हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 58 ☆ एकला चलो रे… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “एकला चलो रे… ”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 58 – एकला चलो रे… ☆

छोटे – छोटे घाव भी नासूर बनकर पीड़ा पहुँचाते हैं। माना परिवर्तन प्रकृति का नियम है, परंतु अक्सर ऐसा क्यों होता है कि जब कोई व्यक्ति सफलता के चरम पर हो तभी उसे किसी न किसी कारण अपदस्थ होना ही पड़ता है। हम सभी एक लीक पर चलने के आदी होते हैं इसलिए आसानी से कोई भी बदलाव नहीं चाहते हैं। बस एक ही ढर्रे पर बने रहना हमारी नियति बन चुकी है। शायद इसी को मोटिवेशनल स्पीकर कंफर्ट जोन कहकर परिभाषित करते चले आ रहे हैं। बदलाव हमेशा बुरा नहीं होता है वैसे भी एक ही रंग देखकर मन परेशान हो उठता है, कुछ न कुछ नया होते ही रहना चाहिए तभी रोचकता बनी रहती है।

देश विदेशों सभी जगह बदलाव की ही बयार चल रही है। दरसल ये तो एक बहाना है, कुछ अपने लोगों को ही हटाना है। अब जो सच्चे सेवक हैं, उन्हें किस विधि से पदच्युत किया जावे सो बदलूराम जी ने एक नया ही राग अलापना शुरू कर दिया। चारो ओर गहमा – गहमी का माहौल बन गया। सोए हुए लोग भी सक्रिय हो गए, कहीं कोई अपने पद को छोड़ने से डर रहा था तो कहीं कोई नए पद के लालच में पूरे मनोयोग से कार्यरत दिखने लगे थे। अब तो उच्च स्तरीय कमेटी भी सक्रिय होकर अपनी भूमिका सुनिश्चित करने लगी। जो जिस पद पर है वो उससे आगे की पदोन्नति चाहता है।  सीमित स्थान के साथ,  एक अनार सौ बीमार की कहावत सच होती हुई दिख रही थी। अपने – अपने कार्यों का पिटारा सब ने खोल लिया। पूरे सत्र में जितने कार्य नहीं हुए थे उससे ज्यादा की सूची बना कर प्रचारित की जाने लगी।

लोग भी भ्रम में थे क्या करें, पर चतुरलाल जी समझ रहे थे कि ये सब कुछ कैबिनेट को भंग करने की मुहिम है, जब प्रधान बदलेगा तो अपने आप पुरानी व्यवस्था ध्वस्त होकर सब कुछ नया होगा, जिसमें वो तो बच जायेगा परन्तु पुराने लोग रिटार्यड होकर  वानप्रस्थ के नियमों का पालन करते हुए,स्वयं सन्यास की राह पकड़ने हेतु बाध्य हो जायेंगे। खैर ये तो सदियों से होता चला आ रहा है। फूल कितना ही सुंदर क्यों न हो उसे एक दिन मुरझा कर झरना ही होता है।

जब बात फूलों की हो तो काँटों की उपस्थिति भी जरूरी हो जाती है। यही तो असली रक्षक होते हैं। कहा भी गया है, सफलता की राह में जब तक कंकड़ न चुभे तब तक मजा ही नहीं आता है। वैसे भी शरीर को स्वस्थ्य रखने हेतु एक्यूप्रेशर का प्रयोग किया ही जाता। लाइलाज रोगों को ठीक करने हेतु इन्हीं विधियों का सहारा लिया जाता रहा है। व्यवस्था को ठीक करने हेतु इन्हीं उपायों का प्रयोग शासकों द्वारा किया जाता रहा है। कदम – कदम पर चुनौतियों का सामना करते हुए उम्मीदवार उम्मीद का दामन थामें, एकला चलो रे का राग अलापते हुए चलते जा रहे हैं। वैसे भी एकल संस्कृति का चलन परिवारों के साथ – साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी नज़र आने लगा है। जब भी जोड़ -तोड़ की सरकार बनती है, तो छोटे – छोटे दलों की पूछ – परख बढ़ जाती है, क्योंकि उन्हें अपने में समाहित करना आसान होता है।

खैर परिणाम चाहें जो भी निष्ठा व आस्था के साथ सुखद जीवन हेतु हर संभव प्रयास सबके द्वारा होते रहने चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 79 – हाइबन- धुआंधार जलप्रपात ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- धुआंधार जलप्रपात। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 79☆

☆ हाइबन- धुआंधार जलप्रपात ☆

संगमरमर एक सफेद व मटमैले रंग का मार्बल होता है। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से 20 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट में इसी तरह के मार्बल पहाड़ियों के बीच नर्मदा नदी बहती है। नदी के दोनों किनारों की ऊंचाई 200 फीट के लगभग है।

भेड़ाघाट का दृश्य रात और दिन में अलग-अलग रूप में दर्शनीय होता है। रात में चांदनी जब सफेद और मटमैले संगमरमर के साथ नर्मदा नदी में गिरती है तो अद्भुत बिंब निर्मित करती है। इस कारण चांदनी रात के समय में नर्मदा नदी में नौकायन करना अद्भुत व रोमांचक होता है।

दिन में सूर्य की किरणें नर्मदा नदी के साथ-साथ संगमरमर की चट्टानों पर अद्भुत बिंब निर्मित करती है। सूर्य की रोशनी में नहाई नर्मदा नदी और संगमरमर की उचित चट्टानों के बीच नौकायन इस मज़े को दुगुणीत कर देती है।

इसी नदी पर एक प्राकृतिक धुआंधार जलप्रपात बना हुआ है। इस प्रपात में ऊंचाई से गिरता हुआ पानी धुएं के मानिंद   वातावरण में फैल कर अद्भुत दृश्य निर्मित करता है। यहां से नर्मदा नदी को निहारने का रोमांच और आनंद ओर बढ़ जाता है। इसी दृश्य प्रभाव के कारण इसका नाम धुआंधार जलप्रपात पड़ा है।

यह स्थान पर्यटकों का सबसे मन पसंदीदा स्थान है। आप भी एक बार इस स्थान के दर्शन अवश्य करें।

नदी का स्वर~

मार्बल पर दिखे

सूर्य का बिंब।

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© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 65 ☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – चतुर्थ अध्याय ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है चतुर्थ अध्याय

फ्लिपकार्ट लिंक >> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 65 ☆

☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – चतुर्थ अध्याय ☆ 

स्नेही मित्रो श्रीकृष्ण कृपा से सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा दोहों में किया गया है। आज आप पढ़िए चतुर्थ अध्याय का सार। आनन्द उठाएँ।

 डॉ राकेश चक्र

अध्याय 4

चौथा अध्याय दिव्य ज्ञान

श्री कृष्ण भगवान ने अपने सखा अर्जुन से अष्टांग योग का दिव्य ज्ञान कुछ इस तरह दिया

प्रथम बार सूरज सुने, यह अविनाशी योग।

सूरज से मनु और फिर,बना इच्छु- संजोग।। 1

 

योग रीत ये चल रही, सदा-सदा से जान।

लोप हुआ कुछ काल तक, तुम्हें पुनः यह ज्ञान।। 2

 

वर्णन जो तुझसे किया, यही पुरातन योग।

तू मेरा प्रिय भक्त है, अति उत्तम संयोग।। 3

अर्जुन उवाच

जन्म हुआ प्रभु आपका, इसी काल में साथ।

सूर्य जन्म प्राचीन है, कैसे मानूँ बात।। 4

 

तेरे-मेरे जन्म तो, हुए अनेकों बार।

मुझे विदित,अनभिज्ञ तुम,प्रियवर पाण्डु कुमार।।5

 

जन्म नहीं प्राकृत मेरा, नहीं मनुज सादृश्य।

मैं अविनाशी अजन्मा, शक्ति-योग प्राकट्य।। 6

 

धर्म हानि जब- जब बढ़ी, बढ़ता गया अधर्म।

तब-तब माया-योग से, रचा नया ही धर्म।। 7

 

साधु जनों का सर्वदा,किया परम् उद्धार।

दुष्टों के ही नाश को, प्रकटा बारम्बार।। 8

 

मुझे अलौकिक मानकर, जो जानें सुख पाँय

मैं हूँ अविनाशी अमर, भक्त सदा तर जाँय। 9

 

राग-द्वेष,भय-क्रोध से, हो जाता है मुक्त।

साधक मेरी भक्ति का,भाव समर्पण युक्त।।

 

सब ही मेरी शरण में, सबके भाव विभिन्न।

फल देता अनुरूप में, कभी न होता खिन्न।। 11

 

करते कर्म सकाम जो, मिलें शीघ्र परिणाम।

देवों को वे पूजते, मुझे न करें प्रणाम।। 12

 

तीन गुणों की यह प्रकृति, सत, रज, तम आयाम।

वर्णाश्रम मैंने रचे, मैं सृष्टा सब धाम।। 13

 

कर्म करूँ जो भी यहाँ, पड़ता नहीं प्रभाव।

कर्म फलों से मैं विरत, सत्य जान ये भाव।। 14

 

दिव्य आत्मा संत जन, हुए पुरातन काल।

कर तू उनका अनुसरण,नित्य बनाकर ढाल।। 15

 

समझ न पाते मोहवश,बुधि जन कर्माकर्म।

कर्म बताऊँ शुभ तुझे, ये ही मानव धर्म।। 16

 

कर्म कौन हैं शुभ यहाँ, ये मुश्किल है काम।

कर्म, विकर्म, अकर्म का, जान सुखद परिणाम।। 17

 

कर्म सदा परहित करें, ये ही मानव धर्म।

लाभ-हानि में सम रहें, नहीं करें दुष्कर्म।। 18

 

इन्द्रिय-सुख की कामना, रखें न मन में ध्यान।

ऐसे ज्ञानी जगत में, होते बड़े महान।। 19

 

कर्म फलों के फेर में, पड़ें न ज्ञानी लोग।

ऐसे मानव जगत में, रहते सदा निरोग।। 20

 

माया के रह बीच में,स्वामि- भाव का त्याग।

कर्म गात निर्वाह को, गाए मेरा राग।। 21

 

अपने में संतुष्ट जो, द्वेष कपट से दूर।

लाभ-हानि में सम रहे, ऐसे मानव शूर।। 22

 

आत्मसात जिसने किया,अनासक्ति का भाव।

ऐसा ज्ञानी को मिले, हरि पद पंकज-ठाँव।। 23

 

जो मुझमें लवलीन है, पाए भगवत धाम।

यज्ञ यही है सात्विकी, भजें ईश का नाम।। 24

 

देव यज्ञ कुछ कर रहे, पूजें देवी-देव।

ज्ञानी-ध्यानी पूजते, ब्रह्म परम् महदेव।। 25

 

इन्द्रिय संयम हम करें, भजें प्रभू का नाम।

राग-द्वेष से विरत जो,  करें भस्म सब काम।। 26

 

चेष्टा जो इन्द्री करें, करें ब्रह्म का ज्ञान।

प्राणों के व्यापार का, योगी करते ध्यान।। 27

 

कुछ योगी परहित करें, कुछ करते तप यज्ञ।

करें योग अष्टांग कुछ, कुछ हैं ग्रंथ- गुणज्ञ।। 28

 

प्राण वायु का हवि करें, करते प्राणायाम।।

प्राण गती वश में रखें, लेवें प्रभु का नाम।। 29

 

प्राणों को ही प्राण में, योगी करते ध्यान।

पाप-शाप सारे मिटें , यज्ञ करें कल्यान।। 30

 

फलाभूत यज्ञादि से, करें ईश कल्यान।

यज्ञ न करते जो मनुज, भोगें कष्ट महान।। 31

 

वर्णन वेदों में हुआ, कतिपय यज्ञ- प्रकार।

तन, मन इन्द्री ही करें, निष्कामी उपचार।। 32

 

सब यज्ञों में श्रेष्ठतर, ज्ञान यज्ञ है ज्येष्ठ।

ज्ञान करे विज्ञान को, बने आत्मा श्रेष्ठ। 33

 

ज्ञानी पुरुषों को सदा, कर दण्डवत प्रणाम।

जान, ज्ञान के मर्म को, दें उपदेश महान।। 34

 

जब तुम जानो मर्म को, नहीं करोगे मोह।

ज्ञान बुद्धि चेतन करे, हटे हृदय अवरोह।। 35

 

सदा ज्ञान ही श्रेष्ठ है, करता नौका पार।

पापी भी सब तर गए, उत्तम हुए विचार।। 36

 

जैसे जलकर अग्नि में, ईंधन होता भस्म।

वैसे ही ये ज्ञान भी, करे पाप को भस्म।। 37

 

ज्ञान जगत में श्रेष्ठ है, इससे बड़ा न कोय।

पावन होता वह मनुज,खोट रहे ना कोय।। 38

 

ज्ञान ही करता स्व विजय, हो वही जितेंद्रिय।

ज्ञान बढ़ाए भक्ति को, जीवन बने अनिन्द्रिय।। 39

 

जो प्रभु भक्ति नहीं करें , रहें संशयाधीन।

लोक और परलोक में, रहें सदा ही दीन।। 40

 

कर ले बुद्धि समत्व तू, लगा मुझी में ध्यान।

अर्पित प्रभु को जो करें, उनका हो कल्याण।। 41

 

ज्ञान बढ़ा अर्जुन सखा, बुद्धि करो संशुद्ध।

संशय भ्रम को काट तू, करो धर्म का युद्ध।। 42

 

 इस प्रकार श्रीमद्भगवतगीता के चतुर्थ अध्याय ” दिव्य ज्ञान” का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ(समाप्त)।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 69 – स्त्री आणि कविता…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #69 ☆ 

☆ स्त्री आणि कविता…! ☆ 

कधी नुकत्याच

जन्मलेल्या मुलीमध्ये,

कधी आई मध्ये,

कधी बाई मध्ये,

कधी बहिणी मध्ये,

कधी अर्धंगिनी मध्ये,

प्रत्येक स्त्री मध्ये,

मला दिसत असते,

पुर्ण अपुर्ण अशी…

रोज एक नवीन

कविता…!

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 86 – पगडंडी सी लचक कहाँ … ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना पगडंडी सी लचक कहाँ …। )

☆  तन्मय साहित्य  #86 ☆

 ☆ पगडंडी सी लचक कहाँ … ☆

पगडंडी सी लचक कहाँ

डामर की सड़कों में

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’ लड़कों में।।

 

संशय सदा बना रहता

स्त्रीलिंग पुल्लिंग का

कटे बाल और जींस शर्ट में

खा जाते धोखा,

मुश्किल अंतर करना अब

छुटकों और बड़कों में।

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’ लड़कों में।।

 

संबोधन भी बदल गए

अपनी भाषा भूले

भगदड़ मची हुई, मन में

आकाश कुसुम छू लें,

रंगबिरंगे स्वप्न,अधजगी

निद्रा पलकों में।।

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’ लड़कों में।।

 

घर का स्वाद कर दिया

पिज्जा बर्गर ने गायब

मैगी नूडल बने हुए हैं

अब घर के नायब,

नहीं स्वाद अब रहा

दाल-सब्जी के तड़कों में।

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’ लड़कों में।।

 

कहाँ कहकहे, रौनक

बिसरायें समूह मधुगान

अब न रहा दादा जी का

घर में वैसा सम्मान,

हवा हवाई रौबदार

दादू की झिड़कों में।

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’लड़कों में।।

 

आयातित फैशन का

बढ़ता हुआ कुटिल व्यापार

भ्रमित पीढ़ी को काम नहीं

बेकारी से लाचार,

उलझी युवा शक्ति है

बेफिजूल की शर्तों में।

कहाँ नजाकत रही आज

लड़की औ’ लड़कों में।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ महिला दिवस और महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें।  प्रस्तुत है  8 मार्च महिला दिवस पर विशेष आलेख  “महिला दिवस और महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास ”)

☆ आलेख ☆ महिला दिवस और महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास ☆ श्री अरुण कुमार डनायक ☆

8 मार्च को महिला दिवस मनाया गया। ऐसे पर्व पर दो महिलाओं की याद आती है। एक तो बा, गांधीजी की पत्नी, जिन्हें उनके माता-पिता ने कस्तूर बाई नाम दिया और महात्मा गांधी ने पहले उन्हें इसी नाम से संबोधित किया, बाद में वे भी सभी लोगों की भांति ‘बा’ कहने लगे। बाद को दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद, बा के लिए आयोजित सम्मान समारोह में किसी ने बा को महात्मा जी की मां कह दिया तो बापू भी बोल उठे कि चालीस साल हुए मैं बेमांबाप हो गया और तीस वर्षों से वह मेरी मां का काम कर रही है। वह मेरी मां, सेविका, रसोइया, बोतल धोने वाली सब कुछ रही है । अगर वह इतने सबेरे आपके दिए सम्मान में हिस्सा लेने आती तो मैं भूखा रह जाता और मेरे शारीरिक सुख की कोई परवाह नहीं करता। इसलिए हमने आपस में समझौता कर लिया है कि सभी सम्मान मुझे मिले और सारी मेहनत उसे करनी पड़े। यह संस्मरण पति पत्नी के आपसी प्रेम व समर्पण का प्रतीक है। बा तो अनपढ़ थी पर गांधीजी की प्रेरणा पाकर वह पढ़ना लिखना सीख गई, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहीं और अपना जीवन महात्मागांधी के शिष्यों के लिए समर्पित कर दिया।

दूसरी महिला जिससे मैं प्रभावित हुआ वह है अमरकंटक निवासिनी गुलाबवती बैगा, अनपढ़ माता पिता की पुत्री और जिसका ब्याह दस वर्ष की उम्र में होने वाला था। मां, बाप गांव के मुखिया आदि उसके प्रतिरोध को अनसुना कर रहे थे। तब इस कन्या की नानी आगे आई, उसने विरोध किया विवाह का, डाक्टर प्रवीर सरकार के मां सारदा कन्या विद्यापीठ पौंडकी में पहुंचकर डाक्टर साहब के सुपुर्द इस अबोध बालिका को किया और फिर यह कन्या पढ़ती गई बढ़ती गई, आज दो नन्हे नटखट बच्चों की मां है और बैगा समुदाय की प्रथम महिला स्नातक भी। स्कूल में शिक्षिका गुलाबवती बैगा जब फटफटिया में फुर्र से स्कूल जाती है तो उसकी प्रौढा नानी भी खुशी से फूली नहीं समाती। सत्तर से अधिक वर्षों में महिला सशक्तिकरण की दिशा में ऐसे अनेक प्रयास ग्रामीणों ने किए हैं, उन प्रयासों को मेरा नमन।

? महिला दिवस पर ‘ बा’, ‘गुलाबवती बैगा’ और महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयासों को नमन  ?

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 37 ☆ लोग इतने क्यों बेचैन है ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता लोग इतने क्यों बेचैन है। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 37 ☆

☆ लोग इतने क्यों बेचैन है  

खुश हो जा आज तू खामोश क्यों है,

देख तेरी शान में राह में लोगों ने फूल बिछाये हैं ||

कल तक जो लोग तेरे चेहरे से नफरत करते थे,

वे आज तुझे बार-बार कंधा देने को बेचेन हो रहे हैं ||

आज तो तेरी शान ही निराली है,

सब अदब से खड़े होकर तुझे हाथ जोड़ रहे हैं ||

बस एक पल ऑंखे खोल नजारा तो देख ले,

लोग तो तेरी एक झलक पाने को बेचैन हो रहे हैं ||

कल तक जो तेरी तरफ झांकते तक ना थे,

आज वो सब खिड़कियां खोलकर तुझे देखने को तरस रहे हैं ||

यादगार लम्हें हैं उसे देख वापिस आंख मूंद लेना,

एक ही मौका आता है जीवन में, लोगों के आंसू थम नहीं रहे हैं ||

जनाजे में कौन-कौन शामिल है,

एक झलक तो देख ले, इतने तो पराये भी कभी रूठते नहीं हैं ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 74 ☆ वो कोह ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “वो  कोह। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 74 ☆

☆ वो कोह ☆

दामन-ए-कोह ख़ुशी से तर था,

उसका ख़ियाबां-ए-ज़हन गुल से लबरेज़ था,

कि अचानक कहीं से एक ख़ुश-रू अब्र

उसके आसपास हलके से बरसने लगा

और कोह से उसने कहा,

“मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ!”

 

लाजमी था कोह का पैमाना-ए-मुहब्बत में

पूरी तरह से डूब जाना-

आखिर उसने नगमा-ए-इश्क कहाँ सुना था?

दोनों हाथ पकड़कर साथ घूमते,

अब्र

कभी कोह का माथा चूमता,

कभी उसे अपनी दिलकश बाहों में लेता,

कभी वो रक़्स-ए-मुहब्बत में मशगूल रहते…

 

अब्र तो आशिक-मिज़ाज था,

नया कोई अफसाना बुनने

चल पड़ा किसी और कोह की तरफ…

 

दामन-ए-कोह अब ग़म-ए-जुदाई से तर है,

उसके ख़ियाबां-ए-ज़हन के गुल मुरझा चुके हैं,

न उसे इंतज़ार है, न चाहत-ए-उल्फ़त,

ठोस है, सख्त है-

आ जाओ कोई

आंसू ही बरसा दो उसके

कि कोह होने पर उसे गुरुर तो हो!

 

कोह=hill

ख़ियाबां=bed of flowers

ख़ुश-रू = handsome

अब्र = cloud

रक़्स = dance

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 98 ☆ भारतीय कार्पोरेट जगत की कुछ सुप्रसिद्ध महिलायें ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का महिला दिवस पर विशेष  आलेख  ‘भारतीय कार्पोरेट जगत की कुछ सुप्रसिद्ध महिलायें ’ इस सामयिकरचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 98☆

? भारतीय कार्पोरेट जगत की कुछ सुप्रसिद्ध महिलायें ?

क्या नही महिला करि सकै, क्या नहिं समुद्र समाय… सामान्यतः माना जाता है कि महिलाओ का कार्पोरेट जगत से भला क्या लेना देना. पर समय बदला है आज नई पीढ़ी की अनेक लड़कियां एम बी ए के सर्वोच्च संस्थानो में उच्च शिक्षा पा रही हैं. पिछली अधेड़ हो चली पीढ़ी में यद्यपि  पुरुषों का ही बोलबाला  है, किन्तु कुछ महिलाओ ने भी विभिन्न कंपनियो में शीर्ष स्थान अर्जित किया है. ऐसी ही कुछ महिलाओ के  में चंदा कोचर, “बायोकॉन” की संस्थापक, किरण मजूमदार शॉ, ब्रिटानिया की सीईओ विनीता बाली, पेप्सी की इंद्रा न्यूई आदि शामिल हैं। विनीता बाली को हाल में ईटी अवॉर्ड्स में बिजनेसवुमेन ऑफ द ईयर का खिताब मिला था। महिलाओ की शीर्ष कार्पोरेट पदो में भागीदारी के चलते, इस साल भारतीय उद्योग जगत की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला सीईओ की सूची भी बनाई गई। इसमें शीर्ष तीन स्थानों पर चंदा कोचर, बायोकॉन किरण मजूमदार शॉ और एचएसबीसी की नैना लाल किदवई हैं। भारतीय कार्पोरेट जगत की  इन सुप्रसिद्ध  महिलाओ के विषय में जानना रोचक है.ये महिलायें  विभिन्न धर्म, भाषा भाषी, व देश के अलग अलग क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व  करती ये महिलायें इस तथ्य की सूचक हैं कि आने वाले समय में समूचे भारत में कार्पोरेट जगत में महिलाओ की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित है.यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि इन महिलाओ ने कार्पोरेट जगत के अलग अलग सैक्टर जैसे बैंकिंग, मीडीया, बायोटेक्नालाजी,स्वास्थ्य  आदि विभिन्न क्षेत्रो में  अपनी योग्यता से सफलता के परचम लहराये हैं तथा नये कीर्तीमान बनाये हैं.  प्रेरणा हैं ये महिलायें नई पीढ़ी की लड़कियो और उनके माता पिता के लिये.

पेप्सी की अध्यक्ष इंद्रा कृष्णमूर्ति न्यूई 

पेप्सी मल्टीनेशनल सुप्रसिद्ध ब्रांड है जिसकी अध्यक्ष के रूप इंद्रा न्यूई ने विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित की है. उन्हें फार्च्यून द्वारा घोषित ५० सशक्त महिलाओ की सूची में प्रथम  स्थान पर रखा गया है.इसी तरह फोर्ब्स द्वारा घोषित विश्व की १०० सशक्त महिलाओ की सूची में भी उन्हें ६ वें स्थान पर रखा गया है. वर्ष २००१ में उन्होने पेप्सी ज्वाइन की. उन्होंने कार्पोरेट जगत में पेप्सी के सुढ़ृड़  विकास  से अपनी पहचान बनाई. वे वर्ल्ड ईकानामिक फोरम, इंटरनेशनल रेस्क्यू फोरम, येल कार्पोरेशन आदि संस्थाओ से भी महत्वपूर्ण रूप में जुड़ी हुई हैं.

वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ी पहली भारतीय महिला नैना लाल किदवई 

नैना लाल किदवई ने अपने कैरियर का प्रारंभ ए एन जेड ग्रिंडले से किया था मार्गेन स्टेनली, इन्वेस्टमेंट बोर्ड आफ इंडिया, एच एस बी सी आदि बैंकिंग व वित्तीय संस्थानो में उच्च पदो पर कार्यरत सुश्री नैना लाल किदवई को उद्योग व व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान के लिये भारत सरकार ने पद्मश्री के सम्मान से विभूषित किया है.

एक सफल महिला उद्यमी,”बायोकॉन” की संस्थापक, किरण मजूमदार शॉ 

बायोकॉन की संस्थापक अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ को भारत सरकार के द्वारा जैव प्रौद्योगिकी के योगदान के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है, उनकी कंपनी बायोकान जैव प्रौद्योगिकी, जैव दवाओ हेतु समाधान देने वाली कंपनी है.किरण मजूमदार ने १९७८ में इस कंपनी की स्थापना की थी.  यह  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त जैव दवा कंपनी है.  मधुमेह  रोग पर इस कंपनी ने विशद अनुसंधान कये हैं.

भारत के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप टाइम्स आफ इण्डिया की अध्यक्ष इंदू जैन 

वर्ष २००० में यूनाइटेड नेशन में विश्व शांति सम्मेलन को संबोधित करने का गौरव भारत के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप टाइम्स आफ इण्डिया की अध्यक्ष इंदू जैन को मिला था. इंदु जैन स्वयं एक इंटरप्रेनर,  एक अध्यात्मवादी, एक शिक्षाशास्त्री, कला और संस्कृति की बड़ी पोषक तथा  एक मानवतावादी  है.

डाक्टर स्वाति पीरामल 

मुम्बई विश्वविद्यालय से मेडिकल की पढ़ाई के बाद स्वाती पीरामल ने इंडस्ट्रियल मेडिसिन में अध्ययन किया, हावर्ड विश्वविद्यालय से पब्लिक हैल्थ में मास्टर्स की योग्यता प्राप्त की. वे पीरामल लाइफ साइंसेज की वाइस चेयर परसन तथा पीरामल हैल्थ केयर लिमिटेड की निदेशक हैं. जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान है.

मल्लिका श्रीनिवासन, निदेशक, ट्रैक्टर एंड फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड 

८५ करोड़ के टर्नओवर को २९०० करोड़ वार्षिक के टर्न ओवर में बदलने वाली मल्लिका श्रीनिवासन, निदेशक, ट्रैक्टर एंड फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड के रूप में सुप्रतिष्ठित महिला हैं. उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एम ए की शिक्षा ग्रहण की, फिरउन्होने बिजनेस मैनेजमैंट की उच्च शिक्षा हेतु पेननसेल्वेनिया विश्वविद्यालय के वार्टस्न स्कूल में दाखिला लिया. शिक्षा के बाद से वे TAFE के अपने पारिवारिक व्यवसाय को सम्भाल रही हैं.

सुलज्जा मोटवानी

कायनेटिक  मोटर कम्पनी की  मैनेजिंग डायरेक्टर सुलज्जा मोटवानी कायनेटिक फाइनेंस व कायनेटिक मार्केटिंग सर्विसेज की भी देखरेख कर रही हैं. वर्ष २००२ में उन्हें यंग एचीवर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. प्रसिद्ध समाचार पत्रिका इंडिया टुडे ने उन्हें फेस आफ द मिलेनियम तथा वर्ल्ड इकानामिक फोरम ने ग्लोबल लीडर आफ तुमारो जैसे सम्मानो से नवाजा है. पुणे से बीकाम की पढ़ाई के बाद उन्होने पिट्सबर्ग से एमबीए की शिक्षा ग्रहण की है

अपोलो हास्पिटल्स की मैनेगिंग डायरेक्टर प्रीथा रेड्डी 

मद्रास विश्वविद्यालय से कैमिस्ट्री  की पढ़ाई के बाद पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की शिक्षा पूर्ण कर, एशिया की सबसे सबल हास्पिटल चेन अपोलो हास्पिटल्स की मैनेगिंग डायरेक्टर प्रीथा रेड्डी ने अपोलो ग्रुप को नये पायदान पर ला खड़ा किया है. उनके मार्गदर्शन में बोन मैरो ट्रांस्प्लांटेशन, कार्ड ब्लड ट्रांस्प्लांटेशन आदि के क्षेत्र में अपोलो हास्पिटल नित नये कीर्तिमान बनाकर जन स्वस्थ्य के महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है व एशिया में नई पहचान बना सका है.

पार्क होटल चेन की चेयर परसन प्रिया पाल  

22 वर्ष की कम उम्र में ही अपने पिता का होटल व्यवसाय सम्भालने वाली प्रिया पाल के पिता सुरेन्द्र पाल की हत्या उल्फा उग्रवादियो के द्वारा कर दी गई थी, किन्तु अपने कौशल से प्रिया ने पार्क होटल चेन का सारा वर्तमान साम्राज्य स्थापित किया है. उन्हें यंग एंटरप्रेनर, पावरफुल बिजनेस वुमन, आदि सम्मान मिल चुके हैं.

अब बतलाइये कि ऐसी बेटियो पर कौन नाज न करेगा ?

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 88 ☆ वांझोटी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 88 ☆

☆ वांझोटी ☆

जन्म नाही दिला तिनं

तरी तीच माझी आई

अनाथाला ही पोसते

आहे थोर माझी माई

 

काही म्हणतात तिला

आहे वांझोटी ही बाई

त्यांना बाई म्हणायला

जीभ धजावत नाही

 

बाळ श्रावण होण्याचं

स्वप्न पाहतोय मीही

त्यांना डोईवर घ्यावं

फिराव्यात दिशा दाही

 

मुक्ती मिळूदे मजला

त्यांच्या ऋणातून थोडी

त्यांच्या पायात असावी

माझ्या कारड्याची जोडी

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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