हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#52 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #52 –  दोहे ✍

मौन नहीं मुखरित हुआ, किया शब्द संधान ।

तुमने तो केवल सुनी,  देहराग की  तान  ।।

 

आंखों में तस्वीर है  शब्दों में  तासीर ।

एकांगी हो पथ अगर, बढ़ जाती है पीर ।।

 

भिक्षुक से ज्यादा सदा, है दाता का मान ।

रखा कटोरा रिक्त तो यह भी है अहसान।।

 

मधुर मदिर मनभावनी, लजवंती अभिराम।

वय: संधि शीला सदृश्य, यह फागुनायी शाम।।

 

सौम्या, रम्याकामिनी, छवि सौंदर्य प्रबोध।

बसी रहो उर उर्वशी, एकमात्र अनुरोध ।

 

सम्मोहित ऐसा किया, लेता हिया हिलोर ।

कब संझवाती बीतती, कब होती है भोर।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 51 – झाँक रही वेदना… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “झाँक रही वेदना…  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 51 ☆।। अभिनव गीत ।।

झाँक रही वेदना …  ☆

अपने में हिलगी है ,

एक अदद टहनी खजूर की |

डोरी पर क्लिप लगी सूख रही

कुर्ती ज्यों  डायना कुजूर की ||

 

नीचे है रेत ,धूप

चढ़ी आसमान में |

बदल गयी गढ़ी जैसे

खाली मकान में |

 

मुर्गी की कलगी है

रक्तवर्ण ,अग्निरेख दूर की |

या जैसे लाल सुर्ख आँखों से

झाँक रही वेदना मजूर की ||

 

लम्बग्रीव- तना  ,पीठ

जैसेघड़ियाल की |

छाया तक नहीं मिली

जिसकी पड़ताल की|

 

शाप ग्रस्त  मुलगी  है

रूपवती जैसे अखनूर  की |

नजरों में चढ़ी रही कब से वह

ऐसे ही बेशक हुजूर  की ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-04-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 98 ☆ गठबंधन खुलि खुलि जाय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका अतिसुन्दर विचारणीय व्यंग्य  ‘गठबंधन खुलि खुलि जाय)  

☆ व्यंग्य # 98 ☆ गठबंधन खुलि खुलि जाय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

डी एन ए भी गजब की चीज है लौट लौटकर वहीं गठबंधन करता है जो जांच की मांग रखता है ।

जब वे हिमालय से ज्ञान लेकर लौटे तो उन्होंने सबसे पहले गधों के बाजार देखने की इच्छा जाहिर की, गुरु जी ने मुझे आदेश दिया कि जाओ इनको गधों के बाजार की सैर करवा दो ………।

हम दोनों चल पड़े, एक बड़ा भूभाग है जिसमें गधों का बाजार भरा रहता है, गधे के महत्व के अनुसार हर क्षेत्र में सीमाएं निर्धारित की गईं हैं ताकि सुशासन विज्ञापनों में जिंदा रहे, समय समय पर गधों के खरीददार, गधों की कीमत तय करते रहते हैं, कीमतों में नियंत्रण के लिए कई बार गधों की शिफ्टिंग भी करनी पड़ती है, “गधे मेहनती होते हैं” और गठबंधन की राजनीति खूब जानते हैं , ताने -उलाहने देना उनकी हिनहनाहट में दिख जाता है, कभी रूठ भी जाते हैं मनाओ तो मान भी जाते हैं, कुर्सी के चक्कर में खींझना, खिसियाना ये खूब जानते हैं ……………!

ये देखिए इस गधे का रेट इस समय सबसे ज्यादा चल रहा है “गठबन्धन मास्टर” है ये, जहाँ उम्मीद भी नहीं होती है वहां गठबन्धन कराके कुर्सी खाली करा लेता है । बड़े बड़े महागठबंधनों को एक झटके में तोड़ देना इसकी खास दुलत्ती में शामिल होता है ………… बाल ….

साब बालों पे मत जाईये बाल कम इसलिए हैं कि गठबन्धन के चक्कर में दूसरों के बाल नोंचने के साथ अपने बाल भी नोंचवाना पड़ता है इन दिनों बाजार में इसके चर्चे खूब हैं इसलिए रेट भी ज्यादा चल रहा है ……..

देखिए इस शेड में चलिए …..

यहाँ पर पुराने गधे और नये गधे साथ साथ आपस में दुलत्ती मारते रहते हैं, यहां के नये गधे आलू को  फेक्ट्री में बना हुआ मानते हैं, इस शेड के गधों में अजीब तरह की हताशा है कई बिना बिके रात को गधैया के चक्कर में भाग जाते हैं और कई को तरह तरह की बीमारियां हो गईं हैं ……..!

गठबन्धन के तरह तरह के नाटक देेखना हो तो आगे वाले शेड की तरफ चलिए, यहां के गधे बहुत नौटंकीबाज होते हैं इनका रेट चढ़ता गिरता रहता है, पर मजाक करके हंसने हंसाने के ये विशेषज्ञ हैं, दुलतती मारने में इतने तेज हैं कि कुर्सी में टांग फसाके गिरा देगें और खुद बैठ जाएंगे, गधों के गठबन्धन का मुखिया कहता रहा कि महागठबंधन की मजबूती के लिए २० सूत्रीय कमेटी हर महीने मींटिग करेगी, खूब मीटिंगे हुई, खूब खाया पीया गया जब खा खा के सबके पेट निकल आए तो छबि बनाने के चक्कर में “छबि और छोड़” वाले रास्ते से महुआ पीने भाग गए, लौटे तो नशे में अपनो को दुलतती मार मार कसाई के घर में घुस गए …….!

ये गेट के अंदर सुरक्षित गधों को देख रहे हैं न,अरे यही जिनके एक ही रंग की पछाड़ी ह  ,इनकी खासियत है ये मौके आने पर कोई को भी बाप बना लेते हैं और बाद में उसको बधिया बनाके ईंटा पत्थर ढ़ोने लायक बना देते हैं, इस शेड में हमेशा ताला लगा के रखा जाता है, यहां विशेष प्रकार के शौचालय बनाए गए हैं और साल में दो बार इनको शुद्ध जल पिलाया जाता है ……….!

चलें थोड़ा आगे चलते हैं हालांकि आप की हालत बता रही है कि आप थोड़े ज्यादा थक गए हैं कुछ चाय -पानी ले ली जाए …….

इधर पड़ोस में आलूबंडा ,चाय की दुकान है जहां खाट में ढाढ़ी मूंछे वाले खरीददार गठबंधन पर बहस कर रहे हैं, सुटटा खीचते हुए वे बोले – जब गठबंधन निजी सियासी फायदे के लिए किया जाता है तो चुनाव के बाद बड़े नेताओं को जनता की थाली में उल्टी करने की आदत हो जाती है, डीएनए की भले जांच न हो पर गंगा मैया का बेटा बनने का फैशन चल पड़ता है ………….

– भैया ,बिना शक्कर की दो चाय बना दोगे क्या ?

– पुलिया के ऊपर बैठ कर कांच के गंदे से गिलासों में चाय की चुस्कियां लेते हुए साहेब भावुक हो गए, कहने लगे – ये “गठबंधन “बहुत बुरा शब्द है भैया ……..!

मैंने पुलिया के नीचे झांका …… पानी के डबरे में उसका झिलमिलाता चेहरा दिख रहा था जो मुझसे प्रेम के बहाने का गठबंधन करके किसी और के साथ सात फेरे, चौदह वचनों के गठबंधन के साथ भाग गई थी ।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #42 ☆ रेशम के धागे ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है रक्षाबंधन पर्व पर विशेष कविता “# रेशम के धागे #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 41 ☆

☆ # रेशम के धागे # ☆ 

कितने पवित्र है

यह रेशम के धागे

जिनकी बहना है

उनके तो है भाग जागे

गर बहन नहीं हो

तो जीवन है सूना

गर भाई नही हो

तो जीवन में दर्द है दूना

भाई-बहन सा प्यार

जग में मिलना है दुश्वार

यह याद दिलाने आता है

राखी का त्योहार

 

इक बहना ने,

आरती उतारी, टिका लगाया

भाई के कलाइपे राखी बांधी

भाई ने रख्खा सरपे हाथ

बोला-

तुझपे ना आए कोई आंधी

जीवन भर तेरी

रक्षा करूंगा

पूरी तेरी मै हर इच्छा करूंगा

तू जरूरत में आवाज़ तो देना

भैया कहके मुझे बुलाना

आ जावूंगा मैं दौड़के

सारे काम काज छोड़के

तू तो है दुनिया में न्यारी

मां-बाबा और हम

सबकी प्यारी

वो भाई को

ऐसे लिपट गई

मानो सारी दुनिया

वहीं सिमट गई

भूल गई वो दु:ख दर्द सारे

जैसे मिल गये उसे चांद-सितारे

राखी,

भाई बहन के स्नेह का

अनमोल है बंधन

मै शत् शत् करता हूं

इस पवित्र रिश्ते को वंदन

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 44 ☆ वृद्धापकाळातील वेदना ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 44 ☆ 

☆ वृद्धापकाळातील वेदना ☆

वृद्धापकाळातील यातना

बोलक्या, तरी अबोल होती

स्व-अस्तित्व मिटतांना

डोळ्यांत अश्रू तरळती…०१

 

वृद्धापकाळातील यातना

थकवा प्रचंड जाणवतो

आधार हवा, प्रत्येक क्षणाला

जवळचाच तेव्हा, मागे सरकतो… ०२

 

वृद्धापकाळातील यातना

विधिलिखित असतात

परिवर्तन, नियम सृष्टीचा

विषद, लिलया करून देतात…०३

 

वृद्धापकाळातील यातना

भोगल्याशिवाय, गत्यंतर नाही

प्रभू स्मरण करत रहावे

तोच आपला, भार वाही…०४

 

वृद्धापकाळातील यातना

न, संपणारा विषय हा

“राज” हे कैसे, प्रस्तुत करू

अनुभव, प्रत्येकाला येणार पहा…०५

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #101 ☆ व्यंग्य – मुहल्ला लकड़गंज में धरम की हानी ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘मुहल्ला लकड़गंज में धरम की हानी’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 101 ☆

☆ व्यंग्य – मुहल्ला लकड़गंज में धरम की हानी

मुहल्ला लकड़गंज शूरवीरों का मुहल्ला है। मुहल्ले की सबसे लोकप्रिय जगह नुक्कड़ पर बनी कलारी है। शाम को सात बजे के बाद मुहल्ले के साठ प्रतिशत वयस्कों के कदम उसी दिशा में जाते हैं।  जाते वक्त वे बहुत सामान्य, ढीले-ढाले और भीरु लोग होते हैं, लेकिन लौटते में वे दुनिया को ठेंगे पर रखते, देश के प्रधान-मंत्री से लेकर मुहल्ले के थानेदार तक को ललकारते लौटते हैं। फिर रात के बारह एक बजे तक ज़्यादातर घरों में धमाचौकड़ी मचती है, बर्तनों और चीज़ों की तोड़फोड़ होती है, उसके बाद बेहोशी की शान्ति छा जाती है।

यह कार्यक्रम और वीरता साल दर साल इसलिए चलती रहती है क्योंकि घरों की ज़्यादातर महिलाएँ धार्मिक प्रवृत्ति की हैं और उनको घुट्टी में पिलाया गया है कि पति भले ही दारू पीकर पूरे घर को सिर पर उठाता हो लेकिन वह दरअसल परमेश्वर है और उसकी पूजा फूल-पत्र को छोड़कर और किसी चीज़ से नहीं करनी है।

मुहल्ले के इन्हीं सूरमाओं की पहली पाँत में नट्टूशाह हैं। घर में बच्चे अभी इतने बड़े नहीं हुए कि उन्हें ठोक-पीट कर काबू में रख सकें, इसलिए शाम को पीने के बाद शेर बनकर दहाड़ने लगते हैं। तीन चार घंटे ऐसा नाटक करते हैं कि रोज़ मुहल्लेवालों का बिना टिकट भरपूर मनोरंजन होता है। गालियों में नाना प्रकार के प्रयोग करते हैं, रोज़ दो चार नयी गालियाँ रच लेते हैं। पूरे घर में खाना बिखेरते हैं, और फिर जो सोते हैं तो सबेरे दस बजे तक मुर्दे की तरह पड़े रहते हैं। मक्खियाँ उनके मुँह में अनुसंधान करती रहती हैं। पत्नी आजिज़ है।

एक रात नट्टूशाह रोज़ की तरह पीने के दैनिक कार्यक्रम के बाद अपनी पत्नी शीला देवी का जीना हराम कर रहे थे। उनका प्रिय शगल अपनी पत्नी के नातेदारों को रोज़ मौलिक गालियाँ देना था। शीला देवी सुनती रहती थीं और कुढ़ती रहती थीं।

उस रात शीला देवी परेशान होकर कह बैठीं, ‘बाप के घर में कभी ऐसा तमाशा नहीं देखा। कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसे लोगों के साथ जिन्दगी काटनी पड़ेगी।’

और बस नट्टूशाह शुरू हो गये। हाथ नचाते हुए बोले, ‘तुमने बाप के घर में देखा ही क्या था। वह फटीचर कंगाल बुड्ढा क्या दिखाएगा?’ फिर छाती ठोकते हुए बोले, ‘यह सब तो हम रईसों, दिलवालों के घर में देखने को मिलेगा। उस बुड्ढे चिरकुट के घर में क्या मिलेगा?’

स्त्रियाँ स्वभावतः मायके के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। शीला देवी एड़ी से लेकर चोटी तक सुलग गयीं। बोलीं, ‘खबरदार जो मेरे बाप के बारे में कुछ ऐसा वैसा मुँह से निकाला।’

शीला देवी उस वक्त खाना बना रही थीं। नट्टूशाह उकडूँ बैठकर अपना चेहरा उनके चेहरे के पास लाकर बोले, ‘सच्ची बात सुनने में मिर्चें लगती हैं। हम रईसों के सामने उस बुड्ढे की क्या हैसियत है?कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली!’

क्रोध में शीला देवी का माथा घूम गया। हाथ में चिमटा था। दाँत पीसकर चिमटे को पतिदेव के मुँह की तरफ धकेल दिया। नट्टूशाह एक तो नशे में टुन्न थे, दूसरे वे उकड़ूँ बैठे थे। चिमटा अचानक ही रॉकेट की तरह उनके मुँह के सामने आ गया। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि यह स्त्री सदियों के पढ़ाये पाठ को भूलकर इस तरह पापाचार करेगी। शीला देवी फिर भी अपनी मर्यादा नहीं भूल पायीं, इसलिए चिमटा नट्टूशाह की ठुड्डी छूकर रह गया। लेकिन इस अचानक हमले से राजा भोज अपना सन्तुलन खोकर पीछे की तरफ उलट गये।

कुछ देर तक तो उन्हें समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो गया। सदियों की बनायी इमारत एक पल में ढह गयी। अविश्वास की स्थिति में वे चित्त पड़े, सिर को बार बार झटका देते रहे। फिर अपने को समेटकर जितनी जल्दी हो सका, उठे। भारी बेइज्जती हो गयी थी।

शीला देवी समझ गयीं कि पतिदेव अन्य कमज़ोर और खीझे पुरुषों की तरह उन पर हाथ उठाएंगे। उन्होंने चिमटे को अपनी रक्षा का हथियार बनाया। चिमटा मज़बूत, मोटा था। शराबियों से रक्षा के लिए काफी था। नट्टूशाह बार बार उनकी तरफ लपकते थे और वे बार बार चिमटा उनकी तरफ धकेल देती थीं। नट्टूशाह हर बार भयभीत होकर पीछे हट जाते थे। नशे के कारण हाथों पर इतना काबू नहीं था कि चिमटे को पकड़ कर छीन सकें। नशा इतना था कि एक की जगह तीन तीन चिमटे दिखते थे। एक को पकड़ते तो दो छूट जाते थे।

वे चार पाँच कोशिशों में थक गये।  बिस्तर पर लेट कर हाँफते हुए बोले, ‘हरामजादी, सबेरा होने दे। झोंटा पकड़कर घर से न निकाला तो कहना। फिर जाना उसी कंगाल बाप के पास।’

शीला देवी जानती थीं कि सबेरे नट्टूशाह सामान्य, पालतू गृहस्थ बन जाएंगे। वे निश्चिंत होकर लेट गयीं। कुछ देर तक पश्चाताप हुआ कि पति पर हाथ उठाया, फिर सोचा कि धमकाया ही तो है, मारा कहाँ है?अगर धमकाने से घर में शान्ति रहती है तो क्या बुरा है?’

सबेरा होते ही नट्टूशाह अपनी विशिष्टता खोकर एक मामूली इंसान और ज़िम्मेदार गृहस्थ बन गये। सारे काम ऐसे तन्मय होकर निपटाते रहे जैसे रात को कुछ हुआ ही न हो। लेकिन शाम होते ही कच्चे धागे से बँधे मैख़ाने में पहुँच गये। वहाँ पहुँचने के आधे घंटे के भीतर ही वे जार्ज पंचम बन गये। जिनके सामने दिन में मुँह खोलने की हिम्मत नहीं होती थी उनका नाम लेकर  जी भरकर गालियाँ देते रहे और मन की भड़ास निकालते रहे।

लड़खड़ाते कदमों से घर की तरफ बढ़े कि एकाएक शीला देवी का चिमटा हवा में तैर गया। नट्टूशाह का आधा नशा उतर गया। लड़खड़ाते कदम अपने आप सध गये। अब घर पहले जैसा निरापद नहीं रहा। स्त्रियाँ धरम छोड़कर चलने लगें तो घर को नरक बनते कितनी देर लगती है?

आगे आगे उनके मित्र छैलबिहारी पूरी सड़क नापते जा रहे थे। बड़े ज्ञानी माने जाते थे। कलारी में दो पेग के बाद उनके श्रीमुख से ज्ञान के फुहारे छूटते थे। नट्टूशाह ने आवाज़ देकर उन्हें रोका, कहा, ‘दादा, आपसे एक जरूरी बात करनी थी। घर में कल रात बहुत अधरम की बात हो गयी। तब से दिमाग खराब है।’ उन्होंने रात की पूरी घटना सुनायी। फिर बोले, ‘आप सयाने आदमी हो। धरम करम वाले हो। थोड़ा चलकर उनको ऊँचनीच समझा दो। धरम के खिलाफ जाएंगीं तो उनका ही परलोक बिगड़ेगा।’

छैलबिहारी उनकी बात सुनकर एक मिनट सोच कर बोले, ‘भैया, ऐसा है कि आजकल की लेडीज़ का कोई भरोसा नहीं है। हम समझाने जाएंगे तो हो सकता है हमारी भी बेइज्जती हो जाए। आप उनके हज़बैंड हो, आप ही उन्हें समझाओ तो ठीक होगा। उन्हें बताना कि रामायन में लिखा है कि स्त्री के लिए पति के सिवा दूसरा देवता नहीं होता। पति की इंसल्ट करेंगीं तो एक दिन उसका दंड भुगतना पड़ेगा।’

इतना ज्ञान देकर छैलबिहारी लटपटाते हुए आगे बढ़ गये। नट्टूशाह झिझकते हुए घर में घुसे और कमरे में कुर्सी पर बैठ गये। शीला देवी आँगन में सब्ज़ी छीलने में लगीं थीं। पतिदेव को मौन बैठा देखकर समझ गयीं कि कल के चिमटा-प्रकरण का कुछ असर हुआ है।

थोड़ी देर विचार में डूबे रहने के बाद नट्टूशाह बाहर निकलकर पत्नी के पास पड़े स्टूल पर बैठ गये। उनके चेहरे को थोड़ी देर पढ़कर धीरे धीरे बोले, ‘देखो, कल आपसे बड़े अधरम की बात हो गयी। आप जानती हो कि शाम को हम जरा दूसरे मूड में रहते हैं,लेकिन आपको अपना धरम नहीं छोड़ना चाहिए था। शास्त्रों में पति को परमेश्वर का दरजा दिया गया है। हमसे गलती हो सकती है, लेकिन आपको अपने धरम से नहीं डिगना चाहिए। इसमें आपका बड़ा नुकसान हो सकता है।’

शीला देवी समझ गयीं कि पतिदेव की यह विनम्रता कल की घटना के कारण है और अब जीती हुई ज़मीन को छोड़ना मूर्खता होगी। वे गंभीर मुख बनाकर बोलीं, ‘यह परवचन हमें न सुनाओ। हम धरम अधरम समझते हैं। आप चाहते हो कि आप रोज हमारे मायके वालों को गालियाँ सुनाओ और हम बैठे बैठे सुनें, तो अब यह नहीं होगा। परलोक में हमसे जवाब माँगा जाएगा तो तुम्हारी करतूत भी तो बखानी जाएगी। सारा धरम हमारे ही लिए है, मर्दों का कोई धरम नहीं है क्या?’

नट्टूशाह लम्बी साँस लेकर खड़े हो गये। चलते चलते बोले, ‘भई, हम तो आपका भला चाहते हैं, इसलिए आपको समझाया। आपको अधरम के रास्ते पर चलना है तो चलिए। नतीजा आप ही भोगोगी,हमें क्या!अभी हम थोड़ा अन्दर लेटने जा रहे हैं। खाना बन जाए तो बुला लेना। हमें झगड़ा-फसाद पसन्द नहीं।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 99 ☆ उत्कर्ष और दंभ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

? रक्षाबंधन की मंगलकामनाएँ ? 

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।

दानवीर महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, (धर्म में प्रयुक्त किए गये थे ), उसी से तुम्हें बांधता हूँ ( प्रतिबद्ध करता हूँ)।  हे रक्षे ! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो ( स्थिर रहो/ अडिग रहो)।

भाई-बहन के अनिर्वचनीय नेह के पावन पर्व रक्षाबंधन की मंगलकामनाएँ।

 – संजय भारद्वाज

☆ संजय उवाच # 99 ☆ उत्कर्ष और दंभ ☆

नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं।
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।

अर्थात जगत में कोई ऐसा उत्पन्न नहीं हुआ जो प्रभुता या पद पाकर मद का शिकार न हुआ हो। गोस्वामी तुलसीदास जी का उपरोक्त कथन मनुष्य के दंभ और प्रमाद पर एक तरह से सार्वकालिक श्वेतपत्र है। वस्तुत: दंभ मनुष्य की संभावनाओं को मोतियाबिंद से ग्रसित कर देता है। इसका मारा तब तक ठीक से देख नहीं पाता जब तक कोई ज्ञानशलाका से उसकी सर्जरी न करे।

ऐसी ही सर्जरी की गाथा एक प्रसिद्ध बुजुर्ग पत्रकार ने सुनाई थी। कैरियर के आरंभिक दिनों ने सम्पादक ने उन्हें सूर्य नमस्कार पर एक स्वामी जी के व्याख्यान को कवर करने के लिए कहा। स्वामी जी वयोवृद्ध थे। लगभग सात दशक से सूर्य नमस्कार का ज्ञान समाज को प्रदान कर रहे थे। विशाल जन समुदाय उन्हें सुनने श्रद्धा से एकत्रित हुआ था। पत्रकार महोदय भी पहुँचे। कुछ आयु की प्रबलता, कुछ पत्रकार होने का मुगालता, व्याख्यान पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। व्याख्यान के समापन पर चिंता हुई कि रिपोर्ट कैसे बनेगी? मुख्य बिंदु तो नोट किये ही नहीं। भीतर के दंभ ने उबाल मारा। स्वामी जी के पास पहुँचे, अपना परिचय दिया और कहा, “आपके व्याख्यान को मैंने गहराई से समझा है। तब भी यदि आप कुछ बिंदु बता दें तो रिपोर्ट में वे भी जोड़ दूँगा।”

स्वामी जी ने युवा पत्रकार पर गहरी दृष्टि डाली, मुस्कराये और बोले, ” बेटा तू तो दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान है। जिस विषय को मैं पिछले 70 वर्षों में पूरी तरह नहीं समझ पाया, उसे तू केवल 70 मिनट के व्याख्यान में समझ गया।” पत्रकार महोदय स्वामी जी के चरणों में दंडवत हो गए।

जीवन को सच्चाई से जीना है तो ज्यों ही एक सीढ़ी ऊपर चढ़ो, अपने दंभ को एक सीढ़ी नीचे उतार दो। ऐसा करने से जब तुम उत्कर्ष पर होगे तुम्हारा दंभ रसातल में पहुँच गया होगा। गणित में व्युत्क्रमानुपात या इन्वर्सल प्रपोर्शन का सूत्र है। इस सूत्र के अनुसार जब एक राशि की मात्रा में वृद्धि ( या कमी) से दूसरी राशि की मात्रा में कमी (या वृद्धि) आती है तो वे एक-दूसरे से व्युत्क्रमानुपाती होती हैं। स्मरण रहे, उत्कर्ष और दंभ परस्पर व्युत्क्रमानुपाती होते हैं।

 

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 54 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 54 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 54) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 54 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दुनिया  में  कम  ही

लोग  ऐसे  होते  हैं

जो  जैसे  लगते  हैं

वो  वैसे  ही  होते  हैं…

 

There are very few  

people in this world    

who  actually  are

the  way  they  look…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उफ़्फ़ ये तनहाई कि दर

अपना ही  खटका  देना

और ख़ुद से ही ये कहना

कि  ज़िंदा  हूँ  मैं  अभी..!

 

Oh, this wretched desolation

makes me knock own door

Then forcing me to say it to

myself that I am still alive..

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वक्त ने कई जख्म भर दिए,

यादें भी अब कम खलती हैं,

पर किताबों पर धूल जमाने से

भला कहानियाँ कहाँ बदलती हैं….

 

Time has healed many a wound,

Memories are also scarce now

But when do stories change

By settling of dust on the books!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शुक्र कर ये दिल तेरे

लिए सिर्फ धड़कता है

गर बोलने लगता तो

क़यामत ही आ जाती…

 

Thankfully, this heart

Just only beats for you

If only it could speak,

Doomsday would come

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 55 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात करो … ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘काय रिसा रए। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 55 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात करो .. ☆ 

बात करो जय राम-राम कह।

अपनी कह औरन की सुन-सह।।

 

मन खों रखियों आपन बस मां।

मत लालच मां बरबस दह-बह।।

 

की की की सें का-का कहिए?

कडवा बिसरा, कछु मीठो गह।।

 

रिश्ते-नाते मन की चादर।

ढाई आखर सें धोकर-तह।।

 

संयम-गढ़ पै कोसिस झंडा

फहरा, माटी जैसो मत ढह।।

 

खैंच लगाम दोउ हातन सें

आफत घुड़वा चढ़ मंजिल गह।।

 

दिल दैबें खेन पैले दिलवर

दिल में दिलवर खें दिल बन रह।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #84 ☆ भोजपुरी गीत – मातृभूमि रक्षा खातिर ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  देशप्रेम से ओतप्रोत भोजपुरी भाषा में भावपूर्ण रचना  “मातृभूमि रक्षा खातिर ….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 84 ☆ भोजपुरी गीत – मातृभूमि रक्षा खातिर …. ☆

चंद शेर–

जरवले होई उ देहियां के बारूद गोला से।

अपने छाती पर गोली उ खिले होई।।

दुश्मन के खून से होली खेलले होई उस सीमा पे।

 वतन परस्ती क रीत निभवले होई।।

 अपने हिम्मत से मरले होई उ दुश्मन के सरहद पे।

अपने माई क लाल कहवले होई।।

उस पहिरले होई तिरंगा कफ़न हमनी  खातिर।

आपन पूंजी देशवा पे लुटवले होई।।

☆ मातृभूमि रक्षा खातिर …. ☆

ऊ मातृभूमि रक्षा खातिर,

पलटन में जाइ भयल भरती।

माई क शान रखै खातिर,

पलटन में जाइ भयल भरती।

उस आयल रहै घरे छुट्टी,

परिवार से अपने मिलै खातिर।

माई के गोदि में सिर रखि के,

बचवा बनि तनिक सोवै खातिर।

बाऊ कै अपने बनै सहारा,

बहिना कै मान करै खातिर।।1।।

 

एक दुपहरिया मिलल खबर,

चढि आयल हौ दुश्मन सीमा पर।

सुनतै बेचैन हो गयल उ,

कइलस तइयारी जाये कै।

 देश प्रेम के ज्वाला में,

 छाती ओकर जरै लगल।

सीमा पर कइलस घमासान,

दुश्मन कै खेमा उखडि गयल।2।।

 

भूलि गयल ऊ बाग बगइचा,

खेत खलिहवां  भूलि गयल।

भूलि गयल मेहरी के पिरितिया,

माई कै ममता भूलि गयल।

भूलि गयल  भाई कै नेहिया,

बहिनां के राखी भूलि गयल।

भूरि गयल बचवन कै चेहरा,

संगी साथी भूलि गयल।

माई कै शान रखै खातिर,

अपनौ दुख सुखवा भूलि गयल।।3।।

 

जब पहुचल उस सीमा पे,

तब एकै बतिया याद रहल।

माई के दूध कै कर्ज बा केतना,

एतनै बतिया याद रहल।

हम सब दीवाली रहे मनावत,

उस सीमा पे होली खेलत बा।

हमनी के सुख चैन बदे,

सीना पर गोली झेलत बा।

दुश्मन से लोहा लेत लेत,

गोली खिला उ सीनवां पर।

अपने त मरल अकेलै उ,

दस बीस के मरलस सीमवां पे।

कमर तोड़ दिहलस दुश्मन कै,

ओकर दांत भयल खट्टा।

अपने माई के रहै सपूत,

ना शान में लगै दिहेस बट्टा।।4।।

 

उस आपन सब कुछ लुटा दिहेन,

अध्याय नया इक लिख गइलेन।

अपने स्वर्ग सिधरलेन उ,

इ वतन हवाले कर गइलन।

उस आपन करै समरपन,

जवनें रहिया चलि के गयल।

ओहि माटी से तिलक करीं जा,

जहवां ओकर पांव पड़ल।

जवनें माटी में जनम लिहेसि उ,

उस मांटी  भी धन्य हो गइल।

जेहि जगह पे चिता जरल ओकर,

काबा काशी उ जगह हो गइल।

ओकरा याद में मिलि हम सब,

आवा इक दिया जराई जा।

हम हमें मिलि के ओकरे उपरा,

आपन नेह लुटाई जा।‌।5।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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