मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

गोदावरी तीरावर

गंगाखेड जन्मगाव

दमा करूंडाची लेक

जनाबाई तिचे नाव. . . . ! १

 

दामाशेट शिंप्याकडे

जीवनास घाली टाके

झाली नामयाची  दासी

सार्थ अभिमान दाटे. . ! २

 

ओवी आणि अभंगात

जनाबाई जाणवते

घरा घरातली बाई

पहा दळण दळते…! ३

 

वात्सल्याची जणू ओवी

त्यागी, समर्पण वृत्ती

पूर्ण निष्काम होऊनी

विठू रूजविला चित्ती. . . . ! ४

 

तत्कालीन संतश्रेष्ठ

अभंगात आलंकृत

संत जीवन आढावा

काव्य पदी सालंकृत….! ५

 

प्रासादिक संकीर्तन

कधी देवाशी भांडण

संत जनाबाई करी

सहा रिपूंचे कांडण…! ६

 

संत सकल गाथेत

ओवी अभंगाचे देणे

संत जनाबाई जणू

काव्य शारदेचे लेणे…! ७

 

जनाबाई अभंगांने

मुक्तेश्वरा मिळे स्फूर्ती

भाव भावना निर्मळ

साकारती भावमूर्ती…! ८

 

बोली भाषा ग्रामस्थांची

जनाबाई वेचतसे

विठू तुझ्या दालनात

सुख दुःख सांगतसे….! ९

 

साडे तीनशे अभंग

कृष्णजन्म थाळीपाक

प्रल्हादाच्या चरीत्राने

दिली  ईश्वराला हाक. . . . ! १०

 

हरीश्चंद्र आख्यानाचा

आहे  आगळाच ठसा

बालक्रीडा अभंगात

जना पसरते पसा. . . . ! ११

 

द्रौपदीचे स्वयंवर

अभंगाने दिली कीर्ती

मुक्तेश्वर नाथनातू

तया लाभली रे स्फूर्ती. . . . ! १२

 

नामदेव गाथेमध्ये

जनाबाई एकरूप

अभंगात  भक्तीभाव

विठ्ठलाचे निजरूप.. . ! १३

 

परमार्थ वेचियेला

संत विचारांचा ठेवा

नामदेवा केले गुरू 

केली पांडुरंग सेवा …! १४

 

आषाढाची त्रयोदशी

पंढरीत महाद्वारी

समाधीस्त झाली जना

करे अंतरात वारी…! १५

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #163 – है सब कुछ अज्ञात… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “है सब कुछ अज्ञात……”। )

☆  तन्मय साहित्य  #163 ☆

☆ है सब कुछ अज्ञात…

फिर से नया वर्ष इक आया

है सब कुछ अज्ञात

न जाने क्या सँग में

सौगातें  लाया।

 

विपदाओं की करुण कथाएँ

बार-बार स्मृतियों में आये

बिछुड़ गए जो संगी-साथी

कैसे उनको हम बिसराएँ

है अनुनय कि विगत समय की

पड़े न तुम पर काली छाया

 फिर से नया वर्ष……..।

 

स्वस्ति भाव उपकारी मन हो

बढ़े परस्पर प्रेम सघन हो

हर दिल में उजास तुम भरना

सुखी सृष्टि, हर्षित जन-जन हो

नहीं विषैली बहे हवाएँ

रहें निरोगी सब की काया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

सद्भावों की सरिता अविरल

बहे नेह धाराएँ निर्मल

खेत और खलिहान धान्यमय

बनी रहे सुखदाई हलचल

स्वागत में नव वर्ष तुम्हारे

 

आशाओं का दीप जलाया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

विश्वशांति साकार स्वप्न हों

नव निर्माणों के प्रयत्न हों

देवभूमि उज्ज्वल भारत में

नये-नये अनमोल रत्न हों

अभिनंदन आगत का है

आभार विगत से जो भी पाया

फिर से नया वर्ष ……..।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 51 ☆ गीत – नव वर्ष मुबारक हो… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत “नव वर्ष मुबारक हो…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 51 ✒️

?  गीत – नव वर्ष मुबारक हो…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

पाहुने नव वर्ष

तुम आते हो प्रति वर्ष ।

बारह माह रह कर

चले जाते हो सहर्ष।।

 

फ़िर मानव वर्ष भर का

करता है लेखा-जोखा ।

कितना पाया सत्य

और कितना पाया धोखा।।

 

पिछले वर्ष ने हमें

झकझोर कर रख दिया ।

एक के बाद एक छति को

क्रियान्वित कर दिया।।

 

जाओ अतिथि अब

बहुत हो गया अहित ।

अतीत के क्रूर दृश्यों से

हृदय अब तक है व्यथित।।

 

स्थान करो रिक्त ताकि

नवागंतुक के स्वागत का ।

पांव – पखार टीका वंदन

सब करें तथागत का।।

 

हे बटोही आगामी वर्ष के

तुम कर्मयोगी बन कर आओ ।

देश की मां बहनों की

अस्मत लुटने से बचाओ ।।

 

छोटी दूधमुहीं

बच्चियां ना हो तार तार ।

निरीह माताएं

ना रोयें अब ज़ार ज़ार ।।

 

हे सृजन करता हो सके तो

यमदूत बनके आओ ।

मदिरा अपराध भ्रष्टाचार

बलात्कार को लील जाओ।।

 

आतंकवाद भाषावाद धर्मवाद

सांप्रदायिकता का करो अंत ।

ऐसा सुदर्शन चलाओ

मिटें सारे पाखंडी संत ।।

 

शिक्षा , संस्कार , मूल्य ,

ईमानदारी की हो स्थापना ।

हर युवा करें माता-पिता

एवं बुज़ुर्गों की उपासना ।।

 

जनता मिटा दे राजनीति

के झूठे व गंदे खेल ।

हिंदू-मुस्लिम सभी धर्मों की

संस्कृतियों का हो जाए मेल।।

 

भारत मां का रक्त से

करो श्रंगार टीका वंदन ।

कन्याओं के जन्म पर

हो उनका शत-शत अभिनंदन ।।

 

हे प्रिय नवागंतुक

तब लगेगा नववर्ष आया।

तुम्हारे स्वागत में हमने

पलक पांवड़ों को है बिछाया ।।

 

सलमा सभी को मुबारक

आया हुआ यह नूतन वर्ष ।

अंधेरों से निकलो दोस्तो

प्रकाश में नहाकर मनाओ हर्ष ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 63 – राजनीति… भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  आलेख  “राजनीति…“।)   

☆ आलेख # 63 – राजनीति  – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

राजनीति के दूसरे दौर में जो कुछ हद तक प्रारंभिक लक्ष्यप्राप्ति से प्रभावित था, इसे बदलाव का बहुत बड़ा कारक समय बना. जब सफलता की पुष्पमालाओं से सज्जित यात्रा, कर्मठता और निरंतरता से दूर जाने लगे तो ऐसी राजनीति का पहला पड़ाव हमेशा उपेक्षित नैतिकता ही होती है.

नेतृत्व जब सफलता के जश्न के शोर में अंतरात्मा की आवाज सुनने में चूकने लगे तो ये निमंत्रण होता है सामयिक बदलाव का जिसमें सभी प्रभावित होते हैं. इस बदलाव को जो पहचान लेते हैं वो सतर्क होकर बढ़ जाते हैं पर अधिकांश प्रारंभिक सफलता के मायाजाल में उलझ जाते हैं जैसे कि बालि वध के बाद सुग्रीव सब भूलकर राजरंग में मगन हो गये थे और अपने मित्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी विस्मृत कर गये थे. भ्राता लक्ष्मण और हनुमान हर युग में, हर दौर में नहीं मिलते जो पथभ्रष्ट राजा को सही मार्ग दिखा सकें. हो सकता है कि नेतृत्व के नैसर्गिक गुण के पैकेज में आत्मविश्लेषण नहीं आता हो या फिर प्रारंभिक सफलता के बाद आत्मविश्लेषण क्षमता में कमी आती हो, पर कारण जो भी हो यह तो तय है कि बदलाव तो आते ही हैं और नजरअंदाज भी होते हैं. सफल होने का एहसास नेतृत्व और सहयोगियों दोनों के नजरिए में बदलाव लाता है, अब कुछ देने और कुछ करने के अलावा कुछ पाने की नैसर्गिक भावना भी प्रविष्ट होती है.

असीमित अनंत में मानवक्षमतायें कहीं न कहीं सीमित होती ही हैं. अगर व्यक्ति के माइंड सेट में कुछ आ रहा है तो उसके लिए जगह खाली करने वाले तत्व या जीवनमूल्य भी होते हैं जो “त्याग, और निर्मोह “ही होते हैं. बहुजन हिताय के साथ साथ स्वयं और फिर स्वजन हिताय की दिशा में सोच बदलती है. शायद इसीलिये ही “Power corrupt leader and absolute power corrupt absolutely” जैसी लोकोक्ति चलती है. अमृत पाने की लालसा देवों में भी थी और असुरों में भी.

तो राजनीति इस दूसरे दौर में कर्मठता की जगह लालसा प्रबल होती जाती है. “हमने हर दौर में नेताओं को बदलते देखा, जो दिया करते थे बहुत कुछ सबको, उनको अक्सर ही कुछ लिये देखा”. राजनीति के इस दूसरे दौर में, सुधार और बदलाव की बयार के नाम पर उभरा नेतृत्व यथास्थिति को बरकरार करने में लगा रहता है. ये स्थिति और ये मनोस्थिति शायद अपरोक्ष रूप से नेतृत्व की अगली पीढ़ी के अंकुरित होने की संभावना भी बलवती करती है. जनमानस की असंतुष्टि, नेतृत्व की अगली पीढ़ी के लिये खाद का काम करती है. पहले दौर की निष्ठा, त्याग और सेवाभावना के बाद दूसरे दौर में लालसा और कुछ पाने कमाने की चाहत तो होती है पर नैतिकता बरकरार रहती है और नेतृत्व की आदत में शालीनता और सहजभाव बना रहता है. राजनीति के अगले दौर में आगाज होता है षडयंत्रों का.

राजनीति के इस तीसरे दौर की समीक्षा अगले चरण में

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 163 ☆ मनी दाटे हूरहूर ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 163 ?

☆ मनी दाटे हूरहूर ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

 

पक्षी जाता दूरदूर

मनी दाटे हूरहूर

 

चार दिसांसाठी येती

आणि उडुनिया जाती

 

लेक सून नातवंड

स्रोत प्रीतीचे अखंड

 

दूरदेशी राहण्यास

परी नित्य आसपास

 

   असो सुखात कुठेही

मोकळ्या या दिशा दाही

 

विस्तारल्या कक्षा आणि

   घरोघर ही कहाणी

 

मायबाप मायदेशी

पिले उडती आकाशी

 

असे क्षेम  दोन्ही कडे

आनंदच चोहिकडे

 

परी वाटे हूरहूर

परतून जाता दूर

© प्रभा सोनवणे

(३ जानेवारी २०२२)

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग 2 – ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग 2 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ✈️

वेरीनाग इथल्या निर्झरातून झेलमचा उगम होतो. ‘श्री’ च्या आकारात वाहणाऱ्या झेलमच्या दोन्ही तीरांवर श्रीनगर वसले आहे. श्रीनगरमध्ये फिरताना सफरचंद आणि अक्रोड यांचे पर्णहीन वृक्ष दिसत होते.  बदाम, जरदाळू यांची एकही पान नसलेली सुंदर मऊ पांढऱ्या मोतीया आणि गुलाबी रंगाच्या फुलांनी डवरलेली झाडे दिसत होती. लांबवर पसरलेली मोहरीची शेतं हळदी रंगाच्या फुलांनी डोलत होती तर अजून फुलं न आलेली शेतं काळपट हिरव्या रंगाची होती. थंडी खूपच होती.पायघोळ झग्याआड पोटाशी शेगडी घेऊन जाणारे स्त्री- पुरुष दिसत होते. सर्वत्र तणावपूर्ण शांतता जाणवत होती. रस्तोरस्ती लष्कराची वाहने आणि बंदूकधारी जवान मनातल्या अस्वस्थतेत भर घालीत होती. दुकानांमध्ये कलिंगडे, संत्री, केळी, कमलकाकडी, इतर भाज्या दिसत होत्या. कहावा किंवा कावा या काश्मिरी स्पेशल चहाची दुकाने जागोजागी होती. अस्सल काश्मिरी केशराच्या चार काड्या आणि दालचिनीच्या तुकडा असं उकळत ठेवायचं. त्यात साखर घालायची. एका कपाला एक सोललेला बदाम जाडसर कुटून घालायचा आणि त्यावर केशर दालचिनीचे उकळते मिश्रण ओतायचं. झाला कहावा तयार!

गाईडने दिलेल्या या माहितीमुळे ‘कावा’ पिण्याची इच्छा झाली पण बस मध्येच थांबविणे अशक्य होते.

जहांगीरच्या काळात साधारण चारशे वर्षांपूर्वी निशात बाग, शालीमार बाग, व चष्मेशाही अशा सुंदर बागा बांधण्यात आल्या. तळहाताएवढ्या सुगंधी गुलाबाच्या फुलांचा हंगाम अजून सुरू झाला नव्हता, पण वृक्षांसारखे झाड बुंधे असलेली गुलाबाची झाड लालसर पानांनी बहरून फुलण्याचा तयारीत होती. उंचावरून झऱ्यासारखे वाहणारे पाणी पायऱ्या- पायऱ्यांवरून घरंगळत होते. मध्येच कमळाच्या आकारातली दगडी कारंजी होती. सगळीकडे दुरुस्तीची कामे मोठ्या प्रमाणावर चालू होती.

चष्मेशाहीमध्ये मागच्या पीर- पांजाल पर्वतश्रेणीतून आलेले झऱ्याचे शुद्ध पाणी आरोग्यदायी असल्याचे सांगण्यात आले. डेरेदार काळपट- हिरव्या वृक्षांना चोचीच्या आकाराची पांढरी फुले लटकली होती. ती नासपतीची झाडे होती.  हिरवा पर्णसंभार असलेली मॅग्नेलियाची (एक प्रकारचा मोठा सुगंधी चाफा ) झाडे फुलण्याच्या तयारीत होती. निशात बागेजवळ ‘हजरत बाल श्राइन’ आहे. हजरत मोहमद साहेबांचा ‘पवित्र बाल’ इथे ठेवण्यात आला आहे. मशीद भव्य आणि इस्लामिक स्थापत्यकलेचा नमुना आहे.मशिदीच्या आत स्त्रियांना प्रवेश नव्हता. मागील बाजूने थोडा पडदा किलकिला करून स्टेनगनधारी पहारेकर्‍याने ‘पवित्र बाल’ ठेवलेल्या ठिकाणाचे ‘दूरदर्शन’ घडविले. स्वच्छ आवारात चिनारची झाडं होती. दल सरोवराच्या पश्चिमेकडील काठावर असलेल्या या मशिदीची पुनर्बांधणी करण्यात आली आहे.

श्रीनगरपासून तीन किलोमीटरवर पांडेथ्रान गाव आहे आणि साधारण १४ किलोमीटरवर परिहासपूर नावाचं गाव आहे. या दोन्ही ठिकाणी राजा ललितादित्याच्या कारकिर्दीत म्हणजे आठव्या शतकात उभारलेल्या बौद्ध स्तूपांचे अवशेष आहेत. अनंतनागपासून चार-पाच किलोमीटरवर मार्तंड देवालयांचा समूह आहे.  डावीकडचे कोणे एकेकाळी भव्य दिव्य असलेल्या सूर्यमंदिराचे भग्नावशेष  संगिनींच्या पहाऱ्यात सांभाळले आहेत.

पहेलगामच्या रस्त्यावर खळाळत अवखळ वाहणारी लिडार नदी आपली सतत सोबत करते. नदीपात्रातील खडक, गोल गुळगुळी दगड यावरून तिचा प्रवाह दौडत असतो. गाईड सांगत होता की मे महिन्यात पर्वत शिखरांवरील बर्फ वितळले की नदी तुडुंब पाण्याने उसळत वेगाने जाते. त्यावेळी तिच्यावरील राफ्टिंगचा थरार अनुभवण्यासाठी अनेक देशी-विदेशी प्रवासी येतात. तसेच नदीपलीकडील पर्वतराजीत ट्रेकिंगसाठी अनेक प्रवासी येतात. त्याशिवाय घोडदौड, ट्राउट माशांची मासेमारी अशी आकर्षणे आहेत. हिमालयाच्या पार्श्वभूमीवर पोपटी हिरवळीवर वर्ल्डक्लास गोल्फ कोर्टस आहेत. त्यासाठीही हौशी खेळाडू येतात.

पहलगाम रस्त्यावर प्राचीन काळापासून केशराच्या शेतीसाठी प्रसिद्ध असलेलं पांपूर( पूर्वीचं नाव पद्मपूर ) लागतं. साधारण ऑक्टोबर-नोव्हेंबर महिन्यात जमिनीलगत उगवलेल्या जांभळ्या सहा पाकळ्यांच्या फुलांनी शेतेच्या शेते बहरतात. या फुलांमधील सहा केसरांपैकी केसरिया रंगाचे तीन केसर हे अस्सल केशर असतं. उरलेले तीन हळदी रंगाचे केसर वेगळ्या पद्धतीने वापरले जातात.

श्रीनगर भाग २ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 63 – मनोज के दोहे…अश्वगंधा  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…अश्वगंधा । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 63 – मनोज के दोहे…अश्वगंधा 

1 भारत आयुर्वेद में, जनक-निपुण-विद्वान।

वेदों में यह वेद है, रखे स्वस्थ बलवान।।

 

2 आयुर्वेद की यात्रा, वर्ष सहस्त्रों पूर्व ।

योग ज्ञान विज्ञान में, विद्वत-जन से पूर्ण ।।

 

3 जड़ी बूटियों में छिपी, रोग हरण की शक्ति।

सनातनी युग में मिला, कर ब्रह्मा की भक्ति।।

 

4 धन्वंतरि जी ने किया, रोग हरण की खोज।

ब्रह्मा जी की कृपा से, आयुर्वेदी ओज।।

 

5 पद चिन्हों में चल पड़े, अनुसंधानी रोज। 

चरक चिकित्सक हो गए,कृतित्व रहा मनोज।।

 

6 संस्थापक ये ऋषि रहे , जग में है पहचान।

चरक-संहिता लिख गए , मानव का कल्यान।।

 

7 सर्जन सुश्रुत ने किया, बड़ा अनोखा काम।

सुश्रुत-संहिता को लिखा, खूब कमाया नाम।।

 

8 पेड़ छाल पौधे सभी, जड़ पत्ते अरु बीज।

प्रकृति जन्य उपहार हैं, शोध परक ताबीज।।

 

9 हरें-रोग जड़ी-बुटियाँ, आयुर्वेद विज्ञान।

मानव की रक्षा करें,  करतीं रोग निदान।।

 

10 पौधा है असगंध का, करता बड़ा कमाल।

अश्वगंधा के नाम से, इसने किया धमाल।।

 

11अश्वगंध के नाम से, जग में भी विख्यात।

नाम अनेकों हैं मगर, करे रोग संघात।।

 

12 गुणकारी पौधा सुखद,जिसका नहीं जवाब।

औषधि में सर्वश्रेष्ठ है, शोधक रखें हिसाब।।

 

13 लम्बे पत्ते शाख में, पतली टहनी देख ।

जड़ लंबी होती सदा, खेतों की है रेख।।

 

14 झाड़ी या पौधे कहें, हरित रहें सब पात।

मेढ़ पहाड़ी में उगें, दिखें सदा हर्षात।।

 

15 देश विदेशों में अलग,भाँति-भाँति के नाम ।

विंटर चेरि पॉयजनस, करे सभी सत्काम।।

 

16 तुख्मे हयात,अमुकुरम,कुष्ठगन्धिनि,पुनीर।

वराहकर्णि,अमनगुरा,तन-मन हरती पीर।।

 

17 घोडासोडा,अमुक्किरा,असकन्धा से नाम।

काकनजे,टिल्ली कहें, रोग हरण के काम।। 

 

18 शोध हो रहे नित्य प्रति, रोगों का उपचार।

लगता है अब निकट ही, होगा बिग बाजार।।

 

19  दिखने में छोटा बड़ा, पौधा है असगंध।

घोड़े के पेशाब सी, रगड़ो आती गंध।।

 

20 नेत्र ज्योति में वृद्धि कर, पीड़ा-हरती नेत्र।

जड़ी-बूटि है यह बड़ी, व्यापक इसका क्षेत्र ।।

 

21 हरे रोग गलगंड के, दाबे अपनी काँख।

विज्ञानी औषधि निपुण, खुली देखते आँख।।

 

22 स्वेत-बाल यदि हो रहे, मत घबराएँ आप।

अश्‍वगंधा सेवन करें, मिट जाते संताप।।

 

23 कब्ज समस्या हो अगर, करता रोग निदान।

अन्य उदर बीमारियाँ, निरोगी-समाधान।।

 

24 छाती में यदि दर्द हो, इसका बड़ा महत्व ।

गुम गठिया-उपचार में, यही इलाजी तत्व।।

 

25 क्षय-रोगों के लिए यह, अनुपम करे इलाज।

रोग मुक्त टी बी करे, आयुष को है नाज ।।

 

26 ल्यूकोरिया-इलाज में, अश्‍वगंध सरताज ।

असगंधा में छिपा है,इसका पूर्ण इलाज। ।

 

27 अश्‍वगंध के चूर्ण से, मिटता रक्त विकार।

त्वजा रोग में यह करे, महत्वपूर्ण उपचार।।

 

28 शारीरिक कमजोरियाँ, करता है यह दूर।

खाँसी और बुखार में, उपयोगी भरपूर।।

 

29 चोट लगे या कट लगे,करे शीघ्र उपचार।

अश्वगंध सेवन करें, तन-मन करे निखार ।।

 

30 राजस्थान प्रदेश में, स्थान प्रमुख नागौर ।

जलवायु अनुकूलता, उत्पाद श्रेष्ठ का दौर।।

 

31 नागौरी असगंध की, औषधि बड़ी महत्व।

इसके चूरण तेल में, रोग निवारक तत्व।।

 

32 रोज रात पीते रहें, जिनका तन अस्वस्थ ।

दूध सँग अश्वगंध लें, होती काया स्वस्थ।।

 

33 दो ग्राम असगंध सँग, आँवला लें समान।

एक मुलेठी पीसिए,आँखों का कल्यान।।

 

34 तन-कमजोरी में करे, हर रोगों पर घात।

वीर्य वृद्धि पुरुषार्थ में, होता यह निष्णात।।

 

35 अश्वगंध का चूर्ण यह, होता पूर्ण  सफेद।

चर्म रोग नाशक रहे, कष्ट निवारक श्वेद।।

 

36 तन-मन की रक्षा करे, खाएँ चियवनप्राश।

सम्मिश्रण अश्वगंध का, करे रोग का नाश।।

 

37 द्राक्षासव में सम्मिलित, असगंधा का योग।

उदर रोग से मुक्ति दे, करें नित्य  उपभोग।।

 

38 जोड़ों में आराम दे, असगंधा का तेल ।

करिए मालिस नित्य ही, हो खुशियों का मेल।।

 

39 वात पित्त कफ दोष से,बने मुक्ति का योग ।

तन मन हर्षित हो सदा, जो करता उपभोग।।

 

40 कैंसर जैसे रोग में, इसका है उपयोग।

शोध परक बूटी सुखद, हरण करे यह रोग।।

 

41जिसको देखो तृषित है,डायबिटिक का रोग।

मददगार मधुमेह में, तन-रक्षा का योग।।

 

42 अनिद्रा अरु अवसाद में, बैठा आँखें-मींद।

चिंताओं से मुक्त हो, सुख की देता नींद।।

 

43 शुक्रधातु को प्रबल कर पौरुष देता बल्य।

वात रोग का नाश कर, हटे पेट का मल्य।।

 

44 माँसपेशियाँ दुरुस्त कर, रक्त करे यह शुद्ध।

तन-मन को मजबूत कर, योगी ज्ञानी बुद्ध।।

 

45 हृदय रोगियों के लिए, जीवन-मरण सवाल।

शुद्ध रक्त बहता रहे,औषधि करे कमाल।।

 

46 बालों का झड़ना रुके, बढ़ें प्रकृति अनुरूप।

ओजस्वी मुखड़ा दिखे, सबको लगे अनूप।।

 

47 यौन विकारों के लिए, इसमें छिपी है शक्ति।

जीवन नव संचार कर, भर दे जीवन भक्ति।।

 

48 थाइराइड कंट्रोल कर,दुख का करे निदान।

अश्वगंध की दवा से, परिचित हुआ जहान।।

 

49 महिलाओं के लिए यह, गर्भावस्था वक्त।

परामर्श सेवन करें, स्वस्थ निरोगी रक्त।।

 

50 घटे मुटापा व्यक्ति का, जो खाता असगंध।

रोग भगाता है सभी, कर्मयोग अनुबंध।।

 

51 औषधि में मिलती घटक,शोधपूर्ण का मेल।

रोगों का यह शमन कर, दौड़े सुखमय रेल।।

 

52 जहरीले पौधे बहुत, पर होते गुण-खान।

जहर-जहर को काटता, सबको इसका भान।।

 

53 डाक्टर से परामर्श लें, तभी करें उपभोग।

मात्रा-मिश्रण हो सही, भागे तब ही रोग।।

 

54 आसव चूरण तेल सब, मिले दवा बाजार।

सोच समझ उपयोग कर, तभी करें उपचार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 185 ☆ कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर? ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 183 ☆  

? कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर? ?

 मोबाईल इस कदर समा गया है जिंदगी में

कैलेंडर कागज के

बदलते कहां हैं अब

 

साल, दिन,महीने, तारीखें, 

समय सब कैद हैं टच स्क्रीन में

वैसे भी

अंतर क्या होता है

आखिरी तारीख में बीतते साल की 

और पहले दिन में नए साल के,

जिंदगी तो वैसी ही दुश्वार बनी रहती है।   

 हां दुनियां भर में

जश्न, रोशनी, आतिशबाजी

जरूर होती है

रस्म अदायगी की साल के स्वागत में

टूटने को नए संकल्प लिए जाते हैं

गिफ्ट का आदान प्रदान होता है,

ली दी जाती है डायरी बेवजह

 लिखता भला कौन है अब डायरी

सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है।   

जब हम मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ टच करें

हौले से मन

अपने बिसर रहे कांटेक्ट्स के

और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने स्टेटस पर

नए साल में सूर्योदय के साथ

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 146 – नववर्ष की बधाइयाँ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है बीते कल औरआज को जोड़ती एक प्यारी सी लघुकथा “नववर्ष की बधाइयाँ ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 146 ☆

🌺लघुकथा 🥳 नववर्ष की बधाइयाँ 🥳

एक बहुत छोटा सा गाँव, शहर से कोसों दूर और शहर से भी दूर महानगर में, आनंद अपनी पत्नी रीमा के साथ, एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। अच्छी खासी पेमेंट थी।

दोनों ने अपनी पसंद से प्रेम  विवाह किया था। जाहिर है घर वाले बहुत ही नाराज थे। रीमा तो शहर से थी। उसके मम्मी – पापा कुछ कहते परंतु बेटी की खुशी में ही अपनी खुशी जान चुप रह गए, और फिर कभी घर मत आना। समाज में हमारी इज्जत का सवाल है कह कर बिटिया को घर आने नहीं दिया।

आनंद का गाँव मुश्किल से पैंतीस-चालीस घरों का बना हुआ गांव। जहाँ सभी लोग एक दूसरे को अच्छी तरह जानते तो थे, परंतु पढ़ाई लिखाई से अनपढ़ थे।

बात उन दिनों की है जब आदमी एक दूसरे को समाचार, चिट्ठी, पत्र-कार्ड या अंतरदेशीय  और पैसों के लिए मनी ऑर्डर फॉर्म से रुपए भेजे जाते थे। या ज्यादा पढे़ लिखे लोग तीज त्यौहार पर सुंदर सा कार्ड देते थे।

आनंद दो भाइयों में बड़ा था। सारी जिम्मेदारी उसकी अपनी थी। छोटा भाई शहर में पढ़ाई कर रहा था। शादी के बाद जब पहला नव वर्ष आया तब रीमा ने बहुत ही शौक से सुंदर सा कार्ड ले उस पर नए साल की शुभकामनाओं के साथ बधाइयाँ लिखकर खुशी-खुशी अपने ससुर के नाम डाक में पोस्ट कर दिया।

छबीलाल पढ़े-लिखे नहीं थे। जब भी मनीआर्डर आता था अंगूठा लगाकर पैसे ले लेते थे। यही उनकी महीने की चिट्ठी होती थी।

परंतु आज इतना बड़ा गुलाबी रंग का कार्ड देख, वह आश्चर्य में पड़ गए। पोस्ट बाबू से पूछ लिया…. “यह क्या है? जरा पढ़ दीजिए।” पोस्ट बाबू ने कहा “नया वर्ष है ना आपकी बहू ने नए साल की बधाइयाँ भेजी है। विश यू वेरी हैप्पी न्यू ईयर।”

पोस्ट बाबू भी ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था आगे नहीं पढ़ सका। इतने सारे अंग्रेजी में क्या लिखा है। अंतिम में आप दोनों को प्रणाम लिखी है। वह मन ही मन घबरा गये और इतना सुनने के बाद…

छबीलाल गमछा गले से उतार सिर पर बाँध हल्ला मचाने लगे… “सुन रही हो मैं जानता था यही होगा एक दिन।”

“अब कोई पैसा रूपया नहीं आएगा। मुझे सब काम धाम अब इस उमर में करना पड़ेगा। बहू ने सब लिख भेजा है इस कार्ड पर पोस्ट बाबू ने बता दिया।”

दोनों पति-पत्नी रोना-धोना मचाने लगे। गाँव में हवा की तरह बात फैल गई कि देखो बहू के आते ही बेटे ने मनीआर्डर से पैसा भेजना बंद कर दिया।

बस फिर क्या था। एक अच्छी खासी दो पेज की चिट्ठी लिखवा कर जिसमें जितनी खरी-खोटी लिखना था। छविलाल ने पोस्ट ऑफिस से पोस्ट कर दिया, अपने बेटे के नाम।

रीमा के पास जब चिट्ठी पहुंची चिट्ठी पढ़कर रीमा के होश उड़ गए। आनंद ने कहा…. “अब समझी गाँव और शहर का जीवन बहुत अलग होता है। उन्हें बधाइयाँ या विश से कोई मतलब नहीं होता और बधाइयों से क्या उनका पेट भरता है?

यह बात मैं तुम्हें पहले ही बता चुका था। पर तुम नहीं मानी। देख लिया न। मेरे पिताजी ही नहीं अभी गांव में हर बुजुर्ग यही सोचता है। “

आज बरसों बाद मोबाइल पर व्हाटसप चला रही थी और बेटा- बहू ने लिखा था.. “May you have a wonderful year ahead. Happy New Year Mumma – Papa “..

रीमा की उंगलियां चल पड़ी “हैप्पी न्यू ईयर मेरे प्यारे बच्चों” समय बदल चुका था परंतु नववर्ष की बधाइयाँ आज भी वैसी ही है। जैसे पहली थीं।

आंनद रीमा इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 15 – देशीय उड़ान ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “  परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 15 – देशीय उड़ान ☆ श्री राकेश कुमार ☆

यात्रा के अगले चरण में शिक्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध शहर बोस्टन जाने के लिए घर बैठे ऑनलाइन टिकट बुक कर, विमानतल में स्कैन द्वारा स्वचलित बोर्डिंग पास प्राप्त करने का प्रथम अवसर था, तो पुराने समय की याद आ गई, जब प्रथम बार एटीएम से राशि प्राप्त कर जो खुशी मिली थी, आज भी कुछ ऐसा ही आभास हुआ।

एक छोटे संदूक को विमान के अंदर ले जाने के अलावा बड़े संदूक का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा, जो हमारे जैसे यात्रियों के लिए अचंभा था।

विमानतल पर  देश के भीतर यात्रा पर भी कड़ी जांच के मद्दे नज़र” जूता उतार” जांच से बचने के लिए हमने अपनी बाटा की हवाई चप्पल का ही उपयोग किया, क़मर बेल्ट जांच से भी बचने के लिए नाड़े वाले पायजामा के साथ कुर्ता पहन कर देशी परिधान ग्रहण कर लिया।                      श्रीमतीजी ने आपत्ति उठाते हुए कहा आप अकेले व्यक्ति विमानतल पर ऐसे परिधान पहन कर अलग से दिख रहें हैं। तभी वहां प्रतीक्षा रत एक अस्सी वर्ष की उम्र वाले व्यक्ति  पुस्तक पढ़ते हुए दिख गए,वो भी सब से अलग दिख रहे थे।

सबसे आश्चर्य हुआ एक युवती ऊन से कुछ बुनाई कर रही थी। हमारे यहां तो अब ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं भी हाथ में ऊन और सलाई लिए हुए भी नहीं नज़र आती है। अमेरिका जैसे विकसित देश में हवाई यात्रा के समय नवयुवती के हाथ में ये देखकर लगा कि हस्तकला कभी समाप्त नहीं हो सकती।

बोस्टन उतरने के पश्चात जब बड़े संदूक का इंतजार करते हुए, वहां उपलब्ध ट्रॉली खींची, तो उसको दीवार से अटका हुआ पाया, क्योंकि छः डॉलर शुल्क भुगतान के पश्चात ही सुविधा का उपयोग संभव था। हमारे पास खींचने के लिए अब छोटा और बड़ा दो संदूक थे, वो तो अच्छा हुआ जो नीचे चक्के लगे हुए थे। वैसे हम लोग तो “चमड़ी चली जाय पर दमड़ी ना जाय” को मानने वाली पीढ़ी से जो हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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