English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 5 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 5/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 5 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर  भी  हवाओं  की

आवारगी पसंद है मुझे…

 

Flies away every time

My cardboard palace …!

Still I adore  the winds

Loafing around freely…! 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

देख दुनिया की बेरूखी

न पूछ ये नाचीज़ कैसा है

हम बारूद पे बैठें हैं

और हर शख्स माचिस जैसा है

 

Seeing the rudeness of the world

Ask me not how worthless me is coping

I’m sitting on pile of explosives

And every person is like a fuse…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शहरों का यूँ वीरान होना

कुछ यूँ ग़ज़ब कर गया…

बरसों से  पड़े  गुमसुम

घरों को आबाद कर गया…

 

Desolation of the cities

Did something amazing…

Repopulated the houses

Lying deserted for years…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सारे मुल्क़ों को नाज था

अपने अपने परमाणु पर

क़ायनात बेबस हो गई

एक छोटे से कीटाणु पर..!!

 

Every country greatly boasted of

Being  a  nuclear  super  power…

Entire universe  was  rendered

Grossly helpless by a tiny virus..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 6 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी सार्थक  “मुक्तिका”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 6 ☆ 

☆  मुक्तिका ☆ 

 

मनमानी की छूट है, जो चाहें लिख आप

घर से बाहर हों नहीं, कोरोना है शाप

 

नहीं किसी को छोड़ता, तनिक न करता भेद

तीसमारखाँ सूरमा, सबको लेता नाप

 

अब तक मिला न तोड़ है, यम से कर गठजोड़

सारी दुनिया को रहा, यह कोरोना माप

 

अड़ियल-जिद्दी मत बनें, घर मत छोड़ें मीत

राख शेष रह जायगी, बन जाएँगे भाप

 

ना मर्सी ना पिटीशन, होती नहीं वकील

बिन अपील दे दंड यह, है पंचायत खाप

 

झटपट मरघट भेजता, पल में कब्रस्तान

खाँसी मारक तीर है, ज्वर है बेधक चाप

 

कोई औषधि है नहीं, नहीं मंत्र या जाप

सजग रहें लगने न दें, खुद पर इसकी छाप

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 9 ☆ स्वप्न कळ्यांचे ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “स्वप्न कळ्यांचे“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 9 ☆

☆ कविता – स्वप्न कळ्यांचे

 

स्वप्नी मी आज काय पाहिले

येउनिया साजन मम,कर घाली कमरेतुन

ओढुनिया मज जवळी काय बोलले!!

 

जीवनाच्या पुष्पवनी,बसलो जवळी आम्ही

किलबिलाट पक्षिध्वनी,आनंदें उगम मनी

नयनांशी नयनभाष्य, काय जाहले!!

 

शृंगारित महालांतरी,राजा ते राणी मी

दासदासी कितीतरी,ठेचाळती त्या भुवनी

आपण दोघे आणि राज्य आपले!!

 

पक्षांपरी पंख  फुटुनी,उडलो अवनीवरुनी

चंद्रतारकांमधुनी,फिरलो मन मुक्त करुनी

एक दुज्या घट्ट मिठीत स्वप्न मोडले!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

 

(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित  माँ गंगा पर आत्मप्रेरित रचना  – गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक)

 

☆ गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से गंगासागर तक ☆

 

गंगोत्री के उत्तुंग शिखर से,

आती हो बन  पापनाशिनी।

कल कल करती,  हर-हर करती,

बन जाती हो जीवनदायिनी।

 

तीव्र वेग से धवलधार बन

हरहराती, आती बल खाती।

चंचल नटखट बाला सी,

इतराती,  इठलाती आती।

 

मन खिल उठता मेरा,

दिव्य रूप देखकर तेरा,

हर-हर गंगे,  हर-हर गंगे।।

 

जब मैदानों में चलती हो,

तो मंथर-मंथर बहती हो।

अपने दुख अपनी पीड़ा को,

कभी व्यक्त न करती हो।

 

सब तीरथ करते अभिनंदन,

स्पर्श जब उनका  करती हो।

सुबह शाम सब करते वंदन,

जब उनके मध्य  तुम बहती हो।

 

जनमानस तेरा श्रद्धापूर्वक

करते रहते जय जयकार,

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

तेरे पावन जल मिट्टी से,

समस्त जग है जीवन पाता।

वृक्ष अन्न फल-फूल धरा से,

गंग कृपा से, है  उपजाता।

 

तीर्थराज का कर अभिनंदन,

जब काशी तुम आती हो।

अर्धचंद्र का रूप धर,

भोले का भाल सजाती हो।

 

मनोरम दृश्य देख, हो प्रसन्न

देवगण भी बोल उठते,

हर-हर गंगे, हर-हर गंगे।।

 

अपने पावन जल से मइया,

शिव का अभिषेक तुम करती हो।

भक्तों के पाप-ताप हरती,

जन-जन का मंगल करती हो।

 

सारा जनमानस काशी का,

हर हर बम बम बोल रहा है।

ज़र्रा ज़र्रा, बोल रहा है

हर हर गंगे, हर हर गंगे।।

 

सूर्यदेव की स्वर्णिम आभा,

जब गंगा में घुल जाती है।

स्वच्छन्द परिन्दो की टोली,

उनके ऊपर मंडराती है।

 

घाटों की नयनाभिराम झांकी,

बरबस मन को हरती है।

जाने अनजाने ह्रदय के भीतर

यह आवाज उभरती है।

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

हर कहीं मन्दिरों के भीतर,

हर-हर नाद सुनाई देता।

कहीं अजानों की पुकार में,

वही  तत्व दिखलाई देता।

 

गिरजों और गुरूद्वारों में भी,

वही  छटा दिखाई देती।

हर जुबान हर दिल  के भीतर,

वही  आवाज़ सुनाई देती।

हर हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

तेरा पावन जल ले अंजलि,

कोई श्रद्धांजलि देता है

कोई मुसलमां तेरा जल ले,

रोज़ वजू कर लेता है।

 

सिख ,ईसाई गंगा जल से

पूजा अपनी करते हैं।

सदा सर्वदा हर दिलसे

यही सदा सुनाई देती है।

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

बहते-बहते मंथर-मंथर,

जब सागर में मिल जाती हो।

सागर का मान बढ़ाती,

गंगासागर कहलाती हो।

 

सागर की अंकशायिनी बन,

लहरों पे इठलाती हो।

उत्ताल तरंगें बोल उठती,

हर-हर गंगे हर-हर गंगे।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “तुममें और चाँद में क्या अलगता है ?”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆

  ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆

 

छुप जाते हो तुम

जब जरूरत होती है,

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

कभी पूनम बनकर आते हो,

कभी अमावस बन जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

घटते चाँद की तरह

तुम भी घट जाते हो।

जब जी चाहा

तब तुम भी आगे चल

बढ़ते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

आँखों से बारिश होती है

तुम बादल ही बन जाते हो।

तपिश मन में उबलती हो

तुम भाप बन उड़ जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 2 – के एन सिंह ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग का खलनायक: के.एन.सिंह पर आलेख ।)

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 2 ☆ 

☆ हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग का खलनायक: के.एन.सिंह ☆ 

बरसात की रात (1960), वो कौन थी (1964), मेरा साया (1966), मेरे हुज़ूर (1968), दुश्मन, हाथी मेरे साथी(1971), लोफ़र, कच्चे धागे (1973) बढ़ती का नाम दाढ़ी (1974) जैसी भारतीय सिनेमा की यादगार फ़िल्मों की एक लंबी सूची है, जिनमें एक बात सामान्य है और वह है इन फ़िल्मों में के एन सिंह का अभिनय।

धीरे-धीरे के एन का मन इस नई फिल्मी दुनिया से खिन्न होने लगा। अमिताभ बच्चन स्टारर कालिया (1983) तक पहुंचते पहुंचते केएन का मन अभिनय से उचाट हो गया। तभी उनके साथ एक हादसा यह हुआ कि वे जिन आँखों  से अभिनय में रहस्य घोलते थे, उन आंखों की रोशनी जाती रही। और जीवन के संध्याकाल में केएन कैमरा, लाइट, एक्शन और कट की दुनिया से पूरी तरह कट गए। 1987 में उनकी पत्नी का निधन हो गया।

के.एन की कोई संतान नहीं हुई इसलिए उन्होंने अपने भतीजे पुष्कर को बेटे की तरह पाला। पत्नी के निधन के बाद केएन की आवाज़ में तो पहले जैसी ही खनक बरकरार रही, लेकिन अंदर से टूट से गए। 1999 में वे फिसल कर गिर गए जिससे उनके पैर की हड्डी टूट गयी तब से वे 31 जनवरी 2000 में मृत्यु होने तक पलंग पर ही पड़े रहे। उनकी रिलीज़ होने वाली अंतिम फ़िल्म अजूबा (1991) थी।

कुदरत ने उन्हें गरजदार आवाज दी थी, भाव भंगिमाओं को खास आकार देने की शैली उन्होंने खुद विकसित की और इन दो चीजों के मेल ने भारतीय फ़िल्म जगत को बेमिसाल खलनायक दिया। सुअर के बच्चों, कमीने या इसी तरह की गालियां दिए बिना और चीखे चिल्लाए बग़ैर केएन सिंह भय और घृणा की भावना दर्शकों के मन में पैदा कर देने का हुनर रखते थे। न कभी अभिनय का शौक़ रहा न फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लेकिन बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख की कहावत ने के एन सिंह के जीवन में महत्वपूर्ण रोल अदा किया।

के. एन. सिंह की पत्नी प्रवीण पाल भी सफल चरित्र अभिनेत्री थीं। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। उनके छोटे भाई विक्रम सिंह थे, जो मशहूर अंग्रेज़ी पत्रिका फ़िल्मफ़ेयर के कई साल तक संपादक रहे। उनके पुत्र पुष्कर को के.एन. सिंह दंपति ने अपना पुत्र माना था।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 – वैशाखातल्या झळा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की वैशाख मास  मनाये जाने वाले पर्वों से लेकर पर्यावरण तक का विमर्श करती हुई  एक कविता  “वैशाखातल्या झळा”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 ☆

☆ वैशाखातल्या झळा ☆ 

काव्यप्रकार:षडाक्षरी

विषय: वैशाख वणवा

 

अक्षय तृतीया

मुहुर्ताचा सण

आंब्यांचा नैवेद्य

देवाजीचं देण !!१!!

 

वैशाख वणवा

उसळली आग

गेली करपून

द्राक्षांची ती बाग !!२!!

 

बुद्ध पूर्णिमेला

पूजा चैत्यभूमी

बाबासाहेबांची

हीच कर्मभूमी !!३!!

 

वैशाख वणवा

उष्म्याचा कहर

वसंत ऋतूत

फुलांना बहर !!४!!

 

वैशाख वणवा

अंगाची हो लाही

उन्हामुळं सारी

करपली मही !!५!!

 

तप्त झाली हवा

तापली ती धरा

आता आम्हा वृक्ष

देतील सहारा !!६!!

 

त्याच्याच साठीहो

वृक्ष तुम्ही लावा

देखभाल करा

झाडे ती जगवा !!७!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सातारा, महाराष्ट्र.

दिनांक.२-५-२०

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 41 – अंश कला देवी ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण  एवं  ज्ञानवर्धक आलेख  “अंश कला देवी । )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 41 ☆

☆ अंश कला देवी 

स्त्री ऊर्जा के कई आंशिक रूप हैं जो वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूप में से हैं और कुछ लोग उनकी प्रार्थना करते हैं कि वे हमें हमारे जीवन को शांतिपूर्वक चलाने में सहायता करें, जबकि अन्य कुछ रूपों से लोग डरते हैं ऊर्जा के इन आंशिक रूपों की देवियों को ‘अंश कला देवी’ कहा जाता है । अंशकला देवी दोनों प्रकार की होती हैं जो हमारे जीवन को शांतिपूर्ण बनाती हैं और जिनसे हम डरते हैं । स्त्री ऊर्जा के आंशिक चरणों की मुख्य 26 अंशकला देवी है :

1) स्वाहा देवी (अर्थ : माध्यम की देवी) :  स्वाहा देवी वो माध्यम है जिससे अग्नि में डाली गयी वस्तु भस्म होकर शुद्ध होती है । वह अग्नि की पत्नी है । स्वाहा की दुनिया भर में पूजा की जाती है । यदि हव्य (oblation) उनके नाम को दोहराए बिना अर्पण किया जाता है, तो देवता इसे स्वीकार नहीं करते हैं ।

2) दक्षिणा देवी (अर्थ : दान की देवी) : ये यज्ञ के पूरा होने के बाद धन के रूप में पुरोहित को दिए जाने वाले दान की देवी है । वह यज्ञ देव (बलिदान के देवता) की पत्नी है इस देवी के बिना, दुनिया के सभी कर्म व्यर्थ हो जाएंगे ।

3) दीक्षा देवी (अर्थ : यज्ञ के अनुसार संकल्प पूर्ण दान की देवी) :  भोजन या कपड़े आदि के रूप में दान की देवी, जिसे उनके द्वारा यज्ञ पूरा करने के बाद पुजारी को दिया जाता है । वह यज्ञ देव की पत्नी है, यह देवी शुद्ध ज्ञान प्रदान करती है ।

4) स्वधा देवी (अर्थ : पितरों के निमित्त दिया जानेवाला अन्न या भोजन की देवी) : आत्म-शक्ति, शासन, अपनी जगह या घर की देवी । ये प्रथा, प्रचलन या आदत अदि को संदर्भित करती है । यह देवी पितृ (मृतक पूर्वजों) की पत्नी है, जिनकी मनुष्यों द्वारा पूजा की जाती है । इस देवी का सम्मान किए बिना पितरों को दिया गया चढ़ावा व्यर्थ साबित होता है ।

5) स्वेच्छा देवी (अर्थ : अपनी इच्छा की देवी) :  यह इच्छा की देवी है जो अच्छा करती है । यह वायु की पत्नी है । अगर स्वेच्छा से उपहार नहीं दिया जाता है तो उपहारों का कोई फायदा नहीं होता ।

6) पुष्टि देवी (अर्थ : पोषण की देवी) : यह पोषण या अनुमोदन की देवी है और गणपति की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में ना हो, तो पुरुष और स्त्री कमजोर हो जाएँगे, क्योंकि वह सभी ताकतों का स्रोत है ।

7) तुष्टि देवी (अर्थ : तुष्ट होने की अवस्था की देवी) : शांति या खुशी की देवी । यह अनंत की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में ना हो तो दुनिया में कोई खुशी नहीं होगी ।

8) संपत्ति देवी (अर्थ : धन दौलत जायदाद आदि जो किसी के अधिकार में हो और खरीदी या बेची जा सकती हो की देवी) : संपत्ति की देवी । यह इशाना (अमीर) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती तो पूरी दुनिया गरीब और स्वदेशी हो जाएगी ।

9) धरती देवी (अर्थ : भूमि की देवी) : यह दृढ़ संकल्प की देवी एवं कपिल (अर्थ : लाल भूरे रंग) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया भयानक और डरपोक हो जायेंगी ।

10) सती देवी (अर्थ : सत की देवी) : सत्त्व की देवी जो मानव में सभी अच्छी गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है । वह सत्य (सत्य) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो लोगों के बीच कोई मित्रता और शांति नहीं होगी ।

11) दया देवी (अर्थ : करुणा और सहानुभूति की देवी) : करुणा और सहानुभूति की देवी । यह मोह (भ्रम, सुस्तता) की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया नरक हो जाएगी और एक भयंकर युद्ध क्षेत्र बन जाएगी ।

12) प्रतिष्ठा देवी (अर्थ : ख्याति की देवी) : प्रतिष्ठा की देवी । यह पुण्य (दान, इनाम) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया ख़त्म हो जाएगी ।

13) सिद्ध देवी (अर्थ : परिपूर्ण करने वाली देवी), और कीर्ति देवी (अर्थ : प्रसिद्धि की देवी) : ये दोनों सुकर्मा (अर्थ : अच्छा स्वभाव) की पत्नियां हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहें तो पूरी दुनिया प्रतिष्ठा से बेकार हो जाएगी और मृत शरीर की तरह निर्जीव हो जाएगी ।

14) क्रिया देवी : कार्य की देवी वह उद्योग (अर्थ : व्यापार) की पत्नी है । अगर वह अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया निष्क्रिय हो जाएगी और कार्य करना बंद कर देगी ।

15) मिथ्या देवी (अर्थ : झूठी मान्यताओं की देवी) : वह अधर्म (अप्राकृतिकता, गलतता) की पत्नी है । हठी और चरित्रहीन लोग इस देवी की पूजा करते हैं । अगर यह देवी पूरी दुनिया में अस्तित्व में नहीं रहती है तो ब्राह्मण ही अस्तित्व में नहीं रहेगा । सत युग के दौरान दुनिया में कहीं भी यह देवी दिखाई नहीं देती थी । वह त्रेता युग के दौरान यहाँ और वहाँ एक सूक्ष्म रूप में दिखाई देने लगी थी । द्वापार युग में उन्होंने अधिक विकास प्राप्त किया और फिर उनके अंग और मजबूत हो गए । कलियुग में वह अपने पूर्ण स्तर और विकास के रूप में विकसित हुई और अपने भाई कपट (अर्थ :धोखा) के साथ हर जगह चली आयी ।

16) शांति देवी (अर्थ  : शांति की देवी) और लज्जा देवी (अर्थ  : विनम्रता की देवी) : ये दो देवी अच्छी प्रकृति की हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया सुस्त और आलसी हो जाएगी ।

17) बुद्धि देवी (अर्थ  : समझने और जानने की इच्छा की देवी), मेधा देवी (अर्थ  : ज्ञान की देवी) और धृत देवी (अर्थ  : संभाले रखने की देवी) : यह तीनों देवियाँ ज्ञान की पत्नियां है । अगर ये देवियाँ अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया अज्ञानता और मूर्खता में डूब जाएगी ।

18) मूर्ति (अर्थ  : रूपों की देवी) : वह धर्म (सही कर्तव्य) की पत्नी है । उनकी अनुपस्थिति में सार्वभौमिक आत्मा जीवन शक्ति से विरक्त, असहाय और अर्थहीन हो जाएगी ।

19) श्रीदेवी : यह सौंदर्य और समृद्धि की देवी है । वह माली की पत्नी है । इनकी अनुपस्थिति दुनिया को निर्जीव बना देगी ।

20) निन्द्रा देवी : यह नींद की देवी है । यह कालाग्नि (समय की अग्नि ) की पत्नी है । ये देवी रात्रि के दौरान दुनिया में हर किसी को प्रभावित करती है और उनकी चेतना को खो कर उन्हें नींद में डाल देती है । इस देवी की अनुपस्थिति में दुनिया एक पागलों की शरण स्थली बन जाएगी ।

21) रात्री (अर्थ  : रात्रि  की देवी), संध्या (अर्थ  : शाम की देवी) और दिवस (अर्थ  : दिन की देवी) : ये तीनों काल (अर्थ : समय) की पत्नियां हैं । उनकी अनुपस्थिति में किसी को भी समय की कोई समझ नहीं होगी और कोई भी समय की गणना और निर्धारण करने में सक्षम नहीं होगा ।

22) विसापू (अर्थ  : यह भूख की देवी है) और दहम (अर्थ  : यह प्यास की देवी है) : ये दो देवियाँ लोभ (अर्थ  : लालच) की पत्नियाँ हैं, वे दुनिया को प्रभावित करती हैं और इस तरह उन्हें चिंतित और दुखी बनाती हैं ।

23) प्रभा देवी (अर्थ  : प्रकाश की देवी) और दहक देवी (अर्थ  : अग्नि से उत्पन्न प्रकाश और गर्मी की देवी) : ये दोनों तेजस की पत्नियां हैं इनके बिना भगवान को सृष्टि के कार्य को जारी रखना असंभव हो जायेगा ।

24) मृत्यु देवी (अर्थ : मृत्यु की देवी) और जरा देवी (अर्थ : मातृत्व की देवी) : ये दोनों प्रकृस्ताजवारा (अर्थ  : अनिर्मित भगवान), और काल (अर्थ : समय) की  पुत्री हैं । और यदि ये अस्तित्व में रहना बंद कर देती हैं, तो ब्रह्मा नयी रचना नहीं बना सकते हैं । क्योंकि मृत्यु  सृजन, जन्म की पूर्व शर्त है । यदि कोई मृत्यु नहीं है तो जन्म भी नहीं है ।

25) तन्द्रा देवी (अर्थ : नींद की झपकी) और प्रीति (अर्थ : खुशी की देवी जो प्रेम से आती है) : ये दोनों निद्रा (अर्थ : नींद) की पुत्रियाँ हैं और सुख (अर्थ : खुशी) की पत्नियाँ हैं । ये देवी ब्रह्मा के आदेश पर दुनिया भर में घूमती रहती हैं ।

26) श्रद्धा देवी (अर्थ : भक्ति के विश्वास) और भक्ति देवी (अर्थ : वैराग्य की देवी) : ये देवी सांसारिक सुखों के प्रति उलझन और दुनिया के लोगों की आत्माओं को मोक्ष देती हैं ।

आप इन देवी-देवताओं के महत्व को समझ सकते हैं । मैं आपको इनमें से 3-4 के विषय में बता देता हूँ । सबसे पहले ‘स्वाहा देवी’ को ले लो, जो हमारी भेंट को अग्नि को देती है। इसे अन्यथा लें, जब हम भोजन खाते हैं तो यह हमारे पेट में पहुँचता है जहाँ जठारग्नि (पेट में भोजन के पाचन के लिए जिम्मेदार अग्नि) इसे पचती है । तो क्या ‘स्वाहा देवी’ से ये प्रार्थना करना गलत है, की ‘कृपया देवी मेरे द्वारा खाया हुआ भोजन पचाकर मुझे स्वस्थ बनाएं’। इसी प्रकार यदि हम अग्नि को कुछ भी देते हैं तो हम स्वाहा देवी’ से प्रार्थना करते हैं ताकि यह जलने के बाद एक या दूसरे रूप में उपयोगी हो सके ।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 44 ☆ सत्य की महिमा अपरम्पार ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  जीवन में सत्य की महत्ता को उजागर करता एकआलेख सत्य की महिमा अपरम्पार ।   इस आलेख का  सार उनके वाक्य  “सत्य आपकी सकारात्मक सोच व सत्कर्मों से स्वयं प्रकट हो जाता है”में ही निहित है। यह डॉ मुक्ता जी के  जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 44 ☆

☆ सत्य की महिमा अपरम्पार

 

‘जीवन में कभी भी अपनी ईमानदारी व दूसरे के दोषों का बखान मत करो, क्योंकि समय के साथ सत्य सात परदों के पीछे से भी उजागर हो जाता है’… कितना गहन सत्य अथवा रहस्य छिपा है, इस तथ्य में… पूर्ण जीवन-दर्शन उजागर करता है यह वाक्य कि सत्य कठोर होता है, जिस पर कोई भी आसानी से विश्वास नहीं करता। सत्य, शिव व कल्याणकारी होता है, भले ही उसे सब के समक्ष प्रकट होने में समय लग जाए, परंतु एक दिन उस रहस्य की खबर सबको लग जाती है और वह किस्सा आम हो जाता है। इस स्थिति में वह लोगों को भ्रमित होने से बचा लेता है।

‘इसीलिए यह कहा जाता है कि जीवन में अपनी ईमानदारी व दूसरे के दोषों का बखान मत करो’ क्योंकि यदि मानव अपने कृत-कर्म, भले ही वे सत्य हों, यथार्थ से पूर्ण हों, मंगलकारी हों…से दूसरों को अवगत कराता है, तो वह आत्मश्लाघा, आत्मप्रशंसा व स्वयं का गुणगान कहलाता है। अक्सर ऐसे लोगों की आलोचना तो होती ही है और वे उपहास के पात्र भी बन जाते हैं। इस से भी अधिक घातक है, दूसरों की हक़ीक़त को बयान करना, जिसे लोग अहंनिष्ठता अथवा आलोचना की संज्ञा देते हैं। शायद इसीलिए शास्त्रों में पर-निंदा से बचने का सार्थक संदेश दिया गया है, जो बहुत ही उपयोगी है, कारग़र है। कबीरदास जी ने निंदक की महिमा को इस प्रकार शब्दबद्ध किया है, ‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटि छुवाय/ बिनु साबुन,पानी बिनु, निर्मल करे सुभाय।’ अर्थात् निंदक वह निर्भय व नि:स्वार्थ प्राणी है, जो अपना सारा सारा समय व शक्ति लगा कर, आपको आपके व्यक्तित्व का दिग्दर्शन कराता है…आईना दिखाता है…दोषों से अवगत कराता है और उसके सद्प्रयासों से मानव का स्वभाव साबुन व पानी के बिना ही निर्मल हो जाता है। धन्य हैं ऐसे लोग, जो अपनी उपेक्षा तथा दूसरों के मंगल की सर्वाधिक कामना करते हैं। उनका सारा ध्यान अपने हित पर नहीं, आपके दोषों पर केंद्रित होता है और वे आपको गलतियों व अवगुणों से अवगत करा, उचित राह पर बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को सदैव निकट रखना चाहिए, क्योंकि वे  सदैव पर-हितार्थ, निष्काम सेवा में रत रहते  हैं।

कितना विरोधाभास है…दूसरे के दोषों का बखान करने का संदेश, जहां हमें चिंतन-मनन की प्रेरणा देता है; आत्मावलोकन करने का संदेश देता है, क्योंकि पर-निंदा को मानव का सबसे बड़ा दोष व अवगुण स्वीकारा गया है। इससे मानव की संचित शक्ति व ऊर्जा का ह्रास होता है। सो! इस संदर्भ में हमें सिक्के के दोनों पहलुओं पर दृष्टिपात करना आवश्यक होगा। प्रथम है…अपनी ईमानदारी व कृत-कर्मों का बखान करना…यह आत्म-प्रवंचना रूपी दोष कहलाता है। अक्सर लोग ऐसे पात्रों को उपहासास्पद समझ उनकी आलोचना करते हैं। परंतु यह कथन सर्वथा सत्य है कि यदि आपने कुछ ग़लत किया ही नहीं, फिर स्पष्टीकरण कैसा? सत्य तो देर-सवेर सामने आ ही जाता है। हां! इसकी समय- सीमा निर्धारित नहीं होती है।

सो! सत्य कभी भी उपेक्षित नहीं होता। उदाहरणतया स्नेह, प्रेम, करुणा, सौहार्द, सहनशीलता, सहानुभूति आदि दैवीय भाव शाश्वत हैं… जो कल भी सत्य थे, उपास्य थे, मांगलिक थे, सर्वमान्य थे… आज भी हैं और कल भी रहेंगे। ये काल-सीमा से परे हैं। इसी प्रकार झूठ, हिंसा, मार-पीट, लूट-खसोट, फ़िरौती, पर-निंदा आदि भाव कल भी त्याज्य व निंदनीय थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे। इससे सिद्ध होता है कि सत्य कालातीत है; सत्य की महिमा अपरंपार है और सत्य सदैव शक्तिशाली है। इसलिए हम कहते हैं, ‘सत्यमेव जयते’ कि ‘सत्य शिव है, सुंदर है, मंगलकारी है और संसार में सदैव विजयी होता है। वह कभी भी उपेक्षित नहीं होता और सात परदों के पीछे से भी उजागर हो जाता है।’ इसे स्वीकारने- साधने की शक्तियां, जिस शख्स में भी होती हैं, वह सदैव अप्रत्याशित बाधाओं, विपत्तियों व आपदाओं के सिर पर पांव रख कर, अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त करता है और सहजता से आकाश की बुलंदियों को छू सकता है।

समय परिवर्तनशील है, कभी ठहरता नहीं। सृष्टि का क्रम निरंतर, निर्बाध चलता रहता है, जिसे देख कर मानव अवाक् अथवा अचम्भित रह जाता है। ‘दिन- रात बदलते हैं/ हालात बदलते हैं/ मौसम के साथ- साथ/ फूल और पात बदलते हैं/ यादों से महज़ दिल को मिलता नहीं सुकून/ ग़र साथ हो सुरों का/नग़मात बदलते हैं।’ जिस प्रकार दिन के पश्चात् रात, अमावस के पश्चात् पूनम व समयानुसार ऋतु-परिवर्तन होना निश्चित है, उसी प्रकार समय के साथ मानव की मन:स्थिति में परिवर्तन भी अवश्यंभावी है। सो! मानव को कभी भी निराशा का दामन नहीं थामना चाहिए। सो! जीवन में ऐसे पल भी अवश्य आते हैं, जब मानव हताश-निराश होकर औचित्य-अनौचित्य का भेद त्याग व परमात्म-शक्ति के अस्तित्व को नकार, निराशा रूपी अंधकार के गर्त में धंसता चला जाता है और एक अंतराल के पश्चात् अवसाद की स्थिति में पहुंच जाता है, जहां उसे सब अपने भी पराए नज़र आते हैं। इस मन:स्थिति में एक दिन वह उन तथाकथित अपनों से  किनारा कर, अपना अलग – थलग जहान बसा लेता है। कई बार परिस्थितियां इतनी भीषण व भयंकर हो जाती हैं कि उधेड़बुन में खोया इंसान, ज़माने भर की रुसवाइयों को झेलता, व्यंग्य-बाण सहन करने में स्वयं को असमर्थ पाकर सुधबुध खो बैठता है और अपने जीवन का अंत कर लेना चाहता है। उसे यह संसार व भौतिक संबंध मिथ्या भासते हैं और वह माया के इस जंजाल से स्वयं को  मुक्त नहीं कर पाता कि ‘जब उसने कुछ गलत किया ही नहीं, तो उस पर दोषारोपण क्यों?’

यदि हम सिक्के के दूसरे पक्ष का अवलोकन करें, तो यह सत्य प्रतीत होता है…फिर निरपराधी को सज़ा क्यों? उस ऊहापोह की स्थिति में वह भूल जाता है कि सत्य शक्तिशाली होता है; प्रभावी होता है; सात परदों को भेद सबके सम्मुख अवश्य प्रकट हो ही जाता है। हां! इसकी एकमात्र शर्त है– सृष्टि-नियंता व मानवता में अटूट-अथाह व असीम-बेपनाह विश्वास …क्योंकि उसकी अदालत में देर है, अंधेर नहीं तथा वह सबको उनके कर्मों के अनुसार ही फल देता है। यह विधि का विधान है कि मानव को समय से पूर्व व भाग्य से अधिक कभी भी, कुछ भी नहीं मिल सकता। सब्र व संतोष का फल सदैव मीठा होता है और उतावलेपन में कृत-कर्म कभी फलदायी नहीं होता। सो! सबसे बड़ा दोष…मानव की संशय,   अनिर्णय व असमंजस की स्थिति है, जहां उसे सावन के अंधे की भांति सर्वत्र हरा ही हरा दिखाई पड़ता है

सो! मानव को परमात्म-सत्ता पर विश्वास रखते हुए सदैव आशावादी होना चाहिए, क्योंकि आशा जीवन में साहस, उत्साह व धैर्य संचरित करती है;  जिसका दारोमदार सकारात्मक सोच पर है। आइए! व्यर्थ की सोच व नकारात्मकता को अपने जीवन से बाहर निकाल फेंकें। अपनी आंतरिक शक्तियों व ऊर्जा को अनुभव कर जीवन का निष्पक्ष व निरपेक्ष भाव से आकलन करें तथा उसे निष्कंटक समझ, सहज रूप से स्वीकारें। परनिंदा से कभी भी विचलित हो कर अपना जीवन नरक न बनाएं, बल्कि उसे स्वर्ग बनाने का हर संभव प्रयास करें…क्योंकि निराश व अवसाद -ग्रस्त व्यक्ति के साथ कोई पल-भर का समय भी व्यतीत करना पसंद नहीं करता …सब उससे ग़ुरेज़ करते हैं, दूरी बनाए रखना चाहते हैं। दूसरी ओर प्रसन्न-चित्त व्यक्ति सदैव मुस्कुराता रहता है; महफ़िलों की शोभा होता है, सब उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते तथा उसका सान्निध्य पाकर स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं।

अन्त मैं यही कहना चाहूंगी कि सत्य आपकी सकारात्मक सोच व सत्कर्मों से स्वयं प्रकट हो जाता है। प्रारंभ में भले ही लोग उस पर विश्वास न करें, परंतु एक अंतराल के पश्चात् सच्चाई सबके सम्मुख प्रकट हो जाती है और विरोधी पक्ष के लोग भी उसके मुरीद हो जाते हैं। सब यही कहते हैं ‘बेचारा समय की मार झेल रहा था, जबकि वह निर्दोष था… व्यवस्था का शिकार था। कितना धैर्य दिखाया था, उसने आपदा-विपदा के समय में…उसने न तो किसी पर अंगुली नहीं उठाई और न ही स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के लिए किसी दूसरे पर इल्ज़ाम लगाया व दोषारोपण किया।’ ऐसे लोग वास्तव में महान् होते हैं, जिनकी महात्मा बुद्ध, महावीर वर्द्धमान व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के रूप में श्रद्धा-पूर्वक उपासना-आराधना होती है और वे युग-पुरुष बन जाते हैं; विश्व-विख्यात व विश्व-वंदनीय बन जाते हैं। आइए! हम भी उपरोक्त गुणों को आत्मसात् कर सर्वांगीण विकास करें तथा अपने व्यक्तित्व को सर्व-स्वीकार्य व चिर-स्मरणीय बनाएं।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 44 ☆ पेंशन ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आज के सामाजिक परिवेश में जीवन के सत्य को उजागर करती एक लघुकथा  “पेंशन”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 44 – साहित्य निकुंज ☆

☆ पेंशन ☆

“क्या हुआ तुम क्यों अम्मा को चिल्ला रही हो ?”

“अरे तुम तो ड्यूटी चले जाते हो अम्मा सुनती नहीं हैं, चलते बनता नहीं है फिर भी बर्तन मांजने बैठ जाती हैं. एक पल भी बैठने नहीं देती .”

“देखो तुमसे कितनी बार कहा अम्मा का ध्यान रखा करो. उन्हें कुछ करने नहीं दिया करो .”

वहां से अम्मा की कराहने की आवाज़  आती है ….”वे कहती है बेटा अब ऐसे जीने से अच्छा है भगवान् हमें उठा ले कितना जियेगे .”

“नहीं अम्मा ऐसा नहीं कहते आप आराम करो हम अभी आते हैं “

इतने में बहू आती है ..” कहती है क्यों अम्मा क्या शिकायत कर रही थी इनसे .”

“ नहीं हमने कुछ नहीं कहा ..”

इतने में बहू अम्मा का हाथ मरोड़ती और दबी आवाज में कहती है..” तुम्हें सिर्फ इसलिए खिला पिला रहे हैं,  क्योंकि  हर महीने तुम्हारी पेंशन जो आती है.”

अम्मा ने अपना हाथ बहू के सिर पर रख दिया।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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