हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 129 ☆ जान – पहचान ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “साध्य और साधन। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 129 ☆

☆ जान – पहचान ☆ 

कितनी बार कहा, मुझे आनन्द नहीं खुशी चाहिए। बस इसी खुशी के मोह में अधिकांश लोग घर में रहकर,आरामदायक स्थिति में ख्याली पुलाव पकाते रह जाते हैं। जब अपनी गलती अहसास होता है तो बोरिया बिस्तर समेट कर चल देते हैं। घर को त्यागना अर्थात आराम को छोड़ना; परिक्रमा का मार्ग जहाँ अहंकार का त्याग कर प्रकृति प्रदत्त दिव्य शक्तियों से जोड़ता है वहीं पैदल चलना आपको साहसी बनाने के साथ- साथ श्रेष्ठ चिंतक भी बनाता है। राह में जो मिले उसे स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना, जगह- जगह का भोजन, पानी, लोग, संस्कृति सबको आत्मसात करते हुए लक्ष्य तक पहुँचने में जो समय लगता है, उसे व्यर्थ नहीं कहा जा सकता है। जब आप सीखने की चाहत को लेकर आगे बढ़ते हैं तो मंजिल पर पहुँचने की कोई जल्दी नहीं रहती। हर पल को जीना अपने आप में स्वयं को पहचानने जैसा होने लगता है। जिसने खुद को जाना उसने सारे जगत को जान लिया।

कहते हैं, आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ते हुए  विनम्रता से सब कुछ पाया जा सकता है। सत्संग, रंग, संग, कुसंग, प्रसंग, अंग, प्रत्यंग, जंग, भंग, उमंग, तरंग, बेढंग ये सब केवल तुकांत नहीं है, जीवन की शैली है, जिसे समझने हेतु पथ पर चलना ही पड़ता है।

जिसने सहजता के साथ आगे बढ़ने को अपना लिया वो देर- सवेर सही शिखर पर विराजित अवश्य होगा। स्वयं को समझने का सबसे बड़ा लाभ ये होता है कि जीतने हारने के बीच का फर्क मिट जाता है बस व्यक्ति समाज कल्याण में ही सर्वस्व लुटा देने की चाहत रखता है। सबको जोड़ते हुए आगे बढ़ते रहें, टीमवर्क का रिजल्ट आशानुरूप से भी अधिक होता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 182 ☆ कविता – महानगर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय  कवितामहानगर।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 182 ☆  

? कवितामहानगर ?

बड़ा

और बड़ा

होता जा रहा है

शहर , सारी सीमाएं तोड़ते हुए

नगर , निगम,पालिका , महानगर से भी बड़ा

इतना बड़ा कि छोटे बड़े  करीब के गांव , कस्बे

सब लीलता जा रहा है महानगर ।

ऊंचाई में बढ़ता जा रहा है

आकाश भेदता ।

सड़कों के ऊपर सड़के

जमीन के नीचे दौड़ती

मेट्रो

भीतर ही भीतर मेट्रो स्टेशन

भागती भीड़

दौड़ती दुनिया

विशाल और भव्य ग्लोइंग साइन बोर्ड

पर

 

कानों में हेडफोन

मन में तूफान

अपने आप में सिमटते जा रहे लोग

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 139 ☆ बाल गीत – हवा – हवा कहती है बोल… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 139 ☆

☆ बाल गीत – हवा – हवा कहती है बोल… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

हवा – हवा कहती है बोल।

मानव रे! तू विष मत घोल।।

 

मैं तो जीवन बाँट रही हूँ

तू करता क्यों मनमानी।

सहज, सरल जीवन है अच्छा

तान के सो मच्छरदानी।

 

विद्युत बनती कितने श्रम से

सदा जान ले इसका मोल।।

 

बढ़ा प्रदूषण आसमान में

कृषक पराली जला रहा है।

वाहन , मिल धूआँ हैं उगलें

बम – पटाखा हिला रहा है।।

 

सुविधाभोगी बनकर मानव

प्रकृति में तू विष मत घोल।।

 

पौधे रोप धरा, गमलों में

साँसों का कुछ मोल चुका ले।

व्यर्थं न जाए जीवन यूँ ही

तन – मन को कुछ हरा बना ले।।

 

अपने हित से देश बड़ा है

खूब बजा ले डमडम ढोल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #140 ☆ भक्त शिरोमणी… संत नामदेव ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 140 ☆ भक्त शिरोमणी… संत नामदेव ☆ श्री सुजित कदम ☆

भक्त शिरोमणी संत

रेळेकर आडनाव

नामवेद नामविस्तार

सांप्रदायी‌ सेवाभाव…! १

 

वारकरी संप्रदायी

जन्मा आले नामदेव

दामाशेठ गोणाईला

प्राप्त झाली पुत्र ठेव….! २

 

गाव नरसी बामणी

जन्मा आले नामदेव

दामाशेठ गोणाईला

प्राप्त झाली पुत्र ठेव….! ३

 

सदाचारी हरिभक्त

शिंपी कुल  नामांकित

हरि भजनाचे वेड

नामदेव मानांकित…! ४

 

जिल्हा हिंगोली आजचा

नामदेव जन्म भुमी

कार्तिकाची एकादशी

सांप्रदायी कर्म भुमी…! ५

 

भागवत धर्मातील

आद्य प्रचारक संत

भाषा भेद करी दूर

नामदेव नामवंत…! ६

 

बालपण पंढरीत

लागे विठ्ठलाचा लळा

जेवी घातला विठ्ठल

फुलवला भक्ती मळा…! ७

 

घास घेरे पाडुंरंगा

निरागस भक्ती भाव

अडिचशे अभंगात

दंग झाले रंक राव….! ८

 

दैवी कीर्तन कलेने

डोलतसे पांडुरंग

भावनिक एकात्मता

सारे विश्व झाले दंग…! ९

 

दैवी कवित्व संतत्व

चिरंतन ज्ञानदीप

रंगे कीर्तनाचे रंगी

नामदेव ध्येय दीप…! १०

 

औंढा नागनाथ क्षेत्री

नागराजा आळवणी

भक्ती सामर्थ्य अद्भुत

फिरे देवालय झणी…! ११

 

महाराष्ट्र पंजाबात

बाबा नामदेव वारी

गुरूमुखी लिपीतून

नामदेव साक्षात्कारी…!१२

 

नामदेवाचे कीर्तन

वेड लावी पांडुरंगा

भक्ती शक्तीचा गोडवा

भाव  अभंगाच्या संगा . . . ! १३

 

विठ्ठलाची सेवा भक्ती

हेची जाहले संस्कार

निरूपण अध्यात्माचे

मनी जाहले साकार. .  . ! १४

 

ज्ञाना, निवृत्ती ,सोपान

समकालीन विभूती

गुरू विसोबा खेचर

नामयाची ज्ञानस्फूर्ती . .  ! १५

 

गौळण नी भारूडाचा

आहे अजूनही ठसा

जनाबाई ने घेतला

एकनाथी वाणवसा.. .  ! १६

 

देशप्रेम  आणि भक्ती

रूजविली नामयाने

भागवती धर्म शिखा

उंचावली संकीर्तने. . . ! १७

 

ग्रंथ साहिब ग्रंथात

नामदेव साकारला

हरियाणा, पंजाबात

प्रबोधनी आकारला. .  ! १८

 

संत कार्य भारतात

नामदेव सेवाव्रती

हिंदी मराठी पंजाबी

शौरसेनी भाषेप्रती…! १९

 

संत नामदेव गाथा

बहुश्रुत अभ्यासक

शीखांसाठी मुखबानी

भक्ती भाव संग्राहक…! २०

 

जेऊ घातला विठ्ठल

पायरीची विट झाला

भक्ती मार्ग  उपासक

भजनात दंग झाला . . . ! २१

 

पायरीच्या दगडाचा

महाद्वारी मिळे मान

आषाढाची त्रयोदशी

नामदेव त्यागी प्राण…! २२

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेच्या उत्सव ☆ प्रार्थना धरणी आईची… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

सौ. जयश्री पाटील

? कवितेच्या उत्सव ?

☆ प्रार्थना धरणी आईची… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

ऋणी ..धरणी आईचा

काळया सुंदर मातीचा

तूच ……जगत जननी

मुखी घास भाकरीचा. १.

 

तुझ्या कुशीत जन्मलो

ताठ जगलो ..वाढलो

तूच ..श्वास जीवनाचा

तुझ्या ..वरती पोसलो. २.

 

घाव …निमूट सोसते

भले बुरे ते ….झेलते

माया .‌‌..तरीही करते

सर्वांसाठी ….बहरते. ३.

 

देते भरभरु ….सारे

ठायी नसे  भेदभाव

किती गुण तुझे गावे

उपकारा नसे ..ठाव. ४.

 

टिळा लावतो मस्तकी

नित …चरण स्पर्शितो

अशी फुलावी फळावी

हीच ..प्रार्थना अर्पितो. ५.

 

नाते हे …..युगायुगांचे

तुझ्या कुशीत विश्रांती

तुझ्या सोबत …अखेर

आयुष्याची चीर शांती. ६.

 

© सौ. जयश्री पाटील

विजयनगर.सांगली.

मो.नं.:-8275592044

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – विचारात अशा, का गुंतली – ☆ डॉ. स्वाती पाटील ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? – विचारात अशा, का गुंतली  ? ☆ डॉ. स्वाती पाटील 

हिरवाई अंगी ।नेसून षोडशा।

विचारात अशा। का गुंतली ।।

 

असतील काही । प्रश्नांचे काहूर।

विचार करीते। सोडवाया॥।

 

दिसे शिकलेली। नार ही गोमटी।

कोणाकडे दीठी। लागलीसे ।।

 

स्वप्न रंजनात। असेल झुलत ।

प्रीत झोपाळ्यात। मनातल्या ॥।

 

की साजन गेला। पर मुलखाला ।

आठवून त्याला । वाट पाहे।।

 

डोळ्यात उदासी । झाली असे कृश।

भेटण्या जीवासी ।आतुरली ।।

 

© डॉ.स्वाती पाटील

सांगली

मो.  9503628150

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #161 – चिड़िया चुग गई खेत… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “चिड़िया चुग गई खेत…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #161 ☆

☆ चिड़िया चुग गई खेत…

रहे देखते स्वप्न सुनहरे

चिड़िया चुग गई खेत

बँधी हुई मुट्ठी से फिसली

उम्मीदों की रेत।

 

पूर्ण चंद्र रुपहली चाँदनी

गर्वित निशा, मगन

भूल गए मद में करना

दिनकर का अभिनंदन,

पथ में यह वैषम्य बने बाधक

जब हो अतिरेक

बँधी हुई मुट्ठी से फिसली….।

 

मस्तिष्कीय मचानों से

जब शब्द रहे हैं तोल

संवेदनिक भावनाओं का

रहा कहाँ अब मोल,

अंतर्मन है निपट मलिन

परिधान किंतु है श्वेत

बँधी हुई मुट्ठी से….।

 

लगे हुए मेले फरेब के

प्रतिभाएँ हैं मौन

झूठ बिक रहा बाजारों में

सत्य खरीदे कौन,

एक अकेला रंग सत्य का

झूठ के रंग अनेक

बँधी हुई मुट्ठी से फिसली

उम्मीदों की रेत।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 61 – जंगल में दंगल… भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  व्यंग्य  “जंगल में दंगल …“।)   

☆ व्यंग्य # 62 – जंगल में दंगल – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

जंगल में राजा शेर की मर्जी से वाट्सएप ग्रुप तो शुरु हो गया पर कुछ दिन सिर्फ राज़ा की रिकार्डेड दहाड़ की ही एकमात्र पोस्ट आती रही जिस पर चहेते और उपकृत पशु वाह वाह करते रहे. कुछ कमेंट्स की बानगी देखिये: आवाज़ हो तो ऐसी, सुनते ही हो जाय सबकी  ऐसी तैसी. पर जब ये ज्यादा चला नहीं तो सदस्यों की अरुचि को देखते हुये राजा शेर ने फिर से बैठक बुलाई और ग्रुप  में सबका साथ सबका मनोरंजन के सिद्धांत पर सहभागिता की अपेक्षा की.

ग्रुप का थीम वाक्य चुनने की प्रक्रिया में “Fittest will survive” सिलेक्ट किया गया.

जो शिकार होने के लिये ही पैदा हुये थे, उन्होंने दबी ज़ुबान से विरोध किया तो शेर ने समझाया कि अगर फिटेस्ट शिकार हो तो उसकी जीवन रूपी बैटरी लंबी चलेगी. अनफिट होने पर शेर को भी भूखे मरना पड़ जाता है. जंगल प्राकृतिक नियमों से चलते हैं और यहां रिटायरमेंट प्लान नहीं होते.

“जब तक सांस तब तक आस” जैसी कहावत सिर्फ मानव जीवन में संभव है. यहां कोई मसीहा नहीं होता न ही कोई अवतरित किताब जो जीवन जीने के नियम कानून कायदे बनाये. जंगल वो दुनिया है जो पाप पुण्य से परे है. यहां भोजन के लिये हिंसा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. जो शिकार बन गया वो स्वर्ग, नर्क और पुनर्जन्म की कल्पनाओं से परे अपनी कहानी उसी वक्त खत्म कर जाता है. न तो अस्थि विसर्जन, न पिंडदान, न ही तेरहवीं और न ही वार्षिक श्राद्ध.

लोगों को, सॉरी पशु पक्षियों को ये बात अपील कर गई और फिर कुछ सदस्यों ने आगे बढ़कर अपना रोल निर्धारित कर लिये. सुबह की गुडमार्निंग कड़कनाथ उर्फ मुर्ग मुसल्लम करने लगे. संगीत से ग्रुप को सज़ाने का काम मिस कोयल कुमारी और मि. पपीहा निभाने लगे. गिद्ध और चील समुदाय अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से दूसरे ग्रुप्स में चल रहे मैसेज को कॉपी पेस्ट करने लगे. कुत्तों ने पॉप संगीत के नाम पर भौंकना चाहा पर शेर की घुड़की से पीछे हट गये. इस तरह ये ग्रुप चलने लगा और जंगल की आवाज के शीर्षक का फायदा उठाते हुये सदस्यों की अभिव्यक्तियां भी सामने आने लगीं जिनका जवाब कभी एडमिन लोमड़ सिंह और कभी सरपरस्त राजा देने लगे जिसकी बानगी अगली किश्त में सामने आयेगी।

कहानी जारी रहेगी

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 161 ☆ मनमुक्ता ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 161 ?

☆ मनमुक्ता ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

मुक्त मनोमनी झाले

तरी का गुंतते आहे

पुन्हा हे स्वप्न सांजेला

अवेळी साकारताहे

 

जरी ना नीज डोळ्यात

पहाटे लागतो डोळा

खरी होतात ही स्वप्ने

 सजे स्वप्नात पाचोळा

 

जरी ही तृप्तता आली

 स्वतःला सांगते आहे

कळेना कोणता रस्ता

आता धुंडाळते आहे

 

पसारे आवरावे की

करावी संन्यस्त भाषा

कशी मी शिस्त लावावी

अशा बेशिस्त आयुष्या

 

मनाच्या एकांत वेळा

हव्याशा वाटतानाही

कुणी का ओढते आहे

मला गर्दीत आताही

 

असे अस्तित्व इवले

जणू मुंगीच छोटीशी

भरारी घ्यायची आहे

अखेरी याच आकाशी

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 31 – भाग 4 – कलासंपन्न ओडिशा ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 31 – भाग 4 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ कलासंपन्न ओडिशा ✈️

पुरीपासून ५० किलोमीटर अंतरावर ‘सातापाडा’ नावाचं ठिकाण आहे. तिथून चिल्का सरोवराला फेरफटका मारण्यासाठी जाता येतं. चिल्का सरोवराची लांबी ६५ किलोमीटर असून त्याचं क्षेत्रफळ ७८० चौरस किलोमीटर आहे. चिल्का सरोवराच्या ईशान्य भागात दया व भार्गवी या नद्या येऊन मिळतात. हे खाऱ्या पाण्याचं विशाल सरोवर आहे.  समुद्राच पाणी ज्या ठिकाणाहून सरोवरात येतं ते समुद्रमुख बघण्यासाठी मोटार लाँचने दोन तासांचा प्रवास करावा लागतो. सरोवरातील डॉल्फिन दिसतात. हे सरोवर जैव विविधतेने समृद्ध आहे. इथे जवळजवळ २०० प्रजातींचे हजारो स्थलांतरित पक्षी येतात.

संबलपूरहून १६ किलोमीटर अंतरावर महानदीवरील हिराकूड धरण आहे. महानदीचं पूर नियंत्रण, वीज निर्मिती, शेतीसाठी पाणी या उद्देशाने हे मोठं धरण बांधण्यात आलं आहे. पाणी अडविल्यामुळे इथे निर्माण झालेला प्रचंड मोठा तलाव हा आशियातील सर्वात मोठा तलाव समजला जातो.

संबलपुरी नृत्य व संबलपुरी साड्या प्रसिद्ध आहेत. राउरकेला इथला स्टील  प्लॅ॑ट हे ओडिशाचं आधुनिक वैभव आहे. नंदनकानन इथल्या प्राणी संग्रहालयात पांढरे वाघ बघायला मिळतात. इथे मगरींचे प्रजनन सेंटरही आहे.

ओडिशामध्ये मिळणारे ताज्या मासळीचे विविध प्रकार प्रवाशांना आवडतात. मैद्याच्या पारीमध्ये खोबरं व ड्रायफ्रूट्स घालून बनविलेल्या चौकोनी आकाराच्या, वर लवंग टोचलेल्या लवंग लतिका चविष्ट लागतात. दूध नासवून त्या घट्ट चौथ्यापासून जिलबी बनविली जाते. त्याला ‘छेना पोडा’ असं म्हणतात.

पुरीपासून जवळ भुवनेश्वर रस्त्यावर पिपली नावाचं गाव आहे. या गावात कापडाचे आणि आरशाचे तुकडे शिवून खूप सुंदर तोरणं, कंदील, पिशव्या, ड्रेसची कापडं बनविली जातात. त्याला ‘चंदोवा’ कला म्हणतात. अनेक  पर्यटकांची पावले खरेदीसाठी या गावाकडे वळतात. ही कला आता जगप्रसिद्ध झाली आहे.

पुरीहून साधारण दहा किलोमीटरवर रघुराजपूर आहे. या गावातली प्रत्येक व्यक्ती कलावंत आहे. इथल्या सर्व घरांच्या बाह्यभागावर सुबक नक्षी कोरलेली असते. उत्तम शिल्पकार, चित्रकार, लाकडावर नक्षी करणारे कारागीर, रंगकाम करणारे आणि ओडिशाचे वैशिष्ट्य असलेली ‘पट्टचित्र’ या खास कलेत पारंगत असलेले अनेक कलाकार इथे आहेत. साबुदाणा भिजवून त्याची खळ कापडाला लावून त्यावर रामायण, महाभारत आणि जगन्नाथ (श्रीकृष्ण ) यातील प्रसंगांवर चित्रं काढली जातात. त्यासाठी फक्त नैसर्गिक रंग वापरतात. हिंगुळ या नावाचा एक दगड असतो. त्याची पावडर करून लाल रंग मिळवितात. निळ्या रंगासाठी काही स्फटिक आणून ते दळून त्याची पावडर केली जाते. हळद, समुद्रफेस, खडूची भुकटी, काजळ, चिंचेचा डिंक अशांसारख्या वस्तू पट्टचित्र कलेमध्ये वापरल्या जातात. डॉ. जगन्नाथ महापात्रा यांनी ‘जात्रीपाटी’ ही शैली विकसित केली आहे. पट्टचित्राचं काम बरंचस या शैलीप्रमाणे केलं जातं. ओडिशा सरकारने या गावाला ‘ऐतिहासिक वारसा ग्राम’ असा विशेष दर्जा दिलेला आहे. बरेच परदेशी कलाकार ही कला शिकण्यासाठी इथे येतात.

ओडिसी शास्त्रीय नृत्यकलेला दोन हजारांहून अधिक वर्षांची परंपरा आहे. इसवीसन पूर्व २०० मध्ये लिहिलेल्या भरत मुनींच्या नाट्यशास्त्रात ओडिशी नृत्यकलेबद्दल लिहिलं आहे. ओरिया कविराज जयदेव यांचं ‘गीत गोविंद’ हे काव्य प्रसिद्ध आहे. कलिंग राजा खारवेल याने संगीत व नृत्यकलेला राजाश्रय दिला. आदिवासी लोकगीतं तसंच शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीताची परंपरा ओडिशामध्ये आहे. सुप्रसिद्ध नर्तक केलुचरण महापात्र यांचं जन्मगाव रघुराजपूर आहे. संयुक्ता पाणिग्रही, सुजाता मोहपात्रा, रतिकांत मोहपात्रा यांनी गुरुवर्य केलुचरण यांची परंपरा पुढे चालविली आहे.

मनोज दास, मोनालिसा जेना, कुंतला कुमारी असे अनेक प्रसिद्ध साहित्यिक ओडिशाला लाभले.न्यूयॉर्कला राहणाऱ्या आणि खूप वेगळ्या विषयांवर चित्रपट बनविणाऱ्या मीरा नायर या मूळच्या राउरकेलाच्या. ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेत्या डॉक्टर प्रतिभा राय या साहित्यातील अनेक पुरस्कारांनी सन्मानित आहेत. तरुण शास्त्रीय संगीत गायिका, स्निती मिश्रा ही मूळची ओडिशाची आहे.

महानदीच्या उदंड प्रवाहातील ओडिशाची अनेक अंगानी बहरलेली कलासंपन्न सांस्कृतिक परंपरा अखंडित आहे

भाग ४ व ओडिशा समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares