हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 109 ☆ जुगलबंदी ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय व्यंग्य “जुगलबंदी”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 109 ☆

☆ जुगलबंदी ☆ 

आंदोलनों की आड़ में कार्यों को बाधित करने की शैली पुरानी हो चली है। तकनीकी अब बदलाव चाहती है। जहाँ संख्या बल हो वहीं पर अपने को टीम लीडर बनाकर खड़े हो जाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए किसी मजबूत हस्त की छत्र छाया चाहिए होती है। पीछे से सही गलत की सलाह मिलती रहे तो कदम सुरक्षित दिशा की ओर खुद व खुद  बढ़ते जाते हैं। यहाँ आकर्षण बल का सिद्धांत का सिद्धांत लागू होने लगता है। लोग वहीं का रुख कर लेते हैं जहाँ मजबूती दिखाई  देती है।

मुहँ फुलाकर हाथ पर हाथ धरे बैठने से टीम का आखिरी सदस्य भी चला गया। अब किसके सामने अपनी महत्वा को बताएंगे। दरसल आप में नेतृत्व की क्षमता  नहीं थी  सो ऐसा तो होना ही था। लगभग सभी क्षेत्रों में यही चल रहा है। पकड़ ढीली होते ही ताश के पत्ते खुलने लगते हैं और रेतीला महल भरभरा कर ढह जाता है। रेत सीमेंट का जोड़ बहुत जरूरी है। केवल नींव के पत्थर तो आपको मौसम की मार से नहीं बचा सकते हैं। आजकल खम्भों पर बहुमंजिला इमारतें तनी होती हैं। सो नींव का एक पत्थर यदि चिल्लाकर दुहाई देगा की वही प्रमुख है उसे पूजो इस पर कोई ध्यान नहीं देगा।

सुधारों की ओर समय रहते ध्यान न देने पर बारिश में छतों से पानी टपकना, दीवारों में सीलन आना, घरों में पानी घुसना ये सब आम बातें हैं। हमारे जीवन के सभी कार्य इन्हीं नियमों से चल रहे हैं। समय रहते संतान को संस्कारित न किया जाए तो वो बिना मौसम आपकी बेज्जती करवाती रहती है। और मोह से ग्रसित व्यक्ति  धृतराष्ट्र की तरह महाभारत के चक्रव्यूह का गुनहगार बन ही जाता है।

अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने से ही मजबूती कायम होगी। कहते हैं नियमित पुस्तक पढ़ने से हर समस्या का हल मिल जाता है। हमें दूसरों के अनुभवों से सीखने व समझने हेतु अपने क्षेत्र से सम्बंधित पुस्तकें पढ़नी चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 171 ☆ वसीयत ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता  – वसीयत ! ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 171 ☆  

? कविता  – वसीयत! ?

माना

कि मौत पर वश नही अपना

पर प्रश्न है कि

क्या जिंदगी सचमुच अपनी है ?

हर नवजात के अस्फुट स्वर

कहते हैं कि ईश्वर

इंसान से निराश नहीं है

हमें जूझना है जिंदगी से

और बनाना है

जिदगी को जिंदगी

 

इसलिये

मेरे बच्चों

अपनी वसीयत में

देकर तुम्हें चल अचल संपत्ति

मैं डालना नहीं चाहता

तुम्हारी जिंदगी में बेड़ियाँ

तुम्हें देता हूँ अपना नाम

ले उड़ो इसे स्वच्छंद/खुले

आकाश में जितना ऊपर उड़ सको

 

सूरज की सारी धूप

चाँद की सारी चाँदनी

हरे जंगल की शीतल हवा

और झरनों का निर्मल पानी

सब कुछ तुम्हारा है

इसकी रक्षा करना

इसे प्रकृति ने दिया है मुझे

और हाँ किताबों में बंद ज्ञान

का असीमित भंडार

मेरे पिता ने दिया था मुझे

जिसे हमारे पुरखो ने संजोया है

अपने अनुभवों से

वह सब भी सौंपता हूँ तुम्हें

बाँटना इसे जितना बाँट सको

और सौंप जाना कुछ और बढ़ाकर

अपने बच्चों को

 

हाँ

एक दंश है मेरी पीढ़ी का

जिसे मैं तुम्हें नहीं देना चाहता

वह है सांप्रदायिकता का विष

जिसका अंत करना चाहता हूँ मैं

अपने सामने अपने ही जीवन में..

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सवाल ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

(युवा साहित्यकार श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल जी लखनऊमें पले बढ़े और अब पुणे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। आपको बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी कविताएं लिखने का शौक है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता सवाल।)

 ☆ कविता ☆ सवाल ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

जवाब की तलाश में चला

खुद एक सवाल बन वापस आया है

खोया पाया की बातों से ऊपर उठ

नफा नुक्सान से दूर निकल आया है

उठा जब भी एक के जवाब के साथ

तो जवाब ख़ुद ही कर बैठा एक सवाल

और फ़िर खोज शुरू कर दी उसने जवाब की

 

देख भीड़ में अगोचर से चेहरे

या कुछ जाने से लोग

और जब कोई खिलखिला कर हँस देता

और देख उन्हें दौड़ते हुए अपने सपनों के पीछे

खड़े होते तरह तरह के सवाल

वह हो गया निराश

लगा जैसे कोई बड़ी सफाई से

जवाब मिटा के गायब हो गया

कोई और भी न ढूंढ पाया होगा

यही सोच उसने मायनो की किताब को आग लगा दी

 

पर सवाल नही जलते

और जवाब , जवाब नही मिलते

 

© केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

पुणे मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 119 ☆ गीत – अनगिन चले गए ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 119 ☆

☆ गीत – अनगिन चले गए ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

परिचित शुभचिन्तक

देखा अदभुत रे संसार।

अब तो छूट रहा है प्यार।।

 

ये भी जोड़ा, वो भी जोड़ा

नाते , रिश्ते जोड़ लिए

कहीं कपट था, कहीं रपट है

कुछ ने रिश्ते तोड़ लिए

 

कैसे मिथक और उपमाएं

करतीं जीवन साज – सँवार।

 

ईश्वर को मैं देख न पाया

लेकिन गीत सदा ही गाया

सुख – दुख में सब काल छिन गया

सुख चाहती है केवल काया

 

कोशिश करी सदा मिलने की

आँख बंद कर की मनुहार।।

 

शब्द – शब्द ने ब्रह्म जगाया

जो चाहते थे कब वह पाया

मैल लगे वस्त्रों को हमने

थोड़ा – थोड़ा था चमकाया

 

द्वार खोलती अनुभूति नित

कुछ से मिलता प्यार अपार।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #118 – क्षणिका ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 118 – क्षणिका ☆

?

विठ्ठल – पांडुरंग

कुणी विठ्ठल म्हणा

कुणी म्हणा पांडुरंग ..

माझ्या सावळ्या हरीला

शोभे सावळाच रंग..!

?

आई..

आई.., इतके लिहावे वाटते तुझ्यावर

की देवाचाही जीव व्हावा खालीवर…!

?

पाखरांचे घर

केवढे हे ऊन आहे तापलेले

साउली चे झाड आहे तोडलेले…!

पाडले हे घर कुणी रे पाखरांचे

केवढे हे पाप माथी लागलेले…!

© सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#141 ☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1”)

☆  तन्मय साहित्य # 141 ☆

☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध… 1 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जब से मेरे गाँव में, पहुँचे शहरी भाव।

भाई-चारे  प्रेम के, बुझने लगे अलाव।।

 

भूखों  का  मेला  लगा,  तरह – तरह  की  भूख।

जर,जमीन,यश, जिस्म की, जैसा जिसका रूख।।

 

खादी तन पर डालकर, बगुले  बनते हंस।

रच प्रपंच मिल कर रहे, लोकतंत्र विध्वंस।।

 

धर्म-पंथ के नाम पर, अलग-अलग है सोच

लोकतंत्र  लँगड़ा रहा, पड़ी  पाँव में  मोच।

 

वेतन-भत्ते सदन में, सह -सम्मति से पास।

दाई – जच्चा  वे स्वयं, फिर क्यों रहें उदास।।

 

जिनके ज्यादा अंक है, अपराधों में खास।

है उनके ही   हाथ में,  प्रजातंत्र  की  रास।।

 

इक्के-दुक्के रह गए, खादी वाले लोग।

सूट-बूट के भाग्य में, राजनीति संयोग।।

 

हाकिम का आदेश है, नहीं मचाएं शोर।

मिट जाएगा तम स्वयं, हो जाएगी भोर।।

 

रोज खबर अखबार के, प्रथम पृष्ठ पर खास।

द्विगुणित गति से हो रहा, चारों ओर बिकास।।

 

रावण को यह ज्ञात था, निश्चित मृत्यु विधान।

किंतु  छोड़ पाया  नहीं, सत्ता  का  अभिमान।।

 

बारिश में अमरत्व का, गाते झींगुर गान।

है जीवन इक रात का, हो इससे अंजान।।

 

तू-तू ,मैं-मैं  की हवा, संसद क्रीड़ागार।

भूखे – नंगों का यहाँ, शब्दों से  शृंगार।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 33 ☆ मत कहना अनाथ… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत  “मत कहना अनाथ… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 33 ✒️

? मत कहना अनाथ… — डॉ. सलमा जमाल ?

मैं हूँ 

‘अनाथ’

उठता है

प्रश्न??

क्या होता है अनाथ?

 

उसे कहते होंगे

शायद —

जिसके ना हो

कोई साथ  ।।

 

सबके हैं

माता-पिता

भाई-बहन

परिवार

“परंतु”

‘मेरे’?

सभी के हैं नाम

परंतु मेरा?

होटल में,

हरामी, कमीना

गैराज में

साला, कुत्ता, चोर

अनाथ और आवारा

बंगले में,

रामू, छोटू

कलमुंहा,

पेट्रोल पंप में

वीभत्स ताने

अबे गधे, नाकारा,

और

ना जाने क्या-क्या???

 

बाल मन की

समझ से परे

असंख्य

घृणित संबोधन,

जिन्हें याद कर

ज़ख्म हो जाते हैं हरे ।।

 

सभी कहते हैं

प्रत्येक औरत

मां है – बहन है

“परंतु “

उनके लिए मैं

एक अनाथ ।।

 

मां कहने पर

किसी ने उसे

बेटा नहीं कहा,

किसी

अबला को

जब कहा बहन

तो उसे

दुत्कार मिली ।।

 

इसके आगे

रिश्ते पनप नहीं पाए

गंदी – गंदी

गालियां व

फटकार मिली

फिर मैं

बन गया गुंडा

जैसे अनाम रिश्तों

इंसानों व

समाज द्वारा

निर्मित किया गया था ।।

 

दो जून की

रोटी की खातिर

जेल में पड़ा हूं,

पढ़ने की लालसा

सहेजे

उठाया था

किसी का बस्ता

और आज

यौवनावस्था में

मृत्यु शैया

पर पड़ा हूं ।।

 

अंतिम

इच्छा है मेरी

जब भी मिले

कोई अनाथ

तो उसे

मत दुत्कारना,

 मत मारना,

मत गाली देना

उसे अपना लेना

माता-पिता बनकर

भाई-बहन बनकर

उसे देना प्यार,

समाज के ठेकेदारों

मत कहना उसे

“अनाथ”

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 41 – कॉमेडी – भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख  “कॉमेडी…“ की अंतिम कड़ी ।)   

☆ आलेख # 41 – कॉमेडी – भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

पुराने ज़माने के हीरो फिल्मों में कॉमेडी खुद न कर, एक हास्य कलाकार को रोजगार का अवसर प्रदान करते थे पर धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, परेश रावल जैसे कलाकारों ने खुद ही कॉमेडी करना भी शुरु कर दिया तो कॉमेडी की प्रतिष्ठा बढ़ गई. फिल्म शोले के हास्य दृश्यों में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमामालिनी, लीला मिश्रा (मौसी), कालिया और जगदीप, असरानी ने कमाल का मनोरंजन किया था और जो बच गये याने गब्बर, ठाकुर, सांभा और धन्नो नाम की घोड़ी, उन पात्रों का मिमिक्री के रूप में स्टेज शो में जबरदस्त उपयोग किया गया. कालिया अपने निभाये गये किरदार से ही याद आते हैं.

“पड़ोसन” फिल्म ने भी हास्य रचने में कामयाबी और पसंद किये जाने के झंडे गाड़े थे. महमूद, सुनील दत्त और किशोर कुमार ने अपने लाजवाब अभिनय से दर्शकों को उत्तम कोटि के हास्यरस का रसास्वादन कराया था.

“एक चतुर नार करके श्रंगार” गीत जितना मधुर और विशिष्ट था, उतना ही उसका फिल्मांकन भी. स्वर्गीय मन्ना डे और किशोर कुमार की ये सरगमी संगत फिल्म संगीत के खजाने का अनमोल रतन है जो आज तक भी स्टेज़ शो और टी वी शोज़ में दोहराया जाता है.

कॉमेडी, फिल्मों के अलावा स्टेज शो में भी सामने आई और इसे संभाला मिमिक्री आर्टिस्टों ने. अभिनेताओं की आवाज़ की नकल से भी हास्य रस आया और दर्शकों का मनोरंजन हुआ. पर इसके अलावा भी के.के. नायकर, रज़नीकांत त्रिवेदी, कुलकर्णी बंधुओं ने स्टेज़ पर एक से बढ़कर एक शो दिये और सफलता की मंजिलों को छुआ. नायकर तो तरह तरह की आवाज़ और बॉडी लेंग्वेज से स्टेज पर छा जाते थे और तीन घंटे भी अकेले दम पर स्टेज़ संभालते थे. जॉनी लीवर भी पहले स्टेज शो और फिर फिल्मों के कामयाब सितारे बन गये थे. नायकर और कुलकर्णी बंधुओं की कॉमेडी की शैली और सामयिक प्रसंगों की भरमार उनकी विशेषता थी और दर्शक मंत्रमुग्ध होकर खिलखिलाते हुये घर वापस आते थे.

हास्यरस, जीवन में करोड़ों की संपदा भी ला सकता है, पूरी तरह अविश्वसनीय और सिरे से खारिज करने की बात थी पर इसे सही साबित किया कपिल शर्मा ने जब वो अपनी टीम के साथ अपना कॉमेडी शो लेकर आये. ये युग टी.वी. का फिल्मों पर छा जाने का युग था. लोग घर में बैठकर मनोरंजन चाहते थे. दर्शकों की इसी नब्ज को पकड़ा कपिल शर्मा ने. कपिल शर्मा का सेंस ऑफ ह्यूमर और हाज़िर जवाबी सप्ताहांत में आने वाले उनके शो को सफल बनाते हुये उन्हें मालामाल कर गई. दर्शक भी अपना सप्ताहांत, डेढ़ घंटे की मुफ्त और मुक्त हंसी के बीच गुजारना पसंद करने लगे. शिक्षा का उपयोग हमारे देश में मात्र रोजगार पाने के लिये होता है. आई. क्यू लेवल और हास्य में बौद्धिकता से अधिकांश भारतीय जनमानस अछूता है तो मुफ्त और सुगम हास्य में फूहड़ता को नज़र अंदाज करने की आदत शो को सफल और कपिल शर्मा को करोड़पति बना गई, जहां पुरुष भी नारी रूप धरकर कॉमेडी के नाम पर लखपति बन गये.

पर अच्छी गुणवत्ता और बौद्धिक क्षमता से भरपूर अमित टंडन और वरुण ग्रोवर सरीखे कलाकारों ने स्टेंड अप कॉमेडी के जरिये प्रवेश कर राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करना प्रारंभ किया. कुमार विश्वास भी कवि सम्मेलनों में वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष करते थे. ये व्यंग्य अक्सर हरिशंकर परसाई जी और शरद जोशी जी की याद दिलाते थे. व्यंग्य जो अभी तक प्रिंट मीडिया की बपौती था, स्टेंड अप कॉमेडी शो के माध्यम से टीवी और यू ट्यूब पर दिखने लगा. अपना पाला बदल चुके मीडिया और ट्रोलर्स से भरे सोशल मीडिया से त्रस्त लोगों को राहत मिली जिनमें वर्तमान की विद्रूपता, विसंगति और समस्या का सामना करने वाले अधिकतर युवा दर्शक थे तो उनका इन कलाकारों के कार्यक्रमों में खिलखिलाना स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. युवा दर्शकों का यह वर्ग सामाजिक विद्रूपता और राजनैतिक अनैतिकता की दबंगई और गुटबाजी से घुटन महसूस कर रहा था. उसे वर्तमानकाल की विसंगतियों और असफलताओं को न केवल भोगना था बल्कि उसकी आवाज़ भी, विवेकहीन निष्ठा के नाम पर मानसिक क्षुद्रता और ट्रोलिंग के जरिये खामोश कर दी गई थी. जब उसे लगा कि मंच पर ये उसके साहसी हम उम्र, धड़ल्ले से व्यंग्यात्मक तीर चला रहे हैं तो एक दर्शक के रूप में हंसने के साथ साथ उम्मीद की आशा भी बलवती हुई.

तो ये हास्यरस का वो सफर था जो सरकस के जोकर से मंच पर सामने आया और स्टेंड अप कॉमेडी के वर्तमान काल के पड़ाव तक पहुंचा है. ये सफर तो जारी रहेगा और आने वाली पीढ़ियों को हास्यबोध से मनोरंजन के मौके देता रहेगा. हो सकता है कुछ छूट गया हो तो क्षमा कीजिएगा.

समाप्त 

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 142 ☆ प्रयाण ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 142 ?

☆ प्रयाण… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

(जुन्या डायरीतून…१ जानेवारी १९९७)

ती एकटीच निघाली आहे

दूरच्या प्रवासाला

रिक्त हाताने—

मुक्तपणे–फकिरीवृत्तीने

ती तोडू पहाते आहे–

तिच्या आयुष्याला जखडणारे

साखळदंड!

 

भीती एकच–

ती जिथे चालली आहे

तिथे असेल का माणसांचेच जंगल?

इथल्या सारखे तिथेही भेटतील का?

काही कनवाळू अन्

प्रेमळ पक्षी!

भव्य पिंपळवृक्ष आणि आधारवडही —

की अधून मधून इथे आढळणा-या लांडग्या,कोल्ह्यांचे आणि साप विंचवांचेच

असेल त्या जगात वास्तव्य??

 

निरीच्छपणे,एकाकी वाटेने जाताना

साखळदंडाच्या ओझ्यापेक्षाही

जंगलातल्या संभाव्य धोक्याचीच भीती—

गिळून टाकते अवसान,

समर्थपणे जगण्याचे!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनीक्रमांक २४- भाग ४ -वास्को-डि-गामाचे हिरवे पोर्तुगाल ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २४- भाग ४ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️  वास्को-डि-गामाचे हिरवे पोर्तुगाल ✈️

तेगस नदीच्या पात्रात १५२१ मध्ये बेलहेम टॉवर बांधला गेला. येणाऱ्या- जाणाऱ्या व्यापारी जहाजांवर  लक्ष ठेवण्यासाठी बांधण्यात आलेले हे किल्ल्यासारखे मजबूत दगडी बांधकाम आहे. षटकोनी आकाराच्या या चार मजली टॉवरच्या प्रत्येक मजल्यावरून, त्याच्या नक्षीदार दगडी गवाक्षातून आपल्याला लांबवर पसरलेल्या नदीचे दर्शन होते. इथून जवळच ‘नॅशनल म्युझियम ऑफ आर्किऑलॉजी’ व नेव्हल म्युझियम आहेत.  नॅशनल म्युझियममध्ये इजिप्त, आफ्रिका इथल्या मौल्यवान कलात्मक वस्तू, विविध डिझाइनच्या मोझॅक टाइल्स, त्या काळातील नाणी आहेत तर नेव्हल म्युझियममध्ये नव्या जगाच्या शोधासाठी वापरण्यात आलेली जहाजे, राजेशाही नौका, समुद्र सफरीची इतर साधने, दक्षिण अटलांटिक महासागर ओलांडणारे पहिले जहाज अशा जगाच्या इतिहासातील अमूल्य वस्तू आहेत.

(बेलेम टॉवर, लिस्बन, मॉन्युमेंट टू डिस्कव्हरीज, क्रिस्तो रे (येशू ख्रिस्त) पुतळा)

तिथून जवळच ‘मॉन्युमेंट टू द डिस्कव्हरीज्’ उभारले आहे. पोर्तुगालमधील ज्या धाडसी दर्यावर्दींनी साहसी सागरी सफरीमध्ये भाग घेतला, आपल्या जिवाची बाजी लावली त्यांच्या स्मरणार्थ हे स्मारक १९६० मध्ये उभारण्यात आले. समुद्रावर आरूढ झालेल्या शिडाच्या भव्य नौकेसारखे याचे डिझाईन आहे. यावर पंधराव्या व सोळाव्या शतकातील २१ दर्यावर्दी, ज्यांनी पोर्तुगालचे समुद्रावरील अधिपत्य अधोरेखित केले त्यांचे पुतळे आहेत. या साऱ्यांच्या नेतृत्वस्थानी प्रिन्स  एनरीक, जो स्वतः उत्तम दर्यावर्दी होता त्याचा पुतळा आहे. या स्मारकाच्या बाजूला

लांबरुंद फुटपाथवर सबंध पृथ्वीचा नकाशा, जलमार्ग, सर्व देशांची महत्त्वाची ठिकाणे व त्यांच्या राजधानीचे ठिकाण वेगवेगळ्या रंगाच्या ग्लेज टाइल्समध्ये अतिशय सुंदर रीतीने दाखविले आहे.

‘जेरोनिमस मॉनेस्ट्री’ हा सोळाव्या शतकातील वास्तुकलेचा उत्कृष्ट नमुना आहे. या मोनेस्ट्रीच्या अंतर्भागातील डिझाईनमध्ये वास्को-डि-गामाने आपल्या सागर सफरींमधून जे असंख्य प्रकारचे सोने, रत्ने, हिरे, मौल्यवान धातू पोर्तुगाल मध्ये आणले त्यांचा वापर केलेला आहे.युनेस्कोने १९८३ मध्ये या मोनेस्ट्रीचा समावेश वर्ल्ड हेरिटेजमध्ये केला आहे. येशू ख्रिस्ताच्या आयुष्यातील अनेक प्रसंग इथे चितारलेले आहेत. प्रत्येक खांबावरील डिझाईन वेगवेगळे आहे. त्यावर धार्मिक चिन्हे, फुले, त्याकाळचे दागिने असे कोरलेले आहे.

या मोनेस्ट्रीमध्ये एका उंच चौथऱ्यावर वास्को-डि-गामाची टुम्ब ( थडगे ) आहे. त्यावर दोन्ही हात जोडून नमस्कार केल्याच्या स्थितीमध्ये आडवा झोपलेला असा वास्को-डि-गामाचा संगमरवरी पुतळा आहे. त्याच्या समोरच्या बाजूला पोर्तुगालचा प्रसिद्ध कवी व लेखक लुइस- डि- कामोस  याची तशाच प्रकारची टुम्ब आहे. या कवीने आपल्या महाकाव्यातून वास्को-डि-गामाच्या धाडसी सफरींचे गौरवपूर्ण वर्णन करून त्याला काव्यरूपाने अमर केले आहे. इसवीसन १५२४ मध्ये वास्को-डि-गामाचा मृत्यू कोचीन इथे झाला. त्यानंतर अनेक वर्षांनी त्याच्या मृतदेहाचे अवशेष पोर्तुगालला नेऊन ते या जेरोनिमस मोनेस्ट्रीमध्ये जतन करण्यात आले आहेत.

पोर्तुगाल म्हटलं की आपल्याला गोवा, दीव व दमण यांची आठवण होणं अपरिहार्य आहे. मसाल्याच्या व्यापारासाठी आलेल्या पोर्तुगीज, फ्रेंच, इंग्रज लोकांनी भारतातील राजकीय अस्थिरतेचा, फुटीरतेचा फायदा घेऊन हिंदुस्तानात आपले साम्राज्य स्थापन केले हा अप्रिय पण सत्य इतिहास आहे. पोर्तुगीजांनी सोळाव्या शतकात गोवा जिंकले. सत्तेबरोबर त्यांचा धर्मही रुजवायला सुरुवात केली. सत्ता, शस्त्रं, शक्तीच्या बळावर अत्याचार करून धर्मप्रसार केला. इंग्रजांचा इतिहासही काही वेगळे सांगत नाही.

भारत १९४७ मध्ये स्वतंत्र झाल्यावरसुद्धा गोवा स्वतंत्र होण्यासाठी १९६१ साल उजाडले. त्यासाठी गोवा मुक्तिसंग्राम घडला. गोवा सत्याग्रहामध्ये अनेकांचा बळी गेला. त्यानंतरही लिस्बनमधील तुरुंगात असलेले श्री मोहन रानडे यांची सुटका माननीय श्री सुधीर फडके यांच्या अथक प्रयत्नांमुळे झाली. हा सारा कटू इतिहास आपण विसरू शकत नाही. आजही गोवा, दीव, दमण इथे पोर्तुगीजकालीन खुणा चर्च, घरे, रस्त्यांची, ठिकाणांची नावे अशा स्वरूपात आहेत. पोर्तुगीज संस्कृतीचा प्रभाव तिथे जाणवतो.

इतिहास म्हणजे आपल्याला भविष्यकाळासाठी प्रेरणा देणारा काळाचा भव्य ग्रंथ आहे. भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्यात अनेक ज्ञात-अज्ञात वीरांनी परकीय सत्ताधीशांच्या अनन्वित अत्याचाराला तोंड देत मृत्यूला जवळ केले आणि आपल्याला अनमोल स्वातंत्र्य मिळवून दिले. भारताच्या उज्ज्वल भविष्यकाळासाठी समृद्ध वर्तमान काळ उभा करणे हे आपलं परम कर्तव्य आहे. त्यासाठी प्रत्येक भारतीयाचे आपापल्या क्षेत्रातील प्रामाणिक योगदान ही स्वातंत्र्यवीरांसाठी कृतज्ञ श्रद्धांजली होईल. आपल्या भावी पिढ्यांसाठी ती अनमोल देणगी होईल.

भाग ३४ व पोर्तुगाल समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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