मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ लाडका बाप्पा… ☆ सौ. स्वाती रामचंद्र कोरे ☆

सौ. स्वाती रामचंद्र कोरे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ लाडका बाप्पा… ☆ सौ. स्वाती रामचंद्र कोरे ☆

चौदा विद्या ,चौसष्ट कलांचा अधिपती

सुखकर्ता विघ्नहर्ता ,तू बाप्पा गणपती

 स्वागतास दारी, तोरणे सजती

अंगणी सुरेख रांगोळी रेखिती..||१||

 

घरोघरी सुरू होई लगबग

मखरात विराजमान मूर्ती

निरागस ,गोंडस साजिरे रूप

मनोभावे भक्तगण पूजा करती..||२||

 

गणापाठोपाठ येई गौराई, मने हर्षती

दारी येताच, भाकर तुकडा ओवाळती

घरी दारी नानापरीने आरास करती

एकवीस मोदकांचा नैवेद्य अर्पिती..||३||

 

बाप्पा मोरयाच्या गजरात होते आरती

भक्तीभावे सारे तुजला पुजती

गजानन , हेरंब, विनायक नावे तुला किती

परि तू आमचा लाडका,बाप्पा गणपती

 

बाप्पा माझा मार्गदर्शक ,दिशादर्शक

त्रिखंडात निनादते, नित्य तव कीर्ती

मनमोहक ,निरागस ,गोड गोंडस तुझी मूर्ती

अवघ्या विश्वाचा तू मंगल मूर्ती….||५||

©  सौ. स्वाती रामचंद्र कोरे

भिवघाट.तालुका, खानापूर,जिल्हा सांगली

मो.9096818972

 

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #154 ☆ एक अश्वत्थामा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 154 ?

☆ एक अश्वत्थामा…

मी नव्हतोच कधी अश्वत्थामा

तू मला त्याच्या ओळीत बसवून

भळभळणारी जखम दिलीस

अश्वत्थाम्याच्या जखमेसारखी

अश्वत्थामा अपराधी होता

अश्वत्थाम्याच्या हातून अधर्म घडला

द्रौपदीचे पाच निद्रीस्त पुत्र त्याने मारले

आणि याच पापाने त्याला घेरले

कृष्ण म्हणतो

ह्या कृत्यासाठी त्याला

मृत्युदंडच झाला पाहिजे

पण ब्राह्मण हत्या पाप आहे

आणि अपराध्याला मोकळं सोडणं

हे देखील पापच आहे

म्हणूनच अर्जुनानं

अश्वत्थाम्याला ठार केले नाही

तर त्याच्या कपाळावरचा मणी

आपल्या शस्त्राने काढून

त्या जागी

कायमची जखम दिली…

 

पण माझं काय ?

मी तर कुठलाच अपराध केला नाही

मग कशासाठी भोगतोय मी ही शिक्षा…

तू हुशार निघालीस

अर्जुनासारखा

कपाळावर वार केला नाहीस

तर तू केलास काळजावर

कुणालाच दिसणार नाही असा

अगदी मला देखील

पण जाणवते मला ती जखम

ऐन तारुण्यात वार करून

तू जन्माला घातलास

एक नवा अश्वत्थामा

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग 6 ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे

? विविधा ?

☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग – 6 ☆ सौ. अमृता देशपांडे  

देशाचे रक्षण करताना शहीद झालेल्या 26 वर्षाच्या तरुण मुलाचे पार्थिव घेऊन जेव्हा त्याचेच सहकारी तिरंग्यात लपेटून त्याला घरी आणतात, तेव्हा आईवडील, बहीण भाऊ,  आप्तमित्र या सर्वांच्या डोळ्यातलं पाणी… इथेतर शब्दच मुके होतात.  संवेदना स्तब्ध होतात.आईच्या कुशीतून जन्म घेऊन मातृभूमी ची सेवा करताना भूमातेच्या मांडीवर विसावलेला तो वीर! प्रत्येकाच्या डोळ्यातलं पाणी त्या मातापित्याच्या त्यागाला,  धारातीर्थी पडलेल्या शूराला अश्रू वंदना देत असतं. भारतमातेने आपला तिरंगी पदर आपल्या सुपुत्राला पांघरलेला असतो. मानवंदना देणारे ते अश्रू ही स्वतःला कृतार्थ मानत असतात.

शहीद जवानांची बातमी कानावर पडताच थेट काळजाला भिडते. दुःखाला अभिमानाची किनार असलेली ही भावना इतर सर्व भावनांपेक्षा श्रेष्ठ आहे. देशभक्ती चा कठोर वसा घेतलेल्या आणि ‘ तुजसाठी मरण ते जनन, तुजवीण जनन ते मरण’ या ध्यासाने सीमेवर रक्षण करणारा जवान जेव्हां धारातिर्थी पडतो तेव्हा अश्रू रूपानी ‘ भारतीय नागरिकाचा घास रोज अडतो ओठी,  सैनिक हो तुमच्या साठी’ हा संदेश सर्व सैनिकांना पोचवत असतो. तेच त्यांच्या लढण्याचं बळ असतं..

(क्रमशः… प्रत्येक मंगळवारी)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 104 – मैं दीपक था… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके मैं दीपक था…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 104  – मैं दीपक था✍

मैं दीपक था किंतु जलाया

चिंगारी की  तरह    मुझे

 इतना बहकाया है तुमने 

छल लगती है सुबह मुझे ।

 

तुमने समझा हृदय खिलौना 

खेल समझ कर छोड़ दिया 

कभी देवता सा    पूजा  तो 

कभी स्वप्न-सा तोड़ दिया ।

 

जन्म मृत्यु की आंख मिचौनी

 और ना   अब  मुझसे  खेलो 

बहुत बहुत पीड़ा तन मन की 

कुछ मैं ले लूं कुछ तुम   झेलो।

          0

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 106 – “कहाँ रहेगी क्या पहनेगी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –कहाँ रहेगी क्या पहनेगी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 106  ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कहाँ रहेगी क्या पहनेगी”|| ☆

कोस रही बादल को जो

बरसे बनकर बाधा

खडी बाढ़ में गले-गले

तक है डूबी राधा

 

बही, कुछ समय तक

बहाव में मीलों तैरे बिन

प्राण बचाते बीत गया

है उसका सारा दिन

 

थाम सकी है कैसे भी –

बहते,बबूल-डाली

काँटों को पकड़े जमीन

पर टिक पायी आधा

 

सबकुछ तो ले गया बहा

कर यह निर्दय-पानी

जीवन से भी ज्यादा

चिन्ता कल से है आनी

 

कहाँ रहेगी क्या पहनेगी

ओढ़ेगी वह क्या

विनती कर-कर देव –

पितर को उस ने है साधा

 

उधर प्रशासन,राहत न-

दे,पिकनिक में मशगूल

शैम्पेन में मस्त , यहाँ-

राधा है और बबूल

 

नाच रही है सम्पतिया

सब की आँखों में झूल

गाती रही मन्द्र- सप्तक

में  रे गा मा पा धा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

31-08-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 153 ☆ “बारिश तुम कब जाओगी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक मजेदार व्यंग्य  – “बारिश तुम कब जाओगी”)  

☆ व्यंग्य # 153 ☆ “बारिश तुम कब जाओगी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

(इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे व्यंग्यकार के सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें।)

Preview imageराजा के देश में पानी नहीं गिर रहा था, गर्मी से हलाकान महिलाओं ने इन्द्र महराज को खुश करने कपड़े उतार कर फेंक दिए, राजा की मर्जी से चारों तरफ टोटके होने लगे, शिव शक्ति मंडल ने एक मंदिर में मेंढक मेंढकी का विवाह धूमधाम से करा दिया, खर्चा हुआ दस बारह लाख। विपक्षियों ने मांग उठाई, विवाह के खर्च में जीएसटी की चोरी की गई है। एक दूसरी पार्टी वाले का कहना था कि शायद राजा ने लगता है कि स्कूलों में नर्सरी और के. जी. के कोर्स  से नर्सरी राइम्स में से “रेन रेन गो अवे ” को हटा दिया होगा, तभी बारिश रूठ गई है। कुछ कहने लगे जब राजा को हटाया जाएगा तब बादल खुश होंगे।

हर जगह नये नये टोटकों की बाढ़ आ गई।इन्द्र महराज के दरबार में किसी ने शिकायत कर दी कि नीचे वालों ने एक मेंढक के साथ अत्याचार और अन्याय किया है उसकी इच्छा के विरुद्ध एक मंदिर में मेंढकी से विवाह कर दिया है।इन्द्र महराज ने नीचे झांककर देखा एक गांव में सैकड़ों औरतें उमस और गर्मी से परेशान हैं और बूंद बूंद को तरस रहीं हैं,  पसीने से तरबतर महिलाएं धीरे-धीरे अपने वस्त्रों को शरीर से अलग कर रहीं हैं शरीर के पूरे कपड़े उतार कर नाचते और  लोकगीत गाते हुए किसी देवता को रिझाने के लिए पूजा पाठ कर रहीं हैं …बरसात के देवता ने झांक कर देखा और तत्काल दूत को आदेश दिया कि बंगाल की खाड़ी के इंचार्ज साहब से बोलो कि हमने आर्डर दिया है कि बंगाल की खाड़ी से बादलों की एक खेप इस गांव की ओर तुंरत रवाना करें …

आदेश का पालन इतना तेज हुआ कि भूखे बादलों को तेज हवा ने ढकेल दिया , बादल भूखे थे,बादलों की माँ समुद्र में रोटी सेंक रही थी उनकी भी परवाह नहीं की ,डर के मारे बादल चलते चलते जैसई रास्ते में ऊंचे पहाड़ मिले ,भूखे मेघ चरने लगे ,तभी पीछे से तेज हवा ने हंटर चलाना चालू किया, गुस्से में आकर इतना बरसे कि रिकार्ड तोड़ दिया, हाहाकार मच गया, करोड़ों रुपए के बांध टूटने की कगार में पहुंच गए, शहर और गांव डूब गए,पुल टूट गये, सड़कें धंस गई,विपक्ष ने कहा हर जगह भ्रष्टाचार हुआ है।

राजा के भक्तों ने आरोपों का खंडन करते हुए विपक्ष पर नये आरोप गढ़ दिये, मीडिया को दंगल कराके पैसा कमाने का अच्छा मौका मिल गया, विपक्ष पर आरोप लगाया गया कि आने वाले चुनावों को देखते हुए इन लोगों ने पैसा खिलाकर इंद्र महराज से सारी बारिश इसी क्षेत्र में कराने का षड़यंत्र रचा,इसलिए इस बार जनता को तकलीफ उठानी पड़ रही है।विवाद बढ़ते देख हाईकमान ने खरीदी मंत्री को जांच करने भेजा,जांच से पता चला कि जुलाई महीने में एक मंदिर में मेंढक मेंढकी का जबरदस्ती विवाह कराया गया था जिसकी शिकायत किसी ने बरसात के देवता को कर दी थी और राजा के इशारे पर रोज तरह तरह के टोटके होने लगे थे। खरीदी मंत्री ने तुरंत अरकाटियों और पंडितों को बुलाया,सलाह मशविरा किया और तय किया गया कि जुलाई में धूमधाम से सम्पन्न हुये मेंढक मेंढकी का तलाक करा दिया जाए, और राजा के दरबार में यज्ञ के दौरान ‘बारिश तुम कब जाओगी’ के सवा लाख मंत्रों का जाप कराया जाए।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆ # पुरुषार्थ… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पुरुषार्थ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆

☆ # पुरुषार्थ… # ☆ 

यह फूलों से भरी वाटिका

कितनी नयनाभिराम है

महक रही खुशबू से

प्रसन्न हर खास और आम है

 

रंगबिरंगे खिले खिले फूल

आंखों को को भा रहे हैं

भ्रमर भी मस्ती में

झूमते जा रहे हैं 

 

मौसम खुशगवार है

कली कली मे प्यार है

प्रीत है बिखरी हुई

बहार ही बहार है

 

हर किस्म के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

हर रंग के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

भिन्न भिन्न प्रजातियां हैं

हर सुगंध के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

 

पर अब यह कैसी

हवा चल रही है

हम सबसे

कुछ कह रही है

 

क्यों मसलें जा रहे हैं फूल ?

क्यों मसली जा रही है

हर अधखिली फूल या कली ?

 

हर कली फरियाद कर रही है

अनजाने भय से डर रही है

न्याय सलाखों के पीछे

छुप गया है

हर आवाज बिन सुने

मर रही है

 

यह सब अनर्थ है

मानवीय मूल्य व्यर्थ है

सम्मान कर पूजा

जा रहा है जिन्हें

क्या उनका यही

पुरूषार्थ है ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 96 ☆ अष्ट-अक्षर… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 96  ? 

☆ अष्ट-अक्षर… ☆

कृष्णा केशवा माधवा,

आलो शरण रे तुला

नको अंत पाहू देवा

घोर लागला जीवाला…०१

 

तूच आहे मनोहरा

माझा सदैव कैवारी

नको मला काही दुजे

बहू त्रासलो संसारी…०२

 

किती जन्म वाया गेले

माझे मला न कळले

गणित अवघड पहा

नाही कधीच सुटले…०३

 

चालू जन्म माझा कृष्णा

तुझ्या लेखी तो लागावा

राज जीवनातले कठीण

पाव मोहना, समयाला…०४

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग ३३ – परिव्राजक ११. निश्चय ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग ३३ – परिव्राजक ११. निश्चय ☆ डाॅ. नयना कासखेडीकर

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

एक ऐतिहासिक आणि सौंदर्यपूर्ण नगररचना असलेल्या जयपूर शहरात स्वामीजी खूप कमी काळ राहिले. जयपूर मध्ये एक सभापंडित व्याकरणाचे जाणकार होते. त्यांनी पंडितांकडून पाणीनीच्या व्याकरणातील सूत्रे समजावून घेण्याचा प्रयत्न केला. पंडितजींनी अनेक प्रकारे समजावून सांगून ही तीन दिवसाच्या प्रयत्नांनंतर सुद्धा स्वामीजी आकलन करू शकले नाहीत. पंडितजी त्यांना म्हणाले, “स्वामीजी माझ्याजवळ शिकल्याने आपला विशेष फायदा होईल असे वाटत नाही. तीन दिवस झाले, मी तुम्हाला एक सूत्रही समजावून देऊ शकलो  नाही. आपण हा प्रयत्न थांबवावा. या बोलण्याने स्वामीजी या सुत्राचा अर्थ समजण्यासाठी, निश्चय करून एकांतात तीन तास बैठक मारून बसले आणि सूत्राचा अर्थ लक्षात आल्यावर खोली बाहेर येऊन, तो पंडितजींना सुबोध शैलीत म्हणून दाखवला. एव्हढंच नाही तर सूत्रा मागून सूत्र आणि अध्याया मागून अध्याय त्याच पद्धतीने ते वाचत राहिले. पंडितजी आश्चर्यचकीत झाले. एकदा ही आठवण सांगताना स्वामीजींनी म्हटले आहे, “मनाचा पूर्ण निर्धार असेल तर, काहीही साध्य करणं शक्य असतं. एखादा पर्वत असावा आणि त्यातील मातीचा कण अन कण वेगळा करावा अशा प्रकारे मनुष्य कोणताही कठीण विषय आत्मसात करू शकतो”. अशा प्रकारे दोन आठवड्यात शक्य तेव्हढे त्यांनी पंडितजिंकडून शंका निरसन करून घेतले होते. या आधी पण वराहनगर मठात त्यांनी दोन वर्ष पाणिनी च्या व्याकरणाचा अभ्यास केला होता.

जयपूर संस्थानचे लश्कर प्रमुख सरदार हरिसिंग यांच्याकडे काही दिवस स्वामीजी राहिले होते. त्यांच्या प्रवसातला हा अनुभव अत्यंत वेगळा होता. हरिसिंग यांचा भारतीय तत्वज्ञानाचा खूप चांगला अभ्यास होता. ते वेदांती होते, परब्रम्ह मनात असत. मूर्तिपूजेवर त्यांचा विश्वास नव्हता. ते साकाराचे पक्के  विरोधक आणि निराकाराचे कट्टर समर्थक होते. त्यांच्या बरोबर तासन तास अनेक चर्चा होत होत्या. सगळे ज्ञान काही फक्त बुद्धीच्या जोरावरच मिळत नसते, काही वेळा ते भावनिक पातळीवर सुद्धा मिळते. कारण ते जाणिवेच्या पातळीवरचे असते. असाच अनुभव स्वामीजींनी हरिसिंग यांना दिला.

एका संध्याकाळी ते दोघ फिरायला बाहेर पडले होते. त्याच रस्त्यावर समोरून भगवान श्रीकृष्णाची मिरवणूक चालली होती. यात भक्त आर्त स्वरात आणि भावभक्तीने भजने म्हणत होती. दोघेही ती मिरवणूक पाहत थांबले असताना, स्वामीजींनी हरिसिंगना स्पर्श केला आणि म्हटले, “तो पहा साक्षात भगवंत आहे”. हरिसिंग देहभान हरपून एकटक बघू लागले. डोळ्यातून अश्रुंच्या धारा लागल्या. क्षणात ते एका वेगळ्याच विश्वात गेले. हरिसिंग यांनी हा अनुभव घेतल्या नंतर स्वामीजींना म्हणाले स्वामीजी माला साक्षात्कारच झाला. तासण तास चर्चा करून मला जे उमगलं नव्हतं, ते सारं मला आपल्या या स्पर्शाने ध्यानात आणून दिलं. श्रीकृष्णाच्या त्या मूर्तीत मला खरोखर जगच्चालक प्रभुंचं दर्शन घडलं”. असाच अनुभव स्वामीजींनी दक्षिणेश्वरच्या मंदिरात कालिमातेचं दर्शन घेताना घेतला होता. साकारावर विश्वास न ठेवणार्‍या स्वामीजींना हा अनुभव आला होता.

आता स्वामीजी जयपूरहून अजमेरला गेले. राजस्थान मधलं एक महत्वाचं ठिकाण. संपूर्ण भारतात एकमेव असं ब्रम्हदेवाचं मंदिर इथे आहे. त्याचं दर्शन आणि मोईनूद्दीन चिस्ती या दर्ग्याचं दर्शन घेऊन तिथला मुक्काम हलवला आणि राजस्थानच्या वळवंटातल्या साडेपाच हजार फुट उंचीच्या अबुच्या पहाडावर आले. त्यावेळी हा परिसर अतिशय शांत, उन्हाळ्यात तर हवा थंड आणि आल्हाददायक आणि अनेक संस्थांनिकांची प्रासादतुल्य  निवासस्थाने होती. ब्रिटिश रेसिडेंटचा मुक्काम यावेळी इथे असे. त्यामुळे ते ऐश्वर्याचं लेणं भासत असे. पण याचा स्वामीजींना काही फरक नव्हता पडणार कारण त्यांना यात काहीच रस नव्हता. त्यांना हवी होती शांतता आणि एकांत स्थान. त्यांना आकर्षण होतं अशा ठिकाणी ध्यानधारणा करण्याचं. चम्पा ही गुहा त्यांना सापडली आणि त्यात ते राहू लागले.

रोज संध्याकाळच्या शांत प्रहरी स्वामीजी तलावाच्या काठाने चक्कर मारत. इतर संस्थांचे कोणी न कोणी तिथे येत जात असत. एकदा खेत्री संस्थानचे मुन्शी जगनमोहन लाल आले. ते उत्तम कार्यप्रशासक होते. त्यांना राजस्थानी, पर्शियन, संस्कृत, इंग्रजी या भाषा उत्तम येत होत्या. त्यांनी आपले खेत्रीचे राजा अजितसिंग यांना स्वामीजींनी भेटावे अशी इच्छा व्यक्त केली. त्यांची भेट ठरली.

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 27 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 27 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

७.

5     वाचताना वेचलेले:

भावार्थ गीतांजली…. प्रेमा माधव कुलकर्णी

गीतांजली भावार्थ

 

४१.

तुझे अस्तित्व नाकारून ते तुला धुडकावतात,

धूळभरल्या पथावरून तुझ्या बाजूने जातात,

पूजासाहित्य पसरून

मी किती वेळ तुझी वाट पाहतोय.

येणारा – जाणारा माझी फुलं घेऊन जातो.

माझी फुलांची दुरडी बहुधा रिकामी झाली.

 

सकाळ गेली, दुपार गेली,

सायंसमयी झोपेनं माझे डोळे

आता जड होऊ लागलेत.

घराकडे परतणारे माझ्याकडे दृष्टिक्षेप टाकतात,

मला हसतात. मी शरमते.

माझा पदर चेहऱ्यावर ओढून मी भिकारणीप्रमाणं बसते.

ते मला प्रश्न विचारतात,

“काय पाहिजे?”

तेव्हा मी नजर वळते.

त्यांना काय सांगू?

 

माझ्या सख्या,या सर्वांमागे सावलीत

तू कुठे आहेस?

त्यांना काय सांगू? ‘येणार’ असं मला आश्वासन दिलंस आणि मी तुझी वाट पाहतेय.

हुंड्यासाठी हे दारिद्र्य मी जपलंय असं कसं सांगू?

ते मनातच मी ठेवलंय, बंदिस्त केलंय.

 

या गवतावर बसून आकाशाकडे

टक लावून पाहत राहते.

सर्वत्र प्रकाश भरून राहिलाय.

तुझ्या रथावर सोनेरी पताका फडफडताहेत.

आ वासून रस्त्याच्या कडेला थांबून

ते सगळेजण पाहताहेत. . . .

आणि तू येत आहेस.

 

तू रथातून उतरून येशील. वासंतिक वाऱ्यानं

थरथरणाऱ्या पाण्याप्रमाणं फाटक्या कपड्यातील ही भिकारी मुलगी धुळीतून उचलून तुझ्या शेजारी

बसवून घेशील.

 हे ते अवाक होऊन पहात राहतील.

 

वेळ सरकत राहतो, पण तुझ्या रथाच्या चाकांचा आवाज नाही!

विजयाच्या घोषणा देत,

गोंगाट करीत किती मिरवणुका गेल्या.

या सर्वांच्या मागे तूच होतास का?

 

निरर्थक इच्छा करीत उरस्फोट करीत,

तुझ्या वाटेकडे डोळे लावून बसलेली ती मीच का?

 

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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