(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतिका “चलो एक दीप जलाएँ…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #252 ☆
☆ चलो एक दीप जलाएँ… 🏮 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय बालगीत “गाँधी जी ने…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 76 ☆बालगीत – गाँधी जी ने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – दीपावली
🏮
अँधेरा मुझे डराता रहा,
हर अँधेरे के विरुद्ध
एक दीप मैं जलाता रहा,
उजास की मेरी मुहिम
शनै:-शनै: रंग लाई,
अनगिन दीयों से
रात झिलमिलाई,
सिर पर पैर रख
अँधेरा पलायन कर गया
और इस अमावस
मैंने दीपावली मनाई ! 🏮
एक-दूसरे के घर जाकर दीपावली मिलने की परंपरा को बढ़ावा दें। सामासिकता एवं सांस्कृतिक एकात्मता का विस्तार करें।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी
इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम:
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 80 ☆
तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – खोकर पाया।)
मां तुम कैसी हो कन्या खिलाना हो गया क्या-क्या बनाया तुम्हारे हाथ की खीर पुरी और सब्जी तो लाजवाब रहती है आज भी स्वाद मुझे याद आ रहा है। भाई भाभी यदि गुस्सा ना हो तो मैं आ जाऊं क्या है तुम कुछ बोल नहीं रही हो? कमल जी से सकते लग गई और उनकी आंखों से आंसू गिर रहा था बेटी ने सिसकी की आवाज सुनकर कहां मां क्या बात है तुम रो क्यों रही हो? क्या भैया ने कन्या खिलाने के लिए पैसे नहीं दिए या मन कर दिया कोई दिक्कत है तो बताओ मैं आता हूं हम मंदिर चलेंगे? बेटा मुझे सुबह 5:00 से अरुण मंदिर में छोड़कर चला गया और बोला मैं आऊंगा और पैसे दूंगा और यही तुम कन्या भोजन करना पंडित जी को तो हर नवरात्रि में हर साल बुलाती थी अब इस साल वही कन्या भोजन कारण और ऐसा कहकर वह चला गया गुस्से से और मेरा सारा सा मेरी दो अटैची भर के कपड़े भी यही रखकर चला गया बेटा। मैं पंडित जी के पास गई पर पंडित जी ने भी मना कर दिया यहां रहने से और बोला कि मेरी बहन बहुत व्यस्त आए हैं आप अपने रहने की व्यवस्था कहीं और कर ले मुसीबत में किसी ने मेरा साथ नहीं दिया मैं जीवन से हार कर रोती हुई मंदिर की सीढ़िया में बैठी हूं। आज बेटा अपने पास बैठे भिखारी भी मुझे अमीर दिख रहे हैं सब अपने बच्चे और परिवार के साथ खुश है। माता रानी की इतनी सालों की सेवा का मुझे यह पुण्य मिला है। मां तुम चिंता मत करो तुम क्या उसी पुराने वाले अंबे मंदिर में हो मैं अभी आता हूं। कमल जी की बेटी माधुरी 1 घंटे बाद अपनी मां के पास पहुंचती है। उनकी रो-रोकर सूजी आंखें देखकर वह मां को ऑटो रिक्शा में बैठने को बोलती। अचानक बा रोते हुए बोलती है बेटी रहने दो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो हर किसी को अपने कर्म का दंड भोगना पड़ता है मैं भी अपने कर्म का दंड भोगूंगी । जब पिताजी घर और दुकान तुम्हारे भाई को दे रहे थे तब मुझे भी तुम्हें आधा हिस्सा देना चाहिए सब उसके हाथ पर सौंप दिया पिताजी के जाने के बाद तो उसके रंग-ढंग बदल गए घर कि मुझे नौकरानी बना के रखा कभी किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन अब तो बेटा हद हो गई है अब अपने ही घर से मैं निकाल दी गई एक नौकर की तरह है आप किस मुंह से तुम्हारे और दामाद जी के पास जाऊं आज मुझे जीवन का असली जीवन का ज्ञान सब कुछ खोकर ही पाया …. और उनकी आंखों से आंसू बहने लगता है।
तब बेटी ने कहा मां कोई बात नहीं तुमने मुझे यह जाट में हिस्सा नहीं दिया तो क्या हुआ परवरिश तो तुमने ध्यान से की अब तुम सामाजिक सोच के कारण मजबूर रहोगे लेकिन मां बाप को पालने की जिम्मेदारी तो हम दोनों की है यदि भाई नहीं बोल देख रहा है तो क्या मैं भी उसकी तरह हो जाऊं और तुम्हारा आशीर्वाद से भगवान ने मुझे सब कुछ दिया है तुमने मुझे शिक्षा तो दी है ना मेरे लिए वही बहुत है अब तुम किसी बात की चिंता मत करो और मां का सामान अपने ऑटो रिक्शा में रखती है।
‘नंदादीपातील ज्योती’ या पुस्तकात एकूण १९ संतांचा परिचय करून देण्यात आला आहे. त्यापैकी १६ संत महाराष्ट्रातील आहेत. हे सर्व संत परिचित आहेत. पण यांच्या अर्धांगिनींबाबत फारच कमी माहिती मिळते. या पुस्तकात ती माहिती थोडीफार का होईना, वाचायला मिळते, हेच या पुस्तकाचे वैशिष्ट्य आहे. लेखिका वसुधाताई या सध्या ८८ वर्षांच्या आहेत. हे पुस्तक लिहून त्यांनी फार मोलाची माहिती वाचकांना करून दिली आहे.
त्यांनी ‘अलौकिक विभूती व त्यांच्या अर्धांगिनी’ हे ‘मनोगत’ लिहिताना म्हटलं आहे- सर्वसामान्यांच्या घरातून देशसेवा, राष्ट्रोन्नती यासाठी झटणाऱ्या देशभक्तांच्या धर्मपत्नींचा जीवनसंघर्ष आपण वाचला असेल. याच सामान्य, पण सात्त्विक, भक्तिमार्गी मायबापांच्या पोटी जन्मलेला वंशाचा दिवाच पुढे घराला मंदिराचं रूप देतो; स्वतः नंदादीप होतो. अशा नंदादीपातील भक्तिस्नेहात भिजून चिंब झाल्यानंतर नंदादीपातील ज्योत प्रकाशित होते. नंदादीप म्हटलं की, आठवते मंदिर, त्यातील गाभारा, परमेश्वराची मूर्ती, गंधफुले वाहून त्याची श्रद्धाभावनेने केलेली आकर्षक पूजा. भक्तिभावानं फिरवलेली उदबत्ती, तिच्या सुगंधाने सुप्रसन्न झालेले मन ! अन् स्वास्थ्य टिकावं
नैसर्गिक शक्तीनं अनेक जीव जन्माला येतात, पण वर शब्दांकित केलेलं वर्णन फक्त भाग्यवान माणसालाच अनुभवायला मिळतं. म्हणूनच की काय, श्री. शंकराचार्य म्हणतात,
‘दुर्लभं त्रयमेवैतत देवानुग्रह हेतुकम्।
मनुष्यत्वं, मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः।।’
या विश्वात तीन गोष्टी दुर्मीळ आहेत. एक म्हणजे मनुष्यत्व, मानवता; दुसरी मुमुक्षत्व म्हणजे मुक्ततेची ओढ; अन् तिसरी महापुरुष संश्रयः म्हणजे सत्संग, संतसहवास ! तुम्ही म्हणाल, माणसांना काय तोटा आहे ? लोकसंख्या तर वाढतीय ! शब्द लक्षात घ्या, मनुष्यजन्म दुर्मीळ नाही. मनुष्यत्व दुर्मीळ आहे! म्हणजे आकार, देह, माणसांचे पुष्कळ आहेत हो; पण त्यातलं मन राक्षसाचं, दहशतवाद्याचं, नक्षलवाद्याच किंवा दुसऱ्याचं चांगलं न पाहून त्याला खड्यात घालण्याची खटपट करणाऱ्या दुष्टाचं असतं. असं नकोय ! माणसाच्या मनात, आचार-विचारात दया, दान, प्रेम, जिव्हाळा, कृतज्ञता, परोपकाराची वृत्ती असेल तर, त्यात मनुष्यत्व असतं. असं मनुष्यत्व आजकाल दुर्मीळ झालेलं आहे. दुसरे म्हणजे मुक्ततेची ओढ माणसाला नाही. कारण आपण बांधलो आहोत, जखडले गेलो आहोत हेच त्याला कळत नाही. त्याचा ‘मी’पणा, सगळं मलाच हवं, नाही मिळालं तर मी ओरबाडून घेईन हा हावरेपणा व तो पुरवण्याकरता दुष्टपणा जे हवंय ते कष्ट करून न्याय्य मार्गाने मिळवावं. या कष्टार्जितातलंही थोडंसं दुसऱ्याला आपणहून द्यावं, ही सात्त्विक वृत्तीची माणसं आज दुर्मीळ आहेत.
एकनाथ म्हणतात,
‘धर्माची वाट मोडे। अधर्माची शीग चढे ।
ते आम्हा येणे घडे। संसार स्थिती ।।’
माणसाला स्वार्थीपणातून, अहंकारातून सोडवण्यासाठी, मार्गदर्शनासाठी संताचा सहवास हवा असतो. तो आज दुर्मीळ झालाय. कारण ज्याला त्याला ओढ आहे ती नट-नट्यांच्या, स्वार्थी राजकारण्यांच्या सहवासाची! कारण तिथे स्वार्थ पोसला जातो, लोकेषणा प्राप्त होते! खरं संतत्व प्राप्त होणं हीसुद्धा सोपी गोष्ट नाही. ज्ञानेश्वरादी भावंडांचा धर्ममार्तंडांनी केलेला छळ तुम्हाला माहितीये, एकनाथांची जनार्दनपंतांनी घेतलेली वेगवेगळी परीक्षा आपल्याला आठवत असेल. तुकाराम महाराजांवर निसर्गानं किती आपत्ती कोसळवल्या हेही विदीत असेलच !
अर्वाचीन काळातही जे संत होऊन गेले त्यांच्या जीवनात आपण डोकावणार आहोत. संतांचे जीवन कर्तव्यनिष्ठा, सर्वांविषयी आत्मीयता, धर्मनीतीच्या मयदितील जीवन, मोठ्या आपत्तीतही मनाची शांतता, प्रसन्नता राखणं असं असतं ‘ठेविले अनंते तैसेचि रहावे, चित्ती असो द्यावे समाधान !’ हेच त्यांचे ब्रीद ! हे सद्गुण आपल्यातही अंशाने का होईना प्रतिबिंबित व्हावेत, याच हेतूने आपण या नंदादीपांच्या ज्योतीप्रकाशात काही काळ घालवू, यात आपणास चिंचवडच्या मोरया गोसावींची प्रारब्धावर मात करण्याची जिद्द, शुकानंद संस्थानच्या उमाबाईंची भगवंतावरील निष्ठा, गाडगेमहाराजांच्या पत्नीची पतिनिष्ठा, संत तुलसीदासांना सहज प्रासंगिक छोटा दोहा म्हणून उपदेश करणारी त्यांची पत्नी, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण जप करणाऱ्या गौरांग प्रभूची विष्णुप्रिया इत्यादींचा परिचय होईल. परिणामी आध्यात्मिक सामर्थ्याचे महत्त्व आपल्या ध्यानी येईल व आपणही थोडा वेळ एकांतात आत्मशोध घेण्याचा विचार व कृती करून प्रसन्नता प्राप्त कराल !
तुका म्हणे मुखे पराविया सुखे। अमृत हे मुखे स्तावन मे ।।
गुरुबोधाने ज्यांचे अंतःकरण उजळलेले राहून ज्यांनी त्या ज्ञानाचा चित्प्रकाश जगाला देण्याचे कार्य केले, अशा महान विभूतींची चरित्रे, परकीय विषयविलासी संस्कृतीच्या आक्रमणप्रसंगी महत्त्वाची ठरतात. जगाच्या कल्याणा संतांच्या विभूती देह कष्टविती परोपकारी! कारण त्यांनी सत्तत्त्वाची अनुभूती व्यक्तिगत न ठेवता लोकोद्धारासाठी वापरली. देशाच्या या आध्यात्मिक वैभवाचा पाया वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात आत्मने मोक्षार्थं जगत् हितायच, हा आहे!
संत मांदियाळी
१) पू. वामनभट शाळीग्राम व सौ. पार्वतीबाई (मोरया गोसावी वंश)
२) पू. कालदीक्षित व सौ. उमादेवी (शुकानंद संस्थान)
३) पू. चैतन्य प्रभु गौरांग व सौ. विष्णुप्रिया
४) पू. गोस्वामी तुलसीदास व सौ. रत्नावली (रामचरितमानसकर्ते)
५) पू. यशवंत देव मामलेदार व सौ. रुक्मिणीबाई
६) श्री. गुंडाजीबुवा देगलूरकर व सौ. राजाई
७) पू. रामकृष्ण परमहंस व सौ. शारदादेवी
८) पू. रामानंद बीडकर महाराज व सौ. जानकीबाई
९) पू. गोंदवलेकर महाराज व सौ. सरस्वती
१०) पू. टेंबे स्वामी (वासुदेवानंदव सरस्वती) व सौ. अन्नपूर्णाबाई
११) पू. गाडगे महाराज व सौ. कुंताबाई
१२) संतकवी पू. दासगणू महाराज व सौ. सरस्वतीबाई
१३) गोजीवन पू. चौंडे महाराज व सौ. लक्ष्मीबाई
१४) प्रज्ञाचक्षू पू. गुलाबराव महाराज व सौ. मनकर्णिकाबाई
१५) पू. बाबामहाराज सहस्रबुद्धे व सौ. दुर्गाबाई (स्वरूपसंप्रदाय)
१६) पू. दादा धर्माधिकारी व सौ. दमयन्तीबाई
१७) पू. अनंतराव आठवले व सौ. इंदिराबाई (वरदानंद भारती)
१८) पू. पांडुरंगशास्त्री आठवले व सौ. निर्मलाताई (स्वाध्याय)
१९) पू. चिंतामणी सिद्धमहाराज व सौ. पद्मावतीबाई (मायबाई)
परिचय : श्री हर्षल सुरेश भानुशाली
पालघर
मो.9619800030
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 77 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – बदल गया है आज जमाना”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।