श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “लेटर बॉक्स”। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 129 ☆
☆ लघुकथा – लेटर बॉक्स ☆
शहर का एक मोड़, चौराहे से हटकर एक पेड़ के नीचे लाल रंग का खड़ा लेटर बॉक्स, अपनी कहानी कह रहा था। लगभग अस्सी साल के बुजुर्ग रामाधार रोज घर से निकलकर लाठी का सहारा लिए चलते – चलते वहां आते थे।
डाकिया बाबू का इंतजार करते हुए बैठे मिलते थे। प्रतिदिन की तरह केवल सरकारी ऑफिस के काम निपटाने वाली कागज और कुछ कार्ड निकलते थे। जिन्हें डाकिया बाबू लेकर चला जाता।
रामाधार को रोज बैठा देख उन्हें पूछा करते… “दादा किसकी चिट्ठी का इंतजार करते हो।” दादा रामाधार हंस कर कहते…. “मेरा बेटा बरसों से विदेश में है वहां से वह चिट्ठियां लिखेगा। उनका इंतजार करता हूं। कभी-कभी उसकी चिट्ठी आ जाती है। मैं रोज देखने आता हूं कि शायद आज आया होगा।”
डाकिया बाबू ने कहा…” दादा अब यह ‘लेटर बॉक्स’ सरकारी जैसा हो गया है। इसमें अब काम की चिट्ठियां कोई नहीं डालता। जमाना बदल गया है। कम से कम अब पारिवारिक चिट्ठियां तो कभी नहीं आती है।”
रामाधार को कान से कम सुनाई देता था। वह भी… “सरकारी नौकरी में ही गया है।” डाकिया बाबू को उन्होंने जवाब दिया। डाकिया बाबू अपना काम कर, लेटर बॉक्स बॉक्स बंद किए और चले जाते थे।
आज फिर निश्चित समय पर रामाधार वहां पर बैठे थे। उनके हाथ में एक चिट्ठी थी। डाकिया बाबू आए। खुश होकर उन्होंने कहा… “आज से साल भर पहले यह कार्ड आया था। आज ही के दिन।”
“आज मेरी चिट्ठी जरूर आएगी।” डाकिया बाबू ने देखा उनके हाथ में हैप्पी फादर डे का कार्ड अंग्रेजी के शब्दों में छपा लिखा था। डाकिया बाबू ने पत्रों को इकट्ठा किया। रामाधार जी की दो चिट्ठियां आई थी।
खुशी से झूम उठे। डाकिया बाबू से पढ़ने को कहा डाकिया बाबू ने पत्र पढ़ा….” मेरा तबादला कहीं और हो गया है पिताजी। अब मैं आपको पत्र नहीं लिख पाऊंगा। अपना ख्याल रखना।”
वह दोनों चिट्ठियों को लेकर घर की ओर चल पड़ा। एक चिट्ठी डाकिया बाबू को भी मिली। वह वहां पर पढ़ने लगे…. सरकारी आदेश था ‘यहां से लेटर बॉक्स को तुरंत हटा दिया जाए कहीं और सरकारी ऑफिस में रखवा दिया जाए।’
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈