(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “चिड़िया चुग गई खेत…”। )
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य “जंगल में दंगल …“।)
☆ व्यंग्य # 62 – जंगल में दंगल – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
जंगल में राजा शेर की मर्जी से वाट्सएप ग्रुप तो शुरु हो गया पर कुछ दिन सिर्फ राज़ा की रिकार्डेड दहाड़ की ही एकमात्र पोस्ट आती रही जिस पर चहेते और उपकृत पशु वाह वाह करते रहे. कुछ कमेंट्स की बानगी देखिये: आवाज़ हो तो ऐसी, सुनते ही हो जाय सबकी ऐसी तैसी. पर जब ये ज्यादा चला नहीं तो सदस्यों की अरुचि को देखते हुये राजा शेर ने फिर से बैठक बुलाई और ग्रुप में सबका साथ सबका मनोरंजन के सिद्धांत पर सहभागिता की अपेक्षा की.
ग्रुप का थीम वाक्य चुनने की प्रक्रिया में “Fittest will survive” सिलेक्ट किया गया.
जो शिकार होने के लिये ही पैदा हुये थे, उन्होंने दबी ज़ुबान से विरोध किया तो शेर ने समझाया कि अगर फिटेस्ट शिकार हो तो उसकी जीवन रूपी बैटरी लंबी चलेगी. अनफिट होने पर शेर को भी भूखे मरना पड़ जाता है. जंगल प्राकृतिक नियमों से चलते हैं और यहां रिटायरमेंट प्लान नहीं होते.
“जब तक सांस तब तक आस” जैसी कहावत सिर्फ मानव जीवन में संभव है. यहां कोई मसीहा नहीं होता न ही कोई अवतरित किताब जो जीवन जीने के नियम कानून कायदे बनाये. जंगल वो दुनिया है जो पाप पुण्य से परे है. यहां भोजन के लिये हिंसा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. जो शिकार बन गया वो स्वर्ग, नर्क और पुनर्जन्म की कल्पनाओं से परे अपनी कहानी उसी वक्त खत्म कर जाता है. न तो अस्थि विसर्जन, न पिंडदान, न ही तेरहवीं और न ही वार्षिक श्राद्ध.
लोगों को, सॉरी पशु पक्षियों को ये बात अपील कर गई और फिर कुछ सदस्यों ने आगे बढ़कर अपना रोल निर्धारित कर लिये. सुबह की गुडमार्निंग कड़कनाथ उर्फ मुर्ग मुसल्लम करने लगे. संगीत से ग्रुप को सज़ाने का काम मिस कोयल कुमारी और मि. पपीहा निभाने लगे. गिद्ध और चील समुदाय अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से दूसरे ग्रुप्स में चल रहे मैसेज को कॉपी पेस्ट करने लगे. कुत्तों ने पॉप संगीत के नाम पर भौंकना चाहा पर शेर की घुड़की से पीछे हट गये. इस तरह ये ग्रुप चलने लगा और जंगल की आवाज के शीर्षक का फायदा उठाते हुये सदस्यों की अभिव्यक्तियां भी सामने आने लगीं जिनका जवाब कभी एडमिन लोमड़ सिंह और कभी सरपरस्त राजा देने लगे जिसकी बानगी अगली किश्त में सामने आयेगी।
☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 31 – भाग 4 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆
✈️ कलासंपन्न ओडिशा ✈️
पुरीपासून ५० किलोमीटर अंतरावर ‘सातापाडा’ नावाचं ठिकाण आहे. तिथून चिल्का सरोवराला फेरफटका मारण्यासाठी जाता येतं. चिल्का सरोवराची लांबी ६५ किलोमीटर असून त्याचं क्षेत्रफळ ७८० चौरस किलोमीटर आहे. चिल्का सरोवराच्या ईशान्य भागात दया व भार्गवी या नद्या येऊन मिळतात. हे खाऱ्या पाण्याचं विशाल सरोवर आहे. समुद्राच पाणी ज्या ठिकाणाहून सरोवरात येतं ते समुद्रमुख बघण्यासाठी मोटार लाँचने दोन तासांचा प्रवास करावा लागतो. सरोवरातील डॉल्फिन दिसतात. हे सरोवर जैव विविधतेने समृद्ध आहे. इथे जवळजवळ २०० प्रजातींचे हजारो स्थलांतरित पक्षी येतात.
संबलपूरहून १६ किलोमीटर अंतरावर महानदीवरील हिराकूड धरण आहे. महानदीचं पूर नियंत्रण, वीज निर्मिती, शेतीसाठी पाणी या उद्देशाने हे मोठं धरण बांधण्यात आलं आहे. पाणी अडविल्यामुळे इथे निर्माण झालेला प्रचंड मोठा तलाव हा आशियातील सर्वात मोठा तलाव समजला जातो.
संबलपुरी नृत्य व संबलपुरी साड्या प्रसिद्ध आहेत. राउरकेला इथला स्टील प्लॅ॑ट हे ओडिशाचं आधुनिक वैभव आहे. नंदनकानन इथल्या प्राणी संग्रहालयात पांढरे वाघ बघायला मिळतात. इथे मगरींचे प्रजनन सेंटरही आहे.
ओडिशामध्ये मिळणारे ताज्या मासळीचे विविध प्रकार प्रवाशांना आवडतात. मैद्याच्या पारीमध्ये खोबरं व ड्रायफ्रूट्स घालून बनविलेल्या चौकोनी आकाराच्या, वर लवंग टोचलेल्या लवंग लतिका चविष्ट लागतात. दूध नासवून त्या घट्ट चौथ्यापासून जिलबी बनविली जाते. त्याला ‘छेना पोडा’ असं म्हणतात.
पुरीपासून जवळ भुवनेश्वर रस्त्यावर पिपली नावाचं गाव आहे. या गावात कापडाचे आणि आरशाचे तुकडे शिवून खूप सुंदर तोरणं, कंदील, पिशव्या, ड्रेसची कापडं बनविली जातात. त्याला ‘चंदोवा’ कला म्हणतात. अनेक पर्यटकांची पावले खरेदीसाठी या गावाकडे वळतात. ही कला आता जगप्रसिद्ध झाली आहे.
पुरीहून साधारण दहा किलोमीटरवर रघुराजपूर आहे. या गावातली प्रत्येक व्यक्ती कलावंत आहे. इथल्या सर्व घरांच्या बाह्यभागावर सुबक नक्षी कोरलेली असते. उत्तम शिल्पकार, चित्रकार, लाकडावर नक्षी करणारे कारागीर, रंगकाम करणारे आणि ओडिशाचे वैशिष्ट्य असलेली ‘पट्टचित्र’ या खास कलेत पारंगत असलेले अनेक कलाकार इथे आहेत. साबुदाणा भिजवून त्याची खळ कापडाला लावून त्यावर रामायण, महाभारत आणि जगन्नाथ (श्रीकृष्ण ) यातील प्रसंगांवर चित्रं काढली जातात. त्यासाठी फक्त नैसर्गिक रंग वापरतात. हिंगुळ या नावाचा एक दगड असतो. त्याची पावडर करून लाल रंग मिळवितात. निळ्या रंगासाठी काही स्फटिक आणून ते दळून त्याची पावडर केली जाते. हळद, समुद्रफेस, खडूची भुकटी, काजळ, चिंचेचा डिंक अशांसारख्या वस्तू पट्टचित्र कलेमध्ये वापरल्या जातात. डॉ. जगन्नाथ महापात्रा यांनी ‘जात्रीपाटी’ ही शैली विकसित केली आहे. पट्टचित्राचं काम बरंचस या शैलीप्रमाणे केलं जातं. ओडिशा सरकारने या गावाला ‘ऐतिहासिक वारसा ग्राम’ असा विशेष दर्जा दिलेला आहे. बरेच परदेशी कलाकार ही कला शिकण्यासाठी इथे येतात.
ओडिसी शास्त्रीय नृत्यकलेला दोन हजारांहून अधिक वर्षांची परंपरा आहे. इसवीसन पूर्व २०० मध्ये लिहिलेल्या भरत मुनींच्या नाट्यशास्त्रात ओडिशी नृत्यकलेबद्दल लिहिलं आहे. ओरिया कविराज जयदेव यांचं ‘गीत गोविंद’ हे काव्य प्रसिद्ध आहे. कलिंग राजा खारवेल याने संगीत व नृत्यकलेला राजाश्रय दिला. आदिवासी लोकगीतं तसंच शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीताची परंपरा ओडिशामध्ये आहे. सुप्रसिद्ध नर्तक केलुचरण महापात्र यांचं जन्मगाव रघुराजपूर आहे. संयुक्ता पाणिग्रही, सुजाता मोहपात्रा, रतिकांत मोहपात्रा यांनी गुरुवर्य केलुचरण यांची परंपरा पुढे चालविली आहे.
मनोज दास, मोनालिसा जेना, कुंतला कुमारी असे अनेक प्रसिद्ध साहित्यिक ओडिशाला लाभले.न्यूयॉर्कला राहणाऱ्या आणि खूप वेगळ्या विषयांवर चित्रपट बनविणाऱ्या मीरा नायर या मूळच्या राउरकेलाच्या. ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेत्या डॉक्टर प्रतिभा राय या साहित्यातील अनेक पुरस्कारांनी सन्मानित आहेत. तरुण शास्त्रीय संगीत गायिका, स्निती मिश्रा ही मूळची ओडिशाची आहे.
महानदीच्या उदंड प्रवाहातील ओडिशाची अनेक अंगानी बहरलेली कलासंपन्न सांस्कृतिक परंपरा अखंडित आहे
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री मनोरमा दीक्षित जी द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत “स्मृति के झरोखे से…” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 126 ☆
☆ “स्मृति के झरोखे से…” (यात्रा वृतांत) – सुश्री मनोरमा दीक्षित ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
पर्यटन व यात्राओ को साहित्य की जननी कहा जाता है. पर्यटन के दौरान साहित्यकार का मन प्रकृति का सानिध्य पाकर स्वाभाविक रूप से उर्वर हो जाता है. नये नये अनुभव व दृश्य वैचारिक विस्फोट करते हैं. कुछ रचनाकार इस अवस्था में उपजे मनोविचारो को तुरंत बिंदु रूप में लिख लेते हैं व अवकाश मिलते ही उस पर रचना लिख डालते हैं. कुछ के मन में उपजे यात्रा जन्य विचार उमड़ते घुमड़ते हुये बड़े लम्बे अंतराल के बाद कविता, कहानी या लेख के रूप में आकार ले पाते हैं, तो अनेक बार मन में ही रचना का गर्भपात भी हो जाता है. यह सब कुछ लेखकीय संवेदनाये हैं. राहुल सास्कृत्यायन जी को घुमक्ड़ी साहित्य का बड़ा श्रेय है. इधर यात्रा साहित्य के क्षेत्र में कुछ नवाचारी प्रयोग भी किये गये हैं. लेखक समूह की किसी स्थान विशेष की यात्रायें आयोजित की गईं, फिर सभी से यात्रा वृत्तांत लिखवाया गया तथा उसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया है,मुझे ऐसी किताबें पढ़ने व उन पर चर्चा करने का सौभाग्य मिला है. मैंने पाया कि एक ही यात्रा के सहभागी लेखको की रचनाओ में उनके अनुभवो, वैचारिक स्तर के अनुसार व्यापक वैभिन्य था. अस्तु, इस सब के बाद भी हिन्दी का पर्यटन साहित्य बहुत समृद्ध नही है. ट्रेवेलाग की तरह की किताबों की बड़ी जरूरत है, जिससे पाठक के मन में पर्यटन स्थल के प्रति रुचि जागृत हो, उसे स्थल विशेष की अनुभूत जानकारियां मिल सकें तथा पर्यटन को बढ़ावा मिले. ऐसी पुस्तकें न केवल साहित्य को समृद्ध करती हैं, वरन पर्यटन को बढ़ावा देती हैं.
सुश्री मनोरमा दीक्षित
स्मृति के झरोखे से श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी की ऐसी ही अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में मेरे सम्मुख आई है. अपने जीवन काल में उन्होने जिन अनेक पर्यटन स्थलो की यात्रायें की हैं उनमें से कुछ जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, नेपाल, गंगोत्री, यमुनोत्री, हैदराबाद, अमरकंटक, कुल्लू मनाली, घृष्णेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, शिरडी, जगन्नाथपुरी, कोणार्क, द्वारिका, रामेश्वरम, तिरुपति बालाजी, सहित उनकी कार्यस्थली मण्डला से जुड़ी अनेक विभूतियों का सविस्तार वर्णन प्रस्तुत पुस्तकमें उन्होने किया है. संक्षिप्त में कहा जावे तो किताब में विषय वैविध्य है. वर्णित स्थलो का आंखों देखा हाल है. सामान्यतः आम आदमी जो यात्रायें करता है, उसके अनुभव उस तक या वाचिक परम्परा से उसके परिवार व मित्रो तक ही सीमित रह जाते हैं, किन्तु जब श्रीमती मनोरमा दीक्षित जैसी कोई विदुषी, साधन संपन्न लेखिका ऐसी यात्रायें करती है तो उनके अनुभवो का लाभ ऐसी पुस्तको के प्रत्येक पाठक को मिलता है. निश्चित ही यह श्रीमती दीक्षित का नवाचारी विचार है, हमारी हार्दिक शुभकामना लेखिका के साथ हैं, मुझे भरोसा है कि यह पुस्तक साहित्य जगत में एक नई दस्तक देगी तथा यात्रा साहित्य के समुचित पुरस्कार से स्मृति के झरोखे से को सम्मानित कर हिन्दी साहित्य जगत गौरवान्वित होगा.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – परदेश की अगली कड़ी “उल्टा पुल्टा”।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 13 – उल्टा पुल्टा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
स्वर्गीय जसपाल जी भट्टी का एक कार्यक्रम “उल्टा पुल्टा” टीवी शो बहुत प्रसिद्ध हुआ था। यहां विदेश आने पर भी आरंभ में दैनिक जीवन यापन में बहुत कुछ ऐसा ही लगा, जिसे देख कर भट्टी जी की याद आ गई। ये भी हो सकता है, उनको भी अपने उल्टा पुल्टा कार्यक्रम की प्रेरणा यहीं से प्राप्त हुई हो।
विदेश आगमन पर जब कार की आगे की सीट के बाएं भाग में स्थान ग्रहण कर रहे थे, तो देखा वहां तो स्टेयरिंग लगा हुआ है, तब मेजबान ने बताया हमारे देश में दाएं तरफ स्टेयरिंग होता है, लेकिन यहां उल्टा बाएं तरफ होता है। कार चलते ही हमें लगा गलत दिशा में चल रही है, लेकिन सभी कारें दाहिनी तरफ चल रही थी। इसी प्रकार से पैदल चलने वाले भी दाएं तरफ चल रहे थे। हमें तो पाठशाला के दिनो से ही “बायें चल” शब्द कंठस्थ करवाया गया था। कहीं, पैंसठ वर्ष तक का जीवन गलत निर्वाह तो नहीं हो गया?
रास्ते में जब गैस स्टेशन (पेट्रोल पम्प) से पेट्रोल भरवाने के लिए रुके तो बहुत ही अजीब लगा, कोई विक्रेता पूछने नहीं आया कि कितने का करना है? स्वयं ही पाइप से भरने के पश्चात कार्ड से भुगतान वो भी बिना ओ टी पी मैसेज। क्या यहां कार्ड का दुरुपयोग/ फ्रॉड नहीं होते है? या यहां की व्यवस्था राम राज्य की कल्पना को साकार कर रहा हैं।
मेज़बान से जानकारी मिली की यहां तरल पदार्थ गैलन में मापे जाते हैं। हमारे देश में तो मैट्रिक प्राणली लागू हुए कई दशक बीत गए। ये अभी दर्जन, ग्रुस, पाउंड और गैलन में ही कार्य कर रहे हैं। सब्जी और अन्य ठोस पदार्थ को वजन पाउंड में मापा जाता हैं। हमारे देश में अभी भी कुछ पुराने लोग नए पैदा हुए बच्चे या केक का वज़न पाउंड में ही पूछते हैं।
घरों में लगे हुए बिजली के बटन (स्विच) भी उल्टे कार्य करते है, ऊपर रखने से बिजली प्रवाह रुक जाता है, और नीचे करने से घर रोशन हो जाता हैं।
जैसा चल रहा है, चलने दे, हमें क्या? हम तो ठहरे परदेशी।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “प्रोफाईल फोटो”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 144 ☆
लघुकथा 🎞️ प्रोफाईल फोटो 🖥️📞
जीवा मोबाईल, फेसबुक, व्हाट्सएप, पर तरह-तरह की सुंदर तस्वीरें डाला करती थी। मम्मी – पापा भी बहुत अच्छी बड़ी सोसाइटी में रहा करते थे। इसलिए जीवा को भी सब कुछ खुली आजादी थी। शादी की बात चलने लगी। लड़के वाले देखने आते परंतु कभी वे जीवा को पसंद नहीं करते और कभी कोई जीवा को पसंद नहीं आता।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ती चली जा रही थी। छोटा भाई भी कहने लगा…. कब तक इसे घर पर रखना पड़ेगा। मम्मी-पापा कहते हैं… इस घर पर उसका भी अधिकार है। बस सब मामला यहीं पर शांत हो जाता।
छोटे भाई का एक खास दोस्त आज अपने भैया हर्ष के साथ आया। बहुत ही साधारण परिवार का था। जीवा को हर्ष अच्छा लगा और उसके जाने के बाद उसकी प्रोफाइल फोटो देखकर उसके बारे में पता लगाया।
हर्ष एक प्राइवेट कंपनी पर काम करता था। काफी विचार कर जीवा ने उसे फोन पर कहा…. क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगे। हर्ष सुनता रहा। भाई भी परेशान हो गया। इतने बड़े-बड़े घर से रिश्ते आए और जीवा ने किसी को पसंद नहीं किया और कुछ खास नहीं है हर्ष अब इसे ये पसंद आ रहा।
भाई ने जीवा की बात संभाली और उसे कहा…. जीवा मजाक कर रही थी भैया। परंतु जीवा अपनी बात पर अड़ी रही। और एक दिन जीवा अचानक हर्ष के ऑफिस पहुंच गयी। उसका यह रूप देखकर वह दंग रह गया। साधारण कपड़ों में जीवा बहुत सुन्दर लग रही थी, न गहरी लाली, न आँखें काली कजरारी।
जीवा ने हर्ष को अलग अकेले में ले जाकर कहा…. हर्ष मुझे आपके जैसा ही जीवन साथी चाहिए। आप मेरी प्रोफाइल तस्वीर पर विचार मत करना। चाहे तो आप कुछ भी शर्त रख लो मैं आपके साथ बिल्कुल आपके जैसा ही जीवन जीने के लिए तैयार हूँ। मैं आज की बडी़ सोसाइटी के बीच रहने के कारण यह सब फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपलोड करती थी। तंग आ गई हूँ मैं इस रुप से। प्लीज मुझे अपना लो और शादी के लिए हां कह दो।
यह कह कर वह रोते हुए हर्ष की बाँहों में समा गई। हर्ष सोच नहीं पा रहा था आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में और इस हाई प्रोफाइल सोसायटी पर उसकी अपनी सादी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर कैसे छा गयी।