हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 103 – ननद-भाभी और रक्षाबंधन ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #103 🌻 ननद-भाभी और रक्षाबंधन 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक बहन ने अपनी भाभी को फोन किया और जानना चाहा …”भाभी, मैंने जो भैया के लिए राखी भेजी थी, मिल गयी क्या आप लोगों को” ???

भाभी : “नहीं दीदी, अभी तक तो नहीं मिली”।

बहन : “भाभी कल तक देख लीजिए, अगर नहीं मिली तो मैं खुद जरूर आऊंगी राखी लेकर, मेरे रहते भाई की कलाई सूनी नहीं रहनी चाहिए रक्षाबंधन के दिन”।

अगले दिन सुबह ही भाभी ने खुद अपनी ननद को फोन किया : “दीदी आपकी राखी अबतक नहीं मिली, अब क्या करें बताईये”??

ननद ने फोन रखा, अपने पति को गाड़ी लेकर साथ चलने के लिए राजी किया और चल दी राखी, मिठाई लेकर अपने मायके ।

दो सौ किलोमीटर की दूरी तय कर लगभग पांच घंटे बाद बहन अपने मायके पहुंची।

फ़िर सबसे पहले उसने भाई को राखी बांधी, उसके बाद घर के बाक़ी सदस्यों से मिली, खूब बातें, हंसी मजाक औऱ लाजवाब व्यंजनों का लंबा दौर चला  ।

अगले दिन जब बहन चलने लगी तो उसकी भाभी ने उसकी गाड़ी में खूब सारा सामान रख दिया… कपड़े, फल, मिठाइयां वैगेरह।

विदा के वक़्त जब वो अपनी माँ के पैर छूने लगी तो माँ ने शिकायत के लहजे में कहा… “अब ज़रा सा भी मेरा ख्याल नहीं करती तू, थोड़ा जल्दी जल्दी आ जाया कर बेटी, तेरे बिना उदास लगता है मुझें, तेरे भाई की नज़रे भी तुझें ढूँढ़ती रहती हैं अक़्सर”।

बहन बोली- “माँ, मैं समझ सकती हूँ आपकी भावना लेकिन उधर भी तो मेरी एक माँ हैं और इधर भाभी तो हैं आपके पास, फ़िर आप चिंता क्यों करती हैं, जब फुर्सत मिलेगा मैं भाग कर चली आऊंगी आपके पास”।

आँखों में आंसू लेकर माँ बोली- “सचमुच बेटी, तेरे जाने के बाद तेरी भाभी बहुत ख्याल रखती है मेरा, देख तुझे बुलाने के लिए तुझसे झूठ भी बोला, तेरी राखी तो दो दिन पहले ही आ गयी थी, लेकिन उसने पहले ही सबसे कह दिया था कि इसके बारे में कोई भी दीदी को बिलकुल बताना मत, राखी बांधने के बहाने इस बार दीदी को जरुर बुलाना है, वो चार सालों से मायके नहीं आयीं”।

बहन ने अपनी भाभी को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया और रोते हुए बोली… “भाभी, मेरी माँ का इतना भी ज़्यादा ख़याल मत रखा करो कि वो मुझें भूल ही जाए”।

भाभी की आँखे भी डबडबा गईं।

बहन रास्ते भर गाड़ी में गुमसुम बेहद ख़ामोशी से अपनी मायके की खूबसूरत, सुनहरी, मीठी यादों की झुरमुट में लिपटी हुई बस लगातार यही प्रार्थना किए जा रही थी… “हे ऊपरवाले, ऐसी भाभी हर बहनों को मिले!”

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (15 अगस्त से 21 अगस्त 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी के ही शब्दों में …

साथियों, भारतवर्ष का पढ़ा-लिखा तबका राशिफल को बिल्कुल गलत मानता है । उनका कहना है कि अरबों की जनसंख्या में कुल 12 तरह का ही  राशिफल होना संभव नहीं है । कुछ स्वार्थी लोग अखबारों में तरह-तरह के राशिफल निकाल कर राशिफल की दुर्गति भी कर रहे हैं । परंतु ऐसी बात नहीं है। अगर आप ध्यान से अपने लग्न का राशिफल देखें तो पाएंगे कि आप का राशिफल 80% से ऊपर सही निकल रहा है । ऐसा कैसे और क्यों होता है, यह हम अगली बार बताएंगे।

  – ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (15 अगस्त से 21 अगस्त 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

सर्वप्रथम आपको स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🇮🇳

तुलसीदास जी ने कहा है

परहित सरिस धर्म नहिं भाई

पर पीड़ा सम नहिं अधिमाई।

दूसरों को कष्ट देने के समान दूसरा कोई भी अधर्म नहीं है। इसके विपरीत दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है । हमें इसका अनुसरण करना चाहिए । मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको 15 अगस्त से 21 अगस्त 2022 तक अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की दशमी तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल बताऊंगा ।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मीन राशि में रहेगा । तदोपरांत मेष एवं वृष राशि से होता हुआ 21 अगस्त की रात 7:56 पर मिथुन राशि में गोचर करेगा ।

पूरे सप्ताह गुरु मीन राशि में वक्री रहेगा । शनि मकर राशि में वक्री  रहेगा । राहु मेष राशि में वक्री रहेगा । शुक्र कर्क राशि में तथा मंगल वृष राशि में गोचर करेगा । सूर्य प्रारंभ में कर्क राशि का रहेगा 17 तारीख को 9:45 राशि सिंह राशि में गोचर करेगा । बुद्ध प्रारंभ में सिंह राशि में रहेंगे तथा 20 तारीख के 2:17 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेंगे ।

आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह अगर कोई बाधा नहीं आई तो आपके पास धन आने का योग है । आपका व्यापार उत्तम चलेगा । आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । आपके सुख में कमी आएगी । कार्यालय में आपका लोगों से टकराव होगा । भाग्य आपका साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त उत्तम और हितकारी है ।  15 और 16 अगस्त को आपको कार्य करने में सावधानी बरतना चाहिए । इस सप्ताह आप के खर्चे बढ़ सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी । आपको यश मिलेगा । आपके माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । भाई बहनों से आपके संबंध खराब हो सकते हैं । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपको  शारीरिक कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 19 ,20 और 21 तारीख हितकारी है । 17 और 18 अगस्त को  कम से कम कार्य करने का आपको प्रयास करना चाहिए ।आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनि मंदिर में जाकर शनिदेव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है ।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपको शत्रु की चिंता नहीं करना चाहिए । भाई बहनों से आपके संबंध उत्तम रहेंगे । आपको अपने भाई बहनों से सहयोग प्राप्त होगा । भाग्य सामान्य रूप से साथ देगा। छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । गलत रास्ते से धन आने का योग है । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 तारीख उत्तम और लाभदायक है । 19 ,20 और 21 को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में  शनिवार को जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । यह कार्य आपको पूरे वर्ष भर करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके पास उत्तम धन आने की उम्मीद है । व्यापार में तरक्की होना संभावित है । स्वास्थ्य थोड़ा कम ठीक रहेगा । आपके जीवनसाथी के कमर और गर्दन में दर्द हो सकता है । इस सप्ताह  आप भाग्य से कम उम्मीद करें । अच्छे से अच्छा शत्रु  इस सप्ताह परास्त हो जाएगा । आपको अपने संतान से सुख प्राप्त होगा । इस सप्ताह    17 और 18 तारीख आपके लिए शुभ है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को किसी भी मंदिर पर जाकर किसी योग्य ब्राह्मण को सफेद वस्त्रों का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

लग्नेश वर्तमान में आपके लग्न भाव में गोचर कर रहा है जिसके कारण  यह सप्ताह आपके लिए  ठीक रहना चाहिए । आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है । भाग्य कम साथ देगा । आपको अपने पौरूष पर यकीन करना पड़ेगा । खर्चों में थोड़ी कमी आएगी । माताजी को कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 19 ,20 और 21 अगस्त किसी भी कार्य को करने के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं । 19 ,20 और 21 अगस्त को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता मिलना तय है । 15 और 16 अगस्त को आप कोई भी कार्य बहुत सावधानी से करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु उपाय करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी । धन आते आते रुक सकता है । भाई बहनों से संबंध में सामान्य रहेंगे । संतान को कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 अगस्त अत्यंत उपयुक्त है । अपने लंबित कार्यों को आप 15 और 16 अगस्त को करने का प्रयास करें । 17 और 18 अगस्त को आपको कोई भी कार्य विशेष सावधानी से करना चाहिए । परिवार के समस्त सदस्यों के कष्टों को दूर करने के लिए आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह भगवान शिव का अभिषेक करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करावे । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

तुला राशि

तुला राशि के जातकों के पास इस बार धन आने का अद्भुत और अच्छा योग है । अगर आपकी विंशोत्तरी दशा अच्छी चल रही है तो आप यह निश्चित माने कि आप के पास एक बड़ी रकम आएगी। आपका स्वास्थ्य तो ठीक रहेगा परंतु आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में दिक्कत आ सकती है । गलत रास्ते से भी धन आ सकता है । किसी प्रकार  से आपके शरीर से खून निकलने की आशंका है । आपको चाहिए कि आप थोड़ा सावधान रहें । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त फलदाई हैं । सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का स्वयं पाठ करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपको व्यापार और अपने कार्यालय में इस सप्ताह अद्भुत सफलताएं मिल सकती हैं । भाग्य थोड़ा कम साथ देगा जिसके लिए आपको अमेरिकन डायमंड या डायमंड धारण करना चाहिए । शत्रुओं से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है । आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट होगा । आपके संतान भी थोड़े परेशान हो सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने सभी रुके हुए कार्यों को 19। ,20 और 21 अगस्त को करें । 19 ,20 और 21 अगस्त को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें से 90% में आपको सफलता मिलेगी । 17 और 18 अगस्त को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने जीवनसाथी और बच्चों के लिए मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर  भिखारियों के बीच गुड़ का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा । अगर आप प्रयास करेंगे तो इस सप्ताह आपके सभी शत्रु आप से हार मान लेंगे । माता जी को और पिताजी को थोड़ा कष्ट हो सकता है । अगर आप अधिकारी हैं तो कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी । अगर आप कर्मचारी हैं तो आप की स्थिति थोड़ी खराब हो सकती है । आपका स्वास्थ्य ठीक रहना चाहिए । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 अगस्त शुभ फलदाई हैं । 19 ,20 और 21 अगस्त को आपको कार्यों को करने हेतु के समय सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि अपने माताजी और पिताजी के उत्तम स्वास्थ्य के लिए  इस सप्ताह रुद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

मकर राशि के जातकों को इस सप्ताह थोड़ी से धन की प्राप्ति संभव है । आपको दुर्घटनाओं से अपना बचाव करना चाहिए । आपके संतान को भी कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त उत्तम है । अपने पूरे परिवार के दुख दर्द को दूर करने के लिए आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें एवं उनकी प्रार्थना करें । आपके लिए सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

अगर आप व्यापारी हैं तो यह सप्ताह आपके व्यापार के लिए उत्तम है। इस सप्ताह आपको व्यापार से धन लाभ भी होगा । भाग्य आपका साथ दे रहा है । शत्रुओं से आपको सतर्क रहना चाहिए । भाइयों से आपके संबंध में बुराई आएगी । कार्यालय में आप की स्थिति मजबूत होगी । इस सप्ताह आपके लिए 19 ,20 और 21 अगस्त बहुत लाभप्रद हैं । इस तारीख में आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

आपके प्रयासों से इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से मुक्ति मिल सकती है ।  आपका स्वास्थ्य इस सप्ताह ठीक रहेगा । भाग्य आपका साथ देगा । कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक होगी । आपको अपने वकील के मदद से न्यायालयीन  कार्यों में सफलता मिल सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 अगस्त उपयुक्त और हितकारी है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर पुजारी जी को सफेद वस्तुओं का दान दें । इससे आपके संतान के कष्ट में कमी आएगी । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार  है ।

साथियों भारतवर्ष  का पढ़ा-लिखा तबका राशिफल को बिल्कुल गलत मानता है । उनका कहना है कि अरबों की जनसंख्या में कुल 12 तरह का ही  राशिफल होना संभव नहीं है । कुछ स्वार्थी लोगों ने अखबारों में तरह-तरह के राशिफल निकाल कर  राशिफल की दुर्गति भी कर रहे हैं । परंतु ऐसी बात नहीं है । अगर आप ध्यान से  अपने लग्न का राशिफल देखें तो पाएंगे कि आप का राशिफल 80% से ऊपर सही निकल रहा है । ऐसा कैसे और क्यों होता है यह हम अगली बार बताएंगे।

माँ शारदा से मेरी प्रार्थना है कि आप सभी स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय माँ शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 115 – विद्याधन ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 115 – विद्याधन ☆

जगी तरण्या साधन

असे एक विद्याधन।

कण कण जमवू या

अहंकार समर्पण।

 

सारे सोडून विकार

करू गुरूचा आदर।

सान थोर चराचर

रूपं गुरूचे सादर ।

 

चिकाटीने धावे गाडी

आळसाची  कुरघोडी।

बरी नसे मनी अढी

ठेवू जिभेवर गोडी।

 

धरू ज्ञानीयांचा संग

सारे होऊन निःसंग।

दंग चिंतन मननी

भरू जीवनात रंग।

 

ग्रंथ भांडार आपार

लुटू ज्ञानाचे कोठार।

चर्चा संवाद घडता

मिळे संस्कार भांडार।

 

वृद्धी होईल वाटता

अशी ज्ञानाची शिदोरी।

नका लपवू हो विद्या

वृत्ती असे ही अघोरी।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ दोन चाकं झपाटलेली… सुमेध वडावाला (रिसबूड) ☆ परिचय – सौ उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

?पुस्तकावर बोलू काही?

☆ दोन चाकं झपाटलेली… सुमेध वडावाला (रिसबूड)☆ परिचय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

पुस्तकाचे नाव- दोन चाकं झपाटलेली

शब्दांकन- सुमेध वडावाला (रिसबूड)

अनुभव कथन – सतीश आंबरेकर

प्रकाशक- नवता बुक वर्ल्ड

मूल्य -350रु.

‘दोन चाकं झपाटलेली’  ही आहे भ्रमणगाथा 3 सायकस्वारांची. साहसवीरांची. ‘ग्लोबल सायकल एक्स्पीडिशन’ या मोहिमेअंतर्गत प्रदूषणमुक्त पर्यावरणाचा, भारताच्या वतीने जगाला संदेश देत त्यांनी ही मोहीम पार पाडली. हे तीन वीर म्हणजे सतीश आंबरेकर, महेंद्र आणि मख्खन. त्यांनी ३५,००० की.मी. अंतर सायकलने कापले. ३२० दिवसात २४ देश सायकलक्रांत केले. केलेल्या नियोजनाप्रमाणे त्यांनी काटेकोर प्रवास केला. नियोजनाप्रमाणे त्यांना इरॅक, इराण, अफगाणीस्तान आणि पाकिस्तान इथे मात्र जाता आले नाही. कारण त्यावेळी सद्दाम हुसेनने कुवेतवर आक्रमण केले होते व अमेरिका कुवेतच्या मदतीला धावून आल्याने, महायुद्धाची शक्यता निर्माण झाली होती. त्यामुळे त्यांना तुर्कस्तानातूनच परतावे लागले. बाकी सारा प्रवास मात्र त्यांनी नियोजनाप्रमाणे पार पाडला.

या मोहिमेचं नियोजन ४३ महीने चालू होतं.  (डिसेंबर ८५ ते १९ मे १९८९नोहेंबर) व्हिसाची गुंतागुंत, खर्चाचं टेबल, न्यायच्या सामानाची यादी, कामाची यादी…. आशा किती तरी गोष्टींचं नियोजन करावं लागलं होतं. जेसीजचे राजकुमार यांनी आपल्या मित्रांच्या मदतीने ही मोहीम स्पॉन्सर केली आणि मोठाच प्रश्न सुटला.

या भ्रमणात आलेल्या अडचणी, मोहिमेतल्या गमती जमाती, आव्हानं, अविस्मरणीय प्रसंग यांची स्मरणगाथा म्हणजे ‘दोन चाकं झपाटलेली’ हे प्रवासवर्णन.  हे प्रवासवर्णन खरे पण अन्य प्रवासवर्णनापेक्षा हे प्रवासवर्णन वेगळे आहे. अन्य प्रवासवर्णनात स्थलवर्णनाला जास्त महत्व असते. इथेही स्थलवर्णन आहेच पण त्यापेक्षा जास्त महत्व आहे अनुभव कथनाला. हे अनुभव कथन केले आहे, सतीश आंबरेकर यांनी आणि शब्दबद्ध केलेत सुमेध वडावाला यांनी. पुस्तक वाचताना वाचकाला वाटतं, आपणही त्या तिघांच्या मागोमाग सायकलवरून जातोय. त्यांच्याबरोबर तेच अनुभव आपणही घेतोय. यातच या पुस्तकाचे यश सामावले आहे. 

२५ नोहेंबर १९८९ला ते कलकत्त्याहून थायलंडला विमानाने निघाले. ९०मधे त्यांची मोहीम पूर्ण झाली. आणि पुस्तक निघाले ३० मार्च २०१४ला. म्हणजे मोहीम पार पडल्यानंतर तब्बल २४ वर्षांनी. पण मोहिमेच्या वेळी सतीश आंबरेकरांनी सतत टिपणे काढली होती. त्यामुळे अनुभव कथन करताना काही अडचणी आल्या नाहीत.

मलेशियात त्यांच्या लक्षात राहिला तो जगातला सगळ्यात उंच ध्वजस्तंभ आणि त्याच्या साक्षीने होणार्यात मोटरसायकलच्या बेकायदेशीर शर्यती. या शर्यतीत बेटिंग होतं आणि मोठ्या प्रमाणात आर्थिक उलाढाल होते. स्पर्धा संपल्यावर  पोलीस कायदेशीर कारवाई करतात आणि मोटरसायकलस्वारांना नियम मोडला म्हणून पकडतात. स्पर्धेचे संयोजक जामीन भरून त्यांना सोडवतात,

त्यानंतर पुढे विमानाने ऑस्ट्रेलियात गेल्यानंतर, तिथे प्रचंड तापमान, उकाडा आणि उलट दिशेने वाहणारे वारे यामुळे या सहसवीरांची चांगलीच दमछाक झाली. तिथे टोनी विंबरा या मेयरमुळे त्यांची सिडनी टाईम्सला, मोहिमेचा हेतू, स्वरूप, अनुभव याबद्दल मुलाखत प्रसिद्ध झाली. रेडिओवर त्यांच्याबद्दल स्पेशल अनाऊन्समेंट झाली आणि ती ऐकून एका हॉटेल मालकिणीने जेवणाचे बील घ्यायचे नाकारले. भारतीय एंबसीतील मुख्य अधिकारी दुगेसाहेब यांच्या स्वागताशील आतिथ्यामुळे त्यांचं ऑस्ट्रेलियातील वास्तव्य व पर्यटन सुखावह झालं.

ऑस्ट्रेलियातून १४ तासांच्या विमान प्रवासानंतर अमेरिकेत लॉस एंजेलीसला पोचले, तेव्हा हवामान अगदी विरुद्ध होतं. इथे प्रचंड थंडी होती. उणे तापमानात सायकलिंग करावं लागलं. त्यापूर्वी लॉस एंजेलीस ते अल्बुकर्की हा प्रवास डोंगराळ प्रदेश आणि स्नो फॉल यामुळे रेल्वेने करावा लागला. स्नो फॉलमुळे अल्बुकर्कीत दोन दिवस अडकून पडावं लागलं. तिथे त्यांनी एक म्युझियम पाहिलं. त्यातली वैशिष्ट्यपूर्ण गोष्ट आशी की तिथे काही प्राण्या-पक्षांचे मुखवटे होते. त्या मुखवट्याला तांत्रिक कृत्रीम डोळे बसवले होते. त्या त्या प्राण्या-पक्षाला, माणसासह सारं, भावताल कसं दिसतं , ते त्या कृत्रीम डोळ्यातून बघता येत होतं. सतीशने मधमाशीचा मुखवटा घातला. त्याला दिसलं, तिला प्रत्येक वस्तूच्या 9 प्रतिमा दिसतात. त्यातल्या मधल्या भागावर ती सोंड लावून फुलातला मध शोषून घेते किंवा डंख करते. दुसर्यािच्या शरीरात काटा टोचून ती डंख कशी करते, हेही त्याला कळलं.

ऑक्लोहोम येथील ‘ वेस्टर्न ‘ मोटेलचे मालक कांती आणि तारा पटेल यांनी त्यांचं मनापासून स्वागत आणि आतिथ्य केलं. दरात सूट दिली. सायकल स्वारांना त्यांनी आपली जीवन कहाणी ऐकवली. रेकॉर्ड प्लेअर आणि हिन्दी गाण्याच्या कॅसेट्स ऐकायला दिल्या. प्रत्येक मुक्कामात तुम्ही डॉलर्सचा हिशेब करत असणार, असं म्हणत त्यांचे आंघोळीचे कपडेही धुवून दिले. त्यांच्या मार्गावरील ठिकाणे विचारून भारतीय मोटेल मालकांचे पत्ते वं फोन नंबरही दिले. अशाच आतिथ्यशील आणि सहकार्य करणार्याे अनेक व्यक्ती त्यांना पुढेही भेटत गेल्या. क्वचित कुठे कटू अनुभवही आले.

अमेरिकेच्या आडीच महिन्याच्या प्रवासाबद्दल ते म्हणतात, ‘या प्रवासात आम्ही जणू आमच्या अंगावर चिलखते चढवली होती. पण हवामानाने त्याची पत्रास बाळगली नाही. या सगळ्या प्रवासात त्यांनी तीनही ऋतु अनुभवले. मलेशियात धो धो पाऊस, ऑस्ट्रेल्यात प्रचंड उन्हाळा आणि अमेरिकेत जीवघेणी थंडी.

भ्रमंती कटकसरीनेच करायची होती, त्यामुळे बहुतेक सगळे मुक्काम, जेसीजच्या युथ हॉस्टेल, मोटेल किंवा तंबू ठोकून करावे लागले. या भ्रमंतीतं त्यांनी निसर्गनिर्मित वा मानव निर्मित चमत्काराबरोबरच आणखीही काही अनवट गोष्टी पाहिल्या. सायकल दुरुस्तीला क्लिफोर्ड यांच्या दुकानात गेले असता त्यांच्या खापर पणजोबांच्या, खापर पणजोबांची आदिम सायकल पाहिली. तिचं पुढचं चाक पुरुषभर उंचीचं होतं, तर मागचं चाक मुलांच्या सायकलइतकं लहान होतं. त्यांनी ती सायकल चालवूनही दाखवली. १८६७साली तयार झालेली ही सायकल होती.

शतकापूर्वी मातीत सोन्याचा अंश सापडल्याने सुवर्णभूमी ठरलेली आणि आता तिच्यातील सुवर्णाचा अंश संपल्याने आता ओसाड झालेली ‘भूतनगरी’ पाहिली. न्यूड बीचवरचं नग्नविश्व पहिलं. हंगेरीत झाडा-फुलांचं सुरेख उद्यान, नशाबाजांसाठी राखीव ठेवल्यामुळे तिथे सुयांच्या खचामुळे उद्यानाचा नीडल पार्क झालेला पहिला. दुसर्यां नी टाकून दिलेल्या उष्ट्या ताटात जेवण्याइतकं दारिद्र्य असलेली माणसं पाहिली.

हॉलंडच्या गुरुद्वारात खलिस्तानी पासपोर्ट, व्हिसा, खलिस्तानी चलनाच्या प्रतिकृती पाहिल्या आणि त्यांचे मन संताप आणि शोक अशा संमिश्र भावनेने विषण्ण झाले.

त्यांनी आपल्या या प्रवासात काय काय आणि किती किती पाहिलं, हे समजून घेण्यासाठी मूळ पुस्तकंच वाचायला हवं.

पुस्तकात आनेक ठिकाणी साध्या वाक्यांऐवजी संमिश्र आणि संयुक्त वाक्याचा  उपयोग झालाय. तसेच नवनवीन सामासिक शब्द घडवण्याचा सोसही दिसतो. या दोन्हीमुळे पुस्तक थोडं बोजड झालय. वाचताना गतीमानता उणावते. त्याचप्रमाणे सर्व आशय सलगपणे आलेला आहे. त्याऐवजी प्रत्येक देशाचे स्वतंत्र प्रकरण केले असते, तर आशय अधिक आकलनसुलभ झाला असता. पण एवढं सोडलं, तर पुस्तक वाचनीय आहे. अनुभवविश्व समृद्ध करणारं आहे.

शब्दांकन- सुमेध वडावाला (रिसबूड)

अनुभव कथन – सतीश आंबरेकर

परिचय – सौ. उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #145 ☆ वक्त, मौसम और फ़ितरत ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख वक्त, मौसम और फ़ितरत। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 145 ☆

☆ वक्त, मौसम और फ़ितरत

वक्त,मौसम व लोगों की फ़ितरत एक-सी होती है। कौन, कब,कहां बदल जाए– कह नहीं सकते,क्योंकि लोग वक्त देखकर इज़्ज़त देते हैं। सो! वे आपके कभी नहीं हो सकते, क्योंकि वक्त देखकर तो सिर्फ़ स्वार्थ-सिद्धि की जा सकती है; रिश्ते नहीं निभाए जा सकते। वक्त परिवर्तनशील है; कभी एक-सा नहीं रहता; निरंतर बहता रहता है। भविष्य अनिश्चित् है और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ‘कल क्या हो, किसने जाना।’ भले ही ज़िंदगी का सफ़र सुहाना है। परंतु मानव को किसी की मजबूरी व भरोसे का फायदा नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि ‘सब दिन ना होत समान।’ नियति प्रबल व अटल है। इसलिए मानव को वर्तमान में जीने का संदेश दिया गया है,क्योंकि भविष्य सदैव वर्तमान के रूप में दस्तक देता है। वक्त के साथ लोगों की सोच,नज़रिया व कार्य-व्यवहार भी बदल जाता है। सो! किसी पर भी भरोसा करना कारग़र नहीं है।

इंसान मौसम की भांति रंग बदलता है। ‘मौसम भी बदलते हैं/ दिन रात बदलते हैं/ यह समाँ बदलता है/ हालात बदलते हैं/ यादों से महज़ दिल को/ मिलता नहीं सुक़ून/ ग़र साथ हो सुरों का/ नग़्मात बदलते हैं।’ मेरी स्वरचित पंक्तियाँ मानव को एहसास दिलाती हैं कि जैसे रात्रि के पश्चात् दिन,पतझड़ के पश्चात् बसंत और दु:ख के पश्चात् सुख का आना निश्चित् व अवश्यंभावी है; उसी प्रकार समय के साथ-साथ मानव की सोच,नज़रिया व जज़्बात भी बदल जाते हैं। अतीत की स्मृतियों में रहने से मानव सदैव अवसाद की स्थिति में रहता है; उसे कभी भी सुक़ून की प्राप्ति नहीं होती। यदि सुरों के साथ संगीत भी हो तो उसका स्वरूप मनभावन हो जाता है और प्रभाव-क्षमता भी चिर-स्थायी हो जाती है। यही जीवन-दर्शन है। जो व्यक्ति इसके अनुसार व्यवहार करता है; उसे कभी आपदाओं का सामना नहीं करना पड़ता।

‘समय अच्छा है,तो सब साथ देते हैं और बुरे वक्त में तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है।’ इसलिए मानव को वक्त की महत्ता को स्वीकारना चाहिए। दूसरी ओर आजकल रिश्ते स्वार्थ पर आधारित होते हैं। इसलिए वे विश्वास के क़ाबिल न होने के कारण स्थायी नहीं होते,क्योंकि आजकल मानव धन-संपदा व पद-प्रतिष्ठा देख कर ही दुआ-सलाम करता है। ऐसे रिश्ते छलना होते हैं,क्योंकि वे रिश्ते विश्वास पर आश्रित नहीं होते। विश्वास रिश्तों की नींव है और प्रतिदान प्रेम का पर्याय अर्थात् दूसरा रूप है। स्नेह व समर्पण रिश्तों की संजीवनी है। ज़िंदगी में ज्ञान से अधिक गहरी समझ होनी चाहिए। वास्तव में आपको जानते तो बहुत लोग हैं, परंतु समझते बहुत कम हैं। वास्तव में जो लोग आपको समझते हैं; आपके प्रिय होते हैं और आपकी अनुपस्थिति में भी वे आपके पर पक्षधर बन कर खड़े रहते हैं। वे अंतर्मन से आपके साथ जुड़े होते हैं; आपका हित चाहते हैं और जीवन में ऐसे लोगों का मिलना अत्यंत कठिन होता है– वे ही दोस्त कहलाने योग्य होते हैं।

सच्चा साथ देने वालों की बस एक निशानी है कि वे ज़िक्र  नहीं; हमेशा आपकी फ़िक्र करते हैं। उनके जीवन के निश्चित् सिद्धांत होते हैं; जीवन-मूल्य होते हैं, जिनका अनुसरण वे जीवन-भर सहर्ष करते हैं। वे इस तथ्य से अवगत होते हैं कि मानव जीवन क्षणभंगुर है,पंचतत्वों से निर्मित्त है और उसका अंत दो मुट्ठी राख है। ‘कौन किसे याद रखता है/ ख़ाक हो जाने के बाद/ कोयला भी कोयला नहीं रहता/ राख हो जाने के बाद। किस बात का गुमान करते हो/ वाह रे बावरे इंसान/ कुछ भी नहीं बचेगा/ पंचतत्व में विलीन हो जाने के बाद’– यही जीवन का अंतिम सत्य है। इसलिए मानव को यह सीख दी जाती है कि जीवन में भले ही हर मौके का फायदा उठाओ; मगर किसी की मजबूरी व भरोसे का नहीं,क्योंकि ‘सब दिन न होत समान।’ नियति अटल व  बहुत प्रबल है। कल अर्थात् भविष्य के बारे में कोई नहीं जानता। इसलिए किसी की विवशता का लाभ उठाना वाज़िब नहीं,क्योंकि विधाता अर्थात् वक्त पल भर में किसी को अर्श से फर्श पर लाकर पटक देता  है तथा रंक को सिंहासन पर  बैठाने की सामर्थ्य रखता है। इसलिए मानव को सदैव अपनी औक़ात में रहना चाहिए तथा जो निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन करता है; मर्यादा का अतिक्रमण करता है,उसका पतन होना होने में समय नहीं लगता।

स्वेट मार्टेन के मतानुसार विश्वास ही हमारा अद्वितीय संबल है, जो हमें मंज़िल पर पहुंचा देता है तथा यह मानव की धरोहर है। किसी का विश्वास तोड़ना सबसे बड़ा पाप है। इसलिए मानव को किसी से विश्वासघात नहीं करना चाहिए, क्योंकि भावनाओं से खिलवाड़ करना उचित नहीं है। सो! यह रिश्तों से निबाह करने का सर्वश्रेष्ठ व सर्वोत्तम साधन है। संबंध व रिश्ते कभी अपनी मौत नहीं मरते; उनका क़त्ल किया जाता है और उन्हें अंजाम देने वाले हमारे अपने क़रीबी ही होते हैं। इस कलियुग में अपने ही,अपने बनकर, अपनों की पीठ में छुरा घोंपते हैं। वास्तव में हम भी वही होते हैं,रिश्ते भी वही होते हैं और बदलता है तो बस समय, एहसास और नज़रिया। परंतु रिश्तों की सिलाई अगर भावनाओं से हुई हो,तो उनका टूटना मुश्किल है और यदि स्वार्थ से हुई है,तो टिकना असंभव है– यही है जीवन का सार।

रिश्तों को क़ायम रखने के लिए मानव को कभी गूंगा,तो कभी बहरा बनना पड़ता है। रिश्ते व नाते मतलब पर चलने वाली रेलगाड़ी है,जिसमें जिसका स्टेशन आता है; उतरता चला जाता है। आजकल संबंध स्वार्थ पर आधारित होते हैं। यह कथन भी सर्वथा सत्य है कि ‘जब विश्वास जुड़ता है, पराए भी अपने हो जाते हैं और जब वह टूटता है तो अपने भी पराए हो जाते हैं।’ वैसे कुछ बातें समझाने पर नहीं,स्वयं पर गुज़र जाने पर समझ में आती हैं। बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों के अनुभव से सीखते हैं और मूर्ख व्यक्ति लाख समझाने पर भी नहीं समझते। ‘उजालों में मिल जाएगा कोई/ तलाश उसी की करो/ जो अंधेरों में साथ दे अर्थात् ‘सुख के सब साथी, दु:ख में न कोय।’ सुख में तो बहुत साथी मिल जाते हैं,परंतु दु:ख व ग़मों में साथ देने वाले बहुत कठिनाई से मिलते हैं। वे मौसम की तरह रंग नहीं बदलते; सदा आपके साथ रहते हैं, क्योंकि वे मतलब-परस्त नहीं होते। इसलिए मानव को सदैव यह संदेश दिया जाता है कि रिश्तों का ग़लत इस्तेमाल कभी मत करना,क्योंकि रिश्ते तो बहुत मिल जाएंगे,परंतु अच्छे लोग ज़िंदगी में बार-बार नहीं आएंगे। सो! उनकी परवाह कीजिए; उन्हें समझिए– ज़िंदगी सीधी-सपाट व अच्छी तरह बसर होगी। जीवन में मतभेद भले हो जाएं; मनभेद कभी मत होने दो और मन में मलाल व आँगन में दीवारें मत पनपने दो। संवाद करो,विवाद नहीं तथा जीवन में समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाओ। अहं का त्याग करो, क्योंकि यह मानव का सबसे बड़ा शत्रु है। इसे अपने हृदय में कभी भी आशियाँ मत बनाने दो। यह दिलों में दरारें उत्पन्न करता है,जिन्हें पाटना मानव के वश में नहीं रहता। सो! परमात्म-सत्ता में विश्वास रखें,क्योंकि वह जानता है कि हमारा ही हमारा हित किसमें है?

वैसे समय के साथ सब कुछ बदल जाता है और मानव शरीर भी पल-प्रतिपल मृत्यु की ओर जाता है। ‘यह किराए का मकान है/ कौन जाने कब तक ठहरेगा/ खाली हाथ तू आया है बंदे!/ खाली हाथ तू जाएगा’ मेरे स्वरचित गीत की पंक्तियाँ यह एहसास दिलाती हैं कि मानव को इस नश्वर संसार को तज खाली हाथ लौट जाना है। इसलिए उसे मोह-ममता का त्याग कर निस्पृह भाव से जीवन बसर करना चाहिए। ‘अपने क़िरदार की हिफाज़त जान से बढ़कर कीजिए,क्योंकि इसे ज़िंदगी के बाद भी याद किया जाता है अर्थात् मानव अपने सत्कर्मों  से सदैव ज़िंदा रहता है और चिर-स्मरणीय हो जाता है। यह चिरंतन सत्य है कि लोग तो स्वार्थ साधते ही नज़रें फेर लेते हैं।

इसलिए वक्त, मौसम व लोगों की फ़ितरत विश्वसनीय नहीं  होती। यह दुनिया पल-पल रंग बदलती है। इसलिए भरोसा ख़ुद पर रखिए; दूसरों पर नहीं और अपेक्षा भी ख़ुद से कीजिए; दूसरों से नहीं, क्योंकि जब उम्मीद टूटती है तो बहुत तक़लीफ होती है। मुझे स्मरण है हो रही है स्वरचित गीत की पंक्तियां ‘मोहे ले चल मांझी उस पार/ जहाँ न हो रिश्तों का व्यापार।’ ऐसी मन:स्थिति में मन कभी वृंदावन धाम जाना चाहता है तो कभी गंगा के किनारे जाकर सुक़ून की साँस लेना चाहता है। भगवान बुद्ध ने भी इस संसार को दु:खालय कहा है। इसलिए मानव शांति पाने के लिए प्रभु की शरणागति चाहता है और यह स्थिति तब आती है,जब दूसरे अपने उसे दग़ा दे देते हैं,विश्वासघात करते हैं। ऐसी विषम स्थिति में प्रभु की शरण में ही चिन्ताओं का शमन हो जाता है। विलियम जेम्स के शब्दों में ‘विश्वास उन शक्तियों में से है,जो मनुष्य को जीवित रखती हैं और विश्वास का पूर्ण अभाव ही जीवन का अवसान है।’

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #144 ☆ भावना के दोहे…रक्षा बंधन ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे …रक्षा बंधन ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 144 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …रक्षा बंधन ☆

लगी द्वार पर टकटकी

देख रही हूँ राह।

राखी के अवसर की

है बहना को चाह।।

 

चौमासे की धूम है,

हर दिन है त्यौहार।

संग सखी, भाई बहन,

मिले पिया का प्यार।।

 

राखी के दिन भाई बहना

आया है शुभ दिन क्या कहना।

देते दुआएं भाई हमको

राखी तो भाई का गहना।।

 

रक्षा बंधन प्यार का,

   प्यारा सा त्योहार।

खुशियां भाई बहिन की,

   मना रहा संसार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #133 ☆ संतोष के दोहे… रक्षा बंधन ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे… रक्षा बंधन। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 133 ☆

☆ संतोष के दोहे… रक्षा बंधन ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राखी पावन पर्व है, धागे का त्यौहार

सजी कलाई प्रेम से, मिला बहिन का प्यार

 

रक्षा का बंधन बंधे, होता जो अनमोल

बहिन सुरक्षित हो सदा, भाई के यह बोल

 

भाई को आशीष दे, करती बहिन पुकार

ईश्वर से यह कामना, सुखी रहे परिवार

 

खुशियाँ लेकर आ गया, राखी का यह पर्व

भाई पर करतीं बहिन, सबसे ज्यादा गर्व

 

सावन सुखद सुहावना, सजे सावनी गीत

रक्षाबंधन,कजलियाँ, बांट रहे हैं प्रीत

 

भाई की यह कामना, मिले बहिन का प्यार

बहिन हमेशा खुश रहे, ईश्वर से दरकार

 

दिखने में दो तन दिखें, बहे एक सा खून

पावन राखी पर्व पर, खुशियाँ होतीं दून

 

इंद्रधनुष सी राखियाँ, भरतीं मन उत्साह

प्रेम बढ़ाती परस्पर, रिश्तों की यह राह

 

दे शीतलता चाँद सी, भ्रात-भगिनि का प्यार

दिल में भी “संतोष”हो, बढ़े प्रेम व्यबहार

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #137 ☆ श्रावण साकव…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 137 – विजय साहित्य ?

☆ श्रावण साकव…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

झुले पंचमीचा झुला

श्रावणाची घाली साद

लेक  आली माहेराला

सृजनाचे पडसाद …१

 

सणवार नेम धर्म

सातवार सणवार

सडा रांगोळीचा थाट

कुळधर्म कुलाचार …२

 

श्रावणाचे सारामृत

नाग पंचमीचा सण

हळवेल्या आठवात

हिंदोळ्यात झुले क्षण…३

 

वसुंधरा धरी फेर

झिम्मा फुगडीचा खेळ

आली गौराई  अंगणी

जीव शीव ताळमेळ….४

 

ब्रम्ह, कृष्ण कमळाचा

श्रावणात दरवळ

रंग गंधात नाहला

अंतरीचा परीमळ….५

 

न्यारा श्रावण श्रृंगार

नथ, पैठणीचा साज

सालंकृत अलंकार

भवसागराची गाज…६

 

सातवार सातसण

आली नारळी पुनव

रक्षा बंधनी गुंतला

न्यारा श्रावण साकव   …७

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ चं म त ग ! ☆ ना गी ण ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? चं म त ग ! 😅

🐍 ना गी ण ! 😅 श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

रविवार असल्यामुळे, नाष्टा वगैरे करून फुरसतीत दाढी करत होतो आणि तेवढ्यात दारावरची बेल वाजली. तोंड फेसाने माखल्यामुळे बायकोला म्हटलं, “बघ गं जरा कोण तडमडलय सकाळी सकाळी ते !” “बघते !” असं बोलत बायकोने दरवाजा उघडला. “मकरंद भावजी तुम्ही एवढ्या सकाळी आणि ते ही लुंगीवर आणि हे तुमच्या बरोबर कोण आलंय ?” हिचा तो तार स्वर ऐकून मी घाबरलो आणि टॉवेलने तोंड पुसत पुसत बाहेर आलो. “काय रे मक्या, काय झालंय काय असं एकदम माझ्याकडे लुंगीवर येण्या इतकं?” “वारेव्वा, मला काय धाड भरल्ये ? अरे तुलाच ‘नागीण’ चावल्ये ना ? वहिनी म्हणाल्या तसं मोबाईलवर, म्हणून शेजारच्या झोडपट्टीत राहणाऱ्या ह्या ‘गारुडयाला’ झोपेतून उठवून आणलंय, तुझी नागीण उतरवायला !” “अरे मक्या गाढवा नागीण चावली नाही, नागीण झाल्ये मला !” “असं होय, मला वाटलं चावल्ये, म्हणून मी या गारुड्याला घेवून आलो !” मी गारुड्याला म्हटलं “भाईसाब ये मेरे दोस्त की कुछ गलतफईमी हुई है ! आप निकलो.” “ऐसा कैसा साब, मेरी निंद खराब की इन्होने, कुछ चाय पानी….” मी गपचूप घरात गेलो आणि पन्नासची नोट आणून त्याच्या हातावर नाईलाजाने ठेवली. तो गारुडी गेल्यावर मी मक्याला म्हटलं “अरे असं काही करण्या आधी नीट खात्री का नाही करून घेतलीस गाढवा ? आणि नागीण चावायला आपण काय जंगलात राहतो का रे बैला ?” पण मक्या तेवढ्याच शांतपणे मला म्हणाला “अरे जंगलात नाहीतर काय ? ही आपली ‘वनराई सोसायटी’ आरे कॉलनीच्या जंगलाच्या बाजूला तर आहे ! आपल्या सोसायटीत रात्री अपरात्री बिबट्या येतो हे माहित नाही का तुला ?” “अरे हो पण म्हणून…” “मग नागीण का नाही येणार म्हणतो मी ? गेल्याच आठवड्यात बारा फुटी अजगर पकडाला होता ना आपल्या पाण्याच्या टाकी जवळ, मग एखादी नागीण…” शेवटी मी त्याची कशी बशी समजूत काढली आणि त्याला घरी पिटाळलं !

पण मक्या गेल्या गेल्या बायको मला म्हणाली, “आता साऱ्या ‘वनराईत’ तुमच्या या नागिणीची बातमी जाणार बघा !” “ती कशी काय ?” “अहो आपल्या ‘वनराई व्हाट्स ऍप गृपचे’ मकरंद भाऊजी ऍडमिन आणि अशा बातम्या ते ग्रुपवर लगेच टाकतात !” तीच बोलणं पूर होतंय न होतंय तोच आमच्या दोघांच्या मोबाईलवर, एकाच वेळेस मेसेज आल्याची बेल वाजली ! बायकोच भाकीत एवढ्या लवकर प्रत्यक्षात उतरेल असं वाटलं नव्हतं ! तो मक्याचाच व्हाट्स ऍप मेसेज होता ! “आपल्या ‘वनराईत’ बी बिल्डिंगमध्ये राहणारे वसंत जोशी यांना नागीण झाली आहे. तरी यावर कोणाकडे काही जालीम इलाज असल्यास त्यांनी लगेच जोशी यांच्याशी संपर्क साधावा, ही कळकळीची नम्र विनंती !” मी तो मेसेज वाचला आणि रागा रागाने मक्याला झापण्यासाठी मोबाईल लावणार, तेवढ्यात परत दाराची बेल वाजली ! कोण आलं असेल असा विचार करत दरवाजा उघडला, तर वरच्या मजल्यावरचे ‘वनराईतले’ सर्वात सिनियर मोस्ट गोखले अण्णा दारात काठीचा आधार घेत उभे !

“अण्णा, तुम्ही ? काही काम होत का माझ्याकडे ?” “अरे वश्या आत्ताच मक्याचा व्हाट्स ऍप मेसेज वाचला आणि मला कळलं तुला नागीण झाल्ये म्हणून ! म्हटलं चौकशी करून यावी आणि त्यावर माझ्याकडे एक जालीम उपाय आहे तो पण सांगावा, म्हणून आलो हो !” “अण्णा माझे डॉक्टरी उपाय चालू आहेत, बरं वाटेल एक दोन….” मला मधेच तोडत अण्णा म्हणाले “अरे वश्या ह्या नगिणीवर आलो्फेथीचे डॉक्टरी उपाय काहीच कामाचे नाहीत बरं !” “मग?” “अरे तिच्यावर आयुर्वेदिकच उपाय करायला हवेत, त्या शिवाय ती बरं व्हायचं नांव घेणार नाही, सांगतो तुला!” “पण डॉक्टर म्हणाले, तसा वेळ लागतो ही नागीण बरी व्हायला, थोडे पेशन्स ठेवा!” “अरे पण पेशन्स ठेवता ठेवता तीच तोंड आणि शेपटी एकत्र आली, तर जीवाशी खेळ होईल हो, सांगून ठेवतो !” “म्हणजे मी नाही समजलो ?” “अरे वश्या ही नागीण जिथून सुरु झाल्ये ना ती तिची शेपटी आणि ती तुझ्या कपाळावरून जशी जशी पुढे जात्ये नां, ते तीच तोंड !” “बापरे, असं असतं का ?” “हो नां आणि एकदा का त्या तोंडाने आपलीच शेपटी गिळली की खेळ खल्लास!” “काय सांगताय ? मग यावर काय उपाय आहे म्हणालात अण्णा ?” “अरे काय करायच माहित्ये का, रात्री मूठ भर तांदूळ भिजत घालायचे आणि सकाळी मूठभर हिरव्यागार दुर्वा आणून त्यांची दोघांची पेस्ट करून त्याचा लेप करून या नागिणीवर लावायचा ! दोन दिवसात आराम पडलाच म्हणून समज !” “अहो अण्णा, पण नागीण आता कपाळावरून केसात शिरत्ये, मग केसात कसा लावणार मी लेप ?” “वश्या तुझ्याकडे इलेक्ट्रिक रेझर असेलच ना, त्याने त्या सटवीच्या मार्गातले केस कापून टाक, म्हणजे झालं !” “अण्णा पण कसं दिसेल ते ? डोक्याच्या उजव्या डाव्या बाजूला रान उगवल्या सारखे केस आणि मधून पायावट! हसतील हो लोकं मला तशा अवतारात !” “हसतील त्यांचे दात दिसतील वश्या ! तू त्यांच हसणं मनावर घेवू नकोस!” “बरं बघतो काय करता येईल ते !” अण्णांना कटवायच्या हेतूने मी म्हणालो. “नाहीतर असं करतोस का वश्या, सगळं डोकंच भादरून टाक, म्हणजे प्रश्नच मिटला, काय ?” “अहो अण्णा, पण तसं केलं तर लोकं वेगळाच प्रश्न नाही का विचारणार ?” “ते ही खरंच की रे वश्या ! तू बघ कसं काय करायच ते, पण त्या सटविच तोंड आणि शेपटी एकत्र येणार नाही याची काळजी घे हो बरीक ! नाहीतर नस्ती आफत ओढवायची !” असं म्हणून अण्णा काठी टेकत टेकत बाहेर पडले आणि मी सुटकेचा निश्वास टाकला !

मी किचनकडे वळून म्हटलं “अगं जरा चहा टाक घोटभर, बोलून बोलून डोकं दुखायला लागलंय नुसतं !” आणि सोफ्यावर बसतोय न बसतोय तर पुन्हा दाराची बेल वाजली ! आता परत कोण तडमडल असं मनात म्हणत दार उघडलं, तर दारात शेजारचे कर्वे काका हातात रक्त चंदनाची भावली घेवून उभे ! मी काही विचारायच्या आत “ही रक्त चांदनाची भावली घे आणि दिवसातून पाच वेळा त्या नागिणीला उगाळून लाव, नाही दोन दिवसात फरक पडला तर नांव नाही सांगणार हा धन्वंतरी कर्वे !” असं बोलून आपल्या शेजारच्या घरात ते अदृश्य पण झाले! ते गेले, हे बघून मी सुटकेचा निश्वास टाकतोय न टाकतोय तर लेले काकू, हातात कसलासा कागदाचा चिटोरा घेवून दारात येवून हजर ! लेले काकूंनी तो कागद मला दिला आणि म्हणाल्या “या कागदावर किनई एका ठाण्याच्या वैद्याच नांव, पत्ता आणि फोन नंबर आहे, ते नागिणीवर जालीम औषधं देतात ! आधी फोन करून अपॉइंटमेंट घ्या बरं ! त्यांच्याकडे भरपूर गर्दी असते, पण लगेच गुण येतो त्यांच्या हाताचा ! आमच्या ह्यांना झाली होती कमरेवर नागीण, पण दोन दिवसात गायब बघा त्यांच्या औषधी विड्याने ! आणि हो काम झाल्यावर हा पत्त्याचा कागद आठवणीने परत द्या बरं का !” एवढं बोलून लेले काकू गुल पण झाल्या !
मी त्या कागदावरचा नांव पत्ता वाचत वाचत दार लावणार, तेवढ्यात ए विंग मधल्या चितळे काकूंनी एक कागदाची पुडी माझ्या हातावर ठेवली आणि “ही आमच्या ‘त्रिकालदर्शी बाबांच्या’ मठातली मंतरलेली उदी आहे ! ही लावा त्या नागिणीवर आणि चिंता सोडा बाबांवर! पण एक लक्षात ठेवा हं, ही उदी लावल्यावर दुसरा कुठलाच उपाय करायचा नाही तुमच्या नागिणीवर, नाहीतर या उदीचा काही म्हणजे काही उपयोग होणार नाही, समजलं ?” मी मानेनेच हो म्हटलं आणि आणखी कोणी यायच्या आत दार बंद करून टाकलं ! आणि मंडळी घरात जाऊन पहिलं काम काय केलं असेल, तर PC चालू करून त्यावर “Please do not disturb !” अस टाईप करून त्याची मोठ्या अक्षरात प्रिंटरवर प्रिंट आउट काढली आणि परत दार उघडून पटकन बाहेरच्या कडीला अडकवून दार लॉक करून, शांतपणे सोफ्यावर आडवा झालो !

© प्रमोद वामन वर्तक

१२-०८-२०२२

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 112 ☆ आग बबूला होना ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय व्यंग्य “आग बबूला होना”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 112 ☆

☆ आग बबूला होना ☆ 

आग और बबूल दोनों ही उपयोगी होने के साथ- साथ यदि असावधानी बरती तो घातक सिद्ध होते हैं। व्हाट्सएप समूहों में जोड़ने की परम्परा तो बढ़ती जा रही है। पहले स्वतः जोड़ना, फिर हट जाने पर  जोड़ने वाले द्वारा इनबॉक्स में ज्ञान मिलना ये सब आम बात होती है। बिना अनुमति के समूह से जोड़ने पर एक मैडम ने कहा मैं लिखती नहीं लिखवाती हूँ। तो एडमिन को भी गुस्सा आ गया। क्या लिखतीं हैं? मैंने तो कभी कुछ पढ़ा ही नहीं।

यही तो मैं भी कह रही हूँ कि मैं एक प्रतिष्ठित पत्रिका की सम्पादक हूँ मुझे तो केवल अच्छा पढ़ने की जरूरत है जिससे लोगों का आँकलन कर उनसे टीम वर्क करवाया जा सके। लिखने का कार्य तो सहयोगी करते हैं।

अब बातकर्म पर आ टिकी थी। इसके महत्व तो ज्ञानी विज्ञानी सभी बताते हैं  कोई ध्यान योग, कोई कर्म योग तो कोई भोग विलास के साधक बन जीवन जिये जा रहे हैं।

जो कर्मवान है उसकी उपयोगिता तभी तक है  जब उसका कार्य पसंद आ रहा है जैसे ही वो अनुपयोगी हुआ उसमें तरह-तरह के दोष नज़र आने लगते हैं।

बातों ही बातों में एक कर्मवान व्यक्ति की कहानी याद आ गयी जो सबसे कार्य लेने में बहुत चतुर था परन्तु किसी का भी  कार्य करना हो तो  बिना लिहाज   मना कर  देता  अब धीरे – धीरे सभी लोग दबी  जबान से उसका विरोध करने लगे, जो स्वामिभक्त लोग थे वे भी उसके अवसरवादी प्रवृत्ति से नाख़ुश रहते ।

एक दिन बड़े जोरों की बरसात हुई  कर्मयोगी का सब कुछ बाढ़ की चपेट में बर्बाद हो गया। अब वो जहाँ भी जाता उसे ज्ञानी ही मिल रहे थे, लोग सच ही कहते हैं जब वक्त बदलता है तो सबसे पहले वही बदलते हैं जिन पर सबसे ज्यादा विश्वास हो। किसी ने उसकी मदद नहीं कि वो वहीं उदास होकर अपने द्वारा किये आज तक के कार्यों को याद करने लगा कि किस तरह वो भी ऐसा ही करता था, इतनी चालाकी और सफाई से कि किसी को कानों कान खबर भी न होती।

पर कहते हैं न कि जब ऊपर वाले कि लाठी पड़ती है तो आवाज़ नहीं होती।  दूध का दूध पानी का पानी अलग हो जाता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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