मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #141 ☆ संत मुक्ताबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 141 ☆ संत मुक्ताबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

ज्ञाना निवृत्ती सोपान

बंधू संत मुक्ताईचे

सांप्रदायी प्रवर्तक

बाळकडू अध्यात्माचे…! १

 

आदिमाता मुक्ताईस

ब्रम्हचित्कलेचा मान

मंत्र सोहम साधना

ज्ञानदेव देई ज्ञान…! २

 

करी मुक्ता उपदेश

गुरू बंधू ज्ञानदेवा

केले लेखन प्रवृत्त

दिला ज्ञानमयी ठेवा…! ,

 

बेचाळीस रचनांनी

सजे ताटीचे अभंग

मुक्ता बाई योग राज्ञी

विश्व कल्याणात दंग..! ४

 

ज्ञानेश्वर संवादाने

दिली सनद मानाची

झाली प्रकाश मुक्ताई

ज्ञानगंगा ज्ञानेशाची…! ५

 

भक्त श्रेष्ठ मुक्ताबाई

प्रबोधन गुणकारी

ताटीच्याच अभंगाने

झाली संकट निवारी…! ६

 

गुरू विसोबा खेचर

संकीर्तनी विवेचन

संतश्रेष्ठ सहवास

अध्यात्मिक प्रवचन…! ७

 

योगीराज चांगदेवे

मुक्ताईस केले  गुरू

पासष्ठीचा अर्थबोध

गुरू शिष्य नाते सुरू…! ८

 

अंगाईच्या अभंगांने

मुक्ता झाली रे मुक्ताई

ज्ञानबोध हरिपाठ

अनुबंध मुक्ताबाई…! ९

 

नाथ संप्रदायातील

पहिल्याच सद्गुरू

मुक्ताबाई सांगतसे

उपदेश मनीं धरूं…! १०

 

मुक्ताबाई मुक्तीकडे

करी जीवन प्रवास

संत साहित्य प्रेरक

लाभे संत सहवास…! ११

 

गुरू गोरक्षनाथांचा

झाला कृपेचा वर्षाव

संजीवन अमृताचा

पडे सर्वांगी प्रभाव..! १२

 

समाधीचे आले अंग

मुंगी उडाली आकाशी

धन्य धन्य मुक्ताबाई

झेप घेई अवकाशी…! १३

 

जळगावी तापीतीरी

मुक्ता स्वरूपा कारात.

वैशाखात दशमीला

मुक्ता मुक्तीच्या दारात…! १४

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ हरित स्वप्न ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– हरित स्वप्न – ?सौ. अमृता देशपांडे 

उतरुनि पर्णसंभार सारा

व्यक्त झालो मुक्त मी

हा नसे की अंत माझा

ना कुणी संन्यस्त मी

हे निसर्गी बांधलेपण

सर्वस्व धरेला वाहिले मी

ऋतुजेच्या उदरात पेरला

नवचैतन्याचा थेंब मी

ढाळुन सारे पर्णपंख हे

आज मोकळा त्रयस्थ मी

ऋतुचक्राच्या पुढच्या पानी

हरित स्वप्न हे अंतर्यामी

थेंबातुन त्या कोंब फुटुनिया

फिरून बहरे कृतज्ञस्थ मी

पर्णलेकरे लेवुन अंगी

लेकुरवाळा गृहस्थ मी.

(चित्र साभार – सौ अमृता  देशपांडे)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #162 – जो नहीं कुछ भी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “जो नहीं कुछ भी…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #162 ☆

☆ जो नहीं कुछ भी…

जो, नहीं कुछ भी बोलते होंगे

दिल तो उनके भी खौलते होंगे।

 

हाथ में, जिनके न  तराजु है

सबको आँखों से तौलते होंगे।

 

जहर भरा है  द्वेष, ईर्ष्या का

विषधरों  से  वे  डोलते  होंगे।

 

बोल अमृत से हैं जिनके वे भी

विष  कहीं पर तो घोलते होंगे।

 

बातें  इतिहास की सुनाते जो

शब्द  उनके भूगोल  के  होंगे।

 

उनके भाषण सुनें तो पायेंगे

गरीब   के  मखौल के  होंगे।

 

है मजूरों के  पास जो कुछ भी

वो   पसीने  के  मोल  के  होंगे।

 

बाद, तकरार  के, बुलाया है

मन्सूबे  मेल – जोल  के  होंगे।

 

बेखबर  जो हैं, स्वयं अपने से

खुद  को  बाहर  टटोलते  होंगे।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 50 ☆ गीत – हो मुबारक नया साल… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण बुन्देली गीत “नाचो मोर…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 49 ✒️

?  गीत – हो मुबारक नया साल…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

दो हज़ार बाइस

आपको पुराना लगे ।

तेइस का सवेरा

सभी को सुहाना लगे ।।

 

गिरती हुई ईंट को

फ़िर से लगायें आओ ।

हमें बीती यादों का

हुज़ूम फ़साना लगे ।।

 

नव वर्ष से मिल जायें

सबको ख़ुशियों के अंबार ।

पिछले सारे ग़म

केवल एक बहाना लगें ।।

 

भुलाओ गिले-शिकवे

हो मुबारक नया साल ।

पुकारो सलमा सपनों

को जो तराना लगे ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘चयन’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Selection…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ चयन ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – चयन ??

समुद्र में अमृत पलता,

समुद्र ही हलाहल उगलता,

शब्दों से गूँजता ऋचापाठ,

शब्द ही कहलाते अवाच्य,

चिंतन अपना-अपना,

चयन भी अपना-अपना!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11.31, 14.9.20

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Selection ~ ??

Ocean nurtures the nectar,

Ocean only oozes out the ‘Halahal’, – the poison,

Words echo the

‘Richas’- holy hymns of the Veda

Words only are termed as unspeakable;

Contemplation of thoughts is very own,

and so is its choice of selection.

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 62 – राजनीति… भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  आलेख  “राजनीति…“।)   

☆ आलेख # 62 – राजनीति  – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

राजनीति अपने शैशवकाल में सामाजिक मुद्दों और स्वाभाविक नेतृत्व के संयोग से आगे बढ़ती है. अपना समय और अपनी जमापूँजी को देकर इसमें ऐसे लोग आते हैं जिन्हें अपनी आर्थिक सुरक्षा और निश्चिंत भविष्य से ज्यादा परवाह समाज और देश- दुनिया के वर्तमान को सुधार कर और कुछ मायनों में बदलकर भी उनके बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने की होती है. इन्हें सोशल इंजीनियरिंग के अभियंता भी कहा जा सकता है और सामाजिक अस्वस्थता का इलाज करने वाले डॉक्टर भी. ये उन्हें भी ठीक करने की कोशिश करते हैं जो हमेशा इस भ्रम में बने रहना चाहते हैं कि “हमें तो कुछ हुआ ही नहीं है, हम तो पूरी तरह ठीक हैं तो डॉक्टर साहब या इंजीनियर साहब, आपकी इलाज रूपी मुफ्त सलाहों की हमें जरूरत ही नहीं है, निश्चिंत रहिए कि हम आपके बहकावे में आने वाले नहीं हैं.”

ऐसे लोग मनोरोगियों के समान ही व्यवहार करते हैं कि उनसे ज्यादा तो उनके परामर्शदाता को खुद के इलाज की जरूरत है. बहुतायत में पाये जानेवाले इन लोगों के नज़रिये से तो वैचारिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बेहतर तो पराधीनता की सौगात के साथ मिली आर्थिक निश्चिंतता और शान शौकत, रौब दाब पाना ज्यादा व्यवहारिक और सुरक्षित होता है. ये वही लोग होते हैं जिनके लिये राजनीति तो अपना घर फूंककर तमाशा देखने जैसा है.

अतः इस दौर की राजनीति और ऐसे नेतृत्व गुण से संपन्न लोग बहुत दुर्लभ हुआ करते थे और “नेताजी” जैसा उपनाम और उपाधि “नेताजी सुभाषचंद्र बोस” जैसे महान और उच्चतम कद वाले ही पाते थे. ये दौर राजनीति का स्वर्णिम दौर था जो नैतिक मूल्य, त्याग, साहस और बलिदान के शाश्वत स्तंभों पर सुदृढ़ता के साथ खड़ा था. इस दौर में उनका साथ देने वाले भी उनके लक्ष्यों के प्रति समर्पित हुआ करते थे और इस यात्रा में नेतृत्व के प्रति निष्ठा और विश्वास भी बहुत बड़ी भूमिका का निर्वहन किया करता था. नेता और अनुयायी निज स्वार्थ से परे हुआ करते थे और बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लिये काम करते थे.

राजनीति के बदलते दौरों की समीक्षा अगले भाग में  

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 162 ☆ नाताळ ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 162 ?

☆ नाताळ 🎄⛄🌈 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

(२५ डिसेंबर २०२२)

नाताळ दरवर्षीच येतो,

मनाच्या पोतडीतून,

 “नाताळबाबा” काढतो

तशा निघतात सुंदर ,

सुंदर आठवणी !

 

लहानपण येतं परतून अलगद!

चर्च कम्पाऊंड मधली

तुझी छोटीशी बंगली …

नेहमीच स्वच्छ, नीटनेटकी….

नाताळ मधे सुशोभित…अधिक देखणी!

 

तुला आवडायचा आमचा ,

संक्रांतीचा सण,

तसाच तुमचा नाताळ..मला पण !

 

कोप-यातला तो  “नाताळवृक्ष”,

डोनट, केक, पुडिंग!

येशूची प्रार्थना….

चर्च च्या घंटेचा नाद…

 

सारं आठवतंय आज,

काल परवा सारखंच!

तू नाहीस पण .

तुझ्या आठवणी आहेत सखये,

निरंतर !

आणि माझा प्रत्येक नाताळ,

तुझ्या आठवणींनी सजलेला !

शाळेत असताना पाठ्यपुस्तकात

वाचलेल्या वसंत बापटांच्या—

“नाताळ” या धड्यातल्या,

“स्टेला” सारखीच तू…

चिरंतन,

चिरतरुण…..

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 32 – भाग 1 – ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 32 – भाग 1 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ✈️

समोर नगाधिराज हिमालयाची झबरबन पर्वतराजी, मागे तीन बाजूच्या निळसर हिरवट पर्वतरांगांच्या कोंदणात  नीलपाचूसारखा चमकणारा दल सरोवराचा विस्तीर्ण जलाशय आणि यामध्ये पसरलेलं ट्युलिप्सच्या अनेकानेक रंगांचं लांबवर पसरलेलं स्वर्गीय  इंद्रधनुष्य! अवाक होऊन आम्ही ते अलौकिक दृश्य नजरेत साठवत होतो. रक्तवर्णी, हळदी, शुभ्र मोत्यासारखी, गुलाबी, जांभळी, सोनपिवळ्या रंगावर केशरकाडी लावल्यासारखी कमळकळ्यांसारखी ट्युलिप्सची असंख्य फुलंच फुलं! साक्षात विधात्याने विणलेला अस्सल काश्मिरी गालिचा पुढ्यात पसरला होता. त्यांच्या मंदमधूर मोहक सुगंधाने वातावरण भारून टाकलं होतं

कुणाच्या कल्पनेतून, प्रयत्नातून साकार झालं असेल हे अनुपम सौंदर्य? या प्रकल्पाविषयी जाणून घेण्यासाठी काश्मीर गव्हर्मेंटचे डिस्ट्रिक्ट फ्लोरिकल्चर ऑफिसर डॉक्टर जावेद अहमद शाह यांची मुद्दाम भेट घेतली. इथे ट्युलिप्स फुलविण्याच्या कल्पनेला सरकारचा सक्रिय पाठिंबा मिळाला. दल सरोवरासमोरील हिमालयाच्या झबरबन टेकड्यांच्या उतरणीवर थोडं सपाटीकरण करून मोठ्या गादीसारखे वाफे तयार करण्यात आले. ॲमस्टरडॅमहून ट्युलिप्सचे फक्त कंद आयात करण्यात आले. बाकी सारी मेहनत, तंत्रज्ञान हे इथल्या फ्लोरिकल्चर डिपार्टमेंटचे योगदान आहे.

एकूण ७० एकर जागेवर ही फुलशेती करण्यात येते. नोव्हेंबर व डिसेंबर महिन्यात ट्युलिप्सच्या कंदांची लागवड करण्यात येते. साधारण डिसेंबरच्या उत्तरार्धापासून जानेवारी संपेपर्यंत साऱ्या श्रीनगरवर बर्फाची चादर पसरलेली असते. लागवड केलेला हा संपूर्ण भूभाग बर्फाने अच्छादलेला असतो .जमिनीच्या पोटातले कंद लहान शाळकरी मुलांसारखे महिनाभर तो भला मोठा बर्फाचा गोळा चोखत बसलेले असतात. साधारण फेब्रुवारीत बर्फ  वितळतं आणि कंदांच्या बालमुठीला हिरवे लसलशीत कोंब फुटतात. त्यांची मशागत करावी लागते. शेळ्या- मेंढ्या, गाई, खेचरं यांचं शेणखत ठराविक प्रमाणात घालतात. तसंच जंतुनाशकं, रसायनिक खतं यांचाही मोठ्या प्रमाणात वापर करतात. मार्च अखेर रोपांची वाढ पूर्ण होते.निरनिराळ्या प्रजातीप्रमाणे ही रोपं दीड ते अडीच फूट उंच वाढतात आणि मग बहरतात. या रंगपऱ्यांचं आयुष्य किती? तर तीन ते चार आठवडे! साधारण मार्चअखेर ते एप्रिलअखेर एक महिना हा सारा बहर असतो. अवेळी पाऊस पडला तर तीन आठवड्यातच त्यांच्या पाकळ्या गळून पडतात.

बहर संपल्यावर एक महिना ती झाडं तशीच ठेवतात. जून महिन्यात जमिनीतले कंद नेटकेपणे अलगद काढलेले जातात. ते जपून ठेवण्यासाठी वेगळी यंत्रणा उभारण्यात आली आहे. साधारण १७ ते २३ सेंटीग्रेड उष्णतेत निर्जंतुक करून त्या कंदांना सांभाळण्यात येतं. जरुरीप्रमाणे काही नवीन जातीचे, रंगांचे कंद ॲमस्टरडॅमहून आणण्यात येतात. ऑक्टोबरपर्यंत सारं नीट सांभाळत, जमिनीची मशागत करून पुन्हा नोव्हेंबर- डिसेंबरमध्ये लागवड केली जाते. भारतीय व परदेशी प्रवासी आवर्जून हा अलौकिक नजारा पाहायला गर्दी करतात.

विस्तीर्ण दल सरोवरातून शिकारा सहल करताना शंकराचार्य टेकडीवरील मंदिर, हरी पर्वताची रांग दिसते. सरोवरामध्ये झाडांचं वाळकं गवत, वेली व माती यांचा एकमेकांवर थर बसून इथे अनेक छोटी बेटं तयार झाली आहेत. त्यावर तरंगती घरं, मीना बाजार आहे. पाणथळ जागेतील लहान- मोठ्या झाडांवरून गरुड, खंड्या, बुलबुल यांनी दर्शन दिलं. चार शाळकरी मुली होडीत दप्तरं ठेवून स्वतःच ती  छोटी होडी वल्हवत दल सरोवराकाठी असलेल्या त्यांच्या गावाकडे जात होत्या. चौकशी केल्यावर कळलं की त्यांना रोज एक तास जायला आणि एक तास यायला  वल्हवावं लागतं तेव्हा त्या श्रीनगरच्या शाळेत पोहोचतात.

श्रीनगरहून पहेलगामला जाताना दुतर्फा चिनार आणि सफेदा यांचे प्रचंड घेरांचे वृक्ष दिसत होते.  चिनारच्या वठल्यासारख्या वाटणाऱ्या पोकळ, प्रचंड घेरांच्या बुंध्यातून चिनारची हाताच्या पंजासारखी पान असलेली कोवळी पालवी लवलवत होती. सफेदा वृक्षांच्या फांद्या घरांच्या उतरत्या छपरांसाठी वापरल्या जातात. विलो, देवदार, फर असे अनेक प्रकारचे वृक्ष होते. विलोच्या झाडांपासून क्रिकेटच्या बॅट बनविल्या जातात.

आठव्या शतकातील ललितादित्य या राजाच्या कालखंडात इथे मंदिर वास्तुकला बहरली होती. त्यानंतरच्या अवंतीवर्मन आणि जयसिंह यांनी ही मंदिर वास्तुकला वैभवसंपन्न केली. राजा जयसिंह याच्या काळात राजकवी कल्हण याने आपल्या ‘राजतरंगिणी’ या दीर्घ काव्यग्रंथात काश्मीरमधील शिल्पवैभवाने नटलेल्या अनेक देवालय समूहांचं सुंदर वर्णन केलेले आहे. ब्रिटिश संशोधक सर ऑरेट स्टेन यांनीही आपल्या संशोधनामध्ये या मंदिरशिल्पांवर प्रकाश टाकला आहे. श्रीनगर- सोनमर्ग रस्त्यावर कनकिनी नदीच्या तीरावरील नारंग येथे भव्य देवालयांचा शिल्पसमूह ग्रानाईटच्या लांबट- चौकोनी दगडांमध्ये इंटरलॉक पद्धतीने बांधलेला होता. त्याच्या अखंड काळ्या दगडातून कोरलेल्या घुमटाचं वर्णन ‘राजतरंगिणी’मध्ये केलेलं आहे. तिथल्या नैसर्गिक नितळ झर्‍यांचं, त्यातील माशांचं वर्णनही त्यात आहे. सम्राट अशोकाचा पुत्र जालुका याने २००० वर्षांपूर्वी बांधलेलं शिव-भूतेश देवालय याचा उल्लेखही ‘राजतरंगिणी’ मध्ये आहे. आज त्याचे काही भग्न अवशेष शिल्लक आहेत.

श्रीनगर भाग १ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 62 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 62 – मनोज के दोहे… 

1 विग्रह

विग्रह शालिगराम का, देव विष्णु प्रतिरूप।

पूजन अर्चन हम करें, दर्शन सुखद अनूप ।।

2 वितान

उड़ने को आकाश है, फैला हुआ वितान।

पंछी पर फैला उड़े, मानव उड़ें विमान।।

3 विहग

उड़ें विहग आकाश में, नापें नभ का छोर।

शाखों पर विश्राम कर, उड़ते फिर नित भोर।।

4 विहान

नव विहान अब हो रहा, भारत में फिर आज।

विश्व पटल पर छा गया, सिर में पहने  ताज।।

5 विवान

किरणें बिखरा चल पड़ा, रथ आरूढ़ विवान।

प्राणी को आश्वस्त कर, गढ़ने नया विहान।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 183 ☆ आलेख– स्त्री विमर्श  ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित एक विचारणीय  आलेख– स्त्री विमर्श ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 183 ☆  

? आलेख– स्त्री विमर्श ?

स्त्री पुरुष समानता आज समय की आवश्यकता है। नारी के प्रति समाज की कुत्सित दृष्टि के चलते ही लाल किले की प्राचीर से , स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने भाषण में यह अपील करनी पड़ी की समाज स्त्री के प्रति अपना नजरिया बदले , पर आए दिन नई नई घटनाएं , प्यार के नाम पर धोखा , क्रूर हत्या जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं।

साहित्य में इस विषय पर चर्चा और रचनायें हो रही हैं । “नारी के अधिकार “, “नारी वस्तु नही व्यक्ति है” ,वह केवल “भोग्या नही समाज में बराबरी की भागीदार है” , जैसे वैचारिक मुद्दो पर लेखन और सृजन हो रहा है, पर फिर भी नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में वांछित सकारात्मक बदलाव का अभाव है .

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता

अर्थात जहाँ नारियो की पूजा होती है वहां देवताओ का वास होता है यह उद्घोष , समाज से कन्या भ्रूण हत्या ही नही , नारी के प्रति समस्त अपराधो को समूल समाप्त करने की क्षमता रखता है , जरूरत है कि इस उद्घोष में व्यापक आस्था पैदा हो . नौ दुर्गा उत्सवो पर कन्या पूजन , हवन हेतु अग्नि प्रदान करने वाली कन्या का पूजन हमारी संस्कृति में कन्या के महत्व को रेखांकित करता है , आज पुनः इस भावना को बलवती बनाने की आवश्यकता है .

एक संवेदन शील रचनाकार या स्त्री लेखिका जब स्वयं स्त्री विमर्श की रचना लिखती है तो वह भोगा हुआ यथार्थ , सही गई पीड़ा को शब्द देती हैं। निश्चित ही ऐसी कवितायें बेहद संवेदनशील संदेश देती हैं।

प्रेम स्त्री की मौलिकता है, वह स्थितप्रज्ञ बनी रहकर अंतिम संभव पल तक अपने कर्तव्य का परिपालन करती है, इसी से प्रकृति संचालित है।

जिस तरह विद्योत्तमा ने कालिदास के बंद मुक्के की व्यापक व्याख्या कर दी थी , वैसे ही स्त्री विमर्श के इस मुद्दे की गूढ़ लंबी विवेचना की जा सकती है, जरूरत है कि समाज पर साहित्य का प्रभाव हो और स्त्री पर अपराध रुकें ।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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