हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 39 ☆ कब तक न्याय होगा..? ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  समस्त स्त्री शक्ति को समर्पित हमारी न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठाती एक समसामयिक  कविता “ कब तक न्याय होगा.. ?।)
डॉ  भावना शुक्ल जी  एवं देश के कई संवेदनशील साहित्यकारों ने अपरोक्ष रूप से साहित्य जगत में एक लम्बी लड़ाई लड़ी है।
समस्त स्त्री शक्ति को  उनके अघोषित युद्ध में विजयी होने के लिए शत शत नमन  इस युद्ध में  सम्पूर्ण सकारात्मक पुरुष वर्ग भी आप के साथ  हैं और रहेंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक दोषी फांसी के फंदे पर लटकाये जा चुके हैं।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 39 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कब तक न्याय होगा.. ?

 

कब तक न्याय  होगा।

न्याय के लिए

सब अदालत का

दरवाजा खटखटाते है।

सही न्याय की गुहार लगाते है

मिलता नहीं है

न्याय  कभी

या मिलने में सालों लग जाते है

तब तक तड़प की आग

ठंडी हो जाती है ।

और

निकलती  है आह

कानून के लिए

कब तक न्याय  होगा…

सोचते हैं

फांसी के फंदे की जगह

सजा ऐसी मिले

जो तिल तिलकर मरे

सजा का अहसास

हो हर सांस

बरसों से यही रहती है आस

कब तक न्याय होगा

कानून से टूट जाता है भरोसा

क्योंकि कानून

वास्तव में है अंधा

वकीलों ने बना लिया है धंधा

वकील बच निकलने का

देते है सुझाव

और

तारीख पर तारीख बढ़ती जाती है

और

सब्र का टूट जाता है बांध।

दरिदों को नहीं आती शर्म

नहीं है उनके पास ईमान धर्म

किस मुंह से सजा की मांगते है माफी।

मन यही चाहता है

इनको दो ऐसी सजा

जिससे औरों के उड़ जाए होश

और

खत्म होगा जोश

लेकिन ऐसा होगा

तो

कोई और निर्भया नहीं तड़पेगी

लेकिन

कब तक न्याय होगा

और जब तक न्याय होगा

तब तक दरिदों की दरिंदगी

बढ़ती जायेगी

और

फांसी का फंदा

यूं ही लटकता रहेगा

इंतजार में……

जब तक न्याय होगा…

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

 

 

कब तक न्याय होगा..

 

कब तक न्याय  होगा।

न्याय के लिए

सब अदालत का

दरवाजा खटखटाते है।

सही न्याय की गुहार लगाते है

मिलता नहीं है

न्याय  कभी

या मिलने में सालों लग जाते है

तब तक तड़प की आग

ठंडी हो जाती है ।

और

निकलती  है आह

कानून के लिए

कब तक न्याय  होगा…

सोचते हैं

फांसी के फंदे की जगह

सजा ऐसी मिले

जो तिल तिलकर मरे

सजा का अहसास

हो हर सांस

बरसों से यही रहती है आस

कब तक न्याय होगा

कानून से टूट जाता है भरोसा

क्योंकि कानून

वास्तव में है अंधा

वकीलों ने बना लिया है धंधा

वकील बच निकलने का

देते है सुझाव

और

तारीख पर तारीख बढ़ती जाती है

और

सब्र का टूट जाता है बांध।

दरिदों को नहीं आती शर्म

नहीं है उनके पास ईमान धर्म

किस मुंह से सजा की मांगते है माफी।

मन यही चाहता है

इनको दो ऐसी सजा

जिससे औरों के उड़ जाए होश

और

खत्म होगा जोश

लेकिन ऐसा होगा

तो

कोई और निर्भया नहीं तड़पेगी

लेकिन

कब तक न्याय होगा

और जब तक न्याय होगा

तब तक दरिदों की दरिंदगी

बढ़ती जायेगी

और

फांसी का फंदा

यूं ही लटकता रहेगा

इंतजार में……

जब तक न्याय होगा…

 

डॉ भावना शुक्ल

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 30 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

अभियान

 

कोरोना को रोकने, छेड़ें नव अभियान

होगा तब ही सार्थक, तभी बचे  इंसान

 

कोरोना  के ख़ौफ़ से, सारा जग भयभीत

आस और विश्वास ही, अपने सच्चे मीत

 

सारी दुनिया में मचा, कोरोना का शोर

खूब छिपाया चीन ने, चला न उसका जोर

 

मयंक

 

मुखड़ा उनका देख कर, आया याद मयंक

शीतल उज्ज्वल चांदनी, जैसे उतरी अंक

 

विश्वास 

 

नेता खुद ही तोड़ते, जनता का विश्वास

जन मन फिर भी चाहता, बनी रहे यह आस

 

अभिनय

 

नेता अभिनय में कुशल, करते नाटक खूब

सत्ता लोभी हैं बहुत, कुर्सी ही महबूब

 

अभिनव

राजनीति में हो रहे, अभिनव बहुत प्रयोग

नेता करना चाहते, बस सत्ता का भोग

 

चाँदनी

शीतल धवला चाँदनी, मन भरती उत्साह

निकला पूनम चाँद जब, दिल से निकले वाह

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ बंधने ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है एक अप्रतिम रचना  “बंधने )

 

 ☆  बंधने ☆

 

वृत्त –स्त्रग्विणी

लगावली – गालगा गालगा गालगा गालगा

 

माणसे का अशी ? , तोडती बंधने

वागणे स्वैर ते…. खोलती बंधने.

 

पाकळ्या जाहल्या,  गंध वेडी मने

बोलकी वेदना. . .  सोलती बंधने .

 

वाजते बासरी, आठवे राधिका .

प्रेम शब्दासही. . . तोलती बंधने.

 

मोह मायेपरी, जीव जाई फुका

पोर ही आपली  बोलती बंधने .

 

वेचले दुःख मी, वाचली माणसे

वाट का वाटते ,  टोकती बंधने ?

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशंका ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आशंका* ☆

मनुष्य जाति में

होता है एकल प्रसव,

कभी-कभार जुड़वाँ

और दुर्लभ से दुर्लभतम

तीन या चार..,

आशंकित हूँ

ये निरंतर

प्रसूत होती लेखनी

और जन्मती रचनाएँ

कोई अनहोनी न करा दें,

मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( प्रकाशनाधीन कविता संग्रह से )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 38 ☆ बिजली और राजनीति ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  विचारणीय आलेख  “बिजली और राजनीति”।  राष्ट्रीय स्तर पर रेल, पोस्ट, दूरसंचार, इंटरनेट सेवाएं और टैक्स पर भी एक सामान दर है तो फिर  इस श्रेणी से बिजली अलग क्यों और उसपर राजनीति क्यों ?  श्री विवेक रंजन जी  को इस  सार्थक एवं विचारणीय आलेख के लिए बधाई। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 38 ☆ 

☆ बिजली और राजनीति ☆

 हमारे संविधान में बिजली केंद्र व राज्य दोनो की संयुक्त सूची में है, इसी वजह से बिजली पिछले कुछ दशको से  राजनीति का विषय बन चुकी है. जब संविधान बनाया गया था तब बिजली को विकास के लिये  ऊर्जा के रूप में आवश्यक माना गया था अतः उसे केंद्र व राज्यो के विषय के रूप में बिल्कुल ठीक रखा गया था. समय के साथ एक देश एक रेल, एक पोस्ट, एक दूरसंचार, एक इंटरनेट, अब एक टैक्स के कानसेप्ट तो आये किंतु बिजली से आम नागरिको के सीधे हित जुड़े होने के चलते वह राजनीति और सब्सिडी, के मकड़जाल में उलझती गई.

कुछ दशकों पहले बिजली का उत्पादन कम था, तब बिजली कटौती से जनता परेशान रहती थी, बिजली सप्लाई को लेकर  पक्ष विपक्ष के राजनीतीज्ञ आंदोलन करते थे. चुनावों के समय दूसरे राज्यों से बिजली खरीदकर विद्युत कटौती रोक दी जाती थी, बिजली वोट में तब्दील हो जाती थी. समय के साथ निजी क्षेत्र का बिजली उत्पादन में प्रवेश हुआ. बिजली खरीदी के करारो के जरिये  राजनीतिज्ञो को आर्थिक रूप से निजी कंपनियो ने उपकृत भी किया. दुष्परिणाम यह हुआ कि अब जब बिजली को संविधान संशोधन के जरिये एक देश एक बिजली की नीति के लिये केवल केंद्र का विषय बना दिया जाना चाहिये, तब कोई भी राजनैतिक दल इस सुधार हेतु तैयार नही होगा.  बिजली की दरें राज्य के विद्युत  नियामक आयोग तय करते हैं, और सब्सिडी के खेल से सरकारें वोट बना लेती हैं.  चिंता का विषय है कि बिजली ऐसी कमोडिटी बनी हुई है, जिसकी दरें मांग और आपूर्ति के इकानामिक्स के सिद्धांत से सर्वथा विपरीत तय किये जाते हैं. चुनावों के समय  बिजली को विकास का संसाधन मानकर बिजली सामाजिक मुद्दा बना दिया जाता है तो चुनाव जीतते ही बिजली कंपनियो को कमर्शियल आर्गनाईजेशन बता कर उसमें कार्यरत कर्मचारियो को सरकारो द्वारा सरे आम रेवेन्यू बढ़ाने के लिये प्रताड़ित किया जाने लगता है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही एक ट्वीट कर कहा कि “मुझे खुशी है कि सस्ती बिजली राष्ट्रीय राजनीति में बहस का मुद्दा बन चुका है। दिल्ली ने दिखा दिया कि निशुल्क या सस्ती बिजली उपलब्ध कराना संभव है। दिल्ली ने दिखा दिया कि इससे वोट भी मिल सकते हैं। 21वीं सदी के भारत में 24 घंटे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध होनी चाहिए।”

दिल्ली के चुनावों में हम सबने केजरीवाल सरकार द्वारा फ्री बिजली का प्रलोभन देकर जीतने का करिश्मा देखा ही है.

पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार के चुनाव आसन्न हैं.दिल्ली सरकार की तर्ज पर पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है। अपने फैसले में ममता सरकार ने कहा है कि तीन महीने में 75 यूनिट बिजली की खपत करने वालों से बिल नहीं लिया जाएगा। दिल्ली की केजरीवाल सरकार लोगों को 200 यूनिट तक फ्री बिजली दे रही है।

झारखंड सरकार भी दिल्ली की तरह झारखंड में घरेलू उपयोग के लिए फ्री बिजली देने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऊर्जा विभाग 100 यूनिट फ्री बिजली का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनावी घोषणा में शामिल है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी बिजली पर सब्सिडी देने संबंधी प्रस्ताव विचाराधीन है. म. प्र. सरकार में  भी निश्चित सीमा तक फ्री बिजली दी जा रही है. अन्य राज्यो की सरकारें भी कम ज्यादा सब्सिडी के प्रलोभन देकर जनता को दिग्भ्रमित कर रही हैं. केवल बिजली ही ऐसी कमोडिटी है जिसकी दरो में देश में क्षेत्र के अनुसार, उपयोग के प्रकार तथा खपत के अनुसार व्यापक अंतर परिलक्षित होता है. आज आवश्यक हो चला है कि एक देश एक बिजली की नीति बनाकर बिजली की दरो में सबके लिये समानता लाई जावे. क्या कारण है कि केंद्र की नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन, पावर ग्रिड, नेशनल हाईडल पावर कारपोरेशन, एटामिक पावर आदि संस्थान जहां नवरत्न कंपनियो में लाभ अर्जित करने वाले संस्थान हैं वहीं प्रायः राज्यो की सभी बिजली कंपनियां बड़े घाटे में हैं. इस घाटे  से इन संस्थानो को निकालने का एक ही तरीका है कि बिजली को लेकर हो रही राजनीति बंद हो.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 10 ☆ ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे।  इस समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 10 ☆

☆ ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे

ऊँट किस करवट बैठेगा ये कोई नहीं जानता पर तुक्का लगाने में सभी उस्ताद होते हैं। आखिर बैठने के लिए उचित धरातल भी होना चाहिए अन्यथा गिरने का भय रहता है। जैसे -जैसे हम बुद्धिजीवी होते जा रहे हैं वैसे- वैसे हमें अपनी जमीन मजबूत करने की फिक्र कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। आखिर  बैठना कौन नहीं चाहता पर हम ऊँट थोड़ी ही हैं जो हमें रेतीली माटी नसीब हो और अलटते – पलटते रहें। हमें तो बस कुर्सी रख सकें इतनी ही जगह चाहिए। और हाँ कुछ ऐसे लोग भी चाहिए जो इस कुर्सी की रक्षा कर सकें भले ही साम दाम दंड भेद क्यों न अपनाना पड़ जाए। कुर्सी की एक विशेषता ये भी है कि ये समय – समय पर अपना भार बदलती रहती है। इस पर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत भी लगता है। ग्रहों के बदलते ही इसका भार बदल जाता है। वैसे तो बदलाव हमेशा ही सुखद मौसम लाता है। देखिए न पतझड़ के मौसम में  भी बासंती रंग, तरह- के फूल, सेमल, टेसू, पलाश सभी अपने जोर पर जाते हैं। आम्र बौर  की छटा व सुगंध तो मनभावन होती ही है । बस यही बदलाव तो कोयल को चाहिए, इसी मौसम में तो वो अपना राग गुनगुनाने लगती है। अरे ऊँट की चिंता करते- करते  कहा कोयल पर अटक गये। बस ये अपने धरातल की खोज जो न करवाये वो थोड़ा है। पुराने समय से ही ऊँट पर कई मुहावरे चर्चा में हैं। जहाँ  मात्रा या संख्या बल घटा,  बस समझ लो ऊँट के मुख में जीरा जैसे ही अल्पसंख्यक समस्या जोर पकड़ने लगती है। अरे ये संख्याबल की इतनी  हिमाकत केवल लोकतंत्र की वजह से ही है क्योंकि यहाँ गुणवत्ता नहीं संख्या पर जोर दिया जाता है। जैसे ही जोड़- तोड़ का गणित अनुभवी गणितज्ञ के पास पहुँचा बस गुणा भाग भी दौड़ पड़ते हैं पाठशाला की ओर। मौज मस्ती आखिर कितने दिनों तक चलेगी  परीक्षार्थियों को परीक्षा तो देनी ही होगी। रिजल्ट चाहें कुछ भी हो पुनर्जीवन तो मेहनत करने वाले को मिलेगा ही। सबको पता है कि अंत काल में केवल सत्कर्म ही साथ जाते हैं फिर भी जर, जोरू, जमीन की खोज में मन भटकता ही रहता है। मजे की बात इतना बड़ा प्राणी जो रेगिस्तान का जहाज कहलाता है उसकी चोरी भी लोग चोरी छुपे करने की हिमाकत करते हैं। इसी को बघेली में कहा जाता है ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे  अर्थात झुक – झुक कर। खैर देखते हैं कि क्या – क्या नहीं होता ; आखिरकार मार्च का महीना तो सदैव से ही परीक्षा का समय रहा है। इस समय हिन्दू नववर्ष का आगमन होता है, साल भर जो लेखा – जोखा व अध्ययन किया है उसका परीक्षण भी होता है। उसके बाद देवी-  देवताओं  से मान मनौती की जाती है ताकि परिणाम सुखद हो।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 18 ☆ कविता – महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 18 ☆

☆ महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस ☆ 

वीर सुभाष कहाँ खो गए

वंदेमातरम गा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

कतरा-कतरा लहू आपका

काम देश के आया था

इसीलिए ये आजादी का

झण्डा भी फहराया था

गोरों को भी छका-छका कर

जोश नया दिलवाया था

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान मान करवाया था

 

सत्ता के भुखियारों को अब

कुछ तो सीख सिखा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

नेताजी उपनाम तुम्हारा

कितनी श्रद्धा से लेते

आज तो नेता कहने से ही

बीज घृणा के बो देते

वतन की नैया डूबे चाहे

अपनी नैया खे लेते

बने हुए सोने की मुर्गी

अंडे भी वैसे देते

 

नेता जैसे शब्द की आकर

अब तो लाज बचा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

जंग कहीं है काश्मीर की

और जला पूरा बंगाल

आतंकी सिर उठा रहे हैं

कुछ कहते जिनको बलिदान

कैसे न्याय यहाँ हो पाए

सबने छेड़ी अपनी तान

ऐक्य नहीं जब तक यहां होगा

नहीं हो सकें मीठे गान

 

जन्मों-जन्मों वीर सुभाष

सबमें ऐक्य करा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

लिखते-लिखते ये आँखें भी

शबनम यूँ हो जाती हैं

आजादी है अभी अधूरी

भय के दृश्य दिखातीं हैं

अभी यहाँ कितनी अबलाएँ

रोज हवन हो जाती हैं

दफन हो रहा न्याय यहाँ पर

चीखें मर-मर जाती हैं

 

देखो इस तसवीर को आकर

कुछ तो पाठ पढ़ा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 40 – बेनाम रिश्ता ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा  “बेनाम रिश्ता। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 40 ☆

☆ लघुकथा – बेनाम रिश्ता ☆

 

ट्रेन में चढ़ते ही रवि ने कहा, “ले बेटा ! मूंगफली खा.”

“नहीं पापाजी ! मुझे समोसा चाहिए” कहते हुए उस ने समोसा बेच रहे व्यक्ति की और इशारा किया.

“ठीक है” कहते हुए रवि ने जेब में हाथ डाला.  “ये क्या ?” तभी दिमाग में झटका लगा. किसी ने बटुआ मार लिया था.

“क्या हुआ जी ?”

घबराए पति ने सब बता दिया.

“अब ?”

“उस में टिकिट और एटीएम कार्ड भी था ?” कहते हुए रवि की जान सूख गई .

सामने सीट पर बैठे सज्जन उन की बात सुन रहे थे. कुछ देर बाद उन्हों ने कहा “आप लोगों का वहां जाने और खाने का कितना खर्च होगा ?”

“यही कोई १५०० रूपए .”

” लीजिए” उन सज्जन ने कहा,” वहां जा कर इस पते पर वापस कर दीजिएगा.”

“धन्यवाद” कहते ही रवि की आँखे में आंसू आ गए.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 38 – कर्जमाफी…… ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “कर्जमाफी…”।   यह अकेली चिड़िया जीवन के  कटु सत्य को  अकेली अनुभव करती है , साथ ही अपने बच्चों को स्वतंत्र आकाश में उड़ते देखकर उतनी ही प्रसन्न भी होती है। यह कविता हमें और हमारे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। कल्पना करिये जब कृषक आत्महत्या कर लेता है और कृषक के पुत्र को देवघर में लिखी चिट्ठी मिलती है तो पुत्र पर क्या गुजरती होगी। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #38☆ 

☆ कर्जमाफी… ☆ 

बाबा तू जाण्याआधी

एका चिठ्ठीत लिहून

ठेवलं होतंस

मी देवाघरी जातोय म्हणून.. .

पण..

आम्हाला असं ..

वा-यावर सोडून

तो देव तरी तुला

त्याच्या घरात घेईल का…?

पण बाबा तू. . .

काळजी करू नकोस

त्या देवाने जरी तुला त्याच्या

घरात नाही घेतलं ना तरी

तू तुझ्या कष्टाने उभ्या केलेल्या

ह्या घरात तू

कधीही येऊ शकतोस

कारण .. . बाबा

आम्हाला कर्ज माफी नको होती

आम्हाला तू हवा होतास …!

आम्हाला तू हवा होतास …!

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 39 – कितना बचेंगे …… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की  हमें जीवन के कटु सत्य से रूबरू करता एक गीत  “कितना बचेंगे…..जो आज भी समसामयिक  एवं विचारणीय  है । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 39 ☆

☆ कितना बचेंगे….. ☆  

 

काल की है अनगिनत

परछाईयाँ

कितना बचेंगे।

 

टोह लेता है, घड़ी पल-छिन दिवस का

शून्य से सम्पूर्ण तक के  झूठ – सच का

मखमली है पैर या कि

बिवाईयां है

चलेंगे विपरीत, सुनिश्चित है

थकेंगे  ।  काल की…….

 

कष्ट भी झेले, सुखद सब खेल खेले

गंध  चंदन  की, भुजंग मिले  विषैले

खाईयां है या कि फिर

ऊंचाईयां है

बेवजह तकरार पर निश्चित

डसेंगे  । काल की………….।

 

विविध चिंताएं, बने चिंतक सुदर्शन

वेश धर कर  दे रहे हैं, दिव्य प्रवचन

यश, प्रशस्तिगान संग

शहनाईयां है

छद्म अक्षर, संस्मरण कितने

रचेंगे  । काल की…………..।

 

लालसाएं लोभ अतिशय चाह में सब

जब कभी ठोकर  लगेगी, राह में तब

छोर अंतिम पर खड़ी

सच्चाइयां है

चित्र खुद के देख कर खुद ही

हंसेंगे  ।

काल की है अनगिनत परछाईयाँ

कितना बचेंगे।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

Please share your Post !

Shares
image_print