हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #49 ☆ कविता – “मैं एक ग़रीब हूँ, हाँ मैं इंसान हूँ…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 49 ☆

☆ कविता ☆ “मैं एक ग़रीब हूँ, हाँ मैं इंसान हूँ …☆ श्री आशिष मुळे ☆

तुम्हारी इस कायनात का

एक मामूली ज़र्रा हूँ

छोटीसी एक ख़ुशी का

हरपल मैं ग़ुलाम हूँ

 

जितने जहाँ, देखो मैं दौड़ा हूँ

ख़ुदसे ही मगर देखो मैं हारा हूँ

भूखे बच्चे और डरी अबलाएं 

दुनिया में इनकी रहता हूँ

 

लफ़्ज़ों की दुबली रस्सी से

जन्नत पाना सोचता हूँ

एहसास की टूटी कश्ती से

जहन्नम पहुँच रहा हूँ

 

तेरी रोशनी हर दिन सदियोंसे

देख नहीं पाता हूँ

समशेरियों में ही क्यूँ

हर जवाब पाता हूँ

 

ये फूल ये कलियाँ ये ज़र्रा

दौलत इनकी देखता हूँ

नहीं बनाते मुझे तो क्या फ़र्क़ पड़ता

यहीं में सोचता हूँ

 

मैं एक ग़रीब हूँ

हाँ मैं इंसान हूँ

 

हा मैं वहीं जन्नत से गिरा

नंगा, घबराया आदम हूँ

 

मैं एक ग़रीब हूँ

हाँ मैं इंसान हूँ….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 228 ☆ बाल कविता – चलो पार्क में नाना जी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 228 ☆ 

बाल कविता – चलो पार्क में नाना जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बच्चों का संसार निराला।

निश्छल मन है मतवाला।

आर्यन जी नाना से बोले

चलो पार्क में मस्ती करने।

खेले-कूदें , झूला झूलें

देखें हम तो नकली झरने।

 *

बच्चों के सँग-सँग खेलेंगे,

ड्रेगन ट्रेन चलाएं हम।

बाइक राइड करें मजे से

फूलों -सा मुस्काएँ हम।

 *

जंपिंग राइड बड़ी अनोखी

कोलंबस तो और निराली।

बाइक राइड सैर कराए

सभी बजाएं मिलकर ताली।

 *

बुल राइड भी खेल खिलाए

आइस-पाइस की धमाचौकड़ी।

आइसक्रीम हमको खिलवाना

और खिलाना चाट-पकौड़ी।

 *

सभी चले हैं खुश होकर के

पार्क आ गया बच्चों वाला।

खेल देखकर नाना हँसते

बचपन सचमुच मधुवाला।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #255 – कविता – सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता सही-सही मतदान करें…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #255 ☆

☆ सही-सही मतदान करें…  ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चलो! आज कुछ बातें कर लें

जागरूक हो ज्ञान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।

 

मंदिर बना हुआ है लोकतंत्र का,

सबके वोटों से

बचकर रहना, लोभी लम्पट

नकली धूर्त मुखौटों से,

नहीं प्रलोभन, धमकी से बहकें

सौगन्ध विधान की। ……

 

जाती धर्म, रिश्ते-नातों को भूल,

सत्य को अपनाएँ

सेवाभावी, निःस्वार्थी को

वोट सिर्फ अपना जाए,

मन में रहे भावना केवल

देश प्रेम सम्मान की। …….

 

जिस दिन हो मतदान

भूल जाएँ

सब काम अन्य सारे

मत पेटी के वोटों से ही

होंगे देश में उजियारे,

महा यज्ञ राष्ट्रीय पर्व पर

आहुति नव निर्माण की। ……

 

मतदाता सूचियों में पात्र नाम

सब अंकित हो जाये

है अधिकार वोट का सब को

वंचित कोई न रह पाए,

बजे बाँसुरी सत्य-प्रेम की

जन गण मंगल गान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 79 ☆ धूप स्वेटर पहन कर आई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धूप स्वेटर पहन कर आई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 79 ☆ धूप स्वेटर पहन कर आई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हवाओं में

घुल रही ठिठुरन

धूप स्वेटर पहनकर आई।

 

ओस ने गीला किया

लो फूलों का तन

कँपकँपी के पाँव ने

जकड़ा है तन मन

 

शिराओं में

दौड़ती सिहरन

धुँध कुहरे को पकड़ लाई।

 

खेत में फैली ख़ुशी

अँकुराए हैं दिन

मेंड़ कहती कान में

धरती बनी दुल्हन

 

मचानों पर

बैठ अपनापन

फूँकता है सगुन शहनाई।

 

नदी बैठी घाट पर

सुड़कती है चाय

रात लेकर चाँद को

कहे टाटा बाय

 

कुनकुनी सी

सूरज की किरन

चुभ रही काँटे सी पुरवाई।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

११.११.२४

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 83 ☆ अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 83 ☆

✍ अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ज़ख्म दिल का ये हरा रोज़ कर दिया जाए

और ऊपर से नमक इसमें भर दिया जाए

 *

फिक्र क्यों करते हो जो बेचना उसे बेचो

इसका इल्जाम विदेशों पे धर दिया जाए

 *

अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी

जो मुसीबत में स्वयं अपना सर दिया जाए

 *

मुफ़लिसो को दो निवाले छुपाने सर को घर

मेरी पूजा का शरफ़ कुछ अगर दिया जाए

 *

कोई मायूस न हो कर रहा है जो मेहनत

काम का उसके मुताबिक समर दिया जाए

 *

माँगते वक़्त रखो ध्यान माँग जो मुमकिन

किस तरह हाथ में बोलो क़मर दिया जाए

 *

काटना चैन से तुमको अगर बुढ़ापे  को

खेत घर नाम न बच्चों के कर दिया जाए

 *

है अरुण तंग लगा योनियों के अब फेरे

हो करम तेरा जो आसां सफ़र दिया जाए

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 48 – फुर्सत…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – फुर्सत।)

☆ लघुकथा # 48 – फुर्सत श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

आज सुबह से कमल जी गुस्से में बड़बड़ाये जा रही थी । आजकल जाने क्या हो गया है बहू बेटे और मेरी अपनी बेटी को भी मेरे लिए समय नहीं है?

दिन भर सब घूमते फिरते हैं पर मुझे अपने साथ नहीं ले जाते?

मेरे बहू बेटे तो दिन भर मशीन की तरह पैसे कमाने में लगे हैं। बच्चों को हॉस्टल भेज दिया है मेरे लिए कोई सोचता ही नहीं कि मैं क्या करूं?

क्या हुआ माँ आओ चाय पी लो?

क्यों आज महारानी चाय नहीं बनाएगी?

एक काम तो करती थी वह भी नहीं होगा?

नहीं मां आज उसे ऑफिस जल्दी जाना था। प्रोग्राम है, वह चली गई रात में आएगी और आज खाने वाली भी नहीं आ रही है काम वालों की छुट्टी है तो तुम्हारे लिए खाना कुछ आर्डर कर दूं या कुछ बना दूं?

मैं ऑफिस में खा लूंगा।

नहीं नहीं तू रहने दे?

तुम्हारे साथ चलती हूं मुझे अपनी मौसी के घर में छोड़ दे आज हम दोनों बहन खूब घूमेंगे और बातें करेंगे।

ठीक है पर विमला मौसी को फोन तो कर दो?

यह तुम लोग करते हो फोन करना?

फोन में आरती पूजा कर लेना? हम अपनी बहन से  मिलेंगे तो क्या वह भगा देगी?

ठीक है अच्छा जल्दी तैयार हो।

अगर कोई दिक्कत होगी तो मां मुझे फोन करना मैं शाम को तुम्हें वहाँ से ले लूंगा।

विमल खाने बनाने में लगी रहती है वह कहती है कि चल बाहर जो पहाड़ी पर शिवजी का मंदिर है आज वही चलते है। बाजार भी चलेंगे बहुत दिन हो गया साड़ी खरीदें ।

दीदी  खाना बना रही हूं अभी बच्चे स्कूल से आ रहे होंगे पहले अपने बच्चों को संभाला अब नाती  को संभालती हूं। तुम्हारी बहू श्वेता तो बिटिया की तरह ही है, कितना ध्यान देती है पर सब की किस्मत ऐसी कहां?

ठीक है तू भी अपनी किस्मत सुधार लें मेरे घर 2 दिन रह? घर काटने को दौड़ता है।

तुम तो बचपन से ही ऐसी हो।

मन तो मेरा भी बहुत करता है।

क्या हो गया बड़ी मौसी आते ही मेरी बुराई शुरू कर दी?

नहीं नहीं बेटा कमल जी ने कहा- आज हम सोच रहे थे कि हम सभी मिलकर घूमने चलते हैं पहाड़ी वाले मंदिर।

मौसी आप बुढ़िया लोगों के साथ में मंदिर जाकर क्या करूंगी? माल या कहीं और चलती तो जरूर चलती।

आपके पास काम धंधे हैं नहीं  फुर्सत में हो मेरी भी सास को तुम अपने जैसी बिगाड़ दोगी।

तुम दोनों को वृद्ध आश्रम भेजना पड़ेगा।

देख मैं अपनी बहन को लेकर जा रही हूं और तू इस तरह मुझे ताने मत सुना। हम तुम्हारी सास हैं। जैसे तुम लोगों को फुर्सत में टाइम चाहिए। ऐसे हमें भी तुमसे फुर्सत चाहिए तू अपनी सास की चिंता मत कर अब अपना घर संभाल…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 250 ☆ हमराज… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 250 ?

☆ हमराज ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

किती कठीण आहे ना….

आपण जसे नाही ,

तसे दाखविण्याचा प्रयत्न करणं!

एक अशी जागा हवी असते,

जिथे आपण सांगू शकू,

मनाच्या सप्तपाताळात,

लपवून ठेवलेलं,

सारं काही !

 

म्हणूनच हवी असते एक सखी,

काळाजातले दुखरे कोपरे,

आनंद, उत्सव,

गोड गुपिते,

सारंच सांगायचं असतं—-

खरंखुरं!

मुक्त चर्चाच करायची असते !

 

तशी प्रत्येकजण,

जपतच असते — आपली इमेज!

जगत असते एक

मस्त मुखवटा चढवून!

 

पण एक जलाशय हवं असतं,

ज्याच्या नितळ पाण्यात,

दिसावं स्वतःचं प्रतिबिंब,

एक बिलोरी आरसा,

हवा असतो,

स्वतःचा खरा चेहरा

 दाखविणारा !

 

खरंच एक “हमराज”

हवा असतो,

ऐकवणारा आणि ऐकून घेणारा,

सखीच्या रूपात!

पण ऐकवणाऱ्या खूप भेटतात,

मी अशी ,मी अशी…

अहंकाराचे अनेक पापुद्रे…..

सूर्यप्रकाशा इतकं सत्यही नाकारणारे….

 

आपण आहोत तसे,

नवजात बालकासारखे,

स्वतःच्या सर्व खाणाखुणांसह….

नग्न सत्यासारखे…

जायचे असते सामोरे…

स्वतःतल्या स्वतःला!

 

आपण साऱ्याजणीच शोधात

असतो….

युगानुयुगे अस्तित्वात असलेल्या,

त्या स्त्री प्रतिमेच्या…..

प्रियंवदेच्या….अनसूयेच्या….

सत्यप्रियेच्या…होय ना ?

☆  

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 79 – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 79 – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जुर्म है मंजूर मुझको आशिकाना दोस्तो 

उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो

 *

छोड़ना मत, तुम मुहब्बत में वफा की राह को

चाहे, दुनिया का मिले, कोई खजाना दोस्तो

 *

गहरी, अमृत की लबालब झील-सी आँखें हैं वो 

आशिकी की आग, उनमें है बुझाना दोस्तो

 *

कौन बच पाया है, उन कातिल निगाहों से भला 

कब गया है, हुस्न का खाली निशाना दोस्तो

 *

जान देने को भी, मैं आ जाऊँगा आवाज पर 

वार मुझ पर वो करें यदि शायराना दोस्तो

 *

जश्न, रूमानी गजल के, हों हमारी मौत पर 

चाहता हूँ, मौत का जलसा मनाना दोस्तो

तुम जहाँ चाहो, वहाँ महबूब को आना पड़े 

पर इबादत की तरह उसको बुलाना दोस्तो

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆

रहा जगत में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।

वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।

 *

जीवन अद्भुत मंच है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।

अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।

 *

कठपुतली मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।

कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।

 *

जीवन तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।

जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।

 *

मन बहलाने के लिए, दिया खिलौना साथ।

टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “जलनाद” – लेखक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ चर्चा – डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ ☆

डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

अल्प – परिचय

शिक्षा – एम.एम., एम.एड.(स्वर्ण पदक), पीएच.डी.( मनोविज्ञान )

संप्रति –

  • पूर्व व्याख्याता, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
  • मनोवैज्ञानिक सलाहकार,
  • साहित्य एवं समाज सेवी, देहदानी
  • अनुवादक, समीक्षक, सम्पादक
  • अनेक मंचों की संरक्षक, निदेशक, मार्गदर्शक

प्रकाशन / प्रसारण –  

  • 12 पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें चार ई-ऑडियो बुक अमेज़न पर उपलब्ध(मेरी अपनी ही आवाज़ में )
  • अनेकों साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित, देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में (सविशेष हरिगंधा, राष्ट्र वीणा-गुजरात, सदीनामा, गर्भनाल, सेतु, ऑस्ट्रियांचल, नारी अस्मिता, व्यंग्यलोक में लेख-आलेख, समीक्षा आदि अनवरत प्रकाशित।
  • दैनिक पत्र हरियाणा  प्रदीप के स्थायी स्तम्भ में देश भक्ति भाव जागरण संदेश मुक्तक रूप में, सतत कई वर्षों से प्रकाशित। *अनेकों प्रतिष्ठित संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित।
  • साझा संकलनों में रचनाएँ, प्रकाशित।
  • चार साझा संकलन जिन्हें गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान प्राप्त, लघु योगदान अपना भी।
  • नाटक गुजरात राज्य, प्रथम पुरस्कार प्राप्त, दूर दर्शन पर गुजराती अनुवाद के साथ प्रसारित।

सम्मान और पद – 

  • राय व्योम फ़ाउण्डेशन दिल्ली द्वारा “ लाइफ़ टाइम एचीवमेंट अवार्ड, 2024”
  • ”संस्थापक अवार्ड “अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच द्वारा।
  • विदेश में  मकाम की प्रथम इकाई का शुभारम्भ, सैन डिएगो, कैलीफॉर्निया, अमेरिका में, मेरे द्वारा किया गया। आज विश्व के 42 देशों में 83 इकाइयाँ सक्रियता से कार्यरत हैं। प्रतिदिन विस्तार हो रहा है। हिन्दी भाषा के प्रचार -प्रसार एवं विस्तार हेतु कृत संकल्प।
  • साहित्य सेवा के लिए मकाम की विदेश संरक्षक पद पर पदासीन।
  • संत साहित्य अकादमी और दधीचि देहदान समिति की कार्यकारिणी सदस्य।

साहित्य सेवा द्वारा देश की सेवा हेतु कृत संकल्प।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित पुस्तक “जलनादपर चर्चा।

☆ “जलनाद” – लेखक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ चर्चा – डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ ☆

(विश्व वाणी संस्थान, जबलपुर ने श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव को उनके नाटक जलनाद पर राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित किया गया है।)

पुस्तक चर्चा

पुस्तक –  जलनाद (नाटक)

लेखक – विवेक रंजन श्रीवास्तव

समीक्षा – डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘

☆ अध्यात्म और यथार्थ का संगम है जलनाद का अंतर्नाद ☆ चर्चा – डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ ☆

सागर की उत्ताल तरंगों से सुशोभित आकर्षक आवरण मुखपृष्ठ अंतर्मन के कोलाहल का आस्वाद करा रहा है। बहुत ही खूबसूरत रंग संयोजन है। पुस्तक का आवरण पृष्ठ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, पाठकों को आकर्षित करने में। पढ़ने का मन सभी का हुआ होगा। जो भी देखेगा ज़रूर पढ़ेगा। बहुत-बहुत बधाई। शीर्षक भी स्वतः उद्घोष कर रहा है कि ‘तृतीय युद्ध की पृष्ठभूमि मैं ही बनूँगा। ’सारे वाद-विवाद, संवाद और नाद, आज इसी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। “जलनाद” इसी स्वर से न जाने कितने मधुर संगीत उपजे हैं। जल जीवन का पर्याय। जल अमृत है। जल  की आवाज़ मधुर व जीवनदायिनी है। सभ्यता-संस्कृति का विकास भी जल के किनारे ही हुआ। जल धारा जीवन का संकेत करती है। ऊपर से शांत अंदर कितना कोलाहल समेटे हुए है, यह तो अन्तर्मन में झांक कर ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। सागर के उस शोर को किसने सुना, किसने जानना चाहा। आवरण पृष्ट अपनी ओर आकर्षित कर यही संकेत कर रहा है कि मेरी अहमियत को जानो -पहचानो, समझो और स्वीकारो। वर्तमान की स्थिति तो और भी संकट भरी है। जलसंकट का संकेत जीवन को आगाह कर रहा है। सचेत कर रहा है। आज हम सभी को इस स्वर को सुनने की आवश्यकता है। प्रकृति के इस अनमोल ख़ज़ाने को अपने लिए ही सुरक्षित व संरक्षित करने की ज़रूरत है। गंगा प्रदूषित, पूजा कैसे करें ? नल है, पर पानी रहित, शो की वस्तु, कब तक सँभालें ?किस राज्य ने कितना पानी दिया और क्यों नहीं दे रहा ?सरकार और सत्ता ख़तरे में। कारण केवल जल। जल है तो जीवन है। जल बिना जीवन ही ख़तरे में आ गया है।

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

बारह खण्डों में पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व सभ्यता विकास से प्रारम्भ होती जल की ध्वनि, संकट की घड़ी का संकेत करती अपनी अहमियत दर्शाती, अपनी कोलाहल पूर्ण ध्वनि से आगाह कर रही है। शिकायत के साथ संरक्षण, संवर्धन और संचयन के लिए गुहार भी लगा रही है।

सागर मंथन की घटना और प्राप्त होने वाले रत्नों के साथ विष का उल्लेख, विषाक्त होता परिवेश, समाज और इंसान, सभी का बहुत सटीक चित्रण। प्रारम्भिक जल गीत भी जल का संदेश बखूबी स्पष्ट कर रहा है। जल का होना न होना, कम या अधिक होना, सभी कुछ प्रभाव डालता है। अभाव या कमी, जीवन संकट उत्पन्न करता है तो जल की अधिकता विनाश का कारण बनती है। अति वृष्टि -अल्प वृष्टि दोनों ही नुक़सानदेह है। प्रकृति के प्रतिकूल सारे कार्य प्रत्यक्षतःउपयोगी भले ही हों किन्तु जल देवता को नाख़ुश कर मानव जाति का भला हुआ है ऐसा नहीं कहा जा सकता। बॉंध बना कर प्रवाह रोकना, नहर निकाल दिशा में परिवर्तन, जल से विद्युत उत्पादन, अंधाधुंध जल दोहन, मानव, विकास के नाम पर और स्वार्थ हित न जाने कितने तरीक़े अपनाता रहा और अपना नुक़सान भी करता रहा, जो आने वाले दिनों में भयंकर परिणाम लाने की आगाही कर रहे हैं। पीने का शुद्ध जल बोतल में बंद हो कर विषैला हो रहा है और जन मानस के लिए उपलब्धता में भी कमी आई है।

जल स्तर दिनों दिन तेज़ी से गिरता जा रहा है। जल की शुद्धता जीवन के लिए ख़तरा बन गई है।

वर्तमान समय जल संरक्षण की माँग कर रहा है। इस दिशा में प्रत्येक व्यक्ति, समाज, राज्य और राष्ट्र को ध्यान देने की ज़रूरत है। इसी समस्या को ले कर विवेक जी ने नाटक के माध्यम से एक महत्वपूर्ण प्रश्न को सब के सामने रखने व समाधान की दिशा बताने का प्रयास किया है। कोई भी साहित्य दृश्य-श्राव्य और पठनीय तीनों ही माद्दा रखता हो तो समाज में उसकी क़ीमत बढ़ जाती है। वह स्वतः संग्रहणीय बन जाता है। केवल पढ़ कर मन पर जितना असर पड़ता है उससे कई गुना ज़्यादा नाटक के माध्यम से मंच पर देख व सुन कर पड़ता है। शब्द, वाक्य, परिस्थितियाँ, वस्तुस्थिति का जीता जागता उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, यही कारण है कि नाटकों का प्रभाव तेज़ी से मन पर पड़ता है और दीर्घकालिक रहता है।

अध्यात्म से जोड़ते हुए, रामचरितमानस में तुलसी दास जी द्वारा पंचतत्त्वों से रचित मानव शरीर में जल का महत्व बताते हुए, महाभारत काल की घटनाओं का समावेश, साथ ही ऐतिहासिक घटनाओं का समुचित उल्लेख कर सभी अंकों का चित्रांकन विलक्षण है। अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संगम है यह नाटक। रिफ़्रैक्शन, परावर्तन, इंद्रधनुष के रंग, रंगों के चित्रण हेतु नृत्यात्मक प्रस्तुति की परिकल्पना सभी कुछ विवेक जी की विवेकशीलता का परिचय दे रहे हैं। जीवन के प्रारम्भ का अद्भुत दृश्य। कामायनी का प्रसंग, कथन को सार्थकता प्रदान कर रहा है। वर्तमान को वर्षों पूर्व के गहरे अतीत से जोड़ना अपने आप में एक विलक्षण दृष्टि का परिचायक है।

समुद्र मंथन की पौराणिक गाथा। कपोल कल्पना को वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक आधार दे कर बड़ी ही कुशलता से प्रस्तुत किया है ताकि हर कोई इसे सहजता से स्वीकार कर ले। देवता-दानव, मोहिनी और विष्णु, मानव के बाहर नहीं भीतर ही हैं। बहुत ख़ूब !

विवेक जी ने हर विषय पर अपनी पूरी पकड़ को सिद्ध कर दिया है। रोचक व ज्ञानवर्धक और संप्रेषण की सारी व्यवस्था, विस्तार से बचा कर बहुत आसान बना दिया है नाटक को, मंच पर प्रस्तुत करने के लिए। न तो अतीत के आस्था और विश्वास को मिटने दिया है न ही कपोल कल्पना कह कर नकारने का अवकाश दिया है, वरन् वैज्ञानिकता के आधार पर सिद्ध कर स्वीकार्य बना दिया है ताकि सब यथावत् अस्तित्व में रहे। श्लाघनीय प्रयास। अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संयोग। कालिया नाग को नाथने का दृश्य जल प्रदूषण की विभीषिका का संकेत है। सँभलने की आवश्यकता है।

वाह ! नर्मदा व सोन नदी की पौराणिक गाथा को बड़ी ही वैज्ञानिकता से  चित्रित किया है। वर्णन इतना प्रभावशाली है कि मंच पर दृश्य उभर कर सामने उपस्थित से जान पड़ते हैं। उद्गम अमरकंटक के बीहड़ों में। आज तो वहाँ भी वह नीरव प्राकृतिक सुन्दरता नहीं रह गई है। मनुष्य ने कृत्रिमता इतनी लाद दी है कि कुछ भी प्राकृतिक शेष नहीं रह गया है। कंकरीट के जंगल वहाँ भी उगने लगे हैं। वहाँ की नीरव शांति और मधुर ध्वनि, जल का मीठा राग, कानों में रस नहीं घोलते। यही विकास है शायद, कि सब अब बनावटी हो जाए और आत्मीयता समाप्त हो जाए।

वरुण देवता के विश्राम में विघ्न

असमय, कुसमय का विधान और न मानने से होने वाले नुक़सान का बड़ा ही तर्कसंगत वर्णन। रोचक घटना  द्वारा महत्वपूर्ण संदेश।

मंचन आसान नही। विवेक जी की परिकल्पना भले ही आसान है।

हालाँकि पौराणिक घटनाओं को परस्पर जोड़ने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक आधार अपने आप में विवेक जी की अद्भुत प्रतिभा की ओर इंगित करता है। “महाभारत का युद्ध जल के अपव्यय के तहत ही हुआ। “

न इस तरह की अनोखी रचना होती न उपहास होता, न ही दुर्योधन अपमान का बदला लेता। बहुत ख़ूब !आज कृत्रिम झरने दिखावे के लिए जल का दुरूपयोग करते हैं और पानी बोतलों में बंद हो कर बिकने पर मजबूर है। संकट युद्ध की विभीषिका का आगाह कर रहा है।

कुम्भ मेले का आयोजन प्राचीनतम परम्परा का निर्वाह, आक्रांताओं ने भी बदलने का साहस नहीं किया। जल की सामाजिक महत्ता को ही प्रतिपादित करते हैं ये कुम्भ के मेले।

धार्मिक पर्यटन, राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान और अनवरत चल रहे कुम्भ मेलों की प्रासंगिकता एवं अनिवार्यता पर प्रकाश डाला है कि कैसे ये मानसिक व शारीरिक शुचिता के लिए ज़रूरी हैं। यहाँ प्रवचन, दीक्षा ग्रहण आयोजन आदि सम्पन्न होते हैं। आध्यात्मिक उन्नयन के आधार हैं ये सभी मेले और आध्यात्मिक टूरिज़्म के आयोजन।

कालिदास के मेघदूत  का उल्लेख, जल का मानवी करण, विलक्षण है। भारतीय परिकल्पना, ” कि कण-कण में भगवान है। ”जड़ भी चेतन है। पशु-पक्षी, नदियां, पत्थर भी पूजे जाते हैं। मेघों के द्वारा संदेसा भेजना मेघों को संदेश वाहक बनाना, मेघों को सजीव समझना है। यही विशेषता है भारत की। विवेक जी ने चुनिंदे प्रसंगों के माध्यम से जल की महत्ता को शास्त्रीय नृत्य-संगीत द्वारा रोचक बना कर प्रस्तुत करने व संदेश देने का विलक्षण प्रयास किया है।

मांडू का जहाज़ महल, वाटर हार्वेस्टिंग, पानी की बचत संरक्षण व संवर्धन के उपायों का ऐतिहासिक प्रबंधन की ओर संकेत करता  है। पानी का अभाव न था फिर भी दुरुपयोग न था। व्यर्थ पानी बर्बाद नहीं करते थे। क्या पूर्वज भविष्य द्रष्टा थे ? शायद हाँ। तभी तो पुराने महलों व पुरानी इमारतों में घर में ये सारी व्यवस्थाएँ उपलब्ध थीं।

आज हम जानते-बूझते, देखते और महसूस करते हुए भी समझ नहीं पा रहे हैं। कल कितना भयंकर होने वाला है अभी से पता चल रहा है। बोतलों में बंद मंहगा पानी आगाह कर रहा है लेकिन हम फिर भी नहीं देखना चाहते।

मांडू गई तो हूँ लेकिन तब जल संकट ऐसा न था कि महल को इस दृष्टि से भी देखने का प्रयास किया जाता। आज हर किसी को इस नज़रिए से देखना और अमल में लाने का विचार करना ज़रूरी बन गया है।

इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र अध्यात्म और विज्ञान का अनूठा संगम है “ जलनाद “ विवेक जी की परिकल्पना अद्भुत है और प्रस्तुति का स्वरूप अद्वितीय – अप्रतिम।

नदी की मनोव्यथा

नदी चीख कर कहती है मेरी दुर्दशा के ज़िम्मेदार मानव तुम ही हो और अब तुम ही मेरा उद्धार करोगे। नदियों ने हमें जल दिया, जीवन दिया, सभ्यता दी, संस्कृति दी, प्राण भरे, अब हमारी बारी है समझने की। अपने उत्तरदायित्व को समझें और निर्वाह करें। नदी स्वयं अपनी व्यथा – कथा, क्षति, असमर्थता का प्रलाप कर रही है और अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगा रही है, चेतावनी देते हुए।

‘सौ साल पहले हमें जल से प्यार था। ’ जी हाँ हम खेल भी यही खेलते थे और गीत भी यही गाते थे। ”गोल-गोल रानी इत्ता-इत्ता पानी “ और “ मछली जल की रानी है। ” शायद यह भविष्य का संकेत था कि जब जल कम रह जाएगा या सिर से ऊपर हो जाएगा तो जीवन नहीं बच पाएगा।

गंगा जल और आब-ए-ज़मज़म और बपतिस्मा  की ख़ासियत भी विवेक जी ने बखूबी याद रखा है। सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी का गहराई से अध्ययन कर, नाटक को सशक्त बनाने के लिए आवश्यकतानुसार बखूबी उपयोग किया है विवेक जी ने। जल मानव जीवन की औषधि है। प्राणी जगत के जीवन का आधार है तो हर धर्म में इसकी अहमियत और पवित्रता की चर्चा समान रूप से होनी ही है। धार्मिक आधार पर मौलवियों -पंडितों, गुरुजनों के माध्यम से सारगर्भित जानकारी देते हुए जल संचयन की ताकीद करता “ जलनाद “ नाटक, सराहनीय।

जल तरंग, जल वाद्य यंत्र जिसमें निर्धारित आकार के बर्तनों में निश्चित मात्रा में जल भर कर मधुर ध्वनि प्राप्त की जाती है।

जल तरंग मात्र एक विशिष्ट वाद्य यंत्र नहीं, पंचतत्त्वों का संगम है।

जिसमें  जल तो  है ही, कटोरी – भूमि, जल का तापमान अग्नि, वातावरण यानि आकाश और वायु। पाँचों तत्त्व मिल कर निर्मित है। ऋग्वेद की ऋचाओं द्वारा व उनके भावार्थ को गीत के माध्यम से प्रस्तुत कर नाटक को एक महान ग्रंथ के रूप में ला खड़ा किया है, विवेक जी ने। इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई।

वस्तुतः यह महज़ एक नाटक नहीं विलक्षण ग्रंथ है, पठनीय, संग्रहणीय और मंचनीय।

हे जल के देवता !

यही ख़ासियत है भारत की कि, जल भी देवता है। जिससे हमें जीवन मिले वह देवतुल्य हो जाता है। ऋग्वेद की ऋचाओं का लक्ष्यभेदी हिन्दी रूपांतरण भी प्रभावशाली।

विवेक जी के ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म के मिश्रण को नमन जल रसायन की विस्तृत समीक्षा, व्याख्या एवं स्वरूप का आद्योपांत रोचक वर्णन सराहनीय। भाषा-शैली, सुरुचि पूर्ण एवं कथ्यानुरूप। विवेक जी की इस विलक्षण कृति की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कम से कम मैंने तो यही अनुभव किया है।

स्त्री-पुरुष स्वर में सूत्रधार की भूमिका नाटक में जान डाल रही है। बहुत ही सलीके से सभी परिस्थितियों को उजागर करते हुए नाटक के प्रति जिज्ञासा, उत्सुकता जगाती जानकारी दर्शक को बांधे रखने में पूर्णतः समर्थ है। एक अलग ही अनोखापन है। विवेक जी की परिकल्पना को बारम्बार बधाई।

मुझे यह नाटक ख़ास पसंद क्यों आया या मैं विशेष रूप से इधर आकर्षित क्यों हुई, कारण यह है कि मैंने भी एक नाटक संग्रह ( “कौन सीखे-कौन सिखाए “) प्रकाशित किया है, जिसमें चुने हुए नाटक, राज्य स्तर पर पुरस्कृत एवं दूरदर्शन व आकाशवाणी से प्रसारित हैं। मैंने भी संसाधन संरक्षण, आपदा प्रबंधन, साम्प्रदायिकता के कुप्रभाव से ख़ुद को परे रखने एवं साक्षरता के महत्व से लगते नाटकों की रचना की, जिनकी मंचीय प्रस्तुति पाठकों व दर्शकों को बहुत पसंद  आयी। खूब सराहना मिली। विवेक जी का यह नाटक अद्भुत है। सत्य-तथ्य, गल्प और पैराणिकता की वैज्ञानिक आधारशिला से समृद्ध, भारतीय सभ्यता-संस्कृति, आस्था व विश्वास को ठोस बनाती यह कृति न केवल पठनीय है वरन् मैं तो कहती हूँ कि संग्रहणीय है। सभी बुद्धिजीवियों की लाइब्रेरी में होनी ही चाहिए। साथ ही इसका जितना अधिक से अधिक मंचन किया जा सके उतना श्रेयस्कर है।

विवेक जी से अनुमति ले कर, यदि उनकी स्वीकृति होगी तो मैं भी जिन मंचों से कुछ थोड़ा नाता रखती हूँ उन्हें आपकी पुस्तक लेने और मंचन करने के लिए अनुरोध करूँगी। औपचारिकताएं आप परस्पर पूरी करिएगा। मैं केवल मंचों तक जानकारी उपलब्ध कराना चाहती हूँ। बहुत सी अच्छाइयाँ अनजाने ही हमसे दूर रहती हैं। पास लाने का प्रयास मात्र होगा। ज़रूरी है। संदेशात्मक नाटक। अवश्य अनेकों बार इस नाटक का मंचन हुआ ही होगा। न जाने कितने लोग लाभान्वित भी हुए होगे।

विवेक जी के सूक्ष्म अवलोकन, समसामयिक समस्या के प्रति चिंतित होना, बखूबी अभिव्यक्त हो रहा है। शब्द चयन, संवाद, भाषा-शैली एवं सम्प्रेषण कला का, परिचय मिल रहा है। प्रस्तुति रोचक और प्रभावशाली है। नाटक मंचन की पूरी-पूरी व्यवस्था भी कर रखी है विवेक जी ने, कि कोई दिक़्क़त न हो। सूक्ष्मतम जानकारी पूरे विस्तार से दिया है, जो अपने आप में विलक्षण है।

बहुत-बहुत बधाई एवं आकाश भर हार्दिक शुभकामनाएँ! 🙏 

समीक्षक – डॉ दुर्गा सिन्हा  

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

सम्पर्क — +919910408884

Email [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares