हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य #91 ☆ मास्क☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की एक अतिसुन्दर कविता  ‘मास्क’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 91 ☆

☆ कविता – मास्क ☆

बचपन में मेरे खिलौनों में शामिल थी

एक रूसी गुड़िया

जिसके भीतर से निकल आती थी

एक के अंदर एक समाई हुई हमशकल

एक और गुड़िया।

बस थोड़ी सी छोटी आकार में !

सातवीं सबसे छोटी गुड़िया भी

बिलकुल वैसी ही

जैसे बौनी हो गई हो

पहली सबसे बड़ी वाली गुड़िया

सब के सब एक से मुखौटौ में !

 

बचपन में माँ को और अब पत्नी को

जब भी देखता हूँ

प्याज छीलते हुये

या काटते हुये

पत्ता गोभी परत दर परत ,

मुखौटों सी हमशकल

बरबस ही मुझे याद आ जाती है

अपनी उस रूसी गुड़िया की !

बचपन जीवन भर याद रहता है !

 

मेरे बगीचे में प्रायः दिखता है एक गिरगिटान

हर बार एक अलग पौधे पर ,

कभी मिट्टी तो कभी सूखे पत्तों पर

बिलकुल उस रंग के चेहरे में

जहाँ वह होता है

मानो लगा रखा हो उसने

अपने ही चेहरे का मुखौटा

हर बार एक अलग रँग का !

 

मेरा बेटा लगा लेता है

कभी कभी रबर का कोई मास्क

और डराता है हमें ,

या हँसाता है कभी जोकर का

मुखौटा लगा कर !

 

मैँ जब कभी शीशे के सामने खड़े होकर

खुद को देखता हूँ

तो सोचता हूँ

अपने ही बारे में

बिना कोई आकार बदले

बिना मास्क लगाये या रंग बदले ही

मैं नजर आता हूँ खुद को

अवसर के अनुरूप हर बार नए चेहरे मे ।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 52 ☆ फूटा ढोल ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक समसामयिक विषय पर विचारणीय रचना “फूटा ढोल”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 52 – फूटा ढोल ☆

कालूराम का फट गया ढोल, बीच बजरिया खुल गयी पोल… खूब जोर शोर से यह गाना बज रहा था। सभी मदिरा के नशे में मदमस्त होकर अपनी ही धुन में झूमे जा रहे थे कि सहसा कुछ चिटकने की आवाज कानों में गूँज उठी। ये स्वर इतना विषैला था कि ढोल वाले के हाथ जहाँ के तहाँ ऐसे जमें मानो बर्फीले इलाके में अचानक बर्फबारी शुरू हो गयी हो।

ऐसा दृश्य दिन के तीसरे या चतुर्थ प्रहर में हो तो एक बार मन स्वीकार कर लेता है किंतु जब पहले और दूसरे प्रहर में ये सब घटित हो तो मन वितृष्णा से भर ही जाता है। बिना सोची समझी योजना के ऐसे कार्य हो ही नहीं सकते हैं। खैर जब व्यक्ति शब्दों की गलत व्याख्या पर उतर आए तब ऐसा होना लाजिमी ही होता है। गणतंत्र के नाम पर देशहितों को ताक पर रखकर हंगामा करना, जिससे मानवता शर्मशार होती हो, ये सब किसी भी रूप में जायज नहीं हो सकता है।

तमाशा मचाने हेतु बहुत से अवसर ढूंढे जा सकते थे, किंतु जब सारा विश्व भारत की ओर उम्मीद लगाए हो तब ऐसा परिदृश्य उकेरना किसी के हित में नहीं हो सकता है। शायद ऐसे ही समय के लिए लिखा गया था कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं , मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। सब कुछ बदलिए पर तरीका सही हो तभी परिणाम सुखद होते हैं। पर कहते हैं न कि, विनाश काले विपरीत बुद्धि …सो ऐसा ही यहाँ भी घटित हो गया।

कुरीतियों का परचम इतने जोर से फहराया कि इससे सारी हदें पार कर दीं। जहाँ – तहाँ , बदनीयती ही झलकने लगी। सारे रंग तिरंगे की ओर देखकर उससे पूछ रहे थे कि तुम्हें आसमान में स्थापित करने हेतु कितनों ने सीने पर हँसते – हँसते गोलियाँ खायीं हैं, और आज ये क्या हो गया ?

अपनी जायज नाजायज सभी माँगों को क्या तुम्हारे माध्यम से ही पूरा किया जावेगा। अभी भी समय है सभी रंग एकजुट होकर मातृभूमि के साथ खड़ें हो और तिरंगे को सलाम करते हुए गौरवान्वित हों।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ बोध कथा – विचारपूर्वक निर्णय ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी

☆ जीवनरंग ☆ बोध कथा – विचारपूर्वक निर्णय ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी ☆ 

||कथासरिता||

(मूळ –‘कथाशतकम्’  संस्कृत कथासंग्रह)

? लघु बोध कथा?

कथा १७ . विचारपूर्वक निर्णय

नासिकापुरात चार कापूस विक्रेते होते. त्यांनी एक घर भाड्याने घेऊन तिथे खरेदी केलेला कापूस ठेऊन कापसाचा व्यापार सुरु केला. परंतु त्या घरात उंदरांनी धुमाकूळ घातला व ते कापूस कुरतडू लागले. उंदरांचा त्रास कमी व्हावा म्हणून सर्वांनी मिळून एक मांजर खरेदी केली व त्या घरात ठेवली. हळूहळू त्या मांजरीचा त्यांना लळा लागला. मांजरीवरील आपले प्रेम व्यक्त करण्यासाठी त्या प्रत्येकाने मांजरीच्या पायांमध्ये आभूषणे चढवली.

काही काळानंतर त्या अलंकारांच्या घर्षणाने मांजरीच्या एका पायाला जखम झाली. म्हणून त्या पायात अलंकार घालणाऱ्या व्यापाऱ्याने  अलंकार काढून प्रेमाने जखमेवर कापडी पट्टी बांधली. एकदा रात्री मांजरीने दिव्याच्या मागे लपून समोर उड्या मारणाऱ्या एका उंदरावर एकदम झेप घेऊन त्याला खाल्ले. या झटापटीत मांजरीच्या पायाला बांधलेली कापडाची चिंधी दिव्याला लागून तिने पेट घेतला. मांजर ती चिंधी फाडू शकत नव्हती. जसजसा अग्निदाह वाढू लागला, मांजर सर्वत्र उड्या मारू लागली. उड्या मारता मारता ओरडत ओरडत ती कापूस ठेवलेल्या ठिकाणी आली. कापसाच्या ढिगाऱ्यावर येताच त्या ज्वालेमुळे कापसाने पेट घेऊन सगळा कापूस भस्मीभूत झाला.

दुसऱ्या दिवशी ते दृश्य बघून बाकीचे तिघेही व्यापारी त्या चिंधी बांधणाऱ्या व्यापाऱ्याला “आमचे नष्ट झालेले धन परत कर” असे म्हणू लागले. त्या व्यापाऱ्याचा चेहरा एकदम कोमेजून गेला. तो स्तब्धच झाला. नंतर त्या तिघा व्यापाऱ्यांनी राजाकडे जाऊन तक्रार केली की, “या व्यापाऱ्याने नष्ट झालेले धन परत दिले पाहिजे. हेच व्यवहारायोग्य ठरेल.”

राजाने सर्व वृत्तांत सविस्तर ऐकला व विचार करून तिघांना म्हणाला, “या व्यापाऱ्याने पट्टी बांधलेला पाय जखमी होता. त्या जखमी पायाने मांजर कशी बरे उड्या मारू शकेल? म्हणून कापसाच्या ढिगावर उड्या मारण्याने निर्माण झालेला आगीचा डोंब मांजरीच्या इतर तीन पायांमुळे निर्माण झाला यात काही संशय नाही. त्यामुळे तुम्ही तिघांनीच ते घर पूर्वीप्रमाणे बांधून मालकाला द्यावे व तुम्हीच तिघांनी मिळून चौथ्या व्यापाऱ्याला त्याचे नष्ट झालेले धन परत करावे.”

तात्पर्य – विचारपूर्वक निर्णयामुळे निर्दोष व्यक्तीचे रक्षण होते.

अनुवाद – © अरुंधती अजित कुळकर्णी

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 80 – समय धागे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना समय धागे)

☆  तन्मय साहित्य  #  80 ☆ समय धागे ☆ 

उम्मीदों के सुनहरे

शुभ पंख होते हैं

दुर्दिनों में राहतों के

बीज बोते हैं

टूटते मन शिथिल तन में

शक्ति का संचार कर

‘समय धागे’

बिखरते ‘मनके’ संजोते हैं।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -3 – कौसानी ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -3 – कौसानी”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -3 – कौसानी ☆

कौसानी में हम भाग्यशाली थे कि सुबह सबेरे हिमालय की पर्वत श्रंखला नंदा देवी के दर्शन हुए, जो कि भारत में कंचन चंघा के बाद दूसरी सबसे ऊँची चोटी है, व कौसानी आने का मुख्य आकर्षण भी ।

कौसानी में उस स्थान पर जाने का अवसर मिला जहाँ जून 1929 में गांधीजी  ठहरे थे। यहाँ वे अपनी थकान मिटाने दो दिन के लिये आये थे पर हिमालय की सुन्दरता से मुग्ध हो वे चौदह दिन तक रुके और इस अवसर का लाभ उन्होने गीता का अनुवाद करने में किया । इस पुस्तिका को उन्होने नाम दिया “अनासक्तियोग”। गान्धीजी को कौसानी की प्राकृतिक सुन्दरता ने मोहित किया और उन्होने इसे भारत के स्विटजरलैन्ड की उपमा दी। गांधीजी जहाँ ठहरे थे वह भवन चायबागान के मालिक का था । कालान्तर में उत्तर प्रदेश गान्धी प्रतिष्ठान ने इसे क्रय कर गान्धीजी की स्मृति में आश्रम बना दिया व नाम दिया अनासक्ति आश्रम । यहाँ एक पुस्तकालय है, गान्धीजी के जीवन पर चित्र प्रदर्शनी है, सभागार है व गान्धी साहित्य व अन्य वस्तुओं का विक्रय केन्द्र । अनासक्ति आश्रम से ही लगा हुआ एक और संस्थान है सरला बहन का आश्रम । इसे गान्धीजी की विदेशी शिष्या मिस कैथरीन हिलमैन ने 1946 के आसपास स्थापित किया था। उनके द्वारा स्थापित कस्तुरबा महिला उत्थान मंडल इस पहाडी क्षेत्र के विकास व महिला सशक्तिकरण में बिना किसी शासकीय मदद के योगदान दे रहा है और पहाड़ी क्षेत्र में कृषि व कुटीर उद्योग के लिए  औजारों का निर्माण कर रहा है  । दोनो पवित्र  स्थानों के भ्रमण से मुझे आत्मिक शान्ति मिली।

कौसानी प्रकृति गोद में बसा छोटा सा कस्बा अपने सूर्योदय-सूर्यास्त, हिमालय दर्शन व सुरम्य चाय बागानो के लिये तो प्रसिद्ध है ही साथ ही वह जन्म स्थली है प्रकृति के सुकुमार कवि , छायावादी काव्य संसार के प्रतिष्ठित ख्यातिलव्य  सृजक सुमित्रानंदन पंत की। पंतजी के निधन के बाद उनकी जन्मस्थली को संग्रहालय का स्वरुप दे दिया गया है। संग्रहालय के कार्यकर्ता ने हमें उनका जन्म स्थल कक्ष दिखाया, उनकी टेबिल कुर्सी दिखाई, पंत जी के वस्त्र और साथ ही वह तख्त और छोटा सा बक्सा भी दिखाया जिसका उपयोग पंतजी करते रहे। पंतजी के द्वारा उपयोग की सामग्री दर्शाती है कि उनका रहनसहन सादगी भरा एक आम मानव सा था। संग्रहालय में बच्चन, दिनकर, महादेवी वर्मा, नरेन्द्र शर्मा आदि कवियों के साथ पंत जी के अनेक छायाचित्र हैं। एक कक्ष में बच्चन जी के पंतजी को लिखे कुछ पत्र व बच्चन परिवार के साथ उनका चित्र प्रदर्शित है। सदी के महानायक का नाम अमिताभ रखने का श्रेय भी पंत जी को है। एक बडे हाल में पंतजी द्वारा लिखी गई पुस्तकें एक आलमारी में सुरक्षित हैं तो कम से कम बीस आलमारियों में उनके द्वारा पढी गई किताबें। दुख की बात यह है की संग्रहालय और  उसके रखरखाव पर  सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता फितरत। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत

यह  मेरी  फितरत है,

जिससे धोखा खाता हूं भरोसा फिर भी उसी पर करता हूँ ||

 मेरा नसीब कुछ ऐसा है,

रोज जहां ठोकर खाता हूँ खुद को फिर वहीं पाता हूँ ||

दिल की अजीब दास्ताँ है,

जो दिल तोड़ता है  फिर भी उसे ही पाना चाहता हूँ ||

अपनों से बेतहाशा मोहब्बत है,

चाहे कोई नफरत करे फिर भी उन पर भरोसा रखता हूँ ||

अपनों का भरोसा नहीं तोड़ता,

चाहे अपने भरोसा तोड़ दे फिर भी अपनों पर विश्वास करता हूँ||

अपनों पर से कभी विश्वास ना उठे,

इसलिए सब कुछ जानते हुए भी अपनों पर यकीन रखता हूँ ||

ड़र है अजनबियों की भीड़ में कहीं,

अपनों को खो ना दूँ इसीलिए अपनों  पर एतबार करता हूँ ||

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 83 – आरक्षण …. ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 83 ☆

☆ आरक्षण  …. ☆

आयुष्याचा प्रवास करताना

प्रत्येकालाच हवी असते

आपापली आरक्षित जागा!

धकाधकीच्या जीवनात ही

लळत लोंबत जगण्याची वेळ

कधीच न आलेल्या प्रवाशाला तर

सहनच होत नाही गर्दीतली घुसमट!

आता निवांत रमावे इथे

असे वाटत असताना,

खिडकीतल्या चिमण्यांना

हुसकावून द्यावे अंगणात

तसे माहेरवाशिणींना

वागविले जाते तेव्हा

बंद करावा माहेरचाही प्रवास!

आपले अस्तित्व नाकारणा-यांकडे

थांबू नये मुक्कामाला!

सोडू नये आपली आरक्षित हक्काची जागा,

विनाआरक्षण करू नये प्रवास कदापिही!

कारण वयाचा आणि नात्याचा मान राखून

चटकन उठून जागा देणा-यांची पिढी

संस्कारली गेली नाही आपल्याकडून!

म्हणूनच करावी तरतूद,

आपल्या आरक्षणाची

कुठल्याही प्रवासाला निघण्यापुर्वी!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆ फ़कीरी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “फ़कीरी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆

☆ फ़कीरी

कदम बोझिल भी नहीं, न ही उन्माद है

ये दिल उदास भी नहीं, न ही वो शाद है

 

नज़्म लिख रही हूँ कई, बिना रुके हुए

मांग रहा हर हर्फ़, कौन सी मुराद है?

 

साज़ से मन भर चुका, लगता है शोर सा

चटनी-अचार में भी, कहाँ अब स्वाद है?

 

टटोलना है जुस्तजू, कहीं तो मिलेगी वो

मिटती नहीं कभी वो, वही बुनियाद है

 

बहुत धनी हैं यूँ भी हम, क्यूँ भाये फ़कीरी

अलफ़ाज़ की पास हमारे, हसीं जायदाद है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #27 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “गणतंत्र दिवस”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 27 ☆ 

☆ गणतंत्र दिवस विशेष  – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ 

26 जनवरी हमारे महान

गणतंत्र का पावन पर्व है

हमें हमारें संविधान पर

अत्यंत गर्व है

इसी दिन लागू हुआ था

यह महान संविधान

जिसके सपने देख रहा था

हर इंसान

गणतंत्र का अर्थ ही है

जनता के लिए

जनता द्वारा शासन

जनता की भागीदारी से

प्रशासन

जब सबको मिला पूर्ण स्वराज

ना किसी धर्म ना

किसी समुदाय का राज

सबने खुशियाँ बांटी

मिठाईयां बांटी

नाच रहा था हर व्यक्ति

और हर समाज

सबको मिले अपने अधिकार

शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार

कहीं भी कर सकते हो व्यापार

सारा देश बना एक घर-बार

मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी

पढ़ने-लिखने की आज़ादी

सुनने की, कहने की आज़ादी

न्याय पाने की,

ना कहने की आज़ादी

अब यह कैसा काल है आया

उमंगों पर मातम है छाया

जिव्हा पर ताले लगे हैं

आंखों में है एक डर समाया

आलोचना अपराध हो गया

सत्य कहना पाप हो गया

यह बलिदानों से मिली आजादी

क्या हम सबके लिए

श्राप हो गया ?

मिलकर इन जंजीरों को तोड़े

दिग्भ्रमित है बस कुछ थोड़े

हम सब है भाई-भाई

चलो संविधान से नाता जोड़े

आओ गणतंत्र दिवस मनाये

हर दुःखी पिड़ीत को गले लगाये

प्यार बांटे, खुशीयां बांटे

हर चेहरे पर मुस्कान लाये ।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #90 ☆ आलेख – हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  शोधपूर्ण आलेख ‘ हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान ’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 90 ☆

☆ आलेख – हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान  ☆

आज हिन्दी भाषी विश्व के हर हिस्से में प्रत्यक्षतः या परोक्ष रूप में कार्यरत हैं. इस तरह अब हिन्दी विश्व भाषा बन चुकी है. किसी भी भाषा की समृद्धि में उसका तकनीकी पक्ष तथा साहित्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है. कम्प्यूटर के प्रयोग हेतु यूनीकोड लिपि व विभिन्न साफ्टवेयर में हिन्दी के उपयोग हेतु अभियंताओ ने महत्वपूर्ण तकनीकी योगदान दिया है. हिन्दी के अन्य भाषाओ में ट्रांसलेशन, हिन्दी के सर्च एंजिन के विकास में भी अभियंताओ के ही माध्यम से हिन्दी दिन प्रतिदिन और भी समृद्ध हो रही है. तकनीक ने ही हिन्दी को कम्प्यूटर से जोड़ कर वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित कर दिया है.

हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में उन साहित्यकारो का भी अप्रतिम योगदान है, जो व्यवसायिक रुप से मूलतः अभियंता रहे हैं. यथार्थ यह है कि साहित्य सृजन वही कर सकता है जो स्व के साथ साथ समाज के प्रति संवेदनशील होता है, तथा जिसमें अपने अनुभवो को सरलीकृत कर अभिव्यक्त करने की भाषाई क्षमता होती है. अभियंता विभिन्न परियोजनाओ के सिलसिले में सुदूर अंचलो में जाते आते हैं. परियोजनाओ के निर्माण कार्य में उनका आमना सामना अनेकानेक परिस्थितियो से होता है, इस तरह अभियंताओ का परिवेश व अनुभव क्षेत्र बहुत व्यापक होता है. जिन भी अभियंताओ में साहित्यिक रूप से उनके व्यक्तिगत अनुभवो के लोकव्यापीकरण व विस्तार का कौशल होता है वे किसी न किसी विधा में स्वयं को सक्षम रूप से अभिव्यक्त कर लेते हैं. जब पाठको का सकारात्मक प्रतिसाद मिलता है तो वे नियमित साहित्यिकार के रूप में स्थापित होते जाते हैं. स्वयं अपनी बात करूं तो मुझे तो पारिवारिक विरासत में साहित्यिक परिवेश मिला पर एक अभियंता के रूप में मेरे बहुआयामी कार्यक्षेत्र ने मुझे लेखन हेतु अनेकानेक तकनीकी विषयों सहित विस्तृत अनुभव संसार दिया है.

यद्यपि रचना को लेखक की व्यवसायिक योग्यता की अलग अलग खिड़कियों से नहीं देखा जाना चाहिये. साहित्य रचनाकार की जाति, धर्म, देश, कार्य, आयु, से अप्रभावित, पाठक के मानस को अपनी शब्द संपदा से ही स्पर्श कर पाता है. रचनाकार जब कागज कलम के साथ होता है तब वह केवल अपने समय को अपने पाठको के लिये अभिव्यक्त कर रहा होता है. यद्यपि समीक्षक की अन्वेषी दृष्टि से देखा जाये तो हिन्दी साहित्य में अभियंताओ का योगदान बहुत व्यापक रहा है. मूलतः इंजीनियर रहे चंद्रसेन विराट ने हिन्दी गजल में ऊंचाईयां अर्जित की हैं.

इंजीनियर नरेश सक्सेना हिन्दी कविता का पहचाना हुआ नाम है. इन दिवंगत महान अभियंता साहित्यकारो के अतिरिक्त अनेकानेक वर्तमान में सक्रिय साहित्यकारो में भी अलग अलग विधाओ में कई अभियंता रचनाकार लगातार बड़े कार्य कर रहे हैं.

मुझे गर्व है कि इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स जबलपुर द्वारा आयोजित यह वेबीनार इस विषय पर देश में पहला शोध कार्य है. इस शोध में भी तकनीक ने ही मेरी मदद की है. फेसबुक तथा व्हाट्सअप पर जब मैने यह सूचना दी कि अभियंता साहित्यकारो पर शोध पत्र तैयार कर रहा हूं तो मुझे अनेकानेक साहित्यिक अभियंता व गैर अभियंता मित्रो ने इस शोध कार्य की बहुत सारी जानकारी उपलब्ध करवाई है. गूगल सर्च एंजिन की सहायता से भी मैने काफी सामग्री जुटाई है.

यद्यपि कोई भी लेखक किसी विधा विशेष में बंधकर नही रहता सभी अपनी मूल विधा के साथ ही कभी न कभी संस्मरण, कविता, कहानी, लेख, साक्षात्कार में रचना लिखते मिलते हैं. व्यंग्य आज सबसे अधिक लोक प्रिय विधा है, जिसमें इंजी हरि जोशी जो तकनीकी शिक्षा से जुड़े रहे हैं, इंजी अरुण अर्णव खरे जो म. प्र. शासन के पी एच ई विभाग में मुख्य अभियंता होकर सेवानिवृत हुये हैं, इंजी अनूप शुक्ल  जो भारत सरकार की आयुध निर्माणी शाहजहांपुर में महा प्रबंधक हैं,इंजी श्रवण कुमार उर्मलिया जो पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से सेवानिवृत महा प्रबंधक हैं, बी एस एन एल से सेवानिवृत इंजी राकेश सोहम व्यंग्य के जाने पहचाने चेहरे बन चुके हैं. इंजी शशांक दुबे बैंक सेवाओ में हैं पर मूलतः सिविल इंजीनियर हैं व व्यंग्य के साथ अन्य विधाओ में लेखन कर रहे हैं. इंजी मृदुल कश्यप इंदौर, इंजी अवधेश कुमार गोहाटी में प्लांट इंजीनियर हैं व व्यंग्य लिखते हैं. इंजी देवेन्द्र भारद्वाज झांसी से हैं तथा व्यंग्य लेखन में सक्रिय हैं. इंजी ललित शौर्य भी व्यंग्य का जाना पहचाना युवा नाम है.आत्म प्रवंचना न माना जावे तो स्वयं मैं इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव लगभग २० किताबो के प्रकाशन के साथ राष्ट्रीय स्तर पर लेखकीय ख्याति व पाठको का स्नेह पात्र हूं, मेरी कविता की किताब आक्रोश १९९२ में तारसप्तक अर्धशती समारोह में विमोचित हुई थी, कौआ कान ले गया, रामभरोसे, मेरे प्रिय व्यंग्य, धन्नो बसंती और बसंत, बकवास काम की, जय हो भ्रष्टाचार की, खटर पटर, समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य आदि मेरी व्यंग्य की पुस्तकें चर्चित हैं. बिजली का बदलता परिदृश्य तकनीकी लेखो की किताब है, नाटको पर भी मेरा बहुत कार्य है, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश ने मेरी नाटक की किताब हिंदोस्तां हमारा को पुरस्कृत भी किया, मेरी संपादित अनेक किताबें व पत्रिकायें बहुचर्चित रहीं हैं, नियमित समीक्षा का कार्य भि मेरी अभिरुचि है. विदेशो में कार्यरत इंजीनियर्स भी हिन्दी में लेखन कार्य कर रहे हैं, आस्ट्रेलिया में कार्यरत इंजी संजय अग्निहोत्री ऐसा ही नाम है, वे भी व्यंग्य लिख रहे हैं.

उपन्यास में इंजी अमरेन्द्र नारायण महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं वे सरदार पटेल पर चर्चित उपन्यास लिख चुके हैं तथा टेलीकाम क्षेत्र के जाने माने इंजीनियर हैं जो भारत का प्रतिनिधित्व विश्व संस्थाओ में कर चुके हैं, वे एकता व शक्ति के संदेश को लेकर राष्ट्रीय भावधारा पर गहरा कार्य कर रहे हैं.

म. प्र. पी डब्लू डी से सेवानिवृत इंजी संजीव वर्मा ने, छंद शास्त्र तथा व्याकरण में खूब काम किया है,हमने साथ साथ दिव्य नर्मदा ई पोर्टल बनाया है. संजीव जी ने अनेक किताबों का संपादन किया है. संपादन के क्षेत्र में व व्यंग्य तथा विविध विषयो पर लेखन में नर्मदा वैली डेवेलेपमेंट अथारिटी से सेवानिवृत इंजी सुरेंद्र सिंह पवार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान अर्जित कर चुके हैं वे नियमित पत्रिका साहित्य परिक्रमा का प्रकाशन कर रहे हैं, उनके तकनीकी लेख इंस्टीट्यूशन से पुरस्कृत हैं.

विद्युत मण्डल से सेवानिवृत इंजी प्रहलाद गुप्ता ने विशेष रूप से भगवान कृष्ण पर केंद्रित कलम चलाई है. सिंचाई विभाग से सेवानिवृत इंजी उदय भानु तिवारी तथा स्व इंजी गोपालकृष्ण चौरसिया मधुर, ने भी प्रचुर धार्मिक काव्य रचनायें की हैं. विद्युत ट्रांसमिशन कंपनी में सेवारत इंजी संतोष मिश्र ने भी धार्मिक विषयो पर लेखन किया है.

गीत लेखन में कई नाम सक्रिय हैं इंजी निशीथ पांडे छत्तीसगढ़ के सिंचाई विभाग से सेवानिवृत हैं, वे लिखते भी हैं और गाते भी हैं, इसी तरह बी एस एन एल से सेवानिवृत इंजी दुर्गेश व्यवहार भी काव्य लेखन तथा गायन में सुस्थापित हैं, उनके कई एलबम आ चुके हैं. भोपाल के इंजी अशेष श्रीवास्तव भी गायन व गीत लेखन पर काम कर रहे हैं वे पवन ऊर्जा के क्षेत्र में इंजीनियरिंग विशेषज्ञ हैं. इंजी राम रज फौजदार मूलतः सिविल इंजीनियर हैं पर उनकी गजल तथा रागों की समझ और अभिव्यक्ति उल्लेखनीय है.

इंजी बृजेश सिंग बिलासपुर, इंजी अमरनाथ अग्रवाल लखनऊ, इंजी मनोज मानव, इंजी कोमल चंद जैन विविध विषयी लेखन कर रहे हैं वे अपने सेवाकाल में अनेक देशो में कार्यरत रहे हैं व अब जबलपुर में रह रहे हैं. विद्युत मण्डल में सेवारत इंजी अशोक कुमार तिवारी ने तकनीकी साहित्य पर हिन्दी में भी काम किया है. इंजी प्रो संजय वर्मा ने तकनीकी विषयो पर हिन्दी में लेखन कार्य किया है. तकनीकी हिन्दी आलेखो के संपादन से बनी इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की पत्रिका अभियंता बंधु के संपादन के लिये इंजी शिवानंद राय रांची, इंजी विभूति नारायण सिंग लखनऊ, तथा तकनीकी विषयो पर हिन्दी लेखन के लिये प्रो जगदीश कुमार गहलावतदिल्ली, इंजी मलविंद्र सिंह बी एच ई एल हरिद्वार, इंजी नरेंद्र कुमार झा बेंगलोर, इंजी कृष्ण बिहारी अग्रवाल बरेली उप्र, इंजी डा सुधीर कुमार कल्ला पूर्व निदेशक राजस्थान विद्युत उत्पादन इकाई, इंजी डा एस एन विजयवर्गीय जीनस पावर जयपुर आदि तकनीकी लेखक हैं जो यद्यपि नियमित हिन्दी लेखक तो नही हैं किन्तु उन्होने जो भी कार्य किया है वह महत्वपूर्ण है.

कविता बहु रचित विधा है. जबलपुर के इंजी गजेंद्र कर्ण व इंजी हेमंत जैन म. प्र.शासन सिंचाई विभाग में कार्यरत थे, तथा सक्रिय रचनाकार हैं. इंजी हेमन्त जैन डाक टिकटो का संग्रह भी करते हैं, उनका टिकिट संग्रह बहुत विशाल है. उनके ही हम नाम उ प्र सिंचाई विभाग में सेवारत इंजी हेमन्त कुमार ग्राम फीना बिजनोर तकनीकी विषयो पर हिन्दी में सतत लेखन के लिये सम्मानित हो चुके हैं. इंजी महेश ब्रम्हेते विद्युत वितरण के क्षेत्र से जुड़े हुये हैं, इंजी प्रो अनिल कोरी, विविध विषयो पर काव्य, व्यंग्य स्फुट लेखन करते दिखते हैं. विद्युत मण्डल से सेवानिवृत इंजी सुधीर पाण्डे, इंजीनियर रामप्रताप खरेवर्तमान में रायपुर में रह रहे हैं, इंजी देवेन्द्र गोंटीया देवराज, जबलपुर, इंजी कमल मोहन वर्मा, इंजी सुनील कोठारी, नरसिंहपुर, म प्र सिंचाई विभाग से सेवा पूरी करके इंजी संजीव अग्निहोत्री, मंडला,म प्र सिंचाई विभाग से ही सेवा निवृत इंजी दिव्य कांत मिश्रा, मण्डला, इंजी मदन श्रीवास्तव, जबलपुर का नाम भी उल्लेखनीय है. विद्युत मण्डल सारणी में कार्यरत इंजी अनूप कुमार त्रिपाठी ‘अनुपम’ का उपन्यास आस्था की अनुगूँज आ चुका है,उनका भक्ति-गीत संकलन अमृत की बूंदें भी प्रकाशित है. इंजी अश्विनी कुमार दुबे,जल संसाधन विभाग इंदौर में कार्यरत थे, उनकी व्यंग्य, कहानी की लगभग १० किताबें प्रकाशित हैं उनका विश्वश्वरैय्या जी की जीवनी पर उपन्यास स्वप्नदर्शी चर्चित रहा है. इंजी अवधेश दुबे ने रेवा तरंग पत्रिका के सम्पादन का कार्य किया. इंजी अनिल लखेरा सेवानिवृत इंजीनियर हैं वे बड़े चित्रकार हैं स्फुट काव्य लेखन भी करते हैं. इंजी शरद देवस्थले पेट्रोलियम कार्पोरेशन से सेवानिवृत हुये हैं वे समीक्षा का अच्छा कार्य करते दिखते हैं. दिल्ली के इंजी ओम प्रकाश यति गजलकार हैं वे उप्र शासन सिंचाई विभाग में कार्यरत रहे हैं. इंजी सुनील कुमार वाजपेयी लखनऊ में हैं वे उ प्र लोकनिर्माण विभाग में कार्यरत थे, गीत छंद, कहानी आदि विधाओ में उनकी कई पुस्तके आ चुकी हैं. भोपाल के इंजी विनोद कुमार जैन भी विविध विषयी लेखक हैं. इंजी बृंदावन राय सरल म प्र शासन पी एच ई विभाग में सहायक अभियंता थे, सागर में रह रहे हें, गजल, कविता व बाल साहित्य की उनकी ५ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं. इंजी आई ए खान पी डब्लू डी मण्डला से सेवानिवृत होकर मण्डला में ही रह रहे हैं, उनकी गजलो की पुस्तक प्रकाशित है, उन्होने हिन्दी साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद के कार्य भी किये हैं, चंद्रसेन विराट की गजलों, मेरे पिता प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव की गजलों तथा मेरे व्यंग्य लेखों का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने किया है.इंजी कपिल चौबे सागर युवा साथी इंजी हैं तथा विविध विषयो पर कवितायें कर रहे हैं.इंजी धीरेंद्र प्रसाद सिंग, बिहार से हैं वे भी विविध आयामी लेखन कर रहे हैं.

महिला इंजीनियर लेखिकायें बहुत कम हैं. इंजी अनुव्रता श्रीवास्तव ने संस्मरण व तकनीकी विषयो पर हिन्दी में लेखन किया है उनकी संस्मरणात्मक उपन्यासिका भगत सिंग पुस्तकाकार आ चुकी है, वे दुबई में मैनेजमेंट क्षेत्र में सेवारत हैं. इंजी स्मिता माथुर यू ट्यूबर कवि हैं.इंजी. आशा शर्मा, राजस्थान विद्युत विभाग में बीकानेर में पदस्थ हैं,उनकी किताबें अनकहे स्वप्न कविता, उजले दिन मटमैली शामें-लघुकथा, अंकल प्याज -बाल कविता, तस्वीर का दूसरा रुख-कहानी, गज्जू की वापसी- बाल कहानी संग्रह, डस्टबिन में पेड़ -बाल कहानी संग्रह, मुफ्त की कीमत-लघुकथा प्रकाशित हो चुकी हैं. इंजी. अनघा जोगलेकर, गुड़गांव भी विविध विषयी लेखन कार्य में जुड़ी हुई हैं.

मूलतः इंजीनियर न होते हुये भी तकनीक से जुड़े बहुत सारे हस्ताक्षर हैं जिनका महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान है, डा प्रकाश खरे भारत मौसम विभाग से सेवानिवृत वैज्ञानिक हैं उनकी कवितायें व लेख चर्चित हैं, श्री हेमंत बावनकर बैंक से सेवानिवृत कम्प्यूटर विज्ञ हैं, वे ई अभिव्यक्ति साहित्यिक पोर्टल के निर्माता व संपादक हैं, शांति लाल जैन कम्प्यूटर विशेषज्ञ हैं वे व्यंग्य के जाने पहचाने सशक्त हस्ताक्षर हैं. श्री अजेय श्रीवास्तव व श्री बसंत शर्मा रेलवे में तकनीकी रूप से सेवारत हैं व साहित्य सृजन कर रहे हैं.

अभिव्यक्ति के स्वसंपादित माध्यम फेस बुक, ब्लाग तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मस ने भी इंजीनियर्स को लेकक के रूप में स्थापित होने में मदद की है. इस आलेख में ही लगभग साठ नामों का उल्लेख यहां किया जा चुका है. इनमें से कई लेखको के कृतित्व पर विस्तार से लिखा जा सकता है, अनेको के विषय में गूगल सर्च से विकीपीडीया सहित कई पृष्ठ जानकारियां, किताबें व उनकी रचनायें सुलभ हैं, तो ढ़ेरो नाम ऐसे भी हैं जिनके विषय में उनसे संपर्क करके ही विवरण जुटाने होंगे. सम्मिलित अभियंता रचनाकारो के विस्तृत विवरण समाहित करना नियत शब्द व समय सीमा में संभव नही है. विशाल भव्य हिन्दी संसार में अनेकों अभियंता लगातार अपनी शब्द आहुतियां दे रहे हैं. इस आलेख को परिपूर्ण बनाने के लिये अभी बहुत सारे नाम जोड़े जाने शेष हैं, जो आप सबके सहयोग से ही संभव हो सकता है, अतः आपके सुझाव व सहयोग की आकांक्षा है।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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