हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30 ☆ मुसाफिर ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ मुसाफिर ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30☆

☆ मुसाफिर

ज़्यादा, ज़्यादा और ज़्यादा

बारिश के इस मौसम में

मैं तुम्हें खोना भी नहीं चाहती,

पर तुमने तो जाने की

ठान ही ली है, है ना?

 

चले जाओ!

न ही तुम्हें मैं आवाज़ दूँगी,

न तुमसे रुकने की

कोई नम्र गुजारिश करूंगी

और न ही कोई हठ करूंगी…

आखिर जाने वाले को

रोका भी नहीं जा सकता ना?

 

सुनो ए आफताब!

जा रहे हो तुम

अपनी रज़ामंदी से,

ज़रूरी नहीं

कि जब तुम वापस आओ

मैं तुम्हारी बाहों में सिमट जाऊं,

आखिर मेरी भी तो कोई मर्ज़ी है, है ना?

 

जब तुम वापस आओगे

देखती रहूँगी तुम्हें आसमान पर,

तुम बस आते और जाते रहना

जैसे किसी राह पर मिले

हम कोई मुसाफ़िर थे,

और भूल गए एक दूसरे को

कुछ पल साथ चलकर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 29 ☆ काव्य संग्रह – गीत गुंजन – श्री ओम अग्रवाल बबुआ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  कवि ओम अग्रवाल बबुआ जी  के  काव्य  संग्रह  “गीत गुंजन” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 29 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा –काव्य   संग्रह   – गीत गुंजन

पुस्तक –  ( काव्य – संग्रह ) गीत गुंजन

लेखक – कवि ओम अग्रवाल बबुआ

प्रकाशक –प्रभा श्री पब्लिकेशन , वाराणसी

 मूल्य – २५० रु, पृष्ठ ११६, हार्ड बाउंड
 ☆ काव्य   संग्रह   – गीत गुंजन  – श्री  ओम अग्रवाल बबुआ –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

गीत , कविता मनोभावी अभिव्यक्ति की विधा है, जो स्वयं रचनाकार को तथा पाठक व श्रोता को हार्दिक आनन्द प्रदान करती है.

सामान्यतः फेसबुक, व्हाट्सअप को गंभीर साहित्य का विरोधी माना जाता है, किन्तु स्वयं कवि ओम अग्रवाल बबुआ ने अपनी बात में उल्लेख किया है कि उन्हें इन नवाचारी संसाधनो से कवितायें लिखने में गति मिली व उसकी परिणिति ही उनकी यह प्रथम कृति है.

किताब में धार्मिक भावना की रचनायें जैसे गणेश वंदना, सरस्वती वन्दना, कृष्ण स्तुतियां, दोहे, हास्य रचना मेरी औकात, तो स्त्री विमर्श की कवितायें नारी, बेटियां, प्यार हो तुम, प्रेम गीत, आदि भी हैं.

पहली किताब का अल्हड़ उत्साह, रचनाओ में परिलक्षित हो रहा है, जैसे यह पुस्तक उनकी डायरी का प्रकाशित रूपांतरण हो.

अगली पुस्तको में कवि ओम अग्रवाल बबुआ जी से और भी गंभीर साहित्य अपेक्षित है.

पुस्तक से चार पंक्तियां पढ़िये ..

आशाओ के दर्पण में

पावन पुण्य समर्पण में

जब दूर कहीं वे अपने हों

जब आंखों में सपने हों

तब नींद भाग सी जाती है

जब याद तुम्हारी आती है.

रचनायें आनन्द लेने योग्य हैं.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 39 – होली पर्व विशेष – रंग गुलाबी बरसे बदरिया ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  होली के पर्व पर  होली की मस्ती में सराबोर एक श्रृंगारिक गीत  रंग गुलाबी बरसे बदरिया। इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 39☆

☆ होली पर्व विशेष  –  रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

पी के मिलन को तरसे अखियां

 

इधर उधर से नजर चुरा  के

तुम कब मिलोगे हमसे सांवरिया

 

घर में मन लगता नहीं है

बिन देखे चैन पड़ता नहीं है

 

चुपके से मिलने का कोई बहाना

लिखकर कब अब भेजोगे पतिया

 

सूना सूना है मेरे घर का आंगन

मैय्या बाबुल  न भाई बहना

 

आओगे कब राह देख रही सजना

फागुन की होली का करके बहाना

 

जब तुम आओगे नैनों में कजरा

सजा के रखूंगी बालों में गजरा

 

अपने ही रंग में रंग लूं सांवरिया

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रुत है मिलन की मेरे सांवरिया

गुजिया पपडी खोये की मिठाइयां

 

होश गवा दे  भांग की ठंडाईया

अपने हाथों से पिलाऊगी सैंया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

अपने पिया की मै तो बांवरिया

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 41 ☆ होळी पर्व विशेष – सज्ञान रंग ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “सज्ञान रंग ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 41 ☆

☆ होळी पर्व विशेष – सज्ञान रंग ☆

रंग पर्व होळीच्या सर्वांना हार्दिक शुभेच्छा ! 

 

होळीत राग रुसवे जावे जळून काही

उजळो प्रकाश आता येथे दिशांस दाही

 

रंगात कोरड्या मी भिजणार आज नाही

रंगात ओल ज्या ते गालास लाव दोन्ही

 

ठेवीन हात धरुनी हातात मीच क्षणभर

तो स्पर्श मग स्मृतींचा राहो सदैव देही

 

छळतील डाग काही सोसेल मी तयांना

हे रंग जीवनाचे नुसते नको प्रवाही

 

ते रंग कालचे तर बालीश फार होते

सज्ञान रंग झाला सज्ञान आज मीही

 

जातीत वाटलेले आहेत रंग जे जे

ते रंग टाळण्याची मज पाहिजेल ग्वाही

 

ते पावसात भिजले आकाश सप्तरंगी

त्यातील रंग मजवर उधळून टाक तूही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 – बाईपण ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “बाईपण।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – बाईपण ☆

सर्व महिलांना जगतिक महिला दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! 

 

छान बाईपण माझे

नाही वाटत गं ओझे

सखा निर्मळ मनाचा

त्याला म्हणते मी राजे

 

दिली आईने शिदोरी

आले दुसऱ्या मी घरी

माता तिथेही भेटली

नाव असे सासू जरी

 

बीज पेरणारा धनी

जमीन मी त्याची ऋणी

दीप एक लावलेला

आम्ही दोघांनी मिळोनी

 

आज कन्या रत्न झाले

मन भरुनीया आले

झाले मीही उतराई

भाग्य मला हे लाभले

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 38 – वाचन संस्कृती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु उनके पालकों के लिए भी आपकी एक अतिसुन्दर कविता   “वाचन संस्कृती”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 38 ☆ 

 ☆ वाचन संस्कृती 

 

वाचन संस्कृती । बाणा नित्य नेमे । आचरावी प्रेमे । जीवनात ।1।

 

संपन्न जीवना । ज्ञान एक धन । सुसंस्कृत मन । वाचनाने ।2।

 

शब्दांचे भांडार । समृद्धी अपार । चढतसे धार । बुद्धीलागी ।3।

 

मधुमक्षी परी । वेचा ज्ञान बिंदू । जीवनाचा सिंधू । होई पार ।4।

 

अज्ञान अंधारी । लावा ज्ञान ज्योती । वाचन संस्कृती । तरणोपाय ।5।

 

ज्ञानाची संपत्ती । लूटू वारेमाप । चातुर्य अमाप । गवसेल ।6।

 

वाचा आणि वाचा । ध्यानी ठेवा मंत्र । व्यासंगाचे तंत्र । फलदायी ।7।

 

जपा जिवापाड । वाचन संस्कृती । नुरेल विकृती । जीवनात ।8।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37 ☆ कविता – वो बचपन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक अतिसुन्दर कविता  “वो बचपन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37

☆ कविता  – वो बचपन ☆ 

 

खबरदार खबरदार प्यारे  बचपन

ये जहर उगलते मीडिया ये बचपन

ऊंगलियों में कैद हो गया है बचपन

हताशा निराशा में लिपटा है बचपन

गिल्ली न डण्डा न कन्चे का बचपन

फेसबुक की आंधी में डूबा है बचपन

वाटसअप ने उल्लू बनाया रे बचपन

चीन के मंजे से घायल है ये  बचपन

खांसी और सरदी का हो गया जीवन

कबड्डी खोखो को भूल गया बचपन

सुनो तो  कहीं से  बुला दो ‘वो’ बचपन

मिले तो आनलाइन भेज दो ‘वो’ बचपन

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक सपने #41 – मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता”।  यह इस लेखमाला की  अंतिम कड़ी है । इस साप्ताहिक स्तम्भ श्रृंखला के लिए हम सुश्री अनुभा जी के हार्दिक आभारी हैं। )  

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 41 ☆

☆ मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता

खदान से प्राप्त होने वाला हीरा तभी उपयोगी और मूल्यवान बनता है जब कुशल कारीगर उसे उचित आकार में तराश कर आकर्षक बना देते हैं। तभी ऐसा हीरा राजमुकुट, राजसिंहासन या अलंकार की शोभा बढ़ाने के लिये स्वीकार किया जाता है। यही नियम हर क्षेत्र में लागू होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी शिक्षा के द्वारा निखारा जाता है और उसे समाज के लिये उपयोगी गुण प्रदान किये जाते है। शिक्षा का यही महत्व है। इसी लिये हर देश में शासन ने शिक्षा व्यवस्था की है।क्रमशः प्राथमिक, माध्यमिक एवं महाविद्यालयीन संस्थाये नागरिको को देश की आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रकार की विद्यायें सिखाने का कार्य कर रही हैं। हमारे देश में भी इसी दृष्टि से ‘‘सर्व शिक्षा अभियान” चलाया गया है जिसमें 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे को सुशिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। शिक्षा का अर्थ सिखाने से है और विद्या का अर्थ विषय या तकनीक का ज्ञान देने से है।  इस तरह शिक्षा के दो प्रकार कहे जा सकते है। एक प्रारंभिक शिक्षा जिसमें अक्षर ज्ञान- पढना लिखना तथा प्रारंभिक गणित का ज्ञान होना होता है  और दूसरा किसी विशेष विषय की शिक्षा जिसके द्वारा उच्च तकनीकी ज्ञान की किसी एक शाखा मे विशेषज्ञ तैयार किये जाते हैं। ज्ञान की अनेको शाखाये है, सभी के जानकार व्यक्तियो की समाज को आवश्यकता होती है जिससे देश की आवश्यकताओ को पूरी करने वाले नागरिक तैयार हो सकें और उनकी सहायता व सेवाओ से देश प्रगति कर सके। ये सुशिक्षित लोग अपनी गुणवत्ता के साथ ही ऐसे भी होने चाहिये, जिनका आचरण अच्छा हो जिनमें अनुशासनप्रियता हो,  कर्मठता हो, समाज सेवा की भावना हो, नियमितता हो ,सहयोग की भावना हो, सहिष्णुता हो तथा सब के प्रति आदर का भाव हो। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसीलिये हमने देश के राजचिन्ह मे ‘‘सत्यमेव जयते” का आदर्श वाक्य अपनाया है। 1789 में अठारहवी सदी की फ्रांस की राज्य तथा वैचारिक क्रांति ने विश्व को एक नयी शासन व्यवस्था दी जिसे अंग्रेजी में डेमोक्रेसी अर्थात प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है। हमने भी देश की आजादी के बाद इसी जनतंत्र को अपने भारत के समुचित और सही विकास के लिये अपनाया है। जनसंख्या की दृष्टि से हम विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। हमारी आबादी लगभग 125 करोड है और हमारे जनतांत्रिक आदर्शो को विश्व के विभिन्न देश आदर्श के रूप में देखते हैं।

जनतंत्र के प्रमुख सिद्धांत हैं  (1) स्वतंत्रता (2) समानता (3) बंधुता तथा (4) न्याय। इन्हीं चार स्तंभो पर जनंतत्र की इमारत खडी है। प्रत्येक सिद्धांत के बडे गहरे अर्थ हैं और उसके बडे दूरगामी प्रभाव होते हैं। हमारे राष्ट्रीय संविधान में इनकी विस्तार से चर्चा और निर्देश हैं। आजादी से अब तक देश में निरंतर इसी शासन व्यवस्था को , जिसमें प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान के द्वारा अपना जनप्रतिनिधि चुनकर शासन में भेजने का महत्वपूर्ण मूल्यवान अधिकार है , का पालन किया जाता है। विश्व के अन्य देश बडे आश्चर्य  व उत्सुकता से हमारे देश में इस व्यवस्था का पालन किया जाना देख रहे हैं। इस जनतांत्रिक व्यवस्था में हमारी सफलता के उपरांत भी हम देखते हैं कि कुछ कमियां है। इन कमियों के कारण देशवासियों के पारस्परिक व्यवहार तथा बर्ताव में शुचिता की कमी देखी व सुनी जाती है जो सरकार के सामने कई कठिनाईयां खडी करती है।

जनतंत्र में प्रमुख पहला सिद्धांत स्वतंत्रता का है। प्रत्येक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है , व्यवहार की स्वतंत्रता है परंतु यह स्वतंत्रता स्वच्छंदता नहीं हो सकती जिससे अन्य नागरिको को जरा भी हानि हो।प्रत्येक नागरिक को वही समान अधिकार प्राप्त हैं  अतः टकराव नहीं होना चाहिये इसका पूरा ख्याल हर नागरिक के मन में निरंतर बना रहना चाहिये। यही बात समानता , बंधुता और न्याय के सिंद्धांतो के लिये भी समझदारी , ईमानदारी और पूरी निष्ठा से व्यवहार के हर क्षेत्र में आवश्यक है। परंतु क्या ऐसा हो रहा है?  सिद्धांत तो बडे अच्छे हैं परंतु उन्हें व्यवहार में अपनाये जाने में कमी दिखती है। नारा तो है “सत्यमेव जयते” परंतु व्यवहार में देखा जाता है और कहा जाता है “चाहे जो मजबूरी हो मांग हमारी पूरी हो”। ऐसे में देश का विकास और प्रगति कैसे संभव है? हर क्षेत्र में रूकावटें हैं। आये दिन स्वार्थ पूर्ति के लिये नये नये संगठन बनकर सामने आते है। प्रदर्शन,  बंद, धरने और शक्ति प्रदर्शन के लिये जुलूस निकाले जाते हैं। क्रोध और विरोध दिखाकर  देश की लाखो की संपत्ति जो वास्तव में जनता के धन से ही उपलब्ध कराई गई होती है, नष्ट कर दी जाती है।आंदोलन व प्रजातांत्रिक अधिकार के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति में आग लगा दी जाती है। अनेकों के सिर फूटते हैं और अनेको वर्षो में धन और श्रम से किये गये निर्माणो को देखते देखते नष्ट कर बहुतों को शारीरिक और मानसिक संकट में डाल दिया जाता है। कुछ ऐसी  ही अराजकता चुनावो के समय अनेक मतदान केन्द्रो में भी देखी जाती है। कभी तो निर्दोष व्यक्तियों की जान तक ले ली जाती है। यदि यह सब जनतंत्र में हो रहा है तो यह विचार करना जरूरी है कि क्यों ? सिद्धांतो को कितना अपनाया गया है और यह राजनीति कैसी है।

हमारा देश तो प्राचीन धर्मप्राण देश है। अनेको धर्मो का उद्गम स्थान है। विश्वगुरू कहा जाने वाला देश है फिर हमारा आचरण इतना धर्मविरूद्ध क्यों हो गया ? जब इस तथ्य पर चिंतन करते है तो नीचे लिखे कुछ विचार समने आते है:-

  1. विगत दो शताब्दियों में विज्ञान  ने (भौतिक विज्ञान ने) बहुत उन्नति की है। नये नये अविष्कार किये गये। जन साधारण को जीवन की नई नई सुविधायें प्राप्त हुई। इससे लोगो मे तार्किक प्रवृत्ति का विकास हुआ। कल कारखानो , आवागमन के संसाधनों , संचार की सुविधाओं से दूर देशों का संपर्क सघन हुआ है। इससे परस्पर संपर्क भी बढे , निर्भरता व व्यापार बढा। आर्थिक निर्भरता विश्वव्यापी हुई । लोगों ने अपने विचारो में परिर्वतन देखा पर चारित्रिक गिरावट आई।
  2. भारत में धार्मिक बंधनो में ढील आई। आत्मविश्वास के साथ अंह के भाव भी बढे। धार्मिक रीति रिवाजो पारिवारिक परंपराओ, मान्यताओ में शिथिलता ने चारित्रिक मूल्यो का हृास किया।
  3. राजनैतिक पैंतरेबाजी, स्वार्थ और धनलोलुपता ने घपलों घोटालों को जन्म दिया। आचार विचारों में भारी परिवर्तन हुये।
  4. निर्भीकता और उद्दंडता से अनुशासन नष्ट हुआ। अपने सिवाय औरो के लिये सम्मान और आदरपूर्ण व्यवहार में कमी आई।
  5. निरर्थक दिखावे, झूठे प्रदर्शन और आडम्बरों को बढावा मिला धन का अनुचित उपयोग बढा, औरों की उपेक्षा हुई। दिखावे के चलन ने सारे पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को प्रदूषित किया। धार्मिक भावना का हृास होने से चारित्रिक शुचिता नहीं रही। व्यवहार में ईमानदारी कम हुई। गबन घोटाले बढे। सादा जीवन उच्च विचार की परंपरा नष्ट हो गई।

यह स्थिति केवल हमारे देश  में ही नहीं समूचे विश्व में ही  हुई है। आंतकवाद सब जगह फैल गया है। मानवता त्रस्त है। इन सबका कारण नासमझी है।  धर्म की गलत व्याख्या है।   स्वार्थ, लालच, क्रोध, असहिष्णुता ने अदूरदर्शिता का प्रसार किया है तथा अनाचार व आतंक को जन्म दिया है। आचार विचार और सुसंस्कारो को समाप्त किया है। सारे परिवेश को दूषित किया है। जनता में  पढाई लिखाई का तो प्रसार हुआ है परंतु लोगों के मन का वास्तविक संस्कार नहीं हो पाया है। मन ही मनुष्य के सारे क्रियाकलापो का संचालक है। जैसा मन होता है वैसे ही कर्म होते है अतः सही वातावरण के निर्माण हेतु मन का सुसंस्कार कर शुभ विचार की उत्पत्ति किया जाना आवश्यक है। शिक्षा से व्यक्ति को सुखी समृद्ध और समाज के लिये मूल्यवान बनाया जा सकता है। अतः प्रारंभ सद्शिक्षा से ही करना होगा। शिक्षा से मनुष्य का शारीरिक ,  मानसिक ,  बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास करने के लिये समुचित पाठ्यक्रम अपनाया जाना चाहिये। मन के सुधार के लिये नीति प्रीति की रीति सीखने समझने के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये। बचपन के संस्कार जो बच्चा घर ,परिवार ,परिवेश,  धार्मिक संस्थानो में देख सुन व व्यवहार का अनुकरण कर सीखता है , जीवन भर साथ रहते हैं। माता, पिता, शिक्षकों तथा समाज में बडों के आचरण का अनुकरण कर छात्र जल्दी सीखते है। अतः  शालाओ और सामाजिक परिवेश में नैतिक मूल्यों का वातावरण विकसित किया जाना  चाहिये। अर्थकेन्द्रित आज के संसार में सदाचार केन्द्रित शिक्षा के द्वारा ही परिवर्तन की  आशा की जा सकती है .  भविष्य को बेहतर बनाने के लिये मूल्यपरक शिक्षा के द्वारा समाज को सदाचार की ओर उन्मुख किया जाये। संपूर्ण शिक्षा पाठयक्रम और संस्थानो के कार्यक्रमो में नैतिक शिक्षा की गहन आवश्यकता है। क्योंकि शिक्षा का रंग ही व्यक्ति के जीवन को सच्चे गहरे रंग से रंग देता है। पहले संयुक्त परिवारो में दादी नानी व बड़े बूढ़े  कहानियों व चर्चाओ से बालमन को जो नैतिक संस्कार देते थे आज के युग में एकल परिवारो के चलते केवल शिक्षण संस्थाओ को ही यह जिम्मेदारी पूरी करनी है।

अतः वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में मूल्यपरक शिक्षा अतिआवश्यक है, जिससे हर शिक्षा पाने वाले विद्यार्थी  को विभिन्न विषयों के ज्ञान के साथ साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारियो का सही सही बोध हो सके।   एक नागरिक के रूप में उसके अधिकार ही नहीं कर्तव्यों का भी दायित्व वह समझ सके ।  बुद्धि के साथ साथ छात्र का हृदय भी विकसित हो,  उसे खुद के साथ अपने पडोसियों के प्रति भी संवेदना हो। समाज में सद्भाव,सहयोग, समन्वय और सहिष्णुता विकसित हो सके।

© अनुभा श्रीवास्तव

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ महिला दिवस पर दस दोहे ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विशेष अवसर पर  कविता  “महिला दिवस पर दस दोहे। )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  –  महिला दिवस पर दस दोहे

  

भिन्सारे उठ कर करे, घर के सारे काम।

व्यस्त  रहे पूरे दिवस, देर  रात  विश्राम।।

 

शैशव को मृदु  स्नेह दे, दे किशोर  को  ज्ञान।

अनुशाषित युव पुत्र को, मातृ शक्ति वरदान।।

 

पत्नी, पुत्री, माँ, बहन, भिन्न – भिन्न हैं रूप।

करे पूर्ण दायित्व सब, सुख दायिनी स्वरूप।

 

मर्यादा दहलीज की, दो-दो घर की शान।

है अनन्त महिमामयी, धैर्य धर्म की खान।।

 

सहनशील धरती सदृश,मन में सेवा भाव।

संघर्षों  से  जूझती,  धूप  मिले  या  छाँव।।

 

मात-पिता की लाड़ली, बच्चों का है प्यार

सम्बल है पति का बनी, सुखी करे संसार।

 

होता है श्री हीन नर, बिन नारी के संग।

लक्ष्मी बन  घर में भरे, मंदिर जैसे  रंग।।

 

इम्तिहान हर डगर पर, मातृशक्ति के नाम

विनत भाव सेवा करे, हो कर के निष्काम।

 

संकोची  घर  में  रहे, बाहर  है  तलवार।

जब जैसी बहती हवा, वैसी उसकी धार।।

 

समझें नारी को नहीं, कोई भी कमजोर

नारी  के  ही  हाथ  में, पूरे जग  की डोर।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #38 ☆ औरत ☆ श्री संजय भारद्वाज

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 38 ☆

☆ *औरत* ☆

 

मैंने देखी-

बालकनी की रेलिंग पर लटकी

खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत,

मैंने देखी-

धोबीघाट पर पानी की लय के साथ

यौवन निचोड़ती औरत,

मैंने देखी-

कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती

साँचेदार खट्टी-मीठी औरत,

मैंने देखी-

चूल्हे की आँच में

माथे पर चमकते मोती संवारती औरत,

मैंने देखी फलों की टोकरी उठाए

सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत,

अलग-अलग किस्से,

अलग-अलग चर्चे,

औरत के लिए राग एकता के साथ

सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,

बस नहीं दिखी थी उनको-

रेलिंग पर लटककर छत बुहारती औरत,

धोबीघाट पर मोगरी के बल पर

कपड़े फटकारती औरत,

रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की भूख को ललकारती औरत,

गूँदती-बेलती-पकाती

पसीने से झिजती

पर रोटी खिलाती औरत,

सिर पर उठाकर बोझ

गृहस्थी का जिम्मा बँटाती औरत,

शायद हाथी और अंधों की

कहानी की तर्ज़ पर

सबने देखी अपनी सुविधा से

थोड़ी-थोड़ी औरत,

अफ़सोस किसीने नहीं देखी

एक बार में

पूरी की पूरी औरत..!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares