हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण#94 ☆ कला-संस्कृति के लिए जागा जुनून ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।)

☆ कला-संस्कृति के लिए जागा जुनून” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

(ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए हम श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के विशेष स्वर्णिम अनुभवों को साझा करने जा रहे हैं जो उन्होने एसबीआई ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) उमरिया के कार्यकाल में प्राप्त किए थे। आपने आरसेटी में तीन वर्ष डायरेक्टर के रूप में कार्य किया। आपके कार्यकाल के दौरान उमरिया जिले के दूरदराज के जंगलों के बीच से आये गरीबी रेखा परिवार के करीब तीन हजार युवक/युवतियों का साफ्ट स्किल डेवलपमेंट और हार्ड स्किल डेवलपमेंट किया गया और उनकी पसंद के अनुसार रोजगार से लगाया गया। इस उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा दिल्ली में आपको बेस्ट डायरेक्टर के सम्मान से सम्मानित किया गया था। मेरे अनुरोध को स्वीकार कर अनुभव साझा करने के लिए ह्रदय से आभार – हेमन्त बावनकर)  

आज ऐसे एक इवेंट को आप सब देख पायेंगे, जो एक प्रयोग के तौर पर किया गया था। दूर दराज के जंगलों के बीच से प्रशिक्षण के लिए आये गरीब आदिवासी बच्चों द्वारा।

यूं तो आरसेटी में लगातार अलग-अलग तरह के ट्रेड की ट्रेनिंग चलतीं रहतीं थीं, पर बीच-बीच में किसी त्यौहार या अन्य कारणों से एक दिन का जब अवकाश घोषित होता था, तो बच्चों में सकारात्मक सोच जगाने और उनके अंदर कला, संस्कृति की अलख जगाने जैसे इवेंट संस्थान में आयोजित किए जाते थे।

उमरिया जिले के दूरदराज से आये 25 आदिवासी बच्चों के दिलों में हमने और ख्यातिलब्ध चित्रकार आशीष स्वामी जी ने झांक कर देखा, और उन्हें उस छुट्टी में  कुछ नया करने उकसाया, उत्साहित किया, फिर उन बच्चों ने ऐसा कुछ कर दिखाया जो दुनिया में कहीं नहीं हुआ था, दुनिया भर के लोग यूट्यूब में वीडियो देखकर दंग रह गए। हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए वाली कहावत के तहत एक पैसा खर्च नहीं हुआ और बड़ा काम हुआ।

आप जानते हैं कि खेतों में पक्षी और जानवर खेती को बड़ा नुक़सान पहुंचाते हैं, देखभाल करने वाला कोई होता नहीं, किसान परेशान रहता है।इस समस्या से निजात पाने के लिए सब बच्चों ने तय किया कि आज छुट्टी के दिन अलग अलग तरह के कागभगोड़ा बनाएंगे। उमरिया से थोड़ी दूर कटनी रोड पर चित्रकार आशीष स्वामी का जनगण खाना कला-संस्कृति आश्रम में तरह-तरह के बिझूका बनाने का वर्कशॉप लगाना तय हुआ, सब चल पड़े। आसपास के जंगल से घांस-फूस बटोरी गयी, बांस के टुकड़े बटोरे गये, रद्दी अखबार ढूंढे गये, फिर हर बच्चे को कागभगोड़ा बनाने के आइडिया दिए गए। जुनून जगा, सब काम में लग गए, अपने आप टीम बन गई और टीमवर्क चालू…..। शाम तक ऐतिहासिक काम हो गया था, मीडिया वालों को खबर लगी तो दौड़े दौड़े आये, कवरेज किया, दूसरे दिन बच्चों के इस कार्य को अखबारों में खूब सराहना मिली। अब आप देखकर बताईए, आपको कैसा लगा।

यूट्यूब लिंक >> SBI RSETI Umaria –Bichka Scarecrow) Workshop at Jangan Tasveer Khana Lorha (M.P.)

स्व आशीष स्वामी

इस अप्रतिम अनुभव को साझा करते हुए मुझे गर्व है कि मुझे आशीष स्वामी जी जैसे महान कलाकार का सानिध्य प्राप्त हुआ। अभी हाल ही में प्राप्त सूचना से ज्ञात हुआ कि उपरोक्त कार्यशाला के सूत्रधार श्रीआशीष स्वामी का कोरोना से निधन हो गया।

उमरिया जैसी छोटी जगह से उठकर शान्ति निकेतन, जामिया मिलिया, दिल्ली, फिल्म इंडस्ट्री मुंबई में अपना डंका बजाने वाले, ख्यातिलब्ध चित्रकार, चिंतक, आशीष स्वामी जी ये दुनिया छोड़कर चले गए, कोरोना उन्हें लील गया। महान कलाकार को विनम्र श्रद्धांजलि!!

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #38 ☆ # खुशी जीवन में लाईये # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक अविस्मरणीय भावप्रवण कविता “# खुशी जीवन में लाईये #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 38 ☆

☆ # खुशी जीवन में लाईये # ☆ 

रंज-ओ-गम छोड़कर

खुशी जीवन में लाईये

जो बित गया उसे भूलकर

जरा मुस्कुराइए

 

कौन साथ देता है

मंजिल के आखिरी छोर तक

जो दो कदम भी साथ चला

उसे अपना बनाईये

 

जीवन की गलियों में

स्याह अंधेरा बहुत है

दीये की लौ बनकर

खूब जगमगाईये

 

इस लहर में जो छूट गए

मुँह मोड़कर जो रूठ गए

अब वो नहीं आयेंगे

चाहे आप कितना भी बुलाइए

 

अच्छा हो या बुरा

कल हो या आज

समय है बलवान

आप मान भी जाइए

 

आंखों में आंखें डालकर

कहाँ डूबे हुए हो “श्याम”

सागर है बहुत गहरा

कहीं डूब ना जाइए

 

© श्याम खापर्डे 

27/5/2021

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ अप्रूप पाखरे – ३ – रवींद्रनाथ टैगोर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ अप्रूप पाखरे – ३ – रवींद्रनाथ टैगोर ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ 

[9]

डोळे मिचकावत

काजवा

अगदी शिष्ट  आवाजात

तार्‍यांना म्हणाला

विद्वानांच्या मते

उध्वस्त  होणार आहात

तुम्ही सारेच्या सारे

आज ना उद्या’

तारे?

काहीच बोलले नाहीत.

 

[10]

तुझ्या प्रार्थांनागीतांमध्ये

पुन:पुन्हा व्यत्यय आणत

शंख करणार्‍या

या माझ्या मूर्ख इच्छा

आसक्त…. अनावर

मला फक्त ऐकू दे

हे प्रभो…

 

[11]

पाखराला व्हायचं होतं

ढग

आणि ढगाला

पाखरू

 

[12]

पार सुकून गेलं

हे नदीचं पात्र…

भूतकाळासाठी आभाराचे शब्द

सापडत नाहीत त्याला

 

≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡

मूळ रचना – स्व. रविंद्रनाथ टैगोर 

मराठी अनुवाद – रेणू देशपांडे (माधुरी द्रवीड)

प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 97 ☆ व्यंग्य – अपनी किताब पढ़वाने का हुनर ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘अपनी किताब पढ़वाने का हुनर‘। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 97 ☆

☆ व्यंग्य – अपनी किताब पढ़वाने का हुनर

सुबह आठ बजे दरवाज़े की घंटी बजी। आश्चर्य हुआ सुबह सुबह कौन आ गया। दरवाज़ा खोला तो सामने बल्लू था। चेहरे से खुशी फूटी पड़ रही थी। सारे दाँत बाहर थे। हाथ पीछे किये था, जैसे कुछ छिपा रहा हो।

दरवाज़ा खुलते ही बोला, ‘बूझो तो, मैं क्या लाया हूँ?’

मैने कहा, ‘मिठाई का डिब्बा लाया है क्या? प्रोमोशन हुआ है?’

वह मुँह बनाकर बोला, ‘तू सब दिन भोजन-भट्ट ही बना रहेगा। खाने-पीने के अलावा भी दुनिया में बहुत कुछ है।’

मैं झेंपा। वह हाथ सामने लाकर बोला, ‘यह देखो।’

मैंने देखा उसके हाथ में किताब थी। कवर पर बड़े अक्षरों में छपा था ‘बेवफा सनम’, और उसके नीचे लेखक का नाम ‘बलराम वर्मा’।

मैंने झूठी खुशी ज़ाहिर की। कहा, ‘अरे वाह, तेरी किताब है?ग़ज़ब है। तू तो अब बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल हो गया।’

वह गर्व से बोला, ‘उपन्यास है। यह तुम्हारी कापी है। पढ़ कर बताना है। ढाई सौ पेज का है। रोज पचास पेज पढ़ोगे तो आराम से चार- छः दिन में खतम हो जाएगा। वैसे हो सकता है कि तुम्हें इतना पसन्द आये कि एक रात में ही खतम हो जाए।’

मैंने झूठा उत्साह दिखाते हुए कहा, ‘ज़रूर ज़रूर, तेरी किताब नहीं पढ़ूँगा तो किसकी पढ़ूँगा?दोस्ती किस दिन के लिए है?’

वह किताब पकड़ाकर चला गया। अगले दिन रात को नौ बजे उसका फोन आ गया। बोला, ‘वह जो उपन्यास की भूमिका में ‘घायल’ जी ने मेरी किताब को सदी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक बताया है,वह तूने पढ़ा है?’

मैंने घबराकर झूठ बोला, ‘बस पढ़ ही रहा हूँ, गुरू। तकिये की बगल में रखी है।’

वह व्यंग्य से बोला, ‘मुझे पता था तूने अभी किताब खोली भी नहीं होगी।’

मैंने कहा, ‘बस शुरू कर रहा हूँ तो खतम करके ही छोड़ूँगा।’

किताब की भूमिका पढ़ी। उसमें ‘घायल’ जी ने बल्लू को चने के झाड़ पर चढ़ा दिया था। फिर पहला चैप्टर पढ़ा। उसमें घटनाओं और भाषा का उलझाव ऐसा था कि पढ़ते पढ़ते दिमाग सुन्न हो गया। पता नहीं कब नींद आ गयी।

दो दिन बाद फिर उसका फोन आया। बोला, ‘वह जो लवली अपने लवर को थप्पड़ मारती है वह तुझे ठीक लगा या नहीं?’

मैंने घबराकर पूछा, ‘यह कौन से चैप्टर में है गुरू?’

वह व्यंग्य से हँसकर बोला, ‘तीसरे चैप्टर में। मुझे मालूम था तू अभी पहले चैप्टर में ही अटका होगा। मेरी किताब को छोड़कर तुझे बाकी बहुत सारे काम हैं।’

मैंने शर्मिन्दा होकर कहा, ‘बस स्पीड बढ़ा रहा हूँ, गुरू। जल्दी पढ़ डालूँगा।’

दो दिन बाद फिर उसका फोन। बोला, ‘वह जो लवली अपने लवर से झगड़ा करके सहेली के घर चली जाती है,वह तुझे ठीक लगा या नहीं?’

मैं फिर घबराया, पूछा, ‘यह कौन सा चैप्टर है गुरू?’

वह फिर व्यंग्य से हँसा,बोला, ‘छठवाँ। मुझे पता था कि तू कछुए की रफ्तार से चल रहा है। बेकार ही तुझे किताब दी।’

मैंने फिर उसे भरोसा दिलाया, कहा, ‘बस दौड़ लगा रहा हूँ,भैया। दो तीन दिन में पार हो जाऊँगा।’

अगले दिन फिर उसका फोन— ‘वो जो लवली अपने पुराने प्रेमी के पास पहुँच जाती है वह सही लगा?’

मैंने कातर स्वर में पूछा, ‘यह कौन से चैप्टर की बात कर रहा है?

वह बोला, ‘नवाँ। उसके बाद तीन चैप्टर और बाकी हैं। तू इसी तरह घसिटता रहेगा तो महीने भर में भी पूरा नहीं होगा।’

दो दिन बाद फिर उसका फोन आ गया। उसके कुछ बोलने से पहले ही मैंने कहा, ‘मैंने तुम्हारी किताब पूरी पढ़ ली है, भैया, लेकिन अभी तीन चार दिन उसकी बात मत करना। अभी तबियत ठीक नहीं है। दिमाग काम नहीं कर रहा है। तबियत ठीक होने पर मैं खुद बात करूँगा।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 95 ☆ सोंध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 95 ☆ सोंध ☆

असमय बरसात हुई है। कुछ बच्चे घर से मनाही के बाद भी भीगने के आनंद से स्वयं को वंचित होने से रोक नहीं पा रहे हैं। महामारी  के समय में परिजनों की अपनी चिंताएँ हैं। अलग-अलग घर से अपने-अपने बच्चे का नाम लेकर पुकार लग रही है। ऐसे में अपना आनंद अधूरा छोड़कर घर लौटे लड़के को डाँटती उसकी माँ का स्वर कानों में पड़ा, “आई टोल्ड यू मैनी टाइम्स बट यू डोंट लिसन। मिट्टी इज़ डर्टी थिंग.., मिट्टी को हाथ भी नहीं लगाना। यू अंडरस्टैंड?”…इस आभिजात्य(!)  माँ की चिंता कानों में पिघले सीसे की तरह उतरी।

मिट्ट इज़ डर्टी थिंग..!!  सृष्टि के 84 लाख जीवों में से एक मनुष्य को छोड़कर शेष सबका प्रकृति के साथ तादात्म्य है। बुद्धि का वरदान प्राप्त विकास की राह पर चलते मनुष्य से यह तादात्म्य अधिक अपेक्षित है। तथापि अनेक प्राकृतिक आपदाएँ झेलते मनुष्य की भस्मासुरी प्रवृत्ति आश्चर्यचकित करती है। अपनी लघुकथा ‘सोंध’ स्मरण हो आई। कथा कुछ इस प्रकार है-…..

‘इन्सेन्स- परफ्यूमर्स ग्लोबल एक्जीबिशन’.., इत्र बनानेवालों की यह यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रदर्शनी थी। लाखों स्क्वेयर फीट के मैदान में हज़ारों दुकानें।

हर दुकान में इत्र की सैकड़ों बोतलें। हर बोतल की अलग चमक, हर इत्र की अलग महक। हर तरफ इत्र ही इत्र।

अपेक्षा के अनुसार प्रदर्शनी में भीड़ टूट पड़ी थी। मदहोश थे लोग। निर्णय करना कठिन था कि कौनसे इत्र की महक सबसे अच्छी है।

तभी एकाएक न जाने कहाँ से बादलों का रेला आसमान में आ धमका। गड़गड़ाहट के साथ मोटी-मोटी बूँदें धरती पर गिरने लगीं। धरती और आसमान के मिलन से वातावरण महकने लगा।

दुनिया के सारे इत्रों की महक अब अपना असर खोने लगी थीं।  माटी से उठी सोंध सारी सृष्टि पर छा चुकी थी।…..

इस लघुकथा का संदर्भ इसलिए कि अपनी क्षणभंगुर कृत्रिमता को अविनाशी प्रकृति के सामने खड़ा करता मनुष्य दयनीय लगने लगा है। मिट्टी से बना आदमी अपनी मिट्टी खुद पलीद कर रहा है।

मिट्टी में मिलने के सत्य को जानते हुए भी मिट्टी से एलर्जी रखने वाली मनुष्य की यह मानसिकता सचमुच भय उत्पन्न करती है।

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 51 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 51) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इस सफ़र में नींद

ऐसी खो गई…

हम तो न सोये,

रात थक कर सो गई..!

 

During this journey, the sleep

was  lost in  such  a way

That I could  not  sleep,

but the tired night slept off!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ले चल ऐ ज़िंदगी फिर से

बचपन की उन गलियों में

जहाँ ना कोई ज़रूरी था

ना ही कोई जरूरत थी….

 

O’life! Take me once again

In those streets of childhood

Where no one was needed

And, there used to be no need!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं इतनी छोटी

कहानी भी न था,

तुम्हें ही जल्दी थी

किताब बदलने की…

 

I  was  not  even

such a short story,

You were only in hurry

to change the book…!

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कभी रंगों से इक नज़्म लिखो

कभी अल्फाज़ों से तस्वीर गढ़ो

कभी खामोशी की आवाज़ सुनो

कभी चुप्पी की इबारत भी पढ़ो

 

Sometime write a

poem with colours

Try ever making a 

picture with the words

Sometime listen to

the voice of reticence

Once in a while read

the narrative of silence..!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात नें करियो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘बखत बदल गओ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – बखत बदल गओ ☆ 

बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।

सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।

 

लतियाउत तें कल लों जिनखों

बे नेतन सें हात जुरा रए।।

 

पाँव  कबर मां लटकाए हैं

कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।

 

पान तमाखू गुटका खा खें

भरी जवानी गाल झुरा रए।।

 

झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें

सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 39 ☆ क्रॉति की अमर कहानी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  क्रॉति की अमर कहानी।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 39 ☆ क्रॉति की अमर कहानी

(स्वयंप्रभा से साभार)

तुम्हें हम आज भारत की अमर गाथा सुनाते हैं।

वे सन ब्यालीस की बरसात के दिन याद आते हैं।

 महात्मा गाँधी का तो नाम तुमने भी सुना होगा।

किसी से पूंछकर उनके विषय में कुछ गुना होगा।

वे भारत के बड़े नेता थे उनका वह जमाना था।

 उनके गुण से उनको सबने दिल से नेता माना था।

वे अपने घुटने तक ऊँची सी बस धोती पहनते थे।

थी सीधी सच्ची आदत, गाँव में कुटिया में रहते थे।

लाठी ले के चलते थे वे बूढ़े दुबले पतले थे।

मगर अंग्रेजों से लड़ने विचारों में वे तगड़े थे।

हमारे देश में वर्षों से अंग्रेजों का शासन था।

दुखी था देश, जनता त्रस्त थी क्योंकि कुशासन था।

सभी ये चाहते थे देश में अपना ही शासन हो।

 सभी हिलमिल रहें खुश, नये विचारों का प्रकाशन हो ॥

 

इसी से देश में काँग्रेस ने झंडा उठाया था।

सभायें करके, भाषण दे के, लोगों को जगाया था।

 बड़ी ताकत है जनता में कि जब वह जाग जाती है।

तो उसके सामने सेना भी डरती, भाग जाती है।

यही नेताओं का सबका और गाँधी का इरादा था।

अहिंसक क्रांति से भारत की आजादी का वादा था।

सन ब्यालीस, महीना अगस्त था तारीख नौंवी थी। 

तभी बंबई से गाँधी ने दी एक आवाज कौमी थी।

 

 ‘करो या मरो’ नारा था यहाँ भारत की जनता को।

और अंग्रेजों को था अंग्रेजों भारत छोड़ो” और भागो ॥

बस इतनी बात ने सब में जगाई क्राँति की ज्वाला।

 कि जिसने सबको शहरों गाँवों में पागल बना डाला।।

किये गये बंद जेलों में थे गाँधी जी और सब नेता।

 नहीं था कोई भी बाहर जो जनता की खबर लेता।

की अंग्रेजों ने मनमानी सभी को डरवा धमकाकर।

उमड़ता जा रहा था देश में जन – क्रोध का सागर।।

किया लोगों ने जब प्रतिकार तो कई एक गये मारे।

 निठुर अंग्रेजों की गोली से हजारों गये थे संहारे।

 मगर फिर भी निहत्थे न डरे न मौत से हारे।

बहादुर थे वे लाने निकले थे आकाश के तारे।।

 

थे उनमें साथ सब हिन्दू मुसलमाँ, सिख, ईसाई।

ये आजादी हमारे प्रिय शहीदों की है कमाई 

उन्हीं का खून हमको इसकी रक्षा को बुलाता है।

जो भी भारत के वासी हैं, निकट का उनसे नाता है।

बिना नेताओं के भी लोगों ने जो कुछ किया खुद ही।

उसी ने सारे अंग्रेजों की हिम्मत तोड़कर रख दी।

इसी से डर के भारत छोड़कर वे लोग जब भागे।

तो भारत को मिली आजादी सेंतालीस में आगे ॥

 

यही जनक्रांति ब्यालिस की अमर जनक्रांति कहलाती।

हमारे एकता – बल – प्रेम की जो है बड़ी थाती।

हमारे राष्ट्र भारत प्रेम की अनुपम कहानी है।

 जो हमको आने वाली पीढ़ियों को भी सुनानी है।

 है हम सब एक भारत के, ये भारत प्रिय हमारा है।

 हो सारे विश्व में सुख शांति मैत्री अपना नारा है।

हमें इसको बचाना है हमें इसको बढ़ाना है।

ये पूंजी है कि जिसके बल हमें भारत को सजाना है।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #51 – दोषारोपण ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।” )

 ☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #51 ? दोषारोपण ?  श्री आशीष कुमार☆

एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक़्त बुदबुदा रहा था,“कितनी बेकार जगह है ये,बिलकुल भी हरियाली नहीं है और हो भी कैसे सकती है यहाँ तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है।

तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. अंत में वो आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला- क्यों भगवान आप यहाँ पानी क्यों नहीं देते? अगर यहाँ पानी होता तो कोई भी यहाँ पेड़-पौधे उगा सकता था और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती!

ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा मानो वो भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो!तभी एक चमत्कार होता है, नज़र झुकाते ही उसे सामने एक कुँआ नज़र आता है!

वह उस इलाके में बरसों से आ-जा रहा था पर आज तक उसे वहां कोई कुँआ नहीं दिखा था… वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़ कर कुँए  के पास गया। कुँआ लाबालब पानी से भरा था। 

उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा और पानी के लिए धन्यवाद करने की बजाये बोला – “पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए !!”

उसका ऐसा कहना था कि उसे कुँवें के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गयी।एक बार फिर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ! वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला, “लेकिन मैं ये पानी ढोउंगा कैसे?”

तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है,पलट कर देखा तो एक ऊंट उसके पीछे खड़ा था!अब वह आदमी अब एकदम घबड़ा जाता है, उसे लगता है कि कहीं वो रेगिस्तान में हरियाली लाने के काम में ना फंस जाए और इस बार वो आसमान की तरफ देखे बिना तेज क़दमों से आगे बढ़ने लगता है।

अभी उसने दो-चार कदम ही बढ़ाया था कि उड़ता हुआ पेपर का एक टुकड़ा उससे आकर चिपक जाता है।उस टुकड़े पर लिखा होता है –

मैंने तुम्हे पानी दिया,बाल्टी और रस्सी दी।पानी ढोने  का साधन भी दिया,अब तुम्हारे पास वो हर एक चीज है जो तुम्हे रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए चाहिए। अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है ! आदमी एक क्षण के लिए ठहरा !! पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया और रेगिस्तान कभी भी हरा-भरा नहीं बन पाया।

मित्रों !! कई बार हम चीजों के अपने मन मुताबिक न होने पर दूसरों को दोष देते हैं। कभी हम परिस्थितियों को दोषी ठहराते हैं,कभी अपने बुजुर्गों को,कभी संगठन को तो कभी भगवान को।पर इस दोषारोपण के चक्कर में हम इस आवश्यक चीज को अनदेखा कर देते हैं कि – एक इंसान होने के नाते हममें वो शक्ति है कि हम अपने सभी सपनो को खुद साकार कर सकते हैं।

शुरुआत में भले लगे कि ऐसा कैसे संभव है पर जिस तरह इस कहानी में उस इंसान को रेगिस्तान हरा-भरा बनाने के सारे साधन मिल जाते हैं उसी तरह हमें भी प्रयत्न करने पर अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ज़रूरी सारे उपाय मिल सकते हैं.

? दोस्तॊ !! समस्या ये है कि ज्यादातर लोग इन उपायों के होने पर भी उस आदमी की तरह बस शिकायतें करना जानते है। अपनी मेहनत से अपनी दुनिया बदलना नहीं! तो चलिए,आज इस कहानी से सीख लेते हुए हम शिकायत करना छोडें और जिम्मेदारी लेकर अपनी दुनिया बदलना शुरू करें क्योंकि सचमुच सब कुछ तुम्हारे हाथ में है !!

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -16 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी

सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 16 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

मेरी माता-पिताजी की कृपा मुझ पर कितनी है, यह आप सब जानते ही हैं। उनके मेरे पर उपकार कितने हैं उसे शब्द मैं नहीं बता सकती । मैं भी खुद को भाग्यशाली समझती हूँ, मुझे ऐसे माता-पिता मिले है।

मेरा जन्म होने के बाद दो ही महीने में मेरे मुंह पर मुस्कान की प्रतिक्रिया न आने के कारण मां के मन में चिंता की लकीर उठ गई।  उनको शक भी होने लगा और उन्हें कुछ अलग सा लग रहा था। उस वक्त दादी ने अच्छी तरह से जान लिया कि मुझमे आंखों की कुछ तकलीफ है। उनकी समझ में सब आ गया। दादी के कहने के बाद डॉक्टर की सलाह से मुझ पर इलाज शुरू हो गया। घर में मेरी बहुत देखभाल करने लगे।

मैं जैसे-जैसे बड़ी होने लगी, तब से माता-पिता जी को मालूम पड़ गया कि मैं कभी भी देख नहीं पाऊंगी, यही सच है। ऐसा नहीं सोच कर वह बताते थे मैं दृष्टिहीन हूँ, इसका अर्थ यह तो नहीं है की मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगी। भगवान ने उनको इतनी अच्छी बुद्धि दी थी। मुझ पर विश्वास कर तुम्हारी लड़की बुद्धि और शरीर के हर एक भाग का इस्तेमाल कर जग को जीत सकती है। मेरे माता-पिताजी ही मेरे ईश्वर है जिन्होंने कुछ कर दिखाने की हिम्मत दी और मुझे स्वावलंबन सिखाया। इसी के ही कारण में साधारण लड़की जैसी घूमने लगी। उसके साथ बुद्धि, मन, शरीर से भी तंदुरुस्त बनकर कुछ अच्छा सा करके दुनिया को दिखा दूंगी। माता-पिता जी ने मुझ में उम्मीद भर दी।

‘नृत्यांगना’ नाम से मेरी पहचान होने के बाद सभी जगह से मुझे कार्यक्रम का बुलावा आता था। ड्रेस अप करना, हेयर स्टाईल करना, अच्छा सा मेकअप करना, अच्छे से अलंकार पहनना, इतना ही नहीं मेरी मम्मी ब्यूटीशियन से भी अच्छा मेकअप करने लगी। बाहर से ब्यूटीशियन लाने की जरूरत नहीं पड़ी। आज तक हमारी यही रूटीन चल रही है।

जैसे मम्मी ने साथ दिया, वैसे ही पाठशाला की पढ़ाई में, नृत्य कला में मेरे पिताजी ने मुझे पूरा सहयोग दिया। मेरी पढ़ाई पर आंखों में तेल डाले जैसा ध्यान रखा। मुझे एक बात की याद अभी भी आती है। पिताजी की पाठशाला दोपहर १२ बजे से ५.३० तक थी। मेहनत से काम करना पड़ता था। पाठशाला में इंस्पेक्शन चालू था। मेरा नृत्य का क्लास ५ से ६ इस वक्त था। बीच का समय लेकर पापा मुझे क्लास छोड़ने आ गए। उस वक्त ही साहब को फाइल हाजिर करने का वक्त था, बहुत चिंता का काम था।

इसी तरह समाज के अन्य दिव्यांग लड़कों के माता-पिता जी के सामने मेरी मम्मी-पापाजी ने अच्छा आदर्श बना दिया। यही असलियत है। मुझ में चेतना भर दी। इसमें प्रशंसा की बात नहीं है फिर भी नामुमकिन नहीं है।

 

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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