मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ निळासावळा सखा ☆ सुश्री निलिमा ताटके ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ ? निळासावळा सखा ? ☆ सुश्री निलिमा ताटके ☆ 

उत्तररात्र नि पहाट,

यामधील गाफील वेळ.

गाव सारे झोपलेले,

मनात सल,अन् उरात, कळ.

कृष्णसख्याच्या भेटीची,

एकच एक तळमळ.

मुरलीचा घुमे नाद

माझ्या घराभोवताली.

निळासावळा सखा ग,

वाजवतो मंजूळ पावरी.

भान हरपुनी मी धावते.

घराबाहेर टाकिते पाय.

चंदनतुळशीचा सुगंध नि

मोरपिस अंधारी चमकून जाय.

माझ्यासाठी, माझ्याचसाठी,

आला होता तो वनमाळी

मंजुळ सूर नि अनुपम सुगंध

सोडून गेला माझ्यासाठी.

छायाचित्र  – सुश्री निलिमा ताटके.

© निलिमा ताटके

ठाणे.

मोबाईल 9870048458

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #156 – ग़ज़ल-42 – “कैसा नफ़रती निज़ाम बनाया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “कैसा नफ़रती निज़ाम बनाया …”)

? ग़ज़ल # 42 – “कैसा नफ़रती निज़ाम बनाया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी दबे पाँव आती है मिलन की आस लिए,

हर आदमी तन्हा होता है मिलन की आस लिए।

यार लोगों से मिला-जुला करो तर्कों के झुरमुट में,

तन्हाई में जीते हैं हम सब मिलन की आस लिए।

हर शख़्स नाउम्मीदी में गुमसुम खोया है ऐ दोस्त,

निकल जा खुली सड़क पर उम्मीद की आस लिए।

लोग बाज़ारों में समेटें माल-ओ-असबाब-ए-फ़ैशन,

दिल खोल निकला करो आवारगी की आस लिए।

कैसा नफ़रती निज़ाम बनाया सियासतदाँ लोगों ने,

‘आतिश’ तरसता नज़र-ए-मुहब्बत की आस लिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 33 ☆ मुक्तक ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक भावप्रवण मुक्तक ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 33 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

हो विरोध कटुता फिर बात प्यार की नहीं होती।

हो मतभेद मनभेद तो बात इकरार की नहीं होती।।

जब दिल का कोना कोना नफरत में लिपटता है।

तो कोई बात आपस में सरोकार की नहीं होती।।

[2]

हम भूल जाते कोई अमर नहीं एक दिन जाना है।

जाकर प्रभु से कर्मों का खाता जंचवाना है।।

ऊपर जाकर स्वर्ग नरक चिंता मत करो अभी।

हो तेरी कोशिश हर क्षण यहीं स्वर्ग बनाना है।।

[3]

एक ही मिला जीवन कि बर्बाद नहीं करना है।

मन में नकारात्मकता भाव आबाद नहीं करना है।।

चाहें सब के लिए सुख तो हम सुख ही पायेंगे।

भूल से किसी के लिए गलत फरियाद नहीं करना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 99 ☆ ’’हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “कल्पना का संसार…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 99 ☆ गज़ल – कल्पना का संसार” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मनुज मन को हमेशा कल्पना से प्यार होता है

बसा उसके नयन में एक सरस संसार होता है।

जिसे वह खुद बनाता है, जिसे वह खुद सजाता है

कि जिसका वास्तविकता से अलग आकार होता है।

जहाँ हरयालियां होती, जहाँ फुलवारियां होती

जहाँ रंगीनियों से नित नया अभिसार होता है।

जहाँ कलियां उमगतीं है जहाँ पर फूल खिलते हैं

बहारों से जहाँ मौसम सदा गुलजार होता है।

जहाँ पर पालतू बिल्ली सी खुशियां लोटती पग पै

जहाँ पर रेशमी किरणों का वन्दनवार होता है।

अनोखी होती है दुनियां सभी की कल्पनाओं की

जहाँ संसार पै मन का मधुर अधिकार होता है।

जहाँ सब होते भी सच में कहीं कुछ भी नहीं होता

मगर सपनों में बस सुख का सुखद संचार होता है।      

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 106 – लक्ष्मी नारायण और स्वर्ग ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #106  🌻 लक्ष्मी नारायण और स्वर्ग 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी।

एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा। दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते- रोते ही वह सो गया।

उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम-चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं- बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है। तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न? स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।

स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा- स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है।

अच्छा, काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा। जब यह डिबिया भर जायगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।

जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी। डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला।

एक रोगी भिखारी उससे पैसा माँगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसा दिये भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा। उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की।

घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली, किन्तु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मी नारायण को बहुत दुःख हुआ। वह रोते- रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले- तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिये पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी।

अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है। दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिये। पैसे लेकर उसने बाजार जाकर दो संतरे खरीदे।

उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया। मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आये थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोती लाल की माता से कहा- इसे आज संतरे का रस देना।

मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली- ‘मैं मजदूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिये एक भी पैसा नहीं है।’

लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी। घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे।

एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया।

बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया।

मनुष्य जैसे काम करता है, वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनन्द आता है। जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बुरी लगती है।

लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया। अच्छा काम करते- करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता, उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा।

लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला- बाबा ! आप क्यों रो रहे है? साधु बोला- बेटा जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था।

बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा, किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी। लक्ष्मी नारायण ने कहा- बाबा ! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो।

साधु बोला- तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है, इसे देने से तुम्हें दुःख होगा। लक्ष्मी नारायण ने कहा- मुझे दुःख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूँ। मुझे तो अभी बहुत दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हुँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप मेरी डिबिया ले लीजिये।

साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा। ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था।

जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। देवता ने कहा- बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनका घर स्वर्ग बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अन्त में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’ देवता इतना कहकर वहीं अदृश्य हो गये।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 सितंबर से 18 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 सितंबर से 18 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

मेरा कहना है कि आप अपने भाग्य को कभी भी दोषी ना कहें क्योंकि यह मानव शरीर आपके बड़े भाग्य से मिला है। तुलसीदास जी ने भी कहा है “बड़े भाग मानुष तन पावा” । परंतु यह भी सही है कि कभी भाग्य आपके साथ होता है और कभी नहीं होता है । 12 सितंबर से 18 सितंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के अश्वनी कृष्ण पक्ष की द्वितीया से अश्वनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के सप्ताह में कब-कब आपका भाग्य किन किन कार्यों में आपकी मदद करेगा यह बताने का मैं पंडित अनिल पाण्डेय प्रयास कर रहा हूं ।

इस सप्ताह में चंद्रमा प्रारंभ में मीन राशि में रहेगा । फिर मेष और वृष में गोचर करता हुआ 17 तारीख को 3:03 रात अंत से मिथुन राशि का हो जाएगा । सूर्य प्रारंभ में सिंह राशि का रहेगा तथा 17 सितंबर को 10:46 से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। बुध गुरु और शनि क्रमशः कन्या मीन और मकर राशि में वक्री रहेंगे । शुक्र सिंह राशि में रहेगा तथा राहु मेष राशि में वक्री रहेगा । आइए अब राशि वार साप्ताहिक राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपनी संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । आपके संतान के भाग्य में परिवर्तन आ सकता है । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । धन आने में कमी आएगी । शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी । 13, 14 और 15 सितंबर को आप अधिकांश कार्यों में सफल रहेंगे । 12 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सोच समझ कर करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी । लोगों के बीच में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाग्य थोड़ा कम साथ देगा । स्वास्थ्य भी थोड़ा बहुत खराब हो सकता है । आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो सकेगा । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर फलदाई और लाभदायक है । 13 ,14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें और बृहस्पतिवार को किसी को पुस्तक का दान करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपका अपने भाइयों से अच्छा संबंध रहेगा । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा ।
भाग्य साथ देगा । आपके शत्रुओं का पतन होगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर अद्भुत और आनंददायक है । 16 और 17 सितंबर को आपको कष्ट हो सकता है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर किसी ब्राह्मण को कपड़े का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

धन आने के संभावना है । भाग्य आपका साथ दे सकता है । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । भाइयों से बुराई हो सकती है । संतान से सहयोग प्राप्त होगा । शिक्षा उत्तम चलेगी । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम है । 18 सितंबर को आप सावधान रहें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि पूरे सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह संबंध आ सकते हैं । धन आने की कम संभावना है । कार्यालय में आपको असहयोग का सामना करना पड़ेगा । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर लाभदायक हैं । 12 सितंबर को आपको सोच समझकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

सरकारी कार्यों में आपको इस सप्ताह सफलता मिलेगी । भाग्य कम साथ देगा । आपको शारीरिक कष्ट हो सकता है । आपके सुख में वृद्धि होगी । आप कोई सामान खरीद सकते हैं । भाइयों से संबंध ठीक रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर उत्तम और फलदाई है । 13 ,14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए । गाड़ी चलाते वक्त आपको अत्यंत सावधान रहना चाहिए । भाइयों के साथ संबंध उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम और लाभप्रद है । 12 सितंबर तथा 16 और 17 सितंबर को आप को हानि हो सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपकी शासकीय कार्यालयों में कार्यों की प्रगति अच्छी रहेगी । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपकी कार्यालयीन प्रतिष्ठा बढ़ेगी । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है । धन आने की कार्यों में बाधा आएगी परंतु धन थोड़ा बहुत आएगा । सुख में कमी आएगी । 16 और 17 सितंबर को आप के अधिकांश कार्य सफल होंगे । 13 ,14 ,15 और 18 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को मंदिर में जाकर भिखारियों को चावल का दान दें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य तीव्र गति से कार्य करेगा। कार्यालय में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । गलत रास्ते से धन आ सकता है । शत्रु परास्त होंगे । कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है । स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 तथा 18 सितंबर फलदाई है । 16 और 17 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको कोई भी फल की प्राप्ति परिश्रम के कारण ही होगी परिश्रम के बगैर इस सप्ताह आपको सफलता नहीं मिलेगा मिलेगी वाहन चलाते समय सावधानी बरतें । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम है 18 सितंबर को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करवाएं और प्रतिदिन स्वयं भी अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

आपके जीवन साथी को सफलता का योग है । आपका भी स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाग्य आपका साथ देगा । व्यापार में कमी आएगी। धन आने का सामान्य योग है । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर लाभकारी हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप बृहस्पतिवार का व्रत करें तथा मंदिर में जाकर पूजन करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । भाइयों के साथ संबंध खराब होंगे । भाग्य आपका साथ देगा । नए शत्रु बनेंगे । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर शुभ और लाभकारी है। 13, 14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार का व्रत करें उसी दिन शनिदेव की पूजा भी करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

देश का राजनीतिक परिदृश्य बहुत गर्म हो रहा है । आप सभी से अनुरोध है कि इस संबंध में अगर आप कोई जानकारी चाहते हैं कोई भविष्यफल जानना चाहते हैं तो कृपया मेरे मोबाइल नंबर 8959 594400 पर व्हाट्सएप करके बता दें । मैं गणना करके फल आपको बताने का प्रयास करूंगा ।

मैं शारदा माँ से प्रार्थना करता हूं कि आप सभी स्वस्थ, सुखी और सानंद रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 119 – बाळ गीत – चिऊ ताईचे बाळ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 119  – बाळ गीत – चिऊ ताईचे बाळ 

चिऊ ताईचे चिमणे बाळ

चिव् चिव् बोले।

काग आई आज तुझे

डोळे असे ओले।

चिऊ ताईचा कंठ आज

थरथरू लागला ।

काय सांगू बाळा माझा

जीव तुझ्यात गुंतला।

काडी काडी जमवून

आम्ही, घरटे बांधले ।

कापसाचे मऊ मऊ

गालिचेही सजले।

बाळा तुझ्या येण्याने

घरटे आनंदले ।

तुझ्या हस्यामध्ये माझे

दुःख सुारे विरले।

कण कण टिपून तुला

प्रेमे वाढविले।

आकाश पेलणारे सुंदर

पंख तुला फुटले।

बाळा उंच आकाशी

भरारी घेशील।

रंगीबेरंगी स्वप्नांच्या

रगात रंगून जाशील।

तुझ्याविना बाळा पुन्हा

घरटे सुने होईल।

आठवणीने जीव कसा

कासावीस होईल।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ फिन्द्री… सुश्री सुनीता बोर्डे ☆ परिचय – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते ☆ 

सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

? पुस्तकावर बोलू काही?

☆ फिन्द्री… सुश्री सुनीता बोर्डे ☆ परिचय – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते ☆ 

कादंबरी – फिन्द्री

लेखिका – सुनीता बोर्डे

प्रकाशक – मनोविकास प्रकाशन

किंमत – ३५० रू.

पृष्ठ संख्या – ३०३

…मला ही कादंबरी अशी भावली…वंदना अशोक हुळबत्ते

“फिन्द्री” या नावाचे आकर्षण वाटलं होतं.कोणता विषय,कसा मांडला असेल या कादंबरीत? या उत्सुकते पोटी मी ही कादंबरी वाचायला घेतली.कादंबरी वाचताना मी वेगळ्या विश्वात गेले.जे कथानक कादंबरीत वाचत होते ते सारे कल्पनेच्या पलीकडेचे होते. असं काही आपल्या आसपास घडत असते, ते ही विसाव्या शतकात हे ही पचण्यासारखे नव्हते.

संगीता ही या कादंबरीची नायिका.ही कादांबरी सत्य कथेवर आधारित असावी असे वाटते.तसा कुठे उल्लेख कादंबरीच्या प्रस्तावनेत वा मनोगतात नाही.पण कादंबरीत आलेले वर्णन आणि दाखले या वरून ती कथा सत्य असावी असे वाटते. स्त्री शिक्षणासाठी अग्रेसर असणाऱ्या महाराष्ट्रात, शाहु,फुले, आंबेडकराची परंपरा सांगणाऱ्या पुरोगामी महाराष्ट्रात शिक्षण घेण्यासाठी नायिकेला किती संघर्ष करावा लागला हे या कादंबरीतून अधोरेखित होते.गावाकुसा बाहेरील दलित वस्तीचे,समाज जीवनाचे, जातपातीचे, तिथल्या विचारसरणचे,तिथल्या राहणीमानाचे,तिथली बोली भाषाचे आणि तिथल्या शिव्याचे देखिल यथोचित वर्णन लेखिकेने  केलं आहे.

या कादंबरीतील नायिकेचा बाप,हाच खरा या कादंबरीचा खलनायक आहे.मुले आईबापांच्या छत्रछायेत सुरक्षित असतात.मुलाच्या यशात आई-बाप सुख मानतात.मुलांनी उच्च शिक्षण घ्यावे,उज्ज्वल यश मिळवावे असे प्रत्येक आई-बापाला वाटत असते. पण या कादंबरीतील बाप, मुलांना प्रेमच देत नाही.उलट मुलीचा जन्म नाकारतो‌.तिला नकुशी ठरवतो,तिचा दुष्वास करतो,तिच्या शिक्षणात काटे पेरतो,तिचे शिक्षण थांबवण्यासाठी अटोकाट प्रयत्न करतो.एखादा सुखाचा क्षण कुटूंबात येतोय असे वाटत असतानाच बापच त्यांची माती कशी करतो.त्यांच्या उमेदीवर पाणी कसे फिरवतो.हे सारे प्रसंग लेखिकेने अतिशय ताकदीने मांडले आहे.हे प्रसंग वाचताना समोर घटना घडत आहेत असे वाटते. स्वत:ला घराचा कर्ता पुरुष समजणारा बाप मात्र कोणतेच कर्तव्य पार पाडत नाही. बायको म्हणजे आपली हक्काची वस्तू,रोज तिला दिवस रात्र राबवून घेतो आणि सकारण, विनाकारण रोज बडवतो.हाच त्याचा पुरूषार्थ.ती ही मार निमुट पणे सहन करते तेव्हा तिचा राग ही येतो. बायको आणि जनावर यात त्याला भेद वाटत नाही. इतके हाल करतो तिचे. तिच्या जीवाची पर्वा नाही त्याला. मुले बापाला भितात. भिऊन सश्या सारखी आईच्या पाठीमागे लपतात. तेव्हा बापाच्या माराचा प्रसाद त्यांना ही मिळतो.मुलीच्या शिक्षणात अडथळे आणतो. संगीताने बारावीची परीक्षा देऊ नये म्हणून हा दारूडा बाप तिची पुस्तके विहिरीत टाकतो.तरी ती काॅलेज मध्ये पहिली येते तेव्हा तो तिला मारतो तेव्हा त्या बापाच्या विचारसरणी ची कीव करावीशी वाटते.  अशा बापा कडून मुलांनी प्रेमाची काय अपेक्षा ठेवावी.

मुलीच्या शिक्षणासाठी प्रतिकूल परिस्थितीत पुरूष प्रधान संस्कृतीतील नवऱ्याशी दोन हात केलेल्या एका आईची ही कहाणी आहे.लढा आहे.आपल्या आई विषयी नायिकेला आदर आहे.तीआईला गुरू मानते.आईची शिकवण सांगताना लेखिकेने खुप चांगले विचार मांडले आहेत.ती आईच्या भाषेत म्हणते “कढीपत्याचे झाड बी बाईच्या जातीवाणीच! किती बी छाटा,लगीच धुमारे फुटात्यात त्याला,गरजे पेक्षा ज्यादा वाढायला लागला का फांद्या छाटल्याच म्हणून समजा!निऱ्हे चोखायचं,फेकायचं.खर तर तिच्या शिवाय सवसाराला चव नुसतीच पण तरी तिलाच साम्द्यात आधी फेकायला तयार असतात सारे.”स्त्री जाती विषयीचे एक तत्वज्ञान च सांगितले आहे

“आईच्या डोक्यावरच्या चुंबळी पेक्षा खरे तर तिच्या मनाची चुंबळ जास्त पक्की होती, म्हणूनच आई एकाच वेळी इतकी सारीओझी पेलू शकत असावी.” आई विषयी चे हे निरिक्षण सर्व  स्त्री वर्गाला लागू होते.

लेखिकेने प्रत्येक प्रकरण विचार पुर्वक लिहिले आहे.प्रत्येक प्रकरणातून एक विचार दिला आहे.गोधडी,बाभळीच्या काटा,दात काढणे,हे आणि या सारखे विषय एकेका प्रकरणातून सुंदर मांडले आहेत कुठे ही ओढाताण दिसत नाही. विषय सहज आला आहे.प्रत्येक प्रकरणातून कथानक पुढे जात राहते.वाचताना कंटाळा येत नाही.बोली भाषेतील किती तरी नव्या  शब्दाचा परिचय होतो.

आपण ज्या परिस्थितीत राहून नवराचा अन्याय सहन केला ती वेळ आपल्या मुलीवर येऊ नये म्हणून एका आईने जीवाचे रान कलेली ही कादंबरी आहे.याच कादंबरीत लेखिका म्हणते “खरंच,भाकरी हा असा गुरू आहे.जो धडा शिकवायला ,माणसाला शहाणं करायला त्याचं वय पहात नाही. भुकेची तीव्रता अन् भाकरीची कमतरता या दोन निकषांवर कोणत्याही वयाचा विद्यार्थी भाकरीच्या  विद्यापीठात उच्च शिक्षण घेऊ शकतो.”

समाज व्यवस्थेवर,जातीपातीवर विचार करायला लावणारी,पुरूष प्रधान संस्कृती झुगारून देण्यास प्रवृत्त करणारी ही कादंबरी अनेक प्रश्न मनात निर्माण करते. अज्ञान आणि अन्याय हाच विकासातील मोठा अडसर आहे.तो दूर केला पाहिजे हा विचार देणारी ही कादंबरी आहे.दलित समाजातील मुलीच्या शिक्षणाच्या प्रश्नला या कादंबरीतून वाचा फोडली म्हणून मी लेखिका सौ.सुनीता बोर्डे यांचे हार्दिक अभिनंदन करते.सर्वानी ही कादंबरी वाचावी अशी अपेक्षा करते.

© सौ.वंदना अशोक हुळबत्ते

संपर्क – इंदिरा अपार्टमेंट बी-१३, हिराबाग काॅनर्र, रिसाला रोड, खणभाग, जि.सांगली, पिन-४१६  ४१६

मो.९६५७४९०८९२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #149 ☆ कोशिश–नहीं नाक़ामी ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख कोशिश–नहीं नाक़ामी। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 149 ☆

☆ कोशिश–नहीं नाक़ामी 

‘कोशिश करो और नाक़ाम हो जाओ; तो भी नाक़ामी से घबराओ नहीं; फिर कोशिश करो। अच्छी नाक़ामी सबके हिस्से में नहीं आती,’ सैमुअल बैकेट मानव को निरंतर कर्मशीलता का संदेश देते हैं। मानव को तब तक प्रयासरत रहना चाहिए; जब तक उसे सफलता प्राप्त नहीं हो जाती। कबीरदास जी के ‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान’ के संदर्भ में रामानुजम् जी का कथन भी द्रष्टव्य है–’अपने गुणों की मदद से अपना हुनर निखारते चलो। एक दिन हर कोई तुम पर, तुम्हारे गुणों और क़ाबिलियत पर बात करेगा।’ सो! मानव को अपनी योग्यता पर भरोसा होना चाहिए और उसे अपने गुणों व अपने हुनर में निखार लाना चाहिए। दूसरे शब्दों में मानव को निरंतर अभ्यास करना चाहिए तथा अपना दिन इन तीन शब्दों से शुरू करना चाहिए– कोशिश, सत्य व विश्वास। कोशिश बेहतर भविष्य के लिए, सच अपने काम की गुणवत्ता के साथ और विश्वास भगवान की सत्ता में रखें; सफलता तुम्हारे कदमों में होगी। मानव को परमात्म-सत्ता में विश्वास रखते हुए पूर्ण ईमानदारी व निष्ठा से अपना कार्य करते रहना चाहिए।

‘वक्त पर ही छोड़ देने चाहिए, कुछ उलझनों के हल। बेशक़ जवाब देर से मिलेंगे, पर लाजवाब मिलेंगे।’ भगवद्गीता में भी यही संदेश प्रेषित किया गया है कि मानव को सदैव निष्काम कर्म करना चाहिए; फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। यही जीवन जीने का सही अंदाज़ है, क्योंकि ‘होता वही है, जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है।’ सो! हमें परमात्म-सत्ता में विश्वास रखते हुए सत्कर्म करने चाहिए, क्योंकि यदि ‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाए’ अर्थात् बुरे कार्य का परिणाम सदैव बुरा ही होता है।

आत्मविश्वास व धैर्य वे अजातशत्रु हैं, जिनके साथ रहते मानव का पतन नहीं हो सकता और न ही उसे असफलता का मुख देखना पड़ सकता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘यदि सपने सच न हों, तो रास्ते बदलो, मुक़ाम नहीं। पेड़ हमेशा अपनी पत्तियां बदलते हैं, जड़ें नहीं।’ वे मानव को तीसरे विकल्प की ओर ध्यान देने का संदेश देते हैं तथा उससे आग्रह करते हैं कि मानव को हताश-निराश होकर अपना लक्ष्य परिवर्तित नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार पतझड़ में पुराने पीले पत्ते झड़ने के पश्चात् नये पत्ते आते हैं और वसंत के आगमन पर पूरी सृष्टि लहलहा उठती है; ठीक उसी प्रकार मानव को विश्वास रखना चाहिए कि अमावस की अंधेरी रात के पश्चात् पूनम की चांदनी रात का आना निश्चित है। समय नदी की भांति निरंतर गतिशील रहता है; कभी ठहरता नहीं। ‘आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू/ जो भी है, बस यही एक पल है’ मानव को सचेत करता है कि भविष्य अनिश्चित है और अतीत कभी लौटकर नहीं आता। इसलिए मानव के लिए वर्तमान में जीना सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि वही पल सार्थक है।

जीवन को समझना है, तो पहले मन को समझो, क्योंकि जीवन केवल हमारी सोच का साकार रूप है। जैसी सोच, वैसी क़ायनात अर्थात् जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। शेक्सपियर के अनुसार ‘सौंदर्य वस्तु में नहीं, दृष्टा के नेत्रों में होता है।’ इसलिए संसार हमें हमारी मन:स्थिति के अनुकूल भासता है। सो! हमें मन को समझने की सीख दी गयी है और उसे दर्पण की संज्ञा से अभिहित किया गया है। मन व्यक्ति का आईना होता है। इसलिए नमन व मनन दोनों स्थितियों को श्रेष्ठ स्वीकारा गया है। दूसरे शब्दों में यह एक सुरक्षा-चक्र है, जो सभी आपदाओं से हमारी रक्षा करता है। मनन ‘पहले सोचो, फिर बोलो’ का संदेशवाहक है और नमन ‘विनम्रता का’, जिसमें अहं का लेशमात्र भी स्थान नहीं है। यदि मानव अहं का त्याग कर देता है, तो संबंध शाश्वत बन जाते हैं। अहं संबंधों को दीमक की भांति चाट जाता है और सुनामी की भांति लील जाता है। इसलिए कहा जाता है ‘घमंड मत कर दोस्त! सुना ही होगा/ अंगारे राख ही बनते हैं।’ सो! मानव को अर्श से फ़र्श पर आने में पल भर भी नहीं लगता। अहं मानव का सबसे बड़ा शत्रु है। जो आज शिखर पर है, उसे एक अंतराल के पश्चात् लौटकर धरा पर ही आना पड़ता है; जैसे तपते अंगारे भी थोड़े समय के बाद राख बन जाते हैं। इसलिए ‘थमती नहीं ज़िंदगी, कभी किसी के बिना/ लेकिन ‘गुज़रती भी नहीं, अपनों के बिना।’ यदि अपनों का साथ हो, तो कोई रास्ता भी कठिन व लंबा नहीं होता। स्वर्ग-नरक की सीमाएं निश्चित नहीं है। परंतु हमारे विचार व कार्य- व्यवहार ही उनका निर्माण करते हैं। श्रेष्ठता संस्कारों से मिलती है और व्यवहार से सिद्ध  होती है।

’यदि आप किसी से सच्चे संबंध बनाए रखना चाहते हैं, तो उसके बारे में जो आप जानते हैं, उस पर विश्वास रखिए; न कि उसके बारे में जो आपने सुना है’ अब्दुल कलाम जी की यह उक्ति अत्यंत सार्थक है। ‘दोस्ती के मायने कभी ख़ुदा से कम नहीं होते/ अगर ख़ुदा क़रिश्मा है, तो दोस्त भी जन्नत से कम नहीं होते।’ सो! आवश्यकता से अधिक सोचना दु:खों का कारण होता है। महात्मा बुद्ध अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाने का संदेश देते हैं कि मानव की सोच अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि नज़र का इलाज तो दुनिया में मुमक़िन है, परंतु नज़रिए का नहीं। वास्तव में इंसान इंसान को धोखा नहीं देता, बल्कि वे उम्मीदें धोखा दे जाती हैं, जो वह दूसरों से करता है। इसलिए उम्मीद न ही दूसरों से रखें, न ही ख़ुद से, क्योंकि आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं, ख़्वाहिशें नहीं। इसके साथ ही मानव को तुलना के खेल में नहीं उलझना चाहिए, क्योंकि जहां तुलना की शुरुआत होती है, वहां अपनत्व व आनंद समाप्त हो जाता है। उस स्थिति में इंसान एकांत की त्रासदी झेलने को विवश हो जाता है। मुझे याद आ रही हैं वे स्वरचित पंक्तियाँ, जो आज भी समसामयिक हैं। ‘बाहर रिश्तों का मेला है/ भीतर हर शख़्स अकेला है/ यही ज़िंदगी का झमेला है।’ आजकल बच्चे हों, युवा हों या वृद्ध; पति-पत्नी हों या परिवारजन– सब अपने-अपने द्वीप में कैद हैं। सो! संसार को नहीं, ख़ुद को बदलने का प्रयास करें, अन्यथा माया मिली न राम वाली स्थिति हो जाएगी, क्योंकि जिसने संसार को बदलने की चेष्टा की; वह पराजित ही हुआ है।

मानव को हर पल मालिक की रहमतों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। वह सृष्टि-नियंता सबको कठपुतली की भांति नचाता हैं, क्योंकि सबकी डोर उसके हाथ में है। ‘थमती नहीं ज़िंदगी, कभी किसी के बिना/  लेकिन यह गुज़रती भी नहीं, अपनों के बिना।’ ईश्वर आक्सीजन की तरह है, जिसे हम देख नहीं सकते और उसके बिना ज़िंदा रह भी नहीं सकते। ईश्वर अदृश्य है, अगम्य है, अगोचर है; परंतु वह सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है।

अंत में मैं यह कहना चाहूंगी कि तुम में अदम्य साहस है और तुम जो चाहो, कर सकते हो। निरंतर प्रयासरत रहें और आत्मविश्वास व धैर्य रूपी धरोहर को थामे रखें। प्यार व विश्वास वे तोहफ़े हैं, जो मानव को कभी पराजय का मुख नहीं देखने देते। इसके साथ ही वाणी-संयम की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मौन की महत्ता को दर्शाया गया है तथा गुलज़ार जी द्वारा लफ़्ज़ों को चखकर बोलने की सलाह दी गयी है। रहीम जी के शब्दों में ‘ऐसी बानी बोलिए, मनवा शीतल होय’ यथासमय व अवसरानुकूल सार्थक वचन बोलने की ओर इंगित करता है। सदैव कर्मशील बने रहें, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। वे अपनी नाक़ामी से सीख लेकर बहुत ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचते हैं और उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित होता है। एक अंतराल के पश्चात् ख़ुदा भी उसकी रज़ा जानने को विवश हो जाता है। ‘कौन कहता है, आकाश में छेद हो नहीं सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ दुष्यंत की यह पंक्तियां इसी भाव को दर्शाती हैं कि यदि आपकी इच्छा-शक्ति प्रबल है, तो संसार में असंभव कुछ भी नहीं।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #149 ☆ भावना की शब्दांजलि – तुम यहीं हो ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। 8 सितम्बर 2015 को चिर विदा लेने वाली परम आदरणीया गुरु माँ डॉ गायत्री तिवारी जी को सजल श्रद्धांजलि! आज प्रस्तुत हैं  उन्हें समर्पित  भावना की शब्दांजली   – तुम यहीं हो।) 

image

🌸 स्मृति शेष डॉ गायत्री तिवारी 🌸

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 149 – साहित्य निकुंज ☆

भावना की शब्दांजलि – तुम यहीं हो

तुम मेरी यादों के

झरोखे में झांकती

मुझे तुम निहारती

मै अतीत के उन पलों

में पहुंच जाती हूं।

 

तुम्हारा रोज मुझसे

बात करना,अपना

मन हल्का करना।

मैं खो जाती हूं तुम्हारे

आंचल की छांव में

जहां मिलता था

मुझे सुकून, मुझे चैन।

 

तुम्हारा प्यार ,तुम्हारा

ममत्व अक्सर

ख्वाबों में भी आराम

देता है।

नींद में भी तुम्हारे

हाथों का स्पर्श

यकीन दिला जाता है कि

तुम हो मेरे ही आस पास।

 

मन में आज भी एक

प्रश्न चिन्ह उठता है

जिंदगी पूरी जिये

बिना तुम क्यों चली गई

और जाने कितने सवाल

छोड़ गई हम सब के लिए।

जो आज भी अनसुलझे है।

 

तुम गई नहीं हो

तुम हो

तिलिस्म के साए में

ऐसी माया है जिससे वशीभूत

होकर व्यक्ति उसके मोह जाल में

फंस जाता है।

मां

हो मेरे आसपास

मेरे अस्तित्व को मिलता है अर्थ

नहीं है कुछ भी व्यर्थ।।

तुम मेरी यादों में ……

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

🌸 ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से गुरुमाता डॉ गायत्री तिवारी जी की पुण्य तिथि (8 सितंबर 2015) पर सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि 🌸

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print