हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 142 ☆ बाल गीत – धूप गुनगुनी ऊर्जा देती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 142 ☆

☆ बाल गीत – धूप गुनगुनी ऊर्जा देती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

दिन छोटे हैं , सर्दी आई

मौसम हमें सँवारे।

धूप गुनगुनी ऊर्जा देती

शीतल चाँद सितारे।।

 

सूरज जी प्राची में लिखते

स्वर्णिम – स्वर्णिम पाती।

गौरैया , बुलबुल भी मिलकर

मीठे गीत सुनाती।

 

काँव – काँव कौए जी गाएँ

साथी सदा पुकारे।

धूप गुनगुनी ऊर्जा देती

शीतल चाँद सितारे।।

 

सर्दी जी वर्दी – सी पहने

कोहरे की चादर में।

किरणों ने कोहरे को खाया

लगा सिसकने घर में।

 

खेल खेलता मौसम नित ही

दीखें नए नजारे।

धूप गुनगुनी ऊर्जा देती

शीतल चाँद सितारे।।

 

सदा मौसमी फल , सब्जी ही

सेहत रखती अच्छा।

आलस त्यागें, करें योग जो

तन की होती रक्षा।

 

जल्दी जगकर पढ़ें भोर में

वे बच्चे हैं प्यारे।

धूप गुनगुनी ऊर्जा देती

शीतल चाँद सितारे।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #143 ☆ संत  एकनाथ… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 143 ☆ संत  एकनाथ… ☆ श्री सुजित कदम ☆

भानुदासी कुळामध्ये

जन्मा आले एकनाथ

जनार्दन स्वामी गुरु

शिरी गुरुकृपा हात.! १

 

दत्त दर्शनाचा योग

देवगिरी सर्व साक्षी

तीर्थाटन करूनीया

आले पैठणच्या क्षेत्री..!२

 

अध्यात्माची कीर्तंनाची

एकनाथा होती ओढ

अध्ययन पुराणांचे

शास्त्र अध्यात्माची जोड…! ३

 

नाथ आणि गिरिजेचा

सुरू जाहला संसार

गोदा,गंगा, आणि हरी

समाधानी परीवार…. ! ४

 

साडेचार चरणात

एकनाथी ओवी साज

स्फुट काव्य गवळण

दिला आख्यानाचा बाज…! ५

 

गेय पद रचनेत

एकनाथी काव्य कला

सुबोधसा भाष्यग्रंथ

भागवती वानवळा..! ६

 

शब्द चित्रे कल्पकता

एकनाथी व्यापकता

धृपदांची वेधकता

लोककाव्य विपुलता..! ७

 

एकनाथी साहित्याने

दिलें विचारांचे धन

गुरूभक्ती लोकसेवा

समर्पिले तन मन…! ८

 

नाट्यपुर्ण कथा काव्य

वीररस विविधता

भारुडाच्या रचनेत

सर्व कष वास्तवता…! ९

 

बोली भाषेतून केले

भारूडाचे प्रयोजन.

लोकोद्धारासाठी केला

अपमान  ही सहन…! १०

 

ईश्वराचे नाम घेण्या

नको होता भेदभाव

एकनाथी रूजविले

शांती, भक्ती, हरिनाम. ..! ११

 

नाना ग्रंथ निर्मियले

लाभे हरी सहवास.

विठू, केशव, श्रीखंड्या

नाथाघरी झाला दास. .! १२

 

भागवत भक्ती पंथ

बहुजन संघटित

शास्त्र आणि समाजाची

केली घडी विकसित…! १३

 

दत्तगुरू द्वारपाल

नाथवाडी प्रवचन

देव आले नाथाघरी

नाथ देई सेवामन…! १४

 

केले लोक प्रबोधन

प्रपंचाचे निरूपण.

सेवाभावी एकनाथ

भक्ती, शक्ती समर्पण. ! १५

 

शैली रूपक प्रचुर

मराठीचा पुरस्कार

कृष्ण लिला नी चरीत्र

भावस्पर्शी आविष्कार…! १६

 

रामचरीत्राचा ग्रंथ

महाकाव्य रामायण

पौराणिक आख्यायिका

जनलोकी पारायण…! १७

 

एकनाथी भागवत

नाथ करूणा सागर

एकनाथी साहित्यात

लोक कलेचे आगर…! १८

 

राग लोभ मोह माया

नाही मनी लवलेश

खरे अध्यात्म जाणून

अभ्यासला परमेश…! १९

 

नाथ कीर्तनी रंगल्या

गवळणी लोकमाता.

समाधीस्त एकनाथ

कृष्ण कमलात गाथा. ..! २०

 

वद्य षष्ठी फाल्गुनाची

नाथ षष्ठी पैठणची

सुख,शांती,धनसौख्य

नाथ कृपा सौभाग्याची..! २१

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – चिरयौवन – कवी अज्ञात ☆ प्रस्तुती सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते ☆

सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– चिरयौवन – कवी अज्ञात ? ☆ प्रस्तुती – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

भल्या पहाटे दारावरती

कुणी न कळे केली टकटक

 उत्सुकतेने दार उघडले

कुणी पाहुणा येई अचानक

निमिषातच मज कळून चुकले

 वार्धक्यच ते होते माझे

वेळेवरती येणे त्याचे

पण मी तर बेसावध होते.

घरात घुसण्या पुढे सरकले

जेव्हा त्याचे अधीर पाऊल

वाट अडवूनी उभी राहिले

विनवीत त्याला होऊन व्याकूळ

‘अजून आहे बराच अवधी

उगा अशी का करीशी घाई?

हसून म्हणाले, पुरेत गमजा’

ओळखतो मी तव चतुराई !’

‘अरे, पण मी अजून नाही

जगले क्षणही माझ्यासाठी

व्याप ताप हे संसाराचे

होते सदैव माझ्यापाठी

एवढ्यात तर मिळे मोकळिक

मित्रमंडळी जमली भवती

ज्यांच्यासाठी ज्यांच्यामध्ये

सदा रहावे असे सोबती!

मित्रांचे अन् नाव ऐकता

दोन पावले मागे सरले

हर्ष नावरे वार्धक्याला

जाता जाता हसून म्हणाले,

‘मित्रांसाठी जगणार्‍याला

मी कधीही भेटत नाही.

वय वाढले जरी कितीही

अंतरी त्याच्या चिरयौवन राही.!!

कवी – अज्ञात

प्रस्तुती – सौ.वंदना अशोक हुळबत्ते

संपर्क – इंदिरा अपार्टमेंट बी-१३, हिराबाग काॅनर्र, रिसाला रोड, खणभाग, जि.सांगली, पिन-४१६  ४१६

मो.९६५७४९०८९२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #164 – सूरज को हो गया निमोनिया…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “सूरज को हो गया निमोनिया…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #164 ☆

सूरज को हो गया निमोनिया…

सूरज को हो गया निमोनिया

जाड़े की बढ़ गई तपन

शीत से सिहरते साये

धूप पर चढ़ी है ठिठुरन।

 

शीत लहर का छाया है कहर

सन्नाटे में खोया है शहर

अंबर के अश्रु ओस बूँद बने

बहक रहे शब्द और लय बहर,

 

थकी थकी रक्त शिराएँ बेकल

पोर-पोर मची है चुभन

धूप पर चढ़ी है ठिठुरन।

 

सिकुड़े-सिमटे तुलसी के पत्ते

अलसाये मधुमक्खी के छत्ते

हाड़ कँपाऊ ठंडी के डर से

पहन लिए ऊनी कपड़े-लत्ते,

 

कौन कब हवाओं को रोके सका

चाहे कितने करें जतन

धूप पर चढ़ी है ठिठुरन।

 

अहंकार बढ़ गया अंधेरे का

मंद तापमान सूर्य घेरे का

दुबके हैं देर तक रजाई में

नहीं रहा मान शुभ-सबेरे का,

 

मौसम के मन्सूबों को समझें

दिखा रहा तेवर अगहन

धूप पर चढ़ी है ठिठुरन।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 64 – राजनीति… भाग – 3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  आलेख  “राजनीति…“।)   

☆ आलेख # 64 – राजनीति  – 3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

राजनीति का ये तीसरा दौर, अधिनायकवादी सोच याने, तानाशाही जिसका परिष्कृत नाम “तंत्र को लोक और प्रजा से दूर करना है” के नाम हो जाता है. अगर राजनीति के दूसरे दौर को हम सिद्धांतों से जुड़े “वाद” याने पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद के अनुसार परिभाषित करें तो ये तीसरा दौर तंत्र और यंत्र से प्रभावित और प्रदूषित होता है. ये यंत्र अर्थात षडयंत्रों, और तंत्र याने खुद सब कुछ पाने के नाम पर तकनीक  दुरुपयोग का दौर है जो अक्सर इसलिए काम में आता है कि सत्ताभिलाषी और सत्तापरस्त अपने अपने प्रतिद्वंद्वियों की मिट्टीपलीद कर सके और उनको वो बना दे जो वे होते नहीं हैं. ये भी राजनीति की एक विधा है जो मेकअप, मेकओवर, इमेज बिल्डिंग और नेगेटिव इमेजिंग के आधार पर अपने आका की बुलंद इमारत खड़ी करती है. ये रावणों का वह दौर होता है जब सामान्य से दस गुनी बुद्धि और दसों दिशा के बराबर विज़न होने की क्षमता होने के बावजूद, व्यक्ति आत्मकेंद्रित होने की पराकाष्ठा प्राप्त करता है. इस तीसरे दौर में जब त्याग, सामाजिक सरोकार और बहुजन हिताय जैसे गुण सिर्फ शब्द बन जाते हैं तो व्यक्तित्व से आकर्षण, विश्वसनीयता और प्रबल आत्मविश्वास गायब हो जाते हैं. निस्वार्थ जनसेवा के नायक कब कुर्सीपरस्त खलनायक बन जाते हैं, पता नहीं चलता. जनता जो अब उनके वोट बैंक बन जाते हैं, हमेशा सपनों का झूला झुलाकर भ्रमित किये जाते हैं.

राजनीति का ये तीसरा दौर बहुत घातक होता है जब विकल्पहीनता के कारण सत्ताभिलाषी वंशवाद, तुष्टिकरण, सांप्रदायिकता और विभाजनकारी सोच प्रश्रय पाते हैं, फलते फूलते हैं. ये अपने अपने वोटबैंक को “मीरा की भक्ति से परे पर फिर भी मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई” के भाव में उलझा कर रखते हैं. सवाल हर बार यही होता है कि एक सौ तीस प्लस करोड़ के जम्बो जनसंख्या के इस देश में क्या 13000+ लोग ऐसे नहीं आ सकते जो राजनीति को गरिमामय बना सकें. हमें अवतारों की जरूरत न पहले कभी थी, न है और न ही आगे रहेगी, हम तो ऐसे लोग खोजते हैं. जो हमारे सपनों को नहीं बल्कि हमारी हकीकतों को ऐड्रेस कर सकें.

हम याने हम भारत के लोग, अपने में से ही हमेशा ऐसा विश्वस्त नेतृत्व चाहते हैं जो हमें निश्चिंत नहीं बल्कि हमेशा जागरूक करे. हमें रॉबिनहुड नहीं चाहिए, हमें धर्मात्मा या महात्मा नहीं चाहिए. शायद ये हममें से बहुत लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता हो. राजनीति के इस विश्लेषणात्मक समीक्षा के दौरान मैं अपने उन अश्रुमय पलों को कैसे भूल सकता हूँ जो वर्ष 2011 में सेल्युलर जेल, (पोर्टब्लेयर) के भ्रमण के दौरान आये. न जाने कैसे लोग थे वे, जो अपने वतन की आज़ादी के सपनों पर, अपने जीवन को कुर्बान कर बैठे. क्या वो प्रेक्टिकल नहीं थे, बेशक वो देशभक्त थे पर इस देशभक्ति की जो कीमत उन्होंने अदा की, हमारे आज के कितने राजनेता उस आज़ादी के बाद, जिसका सपना उन क्रांतिकारियों ने देखा था, कर पाये.वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है पर उच्च मापदंडों का बदलना कभी भी सही नहीं होता.

वैसे तो ये इस श्रंखला का समापन भाग है पर कहानी का और अपेक्षाओं का अंत नहीं.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 34 – भाग 3 – ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 34 – भाग 3 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ✈️

अमरनाथला जाणाऱ्या यात्रेकरूंसाठी पहलगाम इथे खूप मोठी छावणी उभारलेली आहे. यात्रेकरूंची वाहने इथपर्यंत येतात व मुक्काम करून छोट्या गाड्यांनी चंदनवाडीपर्यंत जातात. तिथून पुढे अतिशय खडतर, एकेरी वाटेने श्रावण पौर्णिमेच्या यात्रेसाठी लक्षावधी भाविक सश्रद्ध अंतकरणाने पदयात्रा करतात. हिमालयाच्या गूढरम्य पर्वतरांगांमध्ये उत्पत्ती, स्थिती आणि लय या आदिशक्तींची अनेक श्रध्दास्थाने आपल्या प्रज्ञावंत पूर्वजांनी फार दूरदृष्टीने उभारलेली आहेत.(चार धाम यात्रा, अमरनाथ, हेमकुंड वगैरे ). हे अनाघ्रात सौंदर्य, ही निसर्गाची अद्भुत शक्ती सर्वसामान्य जनांनी पहावी आणि यातच लपलेले देवत्व अनुभवावे असा त्यांचा उद्देश असेल का? श्रद्धायुक्त पण निर्भय अंतःकरणाने, मिलिटरीच्या मदतीने, अनेक उदार दात्यांच्या भोजन- निवासाचा लाभ घेऊन वर्षानुवर्षे ही वाट भाविक चालत असतात.

सकाळी उठल्यावर पहलगामच्या हॉटेलच्या काचेच्या खिडकीतून बर्फाच्छादित हिमशिखरांचे दर्शन झाले. नुकत्याच उगवलेल्या सूर्यकिरणांनी ती शिखरे सोन्यासारखी चमचमत होती. पहलगाम येथील अरु व्हॅली, बेताब व्हॅली, चंदनवाडी, बैसरन म्हणजे चिरंजीवी सौंदर्याचा निस्तब्ध, शांत, देखणा आविष्कार! बर्फाच्छादित पर्वतरांगांमधील सुरू, पाईन, देवदार, फर, चिनार असे सूचीपर्ण, प्रचंड घेरांचे वृक्ष गारठवणाऱ्या थंडीत, बर्फात आपला हिरवा पर्णपिसारा सांभाळून तपस्वी ऋषींप्रमाणे शेकडो वर्षे ताठ उभी आहेत. दाट जंगले,  कोसळणारे, थंडगार पांढरे शुभ्र धबधबे आणि उतारावर येऊन थबकलेले बर्फाचे प्रवाह. या देवभूमीतले  सौंदर्य हे केवळ मनाने अनुभवण्याचे आनंदनिधान आहे.

पहलगामला एका छोट्या बागेत ममलेश्वराचे (शंकराचे) छोटे देवालय आहे. परिसर बर्फाच्छादित शिखरांनी वेढलेला होता. शंकराची पिंडी नवीन केली असावी. त्यापुढील नंदी हा दोन तोंडे असलेला होता. आम्ही साधारण १९८० च्या सुमारास काश्मीरला प्रथम आलो होतो. त्या वेळेचे काश्मीर आणि आजचे काश्मीर यात जमीन- अस्मानाचा फरक जाणवला. सर्वत्र शांतता होती पण ही शांतता निवांत नव्हती. खूप काही हरवल्याचं, गमावल्याचं  दुःख अबोलपणे व्यक्त करणारी, अविश्वास दर्शविणारी ,  संगिनींच्या धाकातली, अबोलपणे काही सांगू बघणारी ही कोंदटलेली उदास  शांतता होती.

श्रीनगर भाग ३ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 64 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 64 – मनोज के दोहे 

1 चाँदनी

रात चाँदनी में मिले, प्रेमी युगल चकोर।

प्रणय गीत में मग्न हो, नाच उठा मन मोर।।

2 स्वप्न

स्वप्न देखता रह गया, लोकतंत्र का भोर।

वर्ष गुजरते ही गए,मचा हुआ बस शोर।।

3 परीक्षा

घड़ी परीक्षा की यही, दुख में जो दे साथ।

अवरोधों को दूर कर, थामें प्रिय का हाथ।।

4 विलगाव

घाटी के विलगाव में, कुछ नेतागण लिप्त।

उनके कारण देश यह, भोग रहा अभिशप्त ।।

5 मिलन

प्रणय मिलन की है घड़ी, गुजरी तम की रात।

मिटी दूरियाँ हैं सभी, नेह प्रेम की बात।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 187 ☆ आलेख – गूगल मैप को हमारे मोबाइल ही बताते हैं ट्रैफिक रश की जानकारी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेख  – गूगल मैप को हमारे मोबाइल ही बताते हैं ट्रैफिक रश की जानकारी

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 187 ☆  

? आलेख – गूगल मैप को हमारे मोबाइल ही बताते हैं ट्रैफिक रश की जानकारी ?

यदि भगवान राम के समय मोबाइल होते तो शायद सीता माता का हरण ही नहीं होता। आज गूगल मैप हम आप की ऐसी जरूरत बन चुका है जिसके साथ हम अनजान पते पर भी आत्म विश्वास और सहजता से पहुंच जाते हैं। पर क्या आपको पता है कि आखिर गूगल को लाइव ट्रैफिक की इतनी सटीक जानकारी मिलती कैसे है?

 दुनियां भर में क्या सड़को पर ट्रैफिक की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कोई गूगल डिवाइस लगाई गई है, पर ऐसा नहीं है। किंतु हर वक्त आपको गूगल मैप लाइव ट्रैफिक की सटीक जानकारी से अपडेट कराता है। अब आप सोच सकते है कि ऐसा सैटेलाइट की मदद से किया जाता है। लेकिन यह भी सही नही है। सच तो यह है की हमांरे मोबाइल ही गूगल सर्च इंजन को यह जानकारी देते हैं, जिसे समुचित तरीके से एनालाइज और स्टोर करके गूगल मैप हम को विश्व के मानचित्र पर हर गली हर स्थान की ट्रैफिक स्तिथि बताता है। आपके एंड्राइड और iOS यूजर की लोकेशन को गूगल लगातार ट्रैस करता रहता है। Google को रोड के जिस हिस्से में ज्यादा मोबाइल फोन की लोकेशन मिलती है, उस जगह को Google ट्रैफिक जाम के तौर पर मार्क कर देता है और उस खास जगह को रेड कलर के साथ मार्क कर देता है, जिससे लोगों को लाइव ट्रैफिक की जानकारी मिलती है। मतलब यदि फेक ट्रैफिक रश दिखाना हो तो एक ट्रक में ढेर से मोबाइल रखकर गूगल सर्च इंजिन को हम धोखा दे सकते हैं। लाइव मोबाइल्स के अतिरिक्त  कई अन्स सोर्स से भी गूगल लाइव ट्रैफिक की जानकारी हासिल करता है। इसमें गूगल मैप कम्यूनिटी भी है।मतलब सामूहिक ज्ञान  का सर्वजन हिताय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उपयोग है गूगल मैप, जो समय की आवश्यकता बन चुका है। आने वाले समय में  त्रिआयामी चित्र गूगल मैप को और भी सकारात्मकता देंगे यह तय है।

 © विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 16 – लकड़ी उपयोग ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “  परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 156– लकड़ी उपयोग ☆ श्री राकेश कुमार ☆

कुछ दशक पूर्व रेल यात्रा के द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए मानव जीवन में लकड़ी के उपयोग के बारे में जन्म से अंतिम यात्रा तक की महत्ता पर आधारित “रेल गायक” से इस बाबत गीत सुना था। हमारे देश में तो अब लकड़ी के स्थान पर अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो चुकी है। हो सकता है, आने वाले समय में  लकड़ी को बैंक लॉकर में भी सुरक्षित ही रखा जा सकता हैं।

अमेरिका में लकड़ी का सर्वाधिक उपयोग किया जाता हैं। घर के आंगन, बगीचे आदि में लकड़ी का फर्नीचर बारह माह गर्मी, वर्षा और बर्फबारी को सह लेता हैं। घरों की सीमांकन दीवार भी लकड़ी की ही बनती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर भी फर्नीचर पूर्णतः लकड़ी निर्मित होता है।

विगत दिन एक श्वान को बिजली के खंबे के पास देखा तो ध्यान देने पर पता चला कि बिजली का बीस फुट से लंबा खंबा भी लकड़ी का ही हैं। एक दम सीधे और सपाट पेड़ों का प्रयोग किया जाता हैं। निजी घर में भी दीवारें, सीढियां, छत सब कुछ लकड़ी से निर्मित हैं।

भोजन बनाते समय विद्युत या गैस का ही उपयोग होता हैं। प्रकृति के संसाधन का उचित प्रबंधन से ही यहां लकड़ी की बहुतायत हैं। साठ के दशक में  जबलपुर शहर के घरों में लकड़ी के उपयोग से “जाफरी नुमा” डिजाइन का उपयोग किया जाता था, यहां उसके दीदार साधारण सी बात हैं। हमारे देश में भी संसाधनों की कमी नहीं थी, परंतु जनसंख्या नियंत्रण में असफल होने के कारण हम बहुत कुछ गवां बैठे हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 147 – मिलती हर दुआ… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता “मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 147 ☆

🌺कविता 🥳 मिलती हर दुआ… 🥳

 🌹

जिन्दगी जीना आसान नहीं होता,

बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता।

 🌹

चुगली के बिना कोई बात नहीं होती,

  बिना बात के चुगली खास नहीं होती।

🌹

बाग का हर पुष्प गुलाब नहीं होता,

और हर गुलाब लाजवाब नहीं होता।

 🌹

मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती,

वर्ना इतनी दुआ फकीर नहीं होती।

🌹

हर चेहरा कुछ न कुछ खास होता है,

चेहरे के पीछे चेहरा छिपा होता है।

🌹

सूखे फूल किताबों में मिला करते,

अब किताबें माँग कर पढता कौन हैं।

🌹

सच्चे प्रीत की मिसाल बना करती हैं,

लिव इन रिलेशन सिर्फ सौदे होती हैं।

🌹

कहते हैं प्रेम उधार की कैची है,

आज प्रेम बाँटना कौन चाहता है।

🌹

काँटा चुभने पर बनतीं प्रेम कहानी है,

आज पगडंडियों पर चलता कौन हैं।

🌹

कभी दादा की छड़ी बन पोता चलता है,

अब परिवार में क्या दादा कोई बनता है।

🌹

ठहाके छोड़ आए कच्चे मकानों में हम,

रिवाज इन पक्के छतों में मुस्कुराने का है।

🌹

लिख लिख कर कर दस्तखत बनाएं हम,

कमबख्त जमाना बदल के अंगूठे पे आ गया।

🌹

हौसले को देखे गुगल से मिले ज्ञान,

नौ साल का बच्चा समझे अपने को जवान।

🌹

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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