श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनका एक बुंदेलखंडी कविता “ग्राम्य विकास”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 33 ☆
☆ व्यंग्य – कौन बनेगा महापुरुष? ☆
“ना.. साहब, सुने हैं कि जे नये कलेक्टर साब ज्यादई तेज तर्रार हैं, सब अफसरों को परेशान कर रिये हैं ” – – गंगू पूछ रहा है।
मालिश करते हुए बीच बीच में गंगू ऐसे कई सवाल पूछ लेता है… वो भी ऐसे ऐन वक्त पर जब वो गर्दन चटकाने की तैयारी में गर्दन पकड़ कर खड़ा होता है।
गंगू हमको साहब इसीलिए कहता रहता है क्योंकि हम स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं एवं जिले के कलेक्टर से लेकर सभी विभागों के अफसरों के साथ उठते बैठते हैं। ये आदिवासी पिछड़ा जिला है अफसरों के लिए पनिशमेंट सेन्टर कहलाता है। यहां हर विभाग के अफसर को भ्रष्टाचारी, दारूखोर और चरित्रहीन होना जरूरी है क्योंकि पिछड़ेपन के कारण मनोरंजन के भी कोई साधन नहीं हैं, सब अफसर बंगलों में अकेले रहते हैं और फेमिली शहर में रखते हैं। इस जिले में सब टाइम पास करने आते हैं।
जब से नया कलेक्टर आया है लोग उसे झक्की कलेक्टर कहते हैं, क्योंकि वो जिले का विकास चाहता है, अफसरों को सुधारना चाहता है, अफसरों के अंदर गांधी दर्शन भरना चाहता है। कई दिनों से मुझे भी परेशान किए है, कहता है कि – 150 साल के अवसर पर अपने प्रशिक्षण संस्थान में अफसरों के लिए गांधी दर्शन के प्रशिक्षण आयोजित करें। कलेक्टर चाहता है कि अफसर गांधीवादी बन जायें तो विकास सही ढंग से होगा।
राजनीति सब जगह हावी रहती है, शहर के छुटभैया नेता प्रशिक्षण संस्थान का नाम बदलकर दीन दयाल संस्थान करना चाहते हैं और कलेक्टर है कि संस्थान में गांधी दर्शन के प्रशिक्षण करवाना चाहता है। अफसर नहीं चाहते कि वे कलेक्टर के हिसाब से गांधीवादी बने। अफसर अपने हिसाब से कभी गांधीवादी तो कभी सत्ताधारी पार्टीवादी बनना चाहते हैं।
अफसरों का गांधीवादी चिंतन अलग होता है। एक आला अफसर पूछ रहा था कि- “गांधी जी महापुरुष थे कि महात्मा थे ?” दूसरा अफसर कहता है- “गांधी महात्मा कहलाते थे इसलिए उनको महात्मा गांधी कहा जाता है।” जब उनसे पूछा गया कि- “वे महात्मा गांधी क्यों कहलाते हैं ?”तो उनका सीधा जबाब था कि- “भारत के महापुरुष रवींद्र नाथ टैगोर के मुंह से एक बार गांधी के लिए ‘महात्मा’ शब्द निकल गया था तो वे महात्मा गांधी कहलाने लगे, तो जय बोलो महात्मा गांधी की……. । महापुरुषों की बात ही अलग होती है।”
दो अफसरों के बीच नशे में महात्मा और महापुरुष शब्दों के चक्कर में लड़ाई हो गयी….. एक कहता कि महात्मा और महापुरुष में कोई अन्तर नहीं है, महात्मा गांधी महापुरुष थे। दूसरे का मत था कि जिसके पास महान आत्मा होती है वे महात्मा होते हैं और जो सब पुरुषों में बड़े होते हैं वे महापुरुष कहलाते हैं। पहले वाले ने तर्क दिया ऐसे में तो स्त्री…., महापुरुष बन ही नहीं सकती, एक महिला अफसर सब सुन रही थी बोली – “बड़ी अजीब बात है, महापुरुषों में सिर्फ पुरुषों का अधिकार है”। इसलिए महिला ने बताया कि उसने अपने बेटे का नाम ‘महापुरुष’ रखा है , धोखे से उसकी सिंह राशि निकल आयी, ज्योतिषी कहता है कि महापुरुष नाम के लड़के की राशि का स्वामी सूर्य होता है सूर्य तेज होता है इसलिए हमारा महापुरुष किसी के सामने झुकता नहीं। महापुरुष नाम के लड़के में सभ्यता और ईमानदारी कूट कूट कर भरी होती है इसलिए ये आगे चलकर महापुरुष बन सकता है। मेडम की बात सुनकर चिड़चिड़े स्वाभाव के तीसरे अफसर को मुंह खोलने का अच्छा मौका मिल गया, कहने लगा – “इसका मतलब हमारे नये कलेक्टर की भी सिंह राशि है और उनका ग्रह स्वामी सूर्य होगा तभी वे तेज तर्रार हैं और महापुरुष बनने के जुगाड़ में हैं।”
गांधी जी सत्य के पुजारी थे, अफसर को भी सत्य बोलना पड़ता है क्योंकि उसे अपने कमीशन रेट के बारे में सच सच बतलाना पड़ता है, ठेकेदार भी अफसर के सत्य से प्रभावित रहता है और सच्चाई के साथ निर्धारित कमीशन गांधी की तस्वीर के सामने इमानदारी से अदा कर देता है। सारे कार्य नियम से होते हैं। गांधीजी भी नियम के पाबंद थे, अफसर भी पाबंद हैं। नया कलेक्टर गांधीवाद को अफसरों के ऊपर लादना चाहता है। कलेक्टर उन्हें गांधीवादी बनने पर जोर दे रहा है। जिस ढंग से कलेक्टर चाहता है उस ढंग से अफसर वैसा नहीं बनना चाहते। अफसर गांधीवादी क्यों बनेंगे…… अफसरवाद और गांधीवाद दो विरोधी चीजें हैं। अफसर अफसर होता है और महापुरुष बेचारा महापुरुष ही तो होता है।
यदि गांधी जी महापुरुष थे और गांव का विकास चाहते थे तो अफसर भी तो गांव के विकास के बहाने अपना विकास चाहते हैं। अफसरों का भाग्य इतना तेज दौड़ता है कि इधर सड़क बननी चालू हुई उधर बुलडोजर से उचकी गिट्टी साहब के बंगले में तब्दील हो जाती है। अभी तक अफसरों का जितना विकास हुआ है उसमें गांव की सड़क, बांध और ग्रामीण विकास योजनाओं ने अफसरों की खूब मदद की है।
“कलेक्टर को महापुरुष बनने का शौक है तो वे क्यों नहीं गांधी दर्शन के प्रशिक्षण लेते, हम सबको प्रशिक्षण में काहे फंसा रहे हैं?”
मैंने कहा – “इसमें फंसने की क्या बात है कलेक्टर का सोचना सही है कि सब अफसर गांधी दर्शन को समझकर देश की समस्याएं हल कर सकते हैं।”
मेरी बात से कई अफसर भड़क गए कहने लगे – “देश की समस्याओं को हल करने का ठेका हमीं लोगों ने लिया है क्या? देश का और जनता का सबसे ज्यादा शोषण नेता कर रहे हैं। देश के नेता तो असली गांधीवादी बन नहीं सके और कलेक्टर चाहते हैं कि अफसर गांधीवादी बनें।”
मुझे उनके तर्क कुछ ठीक लगे। नेता अगर गांधीवादी होते तो देश की यह हालत न होती। गांधीवाद का नाम लेकर देश को इस हाल में पहुंचा दिया कि मेरे पास शब्द ही नहीं बचे। गांधीवाद की सबकी परिभाषाएं अलग अलग हैं, हर पार्टी ऐन वक्त में गांधीवादी बन जाती है। 150 वें साल में गांधी पर इतने प्रयोग हो रहे हैं, जिनकी कोई गिनती ही नहीं है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के लिए गांधीवाद रबर के समान है चाहे जब खींचकर महापुरुष बना दिया, चाहे जब छोड़कर महात्मा बना दिया और चाहे जब छोड़ कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया।
गांधी महापुरुष थे इसलिए गांधी के नाम पर सारी पार्टियां चुनाव लड़तीं हैं, गांधी की समाधि पर कसम खातीं हैं। चुनाव जीतने के बाद गांधी को भूल जातीं हैं। नये जमाने के अनुसार आजकल वही नेता महापुरुष बन पायेंगे जो झूठ को सच की तरह बोलते हैं और गंभीर होने का नाटक करते हैं या फिर रंगदारी करते हैं। सत्ता गांधीवाद की विरोधी होती है गांधीवाद को भूलकर ही सत्ता को बचाया जा सकता है। वैसे भी सत्ता और गांधीवाद की दो नावों पर पैर रख कर चलना किसी जोखिम से कम नहीं है।
सत्ता और गांधी एक साथ नहीं चल सकते। सब अफसर यदि महापुरुष बनने के चक्कर में गांधीवादी बन गए तो सरकार कौन चलाएगा। सरकार को अफसरों से मिलकर चलाया जाता है। अफसर यदि नाराज हो गए तो सरकार चलना कठिन है, इसलिए गांधीवाद का दिखावा दोनों को करना पड़ता है। कब कौन नेता या अफसर महापुरुष बन जाए, कोई ठिकाना नहीं है। तभी तो गंगू कौन बनेगा करोड़पति स्टाइल में अभिताभ की नकली आवाज में पूछ रहा है- “कौन बनेगा महापुरुष?”
© जय प्रकाश पाण्डेय
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