हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मैं “मिली” ☆ डॉक्टर मिली भाटिया

डॉक्टर मिली भाटिया

(सुप्रसिद्ध चित्रकार एवं लेखिका डॉ मिली भाटिया जी को बसंत पंचमी पर्व पर उनके चित्रकला विषय में  शोध “भारतीय लघुचित्रों में देवियों का अंकन” पर डॉक्टरेट से सम्मानित किये जाने पर एवं आज 18 फरवरी को आपके 35वे जन्मदिवस पर  ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। सत्रह वर्ष की आयु में माँ के निधन के पश्चातआँखों में आजीवन रहने वाले केरटोकोनस नेत्ररोग के होते हुए भी यह उपलब्धि प्रेरणास्पद है।

आज प्रस्तुत है आपकी कविता मैं “मिली”

 ☆ कविता ☆ मैं “मिली” ☆ डॉक्टर मिली भाटिया ☆ 

हवाओं से बातें करती हूँ

सपनो की दुनिया में

रंगो को भरती हूँ

मैं “मिली”

 

खोई खोई सी रहती हूँ

ज़िन्दगी से उलझती हूँ

दिल की सुनती हूँ

मैं “मिली”

 

आसमान से बातें करती हूँ

फूलों की मुस्कुराहट को

काग़ज़ पर उकेरती हूँ

मैं “मिली”

 

चिड़िया सी चहकती हूँ

चंचल-शोख़ सी थी कुछ

खामोशी से अब बातें रखती हूँ

मैं “मिली”

 

तारों से सुलझती हूँ

बादलों सी बरसती हूँ

काग़ज़ को कलम से सजाती हूँ

मैं “मिली”

 

अब भी बस

खोई खोई सी रहती हूँ………..!!

मैं “मिली”

 

© डॉक्टर मिली भाटिया

रावतभाटा-राजस्थान

मोबाइल न०-9414940513

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 66 – स्मृती चिन्ह…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #66 ☆ 

☆ स्मृती चिन्ह…! ☆ 

कविसंमेलन गाजवून

घरी गेल्यावर

माझी माय ,

माझ्या हातातल्या स्मृती चिन्हांकडे

निरखून बघते . . . !

माझ्या चेह-यावरचा आंनद

काही क्षण डोळ्यात

साठवते … !

आणि हळूच विचारते

आज तरी . .

नाक्यावरच्या वाण्याचा

उधारीचा प्रश्न मिटणार का..?

मी चेह-यावरच आनंद

तसाच ठेऊन

दहा बाय दहाच्या खोलीत

ठेवलेल्या सगळ्या स्मृती चिन्हांवर

नजर फिरवतो,

तेव्हा वाटतं

ह्या स्मृती चिन्हांच्या बदल्यात

जर वाण्याच्या उधारीचा प्रश्न

मिटला असता तर किती

बरं झाल असतं….!

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – सूर संगत ☆ सूर संगीत राग गायन (भाग १०-२) – राग~मारवा, पूरिया, सोहोनी ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

☆ सूर संगत ☆ सूर संगीत राग गायन (भाग १०-२) – राग~मारवा, पूरिया, सोहोनी ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆ 

मारवा~पूरिया या प्रसिद्ध जोडीतील पूरिया या रागाविषयी आपण आज विचार करू या.

मागील लेखांत आपण पाहीले आहे की मारवा पूरिया सोहोनी ही एकाच कुटुंबातील सख्खी भावंडे! परंतु वादी~ संवादी स्वरांच्या भिन्नतेमुळे प्रत्येकाचे चलन स्वतंत्र, अस्त्तित्व स्वतंत्र! पूरियांत गंधार व निषाद ह्या स्वरांना अधिक महत्व आहे. रात्रीच्या प्रथम प्रहरी हा राग सादर केला जातो. मध्यम जरी तीव्र असला तरी मारव्याची उदासीनता पूरियांत नाही. मात्र ह्याची प्रकृती काहीशी गंभीरच! अधिकतर पूरिया मंद्र व मध्य सप्तकात गायिला वाजविला जातो, म्हणजेच हा पूर्वांगप्रधान राग आहे. स्वरांच्या वक्रतेमुळे हा राग मनाला मोहवितो. जसे~”नी (रे)ग, (म)ध ग(म)ग, ध नी  (म)ध ग(म)ग,” अशा प्रकारे वक्र स्वररचना आढळते. नि (रे)सा, ग(म)ध नी (रे)सा/सा नी ध (म)ग (रे)सा असे याचे आरोह/अवरोह आहेत. ‘ग, नी (रे)सा, नि ध नि (म)ध (रे) सा’ या स्वरसूमूहावरून पूरियाची तात्काळ ओळख पटते. या रागाचे पूर्ण चलनच वक्र आहे.

प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक बडे गुलाम अली खाॅं यांच्याविषयी असे सांगितले जाते की मुंबईत विक्रमादित्य संगीत परिषदेत बडे गुलाम अली यांनी अल्लादिया खाॅं, फैय्याज खाॅं, हाफीज अली खाॅं यांच्यासारख्या दिग्गज कलाकारांच्या उपस्थितीत मारवा आणि पूरिया हे दोन राग एकापाठोपाठ गायले होते, आणि त्यांचे गायन ऐकून बूजूर्ग मंडळी अगदी अवाक झाली. एका रात्रीतच बडे गुलाम अलीना मुंबईत प्रसिद्धी मिळाली.

वियोग,शृंगाररसोपयुक्त असा हा पूरिया,कारूण्यपूर्ण श्रृंगार हाच या रागाचा स्थायीभाव!

शूद्ध पूरियांतील गाणी सहसा सांपडत नाहीत, परंतु ‘सांज ये गोकुळी सावळी सावळी’, ‘मुरलीधर शाम हे नंदलाला’, ‘क्षणभर उघड नयन देवा’ ही काही भावगीते, भक्तीगीते पूरिया रागावर आधारित  म्हणून उदाहरणादाखल देता येतील. “जिवलगा राहीले दूर घर माझे” ह्या भावगीतांत पूरियाचे स्वर असले तरी त्याबरोबर धनाश्री येऊन तो पूरिया धनाश्री झाला आहे. पूरियांत नसलेला पंचम ह्यांत आहे. सूरत और सीरत या चित्रपटांतील ‘प्रेम लगन’, आई मिलनकी रात मधील कितने दिनो की बात आई सजना रात मिलनकी, ‘रंगीला मधील ‘समा ये क्या हुआ, रुत आ गयी रे रुत छा गई रे’ ही काही बाॅलीवूड गाणी पूरिया धनाश्रीची उदाहरणे सांगता येतील ह्या गाण्यांकडे पाहीले असता पूरिया हा करूणरसप्रधान शृंगार वर्णन करणारा राग असल्याचे सर्वसामान्यांच्याही लक्षात येते.

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 83 – सांझ होते ही…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना सांझ होते ही ….। )

☆  तन्मय साहित्य  #83 ☆ सांझ होते ही ….

सांझ होते ही यादों का, दीपक जला

रात भर फिर अकेला ही जलता रहा,

बंद  पलकों  में, आए  अनेकों  सपन

सिलसिला भोर तक यूं ही चलता रहा।।

 

शब्द  हैं  सब  अधूरे, तुम्हारे बिना

अर्थ अब तक किसी के मिले ही नहीं,

स्वर्ण बासंती मधुमास जाने को है

पुष्प अब तक ह्रदय के खिले ही नहीं,

 

सीखते सीखते प्रीत के पाठ को

प्रार्थना भाव से रोज पढ़ता रहा।

सिलसिला भोर तक…

 

नर्म सुधीयों का एहसास ओढ़े हुए

कामनाओं का, निर्लज्ज नर्तन चले,

दर्द है  कैद,  संयम  के  अनुबंध में

प्रीत की रीत को जग सदा ही छले,

 

प्रेम  व्यापार  में  मन अनाड़ी  रहा

दांव पर सब लगा हाथ मलता रहा।

सिलसिला भोर तक ….

 

है विकल सिंधू सा, वेदना से भरा

नीर निर्मल मधुर पान की प्यास है,

चाहे बदरी बनो या नदी बन मिलो

बूंद स्वाति की हमको बड़ी आस है,

 

मन में  ऐसे  संभाले  रखा  है तुम्हें

जिस तरह सीप में रत्न पलता रहा।

सिलसिला भोर तक यूं ही चलता रहा।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 34 ☆ सबको गले लगाऊं ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सबको गले लगाऊं। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 34  ☆

☆ सबको गले लगाऊं ☆

अपनों के साथ उनकी जीत का जश्न मनाऊँ,

अपनों से जो मिला प्यार उसे कर्ज समझूं ,

जो अपनों के लिए किया उसे क्या अपना फ़र्ज़ समझूं ||

जिंदगी तो रुआँसी हो जाती है हर कभी,

दुख दर्द और बेरुखी जो अपनों से मिली,

उसकी शिकायत यहां किसको दर्ज कराऊँ ||

भले ही अपनों से खुशियां मिली हो,

मगर परायों से कोई कम धोखे नहीं खाये,

जब धोखे ही खाने हैं तो क्यों ना अपनों से ही धोखा खाऊं ||

जीवन को शतरंज की बाजी समझूं ,

यहाँ जब बाजी अपनों के साथ ही खेलनी है,

तो हारकर भी क्यों ना अपनों के साथ उनकी जीत का जश्न मनाऊं ||

अगर ऐसा ही है जिंदगी तो तेरी बातों में क्यों आऊं,

लाख अपने नाराज होकर पराये हो जाये,

उनकी बेरुखी को नजरअंदाज कर उनको गले लगाऊं ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा  ☆

अल्मोड़ा नगर उत्तराखंड  राज्य के कुमाऊं मंडल  में स्थित है। यह समुद्रतल से 1646 मीटर की ऊँचाई पर लगभग  12 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह नगर घोड़े की काठी के आकार की पहाड़ी की चोटी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। कोशी  तथा सुयाल नदियां नगर के नीचे से होकर बहती हैं।

अल्मोड़ा  की चोटी के पूर्वी भाग को तेलीफट, और पश्चिमी भाग को सेलीफट के नाम से जाना जाता है। चोटी के शीर्ष पर, जहां ये दोनों, तेलीफट और सेलीफट, जुड़ जाते हैं, अल्मोड़ा बाजार स्थित है। यह बाजार बहुत पुराना है और सुन्दर कटे पत्थरों से बनाया गया है। इसी नगर के बीचोंबीच उत्तराखंड राज्य के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” स्थित है जिसका विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है । समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” माँ नंदा देवी को समर्पित है । माँ दुर्गा का अवतार, नंदा देवी भगवान शंकर की पत्नी है और पर्वतीय आँचल की मुख्य देवी के रूप में पूजनीय हैं । दक्षप्रजापति की पुत्री होने की मान्यता के कारण कुमाउनी और गढ़वाली उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते है ।

नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथाएं हैं  और इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित  करने का श्रेय चंद शासको का है। सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से माँ नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया , तब से चंद शासको ने माँ नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया । इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद  ने माँ नंदा की वर्तमान प्रतिमा को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया । सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और चंद्रेश्वर नामक “दो शिव मंदिर” मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए । सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने चंद्रेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित करा दिया ।

अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं । नंदादेवी भाद्रपद के कृष्णपक्ष में जब अपनी माता से मिलने पधारती हैं तो इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है और  राज राजेश्वरी नंदा देवी की यात्रा  को राजजात या नन्दाजात कहा जाता है । आठ दिन चलने वाली इस  “देवयात्रा” का समापन  अष्टमी के दिन मायके से विदा कराकर  किया जाता है । राजजात या नन्दाजात यात्रा के लिए देवी नंदा को दुल्हन के रूप में सजाकर  डोली में बिठाकर एवम् वस्त्र ,आभूषण, खाद्यान्न, कलेवा, दूज, दहेज़ आदि उपहार देकर अपने मायके से पारंपरिक रूप में विदाई देकर  ससुराल भेजते हैं । नंदा देवी राज जात यात्रा हर बारह साल के अंतराल में एक बार आयोजित की जाती है ।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 86 – मदिरा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 86 ☆

☆ मदिरा?☆

(हरिभगिनी मात्रा वृत्त ८+८+८+६)

मदिरेचा भरला प्याला या रंभेची मदहोश अदा

जरा बहकता या वाटेवर कायम ती देईल सदा

 

मधुशाळेची वाट दाखवी तो सांगाती हा बहुदा

फिरून यावे त्या वाटेने, एखादा भेटेल खुदा

 

खैय्यामाची मस्त रुबाई जिची जगाला चढे नशा

सुरई मधल्या सर्व कहाण्या सदासर्वदा  धुंद कशा?

 

या मदिरेचा ध्यास ज्यास तो रंक असो वा धनी कुणी

इथे रंगला, त्यास नको ते तख्त ताज वा शिरोमणी

 

रंग हजारो, या मदिरेचे  एक साजिरा सा  निवडा

स्वच्छच राहो तुमची प्रतिमा, कुठलाही जावो न तडा

 

मद्याचे गुणगान असे का? सवाल तुमचा असे खरा

गुलाम अलिच्या गजलेमध्ये अंगूरीचा कैफ पुरा

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 71 ☆ सफ़र ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “सफ़र ”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 71 ☆

सफ़र ☆

आँखों के आगे एक कोहरा-

न आगे नज़र आता था, न पीछे;

एक गाड़ी में बैठी हुई

बस किसी और गाड़ी के पीछे-पीछे

धीमी-धीमी रफ़्तार में

ज़िंदगी चल रही थी…

 

कुछ उतावलापन था

मंजिल तक पहुँचने का,

कुछ छटपटाहट थी

वक़्त ज़्यादा लगने की,

कुछ डर था

कि आगे की गाड़ी का साथ

छूट न जाए,

कुछ उत्सुकता थी

कि सफ़र का अंत कैसा होगा…

 

उस उतावलेपन, छटपटाहट, डर और उत्सुकता ने

बदल दी मेरी सोच की धारा

और एक डरी हुई मैना की तरह मैं

सिमट गयी ख़ुद ही मैं…

 

कहाँ जानती थी

कि आगे वाली गाड़ी को शायद

ख़ुद ईश्वर का आशीर्वाद था,

और मेरे भीतर भी

एक ईश्वर था!

 

जब से यह राज़ खुला है,

हो गयी हूँ बेफिक्र और मस्मौला,

और उडती हूँ अपने ख्यालों के आसमान में

किसी बाज़-सी!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 94 ☆ आलेख – वेलेंटाइन कहिये या बसन्त पंचमी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  बसंत पंचमी पर्व पर एक विशेष आलेख   ‘वेलेंटाइन कहिये या बसन्त पंचमी इस सार्थक सामयिक एवं विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 94 ☆

? वेलेंटाइन कहिये या बसन्त पंचमी ?

दार्शनिक चिंतन  वेलेंटाइन डे को प्रकृति के बासन्ती परिवर्तन से प्राणियो के मनोभावों पर प्रभाव  मानता है, बसंत पंचमी व वेलेंटाइन लगभग आस पास ही होते हैं, प्रतिवर्ष। स्पष्ट है सभ्यताओं के वैभिन्य में प्राकृतिक बदलाव को अभिव्यक्त करने की तिथियां किंचित भिन्न हो सकती हैं, प्रसन्नता व्यक्त करने का तरीका सभ्यता व संसाधनों के अनुसार कुछ अलग अलग हो सकता है, पर परिवेश के अनुकूल व्यवहार मनुष्य ही नही सभी प्राणियों में सामान्य है।

आज के युवा पश्चिम के प्रभाव में  सारे आवरण फाड़कर अपनी समस्त प्रतिभा के साथ दुनिया में  छा जाना चाहते है। इंटरनेट पर एक क्लिक पर अनावृत  होती सनी लिओने सी बसंतियां स्वेच्छा से ही तो यह सब कर रही हैं।बसंत प्रकृति पुरुष है।वह अपने इर्द गिर्द रगीनियां सजाना चाहता है, पर प्रगति की कांक्रीट से बनी गगनचुम्बी चुनौतियां, कारखानो के हूटर और धुंआ उगलती चिमनियां बसंत के इस प्रयास को रोकना चाहती है।

भारत ने प्रेम की नैसर्गिक भावना को हमेशा एक मर्यादा में सुसभ्य तरीके से आध्यात्मिक स्वरूप में पहचाना है। राधा कृष्ण इस एटर्नल लव के प्रतीक के रूप में वैश्विक रूप में स्थापित हैं।

बसंत पंचमी कहें या वेलेंटाइन डे  नारी सुलभ  सौंदर्य, परिधान, नृत्य, रोमांटिक गायन में प्रकृति के साथ मानवीय तादात्म्य ही है। आज स्त्री के कोमल हाथो में फूल नहीं कार की स्टियरिंग थमाकर, जीन्स और टाप पहनाकर उसे जो चैलेंज  वेलेंटाइन वाला जमाना दे रहा है, उसके जबाब में किसी नेचर्स एनक्लेव बिल्डिंग के आठवें माले के फ्लैट की बालकनी में लटके गमले में गेंदे के फूल के साथ सैल्फी लेती पीढ़ी ने दे दिया है, हमारी  नई पीढ़ी जानती है कि  उसे बसंत और वेलेंटाइन  के साथ सामंजस्य बनाते हुये कैसे बजरंग दलीय मानसिकता से जीतते हुये अपना पिंक झंडा लहराना है। पुरुष और नारी के सहयोग से ही प्रकृति बढ़ रही है, उसे वेलेंटाइन कहे या बसन्त पंचमी।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 79 – कविता – ऋतु बसंत ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है माँ सरस्वती पूजन एवं  बसंत पंचमी पर्व पर आपकी विशेष रचना  “ऋतु बसंत। इस सामायिक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 79 ☆

? ऋतु बसंत ?

देखो आया बसंत बहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती हैं त्यौहार

 

उमड़ने लगा भाव अनुनय

बातों में होने लगी विनय

प्रेम मनुहार की सुंदर बेला

ऋतु बसंत का आया समय

देव ने किया मिलकर विचार

प्रकृति ने किया सोलह सिंगार

 

बसंत आते देख ऋतुराज

पहन लिया पुष्पों का ताज

वन उपवन सब झूम के गाए

झरनों से बजने लगे साज

धरा भी खुश हो रही निहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

कोयल कू के डाली डाली

तितलियां हो गई मतवाली

ऋतु बसंत ने ली अंगड़ाई

प्रेमी युगल सब डूबे ख्याली

अब ना कोई सुझे विचार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

आमों में बौरै भी छाई

बसंत पंचमी झुम के आई

पीली चुनर सर पर ओढ़े

खेतों में सरसों खिलखिलाई

लेकर इनकी शोभा अपार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

मानव मन हो गया आशातीत

हर दृश्य निर्मल नवीन पुनीत

उमंग   खिले अमलतास कनेर

भर उठा जीवन भरा संगीत

होने लगे सब सपने साकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

देख धरा की सुंदरता

मां नर्मदा बन सरिता

देवों की बढीं आतुरता

मां सरस्वती स्वयं विराजी

ले वीणा के मधुर झंकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती है त्यौहार

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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