(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ आलेख ☆ नींद क्यों रात भर नहीं आती?☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
यह एक उम्र का बहुत बड़ा सवाल बन जाता है कि नींद क्यों रात भर नहीं आती ? और अगर पूरी नींद ले भी ली और फिर भी उठने के बाद आप फ्रेश महसूस नहीं करते तो यह भी एक समस्या से कम नहीं है! आठ घंटे की भरपूर नींद के बाद भी थके थके से क्यों? इसे ताज़गी न देने वाली नींद कहा जाता है। यदि अक्सर आप ऐसा ही महसूस करते हैं तो यह खतरे की घंटी से कम नहीं! आपको अलर्ट होने की जरूरत है।
न्यूरोलोजिस्ट डाॅ सोनजा कहती हैं कि हर सुबह थका हुआ जागना निराशाजनक है आपके लिए! यह आपकी पूरी दिनचर्या को बिगाड़ सकता है। नींद की गुणवत्ता में सुधार लाने और सुबह तरोताज़ा होने पर विचार कीजिये, कोई उपाय कीजिये! यदि आप लगातार नींद कम आने से जूझ रहे हैं तो अपनी आदतों की ओर ध्यान दीजिये और एक ही समय पर सोना, दिन के समय भरपूर काम और खानपान की ओर ध्यान दीजिये! लक्ष्य रखे़ं और उन्हें पूरा करने पर ध्यान केंद्रित रखिये! प्रतिदिन सुबह कम से कम बीस मिनट की सैर अपनी सुबह में शामिल कर लीजिए! अपनी दिनचर्या पहले से निर्धारित कर लीजिए तो और बेहतर रहेगा! देर रात जागना या रात का खाना देरी से खाना भी नींद में बाधा बन सकता है। नींद की ज्यादा दवाइयां लेने से बचिये तो बेहतर रहेगा आपके लिए! पानी बीच बीच में पीते रहिये! निष्क्रिय न रहिये, कुछ न कुछ काम ढूंढते रहिये तो अच्छा रहेगा!
बाकी कहते हैं कि धीमा धीमा संगीत और बहुत डिम सी रोशनी में भी नींद आपको अपनी आगोश में लेते देर नहीं लगाती। अच्छा साहित्य भी साथ दे सकता है नींद लाने में। मनपसंद संगीत सुनिये और फिर मस्त मस्त नींद ही नहीं ख्बाब लीजिए! सपनों में वे भी आयेंगे, जिनको आप दिनभर याद करते रहे हैं! बस, यह शिकायत न कीजिये:
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य “क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” ।)
☆ शेष कुशल # 45 ☆
☆ व्यंग्य – “क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…”– शांतिलाल जैन ☆
एक मछली और मर गई. – इसमें हैरत की कौनसी बात है!!
बात है श्रीमान. काया इंसान की, मगर काँटे में मछली की तरह फँस गई थी. जेन ज़ेड पीढ़ी का वय. महज़ साढ़े पच्चीस बरस की उम्र. अपने कमरे में, अपने ही पंखे से, अपनी ही बेडशीट का फंदा लगाकर, अपनी ही जान ले ली. कार्पोरेट मछुआरे के बिछाए आकर्षक लुभावने जाल में फँस गई थी वो. क्रेडिट कार्ड का जाल. प्लैटिनम एलिट कार्ड. नाम से ही अमीरी टपकाता. कार्ड प्लास्टिक का, तासीर लोहे की. मेग्नेटिक स्ट्रिप उसे खेंच रही थी. बाज़ार के समंदर की लहरें उसे जाल की तरफ धकेल रही थीं तो कैसे नहीं फँसती!! ‘ये क्रेडिट कार्ड हम खास आपके लिए लाए हैं.’ कोमल, मधुर, मखमली आवाज़ में की गई जादुई पेशकश ठुकरा पाना मुश्किल था. वो भी मना नहीं कर सकी थी. जाल में फँस ही गई.
जेन-ज़ेड मछली जब फँसी तो दम एक-दम से तोड़ा नहीं था. छटपटाती रही, तड़पती रही, पछताती रही मगर बच नहीं सकती थी. उसकी नींद काफूर हो चुकी थी और चैन सिरे से गायब. खरीदी का पहला महीना ख़त्म हुआ, मिनिमम ड्यूज चुकाया और बचे बेलेंस के साथ दन्न से आ धंसी कर्ज के दलदल में, फिर और धंसी, थोड़ा और धंसी. दलदल शनै-शनै गहराता जाता था. पहले अठारह, फिर चौबीस, फिर छत्तीस परसेंट ब्याज की गहराई में वो उतरती-धंसती चली गई. उसके आगे हाराकिरी करने की नौबत आन पड़ी.
कार्पोरेट मछुआरे ने जेन ज़ेड मछली को जादुई कालीन से उपभोग की दुनिया की सैर कराने का रोमांचक सपना दिखाया था. वो कब कालीन पर बैठ कर उड़ चली पता ही नहीं चला. आकर्षक खूबसूरत फ्रेंड के साथ सातवें आसमां की सैर पर पहुँची. यहाँ उसे आईफोन मिला, बाईक मिली, एसयूवी बुक की, होम थियेटर मिला, महंगे डिज़ाइंड अप्पैरल्स मिले, हॉलीडे होम मिला, लक्ज़री स्टे मिला, बिग बनयान मर्लोट का ड्रिंक और लज़ीज़ इंटरकॉन्टिनेंटल खाना. पूरे महीने मौज, मस्ती, फन अनलिमिटेड. मंत्रमुग्ध थी. उसे लगा कि कारूं के खजाने की चाबी उसकी ज़ेब में आ गई है. कहाँ समंदर में पड़ी रही अब तक, असली दुनिया तो यहाँ है, उपभोग के आसमान में. और, कमाल ये कि उसे कहीं कोई भुगतान नहीं करना पड़ा. बस बेचवाल की मशीन में कार्ड से चीरा लगाया और विलासिता की भव्य दुनिया में प्रवेश कर गई. महीना पूरा होने तक यहाँ एन्जॉय के सिवाय कुछ नहीं था. जो भी है बस एक यही पल है. पूरा आसमान तुम्हारा है बस ओटीपी सही से डालना. फिर एक दिन बैंक से स्टेटमेंट मिला और जादुई कालीन एक मज़बूत जाल में बदल गया. जेन-ज़ेड मछली पूरी तरह गिरफ्त में आ चुकी थी.
क्या पूछा आपने श्रीमान कि मछली के कांटे में चारा कौनसा लगाया था ? कमाल करते हैं आप. बड़े, आकर्षक, लुभावने, रंगीन, पूरे पेज के विज्ञापन नहीं देखे आपने ? कॅशबैक का चारा. नो कास्ट ईएम्आई का चारा. डिसकाउंट का चारा, रिवार्ड पॉइंट्स का चारा, लॉयल्टी पॉइंट्स का चारा. एयरपोर्ट के लक्ज़री लाऊंज़ में फ्री इंट्री का चारा. होलीडेईंग में छूट की चारा. कैशबैक, रिवार्ड, लॉयल्टी पॉइंट्स के बदले मालदीव्स की मुफ्त सैर का चारा. नए नए टाईप के चारे. चारे का चस्का. चस्के के काँटे में फंसी जेन ज़ेड के पास छुड़ाकर निकल पाने की गैल न थी.
क़र्ज़ का दलदल गीला तो था मगर उसमें मछली के लायक पानी न था. कुछ था तो वसूली का तकादा था, डेलिंक्वेंट लिस्ट में नाम था, खराब सिबिल स्कोर था और रिकवरी एजेंट के बाउन्सर्स का डर था. फ्रेंड अन-फ्रेंड हो चुके थे. रिश्तेदारों ने असमर्थता व्यक्त कर दी थी. माता-पिता ने जीवनभर की कमाई दे दी तब भी क़र्ज़ चुक नहीं पा रहा था. तो क्या करती जेन-ज़ेड मछली. फंदा लगाकर झूल गई.
कुछ लिखकर गई क्या ? नहीं. लेकिन सुना है तूती जैसी आवाज़ में कुछ बोलकर रिकार्ड कर गई है जो बाज़ार के नक्कारखाने में सुनाई नहीं दे रहा है. सुन पा रहे हैं तो बस कार्पोरेट का अट्टहास, क्रेडिट कार्ड की ग्रोथ के आंकड़े, जीडीपी में योगदान, क्रेडिट कार्ड कंपनी के विस्तार की योजनाओं के ऐलान. जाल अभी और लम्बा फिंकेगा. बाज़ार की शार्क का आसान शिकार जेन ज़ेड मछलियाँ. भूख बढ़ती जाती है और जेन ज़ेड इसके लिए तैयार भी है. तो प्रतीक्षा कीजिए, फंदे पर लटके अगले शिकार की. हाँ, हैरानी मत जताईएगा, यह न्यू नार्मल है.
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा – मौका पर चौका।)
लघुकथा ☆ मौका पर चौका ☆ श्री सुरेश पटवा
अनिरुद्ध सिंह पिछले तीन बार से पार्षद का चुनाव जीत रहे हैं, और हाई कमान के दरबार में लगातार विधायकी की अर्जी लगाते रहे हैं, लेकिन हर बार ख़ारिज हो जाती है। तीन महीने बाद चुनाव होने हैं।
उनकी पत्नी गौरांगी शिक्षा विभाग में उप-संचालक हैं। अनिरुद्ध सिंह अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। इस बार पार्टी फण्ड को भी सरसब्ज़ किया है। कुछ उम्मीद बंधी है। पत्नी ने दूध गर्म करके बैठक में इनके सामने तपीली रखते हुए कहा ‘आप तो पूरे समय मोबाइल पर बातों में उलझे रहते हैं, इतने व्यस्त तो प्रधानमंत्री भी नहीं रहते होंगे।’
अनिरुद्ध ने मोबाइल कान से हटा कर खीझते हुए पूछा ‘क्या करना है, ये बताओ जल्दी?’
गौराँगी तेजी से गाड़ी में बैठते हुए बोलीं – ‘सुनो, दूध अभी गरम है, ठंडा हो जाए तो फ्रिज में रख देना, नहीं तो बिल्ली चट कर जाएगी।’
गौरांगी के जाते ही, अनिरुद्ध ने मोबाइल कान से सटाकर बोलना शुरू किया – ‘हाँ भाई, अब बोलो, कौन है, कहाँ मिला है, बरामदी में क्या निकला है?’
तभी एक बिल्ली खिड़की की जाली खोलकर अंदर झांकने लगी। अनिरुद्ध ने उसे घूरकर देखा। हाथ से भगाने की कोशिश की, पर वह लगातार पतीली की तरफ़ देखे जा रही थी। उसी समय इत्तफ़ाक़ से एक मोटा चूहा उसके बाजू से निकला।
अनिरुद्ध मोबाइल पर बोले जा रहे हैं – ‘हाँ, तो यह वही है जो हमारे इलाक़े में नदी घाट से मछली मार कर ले जाता है। परंतु यह बताओ, उसकी मोटर साइकिल से प्रतिबंधित मांस निकला है, यह कैसे सिद्ध होगा।’
तभी बिल्ली दूध की पतीली से नज़र हटा चूहे की तरफ़ तेज़ी से झपटी और उसे पंजे में जकड़ लिया। अनिरुद्ध बिल्ली की तरफ़ से निश्चिंत हो गए।
अनिरुद्ध – ‘हाँ, तुम्हारा कहना सही है कि आरोप सिद्ध होने से हमें क्या लेना-देना। उसमें सालों लग जाएँगे। हमारा मतलब तो सिद्ध हो जाएगा। तुम एक काम करो, उसे रामप्रसाद चौराहे पर मय सबूतों के पहुँचो, हम पत्रकारों को लेकर आधा घंटा में वहीं मिलते हैं।
अगले दिन ख़ास-ख़ास अख़बारों में ख़बर थी ‘शहर के व्यस्त चौराहे पर प्रतिबंधित मांस सहित एक युवक गिरफ़्तार हुआ। बस्ती के सजग नागरिकों ने उसकी मरम्मत करके, पुलिस के हवाले कर दिया। सूत्रों के मुताबिक़ पुलिस तफ़तीस करके सबूत सहित कोर्ट में मुचलका पेश कर आरोपित की पुलिस कस्टडी लेगी।’
अनिरुद्ध मोबाइल को एक तरफ़ फेंक, सोफे पर पसर दार्शनिक मुद्रा में छत को निहारते हुए खुद से बोले, ‘साला, बिल्ली तक शिकार का मजा लेने को पतीली की सतह पर ज़मी दूध मलाई छोड़ देती है।’ वे छत पर एक छिपकली को कीड़े की घात लगाये देख रहे थे।
उसी समय मोबाइल की रिंग बजी। अनिरुद्ध को पार्टी मुख्यालय से खबर मिली कि ‘उन्हें दक्षिण क्षेत्र से विधायक की टिकट मिल गई है, मुकाबला चुनौतीपूर्ण होगा, तैयारी में ढील न हो।,
तभी अनिरुद्ध ने निर्निमेष दृष्टि से छत पर देखा, छिपकली ने गर्दन उठाकर एक झटके में कीड़े को निगल अपनी क्षुधा शांत कर ली।
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “होती प्रीति की भावना…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
(डा. मुक्ता जीहरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख नीयत और नियति। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 253 ☆
☆ नीयत और नियति☆
“जिसकी नीयत अच्छी नहीं होती, उससे कोई महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध नहीं होता” जेम्स एलन का उक्त वाक्य अत्यंत कारग़र है, जो नीयत व नियति का संबंध प्रेषित करता है। इंसान की नीयत के अनुसार नियति अपना कार्य करती है और उससे परिणाम प्रभावित होता है। जिस भावना से आप कार्य करते हैं, वैसा ही कर्म फल आपको प्राप्त होता है। ‘कर भला, हो भला’, ‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे’ व ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ अर्थात् ‘जैसा कर्म करेगा, वैसा ही पल पाएगा इंसान’ पर प्रकाश डाला गया है। आप जो भी करते हैं, वही आपके पास लौट कर आता है – यह सृष्टि का अकाट्य सत्य है तथा इससे श्रेष्ठ कर्म करने का संदेश प्रेषित है। यह आकर्षण का सिद्धांत अर्थात् ‘लॉ आफ अट्रैक्शन’ है। जिसकी नीयत में खोट होता है, उससे किसी महत्वपूर्ण कार्य की अपेक्षा करना व्यर्थ है, क्योंकि वह कभी भी, किसी का अच्छा व हित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। लाओटर्स का यह कथन “ज्ञानी संचय नहीं करता। वह ज्यों-ज्यों देता है, त्यों-त्यों पाता है” अत्यंत सार्थक है। जितना आप सृष्टि अर्थात् यूनिवर्स में देते हैं, उससे कई गुना आपके पास लौट कर आता है। सो! ज्ञानी के भांति संचय मत कीजिए तथा प्रभु से प्रतिदिन प्रार्थना कीजिए कि प्रभु आपको दाता बनाए तथा आप निरंतर निष्काम कर्म करते रहें।
“जिस परिमाण में हम में ज्ञान, प्रेम तथा कर्म का मिलन होता है, उसी परिमाण में हमारे अंदर पूर्णता आती है।” टैगोर का यह कथन श्लाघनीय है। संपूर्णता पाने के लिए ज्ञान, प्रेम व कर्म का सामंजस्य आवश्यक है। प्रसाद जी “ज्ञान दूर, कुछ क्रिया भिन्न है/ इच्छा क्यों पूरी हो मन की/ एक दूसरे से मिल ना सके/ यह विडम्बना है जीवन की” में वे ज्ञान की महत्ता को दर्शाते हैं। यदि बिना पूर्व जानकारी के किसी कार्य को अंजाम दिया जाता है, तो हृदय की इच्छा कैसे पूर्ण हो सकती है? एकदूसरे की भावनाओं के विपरीत आचरण करना ही जीवन की विडम्बना है। टैगोर भी ज्ञान, प्रेम व कर्म के व्याकरण के संबंध में प्रकाश डालते हैं तथा इसे आत्मिक शांति पाने का साधन बताते हैं। डॉ• विद्यासागर “सच्चा सम्मान पद या धन से नहीं, मानवता व करुणा से आता है” के माध्यम से वे बुद्ध की करुणा व मानवतावादी भावना प्रकाश डालते हैं। मानव मात्र के प्रति करुणा, दया व सहानुभूति का भाव वह दैवीय गुण है, जो स्व-पर, राग-द्वेष व अपने-पराये के संकीर्ण भाव से ऊपर उठ जाता है, जो स्नेह, अपनत्व व सौहार्द का प्रतीक है; जिसमें सामीप्य व सायुज्य भाव निहित है। सत्कर्म मानव की नियति को बदलने की क्षमता रखते हैं।
मानव स्वयं अपना भाग्य विधाता है, क्योंकि हम निरंतर परिश्रम, लगन, दृढ़ निश्चय व आत्मविश्वास द्वारा अपनी तक़दीर अर्थात् भाग्य-रेखाओं को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। इंसान नियति को बदल सकता है, बशर्ते उसकी नीयत अच्छी व सोच सकारात्मक हो। ‘जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि’ अर्थात् जो हम देखते हैं, सोचते-विचारते हैं, वैसा ही हमें संसार दिखाई पड़ता है। इसलिए मानव को नकारात्मकता को त्यागने का संदेश प्रेषित किया गया है। यदि हम ऐसी सोच वाले लोगों के मध्य रहेंगे, तो सदैव तनाव में रहेंगे और एक दिन अवसाद-ग्रस्त हो जाएंगे। यदि हम कूड़े के ढेर के पास से गुजरेंगे, तो दुर्गंध आपकी मन:स्थिति को दूषित कर देगी और इसके विपरीत बगिया के मलय वायु के झोंके आपका हृदय को हर्षोल्लास से आप्लावित कर देंगे।
‘बुरी संगति से मानव अकेला भला’ के माधयम से मानव को सदैव अच्छे लोगों, मित्रों व पुस्तकों की संगति में रहने का संदेश दिया गया है, क्योंकि यह सब मानव को सुसंस्कृत करते हैं; हृदय की दूषित भावनाओं का निष्कासन कर सद्भावों, व सत्कर्मों करने को प्रेरित करते हैं। इसलिए मानव को बुरा देखने, सुनने व करने से दूर रहने का संदेश दिया गया है, क्योंकि मन बहुत चंचल है तथा दुष्कर्मों की ओर शीघ्रता से प्रभावित होता है। बुराइयाँ मनमोहक रूप धारण कर मानव को आकर्षित व पथ-विचलित करती हैं।
‘ब्रह्म सत्यं, जगत् मिथ्या’ अर्थात ब्रह्म सत्य है। हमारे लिए प्रभु पर विश्वास कर, उस राह पर चलना दुष्कर है, क्योंकि उसमें अनगिनत काँटे व अवरोध हैं; जिन्हें पार करना अत्यंत कठिन है। परंतु जगत् मिथ्या है और माया के प्रभाव से यह सत्य भासता है। इंसान आजीवन माया महाठगिनी के जाल से मुक्त नहीं हो पाता और सुरसा के मुख की भांति बढ़ती इच्छाओं के जाल में उलझा उनकी पूर्ति में मग्न रहता है। अंत में वह इस दुनिया को अलविदा कह रुख़्सत हो जाता है और यह उसकी नियति बन जाती है, जो उसे उम्र-भर छलती रहती है। मानव इसके जंजाल व प्रभाव से लाख प्रयत्न करने पर भी मुक्त नहीं हो पाता।
सो! नीयत अच्छी रखिए। अच्छा सोचिए, अच्छे कर्म कीजिए। नियति सदैव आपकी संगिनी बन साथ चलेगी; आपको निविड़ तम से बाहर निकाल सत्यावलोकन कराएगी तथा मंज़िल तक पहुँचाएगी। आप पंक में कमलवत् रह पाने में समर्थ हो सकेंगे। आगामी आपदाएं व बाधाएं आपकी राह को नहीं रोक पाएंगी और आप निष्कंटक मार्ग से गुज़रते हुए अपनी मंज़िल अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकेंगे। ‘यह दुनिया है दो दिन का मेला/ हर शख़्स यहाँ है अकेला/ तन्हाई संग जीना सीख ले/ तू दिव्य ख़ुशी पा जाएगा’ स्वरचित गीत की पंक्तियाँ मानव में एकांत में तन्हाई संग जीने का संदेश देती हैं, जो जीवन का शाश्वत् सत्य है। आपकी सोच, भावनाएं व मनोदशा सृष्टि में यथावत् प्रतिफलित होती है और नियति तदानुरूप कार्य करती है।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
संजय दृष्टि – समीक्षा का शुक्रवार # 17
हंसा चल घर आपने — कहानीकार-रजनी पाथरे समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज
पुस्तक का नाम- हंसा चल घर आपने
विधा- कहानी
कहानीकार-रजनी पाथरे
प्रकाशन- क्षितिज प्रकाशन, पुणे
प्रभावी और संवेद्य कहानियाँ☆ श्री संजय भारद्वाज
कहानी सुनना-सुनाना अभिव्यक्ति का अनादिकाल से चला आ रहा सुबोध रूप है। यही कारण है कि प्रकृति के हर चराचर की अपनी एक कहानी है। औपचारिक शिक्षा के बिना भी श्रवण और संभाषण मात्र से रसास्वाद के अनुकूल होने के कारण कहानी की लोकप्रियता सार्वकालिक रही है।
लोकप्रिय कहानीकार रजनी पाथरे के प्रस्तुत कहानी संग्रह ‘हंसा चल घर आपने’ की कहानियाँ कुछ मामलों में अपवादात्मक हैं। इस अपवाद का मूल संभवतः उस विस्थापन में छिपा है जिसे काश्मीरी पंडितों ने झेला है। अन्यान्य कारणों से विस्थापन झेलनेवाले अनेक समुदायों की कहानियाँ इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ हैं। इन समुदायों के विस्थापन में एक समानता यह रही कि इन्हें अपने देश की मिट्टी से दूर जाकर नए देश में आशियाना बसाना पड़ा। काश्मीरी पंडित ऐसे दुर्भाग्यशाली भारतीय नागरिक हैं जो पिछले लगभग तीन दशकों से अपने ही वतन में बेवतन होने का दंश भोग रहे हैं। पिछले वर्षों में स्थितियाँ कुछ बदली अवश्य हैं तथापि अभी लम्बी दूरी तय होना बाकी है।
यही कारण है कि काश्मीरी पंडित परिवार की कहानीकार का सामुदायिक अपवाद उनकी कहानियों में भी बहुतायत से, प्रत्यक्ष या परोक्ष दृष्टिगोचर होता है। इस पृष्ठभूमि की कहानियों में लेखिका की आँख में बसा काश्मीर ज्यों की त्यों कागज़ पर उतर आता है। घाटी के तत्कालीन हालात और क़त्लेआम के बीच घर छोड़ने की विवशता के बावजूद जेहलम, शंकराचार्य की पहाड़ी, दुर्गानाग का मंदिर, खिचड़ी अमावस्या, यक्ष की गाथा, अखरोट के पेड़, चिनार की टहनियाँ, बबा; गोबरा जैसे संबोधन, शीरी चाय, हांगुल, गुरन, कानुल साग, कहवा, चश्माशाही का पानी, काश्मीरी चिनान आदि को उनकी क़लम की स्याही निरंतर याद करती रहती है। विशेषकर ‘माइग्रेन्ट’, ‘मरु- मरीचिका’, ‘देवनार’, ‘पोस्ट डेटेड चेक’, ‘हंसा चल घर आपने’, ‘काला समंदर’ जैसी कहानियों की ये पृष्ठभूमि उन्हें प्रभावी और संवेद्य बनाती है।
स्त्री को प्रकृति का प्रतीक कहा गया है। स्त्री वंश की बेल जिस मिट्टी में जन्मती है और फिर जहाँ रोपी जाती है, उन दोनों ही घरों को हरा-भरा रखने का प्रयास करती है। यही कारण है कि रजनी पाथरे ने केवल अपने मायके की पृष्ठभूमि पर कहानियों नहीं लिखी हैं। ससुराल याने महाराष्ट्र की भाषा और संस्कृति भी उतनी ही मुखरता और अंतरंगता से उनकी कहानियों में स्थान पाती हैं।’ आजी का गाँव’, ‘जनाबाई’, ‘कमली’ जैसी कहानियाँ इसका सशक्त उदाहरण हैं।
स्त्री का मन बेहद जटिल होता है। उसकी थाह लेना लगभग असंभव माना जाता है। लेखिका की दृष्टि और अनुभव ‘कुँवारा गीत’, ‘नाम’ और ‘ज़र्द गुलाब’ के माध्यम से इन परतों को यथासंभव खोलते हैं। इस भाव की कहानियों की विशेषता है कि इनमें स्त्री को देवी या भोग्या में न बाँटकर मनुष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। स्त्री स्वतंत्रता या नारी विमर्श का नारा दिए बिना कहानीकार जटिल बातों को सरलता से प्रस्तुत करने का यत्न करती हैं। ‘नाम’ में यह जटिलता व्यापक रूप से उभरती है। ‘कुँवारा गीत’ यह संप्रेषित करने में सफल रहती है कि स्त्री को केवल शारीरिक नहीं अपितु मानसिक ‘ऑरगेज़म’ की भी आवश्यकता होती है।
स्त्री को केवल देह और उसकी देह को अपनी प्रॉपर्टी मानने की अधिकांश पुरुषों की मानसिकता को ‘परतें’ और ‘राजहंस’ कहानियाँ पूरी तल्ख़ी से सामने रखती हैं। ‘परतें’ में एक स्त्री के साथ विभाजन के दौरान हुआ बलात्कार अफगानिस्तान की नाजू के माध्यम से वैश्विक हो जाता है। युद्ध किसीका, किसीके भी विरुद्ध हो, उसका शिकार सदैव स्त्री ही होती है। ‘राजहंस’ रिश्तों की संश्लिष्टता की थोड़ी कही, खूब अनकही दास्तान है जो पाठक को भीतर तक मथकर रख देती है।
संग्रह की कहानियों में विषयों की विविधता है। सांप्रदायिकता की आड़ में आतंकवाद के शिकार अपने अपने पात्रों में लेखिका ने समुदाय भेद नहीं किया है। इन कहानियों को पढ़ते समय घाटी का सांप्रदायिक सौहार्द पूरी आत्मीयता से उभरकर आता है। स्त्री पात्रों के मन की परतें खोलने की प्रक्रिया में जहाँ कहीं तन का संदर्भ आया है, लेखिका की भाषा और बिंब शालीन रहे हैं। ‘बात का बतंगड़’ करने की वृत्ति के दिनों में ‘बतंगड़ से बात बनाने’ का यह अनुकरणीय उदाहरण है।
वातावरण निर्मिति की सहजता संग्रह की सभी कहानियों को स्तरीय बनाती है। कथानक का शिल्पगत कसाव और क्रमिक विकास कथ्य को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करता है। कहानियों में कौशल, त्वरा और वेग अनायास आए हैं। कथोपकथन समुचित उत्सुकता बनाए रखता है। अवांतर प्रसंग न होने से कहानी अपना प्रभाव बनाए रखती है। कहानियों के पात्र सजीव हैं। इन पात्रों का चित्रण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में हुआ है। पात्रों का अंतर्द्वंद्व कहानीकार और पाठक के बीच संवाद का सेतु बनाता है। देश काल का चित्रण कहानीकार की मूल संवेदना और भाव क्षेत्र से पढ़नेवाले का तादात्म्य स्थापित कराने में सफल है।
लेखन का अघोषित नियम है कि लिखनेवाला जब भी कलम उठाए, अमृतपान कराने के लिए ही उठाए। रजनी पाथरे के भीतर मनुष्योचित संवेदनाओं का यह अमृत प्रस्तुत कहानी संग्रह में यत्र-तत्र-सर्वत्र है। संग्रह की अंतिम कहानी ‘काला समंदर’ के अंत में हत्यारों के लिए भी ‘या देवी सर्वभूतेषु क्षमारूपेण संस्थिता’ का मंत्र मानो सारी कहानियों का सार है। विश्वास है कि पाठक इस अमृत के आस्वाद से स्वयं को तृप्त करेंगे। शुभं भवतु ।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – चलते रहिए…।
रचना संसार # 26 – गीत – चलते रहिए… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे ।)