ज्योतिष साहित्य ☆ सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? आज प्रस्तुत है सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस। 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

1 सितंबर : ऋषि पंचमी, गुरु ग्रंथ साहिब प्रकाश दिवस…

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) मनाया जाता है।

2 सितंबर : संतान सातें, मोरबाई छठ, मुक्ताभरण सप्तमी…

हर साल 2 सितंबर को विश्व नारियल दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व नारियल दिवस 2021 का विषय “कोविड -19 महामारी और परे के बीच एक सुरक्षित समावेशी लचीला और सतत नारियल समुदाय का निर्माण” है। यह दुनिया में खाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है।

3 सितंबर : महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ, दुर्गष्टमी, राधा अष्टमी… 

3 सितंबर को गगनचुंबी इमारतों के पहले मास्टर वास्तुकार, लुई सुलिवन को “आधुनिक गगनचुंबी इमारतों के पिता” के रूप में जाना जाता है, जो 3 सितंबर 1856 को बोस्टन में पैदा हुए थे, की स्मृति में स्काईस्क्रेपर दिवस के लिए चुना गया था।

4 सितंबर : द‍धीचि जयंती, श्रीचंद्र नवमी.

5 सितंबर : तेजा दशमी

हर साल ज्ञान के गुरु जो की पुरे देश-विदेश में 5 सितंबर को हम सभी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं, अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस का कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, यूनिसेफ और एजुकेशन इंटरनेशनल मिलकर करते हैं. भारत में, देश के पूर्व राष्ट्रपति, विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को चिह्नित करने के लिए 1962 से 5 सितंबर को प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है, जिनका जन्म 1888 में इसी दिन हुआ था।

6 सितंबर : डोल ग्यारस, जलझूलन एकादशी, परिवर्तनी एकादशी, विश्वकर्मा पूजा

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। और इस दिन भगवान विष्णु जी एवं माता पार्वती की पूजा करने से सदैव कृपा बनी रहती हैं..

7 सितंबर : श्रवण द्वादशी, वामन द्वादशी.

8 सितंबर : शुक्ल पक्ष का प्रदोष, ओणम…

वर्ष 1967 से, अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) समारोह दुनिया भर में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है ताकि जनता को सम्मान और मानवाधिकारों के रूप में साक्षरता के महत्व की याद दिलाई जा सके और साक्षरता के एजेंडे को अधिक साक्षर और टिकाऊ समाज की ओर आगे बढ़ाया जा सके। इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस “ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेसेस “ थीम के तहत दुनिया भर में मनाया जाएगा और यह लचीलापन बनाने और सभी के लिए गुणवत्ता, न्यायसंगत और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए साक्षरता सीखने के स्थान के मौलिक महत्व पर पुनर्विचार करने का अवसर होगा।

विश्व भौतिक चिकित्सा दिवस हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर के फिजियोथेरेपिस्टों के लिए लोगों को अच्छी तरह से, मोबाइल और स्वतंत्र रखने के लिए महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर है।

9 सितंबर : अनंत चतुर्दशी, गणेश मूर्ति विसर्जन.

10 सितंबर : भाद्र पूर्णिमा, गुर्जर रोट पूजन

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (डब्ल्यूएसपीडी) 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्याओं को रोकने के लिए दुनिया भर में प्रतिबद्धता और कार्रवाई प्रदान करने के लिए हर साल 10 सितंबर को मनाया जाने वाला एक जागरूकता दिवस है। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2021 से 2023 तक का विषय “कार्रवाई के माध्यम से आशा ”।

11 सितंबर : पितृपक्ष यानी 16 दिनों का श्राद्ध का पर्व प्रारंभ हो जाएगा…

राष्ट्रीय वन शहीद दिवस 11 सितंबर को मनाया जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह दिन उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने पूरे भारत में जंगलों, जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

13 सितंबर : अंगारकी चतुर्थी, संकष्टी गणेश चतुर्थी.

14 सितंबर : भरणी श्रद्धा, राजभाषा दिवस.

15 सितंबर : भारत के बेहतरीन इंजीनियरों में से एक, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में हर साल 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। एम विश्वेश्वरैया को सबसे अग्रणी राष्ट्र-निर्माताओं में से एक माना जाता है, जिन्होंने ऐसे चमत्कार किए, जिन पर आधुनिक भारत का निर्माण हुआ था।

16 सितंबर : ओजोन परत के क्षरण के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने और इसे संरक्षित करने के संभावित समाधान खोजने के लिए हर साल 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है। ओजोन परत सूर्य की यूवी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है।

17 सितंबर : विश्वकर्मा जयंती, रोहिणी व्रत, सूर्य कन्या संक्रांति, कालाष्टमी, श्रीमहालक्ष्मी व्रत समाप्त

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए सभी देशों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों द्वारा वैश्विक एकजुटता और ठोस कार्रवाई का आह्वान करता है।

18 सितंबर : मध्य अष्टमी, जिऊतिया व्रत.

19 सितंबर : अविधवा नवमी, मातृ नवमी.

20 सितंबर : गुरु नानकदेव पुण्यतिथि.

21 सितंबर : इंदिरा एकादशी, एकादशी श्राद्ध

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, जिसे आधिकारिक तौर पर विश्व शांति दिवस के रूप में भी जाना जाता है,। यह एक संयुक्त राष्ट्र-स्वीकृत दिवस है जिसे प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे 24 घंटे अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन के रूप में घोषित किया है।

22 सितंबर : संन्यासी श्राद्ध

22 सितंबर को मनाया जाने वाला विश्व गुलाब दिवस दुनिया भर के कैंसर रोगियों के लिए आशा की किरण है, जो बड़े ‘सी’ का सामना कर रहे हैं। ‘ जो लोग कैंसर से लड़ना चुनते हैं उनके लिए एक कठिन और लंबा संघर्ष इंतजार कर रहा है। यह दिन कनाडा की 12 वर्षीय मेलिंडा रोज की याद में मनाया जाता है, जिन्हें रक्त कैंसर का एक दुर्लभ रूप, एस्किन ट्यूमर का पता चला था।

23 सितंबर : प्रदोष व्रत, माघ श्रद्धा.

24 सितंबर : मास शिवरात्रि, प्राणनाथ प्रकटन महोत्सव.

25 सितंबर : अमावस्या, महालय श्राद्घ पक्ष पूर्ण, पंडित दिनदयाल उपाध्याय जयंती.

26 सितंबर : अग्रसेन जयंती, शरद ऋतू, नवरात्री प्रारंभ, सोमवार व्रत, घट स्थापना.

27 सितंबर : सिंधारा दूज

विश्व पर्यटन दिवस 1980 से प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को आयोजित किया जाता है। “पर्यटन पर पुनर्विचार” की थीम के साथ, इस वर्ष पालन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस आकार और प्रासंगिकता दोनों के संदर्भ में क्षेत्र के विकास की फिर से कल्पना करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

28 सितंबर : विश्व रेबीज दिवस 28 सितंबर को मनाया जाता है। रेबीज के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया भर में रोकथाम और नियंत्रण के प्रयासों को बढ़ाने के लिए भागीदारों को एक साथ लाने के लिए 2007 में एक वैश्विक स्वास्थ्य पालन शुरू किया गया था। 28 सितंबर लुई पाश्चर की मृत्यु की सालगिरह भी है, फ्रांसीसी रसायनज्ञ और सूक्ष्म जीवविज्ञानी, जिन्होंने पहली रेबीज टीका विकसित की थी।

29 सितंबर : वरद चतुर्थी, विनायक चतुर्थी व्रत

विश्व हृदय दिवस हर साल 29 सितंबर को मनाया जाता है। हृदय रोगों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। विश्व हृदय दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को यह सूचित करना है कि हृदय रोग दुनिया में मृत्यु का प्रमुख कारण है और रोकथाम और नियंत्रण के लिए किए जाने वाले कार्यों को उजागर करना है।

30 सितंबर : उपांग ललिता व्रत, ललित पंचमी

अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस हर साल 30 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन भाषा पेशेवरों के काम को श्रद्धांजलि देने का अवसर प्रदान करता है। यह राष्ट्रों को एक साथ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विश्व शांति और सुरक्षा को मजबूत करता है।

आपकी सुविधा के लिए माह सितंबर 2022 के व्रत त्यौहार तथा दिवस बताए गए हैं । आशा है आप इनसे लाभ उठाएंगे ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 

जय मां शारदा।

 निवेदक:-

पण्डित अनिल कुमार पाण्डेय

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता

प्रश्न कुंडली  और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ

साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया

 सागर। 470004

 मो 7566503333 /8959594400

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 118 – बाळ गीत – गुणवत्तेचा ध्यास ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 118  – बाळ गीत – गुणवत्तेचा ध्यास 

गुणवत्तेचा ध्यास लागला

गुरुजींच्या राग पळाला ।

गुरुजी आले खेळायला

आलीय रंगत शिकण्याला ।।धृ।।

 

गोष्टी गाणी धमाल सारी

तालात नाचती पोरं  पोरी ।

बदलून गेली शाळा सारी

गुरुजीही लागले नाचायला ।

हो आलीय रंगत …  ।।१।।

 

साहित्याची जत्रा भरली

सारीच मुले खेळत रंगली।

खेळातून ही अक्षरे जुळली

मजाच येते ही शिकामाला

हो आलीय रंगत … ।।२।।

 

चढवू मुखवटे खोटे खोटे

बनुया सैनिक छोटे-छोटे ।

अभिनयातून गोष्टही पटे

खोटी तलवारी खेळायाला

हो आलीय रंगत … ।।३।।

 

अंका ऐवजी दाखवू बोटे

कृती करूनी अंकही पटे।

झटक्यात करू दशक सुटे।

टाळ्या नी वाजवायला ।

गणिती भाषा शिकण्याला … ।।४।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “पाचा ऊत्तरी सफल  संपूर्ण” – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆“पाचा ऊत्तरी सफल  संपूर्ण” – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆ 

पुस्तकाचे नाव: पाचा ऊत्तरी सफल  संपूर्ण

लेखिका:उज्ज्वला केळकर 

प्रकाशक:अरिहंत पब्लीकेशन

प्रथम आवृत्ती: १२जानेवारी २०२०

पृष्ठे:१९१

किंमत: रु २९०/—

पाचा उत्तरी सफल संपूर्ण..

उज्ज्वला केळकर यांचं पुस्तक हाती पडलं की ते कधी वाचते असेच होऊन जाते. पाचा ऊत्तरी सफल संपूर्ण हा कथासंग्रह वाचला आणि त्यावर भाष्यही करावेसे वाटले म्हणूनच हा लेखन  प्रपंच!!

या कथा संग्रहात एकूण १४कथा आहेत. विविध विषय त्यांनी या कथांतून हाताळले आहेत. काही हलक्या फुलक्या विनोदी कथाही यात आहेत. हसवता हसवता त्याही विचार करायला लावतात. सामान्य माणसाचे मन, विचार, जीवन याभोवती गुंफलेल्या या कथा खूप जवळच्या वाटतात.

त्यापैकी काही कथांविषयी… 

१. पाचा उत्तरी सफल संपूर्ण.. ही संपूर्ण कथा फ्लॅश बॅक मधे आहे. माई या या कथेच्या नायिका आहेत. मुले, सुना नातवंडं असा सुखाने एकत्र नांदणारा त्यांचा परिवार आहे. एक सुखवस्तु, कष्टकरी सधन सुखी परिवार. माईंना नुकताच, त्यांच्या समाजसेवेची दखल घेणारा प्रेरणा हा पुरस्कार मिळाला आहे. आणि त्या निमीत्ताने त्या गतकाळात, आठवणीत रमत त्यांच्या घटनात्मक आयुष्याचा आढावा घेत ही कहाणी उलगडत जाते.

बालपण, विवाह, सांसारिक जबाबदार्‍या, मुले, शिक्षणं, व्यावसायिक प्रगती अशा साचेबंद आयुष्यात घडणार्‍या अपघात, पतीनिधन, फसवणुकीसारख्या नकारात्मक घटनांचंही निवेदन आहे. आणि या सर्व पार्श्वभूभीवरचे माईंचे कणखर, सकारात्मक, प्रभावी व्यक्तीमत्व .. आणि त्याची ही बांधेसूद, सूत्रबद्ध कथा. सुख आले दारी हे सांगणारी साठा उत्तराची,पाचा उत्तरी सफल संपूर्ण झालेली कहाणी,वाचकाला आनंदच देते…

२.  जन्म पुनर्जन्म..  मरणाला भोज्जा करताना होणारी मानसिक अंदोलने ,उज्ज्वलाताईंनी या कथेत अनुभवायला लावली. जन्म आणि मरण यातले अंतर, त्यांचं नैसर्गिक नातं, ती भोगणारी व्यक्ती आणि भवताल याचं  संतुलन, अत्यंत प्रभावीपणे कथीत केलं आहे. पुनर्जन्माची एक वेगळी वास्तव कल्पना आहे ही. बाळंतपण म्हणजे बाईचा पुनर्जन्मच.. त्याविषयीची ही वेगळीच कथा.

३. तृप्त मी कृतार्थ मी.. शून्यातून विश्व निर्माण करणार्‍या पती पत्नींची ही कथा सुखद आहे.बाल कीर्तनकाराच्या रुपात नातु आपल्या आजी आजोबांची जीवनकथा त्यांच्या वाढदिवसाच्या निमीत्ताने कथन करतो.हा या कथेचा साचा. त्यातून सरकत जाणारी कथा वाचकाला गुंतून ठेवते. कथेचा विषय निराळा नसला तरी  मनाला सकारात्मक उर्जा देते..

४. मधु.. कथा तशी लहान पण सकारात्मक. नशीबाचे अनंत फेरे सोसल्यानंतर अखेर चांगले दिवस येतात. मधुचा झालेला कायापालट या कथेत लेखिकेने सुरेख पद्धतीने मांडला आहे.

५. कृष्णस्पर्श.. अतिशय सुंदर कथा. माई— कुसुम यांची ही कथा. कीर्तन हा माईंच्या एकाकी जीवनाचा आधार. अचानक कुसुमसारखी कुरुप वेंधळी बावळट, शून्य आत्मविश्वास असलेली व्यक्ती त्यांच्या नि:संग जीवनात येते. दिव्यत्वाचा साक्षात्कार देणारा सूर मात्र कुसुमच्या गळ्यात असतो. माईंना ती कीर्तनात ती साथ देउ लागते. आणि एक दिवस कृष्ण कुब्जेच्या कथेचं निरुपण करत असताना ही कुरुप कुस्मी संगीताचा स्वर्गीय, दिव्यभक्तीचा असा काही अविष्कार दाखवते की स्वत: माईंनाही कृष्णस्पर्शच झाल्याचे जाणवते. आणि त्या दिवसापासून माईंचे आणि तिचे नातेच बदलते. अतिशय सुरेख, तल्लीन करणारी भावस्पर्शी कथा.

६. हसीना.. काहीशी मनोविश्लेषणात्मक, मनाला चटका लावणारी कथा. हसीना नावाच्या एका रुपवान तरुण मुलीची ही कथा. तिचे बालपण, तिच्या आयुष्यात येणारे पुरुष आणि त्यांच्याभोवती गुंतलेलं तिचं भावविश्व हे वाचकाच्या  मनाला कधी सुखावतं. कधी टोचतं.  हसीनाच्या मनातील अंदोलने लेखिकेने चपखल टिपली आहेत.

७.  सुखं आली दारी.. ही कथा वाचल्यानंतर पटकन् मनात येतं असंही होऊ शकतं. ही कथा मनाला आनंद देते. शिवाय या कथेत जसे योगायोग आहेत तसा एक छुपा संदेशही आहे.

जीवन प्रत्येक टप्प्यावर बदलत असते. सुखी होण्याचे अनेक पर्यायही असतात. अशा पर्यायांचा विचार केला,स्वीकार केला तर आयुष्यातल्या, उणीवा, खड्डे भरुन काढता येतात. विकतचं शहाणपण, स्वर्गलोकात ईलेक्शन, एक (अ)विस्मरणीय प्रकाशन समारंभ या तीनही विनोदी कथा आहेत. थोडी विसंगती, कल्पकता, विडंबन, काहीशी  अवास्तविकता या तीनही कथातल्या वेगवेगळ्या घटनांमधून वाचताना हंसु तर येतेच पण सामान्य माणसाच्या आयुष्यात अनुभवायला येणार्‍या दुनियादारीने धक्केही बसतात.

अशा वेगवेगळ्या रस, रंग भावांच्या या कथा. सुंदर लेखन. हलक्या फुलक्या पण विचार देणार्‍या. सर्वच कथा वाचनीय आहेत. त्यापैकी काही कथांचाच मी या लेखात आढावा घेतला.

सर्वांनी हा पाचा उत्तरी सफल संपूर्ण हा कथासंग्रह जरुर वाचावा आणि दर्जेदार साहित्याचा अनुभव घ्यावा.

उज्ज्वलाताईंचे मनापासून अभिनंदन आणि त्यांच्या साहित्य प्रवासासाठी खूप खूप शुभेच्छा!!

 

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #148 ☆ उम्मीद, कोशिश, प्रार्थना  ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख उम्मीद, कोशिश, प्रार्थना । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 148 ☆

☆ उम्मीद, कोशिश, प्रार्थना 

‘यदि आप इस प्रतीक्षा में रहे कि दूसरे लोग आकर आपको मदद देंगे, तो सदैव प्रतीक्षा करते रहोगे’ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का यह कथन स्वयं पर विश्वास करने की सीख देता है। यदि आप दूसरों से उम्मीद रखोगे, तो दु:खी होगे, क्योंकि ईश्वर भी उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। इसलिए विपत्ति के समय अपना सहारा ख़ुद बनें, क्योंकि यदि आप आत्मविश्वास खो बैठेंगे, तो निराशा रूपी अंधकूप में विलीन हो जाएंगे और अपनी मंज़िल तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। ज़िंदगी तमाम दुश्वारियों से भरी हुई है, परंतु फिर भी इंसान ज़िंदगी और मौत में से ज़िंदगी को ही चुनता है। दु:ख में भी सुख के आगमन की उम्मीद कायम रहती है, जैसे घने काले बादलों में बिजली की कौंध मानव को सुक़ून प्रदान करती है और उसे अंधेरी सुरंग से बाहर निकालने की सामर्थ्य रखती है।

मुझे स्मरण हो रही है ओ• हेनरी• की एक लघुकथा ‘दी लास्ट लीफ़’ जो पाठ्यक्रम में भी शामिल है। इसे मानव को मृत्यु के मुख से बचाने की प्रेरक कथा कह सकते हैं। भयंकर सर्दी में एक लड़की निमोनिया की चपेट में आ गई। इस लाइलाज बीमारी में दवा ने भी असर करना बंद कर दिया। लड़की अपनी खिड़की से बाहर झांकती रहती थी और उसके मन में यह विश्वास घर कर गया कि जब तक पेड़ पर एक भी पत्ता रहेगा; उसे कुछ नहीं होगा। परंतु जिस दिन आखिरी पत्ता झड़ जाएगा; वह नहीं बचेगी। परंतु आंधी, वर्षा, तूफ़ान आने पर भी आखिरी पत्ता सही-सलामत रहा…ना गिरा; ना ही मुरझाया। बाद में पता चला एक पत्ते को किसी पेंटर ने, दीवार पर रंगों व कूची से रंग दिया था। इससे सिद्ध होता है कि उम्मीद असंभव को भी संभव बनाने की शक्ति रखती है। सो! व्यक्ति की सफलता-असफलता उसके नज़रिए पर निर्भर करती है। नज़रिया हमारे व्यक्तित्व का अहं हिस्सा होता है। हम किसी वस्तु व घटना को किस अंदाज़ से देखते हैं; उसके प्रति हमारी सोच कैसी है–पर निर्भर करती है। हमारी असफलता, नकारात्मक सोच निराशा व दु:ख का सबब बनती है। सकारात्मक सोच हमारे जीवन को उल्लास व आनंद से आप्लावित करती है और हम उस स्थिति में भयंकर आपदाओं पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं। सो! जीवन हमें सहज व सरल लगने लगता है।

‘पहले अपने मन को जीतो, फिर तुम असलियत में जीत जाओगे।’ महात्मा बुद्ध का यह संदेश आत्मविश्वास व आत्म-नियंत्रण रखने की सीख देता है, क्योंकि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ सो! हर आपदा का साहसपूर्वक सामना करें और मन पर अंकुश रखें। यदि आप मन से पराजय स्वीकार कर लेंगे, तो दुनिया की कोई शक्ति आपको आश्रय नहीं प्रदान कर सकती। आवश्यकता है इस तथ्य को स्वीकारने की…’हमारा कल आज से बेहतर होगा’–यह हमें जीने की प्रेरणा देता है। हम विकट से विकट परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। परंतु यदि हम नाउम्मीद हो जाते हैं, तो हमारा मनोबल टूट जाता है और हम अवसाद की स्थिति में आ जाते हैं, जिससे उबरना अत्यंत कठिन होता है। उदाहरणत: पानी में वही डूबता है, जिसे तैरना नहीं आता। ऐसा इंसान जो सदैव उधेड़बुन में खोया रहता है, वह उन्मुक्त जीवन नहीं जी सकता। उसकी ज़िंदगी ऊन के गोलों के उलझे धागों में सिमट कर रह जाती है। परंतु व्यक्ति अपनी सोच को बदल कर, अपने जीवन को आलोकित-ऊर्जस्वित कर सकता है तथा विषम परिस्थितियों में भी सुक़ून से रह सकता है।

उम्मीद, कोशिश व प्रार्थना हमारी सोच अर्थात् नज़रिए को बदल सकते हैं। सबसे पहले हमारे मन में आशा अथवा उम्मीद जाग्रत होनी चाहिए। इसके उपरांत हमें प्रयास करना चाहिए और अंत में कार्य-सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। उम्मीद सकारात्मकता का परिणाम होती है, जो हमारे अंतर्मन में यह भाव जाग्रत करती है कि ‘तुम कर सकते हो।’ तुम में साहस,शक्ति व सामर्थ्य है। इससे आत्मविश्वास दृढ़ होता है और हम पूरे जोशो-ख़रोश से जुट जाते हैं, अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर। यदि हमारी कोशिश में कमी रह जाएगी, तो हम बीच अधर लटक जाएंगे। इसलिए बीच राह से लौटने का मन भी कभी नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि असफलता ही हमें सफलता की राह दिखाती है। यदि हम अपने हृदय में ख़ुद से जीतने की इच्छा-शक्ति रखेंगे, तो ही हमें अपनी मंज़िल अर्थात् निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हो सकेगी। अटल बिहारी बाजपेयी जी की ये पंक्तियां ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता/ टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता’ जीवन में निराशा को अपना साथी कभी नहीं बनाने का सार्थक संदेश देती हैं। हमें दु:ख से घबराना नहीं है, बल्कि उससे सीख लेकर आगे बढ़ना है। जीवन में सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती है। इसलिए हमें दत्तात्रेय की भांति उदार होना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन में चौबीस गुरु धारण किए और छोटे से छोटे जीव से भी शिक्षा ग्रहण की। इसलिए प्रभु की रज़ा में सदैव खुश रहना चाहिए अर्थात् जो हमें परमात्मा से मिला है; उसमें संतोष रखना कारग़र है। अपने भाग्य को कोसें नहीं, बल्कि अधिक धन व मान-सम्मान पाने के लिए सत्कर्म करें। परमात्मा हमें वह देता है, जो हमारे लिए हितकर होता है। यदि वह दु:ख देता है, तो उससे उबारता भी वही है। सो! हर परिस्थिति में सुख का अनुभव करें। यदि आप घायल हो गए हैं या दुर्घटना में आपका वाहन का टूट गया, तो भी आप परेशान ना हों, बल्कि प्रभु के शुक्रगुज़ार हों कि उसने आपकी रक्षा की है। इस दुर्घटना में आपके प्राण भी तो जा सकते थे; आप अपाहिज भी हो सकते थे, परंतु आप सलामत हैं। कष्ट आता है और आकर चला जाता है। सो! प्रभु आप पर अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रखें।

हमें विषम परिस्थितियों में अपना आपा नहीं खोना चाहिए, बल्कि शांत मन से चिंतन-मनन करना चाहिए, क्योंकि दो-तिहाई समस्याओं का समाधान स्वयं ही निकल आता है। वैसे समस्याएं हमारे मन की उपज होती हैं। मनोवैज्ञानिक भी हर आपदा में हमें अपनी सोच बदलने की सलाह देते हैं, क्योंकि जब तक हमारी सोच सकारात्मक नहीं होगी; समस्याएं बनी रहेंगी। सो! हमें समस्याओं का कारण समझना होगा और आशान्वित होना होगा कि यह समय सदा रहने वाला नहीं। समय हमें दर्द व पीड़ा के साथ जीना सिखाता है और समय के साथ सब घाव भर जाते हैं। इसलिए कहा जाता है,’टाइम इज़ ए ग्रेट हीलर।’ सो दु:खों से घबराना कैसा? जो आया है, अवश्य ही जाएगा।

हमारी सोच अथवा नज़रिया हमारे जीवन व सफलता पर प्रभाव डालता है। सो! किसी व्यक्ति के प्रति धारणा बनाने से पूर्व भिन्न दृष्टिकोण से सोचें और निर्णय करें। कलाम जी भी यही कहते हैं कि ‘दोस्त के बारे में आप जितना जानते हैं, उससे अधिक सुनकर विश्वास मत कीजिए, क्योंकि वह दिलों में दरार उत्पन्न कर देता है और उसके प्रति आपका विश्वास डगमगाने लगता है।’ सो! हर परिस्थिति में खुश रहिए और सुख की तलाश कीजिए। मुसीबतों के सिर पर पांव रखकर चलिए; वे आपके रास्ते से स्वत: हट जाएंगी। संसार में दूसरों को बदलने की अपेक्षा उनके प्रति अपनी सोच बदल लीजिए। राह के काँटों को हटाना सुगम नहीं है, परंतु चप्पल पहनना अत्यंत सुगम व कारग़र है।

सफलता और सकारात्मकता एक सिक्के के दो पहलू हैं। आप अपनी सोच व नज़रिया कभी भी नकारात्मक न होने दें। जीवन में शाश्वत सत्य को स्वीकार करें। मानव सदैव स्वस्थ नहीं रह सकता। उम्र के साथ-साथ उसे वृद्ध भी होना है। सो! रोग तो आते-जाते रहेंगे। वे सब तुम्हारे साथ सदा नहीं रहेंगे और न ही तुम्हें सदैव ज़िंदा रहना है। समस्याएं भी सदा रहने वाली नहीं हैं। उनकी पहचान कीजिए और अपनी सोच को बदलिए। उनका विविध आयामों से अवलोकन कीजिए और तीसरे विकल्प की ओर ध्यान दीजिए। सदैव चिंतन-मनन व मंथन करें। सच्चे दोस्तों के अंग-संग रहें; वे आपको सही राह दिखाएंगे। ओशो भी जीवन को उत्सव बनाने की सीख देते हैं। सो! मानव को सदैव आशावादी व प्रभु का शुक्रगुज़ार होना चाहिए तथा प्रभु में आस्था व विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि वह हम से अधिक हमारे हितों के बारे में जानता है। समय बदलता रहता है; निराश मत हों। सकारात्मक सोच रखें तथा उम्मीद का दामन थामे रखें। आत्मविश्वास व दृढ़संकल्प से आप अपनी मंज़िल पर अवश्य पहुंच जाएंगे। एमर्सन के इस कथन का उल्लेख करते हुए मैं अपनी लेखनी को विराम देना चाहूंगी ‘अच्छे विचारों पर यदि आचरण न किया जाए, तो वे अच्छे सपनों से अधिक कुछ भी नहीं हैं। मन एक चुंबक की भांति है। यदि आप आशीर्वाद के बारे में सोचेंगे; तो आशीर्वाद खिंचा चला आएगा। यदि तक़लीफ़ों के बारे में सोचेंगे, तो तकलीफ़ें खिंची चली आएंगी। सो! हमेशा अच्छे विचार रखें; सकारात्मक व आशावादी बनें।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #148 ☆ भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 148 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – ।। श्री गणेशाय नमः ।। ☆

प्रथम पूज्य हैं आप तो, हे गणपति महराज।

विघ्न विनाशक देवता, बना रहे हर काज।।

श्री गणेश को पूजते, हैं वो ही सर्वेश।

विघ्नविनाशक देवता, देते है आदेश।।

करते गणपति वंदना, आज  पधारो आप।

धन्य धन्य हम हो रहे, दूर करो संताप।।

करते हैं हम आचमन, पंचामृत गणराज।

मोदक भोग लगा रहे, स्वीकारो प्रभु आज।।

तुम दाता इस सृष्टि के, हे गणपति महराज।

विनती इतनी मैं करूँ, करो सफल सब काज।।

मन मंगलमय हो रहा, झूम उठा है चंद।

हुआ आगमन आपका, छाया है आनंद।।

मन आनंदित हो गया, देख आपका रूप।

करते वंदन आपका, रोज जलाकर धूप।।

गणपति की आराधना, करते उनका ध्यान।

पूर्ण मनोरथ हो रहे, करते हैं गुणगान।।

रिद्धि सिद्धि के देवता, देवों के सरताज।

हरते विघ्न अपार वो, पूरे करते काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #135 ☆ संतोष के दोहे – प्रथम पूज्य गणनायक ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – प्रथम पूज्य गणनायक । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 135 ☆

☆ संतोष के दोहे – प्रथम पूज्य गणनायक ☆ श्री संतोष नेमा ☆

हे लम्बोदर गजवदन, मंगल कीजै काज

सब विघ्नों को दूर कर, कृपा रखें गणराज

कलुष निकंदन आप हैं, प्रथम पूज्य भगवान

भव बाधाएँ दूर हों, ऐसा दो वरदान

ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति, देवों के सरताज

मंगलकारी देव प्रभु, रखिये मेरी लाज

पूजा-पाठ न जानते, न ही कोई विधान

रक्षा सबकी कीजिये, हे प्रभु दयानिधान

पान,फूल मोदक चढ़ें, लड्डू मेवा थाल

सद्गुण हमको दीजिए, हे शिव जी के लाल

संकट हरिये आप सब, गौरी तनय गणेश

करना ऐसी प्रभु दया, खुशियाँ हों बस शेष

धूम्रकेतु गजमुख नमन, महिमा अमित अपार

मातु आज्ञा सिर धरें, मूसक पर असवार

विघ्न मिटें संकट कटें, मंगल हों सब काज

बाधाओं को दूर कर, रखें हमारी लाज

जिनके सुमरन से सदा, मिले हमें संतोष

प्रथम पूज्य गणनायक, दूर करें सब दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #140 ☆ गणाधीश गणपती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 140 – विजय साहित्य ?

☆ गणाधीश गणपती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

माझा गणपती बाप्पा

कलागुण अधिपती

आद्य काव्य लेखनिक

गणाधीश गणपती…! १

 

माझा गणपती बाप्पा

पाई जास्वंदीचे फूल

लोटांगण देवा तुला

नको संकट चाहूल….! २

 

अष्ट विनायक क्षेत्री

पाहू तुझे निजरूप

सुखकर्ता दुःख हर्ता

परीमळे दीप धूप….! ३

 

गौरी पुत्र गजानन

लंबोदर एकदंत

आहे संकट नाशक

दूर करी क्लेष खंत….! ४

 

माझा बाप्पा गणपती

माझा सखा सवंगडी

जपोनीया ठेवितसे

गोड गुपिते ती बडी…..! ५

 

कार्यारंभी स्तवनाने

कार्य निर्विघ्न सफल.

आहे ओंकार स्वरूप

विघ्नेश्वर हा सकल…..! ६

 

कला आणि विद्याधीश

माझा बाप्पा गणपती

नाम संकीर्तनी वाढो

कविराज मतीगती……!७

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 115 ☆ भाषा सम्मेलन ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक एक विचारणीय एवं समसामयिक ही नहीं कालजयी रचना “भाषा सम्मेलन”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 115 ☆

☆ भाषा सम्मेलन ☆ 

सभी भाषाओं का सम्मेलन हो रहा था अंग्रेजी बड़े गर्व के साथ उठी और कहने लगी मैं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हूँ, मुझे जितना सम्मान भारत  में मिला उतना कहीं नहीं, धन्यवाद भारतीयों।

फ्रेंच, रूस, जापानी, चीनी सभी  भाषाएँ एक एक कर मंच पर अपनी प्रस्तुति देतीं गयीं व सभी ने हिंदी की प्रशंसा व्यंग्यात्मक लहजे में मुक्त कंठ से की।

सबसे अंत  में  हिंदी को मौका  मिला, तो उसने कहा आप सब का धन्यवाद  मैंने तो सदैव सबको समाहित किया है क्योंकि  भारतीय संस्कार हैं जो वसुधैव कुटुम्बकम का पालन कर रहे हैं , जो समष्टि का पोषक करता है वही दीर्घजीवी व यशस्वी होगा ऐसा दार्शनिक व वैज्ञानिक दोनों ही आधार पर सिद्ध हो चुका है।

ये सब कहीं न कहीं सत्य है। हिंदी पखवाड़े में हिंदी पर हिंदी भाषी ही चिंतन करते हैं और बाद में निराश होकर टूट जाते हैं और हिंदी के लेखन व ऑफीसियल कार्यों में इसके प्रयोग को नियमित नहीं कर पाते। दरसल हिंदी के कठिन शब्दों को ही अंग्रेजी के विकल्प के रुप में रखा जाता है। क्या आपने कभी गौर किया कि हमेशा हिंदी प्रयोग करने वाला भी बैंक या अन्य ऑफिस के कार्यों में अंग्रेजी का ही विकल्प चुनता है क्योंकि उसमें बोलचाल के शब्द होते हैं जबकि उत्कृष्ट हिंदी पढ़कर वो सहसा भूल जाता है कि क्या लिखा है।

हमें सामान्य बोलचाल की भाषा व ऐसे शब्द हो हिंदी ने आत्मसात कर लिए हैं उनका ही प्रयोग करना चाहिए। पूरे राष्ट्र को एक भाषा सूत्र में पिरोने हेतु बोलियों के प्रचलित शब्दों को भी बढ़ावा देना होगा। सरलता व सहजता से ही अहिंदी प्रान्तों को हिंदी प्रेमी बनाना होगा। पूरे वर्ष भर हिंदी के प्रयोग को एक आंदोलन के रूप में चलाना चाहिए। भारतेंदु  हरिश्चंद्र जी ने सही कहा है – निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल। आइए संकल्प लें कि हिंदी में बोलेंगे, लिखेंगे और अन्यों को भी प्रेरित करेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 119 – “सुरमयी लता” – श्री सुरेश पटवा ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆

SURMAYI LATA (HINDI)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 119 ☆

☆ “सुरमयी लता” – श्री सुरेश पटवा ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(संयोगवश श्री सुरेश पटवा जी की पुस्तक“सुरमयी लता” की समीक्षा अन्य लेखक / लेखिकाओं द्वारा भी प्राप्त हुई है जिसे हम शीघ्र ही अगले अंकों में प्रकाशित कर रहे हैं।)

 

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री सुरेश पटवा जी की नवीन पुस्तक  “सुरमयी लता” की समीक्षा।

कृति. . . सुरमयी लता

लेखक. . . . सुरेश पटवा

मूल्य. . . . १९५ रु, पृष्ठ. . . १०६

प्रकाशक. . . सर्वत्र, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

चर्चाकार. . . विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ तुम्हारा ये जाना न माने जमाना, रहेंगी सदा गुलजार लता – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

अलेक्सा प्ले हिट्स आफ लता, इतना कहने भर की जरूरत है और अलेक्सा अनफारगेटबल एलबम बजाने लगेगी ” तू जहाँ जहाँ भी होगा मेरा साया साथ होगा “. कुछ व्यक्ति होते हैं जो मर कर भी अमर होते हैं. अपनी सुरीली आवाज के साथ लता हमेशा हर पीढ़ी के साथ रहेंगी. सुख, दुख, राष्ट्रीय पर्व, भक्ति, त्यौहार कोई भी अवसर हो लता का कोई न कोई गीत सहज सुलभ है. गीतकार और संगीतकार को कम ही लोग याद करते हैं, अधिकांश लता जी की आवाज को पहचानते हैं और उसके जरिये ही फिल्म, हीरोईन, या गीत को जानते हैं. लता जी गीत की ब्रांड एम्बेसडर बन चुकी हैं. ऐसी लीजेंड हस्ती पर स्वाभाविक रूप से ढ़ेर सारे काम हुये हैं. नसरीन मुन्नी की किताब “लता मंगेशकर-इन हर ऑन वॉइस“, लेखक हरीश भिमानी की चर्चित किताब इन सर्च ऑफ लता मंगेशकर, लता मंगेशकर: ए बायॉग्रफी बाई राजू भारतन, ऑन स्टेज विद लता, लेखिका: नसरीन मुन्नी कबीर और रचना शाह, लता: वॉइस ऑफ द गोल्डन एरा द्वारा मंदर वी बिचू, इंफ्लुएंस ऑफ लता मंगेशकर्स सॉन्ग्स इन माई सॉन्ग्स ऐंड लाइफ, लेखक: तारिकुल इस्लाम आदि किताबें अंग्रेजी में आ चुकी हैं. मूलतः हिन्दी में अपेक्षाकृत कम काम हुआ है. यद्यपि यतींद्र मिश्रा की पुस्तक “लता: सुर गाथा” प्रकाशित हो चुकी है. हिन्दी में लता जी पर किताबों की इस कमी को बहुविध लेखक तथा अध्यययन कर्ता श्री सुरेश पटवा ने बड़ी मेहनत से सुरमयी लता लिखकर किंचित पूरा किया है. और इस तरह उन्होंने हिन्दी जगत का अर्ध्य लता जी को समर्पित किया है.

श्री सुरेश पटवा

इस पुस्तक की विशेषता है कि  शताब्दी की इस सुरसाम्राज्ञी की बड़ी जीवनी को सुरेश जी ने अत्यंत संक्षेप में आम आदमी की जिज्ञासा के अनुरूप मनोहारी तरीके से समेट कर प्रस्तुत किया है. किताब लता पर संदर्भ के रूप में तो उपयोगी है ही, गीत संगीत में रुचि रखने वाले प्रत्येक पाठक का ध्यानाकर्षण करती है. लता की आवाज में जादू था, वे बच्चों सी मीठी बोली, अठखेली करती किशोरी से लेकर प्रौढ़ संजीदगी भरी आवाज में लय ताल राग के अनुरूप गाती थीं.

1974 में लता मंगेशकर का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक गाने गानेवाली गायिका के तौर दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि उनके द्वारा 1948 से 1974 तक सोलो, ड्यूट और कोरस में लगभग 25000 गाने गाये गये हैं, ये संख्या 20 से अधिक भारतीय भाषाओं को मिलाकर बताई गयी थी. लेकिन इस रिकॉर्ड के लिए मोहम्मद रफी साहब ने भी चुनौती कर दी और गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को पत्र के माध्यम से दावा कर दिया कि उन्होंने सोलो ड्यूट और कोरस में लगभग 28000 गाने गाए हैं. गिनीज बुक के दूसरे एडिशन के आने के पहले ही सन 1980 में रफी साहब का निधन हो गया और उनके निधन के बाद जब 1987 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का नया एडिशन आया तो उसमें मोहम्मद रफी साहब के नाम के साथ लता मंगेशकर का नाम भी शामिल था, क्योंकि लता मंगेशकर लगातार गाने गा रहीं थी. परंतु  इन रिकॉर्ड के तथ्यों एवं प्रमाणिकता पर सवाल खड़े होने लगे. शोधकर्ता हरमिंदर सिंग हमराज ने लता जी के प्रत्येक गाये हुये गाने को अपनी किताब में सूचीबद्ध किया जो संख्या लगभग छः हजार गिनी गई. अतः गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने 1991 के एडिशन में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी दोनों का ही नाम हटा दिया. अस्तु महान व्यक्तित्व और विवादों का चोली दामन का साथ बना ही रहता है, यह असामान्य नही है. ईर्ष्या उसी से होती है जो सफल हो. फिर लता जी को तो स्वयं उनकी बहन आशा भोंसलें जी, जो स्वयं एक अत्यंत सफल प्ले बैक सिंगर हैं, उनसे भी चैलेंज मिलता रहा. पटवा जी ने अपनी किताब में एक चैप्टर ही “विवादों के साये ” लिखा है. जिसमें उन्होंने बेबाकी से लता जी के ओ पी नैयर, मोहम्मद रफी, आदि से विवादों का उल्लेख कर पाठको के लिये स्पष्ट वादिता का लेखन किया है.

दिल से, धुंधली यादें, किस्सा रस, विवादों के साये, गीत संगीत की लंबी पारी, सराहना का सर्वोच्च शिखर इन छः चैप्टर्स में सुरेश जी ने गागर में सागर भरने का प्रयास कर लता जी के प्रति एक फिल्मी संगीत के रसिक श्रोता की श्रद्धांजली के रूप में लता जी के दुखद अवसान पर मात्र ३ दिनों में यह किताब लिख कर पूरी की है. लता जी का निधन ऐसी पीड़ा दायक घटना थी, जिससे सभी स्तब्ध रह गये थे. स्वाभाविक रूप से इस मर्मांतक घटना को अपने अपने तरीके से प्रत्येक भावुक हृदय व्यक्ति ने अभिव्यक्त किया था. मैंने ये पंक्तियां लिखी थी तब जो वेब दुनिया पोर्टल पर प्रकाशित हैं…

स्वर साम्राज्ञी कोकिल कंठी, हम सब का है प्यार लता

भारत रत्न, रत्न भारत का, गीतो का सुर, सार लता ।

रागो का जादू, जादू गजल का, सरगम की लय, तार लता,

तबले की धिन् पर, सितारों की धड़कन, नगमों की रस धार लता ।

बनारस घराना, जयपुर तराना, गीतो का इकरार लता,

बैजू सुना था सुर बावरा वो, तानसेन दीदार लता।

सरहद की रेखा से सुर बड़ा है, नूपुर की झंकार लता

भारत पाक लाख दुश्दुमन हों, जनता की सरकार लता ।

तुम्हारा ये जाना न माने जमाना, रहेंगी सदा गुलजार लता

कुल मिलाकर कहना चाहता हूं कि सुरमयी लता लिखकर सुरेश पटवा जी ने एक समसामयिक जागरूख अन्वेषी लेखक होने का दायित्व निभाया है. पुस्तक तथ्यात्मक जानकारियों के साथ रोचक शैली में लिखी गई भावात्मक अभिव्यक्ति है. पठनीय है और संदर्भ में बार बार पढ़ी जाती रहेगी. पुस्तक त्रुटि रहित मुद्रण के साथ अच्छे कागज पर स्तरीय है. लता जी जैसे किरदार सार्वजनिक संपदा हो जाते हैं, जिनके विषय में हर कोई जानना चाहता है, इस तरह की परिचयात्मक किताबों की सीरीज अन्य गायको तथा फिल्म जगत के कलाकारों पर सुरेश पटवा जी से अपेक्षित है. संतोष इस बात का है कि लता जी को गायकी में स्थापित होने के लिये भले ही संघर्ष करने पड़े किंतु नये संसाधनो के जरिये आज हर मोबाईल पर स्टार मेकर्स जैसे  ऐप हैं जिनसे प्रतिभायें अपनी सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कर रही हैं. इंडियन आईडल जैसे रियलटी शो प्लेटफार्म हैं जिनसे लता जी के कई प्रतिरूप शनैः शनैः गायिकी में अपना स्थान बना रहे हैं. किन्तु निर्विवाद तथ्य है कि लता दी तो लता दी ही थीं, न भूतो न भविष्यति. यद्यपि जिस दिन एक नई लता स्थापित होगी, संभवतः स्वर्ग में बैठी लता जी को ही सर्वाधिक प्रसन्नता होगी, क्योंकि सुर साधना सरस्वती की तपस्या और पूजा है.


चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 97 ☆ ’’सिद्धिदायक गजवदन…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “सिद्धिदायक गजवदन…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 97 ☆ सिद्धिदायक गजवदन” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जय गणेश गणाधिपति प्रभु , सिद्धिदायक, गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन ।।

दुखों से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है

धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियों का भार है ।

हर हृदय में वेदना , आतंक का अंधियार है ।

उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है ।।

दीजिये सद्बुद्धि का वरदान हे करुणा अयन ।।

प्रकृति ने करके कृपा जो दिये सबको दान थे

आदमी ने नष्ट कर डाले हैं वे अज्ञान से ।

प्रगति तो की बहुत अब तक विश्व ने विज्ञान से

प्रदूषित जल थल गगन पर हो गये अभियान से ॥

फँस गया है उलझनों के बीच मन , हे सुख सदन ॥

प्रेरणा देते हृदय को प्रभु तुम्हीं सद्भाव की

दूर करते भ्राँतियाँ सब व्यर्थ के टकराव की ।

बढ़ रही जो सब तरफ हैं वृत्तियाँ अपराध की

रौंद डालीं है उन्होंने फसल सात्विक साध की ॥

चेतना दो प्रभु कि अब उन्माद से उघरें नयन ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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