हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 155 ☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 155 ☆

☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

रंग- बिरंगी मीन घूमतीं

     बड़े जार के अंदर।

ढूँढ़ रही हैं नदियाँ कल- कल

     गहरा नील समंदर।।

 

बार – बार टकरातीं तट से

     दूर कहीं मंजिल है।

चारों ओर लगे है ऐसा

     खड़ी हर तरफ हिल है।।

 

सूरज की किरणों सी चमचम

       मीन हैं प्यारी- प्यारी।

अपनी माँ से बिछुड़ घूमतीं

      नन्ही राजकुमारी।।

 

कैद नहीं मीनों को भाए

     आजादी सबको प्यारी।

शौक पालते अपने सुख को

       गजब है दुनियादारी।।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #156 ☆ संत कबीर… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 156 ☆ संत कबीर… ☆ श्री सुजित कदम 

सत्य कर्म सिद्धांताचे

संत कबीर द्योतक

पुरोगामी संत कवी

दोहा अभंग जनक…! १

 

ज्येष्ठ पौर्णिमेचा दिन

कबिरांचा जन्म दिन

देव आहे बंधु सखा

जपू नाते रात्रंदिन….! २

 

कर्म सिद्धांताचे बीज

संत कबीरांची वाणी

धर्म भाषा प्रांतापार

निर्मियली बोलगाणी….! ३

 

सांगे कबिराचे दोहे

सोडा साथ अज्ञानाची

भाषा संस्कृती अभ्यास

शिकवण विज्ञानाची…! ४

 

बोली भाषा शिकोनीया

साधलासे सुसंवाद

अनुभवी विचारांना

व्यक्त केले निर्विवाद…! ५

 

एकमत एकजूट

दूर केला भेदभाव

सामाजिक भेदभाव

शोषणाचे नाही नाव…! ६

 

समाजाचे अवगुण

परखड सांगितले

जसा प्रांत तशी भाषा

तत्त्वज्ञान वर्णियले…! ७

 

राजस्थानी नी पंजाबी

खडी बोली ब्रजभाषा

कधी अवधी परबी

प्रेममयी ज्ञान दिशा…! ८

 

ग्रंथ बीजक प्रसिद्ध

कबीरांची शब्दावली

जीवनाचे तत्त्वज्ञान

प्रेममय ग्रंथावली…! ९

 

नाथ संप्रदाय आणि

सुफी गीत परंपरा

सत्य अहिंसा पुजा

प्रेम देई नयवरा…! १०

 

संत कबीर प्रवास

चारीधाम भारतात

काशीमधे कार्यरत

दोहा समाज मनात…! ११

 

आहे प्रयत्नात मश

मनोमनी रूजविले

कर्ममेळ रामभक्ती

जगा निर्भय ठेविले…! १२

 

हिंदू मुस्लिम ऐक्याचा

केला नित्य पुरस्कार

साखी सबद रमैनी

सधुक्कडी आविष्कार…! १३

 

बाबा साहेबांनी केले

संत कबीरांना गुरू

कबीरांचे उपदेश

वाट कल्याणाची सुरू…! १४

 

काशीतले विणकर

वस्त्र विणले रेशमी

संत कबीर महात्मा

ज्ञान संचय बेगमी…! १५

 

सुख दुःख केला शेला

हाती चरखा घेऊन

जरतारी रामनाम

दिलें काळीज विणून…! १६

 

संत्यमार्ग चालण्याची

दिली जनास प्रेरणा

प्रेम वाटा जनलोकी

दिली नवी संकल्पना…! १७

 

मगहर तीर्थक्षेत्री

झाला जीवनाचा अंत

साधा भोळा विणकर

अलौकिक कवी संत…! १८

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – कविता स्मरण… – शांता शेल्के ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– कविता स्मरण… – शांता शेल्के  ? ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला केळकर 

मावळतीला गर्द शेंदरी रंग पसरले

जसे कुणाचे जन्मभराचे भान विसरले

जखम जिवाची हलके हलके भरून यावी

तसे फिकटले, फिकट रंग ते मग ओसरले

घेरित आल्या काळोखाच्या वत्सल छाया

दुःखाचीही अशी लागते अनवट माया

आक्रसताना जग भवतीचे इवले झाले

इवले झाले आणिक मजला घेरित आले

मी दुःखाच्या कुपीत आता मिटते आहे

एक विखारी सुगंध त्याचा लुटते आहे

सुखदुःखाच्या मधली विरता सीमारेषा

गाठ काळजातली अचानक सुटते आहे

जाणिव विरते तरीही उरते अतीत काही

तेच मला मम अस्तित्वाची देते ग्वाही

आतुरवाणी धडधड दाबून ह्रुदयामधली

श्वास आवरून मन कसलीशी चाहुल घेई

हलके हलके उतरत जाते श्वासांची लय

आता नसते भय कसले वा कसला संशय

सरसर येतो उतरत काळा अभेद्य पडदा

मी माझ्यातून सुटते, होते पूर्ण निराशय……

रचना : शांता शेळके

प्रस्तुती : सौ. उज्ज्वला केळकर 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #177 – तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष)

☆  तन्मय साहित्य  #177 ☆

☆ तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बुद्धि विलास बहुत हुआ,  तजें कागजी ज्ञान।

कुछ पल साधे मौन को, हो यथार्थ पर ध्यान।।

खुद ही खुद को छल रहे, बन कर के अनजान।

भटक रहे  हैं  भूल कर,  खुद की  ही  पहचान।।

अहंकार मीठा जहर, नई-नई नित खोज।

व्यर्थ लादते गर्व को, अपने सिर पर रोज।।

                      

अनुत्तरित हम ही रहे, जब भी किया सवाल।

हमें  मिली  अवमानना,  उनको  रंग  गुलाल।।

चमकदार    संवेदना,    बदल    गया   प्रारब्ध।

अधुनातन गायन रुदन, नव तकनिक उपलब्ध।।

हुआ अजीरण  बुद्धि का,  बढ़े घमंडी बोल।

आना है फिर शून्य पर, यह दुनिया है गोल।।

तृष्णाओं के जाल में, उलझे हैं दिन-रैन।

सुख पाने की चाह में,  और-और बेचैन।।

जीवन  से  गायब  हुआ,  शब्द  एक  संतोष।

यश,पद,धन के लोभ में, खाली मन का कोष।।

दर्पण में दिखने लगे, भीतर के अभिलेख।

शांतचित्त एकाग्र हो,  पढकर उनको देख।।

नव-संस्कृति के दौर में, शिष्टाचार उदास।

रंग- ढंग बदले सभी, बदले सभी लिबास।।

व्यर्थ प्रदर्शन चल रहे, भीड़ भरे बाजार।

बदन उघाड़े विचरते, अधुनातन परिवार।।

है प्रवेश बाजार का, घर में अब  निर्बाध।

विज्ञापन भ्रम जाल में, बढ़े ठगी-अपराध।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 63 ☆ बुन्देली गीत – प्यारी माई… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक बुंदेली गीत  – “प्यारी माई”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 63 ✒️

?  बुन्देली गीत – प्यारी माई… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

मोरी माई , प्यारी माई ,

कित्ती करौं बढ़ाई ।

हरई जनम रऔं तोरो लरका,

और तैं मोरी माई ।।

 

भोर भए बा चकिया पीसत ,

कुआं से पानी भरवै ,

ढोरन कों चारा डारत है ,

बऊ की सेवा करवै ,

बब्बा ने गईंयां दोह लईं ,

और माई कलेवा लाई ।

मोरी माई ——————- ।।

 

तुरंतईं से बा टिफन लगावै ,

मोय साला भिजवावे ,

मोरी सबरी कई बा मानत ,

टूसन भी पढ़वाबे ,

ऊसें बड़ों ना कोऊ जग में,

जा सबने समझाई ।

मोरी माई ——————–।।

 

रात बियारी हमें करावै ,

रोटी चुपर खवाबै ,

देह स्वस्थ जा रखबी कैंसें,

दूध लाभ समझावे ,

किस्सा  आल्हा उदल बारी ,

” सलमा ” हमें सुनाई ।

मोरी माई ——————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “चलना है बाकी।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कहाँ तय हुआ

फ़ासला दुख भरा

अभी कंटकों में चलना है बाकी।

 

वही रोज़ की

चिकचिकों से घिरा

दिन उजाले को ले

सूर्य द्वारे खड़ा

शाम अख़बार सी

एक बासी ख़बर

तम से हर रात

दीपक अकेला लड़ा

 

कहाँ क्या हुआ

रोती अब भी धरा

अभी पीर का तो गलना है बाकी।

 

नियम कायदे

जैसे मजबूरियाँ

घुल रही ख़ून में

एक ज़िंदा हवस

ओढ़कर बेबसी

पाँव यायावरी

लौट आये वहीं

जिस जगह थे तमस

 

लादकर बेड़ियाँ

श्रम हुआ अधमरा

अभी मंज़िलों पर पहुँचना है बाकी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 177 ☆ बाई… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 177 ?

💥 बाई… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

काहीतरी या मनात

सदा  आहेच सलते

दु:ख कोणते सदैव

 बाई  आहेच दळते

 

बाईपण सोसू कसे

चिंता अखंड करते

शैशवात फुलताना

काट्यावर ती  वसते

 

आई म्हणाली हळूच

कानी तेराव्याच वर्षी

“मोठी झालीस तू आता”

नको जाऊस दाराशी

 

 आत कोंडले स्वतःस

  नाही दारापाशी गेली

  रूप ऐन्यात पाहून

  स्वतः वरती भाळली

 

बाई आहे म्हणताना

जीणे अन्यायाचे आले

अशा त-हेने जगता

ओझे आयुष्याचे झाले

© प्रभा सोनवणे

१६ मार्च २०२३

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें…

(सजल – मात्रा – 28, सामंत – ईत, पदांत – दिखता है, मात्रा भार – 28)

 मौसम में चल रहा छल कपट, न नवनीत दिखता है।

चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।

 

नेह का पैमाना बदला कुछ, अब इस जमाने में,

जहाँ निज स्वार्थ की आशा, वही मनमीत दिखता  है ।

 

सद्भावना का अंत है, तलवारें हैं खिचीं-खिचीं ,

साहसी मानव भी अब तो, कुछ भयभीत दिखता है।

 

दिलों की गहराईयों में,अब कौन झाँकता भला ,

बेसुरे वाद्य यंत्रों में, मधुर संगीत दिखता है ।

 

दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,

जलाओ प्रेम का दीपक, सुखद नवगीत दिखता है ।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 03 ☆ मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 2 ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का अगला भाग )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 03 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 2 ?

(2015 अक्टोबर – इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को  घूमने का कार्यक्रम बनाया। पिछले भाग में आपने पुर्तगाल यात्रा वृत्तांत पढ़ा। )

यात्रा वृत्तांत (स्पेन) – भाग दो

एक सप्ताह पुर्तगाल में रहने के बाद हम यूरोरेल द्वारा अल्बूफेरिया से मैड्रिड आए। यह दूरी 328 किमी की है, यात्रा के लिए साढ़े तीन घंटे लगते हैं। यूरोरेल की यात्रा आनंददायी रही। समुद्र तट से होते हुए जंगलों के बीच से गुज़रती रेलगाड़ी सुंदर दृश्य उपस्थित करती जाती है और समय का पता ही नहीं चलता। मैड्रिड शहर से पहले विशाल काले साँड की मूर्ति दिखाई दी, जिसे देखकर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नकली साँड है। साँड का खेल इस देश का राष्ट्रीय खेल रहा है। इसे बुल फाइट कहते हैं।

रेल द्वारा यात्रा करते समय हम तीनों को एक बात का अहसास हुआ कि रेलगाड़ी में कितने ही लोग थे पर शोर कहीं नहीं था। फोन पर बात करनेवाला हर व्यक्ति अत्यंत धीमी आवाज में बातचीत करता दिखाई दिया। यह उनकी संस्कृति का एक अहम पहलु है। इसकी तुलना में एशियाई बहुत ऊँची आवाज़ में बोलते हैं। उन्हें देखकर तो हम तीनों भी फुसफुसाहट का सहारा लेकर बातें करने लगे।

मैड्रिड योरोप का सबसे हराभरा शहर है। यह स्पेन की राजधानी होने के कारण सदा अपनी सुंदरता और सजावट के लिए प्रसिद्ध है। प्लाजा मेयर एक विशाल इमारत है जहाँ कला, चित्रकारी, इतिहास, संग्रहालय आदि सभी के दर्शन संभव हैं। इस स्थान को देखने के लिए दो दिन तो लगते ही हैं। हम सबसे पहले उस मैदान का दर्शन करने गए जहाँ से बुल फाइट का राष्ट्रीय खेल प्रारंभ होता था। आज उस पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर सारी व्यवस्थाएँ अब भी वैसी ही हैं।

इतिहास में झाँकें तो यह शहर पाषाण युग से अपने अस्तित्व में रहा है। यहाँ मनुष्य की विभिन्न जातियाँ झुंड में रहा करती थीं। आधुनिक युग में यह एक खूबसूरत शहर है। फुटबॉल का मुख्य केंद्र मैड्रिड ही था, आगे चलकर अब बार्सेलोना बन गया। आमेर मोहम्मद के आने पर 9वीं शताब्दी में यहाँ अरब निवासियों की अधिकता थी और लंबे समय तक शासक भी रहा। ईसाई राज्य स्थापना के बाद यहाँ योरोपियन स्टाइल का विकास हुआ।

यहाँ ही संसार का सबसे पुराना रेस्तराँ आपको देखने के लिए मिलेगा। कई दर्शनीय संग्रहालय भी हैं यहाँ। प्रैडो संग्रहालय है जहाँ कई नामवंत चित्रकारों की कलाकृतियाँ देखने को मिलती हैं। शहर स्वच्छ तथा नई-पुरानी इमारतों से पटा हुआ है।

शहर भर घूमने के लिए हॉप ऑन हॉप ऑफ बस की सुविधा उपलब्ध है। लाल, हरी, पीली बसें सुबह 8 से शाम 8 तक शहर भर घूमती हैं। लाल बस सभी संग्रहालयों का दर्शन कराती हैं, हरी बस ऐतिहासिक स्थलों की और पीली बस इंडस्ट्रियल बेल्ट की। सैलानी अपनी इच्छानुसार दो दिन या तीन दिन के लिए बस की टिकट खरीदकर सुबह से शाम तक घूमने का आनंद ले सकते हैं। जिस स्थान को देखना चाहते हैं वहाँ उतर जाएँ फिर किसी भी बस में बैठ जाएँ। यह अत्यंत सुविधाजनक व्यवस्था है। दो या तीन दिन के लिए टिकट खरीदने पर वह सस्ता भी पड़ता है। बसें चढ़ते ही साथ बस चालक इयरफोन देता है, बस में इयरफोन कनेक्ट करने की सुविधा होती है जिस कारण हर स्थान की जानकारी कई भाषाओं में निरंतर मिलती रहती है। हमने तीन दिन के लिए टिकट ले लिए और अपनी उत्सुकता, रुचि और जिज्ञासा के अनुसार दर्शनीय स्थानों को देखते रहे।

अब यहाँ ठंडी हवा चलने लगी थी और हमें होटल में वार्मर लगाने की आवश्यकता पड़ी।

तापमान 9° पर उतर आया था और हमारे लिए शाम के समय घूमना कठिन हो रहा था।

हमारा अगला पड़ाव था ग्रैनाडा।

यह यात्रा हमने यूरोरेल द्वारा पूरी की। मैड्रिड से ग्रैनाडा 360 कि.मी. की दूरी है। हमें ग्रैनाडा पहुँचने में साढ़े तीन घंटे लगे।

यहाँ एक बात बताना चाहूँगी कि आप भारत से निकलने से पूर्व योरोरेल की टिकट खरीद सकते हैं, इससे आपको यात्रा करने में आसानी होती है।

हम ग्रानाडा पहुँचे यह नवाडा पहाड़ी की तराई में बसा शहर है। यह शहर स्पेन के अंडालूसिया रिजन में छोटा शहर है। खूबसूरत शहर। बाग -बगीचे और फव्वारों से सजे पुराने किले, महल देखने को मिलते हैं। यह शहर सुंदर विशाल चर्च और अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लोकल की संख्या से अधिक सैलानियों की भीड़ साल भर देखने को मिलती है। अलहम्ब्रा और नासिर्द पैलेस, कैथेड्रिल, रॉयल चैपल ऑफ ग्रानाडा आदि दर्शनीय स्थल हैं। सभी जगहों पर दो से तीन हज़ार भारतीय मुद्राओं के टिकट खरीदने पड़ते हैं जिसकी भुगतान यूरो में करने की बाध्यता होती है। यहाँ सभी महल, बाग-बगीचे, चर्च आदि के लिए प्रवेश शुल्क देने की आवश्यकता होती है। इसलिए पहले से ही तय कर लेना चाहिए कि क्या -क्या देखना है। हम यहाँ तीन दिन रहे। और चौथे दिन हम मलागा के लिए रवाना हुए।

हमने ग्रानाडा से मलागा तक का सफर बस द्वारा तय किया क्योंकि हमें रोड ट्रिप का भी आनंद लेना था।। अत्यंत आरामदायक बस की यात्रा रही। रास्ते भी बहुत अच्छे। बस एक -दो बार रुकी। चाय -कॉफी और शौचालयों की सुविधा मिली। शौचालय के लिए दो यूरो देना अनिवार्य है। जो यात्रा करते हैं वे इस बात से सहमत भी होंगे कि अगर साफ सफाई रखनी हो, टॉयलेट पेपर, हैंड वॉश, हैंड ड्रायर की सुविधा हो तो उसकी कीमत भी ली जानी चाहिए।

इस यात्रा के दौरान हमारा परिचय दो रिटायर्ड शिक्षिकाओं से हुआ जो केनाडा से स्पेन घूमने आए थे। बातों ही बातों में पता चला कि वे भी उसी मलागा गॉल्फ रिसोर्ट में रहने जा रहे थे जहाँ हमने अपने रहने की व्यवस्था की थी। हमने साथ में दो टैक्सी की रिसोर्ट पहुँचे।

रिसोर्ट एक विशाल फैली हुई जगह पर स्थित था। सभी सुविधाएँ उपलब्ध थीं। मौसम अब धीरे -धीरे बदल रहा था। अब यहाँ गर्म कपड़ों की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई क्योंकि यह शहर समुद्री तट पर बसा है।

हम दूसरे ही दिन नेरहा केव्स देखने के लिए रवाना हुए। इस गुफा की खोज 1959 में पाँच बच्चों ने की थी, ये बच्चे चिड़ीमार थे और इस गुफा के पास पहुँचे तो कुआँ जैसी जगह दिखाई दी, जिसमें नरकंकाल, बर्तन, दीवारों पर चित्रकारी और चमगादड़ों की भरमार मिली। बच्चे डरकर भाग खड़े हुए। बच्चों ने माता-पिता, शिक्षक, मित्र आदि से इस विषय की चर्चा की और बात ऊपर तक पहुँची। छान बीन प्रारंभ हुई तो पता चला कि यह बयालीस हज़ार पुरानी आदिमानवों की रहने की जगह थी। भीतर विशाल स्टैलेकटाइट के दर्शन हुए। ये कैल्शियम डिपोजिशन हैं। इन्हें बनने के लिए हज़ारों वर्ष लगते हैं। ऊपर से टपकती जल की बूँदें ज़मीन पर गिरकर खनिज पदार्थों की परतें निर्माण करती हैं और हजारों वर्ष में एक खम्भे का रूप ले लेती हैं। पूरी गुफा में ऐसे हज़ारों प्राकृतिक खंभे दिखाई दिए।

यह गुफा बहुत विशाल है। अपने समय में इसने एक पूरे शहर के निवासियों को आश्रय दिया होगा। भीतर कई स्तर (लेवल)बने हुए हैं और आज उन्हें नाम भी दिया गया है। भीतर ठंडक है। आज यहाँ बिजली के हल्के प्रकाश में गुफा के कई स्तरों का दर्शन संभव है जिनकी सुंदरता देख सच में आँखें चमक उठती हैं। आज भी इस केव के कुछ हिस्से बंद हैं जहाँ रिसर्च चल रहा है। उनकी तस्वीरें खींचने की भी मनाही है।

दूसरे दिन हम शहर की सुंदरता और मेडिटेरेनियन समुद्र पर सैर करने निकले। साथ में दोनों शिक्षिकाएँ भी हो लीं। यात्रा के दौरान कहते हैं कंपनी मैटर्स और इस बात का हमें अच्छा अनुभव भी मिला। समुद्री सैर के दौरान हमने अपने अपने देश की विशेषताओं और संस्कृतियों पर चर्चा की। कनाडा में नेटिव अमेरिकन्स के साथ जो दुर्व्यवहार और ज्यादती हो रही है उसकी भी जानकारी उन दोनों शिक्षिकाओं से मिली। अब हम तीन शिक्षिकाएँ थीं तो ज़ाहिर है इस विषय पर गहन चर्चा भी प्रारंभ हुई। समुद्र के किनारे कई रेस्तराँ थे हमने साथ में भोजन का आनंद लिया और देर रात साथ ही रिसोर्ट लौट आए।

तीसरे दिन हमने दिन के समय आराम किया और शाम को फ्लैमिन्को नृत्य प्रदर्शन का आनंद लेने गए। यह स्पेन का पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन होता है। आधुनिक युग में यह परंपरा समाप्त होती जा रही है। स्त्री-पुरुष दोनों एक साथ इस नृत्य को प्रस्तुत करते हैं। लकड़ी की फर्श पर पैर चलाकर संगीत के साथ ताल देकर अपने जूते से ध्वनि उत्पन्न कर यह नृत्य किया जाता हैं। एक प्रकार से टैप डान्स जैसा होता है। हमारे देश के कत्थक नृत्य की तरह यहाँ पैर निरंतर चलाना पड़ता है। साथ ही चेहरे पर कई हाव-भाव अभिव्यक्त करते हैं। यह नृत्य थाकानेवाला नृत्य है।

यह विभिन्न उत्सवों और परंपराओं की शृंखलाबद्ध प्रस्तुति होती है। उनके देश में भी विवाह उत्सव पर, फसल काटे जाने के अवसर पर गीत और नृत्य होते रहे हैं अब आधुनिक युग में यह उत्सव मृतप्राय है। कुछ मध्यम वयस्क कलाकार इस नृत्य के प्रदर्शन द्वारा अपनी कला और परंपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

दो घंटे का कार्यक्रम होता है, बीच में पंद्रह मिनिट के लिए विराम भी होता है। उस दौरान दर्शकों को शराब, ड्राय फ्रूट का पैकेट दिया जाता है। इसकी कीमत टिकट के साथ वसूली जाती है। इसलिए ऐसे प्रदर्शनों की कीमत बहुत ऊँची होती है। शराब न पीनेवालों को नींबू पानी दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को देखकर ही किसी देश की परंपराओं का परिचय मिलता है।

हमारा परिवार एक मात्र भारतीय परिवार था जो वहाँ कार्यक्रम देखने के लिए उपस्थित था। कार्यक्रम की समाप्ति पर कलाकारों के साथ तस्वीरें खींचने की इजाजत होती है।

उत्साहवश हम भी उनके साथ तस्वीरें खींचने के लिए मंच के पास उपस्थित हुए। मुझे साड़ी और बड़ी बिंदी में देखकर उन्होंने तुरंत पूछा कि क्या हम भारतीय हैं ?और यह जानने के बाद कलाकारों की एक बड़ी भीड़ हमारे इर्द-गिर्द उपस्थित हो गई। पहले तो कलाकारों ने हम से हाथ मिलाया फिर उन्होंने हमें एक ऐतिहासिक तथ्य बताया। उन्होंने हमसे कहा कि यह जो फ्लैमिंको नृत्य है यह मूल रूप से हमारे देश के राजस्थान के जिप्सी जिसे हम बंजारा कहते हैं उनका नृत्य है। यह जाति भारत से स्पेन में नौवीं शताब्दी के आस -पास पहुँची थी। अपनी यात्रा के द्वारा इस नृत्य को वहाँ पर वे ले गए और उसे प्रस्थापित किया था। धीरे -धीरे उसमें कई विभिन्न देशों के खास करके बंजारों की परंपरागत नृत्य उत्सव आदि सम्मिलित होते गए। वहाँ के बंजारों को रोमा कहा जाता था। यह जाति अंडालूसिया हिस्से में बस गई थी। आज भी हर कलाकार अपने इस नृत्य का मूल भारत को ही मानता है और गर्व महसूस करता है। इस नृत्य में लहराते हुए वस्त्र पहने जाते हैं और गिटार के साथ कभी अकेले या समूह में नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। हमारे प्रति कलाकारों का यह सम्मान देखकर हमें बहुत खुशी हुई। एक कलाकार तो मेरा हाथ पकड़ कर मंच पर ही अपने घुटने पर बैठ गया और उसने मेरे हाथ को चूमकर कहा “मैं भाग्यशाली हूँ कि भारत देश के व्यक्ति के साथ हमारी मुलाकात हुई” हमें भी बहुत आनंद आया और गर्व महसूस हुआ कि हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं के लिए आज विदेशों में भारत कितना प्रसिद्ध है।

क्रमशः…

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 205 ☆ व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 205 ☆  

? व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ?

पुस्तक मेला चल रहा था । तीन बड़े व्यंग्यकारों की नई किताबों का विमोचन होने को था, प्रकाशक एक ही था इसलिए विमोचन समारोह अलग अलग दिनों में रखे गए । पहले वरिष्ठ व्यंग्यकार की पुस्तक लोकार्पित हुई, मंच पर लगे बैनर पर उनकी फोटो के नीचे लिखा हुआ था “देश के सर्व श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। दूसरे दिन जब दूसरे व्यंग्य लेखक की किताब का विमोचन हुआ तो बैनर पर लिखा था “विश्वस्तरीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। जब तीसरे व्यंग्यकार की पुस्तक विमोचन होना थी तो प्रकाशक ने समारोह के पोस्टर पर लिखवाया, मेले में विमोचित “सर्वश्रेष्ठ किताब“।

एक पाठक तीनो ही कार्यक्रमों में उपस्थित रहा और तीनों किताबे खरीद कर पढ़ चुका था, जब अगली बार वह प्रकाशक से मिला तो उसने कहा तीनों ही किताबों में नया कुछ नहीं मिला वही पुरानी रचनाएं अलट पलट कर नई किताबें छाप दी है आपने। प्रकाशक मुस्करा कर बोला मार्केटिंग स्ट्रेटीज

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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