हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 10 – हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ”.)

☆ गांधी चर्चा # 10 – हिन्द स्वराज से (गांधी जी और मशीनें) ☆ 

गांधीजी दो बातें कहते हैं .हिन्दुस्तान से कारीगरी जो करीब-करीब ख़तम हो गयी, वह मैनचेस्टर का ही काम है और मशीनें यूरोप को उजाड़ने लगी हैं। निश्चय ही  गांधीजी के मन में यह विचार युरोप की औद्योगिक क्रांति के, जो अठारहवीं सदी के अंत व उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में हुई थी और इसने सारे यूरोप को प्रभावित किया था, दुष्परिणामों को देखते हुए आया होगा। आरंभ में यह क्रान्ति वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण से हुई,  और फिर तरह तरह की मशीनों की खोज हुई। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने भाप  की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु  से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी युरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी।कच्चे माल को पाने के लिए यूरोप ने सारे विश्व में अपने उपनिवेश बनाए जो इन देशों की गुलामी का कारण बने। मशीनों ने उत्पादन बढ़ाया तो माल की खपत इन्ही उपनिवेश देशों में हुई फलत वहाँ के लघु उद्योग चौपट हो गये, माल बेचने से प्राप्त धन यूरोप मे अमीरी और औपनवेशिक देशों में गरीबी का कारण बना।औद्योगिक क्रान्ति के कारण आपसी मानवीय सम्बन्ध खराब हुए और नैतिक मूल्यों में गिरावट आई। गांधीजी जब यंत्रों का विरोध करते हैं तो वे तत्कालीन भारत की इन्ही कठनाइयों के परिप्रेक्ष्य में यह बात करते हैं।  जब गांधीजी कहते हैं कि गरीब हिन्दुस्तान तो गुलामी से छूट सकेगा, लेकिन अनीति से पैसेवाला बना हुआ हिन्दुस्तान गुलामी से कभी नहीं छूटेगा तो मुझे देश के वर्तमान हालात दीखते हैं। भारत के औद्योगिक व व्यवसायिक घरानों ने, राजनीतिज्ञों व सरकारी अफसरों से गठजोड़ कर अनीतिपूर्वक जो धन कमाया है अंतत: उसकी परिणीती कालेधन में हुई है। इस काले धन ने सारे सिस्टम को तहस नहस कर दिया है, भ्रष्टाचार के फलने फूलने में इसी औद्योगिकरण का हाँथ है,    नोटबंदी जैसे प्रयास भी हमें इसके दुष्चक्र से मुक्ति नहीं दिला पाए हैं, आयकर विभाग, ईडी आदि लाख छापे मारें पर कभी कभार ही सफल होते दिखाई पढ़ते हैं। यही नैतिक पतन है जिसे गांधीजी ने एक सौ दस वर्ष पूर्व ही महसूस कर लिया था, और हमें चेताने की कोशिश की थी। उनकी चेतावनी का यह अर्थ कदापि न था कि हम यंत्रीकरण न करे उद्योगों की स्थापना न करे। वे तो बस इसके उचित बढ़ावे के पक्षधर थे। मशीनीकरण के अन्धानुकरण ने हमारे स्वास्थ को प्रभावित किया है। इससे भला कौन इनकार कर सकता है। हमने पैदल चलना और श्रम करना तो लगभग छोड़ ही दिया है। हमारे बच्चे इतने आलसी हो गए हैं कि वे सौ कदम भी नहीं चलना चाहते। उन्हें नजदीक के स्थान जाने के लिए भी वाहन चाहिए।  यही हमारे गिरते हुए स्वास्थ का कारण है।जब गान्धीजी यह कहते हैं कि  मैनचेस्टर के कपडे के बजाय हिन्दुस्तान की मिलों को प्रोत्साहन देकर भी हम अपनी जरूरत का कपड़ा हमें अपने देश में ही पैदा कर लेना चाहिए तब वे स्वदेश में मशीनों व यंत्रो के उपयोग के पक्षधर दिखाई देते हैं। वे चाहते हैं कि हम बजाय विदेशी माल खरीदने के देश में ही यंत्रो का प्रयोग कर अपनी जरूरतों के मुताबिक़ उत्पादन करें।गांधीजी जब कहते हैं कि  समय और श्रम की बचत तो मैं भी चाहता हूँ, पर वह किसी ख़ास वर्ग की नहीं बल्कि सारी मानव जाति की होनी चाहिए तो वे मशीनों व यंत्रों के उपयोग के समर्थन की बात करते हैं व उसका उपयोग मानव कल्याण के लिए करना चाहते हैं। गांधीजी बार बार कहते हैं कि  यंत्रों की खोज और विज्ञान लोभ के साधन नहीं रहने चाहिए, मजदूरों से उनकी ताकत से ज्यादा काम नहीं लिया जाना चाहिए और यंत्र रुकावट बनने के बजाय मददगार होने चाहिए। जब वे कहते हैं कि  ‘मेरा उद्देश्य तमाम यंत्रों का नाश करने का नहीं है, बल्कि उनकी हद बाँधने का है‘। वे तो कहते हैं कि ऐसे यंत्र नहीं होने चाहिए, जो काम न रहने के कारण आदमी के अंगों को जड़ और बेकार बना दें।इन बातों को अगर हम ध्यान से सोचे तो पायेंगे कि  वे यंत्रों के विरोधी नहीं हैं ।

यंत्रों का उपयोग मानव कल्याण के लिए हो ऐसी गान्धीजी  की भावना का पता हमें उनके इस कथन  से चलता है: “हाँ, लेकिन मैं इतना कहने की हद तक समाजवादी तो हूँ ही कि ऐसे कारखानों का मालिक राष्ट्र हो या जनता की सरकार की ओर से ऐसे कारखाने चलाये जाएँ। उनकी हस्ती नफे के लिए नहीं, बल्कि लोगों के भले के लिए हो। लोभ की जगह प्रेम को कायम करने का उसका उद्देश्य हो। मैं तो चाहता हूँ कि मजदूरों की हालत में कुछ सुधार हो। धन के पीछे आज जो पागल दौड़ चल रही है वह रुकनी चाहिए। मजदूरों को सिर्फ अच्छी रोजी मिले, इतना ही बस नहीं है। उनसे हो सके ऐसा काम उन्हें रोज मिलना चाहिए। ऐसी हालत में यंत्र जितना सरकार को या उसके मालिक को लाभ पहुंचाएगा, उतना ही लाभ उसके चलाने वाले मजदूर को पहुंचाएगा। मेरी कल्पना में यंत्रों के बारे में जो कुछ अपवाद हैं,उनमे से एक यह है। सिंगर मशीन के पीछे प्रेम था,इसलिए मानव-सुख का विचार मुख्य था। उस यंत्र का उद्देश्य है कि मानव श्रम की बचत। उसका इस्तेमाल करने के पीछे मकसद धन के लोभ का नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रामाणिक रीति से दया का होना चाहिए। मसलन, टेढ़े तकुवे को सीधा बनाने वाले यंत्र का मैं बहुत स्वागत करूंगा। लेकिन लोहारों का तकुवे बनाने का काम ही ख़तम हो जाय, यह मेरा उद्देश्य नहीं हो सकता। जब तकुवा टेढा हो जाय तब हरेक कातने वाले के पास तकुवा सीधा कर लेने के लिए यंत्र हो, इतना ही मैं चाहता हूँ। इसलिए  लोभ की जगह हम प्रेम को दें। तब फिर सब अच्छा ही अच्छा होगा।”

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 6 ☆ कविता – दत्त-चित्त बनकर तो देखो ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक कविता  दत्त-चित्त बनकर तो देखो।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 6 ☆

☆ दत्त-चित्त बनकर तो देखो ☆

 

तन्मयता हर लेती है जब,विकल दृगों का नीर

संयम, धैर्यशीलता हरती दुखी हृदय की पीर

 

सिहरन, ठिठुरन ठंडी साँसों को करती श्रमहीन

किन्तु उठाकर जोखिम सेवन करते नित्य समीर

 

वेणी गोरी बालों में, पड़ रही सुनहरी धूप

चपल सुन्दरी चली झूमती बनकर राँझा-हीर

 

चली रसोई से माँ लेकर पकवानों का थाल

खोज रही थी नजर चितेरी वहाँ प्यार की खीर

 

निर्भयता धारण करने से बन जाते हर काम

दत्त-चित्त बनकर तो देखो होगा हृदय कबीर।

 

सोच समझकर सदा बोलिए अंकुश हो वाणी पर

पिंजरे की बुलबुल को कोई मार न जाए तीर

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #30 – चेहऱ्यावर चेहरे ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “चेहऱ्यावर चेहरे”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 30☆

 

☆ चेहऱ्यावर चेहरे ☆

 

आसवांना अंतरी दडवू नको

आरश्याला तू असे फसवू नको

 

मखमली हा चेहरा नाराज का ?

चेहऱ्यावर चेहरे चढवू नको

 

सूर्य पाठीशी उभा असता तुझ्या

भर दुपारी काजवे जमवू नको

 

नेत्रपल्लव त्यात मजला झाक तू

तेथुनी मजला पुन्हा हलवू नको

 

जन्मठेपेची सजा तू दे मला

अन् जगापासून हे लपवू नको

 

सूर अपुले पाहुनी घेऊ जरा

मैफिलीचे काय ते ठरवू नको

 

बेत ठरला जर नकाराचा तुझा

ठेव हृदयी तो मला कळवू नको

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 30 – जूठन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक अत्यंत मर्मस्पर्शी जीवंत संस्मरण पर आधारित लघुकथा  “जूठन”। यह जीवन का कटु सत्य। आज भी ऐसी  मानसिकता के लोग समाज में हैं। वे नहीं जानते कि – सबको  आखिर जाना तो एक ही जगह है।

(श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी को मधुशाला साहित्यिक परिवार, उदयपुर की ओर से “काव्य  गौरव सम्मान 2019”  के लिए हार्दिक बधाई । )

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 30 ☆

☆ लघुकथा – जूठन ☆

 

कहते हैं आदमी कितना भी धनवान और रूपवान  क्यों न हो जाए, यदि उसके पास मानवता नहीं है तो वह पशु  समान है।

शहर के बीचों बीच काफी हाउस जहां पर दक्षिण भारतीय व्यंजन जैसे डोसा, इडली सांभर, बड़ा सांभर खाने के लिए काफी भीड़ लगती है। अपनी अपनी पसंद से सभी खाते हैं। काफी हाउस में लगभग सभी कुर्सियों पर व्यक्ति बैठे थे। हम भी वहां बैठे थे।

पास की पंक्ति पर एक सरकारी नौकरी और अच्छे पद पर काम करने वाली सभ्रांत लगाने वाली महिला एक बुजुर्ग महिला के साथ बैठी थी। उस महिला के पहनावे और बातचीत करने के तरीके से पता चल रहा था कि वह घर में काम करने वाली बाई है। पास में ही दो-तीन थैलों में सामान रखा हुआ था साथ ही मिनरल वाटर की चमचमाती बोतल टेबल पर रखी थी।

ऑर्डर पास करने वाला आकर खड़ा हो गया। भीड़ के कारण जल्दी-जल्दी ऑर्डर ले रहा था। उस सभ्य महिला ने कहा… “एक मसाला डोसा लेकर आओ”।  उसने हां में सिर हि दिया।  फिर खड़ा रहा और पूछा “क्या, सिर्फ एक ही लाना है?” उसे लगा उम्र में उससे दुगनी महिला साथ में बैठी है, तो शायद उसके लिए कुछ अलग मांग रही है।  परंतु उसने कहा.. “सिर्फ एक मसाला डोसा।“

थोड़ी देर में प्लेट में मसाला डोसा लेकर वेटर आ गया और  टेबिल पर रखकर चला गया। उस महिला ने मुंह बना-बना कर मसाला डोसा खाना शुरू किया। वह बात करते जा रही थी।  लिपस्टिक खराब ना हो जाए इसलिए बड़े ही स्टाइल से खा रही थी। परंतु, प्लेट में बहुत ही गंदे तरीके से सांभर टपका रही थी और वह महिला सामने बैठ उसके प्लेट को देख रही थी। शायद, भूख उसे भी लगी थी, परंतु चुपचाप देख रही थी।

अंत में उस  सभ्य महिला ने सामने बैठी अधेड़ उम्र की महिला से कहा… “यह बचा हुआ डोसा तुम खा लो तुम्हारा पेट भर जाएगा। घर जाकर खाना नहीं पड़ेगा। हम तो अभी जूस पीकर आए हैं। अब ज्यादा नहीं खा सकेंगे।“

उस प्लेट को हम  सभी देख रहे थे मुश्किल से एक तिहाई डोसा बचा था। यह कह कर वह हाथ धोने वॉशरूम की ओर चली गई। जब किसी से नहीं रहा गया तो वहां बैठे और लोगों ने पूछा… “तुम यह जूठन क्यों खा रही हो अम्मा?

उसने मुंह में निवाला डाले डाले कहा… “घर में हम रोज ही मेम साहब का जूठन खाते हैं। वह खाने के बाद उसी प्लेट पर बचा हुआ खाना हमें देती है। हमारी तो आदत है, जूठन खाने की। क्या करें? जिंदगी जो काटनी है उनके साथ!” उत्तर सुनकर सभी उसकी ओर देखने लगे।

किसी ने कुछ नहीं कहा और सब उस ऊंची सोच वाली महिला को देख रहे थे। जो वाशरूम से हाथ धो कर निकली और पर्स उठा कर बाहर की ओर चलती बनी।

कुछ तो फर्क होता है ‘बचा हुआ’ और ‘जूठन’ देने में? कैसी मानसिकता हैं यह? हम सोचते रहे, किन्तु, कुछ कर न सके।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19 ☆ काव्य संग्रह – लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  सुश्री सोनिया खुरानिया जी के काव्य संग्रह लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – काव्य संग्रह  –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं 

पुस्तक –लफ्ज दर लफ्ज मैं

लेखिका –  सुश्री सोनिया खुरानिया

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली

आई एस बी एन – ९७८९३८८३४६८१८

मूल्य –  200 रु प्रथम संस्करण 2019

☆ काव्य संग्रह –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

काव्य वह विधा है जो यदि कौशल से प्रयुक्त हो तो व्यक्तिगत अनुभवो को हर पाठक के उसके अनुभव बना देने की क्षमता रखती है. सोनिया खुरानिया की इस पुस्तक में संग्रहित कवितायें अधिकांशतः इसी तरह की हैं. छंद के शिल्प में भले ही कुछ रचनायें वह पकड़ न रखती हों जो साहित्यिक दृष्टि से आवश्यक हैं किन्तु भाव की कसौटी पर रचनायें खरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रही हैं. कोई ६० से अधिक कवितायें, कुछ मुक्त छंद में कुछ छंद में संग्रहित हैं. अधिकतर रचनायें स्त्री पुरुष संबंधो के, प्रतीत होता है उनके स्व अनुभव ही हैं. कवियत्री से अनुभवो की परिपक्वता पर बेहतर साहित्य की उम्मीद साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 – भारत का आखिरी गांव माणा गांव ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका अविस्मरणीय  संस्मरण  “भारत का आखिरी गांव माणा गांव”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 ☆

☆ भारत का आखिरी गांव माणा गांव 

सरस्वती नदी का उदगम स्थल भीमपुल माणा गांव भारत का अंतिम गांव कहलाता है बहुत दिनों से भारत चीन सीमा में बसे इस गाँव को देखने की इच्छा थी जो जून 2019 में पूरी हुई। यमुनेत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन के बाद माणा गांव जाना हुआ। 20 जून 2019 को उत्तराखंड की राज्यपाल माणा गांव आयीं थीं ऐसा वहां के लोगों ने बताया। हम लोग उनके प्रवास के तीन चार दिन बाद वहां पहुंचे। हिमालय की पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव के चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य देखकर अदभुत आनंद मिलता है पर गांव के हालात और गांव के लोगों के हालात देखकर दुख होता है अनुसूचित जाति के बोंटिया परिवार के लोग गरीबी में गुजर बसर करते हैं पर सब स्वस्थ दिखे और ओठों पर मुस्कान मिली।

बद्रीनाथ से 4-5 किमी दूर बसे इस गांव से सरस्वती नदी निकलती है और पूरे भारत में केवल माणा गांव में ही यह नदी प्रगट रूप में है इसी नदी को पार करने के लिए  भीम ने एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीमपुल कहते हैं। किवदंती है कि भीम इस चट्टान से स्वर्ग गए और द्रोपदी यहीं डूब गयीं थी।

कलकल बहती अलकनंदा नदी के इस पार माणा गांव है और उस पार आईटीबीपीटी एवं मिलिट्री का कैम्प हैं जिसकी हरे रंग की छतें माणा गांव से दिखतीं है।

माणा गांव के आगे वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा है माना जाता है कि यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था। माणा गांव के आगे सात किमी वासुधारा जलप्रपात है जिसकी एक बूंद भी जिसके ऊपर पड़ती है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कहते हैं यहां अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी। थोड़ा आगे सतोपंथ और स्वर्ग की सीढ़ी पड़ती हैं जहां से राजा युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग गये थे।

हालांकि इस समय भारत का ये आखिरी गांव बर्फ से पूरा ढक गया होगा और बोंटिया परिवार के 300 परिवार अपने घरों में ताले लगाकर चले गए होंगे पर उनकी याद आज भी आ रही है जिन्होंने अच्छे दिन नहीं देखे पर गरीबी में भी वे मुस्कराते दिखे।।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 29 – विद्याधन ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है अतिसुन्दर  शिक्षाप्रद कविता   “विद्याधन ” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 29 ☆ 

 ☆विद्याधन

 

जगी तरण्या साधन

असे एक विद्याधन।

कण कण जमवू या

अहंकार विसरून ।

 

सारे सोडून विकार

करू गुरूचा आदर।

सान थोर चराचर।

रूपं गुरूचे सादर ।

 

चिकाटीने धावे गाडी

आळसाची कुरघोडी।

जरी जिभेवर गोडी।

बरी नसे मनी अढी।

 

घरू ज्ञानीयांचा संग

सारे होऊन निःसंग।

दंग चिंतन मननी

भरू जीवनात रंग ।

 

ग्रंथ भांडार आपार

लुटू ज्ञानाचे कोठार।

चर्चा संवाद घडता

येई विचारांना धार।

 

वृद्धी होईल वाटता

अशी ज्ञानाची शिदोरी।

नका लपवू हो  विद्या

वृत्ती असे ही अघोरी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक सपने – #30 – भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 30 ☆

☆ भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर

हाल ही वर्ष २०११ के लिये क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रेंकिंग की घोषणा की गई है.क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रेंकिंग शैक्षणिक शोध,नवाचार,  छात्र अध्यापक अनुपात, क्वालिटी एजूकेशन, शैक्षिक सुविधायें आदि विभिन्न मापदण्डो के आधार पर प्रतिवर्ष दुनिया की श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थाओ की वरीयता सूची जारी करता है. देश के ख्याति लब्ध संस्थान आई आई एम या आई आई टी का भी  इस सूची में चयन न हो पाना हमारी शैक्षिक गुणवत्ता पर सवालिया निशान बनाता है, शायद यही कारण है कि इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति सहित अनेक विद्वानो ने  भारत के शैक्षिक वातावरण, छात्रो के चयन की गुणवत्ता  आदि पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं . दरअसल पिछले दशको में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति से अधिक धन प्राप्ति के लिये बड़े पैकेज पर कैंपस सेलेक्शन हो चला है, इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. ऐसे समय में देश की एक मात्र विज्ञान को समर्पित संस्था भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर (आईआईएससी) का विश्वस्तरीय भारतीय विज्ञान शिक्षण संस्थानो में नाम होना देश के लिये गौरव का विषय है.

भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना २७ मई सन् १९०९ मे स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से महान उद्योगपति जमशेदजी नुसरवानजी टाटा के दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप हुई। सन १८९८ मे संस्थान की रूपरेखा व निर्माण के लिये एक तात्कालिक समिति बनायी गयी थी। नोबेल पुरस्कार  विजेता सर विलियम राम्से ने इस संस्थान की स्थापना हेतु बंगलोर का नाम सुझाया और मॉरीस ट्रॅवर्स इसके पहले निदेशक बने।1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना के साथ, संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में अपने वर्तमान स्वरूप में सक्रिय है.

विज्ञान शिक्षा में दक्ष संस्थान के अब तक के  निदेशकों की सूची में ये महान नाम हैं मॉरीस ट्रेवर्स, FRS, वर्ष 1909-1914 , सर ए जी बॉर्न, FRS, सन् 1915-1921, सर एम ओ फोरस्टर, FRS, 1922-1933,  सर सी.वी. रमन, FRS, वर्ष 1933-1937, सर जे.सी. घोष, [6] 1939-1948, एम एस ठेकर, 1949-1955 , एस भगवन्तम्, 1957-1962,  सतीश धवन, 1962-1981,  डी के बनर्जी, 1971-1972,  एस रामशेषन , [7] 1981-1984,    सी एन आर  राव, FRS, 1984-1994, जी पद्मनाभन, 1994-1998, जी मेहता, 1998-2005,      वर्तमान में वर्ष २००५ से पी. बलराम संस्थान के निदेशक हैं.

होमी भाभा, सतीश धवन, जी. एन. रामचंद्रन,सर सी. वी. रमण,राजा रामन्ना,सी. एन. आर. राव,विक्रम साराभाई, जमशेदजी टाटा, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जेसे महान विज्ञान से जुड़े व्यक्तित्व इस संस्थान के विद्यार्थी रह चुके हैं या किसी न किसी रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान से जुड़े रहे हैं. आज भी जब नये छात्र यहां अध्ययन के लिये आते हैं तो होस्टल के जिन कमरो में कभी ये महान वैज्ञानिक रहे थे उन कमरो में रहने के लिये छात्रो में एक अलग ही उत्साह होता है.

संस्थान के वेब पते इस तरह हैं. http://www.iisc.ernet.in , http://www.iisc.ernet.in/ug , http://www.iisc.ernet.in/scouncil , http://admissions.iisc.ernet.in/

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साईंस बेंगलोर का विकिपीडिया के अनुसार विश्व स्तर पर रैंकिग आफ वर्ल्ड यूनिवर्सिटिज में प्रथम १०० में स्थान है,विज्ञान शिक्षा प्राप्त करने हेतु यह देश का एक मात्र इंडियन इंस्टीट्यूट है, जिसे डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त है.अब तक संस्थान से स्नातक या शोध के एम.एससी.  (Engg), एम.टेक., एम.बी.ए. व पीएच.डी.  पाठ्यक्रम ही संचालित थे पर इसी वर्ष २०११ जुलाई से अपने पहले बैच के प्रवेश के १००वें वर्ष से संस्थान ने विश्व स्तरीय ४ वर्षीय बी.एस. पाठ्यक्रम प्रारंभ भी किया है, जिसमें अधिकतम कुल ११० सीटें  हैं. प्रवेश के लिये किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना को प्रमुख मापदण्ड बनाया गया है, कुछ सीटें आई आई टी जे ई ई, तथा ए आई ई ई ई तथा ए आई पी एम टी के उच्च स्थान प्राप्त बच्चो को भी दी जाती हैं .हायर सेकेण्डरी की शिक्षा के बाद कालेज एजूकेशन में  जो छात्र केवल  नम्बर मात्र लाने के उद्देश्य से पढ़ाई नही करना चाहते  , और न ही फार्मूले रटते हैं वरन्  जो पढ़ने को इंजाय करते हैं अर्थात जिनमें विज्ञान के प्रति नैसर्गिक अनुराग है, जो जीवन यापन के लिये केवल धनार्जन के लिये नौकरी ही नही करना चाहते बल्कि कुछ नया सीखकर कुछ नया  करना चाहते हैं, समाज को कुछ देना चाहते हैं, उनके लिये ज्ञानार्जन का यह भारत में सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षण संस्थान है.

संस्थान का  कैम्पस 400 एकड़ हरे भरे १०० से अधिक प्रजातियो के सघन वृक्षो से सजी जमीन पर फैला हुआ है,मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वोडयार चतुर्थ के समय में इस संस्थान का निर्माण किया गया था.  आईआईएससी परिसर उत्तर बंगलौर में स्थित है जो शहर के मुख्य रेलवे स्टेशन से ६ कि मी,  बस स्टैंड से 4 किलोमीटर की दूरी पर है. यशवंतपुर निकटतम रेल्वे हेड है जो लगभग २.५ कि मी पर है. संस्थान बहुत पुराना है और टाटा इंस्टीट्यूट के नाम से आटो रिक्शा चालक सहज ही इसे पहचानते हैं.परिसर में 40 से अधिक विज्ञान शिक्षण के विभागो के भवन हैं, छह कैंटीन (कैफेटेरिया), एक जिमखाना (व्यायामशाला और खेल परिसर),  फुटबॉल और  क्रिकेट मैदान, नौ पुरुषों के और पाँच महिलाओं के हॉस्टल हैं, एक हवाई पट्टी, “जेआरडी टाटा मेमोरियल लाइब्रेरी,एक भव्य कंप्यूटर केंद्र भी है जो  भारत के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर्स में  है. नेनो टैक्नालाजी की नई प्रयोगशाला विश्वस्तरीय आकर्षण है. खरीदारी केन्द्रों,  मसाज पार्लर, ब्यूटी पार्लर और  स्टाफ के सदस्यों के लिए निवास भी परिसर में है. यह पूर्णतः आवासीय शिक्षण संस्थान है. मुख्य भवन के बाहर  संस्थापक जे.एन. टाटा की स्मृति में उनकी आदमकद मूर्ति स्थापित की गई है.

डीआरडीओ, इसरो, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, वैमानिकी विकास एजेंसी, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज, सीएसआईआर, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) इत्यादि वैज्ञानिक संगठनो से  आईआईएससी अनेक परियोजनाओ में निरंतर सहयोग कर रहा है.कार्पोरेट जगत के साथ तादात्म्य बनाने के लिये भी संस्थान सक्रिय है और अनेक निजी क्षेत्र की कंपनियां कैम्पस सेलेक्शन तथा प्रोडक्ट रिसर्च में सहयोग हेतु यहां पहुंचती हैं.  विदेशी शिक्षण संस्थानो से भी आईआईएससी अनेक एम ओ यू हस्ताक्षरित कर रहा है.

संस्थान के एक शतक की उपलब्धियो की कहानी बहुत लंबी है, देश विदेश में विज्ञान शिक्षण व शोध से जुड़े अनेकानेक महान वैज्ञानिक भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलूर की ही देन हैं. आने वाले समय में जब नई पीढ़ी के युवा वैज्ञानिक इस वर्ष प्रारंभ किये गये ४ वर्षीय बी एस पाठ्यक्रम को पूरा कर इस संस्थान से निकलेंगे तो निश्चित है कि उनके माध्यम से यह संस्थान देश में अनुसंधान और नवाचार की बढ़ती जरूरतो को पूरा करने में एक नई इबारत लिखेगा.

 

© अनुभा श्रीवास्तव्

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हिन्दी साहित्य ☆ डॉ मुक्ता ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆ डॉ सविता उपाध्याय

डॉ.  मुक्ता

( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।

हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ  डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो  निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे  हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी, डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जीप्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी,  श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी,  डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी एवं श्री दिलीप भाटिया जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध  वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।

(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ  हिन्दी साहित्यकार  डॉ. मुक्ता जी  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श  डॉ सविता उपाध्याय  जी  की कलम से।  हम डॉ सविता उपाध्याय जी के ह्रदय से आभारी हैं। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कई साहित्य मनीषियों ने अपनी लेखनी से सम्मान प्रदान किया है जिनमे डॉ मुक्ता का रचना संसार  – डॉ सुभाष रस्तोगी जी  तथा रानी झांसी जैसी नारीवाद की सर्जक डॉ मुक्ता – सुश्री सिमर सदोष जी की कृतियां प्रमुख है , जिन पर हम भविष्य में  चर्चा करने का प्रयास करेंगे।  बिना किसी अभिमान एवं सहज – सरल स्वभाव की  बहुमुखी प्रतिभा की  धनी डॉ मुक्ता जी को मैंने सदैव स्त्री शक्ति विमर्श की प्रणेता के रूप में पाया है। आपके  स्त्री पात्र हों या पुरुष पात्र दोनों वास्तविक जीवन से लिए हुए हैं। आपकी  लेखनी से  स्त्री विमर्श में स्त्री के सन्दर्भ में कुछ भी छूट पाना असंभव है। आप प्रत्येक पीढ़ी के लिए एक आदर्श हैं। )

सारस्वत परिचय

शिक्षा : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से1971मे हिंदी साहित्य में एम•ए• तथा1975 में पंजाब विश्व- विद्यालय चंडीगढ़ से पीएच•डी•की डिग्री प्राप्त की।

व्यवसाय :1971से 2003 तक उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा में प्रवक्ता तथा 2009 में प्राचार्य पद से सेवा-निवृत्त।

निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी  (2009 से 2011)

निदेशक, हरियाणा ग्रंथ अकादमी पंचकूला (2011- नवम्बर 2014 )

सदस्य,केन्द्रीय साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली ( 2013 से 2017)

साहित्य साधना : बचपन से अध्ययन व लेखन में रुचि तथा 1971 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कहानी व निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त।

उपलब्धियां : विशिष्ट हिंदी सेवाओं के निमित्त माननीय श्री प्रणव मुखर्जी,राष्ट्रपति भारत सरकार के कर-कमलों द्वारा सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार से सम्मानित★ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जयंती समारोह तथा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उत्कृष्ट साहित्यिक व सामाजिक सेवाओं के निमित्त माननीय राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाड़िया,हरियाणा द्वारा सम्मानित★ हरि याणा साहित्य अकादमी के राज्यस्तरीय श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से मुख्यमंत्री महोदय द्वाराअलंकृत ★ बेस्ट सिटीज़न ऑफ इंडिया अवॉर्ड★ साहित्य शिरोमणि की मानद उपाधि से अलंकृत★ इंटर- नेशनल विमेंस डे अवॉर्ड★ उदन्त मार्त्तण्ड सम्मान★ प्रज्ञा साहित्य सम्मान★ विश्ववारा सम्मान★ राज्य- स्तरीय और विश्व शिक्षक सम्मान★ राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड★ हिंदी भाषा भूषण सम्मान ★ राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान★ साहित्य कौस्तुभ सम्मान ★ शिक्षा रतन पुरस्कार★ उदयभानु हंस कविता पुरस्कार★ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान ★ 2007,2008, 2009 में समाजसेवी महिला सम्मान ★ हेल्र्दी युनिवर्स फाउंडेशन द्वारा वीमेंस अचीवर्स अवार्ड★ मां दरशी शिखर सम्मान★महिला गौरव पुरस्कार★ रानी लक्ष्मीबाई जनसेवा सम्मान★ नारी गौरव सम्मान ★सावित्री बाई फुल्ले अवार्ड★ नारी शक्ति सम्मान★साहित्य कौस्तुभ, साहित्य वाचस्पति व अंतर्राष्ट्रीय साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि से विभूषित★ साहित्य गौरवश्री सम्मान★ मानव गौरव सम्मान★ लघुकथा रतन सम्मान★ हिंदी रतन सम्मान★ विश्वकवि संत कबीर दास रतन अवॉर्ड  ★ लघुकथा शिरोमणि सम्मान★ लघुकथा रतन सम्मान★ साहित्य गौरव सम्मान★ कलमवीर सम्मान★ सदाबहार वृक्षमित्र सम्मान★ नारी गौरव सम्मान★ लघुकथा सेवी सम्मान★ महिला गौरव सम्मान★ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान सम्मान★दैनिक जागरण, संस्कार शाला द्वारा सम्मान★ काव्यशाला सम्मान★इन्द्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल एवं विजयानी फाउंडेशन द्वारा विशेष सम्मान★ इन्डोगमा फिल्म फेस्टिवल पर आई• एफ• एफ• 2019 विशेष सम्मान।

हरियाणा ग्रंथ अकादमी की पत्रिका कथासमय (मासिक) तथा सप्तसिंधु त्रैमासिक) का तीन वर्ष तथा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा (मासिक) का दो वर्ष तक कुशल संपादन 

★दस रचनाओं पर लघु शोध प्रबंध स्वीकृत★दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई द्वारा मुक्ता के साहित्य में स्त्री विमर्श शोध-प्रबंध स्वीकृत★ दो विद्यार्थियों द्वारा शोध-प्रबंध लेखनाधीन ★ राजा राममोहन राय फाउंडेशन तथा केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा दस  रचनाएं अनुमोदित ★ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, काव्यगोष्ठियों व विचार-मंचों में सक्रिय प्रतिभागिता।

प्रकाशित रचनाएं…28 : ◆शब्द नहीं मिलते ◆अस्मिता ◆लफ़्ज़ों ने ज़ुबां खोली ◆अहसास चंद लम्हों का ◆एक आंसू ◆चक्रव्यूह में औरत  ◆एक नदी संवेदना की  ◆लम्हों की सौगा़त  ◆अंतर्मन का अहसास  ◆द्वीप अपने-अपने  ◆संवेदना के वातायन  ◆सुक़ून कहाँ  ◆सांसों की सरगम (काव्य-संग्रह)  ◆मुखरित संवेदनाएं  ◆आखिर कब तक  ◆कैसे टूटे मौन  ◆अंजुरी भर धूप ◆उजास की तलाश  ◆रेत होते रिश्ते  ◆बँटा हुआ आदमी◆ हाशिये के उस पार◆टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी (लघुकथा-संग्रह)  ◆खामोशियों का सफ़र ◆अब और नहीं  ◆सच अपना अपना  ◆इन गलियारों में (कहानी -संग्रह)  ◆चिन्ता नहीं चिन्तन ◆परिदृश्य चिन्तन के  ◆चिन्तन के आयाम ◆वाट्सएप तेरे नाम (निबन्ध-संग्रह)…. ◆क्षितिज चिन्तन के (प्रकाशनाधीन )◆आधुनिक कविता में प्रकृति (समालोचना)◆ अकादमी की कथायात्रा कृति का संपादन ●अस्मिता व ●चिन्ता नहीं चिन्तन का पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद। ◆ डा•मुक्ता का रचना संसार…. डा•सुभाष रस्तोगी द्वारा संपादित।

संप्रति : पूर्व निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी, स्वतंत्र लेखन।

☆ हिन्दी साहित्य – डॉ मुक्ता ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆

(संकलनकर्ता  –  डॉ सविता उपाध्याय )

हिन्दी साहित्य जगत में डॉ मुक्ता एक बहुचर्चित विश्वविख्यात शक्ति संपन्न लेखिकाओं में से एक हैं। आपने हिन्दी साहित्य की लगभग सभी विधाओं कविता कहानी उपन्यास साक्षात्कार आदि में रचना की है।

इस संदर्भ में सुभाष रस्तोगी द्वारा संपादित ‘डॉ मुक्ता का रचना संसार’ कार्य अभिनंदनीय है वंदननीय है। आपने डॉ मुक्ता के साहित्यिक संसार को संपादित कर महती कार्य किया है। इस पुस्तक को पढ़कर लगा कि यह एक अथाह सागर है जिसमें इतने मोती हैं कि जिसकी गणना नहीं की जा सकती। रस्तोगी जी ने आपके रचना संसार को मोतियों की माला की तरह पिरोकर पाठकों को हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर सौंप दी है।

आपकी सृजन यात्रा 2007 में प्रकाशित ‘शब्द नहीं मिलते’ से  आज तक अनवरत चल रही है। हिंदी की सभी विधाओं पर अपना अधिकार रखने वाली डॉ मुक्ता को कौन नहीं जानता आपके पास कवि हृदय भी है जो हिंदी साहित्य में आपकी एक अलग ही पहचान बनाता है। आप चिंता नहीं चिंतन करती हैं और इसी के फलस्वरूप आपके आलेख चर्चा का विषय रहे हैं। आपने हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के पद पर रहते हुए अकादमी की साहित्यिक पत्रिका ‘हरिगंधा’ के सम्पादन में अद्भुत योगदान देकर अपनी एक अलग पहचान बनायी है। आपने लीक से अलग हटकर ‘हरिगंधा’ में नवीन विषयों को समाहित कर विशेषांक सम्पादित किए हैं जो ऐतिहासिक धरोहर बन गए हैं  जिनमें महिला विशेषांक, लघु कथा विशेषांक, दोहा विशेषांक आदि उल्लेखनीय हैं। इसी के साथ, कहानी पत्रिका ‘कथा समय’ तथा शोध पत्रिका ‘सप्तसिंधु’ दोनों ही संग्रहणीय हैं। अब तक आपके 6 कविता संग्रह शब्द नहीं मिलते. अस्मिता, लफ्जों ने जुबां खोली. एहसास चन्द लम्हों का, एक आंसू आदि प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कविताओं में स्त्री की यातना. उसके संघर्ष. उसकी चेतना को साहित्य का आधार बनाया गया है। आपकी कविताएं स्त्री मुक्ति के लिए ज़द्र्दोज़हद करती कविताएँ हैं जो पुरुष के अधिनायक वादी वर्चस्व को चुनौती देती हैं। डॉ मुक्ता का मानना है की स्त्री व् पुरुष दोनों समाज की धुरी हैं और स्त्री को उसके हिस्से की धुप और छांव, आधी ज़मीन व् आधा आसमां मिलना ही चाहिए।

स्त्री विमर्श के तहत नारी संघर्ष चेतना और समाज के पुरुष वर्ग को चुनौति देती स्त्री आपके रचना कर्म को अलग पहचान देती है। आपने अपने साहित्य में परिवार की संरचना में बदलाव संबंधों में बदलाव स्त्रियों की स्थिति में बदलाव स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार परिवार में शारीरिक लैंगिक व मनोवैज्ञानिक अत्याचार हिंसा दहेज से जुड़ी समस्याएँ स्त्रियों पर दोहरा अत्याचार कन्या भ्रूण हत्या परिवार में स्त्रियों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य की उपेक्षा विधवाओं का शोषण अल्पायु में विवाह पर्दा और घूँघट प्रथा आदि इन तमाम कठिनाइयों समस्याओं के बीच संघर्ष करती हुई स्त्री को आपने अपने साहित्य में चित्रित किया है।

शब्द नहीं मिलते  अस्मिता  लफ्जों ने जुबां खोली  अहसास चंद लम्हों का  एक आंसू  चक्रव्यूह में औरत कविता संग्रह बहुचर्चित रहे हैं। इतनी अधिक कविताओं की रचना करने के बावजूद सभी कविताओें की पृष्ठभूमि में भिन्नता अलग रोचकता अलग शैली का होना ही आपके लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण रहा है। ‘शब्द नहीं मिलते’ काव्य संग्रह में 92 कविताएँ हैं जिनमें आस्था विश्वास, गुरु के प्रति समर्पण भाव. सच्चा गुरु ही ईश्वर अराधना के मार्ग में सहायक होता है. गुरु के शरण में जाने से ही मुक्ति का मन्त्र मिलता है. गुरु की कृपा से ही कवयित्री ने सत्य से साक्षात्कार किया है कि प्रभु का बसेरा कहीं बाहर नहीं वह हृदय के भीतर ही विराजमान है।

शब्द नहीं मिलते काव्य संग्रह की कविताएँ स्वयं से साक्षात्कार है और जिसका स्वयं से साक्षात्कार हो जाता है वह भौतिक सुख–सुविधाओं से परे एक अलग ही जहान का प्राणी बन जाता है।भक्ति रस में सराबोर मुक्ता जी की कविताएँ अन्तर्मन को छूकर गहरे अध्यात्म से परिचय करवाती हैं। अस्मिता काव्य संग्रह में चौहत्तर 74 कविताएं हैं जिनका केन्द्र बिन्दु नारी रही है। अहिल्या, गांधारी के उदाहरण देकर कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं जो नारी की अंतस्चेतना को झकझोर कर रख देता है। द्रोपदी मंथरा उर्मिला सीता सभी का उदाहरण देकर बताया गया है कि आदिकाल से ही स्त्री को त्यागने का काम पुरुषों द्वारा किया गया है

एक स्थान पर सीता कहती हैं–

हे राम तुम कहीं भी जा सकते हो

तुम्हें अग्नि परीक्षा नहीं देनी होगी

न ही मैं

तुम्हारा त्याग करुंगी

वह अधिकार तो

मिला है पुरुष को

नारी तो बंदिनी है

चाहे वह राम के राजमहल में

चाहे रावण की

अशोकवाटिका में

वह तो है चिरबंदिनी।

 

कितनी मार्मिक पंक्तियां हैं। आपने न केवल पद्य में वरन गद्य में भी अपना अधिकार सिद्ध किया है। विविध विषयों को लेकर आपने जहां काव्य संसार रचा है वहीं कथा के क्षेत्र में भी आपने विभिन्न पृष्ठभूमि को लेकर कथा साहित्य की रचना की है।

एक कथाकार के तौर यदि हम डॉ मुक्ता के लेखन की बात करें तो आपका हिन्दी साहित्य को महत्त्वपूर्ण व सराहनीय योगदान रहा है। आपने नारी मन में गहरे उतरकर उसकी संवेदना, यातना, संघर्ष, स्त्री की समस्याओं और सवालों से जुड़े अनेक प्रश्नों व अधिकारों को अपने साहित्य में उठाया है। आपके  स्त्री पात्र हों या पुरुष पात्र दोनों वास्तविक जीवन से लिए हुए हैं। आपने  उन्हें कल्पना के माध्यम से मनोबल प्रदानकर संघर्ष करते हुए दिखलाया है। आपने उनका कथाक्रम के अनुसार पुनर्सृजन भी किया है।

आपके अब तक चार कहानी संग्रह खामोशियों का सफर, अब और नहीं, सच अपना अपना, इन गलियारों में प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कहानियाँ गहरे प्रतिकार्थ की व्यंजना करती हैं। डॉ मुक्ता  ने स्त्री जीवन के सभी मर्मांतक पीड़ाओं को अन्तर्मन तक महसूस किया है और कहानी का कथ्य बनाया है।

स्त्री जीवन तो सदियों से दुखों और पीड़ाओं से भरा हुआ है। उसकी यह पीड़ा आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। लगातार स्त्री दुखों आपदाओं और मुसीबतों का सामना करती रही है। प्रत्येक काल में स्त्री को ही अग्नि परीक्षा देनी पड़े अब यह स्त्री बर्दाश्त नहीं करेगी। वह सीता मैय्या ही थीं जो परीक्षा पर परीक्षा देती चली गईं वह भी एक धोबी के कहने पर। आज की सीता जहाँ परीक्षा देने को तैयार है वहीं उससे पहले परीक्षा लेना भी जानती है। केवल स्त्री ही परीक्षा क्यों दे? कितने अपमान इस नारी जाति को सहने होंगे? कितना लांक्षित होना होगा?  स्त्री को पाप की खान नरक का द्वार माया और ठगनी के रूप में चिह्नित कर पुरुष समाज ने बहुत मजाक उड़ाया है।

डॉ मुक्ता ने अपनी कहानियों काश इंसान समझ पाता, अपना घर, अग्निपरीक्षा, अधूरा इंसान, रिश्तों का अहसास,  करवट तथा अपना आशियाँ में स्त्री यातना के विभिन्न पक्षों को उठाया है। लेकिन खास बात यह है कि इसके माध्यम से आपने नारियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता को प्रमाणित करने का भी प्रयास किया है। आपके नारी पात्र पुरुष समाज के सारे अत्याचार सहने के बावजूद टूटते नहीं हार नहीं मानते। आपकी कहानियों के नारी पात्र अपने बलबूते पर जीवनभर संघर्ष करते नज़र आते हैं जीवन की कठिनाइयाँ भी उन्हें हरा नहीं पातीं। आपकी आक्रोश कहानी नारी सशक्तिकरण की अद्भुत कहानी है।

ढलती सांझ का दुख धरोहर मसान की डगर पर समझोता शायद वह कभी लौट आए आदि कहानियों में स्त्री यातना के भले ही विभिन्न संदर्भ हों लेकिन यह कहानियाँ यह सवाल उठाती हैं कि स्त्री को ससुराल के नाम पर जो घर मिलता है वह एक छलावा है।

यहाँ यदि हम स्त्री–पुरुष संबंधों की बात करें तो दोनों के बिना ही सृष्टि की कल्पना असंभव है। फिर न जाने क्यों किस बात की लड़ाई बरसों से चली आ रही है। स्त्री–पुरुष संबंध में स्त्री ग्रहण करने वाली प्राप्त करने वाली आत्मसात करने वाली और आत्मसात एवं ग्रहण के परिणामस्वरूप वृद्धि और रचना करने वाली है। वस्तुत स्त्रियों की गुलामी का सबसे बड़ा कारण धार्मिक सामाजिक मान्यताएँ और प्रथाएँ ही रहा है। इनके खिलाफ अभियान छेड़े बिना स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन लाना असंभव था। इसके लिए ही “वीमेन राइट्स” की बात कही गई। स्त्री पहले से ज्यादा सजग व चेतन हो गई है। पूर्वकाल में वह पुरुष के पद्चिह्नों पर चलने वाली थी किन्तु अब वह कदम से कदम मिलाकर एक साथ चलना चाहती है।

इस समाज में यह भ्रम फैला हुआ है। स्त्री विमर्श होना पुरुष विरोधी होना है किन्तु स्त्री तो बस अपने अधिकारों की माँग करती है पुरुष के समान प्रत्येक क्षेत्र में अपना समान अधिकार माँगती है। नियति के अनुसार अपने अधिकारों के लिए लड़ना गुनाह नहीं है क्योंकि अत्याचार करने से अत्याचार सहने वाला ज़्यादा गुनेहगार होता है।

मुक्ता जी की कथाओं में स्त्री पात्र संघर्षशील हैं आपकी नायिकाएं पुरुष वर्चस्व के कारण स्वयं को इस्तेमाल होने देने से इन्कार करती है और संस्कारों का मान करते हुए भी रूढ़ नैतिकता का विरोध करती है। उसका विश्वास है कि हमारे संस्कार हमारी मान्यताएँ जीवन को सही शक्ल देने के लिए हैं। जीवन को जीने की आकांक्षा जिस प्रकार पुरुष में है उस प्रकार स्त्री में भी है। दाम्पत्य संबंधों का सम्मान करते हुए वह अपने दायित्वों का निर्वाह करती है और अपनी अस्मिता का हनन नहीं होने देती। लेखिका की कहानियों में लिव इन रिलेशनशिप का कोई स्थान नहीं है। सकारात्मकता व मानवीय मूल्यों के प्रति अटूट निष्ठा आपके लेखन को शीर्ष तक पहुँचाती है।

आपने तथाकथित संस्कारशील घरों में घुटते दांपत्य और अस्तित्वहीनता की यंत्रणा सहती स्त्री के अंतद्र्वन्द्व को ही नहीं दर्शाया है बल्कि रूढ़ नैतिकता और पुरुष अहं का परीक्षण करती स्त्री की सहज जीवन जीने की आकांक्षा को नए अर्थों में दिखाने का भी प्रयास किया है।

आपकी टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी शत शत नमन किसके लिए पटरियों पर दौड़ती जिंदगी तथा शशांक जैसी कहानियों में जहाँ स्त्री के आँसू स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं वहीं ओजस्विता से भरी हुई प्रत्येक स्थिति में पहाड़ की अचलता दिखाई पड़ती है। भले ही सूरज छिपकर थोड़ी देर अंधेरा फैला दे किन्तु अंधेरे के बाद प्रकाश की उम्मीद ही स्त्री को जीवंत बनाती है।

आपके स्त्री पात्र पुरुष को कहीं भी अस्वीकार नहीं करते बस बराबर में एक सम्मानपूर्ण जगह चाहते हैं। वस्तुत यही तो है स्त्री विमर्श। पुरुष विरोधी होना स्त्री विमर्श नहीं बल्कि समान अधिकारों समान दायित्वों का निर्वाह ही स्त्री विमर्श है जोकि मुक्ताजी के साहित्य में स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

आपकी  स्त्रियाँ दुख व यंत्रणा सहती अपनी अस्मिता को बचाए हुए सदैव संघर्षशील हैं। आपने स्त्रियों के दुख को एक बड़े फलक पर उतारकर दुख निवारण हेतु नई दिशा प्रदान की है।

निष्कर्षत कहा जा सकता है कि मुक्ता जी गंभीर कलात्मक साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट साहित्य की रचना करने वाली लेखिका हैं। आपकी कहानियों में यथार्थता सादगी विचारमयी मर्मबेधी वेदनाएँ हैं। आपके कथानकों के पात्र यथार्थ की भूमि से लिए हुए इतने सहज निश्छल पारदर्शी हैं कि पाठक की अंतरात्मा को झकझोर देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। पाठक का उनके साथ स्वत ही तारतम्य स्थापित होता चला जाता है।

आपके कथानकों की भाषा वातावरण के अनुरूप अत्यंत हृदयस्पर्शी, सरल, सहज, आंचलिकता को लिए हुए कथा व स्थिति के अनुरूप गढ़ी गई है। आपने स्त्री विमर्श का ढिंढोरा न पीटकर अपनी कथानकों में स्त्री विमर्श के मूल तत्वों को मार्मिकता के साथ रेखांकित किया है। स्त्री स्वातंत्र्य की बातें आपने बहुत स्पष्ट व दृढ़ता के साथ कही हैं। आपके स्त्री पात्र सामाजिकÊ राजनीतिक विसंगतियों की कसौटी पर खरे उतरते हैं। आपके पात्र स्त्री के मानसिक पटल को प्रस्तुत करने का अद्भुत सामथ्र्य तो रखते ही हैं साथ ही परंपरागत रूढ़ियों–बंधनों से मुक्त होकर स्वनियंत्रण में रहने की सीख देते हुए भी नज़र आते हैं।

मुक्ता जी एक प्रतिबद्ध लेखिका हैं। शोषण, अत्याचार व अनाचार सहती स्त्रियों की पीड़ा को मरहम देना व समाज की प्रगति ही आपके लेखन का लक्ष्य रहा है। आपने विभिन्न कहानियों के माध्यम से स्त्री मुक्ति के प्रश्नों को उठाया है। आपके स्त्री पात्र समाज के लिए नई दिशा व नया मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं।

आपके स्त्री पात्र अपने स्त्रीत्व पर गर्व करने वाले, स्वाभिमानी, संघर्षशील व ऐसी अपराजिताऐं हैं जो अंत तक संघर्ष करती रहती हैं। आपने अपनी भावनाओं विचारों व संवेदनाओं में बेहद ईमानदारी व पारदर्शिता का परिचय दिया है। इस प्रकार मुक्ताजी अपने जीवन के अनुभवों व साहित्य के द्वारा स्त्री मुक्ति का आख्यान रचती हैं।

डॉ सविता उपाध्याय 

साहित्यकार व समीक्षक, बी 1146 ग्राउंड फ्लोर इफको कॉलोनी गुरुग्राम, 9871899939

 

डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #27 – निष्कर्ष ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 27 ☆

☆ निष्कर्ष ☆

 

दूसरे के जागने-सोने, खाने-पीने, उठने-बैठने, हँसने-बोलने, यहाँ तक की चुप रहने में भी मीन-मेख निकालना, आदमी को एक तरह का विकृत सुख देता है। तुलनात्मक रूप से एक भयंकर प्रयोग बता रहा हूँ, विचार करना।

रात को बिस्तर पर हो, आँखों में नींद गहराने लगे तो कल्पना करना कि इस लोक की यह अंतिम नींद है। सुबह नींद नहीं खुलने वाली। …यह विचार मत करना कि तुम्हारे कंधे क्या-क्या काम हैं। तुम नहीं उठोगे तो जगत का क्रियाकलाप कैसे बाधित होगा। जगत के दृश्य-अदृश्य असंख्य सजीवों में से एक हो तुम। तुम्हारा होना, तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण हो सकता है पर जगत में तुम्हारी हैसियत दही में न दिखाई देनेवाले बैक्टीरिया से अधिक नहीं है। तुम नहीं उठोगे तो तुम्हारे सिवा किसी पर कोई दीर्घकालिक असर नहीं पड़ेगा।

तुम तो यह विचार करना कि क्या तुम्हारे होने से तुम्हारे सगे-सम्बंधी, तुम्हारे परिजन-कुटुंबीय, मित्र-परिचित, लेनदार-देनदार आनंदी और संतुष्ट हैं या नहीं। बिस्तर पर आने तक के समय का मन-ही-मन हिसाब करना। अपने शब्दों से किसी का मन दुखाया क्या, आचरण में सम्यकता का पालन हुआ क्या, लोभवश दूसरे के अधिकार का अतिक्रमण हुआ क्या, अहंकारवश ऊँच-नीच का भाव पनपा क्या..?… आदि-आदि..। हाँ आत्मा के आगे मन और आचरण को अनावृत्त कर अपने प्रश्नों की सूची तुम स्वयं तैयार कर सकते हो।

प्रश्नों की सूची टास्क नहीं है। प्रश्न तुम्हारे, उत्तर भी तुम्हारे। असली टास्क तो निष्कर्ष है। अपने उत्तर अपने ढंग व अपनी सुविधा से प्राप्त कर क्या तुम मुदित भाव से शांत और गहरी नींद लेने के लिए प्रस्तुत हो?

यदि हाँ तो यकीन मानना कि तुम इहलोक को पार कर गए हो।

सच बताना उठकर बैठ गए हो या निद्रा माई के आँचल में बेखटके सो रहे हो?

निष्कर्ष से अपनी स्थिति की मीमांसा स्वयं ही करना।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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