संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री मनोरमा दीक्षित जी द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत “स्मृति के झरोखे से…” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 126 ☆
☆ “स्मृति के झरोखे से…” (यात्रा वृतांत) – सुश्री मनोरमा दीक्षित ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
पर्यटन व यात्राओ को साहित्य की जननी कहा जाता है. पर्यटन के दौरान साहित्यकार का मन प्रकृति का सानिध्य पाकर स्वाभाविक रूप से उर्वर हो जाता है. नये नये अनुभव व दृश्य वैचारिक विस्फोट करते हैं. कुछ रचनाकार इस अवस्था में उपजे मनोविचारो को तुरंत बिंदु रूप में लिख लेते हैं व अवकाश मिलते ही उस पर रचना लिख डालते हैं. कुछ के मन में उपजे यात्रा जन्य विचार उमड़ते घुमड़ते हुये बड़े लम्बे अंतराल के बाद कविता, कहानी या लेख के रूप में आकार ले पाते हैं, तो अनेक बार मन में ही रचना का गर्भपात भी हो जाता है. यह सब कुछ लेखकीय संवेदनाये हैं. राहुल सास्कृत्यायन जी को घुमक्ड़ी साहित्य का बड़ा श्रेय है. इधर यात्रा साहित्य के क्षेत्र में कुछ नवाचारी प्रयोग भी किये गये हैं. लेखक समूह की किसी स्थान विशेष की यात्रायें आयोजित की गईं, फिर सभी से यात्रा वृत्तांत लिखवाया गया तथा उसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया है,मुझे ऐसी किताबें पढ़ने व उन पर चर्चा करने का सौभाग्य मिला है. मैंने पाया कि एक ही यात्रा के सहभागी लेखको की रचनाओ में उनके अनुभवो, वैचारिक स्तर के अनुसार व्यापक वैभिन्य था. अस्तु, इस सब के बाद भी हिन्दी का पर्यटन साहित्य बहुत समृद्ध नही है. ट्रेवेलाग की तरह की किताबों की बड़ी जरूरत है, जिससे पाठक के मन में पर्यटन स्थल के प्रति रुचि जागृत हो, उसे स्थल विशेष की अनुभूत जानकारियां मिल सकें तथा पर्यटन को बढ़ावा मिले. ऐसी पुस्तकें न केवल साहित्य को समृद्ध करती हैं, वरन पर्यटन को बढ़ावा देती हैं.
सुश्री मनोरमा दीक्षित
स्मृति के झरोखे से श्रीमती मनोरमा दीक्षित जी की ऐसी ही अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में मेरे सम्मुख आई है. अपने जीवन काल में उन्होने जिन अनेक पर्यटन स्थलो की यात्रायें की हैं उनमें से कुछ जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, नेपाल, गंगोत्री, यमुनोत्री, हैदराबाद, अमरकंटक, कुल्लू मनाली, घृष्णेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, शिरडी, जगन्नाथपुरी, कोणार्क, द्वारिका, रामेश्वरम, तिरुपति बालाजी, सहित उनकी कार्यस्थली मण्डला से जुड़ी अनेक विभूतियों का सविस्तार वर्णन प्रस्तुत पुस्तकमें उन्होने किया है. संक्षिप्त में कहा जावे तो किताब में विषय वैविध्य है. वर्णित स्थलो का आंखों देखा हाल है. सामान्यतः आम आदमी जो यात्रायें करता है, उसके अनुभव उस तक या वाचिक परम्परा से उसके परिवार व मित्रो तक ही सीमित रह जाते हैं, किन्तु जब श्रीमती मनोरमा दीक्षित जैसी कोई विदुषी, साधन संपन्न लेखिका ऐसी यात्रायें करती है तो उनके अनुभवो का लाभ ऐसी पुस्तको के प्रत्येक पाठक को मिलता है. निश्चित ही यह श्रीमती दीक्षित का नवाचारी विचार है, हमारी हार्दिक शुभकामना लेखिका के साथ हैं, मुझे भरोसा है कि यह पुस्तक साहित्य जगत में एक नई दस्तक देगी तथा यात्रा साहित्य के समुचित पुरस्कार से स्मृति के झरोखे से को सम्मानित कर हिन्दी साहित्य जगत गौरवान्वित होगा.
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – परदेश की अगली कड़ी “उल्टा पुल्टा”।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 13 – उल्टा पुल्टा ☆ श्री राकेश कुमार ☆
स्वर्गीय जसपाल जी भट्टी का एक कार्यक्रम “उल्टा पुल्टा” टीवी शो बहुत प्रसिद्ध हुआ था। यहां विदेश आने पर भी आरंभ में दैनिक जीवन यापन में बहुत कुछ ऐसा ही लगा, जिसे देख कर भट्टी जी की याद आ गई। ये भी हो सकता है, उनको भी अपने उल्टा पुल्टा कार्यक्रम की प्रेरणा यहीं से प्राप्त हुई हो।
विदेश आगमन पर जब कार की आगे की सीट के बाएं भाग में स्थान ग्रहण कर रहे थे, तो देखा वहां तो स्टेयरिंग लगा हुआ है, तब मेजबान ने बताया हमारे देश में दाएं तरफ स्टेयरिंग होता है, लेकिन यहां उल्टा बाएं तरफ होता है। कार चलते ही हमें लगा गलत दिशा में चल रही है, लेकिन सभी कारें दाहिनी तरफ चल रही थी। इसी प्रकार से पैदल चलने वाले भी दाएं तरफ चल रहे थे। हमें तो पाठशाला के दिनो से ही “बायें चल” शब्द कंठस्थ करवाया गया था। कहीं, पैंसठ वर्ष तक का जीवन गलत निर्वाह तो नहीं हो गया?
रास्ते में जब गैस स्टेशन (पेट्रोल पम्प) से पेट्रोल भरवाने के लिए रुके तो बहुत ही अजीब लगा, कोई विक्रेता पूछने नहीं आया कि कितने का करना है? स्वयं ही पाइप से भरने के पश्चात कार्ड से भुगतान वो भी बिना ओ टी पी मैसेज। क्या यहां कार्ड का दुरुपयोग/ फ्रॉड नहीं होते है? या यहां की व्यवस्था राम राज्य की कल्पना को साकार कर रहा हैं।
मेज़बान से जानकारी मिली की यहां तरल पदार्थ गैलन में मापे जाते हैं। हमारे देश में तो मैट्रिक प्राणली लागू हुए कई दशक बीत गए। ये अभी दर्जन, ग्रुस, पाउंड और गैलन में ही कार्य कर रहे हैं। सब्जी और अन्य ठोस पदार्थ को वजन पाउंड में मापा जाता हैं। हमारे देश में अभी भी कुछ पुराने लोग नए पैदा हुए बच्चे या केक का वज़न पाउंड में ही पूछते हैं।
घरों में लगे हुए बिजली के बटन (स्विच) भी उल्टे कार्य करते है, ऊपर रखने से बिजली प्रवाह रुक जाता है, और नीचे करने से घर रोशन हो जाता हैं।
जैसा चल रहा है, चलने दे, हमें क्या? हम तो ठहरे परदेशी।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “प्रोफाईल फोटो”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 144 ☆
लघुकथा 🎞️ प्रोफाईल फोटो 🖥️📞
जीवा मोबाईल, फेसबुक, व्हाट्सएप, पर तरह-तरह की सुंदर तस्वीरें डाला करती थी। मम्मी – पापा भी बहुत अच्छी बड़ी सोसाइटी में रहा करते थे। इसलिए जीवा को भी सब कुछ खुली आजादी थी। शादी की बात चलने लगी। लड़के वाले देखने आते परंतु कभी वे जीवा को पसंद नहीं करते और कभी कोई जीवा को पसंद नहीं आता।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ती चली जा रही थी। छोटा भाई भी कहने लगा…. कब तक इसे घर पर रखना पड़ेगा। मम्मी-पापा कहते हैं… इस घर पर उसका भी अधिकार है। बस सब मामला यहीं पर शांत हो जाता।
छोटे भाई का एक खास दोस्त आज अपने भैया हर्ष के साथ आया। बहुत ही साधारण परिवार का था। जीवा को हर्ष अच्छा लगा और उसके जाने के बाद उसकी प्रोफाइल फोटो देखकर उसके बारे में पता लगाया।
हर्ष एक प्राइवेट कंपनी पर काम करता था। काफी विचार कर जीवा ने उसे फोन पर कहा…. क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगे। हर्ष सुनता रहा। भाई भी परेशान हो गया। इतने बड़े-बड़े घर से रिश्ते आए और जीवा ने किसी को पसंद नहीं किया और कुछ खास नहीं है हर्ष अब इसे ये पसंद आ रहा।
भाई ने जीवा की बात संभाली और उसे कहा…. जीवा मजाक कर रही थी भैया। परंतु जीवा अपनी बात पर अड़ी रही। और एक दिन जीवा अचानक हर्ष के ऑफिस पहुंच गयी। उसका यह रूप देखकर वह दंग रह गया। साधारण कपड़ों में जीवा बहुत सुन्दर लग रही थी, न गहरी लाली, न आँखें काली कजरारी।
जीवा ने हर्ष को अलग अकेले में ले जाकर कहा…. हर्ष मुझे आपके जैसा ही जीवन साथी चाहिए। आप मेरी प्रोफाइल तस्वीर पर विचार मत करना। चाहे तो आप कुछ भी शर्त रख लो मैं आपके साथ बिल्कुल आपके जैसा ही जीवन जीने के लिए तैयार हूँ। मैं आज की बडी़ सोसाइटी के बीच रहने के कारण यह सब फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपलोड करती थी। तंग आ गई हूँ मैं इस रुप से। प्लीज मुझे अपना लो और शादी के लिए हां कह दो।
यह कह कर वह रोते हुए हर्ष की बाँहों में समा गई। हर्ष सोच नहीं पा रहा था आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में और इस हाई प्रोफाइल सोसायटी पर उसकी अपनी सादी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर कैसे छा गयी।
चं म त ग ! 🎁 रिटर्न गिफ्ट ! 🎁☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆
“गुडमॉर्निंग पंत !”
“हां, सुप्रभात.”
“हे काय, आज तुमचा मूड नेहमी सारखा दिसत नाही.”
“हो, आहे खरा आज थोडा त्रासलेला.”
“मला कारण सांगितलं पंत, तर तुम्हाला पण थोडं हलक हलक वाटेल आणि त्यावर काहीतरी… “
“तुला कधी, सरकारी किंवा कुठल्या ऑफिस मध्ये ‘लाल फितीचा’ त्रास झालाय ?”
“लाल फित म्हणजे…. “
“अरे, म्हणजे कुठचेही सरकारी काम, तू त्या ऑफिसला गेला आहेस आणि लगेच…. “
“काहीतरीच काय पंत, साध्या रेशन कार्डावरचा पत्ता…. “
“बदलायला पण दहा दहा खेपा माराव्या लागतात, बरोबर ना ?”
“आता कसं बोललात पंत !”
“अरे त्यालाच तर… “
“कळलं, कळलं, पण तुम्हाला कुठे आला हा लाल फितीचा अनुभव?”
“अरे त्याच काय झालं, मोनो रेल सध्या तोट्यात चालली आहे, म्हणून आता कमी गर्दीच्या वेळात त्याचा एखादा रेक…. “
“बारस, वाढदिवस, लग्न, कोणाची साठी, पंच्यातरी, असे समारंभ साजरा करायला भाड्याने देणार आहेत, ही बातमी कालच वाचली, पण त्याच काय ? तुम्हाला पण एखादा रेक भाड्याने…. “
“हवा होता म्हणून गेलो होतो चौकशी करायला तर… “
“पंत तुम्हाला कशाला…… “
“अरे माझ्यासाठी नाही, नातवाच बारस करणार होतो, मोनोच्या रेक मध्ये. कुणी विमानातून उड्या मारून हवेत हार घालून लग्न करतात, कुणी क्रूझवर मुंज ! म्हटलं आपण पण जरा वेगळ्या पद्धतीने नातवाचे बारसे करूया, म्हणून चौकशी करायला गेलो तर… “
“तर काय, उपलब्ध नाही म्हणाले का रेक ?”
“हो ना, म्हटलं कालच तर तुम्ही रेक भाड्याने देणार असं जाहीर केलेत आणि आज लगेच बुकिंग फुल्ल कसं काय ?”
“मग काय म्हणाला तिथला माणूस ?”
“तो म्हणाला, चारीच्या चारी रेक राजकीय पक्षांनी बुक केले आहेत म्हणून.”
“ते कशा साठी ?”
“अरे ज्या दिवशी मला बारशाला रेक पाहिजे होता त्याच दिवशी त्या सर्व पक्षांची कसली तरी मिटिंग आहे.”
“पंत, पण त्यांना चारही रेक कशाला पाहिजेत, एकात पण मिटिंग….. “
“होऊ शकते, पण सध्या तीन पक्षाच सरकार आहे ना म्हणून…. “
“मग तीन रेक पुरे की, चौथा तुम्ही बुक …. “
“करू शकत नाही, कारण ज्या अपक्षांनी बाहेरून सरकारला पाठिंबा दिला आहे त्यांची वेगळी मिटिंग चौथ्या…. “
“कळलं, म्हणजे तुम्हाला आता एखादा छोटा हॉल घेण्या शिवाय….. “
“पर्याय नाही खरा.”
“तुम्ही काळजी करू नका पंत, आपल्या अहमद सेलर चाळींचे सभागृह द्यायची जबाबदारी माझी !”
“मला ठाऊकच होत, तू मला या बाबतीत मदत…. “
“झालंच तुमचं काम समजा पंत, तुम्ही निश्चिन्त असा. पण मला एक वेगळाच प्रश्न पडलाय… “
“आता कसला प्रश्न?”
“ती तुम्ही आपल्या चाळीच्या गच्ची मधे कसली पोती….. “
“ती होय, अरे ती ‘बीटाची’ पोती आहेत, म्हणजे असं बघ…. “
“पंत आपण ज्या ‘बीटाची’ कोशिंबीर वगैरे करतो किंवा सॅलेड मध्ये….. “
“वापरतो तीच ही, अगदी बरोबर ओळखलस.”
“हो पण एव्हढी पोती भरून बिटाचं तुम्ही…… “
“सांगतो, सांगतो. अरे मोनो रेल मध्ये बारसे केले असते तर जवळच्याच लोकांना बोलवावे लागले असते, मग बाकीचे चाळकरी नाराज होणार…. “
“म्हणून त्यांना शांत करायला तुम्ही काय बिट…… “
“काहीतरी बोलू नकोस, अरे तेव्हढी….. “
“पंत, पण तुम्ही एव्हढी पोती भर भरून ‘बिट’ आणल्येत ना, की ती सगळी आपल्या आठ चाळींना…..
“पुरावित याच हिशोबानेच आणली आहेत बरं !”
“काय सांगता काय पंत, तुम्ही खरच आठी चाळींना….. “
“अरे नीट ऐकून तर घे, तू मगाशी मोनो भाड्याने देणार, ही बातमी वाचलीस म्हणालास ना, मग तशीच दुसरी एक बातमी तुझ्या नजरेतून सुटलेली दिसत्ये.”
“ती कुठची ?”
“अरे RBI चे ‘बिटकॉइन’ बद्दलचे अपील दिल्ली हायकोर्टाने फेटाळले, ती बातमी.”
“असं, म्हणजे आता ‘बिटकॉइन’ या आभासी चलनाला भारतात पण मान्यता….. “
“मिळाली आहे आणि बारशाच्या रिटर्न गिफ्ट मध्ये मला खरे ‘बिटकॉइन’ देण या जन्मीच काय पण पुढचे सात जन्म पण शक्य नाही, म्हणून मी बारशाचे रिटर्न गिफ्ट म्हणून येणाऱ्या प्रत्येक पाहुण्याला त्या सगळ्या बीटांची कॉइन पाडून ती वाटायचा माझा विचार पक्का झाला आहे.”
“खरच धन्य, धन्य आहे तुमची पंत !”
“आहे ना धन्य, मग तुझ्यासाठी बारशाच्या दिवशी एक एक्सट्रा कॉइन आठवणीने घेऊन जा, मला बारशाला हॉल मिळवून देणार आहेस ना, त्या बद्दल !”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – कहूँ योजना…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 117 – गीत – कहूँ योजना…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “सिर्फ भौंह की ओट…”।)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता –‘छकौड़ी की परेशानी’।)
☆ कविता # 166 ☆ ‘छकौड़ी की परेशानी’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता काश कर सकूँ…)