्य पंक्तियाँ या काव्यांश होंगे जो आज भी हम सबको मुखाग्र  हैं। भले ही ये शब्द लय की पूर्णता हेतु प्रयोग किए जाते हैं लेकिन गीत या कविता की लोकप्रियता में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। कवि द्वारा यह ध्यान देना भी जरूरी  है कि सृजन में राजनीति, वैमनस्य, फरेब, हिंसा जैसे विषय समाहित न हों, क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द के पशु-पक्षी, फल-फूल, सब्जियाँ, आकाश, सूरज-चाँद-सितारे और अपने खिलौनों के साथ हमउम्र बच्चे ही इनकी छोटी-सी दुनिया होते हैं। धर्म, राजनीति, लिंगभेद, जाति का इनकी दिनचर्या में कोई स्थान नहीं होता।

बच्चों की दिनचर्या और इनकी बारीक से बारीक गतिविधियों पर असंख्य कविताएँ लिखी गई हैं। बाल काव्य लेखन में निश्चित रूप से महाकवि ‘सूर’ को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ‘तुलसी’ बाबा को बाल काव्य सृजन में दूसरा स्थान प्राप्त है। इन श्रेष्ठतम महाकवियों के बाल विषयक काव्य का विश्व में कोई सानी नहीं। बावज़ूद इसके बालोपयोगी और बच्चों की समझ में आने वाली कविताओं का आज भी टोटा है। इसका आशय यह कदापि नहीं है कि बाल कविताएँ लिखी ही नहीं जा रही हैं। बड़े से बड़ा कवि बाल कविताओं को अपने सृजन में अवकाश देता है।

बालोपयोगी एवं बाल मनोरंजन हेतु लिखी गई कविताओं का बहुत प्राचीन इतिहास है। 14वीं शताब्दी के प्रारंभ को ही देखें तो अमीर खुसरो लिख चुके थे-

‘एक थाल मोती से भरा

सबके ऊपर औंधा धरा’

भारतेंदु हरिश्चन्द्र, मैथिलीशरण गुप्त, कामता प्रसाद गुरु, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, देवी दयाल चतुर्वेदी, आचार्य भगवत दुबे, अश्विनी पाठक, सुरेश कुशवाहा तन्मय आदि ऐसे कवि-कवयित्री हैं जिन्होंने बाल कविताओं के माध्यम से बच्चों के ज्ञानवर्धन के साथ मनोरंजन भी किया है।

आज बदलती शिक्षा प्रणाली, बदलते परिवेश व व्यस्त दिनचर्या के चलते जीवनमूल्य, मनुष्यता एवं चारित्रिक बातें समयानुकूल नहीं मानी जातीं। आज अधिकांश लोगों का मात्र एक ही उद्देश्य रहता है कि हमारी संतान विद्यालय में पैर रखते ही कक्षा में अव्वल आए और मेरिट में आते हुए पूर्ण शिक्षित हो, तदुपरांत श्रेष्ठ से श्रेष्ठ नौकरी या व्यवसाय प्राप्त कर ले।

आज की परिस्थितियों में धर्म, राजनीति, रिश्ते और परहित के पाठ जीवन जीने के लिए उतने जरूरी नहीं माने जाते जितना कि निजी वर्चस्व और समृद्धि की सुनिश्चितता होती है। यही वर्तमान जीवनशैली आज का मूल मंत्र है जो हमें अपने ही परिवार और इस समाज से मिला है। हम गहनता से चिंतन-मनन करें तो कारण स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि आज के बच्चे भारतीय संस्कृति, धर्म, परंपराओं, रिश्तों एवं व्यवहारिकता से दूर क्यों होते जा रहे हैं।

बच्चों में सद्कर्मों के अंकुरण में बाल कविताओं का स्थान कमतर नहीं है। आज बालकों को पाठ्यक्रम से इतर पढ़ने, समझने, सामाजिक जीवन जीने तथा साहित्य सृजन हेतु समय और अवसर दोनों ही नहीं मिलते। एक जमाना था जब बच्चों को साहित्य लेखन हेतु प्रोत्साहित किया जाता था उनके लेखन की गलतियों को नजरअंदाज करते हुए उनकी बौद्धिक एवं सामाजिक क्षमता को बढ़ाया जाता था। यह सृजन क्षमता उनकी बहुआयामी मौलिकता की पहचान एवं उनके यथोचित विकास में सहायक होती थी। बच्चों द्वारा किया गया सृजन एवं बचपन में कंठस्थ कविताएँ उन्हें जीवन भर याद रहती हैं, जो उन्हें समय-समय पर सद्कर्मों हेतु प्रेरित करती हैं।

साहित्य सृजन में रुचि रखने वाले बालकों को स्थानीय और देश-विदेश की नई-पुरानी, अच्छी-बुरी और धर्म-कर्म की विस्तृत जानकारी सहजरूप से ज्ञात हो जाती है जो उन्हें आम आदमी से अलग करती है। इस तरह हम देखते हैं कि बाल कविताएँ बचपन में ही नहीं उनके वयस्क और बुजुर्ग होने तक कहीं न कहीं उनकी सहायक बनती ही हैं।

हमें यह ख़ुशी है कि उन परिस्थितियों में जब मानवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा हो और जब लोगों का ध्यान केवल बच्चों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने में लगा हो, ऐसे समय में बच्चों के नैतिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विकास हेतु कुछ लोग व संस्थायें निरंतर सक्रिय हैं।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत

संपर्क : 9425325353

ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #153 ☆ भावना के दोहे… आँखें ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे…आँखें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 153 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… आँखें ☆

तिनका लगता आँख में, होती है जब पीर।

आँखों के इस दर्द से, बहता है जब नीर।।

आँखों के इस दर्द का, न है कोई इलाज।

नीर-नीर बहता रहे, दर्द है लाइलाज ।

आँखें तेरी देखकर, है सुख का आभास।

बहे कभी भी नीर तो, रहूँ सदा मैं पास ।।

आँखों-आँखों  ने कहा, तू है मेरा कौन।

अनुरागी संकेत से, आँखें होती मौन।।

आँखों ने अब पढ़ लिया, तू है मेरा मीत।

कैसे तुझसे कब मिलूँ, झरता है संगीत।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #140 ☆ संतोष के दोहे – भ्रष्टाचार ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – भ्रष्टाचार। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 140 ☆

 ☆ संतोष के दोहे – भ्रष्टाचार ☆ श्री संतोष नेमा ☆

नैतिकता जब सुप्त हो, जागे भ्रष्टाचार

बेईमानी भरी तो, बदल गए आचार

 

हरड़ लगे न फिटकरी, खूब करें वे मौज

अब के बाबू भ्रष्ट हैं, इनकी लम्बी फ़ौज

 

कौन रोकता अब किसे, शासक, नेता भ्रष्ट

अंधा अब कानून है, जनता को बस कष्ट

 

हुआ समाहित हर जगह, किसको दें हम दोष

बन कर पारितोषिक वह, दिला रहा परितोष

 

दया-धर्म सब भूलकर, निष्ठुर होता तंत्र

भ्रष्टाचारी जानते, बस दौलत का मंत्र

 

आमदनी है अठन्नी, खर्च करें दस बीस

महल घूस का बना कर, बनते मुफ्त रईस

 

फैशन सा अब बन गया, देखो भ्रष्टाचार

मानवता अब सिसकती, देख भ्रष्ट आचार

 

लालच में जो बेचते, अपना स्वयं जमीर

किये बिना संघर्ष ही, चाहें  बनें अमीर

 

चुने कौन संतोष अब, संघर्षों की राह

पैसे जल्दी बन सकें, बस रखते यह चाह

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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