मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 79 – मधुरा – चतुरा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 79 ☆

☆ मधुरा -चतुरा ☆

(वृत्त-तोटक)

सहजा सहजी कळले मजला

धरणी फिरते असुनी अचला

हलके हलके अवघा बरसे

तरसे तरसे मन हे तरसे

 

सरिता अधिरा बनुनी झरते

दरिया हृदयी शिरते रमते

फुलती झुलती  लतिके वरती

भ्रमरासह त्या रमती गमती

 

ललना असती चतुरा इथल्या

भरण्या जल ही निघती पहिल्या

कळशी कळशी भरते सरते

जगणे मरणे सहजी नसते

 

वनिता तनुजा असती दुहिता

इकडे तिकडे बनती अजिता

बिजली असती, असती अशनी

फुलती फळती अवनी  वरती

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 64 ☆ मेरी नज़्में ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “मेरी नज़्में ”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 64 ☆

☆मेरी नज़्में

कुछ ग़म

ज़िंदगी ने मुझे

शाल की तरह उढ़ा दिए…

 

मैंने उन सभी शालों को

एक-एक कर नज्मों में बदल दिया

और उन नज्मों को एक पोटली में डाल

सूखने को रख दिया…

 

जैसे गृहिणी पापड बनाकर

छत पर सुखाने रख देती है,

और तैयार हो जाते हैं कच्चे पर करारे पापड,

वैसे ही

कुछ दिनों बाद मैंने देखा तो पाया

नज्मों का गीलापन सूख गया था

और वो बन गयीं थीं

बेहद हसीं और खूबसूरत,

जिन्हें किसी भी किताब में

जायके के लिए

परोसा जा सकता था!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ व्यंग्य संग्रह – ‘लाकडाउन’’ – संपादक : श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ चर्चाकार – डा. साधना खरे

 ☆  व्यंग्य संग्रह – ‘लाकडाउन’’ – संपादक – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  चर्चाकार – डा. साधना खरे ☆ 

व्यंग्य संग्रह  – लाकडाउन

संपादन.. विवेक रंजन श्रीवास्तव  

पृष्ठ – १६४

मूल्य – ३५० रु

IASBN 9788194727217

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन’ गंगा विहार’ दिल्ली

हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की स्वीकार्यता लगातार बढ़ी है. पाठको को व्यंग्य में कही गई बातें पसंद आ रही हैं.   व्यंग्य लेखन घटनाओ पर त्वरित प्रतिक्रिया व आक्रोश की अभिव्यक्ति का सशक्त मअध्यम बना है. जहां कहीं विडम्बना परिलक्षित होती है’ वहां व्यंग्य का प्रस्फुटन स्वाभाविक है. ये और बात है कि तब व्यंग्य बड़ा असमर्थ नजर आता है जब उस विसंगति के संपोषक जिस पर व्यंग्यकार प्रहार करता है’ व्यंग्य से परिष्कार करने की अपेक्षा’ उसकी उपेक्षा करते हुये’ व्यंग्य को परिहास में उड़ा देते हैं. ऐसी स्थितियों में सतही व्यंग्यकार भी व्यंग्य को छपास का एक माध्यम मात्र समझकर रचना करते दिखते हैं.

विवेक रंजन श्रीवास्तव देश के एक सशक्त व्यंग्यकार के रूप में स्थापित हैं. उनकी कई किताबें छप चुकी हैं. उन्होने कुछ व्यंग्य संकलनो का संपादन भी किया है. उनकी पकड़ व संबंध वैश्विक हैं. दृष्टि गंभीर है. विषयो की उनकी सीमायें व्यापक है.

वर्ष २०२० के पहले त्रैमास में ही सदी में होने वाली महामारी कोरोना का आतंक दुनिया पर हावी होता चला गया. दुनिया घरो में लाकडाउन हो गई. इस पीढ़ी के लिये यह न भूतो न भविष्यति वाली विचित्र स्थिति थी. वैश्विक संपर्क के लिये इंटरनेट बड़ा सहारा बना. ऐसे समय में भी रचनात्मकता नही रुक सकती थी. कोरोना काल निश्चित ही साहित्य के एक मुखर रचनाकाल के रूप में जाना जायेगा. इस कालावधि में खूब लेखन हुआ. इंटरनेट के माध्यम से फेसबुक’ गूगल मीट’ जूम जैसे संसाधनो के प्रयोग करते हुये ढ़ेर सारे आयोजन हो रहे हैं. यू ट्यूब इन सबसे भरा हुआ है.  विवेक जी ने भी रवीना प्रकाशन के माध्यम से कोरोना तथा लाकडाउन विषयक विसंगतियो पर केंद्रित व्यंग्य तथा काव्य रचनाओ का अद्भुत संग्रह लाकडाउन शीर्षक से प्रस्तुत किया है. पुस्तक आकर्षक है. संकलन में वरिष्ठ’ स्थापित युवा सभी तरह के देश विदेश के रचनाकार शामिल किये गये हैं.

गंभीर वैचारिक संपादकीय के साथ ही रमेशबाबू की बैंकाक यात्रा और कोरोना तथा महादानी गुप्तदानी ये दो महत्वपूर्ण व्यंग्य लेख स्वयं विवेक रंजन श्रीवास्तव के हैं’ जिनमें कोरोना जनित विसंगति जिसमें परिवार से छिपा कर की गई बैंकाक यात्रा तथा शराब के माध्यम से सरकारी राजस्व पर गहरे कटाक्ष लेखक ने किये हैं’ गुदगुदाते हुये सोचने पर विवश कर दिया है.

जिन्होने भी कोरोना के आरंभिक दिनो में तबलीकी जमात की कोरोना के प्रति गैर गंभीर प्रवृत्ति और टीवी चैनल्स की स्वयं निर्णय देती रिपोर्टिग देखी है उन्हें जहीर ललितपुरी का व्यंग्य लाकडाउन में बदहजमी पढ़कर मजा आ जायेगा. डा अमरसिंह का लेख लाकडाउन में नाकडाउन में हास्य है, उन्होने पत्नी के कड़क कोरोना अनुशासन पर कटाक्ष किया है. लाकडाउन के समाज पर प्रभाव भावना सिंह ने मजबूर मजदूर’ रोजगार’ प्रकृति सारे बिन्दुओ का समावेश करते हुये  पूरा समाजशास्त्रीय अध्ययन कर डाला है.

कुछ जिन अति वरिष्ठ व्यंग्य कारो से संग्रह स्थाई महत्व का बन गया है उनमें इस संग्रह की सबसे बड़ी उपलब्धि ब्रजेश कानूनगो जी का व्यंग्य ” मंगल भवन अमंगल हारी ” है. उन्होंने संवाद शैली में गहरे कटाक्ष करते हुये लिखा है ” उन्हें अब बहुत पश्चाताप भी हो रहा था कि शास्त्रा गृह को समृद्ध करने के बजाय वे औषधि विज्ञान और चिकित्सालयों के विकास पर ध्यान क्यो नही दे पाये “. केनेडा से धर्मपाल महेंद्र जैन की व्यंग्य रचना वाह वाह समाज के तबलीगियों से पठनीय वैचारिक व्यंग्य रचना है. उनकी दूसरी रचना लाकडाउन में दरबार में उन्होंने धृतराष्ट्र के दरबार पर कोरोना जनित परिस्थितियों को आरोपित कर व्यंग्य उत्पन्न किया है. इसी तरह प्रभात गोस्वामी देश के विख्यात व्यंग्यकारो में से एक हैं’ कोरोना पाजिटिव होने ने पाजिटिव शब्द को निगेटिव कर दिया है’उनका व्यंग्य नेगेटिव बाबू का पाजिटिव होना बड़े गहरे अर्थ लिये हुये है’वे लिखते हैं  हम राम कहें तो वे मरा कहते हैं.  सुरेंद्र पवार परिपक्व संपादक व रचनाकार हैं’ उन्होंने अपने व्यंग्य के नायक बतोले के माध्यम से ” भैया की बातें में”  घर से इंटरनेट तक की स्थितियों का रोचक वर्णन कर पठनीय व्यंग्य प्रस्तुत किया है. डा प्रदीप उपाध्याय वरिष्ठ बहु प्रकाशित व्यंग्यकार हैं’ उनके दो व्यंग्य संकलन में शामिल हैं’ “कोरोनासुर का आतंक और भगवान से साक्षात्कार” तथा “एक दृष्टि उत्तर कोरोना काल पर”. दोनो ही व्यंग्य उनके आत्मसात अनुभव बयान करते बहुत रोचक हैं.  कोरोना काल में थू थू करने की परंपरा के माध्यम से युवा व्यंग्यकार अनिल अयान ने बड़े गंभीर कटाक्ष किये हैं’ थू थू करने का उनका शाब्दिक उपयोग समर्थ व्यंग्य है. अजीत श्रीवास्तव बेहद परिपक्व व्यंग्यकार हैं’ उनकी रचना ही  शायद संग्रह का सबसे बड़ा लेख है  जिसमें छोटी छोटी २५ स्वतंत्र कथायें कोरोना काल की घटनाओ पर उनके सूक्ष्म निरीक्षण से उपजी हुई’ पठनीय रचनायें हैं. राकेश सोहम व्यंग्य के क्षेत्र में जाना पहचाना चर्चित नाम है’ उनका छोटा सा लेख बंशी बजाने का हुनर बहुत कुछ कह जाताने में सफल रहा है. रणविजय राव ने कोरोना के हाल से बेहाल रामखेलावन में बहुत गहरी चोट की है’ उन जैसे परिपक्व व्यंग्यकार से ऐसी ही गंभीर रचना की अपेक्षा पाठक करते हैं.

महिला रचनाकारो की भागीदारी भी उल्लेखनीय है. सबसे उल्लेखनीय नाम अलका सिगतिया का है. लाकडाउन के बाद जब शराब की दूकानो पर से प्रतिबंध हटा तो जो हालात हुये उससे उपजी विसंगती उनकी लेखनी का रोचक विषय बनी ” तलब लगी जमात ” उनका पठनीय व्यंग्य है.  अनुराधा सिंह ने दो छोटे सार्थक व्यंग्य सांप ने दी कोरोना को चुनौती और वर्क फ्राम होम ऐसा भी लिखा है. छाया सक्सेना प्रभु समर्थ व्यंग्यकार हैं उन्होने अपने व्यंग्य जागते रहो में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं वे लिखती हैं लाकडाउन में पति घरेलू प्राणी बन गये हैं’ कभी बच्चो को मोबाईल से दूर हटाते माता पिता ही उन्हें इंटरनेट से पढ़ने  प्रेरित कर रहे हैं’ कोरोना सब उल्टा पुल्टा कर रहा है. शेल्टर होम में डा सरला सिंह स्निग्धा की लेखनी करुणा उपजाती है .सुशीला जोशी विद्योत्तमा की दो लघु रचनायें लाकडाउन व व्यसन संवेदना उत्पन्न करती हैं. राखी सरोज के लेख गंभीर हैं.

गौतम जैन ने अपनी रचना दोस्त कौन दुश्मन कौन में संवेदना को उकेरा है. डा देवेश पाण्डेय ने लोक भाषा का उपयोग करते हुये पनाहगार लिखा है. डा पवित्र कुमार शर्मा ने एक शराबी का लाकडाउन में शराबियो की समस्या को रेखांकित किया है. कोरोना से पीड़ित हम थे ही और उन्ही दिनो में देश में भूकम्प के जटके भी आये थे’ मनीष शुक्ल ने इसे ही अपनी लेखनी का विषय बनाया है.डा अलखदेव प्रसाद ने स्वागतम कोरोना लिखकर उलटबांसी की हे. राजीव शर्मा ने कोरोना काल में मनोरंजक मीडीया लिखकर मीडीया के हास्यास्पद’ उत्तेजना भरे ‘त्वरित के चक्कर में असंपादित रिपोर्टर्स की खबर ली है. व्यग्र पाण्डे ने मछीकी और मास्क में प्रकृति पर लाकडाउन के प्रभाव पर मानवीय प्रदूषण को लेकर कटाक्ष किया है. एम मुबीन ने कम शब्दो की रचना में बड़ी बातें कह दी हैं. दीपक क्रांति की दो रचनायें संग्रह का हिस्सा हैं ’नया रावण तथा मजबूर या मजदूर’ कोरोना काल के आरंभिक दिनो की विभीषिका का स्मरण इन्हें पढ़कर हो आता है. महामारी शीर्षक से धर्मेंद्र कुमार का आलेख पठनीय है.

दीपक दीक्षित’ बिपिन कुमार चौधरी’ शिवमंगल सिंह’ प्रो सुशील राकेश’ उज्जवल मिश्रा और राहुल तिवारी की कवितायें भी हैं.

कुल मिलाकर  पुस्तक बहुत अच्छी बन पड़ी है ’यद्यपि प्रकाशन में सावधानी की जरूरत दिखती है’ कई रचनाओ के शीर्षक गलती से हाईलाईट नही हो पाये हैं’ रचनाओ के अंत में रचनाकारो के पते देने में असमानता खटकती है.कीमत भी मान्य परमंपरा जितने पृष्ठ उतने रुपये के फार्मूले पर किंचित अधिक लगती है’  पर फिर भी लाकडाउन में प्रकाशित साहित्य की जब भी शोध विवेचना होगी इस संकलन की उपेक्षा नही की जा सकेगी यह तय है. जिसके लिये संपादक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव व प्रकाशक बधाई के पात्र हैं.

 

चर्चाकार.. डा साधना खरे’

भोपाल

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 73 – कविता –2021 का करें अभिनंदन …. ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत नववर्ष के शुभागमन पर आपकी एक अतिसुन्दर कृति “2021 का करें अभिनंदन….। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 73 ☆

? 2021 का करें अभिनंदन …. ?

खोया हमने बहुत अपनों को

गम भी है उनका हमको

भाग्य लिखा टल न सका

दिए सांत्वना हैं सबको

 

मिलकर नमन करते हैं सब

गुरु गंगा गीता गौ गायत्री को

जिनके संस्कारों टिका हुआ

दुनिया में ऊंचा भारत को

 

ठिठुरन भरी ठंडक में भी

मनाते हैं संक्रांत यहां

गुड़ तिल जैसे मिले रहे

ऐसा मिलता प्यार कहां

 

मिला संस्कार बड़ों से यहां

नित्य पूजन की बजती घंटी

2020 के कोरोना में भी

काम आई हमारी तुलसी बट्टी

 

याद करें सुन्दर लम्हों को

सुखद बनाएं जो जीवन

भूलकर 2020 का गम

2021 का करें अभिनंदन

 

अलौकिक सुंदर जीवन

शुभ कर्मो से पाया हैं

नूतन वर्ष मंगलमय हो

हम सब ने आस लगाया हैं

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 78 ☆ पाचोळा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 78 ☆ पाचोळा ☆

मी मृत्यूच्या काठावरती बसून आहे

मृत्यू पुरता माझ्यावरती रुसून आहे

 

काठावरती ऐकू येते खळखळ त्याची

याच मृत्युने केली आहे माझी गोची

कळते त्याला मी तर गेलो खचून आहे

 

झाडावरती सडून जाणे नको नशिबी

दाणे भरले छाटा आता लवकर ओंबी

पडूदेत रे फळ जे गेले पिकून आहे

 

फळा फुलांना हिरवी पाने कवेत घेती

पानगळीचा ऋतू कसा हा खुडतो नाती

डोळ्यांमधले गेले पाणी सुकून आहे

 

आठवणींचा पाडा होता माझ्या सोबत

त्याच त्याच त्या जुनाट गप्पा असतो मारत

भूतकाळ तो रोज काढतो पिसून आहे

 

आत्मा गेला देहाचे ह्या हलके ओझे

तरी वाटते छानच आहे नशीब माझे

पाचोळा मी  तरी मातिला धरून आहे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

पहर पहर दिन चढ़ गया, पकी समय की धूप।

आंखों में अंजन लगा, सपनों का प्रारूप।।

 

ग्रंथ, पिटक किया पुस्तकें, कर न सके उद्धार।

मुक्ति चाहिए तो भरो, अपने मन में प्यार।।

 

प्यार नहीं करता कभी, प्रियतम को स्वच्छंद।

यदि उसका ही वश चलें, रखे नयन में बंद।।

 

धड़कन बढ़ती हृदय की, सुनने को पदचाप।

दीवारें ही गुन रही, मन का मौन प्रलाप।।

 

पागल के पल भोगता, पल पल है बैचेन।

कहां चैन की चांदनी, खोज रहे हैं नैन।।

 

आस उड़ी बनकर तुहिन, हत आशा अंगार।

दरपन दरका तो हुआ, नष्ट भ्रष्ट  श्रृंगार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 30 – अँधियारा जोड़ रहा …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “अँधियारा जोड़ रहा … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– ।। अभिनव गीत ।।

☆ अँधियारा जोड़ रहा … ☆

उतर गई

मगरे* से धूप

 

इघर-उधर फैल गया

कहरीला सन्नाटा

अँधियारा जोड़ रहा

दिन भर का घाटा

 

रोशनी नहीं

दिखी अनूप

 

लालटेन जल्दी में

ढिबरियाँ तलाशती

ओसारे में सिमटी

बड़ी बहू खाँसती

 

देवर चुप खड़ा

शिव सरूप

 

ससुर बहुत दीन

खूब चिटखाता उँगलियाँ

साँस थामतीं भरसक

सासू की पसलियाँ

 

धान फटकती

भरभर सूप

 

* मगरे= कच्चे घरों में खपरैल का ऊपरी हिस्सा

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 76 ☆ व्यंग्य – समर्थन मूल्य ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक समसामयिक व्यंग्य  “समर्थन मूल्य“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 76

☆ व्यंग्य – समर्थन मूल्य ☆

सब तरह के किसान परेशान हैं। भूख हड़ताल कर रहे हैं, अपने हक की मांग के लिए हड्डी गलाने वाली ठंड में ठिठुर रहे हैं। उधर दिल्ली के बाहरी इलाके में हजारों किसान पचीस दिनों से कड़कड़ाती ठंड में डटे हुए हैं, और इधर आधा बीघा जमीन का पट्टा बनवाने के लिए लंगोटी लगाए एक किसान पटवारिन बाई के पचास दिन से चक्कर पे चक्कर लगाए जा रहा है। जब समय खराब आता है तो सब तरफ से वक्त परीक्षा लेता है किसान के पुराने पट्टे को चूहों ने कुतर दिया था, उसके घर में मंहगी संदूक होती तो चूहों की हिम्मत न होती, भूखे किसान के घर में कुछ नहीं मिला तो भूमि के पट्टे को खा गए, पता नहीं ऊपर का पन्ना कैसे छोड़ दिया,अब वो पन्ना देखकर पटवारिन कह रही है कि नई  बनवाने के लिए एफआईआर दर्ज कराओ चूहों के खिलाफ।

भटकते भटकते जब पांव की बिवाईं फट के चिल्लाईं तो बात एक टुटपुंजिया पत्रकार तक पहुंच गई। पत्रकार अखबार का ऐजेंट था, दलाली भी करता था ,इस पार्टी से उस पार्टी में कूद फांद भी करता था। पत्रकार के पास किसान को लाया गया, किसान घबराया सा आया । पत्रकार टुटपुंजिया हो और दलाल भी हो तो किसी की भी लंगोटी बेच सकता है। पत्रकार ने पटवारिन से कहा कि कुछ खर्चा पानी लेकर उस बेचारे का पट्टा बना दो बहन। पटवारिन एक न मानी बोली- समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना तो लगेगा ही।

पत्रकार बोला – समर्थन मूल्य पर काम कर दो न सरकार।  सरकार कहने पर पटवारिन आग बबूला हो गई बोली- जानते हो कि सरकार किसे बोला जाता है,  बात का बतंगड़ बनते देख किसान गश्त खाकर गिर गया। पत्रकार ने स्थिति बिगड़ते देख पटवारिन से क्षमा मांगी बोला- मेडम आपको गलतफेहमी हो रही है, आप सरकार की प्रतिनिधि हैं और किसान की भूमि के पट्टे बनाने का आपका काम है, इसीलिए किसान की तरफ से निवेदन किया था। पटवारिन का पारा चढ़ गया था….. बोली- तुम कौन होते हो हमें हमारी ड्यूटी बताने वाले, किसान का काम है तो फिरी में थोड़े न होगा, हमारे ऊपर वाले साहबों ने हर काम के समर्थन मूल्य तय कर के रखे हैं, साहब के लघु हस्ताक्षर कराने में हमें ऐड़ी चोटी एक करनी पड़ती है और समर्थन मूल्य तुरंत देना पड़ता है । पास खड़ा एक पढ़ा – लिखा किसान बहुत देर से ये सब सुन रहा था, कहने लगा किसान का पट्टा बनाकर देना आपकी ड्यूटी है इसी बात के लिए तो सरकार आपको वेतन देती है, आज कम्प्यूटर का जमाना है हर काम आनलाइन होता है, ये बात अलग है कि आनलाइन में बैठे कर्मचारी बिना पैसे लिए काम नहीं करते, पैसे न दो तो सर्वर डाउन का बहाना बनाकर चक्कर लगवाते हैं। मेडम ये बताईए कि जब किसान की भूमि का हर काम कम्प्यूटराइज हो गया है तो ये पट्टा आप हाथ से क्यों बनाती हो, इसलिए न कि हर किसान को भूमि का पट्टा चाहिए और पट्टा बिना खर्चा पानी दिए बनेगा नहीं। ये बेचारा गरीब किसान महीने दो महीने से भटक रहा है, इसके पास पैसा नहीं है, ऐसे में ये क्या करे ? पटवारिन झट से बोल उठी कि कहीं से उधार भी तो ले सकता है, और यदि उधार नहीं मिलता तो जमीन रहन रखकर पैसा उठा सकता है। पट्टा बनवाना है तो खर्चा पानी तो लगेगा, हम बना भी देंगे तो हमारा साहब बिना पैसे लिए सील दस्तखत नहीं करेगा। पैसे के मामले में वो बड़ा … है, गरीब हो अमीर हो सबसे निर्धारित समर्थन मूल्य के भाव से हमसे वसूल करता है। तो किसान दादा पहले पैसे का इंतजाम कर लो फिर हमारे पास आना… तुम्ही बताओ घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ? और दादा तुम्हारे पुराने पट्टे को चूहे भी तो खा गए हैं। पट्टा नहीं रहेगा तो कैसे पता चलेगा कि कि तुम्हारे पास जमीन जायदाद है और तुम अन्नदाता कहलाने के पात्र हो।

किसान के पास पटवारी को देने के लिए खर्चा पानी का कोई जुगाड़ नहीं दिखा, इसलिए पत्रकार और वहां जुड़ गए पढ़े-लिखे किसानों ने तय किया कि जो किसान पटवारी और तहसीलदार से परेशान हैं, वे आमरण अनशन पर बैठेंगे  और सरकार से मांग करेंगे कि अब हर किसान को हाथ से बने भूमि के पट्टे से मुक्ति मिलनी चाहिए। किसान को कम्प्यूटराइज पट्टा निशुल्क दिया जाना चाहिए, तभी से किसानों का आंदोलन चल रहा है,  फर्क इतना है कि वो किसान कोरोना से मर चुका है जिसके पुराने पट्टे को चूहों ने कुतर दिया था।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
(टीप- रचना में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 28 ☆ तुम सा मैं बन जाऊँ ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “तुम सा मैं बन जाऊँ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 28 ☆ 

☆ तुम सा मैं बन जाऊँ

हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,

तुम सा मैं चमक उठूं, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

अंधकार के कितने बादल आये,

नीर की कितनी बारिश हो जाये,

रात की कितनी कलिमा छा जाये,

हे भास्कर, हे रवि, सारे अंधकार सारा नीर थम जाये,

तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

हर दिन चन्द्रमा तारे, काली रात को दोस्त बनाकर सबका मन लुभाते हैं,

रात की कलिमा सब प्रेमियों का दिल लुभाते हैं,

ये रात झूठी हो जाये, सूरज की किरणें छूने की आस लगाये,

तू एक उजाला, तू एक सूरज सारे जगत को रोशन करता,

तू असीम, तू अनन्त, तू आरुष का साथी ।

 

हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,

तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #23 ☆ रिश्ते ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “रिश्ते”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 23☆ 

☆ रिश्ते ☆ 

यह कैसे रिश्ते हैं

जिनके घाव

जीवन भर रिसते है

कोई मलहम या दवाई

जो आपने घाव पर लगाई

वो गर घाव नहीं भर पाई

तो वो कभी कभी

नासूर बन जाते है

हर कदम पर

तड़पाते हैं

और घाव अगर

भर भी जाये

तो भी टीस

बाकी रहती है

जो आखरी साँस तक

साथ साथ बहती है

पूरा जीवन चक्र भी

अधूरा पड़ जाता है

झूठा अहम बेवजह

अड़ जाता है

अगर कोई बिगड़े

रिश्ते सुधारना भी चाहें

महीन धागों से

बुनना भी चाहें

तो वो, पुरानी बातें

भूल जायें

रिश्तों में

मिठास घोल आयें

तब भी टूटे रिश्ते

जुड़ते जुड़ते

जुड़ते हैं

अथक प्रयास के

बाद ही

सही राह पर

मुड़ते हैं

क्योंकि कटुता

धीमा धीमा ज़हर है

रिश्तों के लिए कहर है

इसलिए,

क्यों ना हम

झूठे “मैं” को

भूल जायें ?

“मैं” की जगह

“हम” को अपनाये ?

क्योंकि मित्र,

रिश्ते बीते हुए

कल की अमानत है

आज के वर्तमान की

हकीकत है

और

आने वाले कल की

वसीयत है।

 

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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